8 years ago#1
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अन्नु की लम्बी चोटी

अन्नु क्लास में मेरे सामने ही बैठती थी. सुबह वाले लेक्चर में उसके बाल गीले होते थे. लेकिन हमेशा बंधे रहते थे चोटी में. चोटी बहुत ही मोटी और लम्बी थी. चोटी का निचला सिरा उसकी गांड के ऊपर तक आता था. वो भी गांड के जस्ट ऊपर नहीं बल्कि गांड के लगभग बीच तक. कई बार उसको खड़े रहते हुए देखकर मैंने ये अंदाजा लगाने की कोशिस की थी कि अगर ये चोटी बांधकर नंगी कखड़ी हुई तो चोटी का निचला सिरा उसकी गांड के छेद में जाएगा या नहीं.

अन्नु बहुत ही सीधी सादी लड़की थी कानपूर की. पढने शहर आई थी. लेकिन शेहरी लड़कियों की तरह उसमे रंडाप नहीं था. कपडे सादे पहनती थी, बोलती बहुत ही तमीज से थी. अपने काम से काम रखती पर सभी से बहुत अच्छे से बात करती थी. पढाई लिखी में वो बहुत अव्वल तो नहीं थी लेकिन फिर भी डिपार्टमेंट के टॉप 10 में जगह बना ही लेती थी. उसकी मुस्कान बहुत ही प्यारी थी. वो कुछ बहुत ज्यादा गोरी नहीं थी न ही उसके चूचे पहाड़ जैसे थे. हाँ उसकी कमर और गांड हलकी मोटी थी लेकिन उसकी पर्सनालिटी ऐसी थी की कभी भी वो फूहड़ नहीं लगी. उसकी जैसी गांड होती है तो लडकियां दुनिया के सामने मटकाती फिरती हैं, लेकिन अन्नु में ये सब एब नहीं था.

पता नहीं कब, शायद सेकंड इयर में मुझे पता चला की मैं अन्नु को चाहने लगा हूँ. मैं कोई रोमांटिक टाइप का लड़का नहीं रहा कभी. दोस्त तो सब बक्चोद ही कहते हैं मेरेको. लेकिन एक बार अन्नु बीमार हो गयी और 1 हफ्ता कॉलेज नहीं आई. पता नहीं क्यों उस दौरान मेरे को एक खालीपन महसूस होता रहा. मेरे सामने वाली सीट खाली रहती थी. कभी कभार उसमे कोई और आकर बैठ जाता लेकिन मेरी आंखें अन्नु की चोटी को ही तलाशती रहती. जब अन्नु ठीक होक कॉलेज लौटी तो मेरे से रहा नहीं गया और मैंने उससे बात की.

"क्या हो गया था? तुम दिखी ही नहीं कुछ दिनों से?"
अन्नु बहुत दुबली लग रही थी. शकल से पता चलता था कि बीमारी से उठी है.
"हाँ. बुखार हो गया था"
" अभी तो ठीक हो न?"
"हाँ."

उसकी सहेली कल्पना आई और उसे लेकर चली गयी. मैं उसकी गांड के ऊपर हिलती चोटी को देख रहा था. और किसी तरह अपने अन्दर के उस इच्छा को दबा रहा था जो कह रहा था जाके उसकी गांड में लंड पेल दूँ और उसको चोटी मुंह में ले लूँ.
जाते जाते अन्नु मुड़ी और मेरी तरफ देखा. वो मुस्कुरायी भी नहीं. जस्ट देखा.
मेरे मन हुआ कि जाके उसको गले से लगा लूँ और छोडूं न कभी. एक सेकंड में मेरे मन की इच्छा गांड चोदने से प्यार में बदल गयी. मैं मन ही मन हंसा अपने बक्चोद मन पर.

उस दिन अगर कोई कहता कि एक दिन अन्नु की चोटी मेरे हाथ में होगी और मैं उसके साथ क्या क्या करूँगा , तो मैं नहीं मानता. लेकिन जैस अमुझे बाद में पता चला कि, अन्नु के कई रूप थे और मैं उसे बस एक ही रूप में देख रहा था अब तक.
8 years ago#2
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अन्नु को मन में तो कई बार अलग अलग तरीकों से चोद चुका था पर मैंने कभी नहीं सोचा था की असली में एक दिन वो मेरी होगी. और मेरी हकीकत मेरी कल्पना से भी सेक्सी होगी. कल्पना से याद आया. अन्नु और मेरे बीच नजदीकियां लाने में कल्पना ने एक बहुत बड़ा रोल प्ले किया था. 


हमारा कॉलेज का कैंपस बहुत बड़ा है. रात में कई लोग यहाँ वहां घुमते हैं. कई जोड़े अँधेरे कोनो में चुदाई भी करते हैं. अन्नु और उसकी सहेली कल्पना एक दिन रात को डिनर के बाद वाल्किंग के लिए निकले थे. मैं उनको पहले भी एक दो बार देख चुका था उस टाइम वाक करते हुए. गांड से चिपकी लेग्गिंग में अन्नु और भी खुबसूरत हो जाती थी. और उसकी दोनों तरफ हिलती चोटी मेरेको और भी पागल कर देती थी. मैं दूर से उनके पीछे पीछे चलता था.

एक दिन वाक करते करते दोनों कैंपस के दुसरे कोने में ही पहुंच गए. पर उसी समय कल्पना के बॉयफ्रेंड का फ़ोन आ गया. हो सकता है बन्दे को चुदाई का मन हो. हमारे कॉलेज में रात रात भर भी लड़का लड़की बाहर रह सकते हैं कोई कुछ नहीं कहता. कल्पना की चूत भी कुलबुला गयी होगी. इस उम्र में अगर एक बार लड़की को लंड का स्वाद मिल जाए तो वो बस मौका मिलते ही चुदवाना चाहती है. कल्पना मेन बिल्डिंग में चली गयी. मेन बिल्डिंग के उपरी फ्लोर्स के खाली लेक्चर हॉल्स में काफी चुदाई होती थी. कभी कभी तो चुदास में जोड़े एक दुसरे के सामने ही चुदाई करके अपनी ठरक मिटा लेते हैं. खैर कल्पना अन्नु को बोलकर चली गयी. कोई दिक्कत वाली बात भी नहीं थी. कैंपस लड़कियों के लिए बहुत सेफ था. जब तक कोई लड़की न चाहे की मेरी चूत में लंड डालो तो कोई जबरदस्ती नहीं कर सकता था. 


मैंने सोचा मौका अच्छा है जाके थोड़ी बात करता हूँ. अन्नु के शरीर के पसीने की खुशबु मुट्ठ मारते वक़्त बहुत ही मजा देती है. लेकिन लड़की से बात करने में मेरी हमेशा फट जाती है. लौंडों में तो जितनी मर्जी बकचोदी करवा लो. खैर, अन्नु के पसीने के खुशबु लेने के लिए मैं आगे बड़ा. 

" हाई. अभी किस तबियत है तुम्हारी?" 
" हाई. ठीक हूँ. तुम कैसे हो ? इधर कैसे ?" 
" ऐसे ही. थोड़ी वाल्किंग कर रहा हूँ." मैं कैसे बोलता की तुम्हारी गांड के ऊपर हिलती चोटी देखने के लिए पीछे पीच एचल रहा हूँ. 
"और पढाई कैसी हो रही है?" मैंने बात चीत जारी रखी. 
" बस ठीक." 

थोड़ी देर हम चुप चाप चलते रहे. 
" कल्पना कहाँ गयी? " मैंने फिर बात छेड़ी. 
"विशाल का फ़ोन आ गया था.मेन बिल्डिंग गयी है " बोलकर वो थोडा मुस्कुरायी. 
मैं भी मुस्कुराया. दोनों जानते थे, इस समय तक कल्पना विशाल के गोद में उछल रही होगी. विशाल अपने होंठ को दांतों से दबा कर कल्पना के चूत में लंड पेल रहा होगा. एक हाथ से कमर को पकड़ होगा और दूसरी से चूची दबा रहा होगा. डर असल मैंने कई जोड़ों को ऐसे ही चुदाई करते देखा था इसलिए यही पिक्चर बनी दिमाग में. बस शक्ल चंगे कर दिए. 

" क्या सोच रहे हो?" इस बार अन्नु बोली. 
" कुछ नहीं." 
"तुम किसी को फ़ोन नहीं करते हो में बिल्डिंग आने के लिए?" अन्नु ने थोड़ी शरारत भरी आवाज़ में पुछा. 
मैं सही में शर्मा गया. कहाँ मैं लड़कियों से बात ही न कर पाऊं और कहाँ ये लड़की ही कैसे कैसे सवाल कर रही थी. 
" नहीं. मेरी ऐसी किस्मत कहाँ?" मैने ये दिखाना चाह कि मैं शर्मा नहीं रहा. 

बात करते करते हम लोग पोस्ट ऑफिस के सामने आ गए थे. यहाँ से अन्नु के हॉस्टल तक का रास्ता काफी सुनसान था. अपन हॉस्टल के लिए मेरेको मुड़ना था. लेकिन मैंने अन्नु से बोला " चलो तुमको तुम्हारे हॉस्टल तक छोड़ आता हूँ.". 

अन्नु ने कुछ सोचा. फिर बोली ठीक है. 

अँधेरा हो चुका था. इस सड़क पर ज्यादा आवाजाही नहीं थी. अन्नु मेरे बराबर चल रही थी. नीम के पेड़ की खुशबू और अन्नु का डीओ से मिला हुआ पसीना एक मादक सुगंध दे रहे थे. हम दोनों चुप थे. मैंने मुड़कर पीछे देखा की कोई आ तो नहीं रहा फ्री अपनी ज़िन्दगी में पहली बार हिम्मत करके मैंने अन्नु का हाथ पकड़ा. 
जैसा की मेरेको बाद में पता चलेगा , इस एक हरकत ने मेरी ज़िन्दगी ही बदल दी. 

अन्नु चलत चलते रुक गयी. हम एक मोटे नीम के पेड़ के नीचे थे. मैंने अन्नु के हथेली पकड़ी हुई थी. मैं थोडा डरा की कहीं ये चिल्ला के गार्ड न बुला ले क्युकी ये शायद उस टाइप की लड़की नहीं है. लेकिन मैंने हाथ नहीं छोड़ा. अन्नु क़=ने एक बार हॉस्टल की तरफ देखा एक बार पोस्ट ऑफिस की तरफ. रोड सुन सां थी. 

उसने अब मेरा हाथ पकड़ा और मेरेके खींच के नीम के पेड़ के पीछे ले गयी. वो सीधे मेरी आँखों में देख रही थी. वो मेरे से थोड़ी छोटी थी पर एक दम घूर रही थी मेरेको. मैं भी उसकी आँखों में देख रहा था. लेकिन इस समय उसकी आँखों में वो भोलापन , सादापन नज़र नहीं आ रहा था. एक नज़र एक शेरनी के नज़र के जैसी थी. 

अन्नु ने अपना हाथ नहीं छुड़ाया, मेरी आँखों में देखते हुए ही उसने दुसरे हाथ से मेरा लंड पकड लिया , मेरे शॉर्ट्स के ऊपर से ही. अन्नु की खुशबु से मेरा लंड आधा खड़ा तो हो ही रखा था. उसी को अन्नु ने कास के पकड़ा हुआ था. ये पकड़ सहलाने वाली या मजे देने वाली पकड़ नहीं थी. ये पकड़ एक मेल की अपने गुलाम का ऊपर वाली पकड़ थी. अब मैं फत्तू तो नहीं था, लेकिन इस समय मैं कुछ कर भी नहीं सकता था. अगर कुछ भी हुआ तो अन्नु बोलेगी की मई इसके साथ कुछ कर रह अथ और मेरे डंडा हो जाएगा. और उससे भी बड़ी बात मेरेको अच्छा लग रहा था. 

मैंने उसका हाथ छोड़कर उसके चुचों को दबाना चाह तो उसने हाथ झिटक दिया. मेरे लंड पे उसकी पकड़ और भी मज़बूत हो गयी. मैं थोडा सा करह उठा. 

"मजा आ रहा है ?" अन्नु ने पुछा. 
"लंड के माँ चोद रखी है तूने , और पूछती है मजा आ रहा है?" मैंने किसी तरह जवाब दिया. अन्नु मुस्कुरायी और लंड छोड़ दिया. बोली "मुट्ठ मार" 

मैं हक्का बक्का. " क्या?" 
"मुट्ठ मार यहीं पर." 
"पागल हो गयी है क्या ? यहाँ पे कोई आ गया तो?" 
"आ गया तो आ गया. मुट्ठ मार नहीं तो अपने कपडे फाड़ के हल्ला मचा दूंगी" 
" ये क्या बकचोदी है मादरचोद?"
"लंड निकाल बाहर." 

मैंने लंड निकला. पर मैं इतना डर गया था की लंड भी मुरझा गया था. 
अन्नु बोली "खड़ा नहीं हो रहा?" 
"मेन बिल्डिंग चल , तेरी चूत फाड़ दूंगा" 
अन्नु हंसी. उसकी हंसी भी डरावनी लग रही थी. " ले मेरी बगल सूंघ ले. खड़ा हो जाएगा." बोलकर उसने अपनी बगल मेरे नाक पे ठूंस दी. उसकी बगल पसीने से गीली हो रखी थी. मैंने उसके बाजूं को दोनों हाथों से पकड़ा. स्लीवलेस तो थी ही वो, और उसकी बगल चाटने लगा. 

नीम के पेड़ से टिक के खड़ा थामें. शॉर्ट्स ज़मीन पर, चड्डी नीचे और लंड बाहर, जो धीरे धीरे खड़ा हो रहा था. अन्नु को गुदगुदी हो रही थी वो खिल खिला रही थी. मुझे डर लगा कहीं उसकी हंसी सुनकर कोई आ न जाए.
8 years ago#3
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अन्नु की बगल में झांटें तो नहीं थी. शायद कुछ ही दिन पहले काटी होगी उसने लेकिन थोडे थोड़े उगे हुए बाल थे. जीभ रगड़ने पर मस्त खर्र खर्र का रहे थे. उसकी बगल पसीने से गीली थी. और उसकी खुशबु पागल करने वाली थी. मन तो कर रहा था लंड उसकी बगल में ही पेल दूँ. थोड़ी देर चाटने के बाद अन्नु ने छुड़ा लिया खुद को. 


"हो गया न खड़ा? चल अब मुट्ठ मार" 

"अबे पागल है क्या तू ? मुट्ठ मार मुट्ठ मार करे जा रही है . चल अपनी लेग्गिंग नीचे कर तेरी चूत मारता हूँ." 

"मैं बिना कंडोम के सेक्स नहीं करुँगी. अब ज्यादा बातें मत बना, शोर मचा दिया और गार्ड ने आकर तेरा खड़ा लौड़ा देख लिया तो अत्तेम्प्तेद रपे केस में अन्दर जाएगा". 

"माँ की लोड़ी साली" मैंने उसे गाली दी. और अपने लंड को पकड़ के मुट्ठ मारना शुरू किया. वो खिलखिलाई. मेरी गाली उसे अछि लगी. 

मैं उसे घूर रहा था और लंड को मसल रहा था. लंड की चमड़ी को आगे पीछे कर रहा था , जिस से की लंड फूल रहा था. तोप एक दम बैंगनी हो गया था. मैं बडबडा भी रहा था 

" बहन की लोड़ी साली मादरचोद. तेरी चोटी को देख देह कर दिन भर खड़ा रहता है ... साली रांड जानती है कितनी बार मुट्ठ मारता हूँ तेरे नाम पे .. " वो हंस रही थी और अपनी चुछी दबा रही थी स्लीवेलेस टी शर्ट के ऊपर से ही. 

".. साली तेरी गंद में तेरी चोटी डाल कर तेरी चूत में लंड पेल दूंगा ..रांड की औलाद... तेरी माँ को तेरे सामने चोदके रंडी बनाऊंगा...साली तेरे मुंह में गधे का लंड.. " 

"झड़ने से पहले बताना मेरेको.. " अन्नु बोली. 

मैं और खीझ गया, मेरी उत्तेजना बदती जा रही थी " क्यों साली चिनाल.. ?? क्या करेगी?? अपनी बहन की चूत में दल्वाएगी..??? माँ की लोड़ी लंड न लेकर अपनी चूत में तो ऊँगली पसंद है न तुझे... तभी तो डरा कर मुट्ठ मरवा रही है मेरेसे.. मेरे मुट्ठ को बालों में लगा साली रांड.. तेरी लम्बी और मोटी चोटी में मुट्ठ का शैम्पू कर ले.. साली अभी अगर तेरी चूत होती न लंड का सामने.. वो चोदता...वो चोदता की अपने माँ का नाम भूल जाती तू... आजा मुंह खोल के.. झड़ने वाला हूँ मैं." 

मैंने सोचा था अन्नु शायद मुट्ठ को हाथ में लेकर कुछ करेगी. मुंह खोलने की बात तो मैंने मुट्ठ का तारक में बोली थी. पर अन्नु हर पल मेरे सामने एक नए रूप में आ रही थी. 

उसने अपनी लेग्गिंग नीचे की और अपनी चूत को मेरे लंड के सामने करके पीछे की ओर झुक के कड़ी हो गयी. 

"ले भडवे.. मेरी चड्डी में मुट्ठ डाल अपना". 

उसके चिकनी जांघो से लिपटी लाल चड्डी देख कर मेरा और रुक पाना मुश्किल हो गया और मैंने झाड दिया. लाइफ में पहली बार इतनी क्वांटिटी और इतना गाड़ा मुट्ठ निकला था. तकरीबन 12 झटकों में मुट्ठ गिराने बाद लंड थोडा शांत हुआ. अन्नु की चड्डी तो गीली हो ही गयी थी उसके पेट और नाभि पर भी मुट्ठ गिरा था. 

अन्नु ने लेग्गिंग ऊपर की. फ्री मेरे लंड को पकड़ के थोडा हिलाया. "बहुत सही, अबे तेरे मुट्ठ से गीली चड्डी को पहन कर ही मैं मुट्ठ मरूंगी रूम जाके. फिर चड्डी में ही झाड दूंगी. हम दोनों के मुट्ठ से गीली चड्डी पहन कर ही सौंगी मै आज रात." 

बोलकर उसने मुझे हग किया. मैंने भी उसे हग किया वापिस. वो बोली " देख, मैं वो शोना बाबू वाली गर्ल फ्रेंड नहीं बन सकती. लेकिन मैं जानती हूँ तू मुझे चाहता है. मुझे न सही मेरी गांड और चोटी को तू रोज़ निहारता है. मेरी भी ज़रूरतें हैं. हम दोनों अगर एक दुसरे की ज़रूरतें पूरी करें तो हम इसे आगे कंटिन्यू कर सकते हैं" 

"मतलब?? " मैं मुट्ठ मारने के बाद कुछ ढंग से समझ नहीं पा रहा था .

"मतलब चोदु, हम ऐसे ही एक दुसरे की तारक मिटाते रहेंगे लेकिन बिना किसी रिलेशनशिप के. मजूर??" 

"मतलब तू कभी म्जुह्से चुदवाएगी नहीं?"

"अरे वो बात नहीं, मतलब मैं तेरी गर्ल फ्रेंड नहीं हूँ बस." 

"ठीक है." मैंने उसे गले लगाया. "एक बात पूछूँ?" मैंने उससे कहा. 

"हूँ" 

"य सब हम मैं बुइलिन्द्ग में नहीं कर सकते थे?" 

"कर सकते थे. पर यहाँ पे ज्यादा मज़ा आया न?" बोलकर वो हंसी. "चल फिर कल मिलते हैं. कल क्लास में भी यही चड्डी पहन के आउंगी". उसने मेरे लंड को हलके से दबाया. ये प्यार वाला दाब था और गालों पे किस करके हॉस्टल के तरफ चली गयी.

पिचेल 40 मिनट में अन्नु एक अलग ही रूप में सामने आई. उसने लंड दबोचा, बगल चटवाई, मुट्ठ मरवाया, फिर चड्डी में मुट्ठ गिरवा के चली गयी. 
लेकिन आगे जो होने वाला था उसके सामने ये सब कुछ नहीं था. मई भी होअटेल की तरफ बाद चला. आज की रात पता नहीं कितनी बार मुट्ठ मारना पड़ेगा.
8 years ago#4
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अगले दिन सुबह जब अन्नु मेरे सामने आकर बैठी तो उसने कुछ भी अलग रिएक्शन नहीं दिया. मई सोच रहा था कि शायद मुझे देखकर मुस्कुराएगी या कुछ तो करेगी, आख़िर कल ही उसने मेरा लंड देखा था और अपनी चड्डी पर मेरी मुट्ठ गिरवाई थी. लेकिन कुछ नहीं. चुप चाप आई दूसरे दिनों की तरह और आके बैठ गयी. नाहा के आई थी इसलिए बाल गीले थे. मोटी चोटी थी. मन तोकर रहा था वही पे लंड पेल दूँ. कभी कभी सोचता हूँ कि सद्दाम हुसैन के लड़के या फिर बड़े तानाशाहों के लड़कों की कितनी मौज होती होगी. जो भी लड़की या औरत पसंद आए उसी को छोड़ देते हैं पकड़ के. साला मेट्रो, ऑटो, बस में कितनी ही मोटी मोटी गांड, जांघें, बड़े बड़े चुछे दीखते हिं. मन करता है दबा दबा के , गांड में लौडा घुसेड घुसेड के चोदुं रंडियों को. लेकिन क्या करेगा पांडू जब किस्मत हो है गांडू. बस मुट्ठ हो गिरता है उनके नाम. जैसा कि अन्नु की चोटी के नाम गिरता रहा है. 


खैर, क्लास के बाद लैब की तरफ जाते हुए अन्नु ने बड़ी सफाई से मेरे हाथ में एक पर्ची पास करदी. इन सब की ज़रूरत तो थी नहीं पर उसको इन सब इ मज़ा बहुत आता था शायद. पर्ची में लिखा था "मेरे चोदु राजा. 5 बजे मेन गेट के बाहर मिलना. और दिन भर मुट्ठ मत मारना. तुम्हारी चुदाई की प्यासी, तुम्हारी दासी.. तुम्हारी चुदासी." 

मैं मुस्कुराया. लंड भी हल्का सख्त हो गया. पर मैंने मुट्ठ न ही मारने का सोचा. 

5 बजे गेट पे गया तो अन्नु कड़ी मिली. उसको हाई बोला मैंने पर उसने कुछ नहीं बोला. इशारा करके एक ऑटो को रोका और बोली राजा के टीले पर जाना है. 

राजा का टीला हमारे कॉलेज से कुछ 5-6 किलोमीटर की दूरी पर था. थोडा जंगली इलाका था उसी के बीच में एक राज महल था जो की अब खँडहर हो चुका था. लेकिन वो जगह प्रेमी जोड़ों के लिए आदर्श था. कई बार मैं अपने दोस्तों के साथ वहां जा चुका था, लड़कियों को चुद्वाते हुए देखने के लये. खँडहर की दीवारों के पीछे, झाड़ों के पीछे, खुले में भी चुदाई होती है वहां. 

ऑटो ने तील एके नीचे लाकर उतार दिया. वहां से एक छोटी सी चढ़ाई थी. झाडी और जंगले के बीच एस होती हुई. लोगों ( ज्यादातर चुद्दी करने वाले लौंडे लौंडियाँ) की वजह से एक पगडण्डी सी बन गयी थी. बीच बीच में सुस्तान के लिए सरकार ने बेंच लगवा दिए थे. लगभग 15 मिनट की चढाई थी राज महल तक पहुँचने के लिए. ऑटो के पैसे अन्नु ने ही दिए. और दिन एम् एपेहली बार मेरे से बोली. " मुट्ठ तो नहीं मारी तूने?" 

"क्यूँ बे? बालों में लगेगी मेरा सडका??" 

"वो तो देखेगा ही क्या करुँगी. चल ऊपर चलते हैं" 

हमने चलना शुरू किया मैंने उसका हाथ पकड़ना चाह तो उसने मेरा लंड पकड लिया. उसकी तरफ देखा तो हंस रही थी. 

"अबे क्या बचोदी है तेरी?? तेरा हाथ पकड़ता हूँ तो तू मेरा लंड पकड़ लेती है?" 

"तुझे मेरा हाथ अच्छा लगता है मुझे तेरा लंड अच्छा लगता है. सिंपल" 

"तो मैं तेरा चुच्छा पकडूँगा फिर" बोलकर मैंने उसका एक बूब पकड़ लिया. वो खिलखिलाई और मेरा लदन छोड़ दिया. मैंने भी उसकी चुछी छोड़ दी. आगे बढ़ने लगे. 

बेंच पे जोड़े बैठे थे और काम चालू कर रखा था. पहले बेंच पर एक बन्दे ने एक बंदी को अपनी गोदी में बिठा रखा था. बंदी ने साड़ी पहनी हुई थी. बन्दे का एक हाथ साडी के अन्दर था दुसरे से वो चूची दबा रहा था, दोनों गहराई से किस रहे थे. लड़की ने लड़के के गर्दन को लपेट रखा था अपने हाथों में. अन्नु ने मेरा ध्यान उनकी ओर किया. फुस्फुआ के बोली " वो देख लड़के ने लंड निकला हुआ है पेंट से" 
सही में एक काला लंड निकला हुआ था. बंदी थोडा साइड होकर बैठी थी गोद में. मैंने अपनी चड्डी एडजस्ट की. अन्नु को उसमे भी खुरचन " खड़ा हो रहा है न तेरा भी?" बोलकर वो हंसी. 

थोड़ी आगे बदेह इस बार एक बूढ़े से अंकल दिखे, जो की एक कम उम्र की लड़की की जेनस के अन्दर हाथ दिए हुए थे. लड़की ने उनका लंड पकड़ा हुआ था और दुसर हाथ से उनकी गर्दन सहला रही थी. 
" देख के तो लग रहा है की बुध्ह ने रंडी पकड रखी है" मैंने अन्नु से कहा. 
हमको देख कर अंकल थोडा ररुके. वो अन्नु की तरफ देख रहे थे. उन्होंने हाथ जीन्स से बहार निकला और अपना लंड हिलाने लगे जैसे अन्नु को देख कर मुट्ठ मार रहे हों. मादरचोद बुद्धा ठरकी था बहुत. अपनी बेटी की उम्र की रंडी छोड़ ही रहा थ फिर भी एक दूसरी बेटी की उम्र की लड़की को देख कर मुट्ठ मर रहा था माँ का लौदा.

अन्नु भी चलते चलते रुक गयी. मैंने उसका हाथ खींचन चाह पर वो अंकल को ही घूरे जा रही थी. अंकल जी जोर जोर से हिला रहा थे. उनकी रंडी बगल में चुप चाप बैठी देख रही थी. अन्नु ने अपनी सलवार उठाई और लेग्गिंग नीचे की. उसकी काली चड्डी उसके गोर जाँघों के बीच चमक उठी. अंकल जी थोड़े ठिठके, फिर और जोर जोर से हिलाने लगे. 

अन्नु ने अपने दांये हाथ की मझली ऊँगली उठायी जैसे के फ़क ऑफ का साईंन बना रही हो. उसने अंकल को दिखाया और वो ऊँगली सीधे अपने चूत में डाल दी. बहनचोद मेरा भी अब खड़ा हो गया. मैं पनेंत से लंड निकालने ही वाल था की अन्नु ने इशार कर दिया की मत कर ऐसा. 

अन्नु अपनी चूत में ऊँगली कर रही थी, अंकल लंड हिला रहे थे, रंडी अपनी ब्रा खोलकर बैठी हुई और मैं चुत्यों की तरह खड़ा था.

अन्नु अब अपनी चूत को सहलाने लगी और जोर जोर से बोलने लगी " आह... डैडी... डालो न... चोदो न मुझे ..प्लीज...आःह्ह्ह..... आआआन्न्न्न....उफ्फ्फ.... आओ...चोदो...." मेरी फट रही थी की कहीं कोई और न आ जाये. पर बुद्धे ने मुट्ठ छोड़ दिया. फ़च्छ फ़च्छ करके मुट्ठ गिर गया ज़मीन पर और बुद्धा फ़ैल के बैठ गया बेंच पे. एक हाथ से रंडी की चुछी मसलने लगा. रंडी अन्नु को ऐसे घूर रही थी मानो उसके पेट पर लात मारी दी हो अन्नु ने. 

अन्नु ने चड्डी उठाई. लेग्गिंग भी. सलवार सेट किया. मेरे से बोली " चल ऊपर चलते हैं." 

थोड़ी दूरी पर मैंने पुछा "ये तू क्या कर रही थी? रंडियों की तरह अज्नीबी के सामने मुट्ठ मारने लगी?" 

उसने पुछा "चूत मेरी, ऊँगली मेरी. मैं अपनी चूत में कब और किसके सामने ऊँगली डालूं ये मुझे तू मत बता. वो बुद्धा मेरे को देखकर लंड हिला रहा था मैंने उसकी औकात बता दी उसे. मुझे उंगल करते देख कर ही दो मिनट में झड गया. मेरी चूत में डालता तो 10 सेकंड भी नहीं टिकता. अब दिमाग की माँ मत चोद, ऊपर चल". 

मैं और क्या बोलता. " सही बात है. तेरी चूत तेरी ऊँगली. पर अब मेरा लंड तेरी चूत में जाना चाहता है. दिन भर मुट्ठ नहीं मारा आज, ऊपर से तेरा रंडाप देख लिया. अब या तो चूत दे, या तो गांड आय तो मुट्ठ मारूंगा ऊपर जाते ही." 

"हाँ मेरे चोदु रजा. लोडू. ऊपर तो चल"
8 years ago#5
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टीले पर पहुंचे. मैं थोडा हांफ गया था. आदत नहीं थी. अन्नु ठीक थी. बुढऊ के सामने चूत में ऊँगली करने के बाद भी वो एक दम नार्मल थी. नार्मल बात कर रही थी. मुझे ये सब नार्मल नहीं लग रहा था, मतलब किसी के भी सामने चूत खोल देना और उंगल करना, ये किसी भी तरीके से नार्मल नहीं था. इतना फ्रैंक तो जी.बी रोड की रंडियां या फिर हिजड़े भी नहीं होते. अन्नु वो सब कुछ नहीं थी. वो एक पढ़ी लिखी, शांत स्वाभाव की, आहिस्ता बोलने वाली लड़की थी. लेकिन अभी मैं अन्नु को जानता ही कितना था. अभी कल ही तो उसने अपनी चड्डी पर मुट्ठ गिरवाई थी, वो भी कहाँ नार्मल था.


मेरे मन में ये सब चल रहा था, अन्नु शायद समझ गयी. " तू यही सोच रहा है न कि मैं कैसी लड़की हूँ... बुध्हे के सामने मैंने कैसे आसानी से चूत खोल दी?" 

"नहीं नहीं. मैं तो.." 

"रहने दे. तेरे को झूठ बोलना नहीं आता. और तेरी यही बात मुझे सबसे जया अछि लगती है. तू है तो बड़ा ही ठरकी लेकिन दिल का साफ़ है." 

"अब बस कर यार." 

हम लोग बैठे हुए थे. जहाँ पर बैठे थे वो महल के एक कोने की दीवार थी. दीवार कहना शायद गलत होगा, पुराने ज़माने में किले के चारों ओर ऊँचाई पर एक छोटे से कमरे जैसा ढांचा बनाया जाता था जो कि चारों कोनो पर होता था. वहां से चारो दिशायों में नज़र रखा जाता था. ये चारो ढांचे आपस में एक रास्ते से जुड़े होते थे जो कि दीवार के ऊपर ऊपर ही चलता था. हम लोग वैसे ही एक ढाँचे के अन्दर बैठे थे. दोनों ओर से खुला था और खिड़की से पूरा टीला दूर दूर तक दिखाई दे रहा था. 

हम लोग दीवार पर पीठ टिकाये बैठे थे और बात कर रहे थे. अन्नु बोली " देख वो बुड्डा रंडी चोद रहा था मुझे कोई दिक्कत नहीं. लेकिन उसने मेरी ओर देख कर लंड हिलाना जब शुरू किया न तब मेरा खून खौल गया. साला मुझे भी रंडी समझ रहा होगा. इसीलिए मैंने उसे उसकी औकात बताने के लिए वो किया. खैर मुझे तेरेको और कोई सफाई नहीं देनी. तू बता तूने मुट्ठ मारी थी आज कॉलेज में?" 

"मुझे कोई सफाई चैये भी नहीं. जैसा तूने बोला था ना तेरी चूत तेरी ऊँगली जो मर्जी कर. मेरेको खुद पता नहीं मैं तेरे साथ यहाँ क्यों आ गया. " मैं थोडा खीझ गया था. 

अन्नु हंसी. मैंने और बोला "और नहीं मुट्ठ नहीं मारी" 

"ओ ले मेला शोना बाबू. आज मुट्ठ नहीं मारी शोनू ने." अन्नु ने मुझे चिडाया. 

मैं दूसरी ओर देखने लगा. मैं सही में गुस्सा हो रहा था सोच रहा था कि उठ के चला जाऊं, ये लड़की मेरेको अब पागल लगने लगी थी. तभी अन्नु ने बोला "चल ऐसा कर अभी मुट्ठ मार." 

"हैं.??" 

"हैं क्या कर रहा है चूतिये की तरह. मुट्ठ मार. खड़ा है ही तेरा" अन्नु बोली. "मैं भी मदद करुँगी चल". 

मैंने जेअसं में से लंड निकाला. अन्नु बोली, " अपनी शर्ट भी निकाल दे और बनयान ऊपर कर ले गले तक". 

"क्यूँ.?? चाटेगी तू??" मैंने शर्ट निकालते हुए बोला. 

"उसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी". अन्नु मुस्कुरा के बोली. 

मैंने शर्ट निकाल दी और बनियान उअप्र कर दी. जीन्स और चड्डी भी गांड के नीचे कर दी. लड़ धीरे धीरे जाग रहा था. 

"अब तो नहीं बोल रहा की कहीं कोई आएगा तो नहीं?" अन्नु ने हंस के पुछा. 

"अबे वो कॉलेज था माँ की लोड़ी. ये टीला है. यहाँ पे कोई आया तो उसकी माँ छोड़ दूंगा यहीं" मैंने लदन हिलाते हुए कहा. साला कपल्स की हरकतें फिर अन्नु को चूत में ऊँगली करते देखकर और फिर इतनी चुदाई भरी बातें करके लंड भी झड़ने को रेडी हो रखा था मैं जोर-जोर से हला के झड जाना चाहता था. तभी अन्नु ने मेरे आंड पकड़ लिए. 

"अभी मत झाड. थोड़े मजे ले पहले" 

"बहनचोद आंड फोड़ रही है दबा के कह रही है मजे ले." 

अन्नु हंसी और आंड छोड़ दिए. बोली "लंड को हाथ मत लगा , मैं जो करुँगी उसी से झड जाएगा तू. बस देख की कब तक बिना झाडे रह पाता है." 

"कोई प्राइज है न झड़ने का?" 
"बाद में बतौंगी." 

मैं लेटा हुआ था. अन्नु ने मेरे पसलियों को नाखून से खरोंचना शुर किया. वो इतनी सफाई से कर रही थी की गुदगुदी नहीं हो रही थी बल्कि एक ज़बरदस्त अछापन महसूस हो रहा था. लंड पूरा तन गया था. 

फिर उसने धीरे धीरे मेरी छाती को कहोंचन शुरूह किया. कसम से ऐसा लग रहा था की अभी उसकी गांड में घुसा दूँ अपना लंड और जोर जोर से पेलूं. मेरा हाथ की लंड को दबोचने बढ़ रहा था की अन्नु के हाथ पर चपत लग दी. 

" बिना हाथ लगे ही झडवाउंगी तेरा. "

अब बात मेरे ईगो पर आ गयी. मैंने मन में हो सोचा साली अब तू कुछ भी कर ले और झडवा के दिखा. अब तो जब तक मुंह में नहीं लेगी तब तक नहीं झादुन्गा. 
अन्नु मेरे कंधे सहला रही थी. फिर से छाती पर आई. पर उसने दकेह की लंड अब उतने झटके नहीं ले रहा. वो मेरी ओर देख कर मुस्कुरायी. 

"दम लगा रहा न झड़ने की?" 

मैंने उसे हँसते हुए फ़क ऑफ का इशारा किया.

अब उसने मेरे निप्प्लेस को रगड़ना शुरू कर दिया. जिन लोगों ने आज तक ये तरी नहीं किया वो ज़रूर कर के देखना. बहनचोद निपल्स को छूना लंड को छूने से भी ज्यादा मजेदार है. लंड फिर से हिलने लगा. मुझे लगा की अब और रुकना मुश्किल है. मैंने फिर भी दम रोक के रखा कि जब तक हो पाए तब तक कोशिश करता हूँ. अन्नु को भी जिद चढ़ गयी थी वो अब निपल्स को जोर जोर से रगड़ रही थी. फिर अचानक ही उसने दोनों निपल्स को एक साथ कास के चिकोटी काट दी. चिकोटी मतलब अंगूठे और पहली ऊँगली के बीच रखकर जोर से दबा दिया. 

बहनचोद फिर से फ़च्छ फ़च्छ फ़च्छ फ़च्छ करके मुट्ठ उगलने लगा लौड़ा मेरा. मैं साइड की ओर हो गया जिससे शरीर पर न गिरे. पता नहीं ऐसा क्या किया था अन्नु ने, साला मुट्ठ रुक ही नहीं रहा था. कमसेकम 15 झटकों में मुट्ठ गिरने के बाद जाकर थोडा शांत हुआ. अन्नु हंस रही थी. 

मैं भी मुस्कुराया. कपडे सही करे और थोडा हटकर बैठे. शाम ढलने वाली थी. सूरज डूब रहा था. मुट्ठ झड़ने के बाद मेरे को काफी रिलैक्स लग रहा था. अन्नु पास मैं बैठी थी अचानक बोली 

"अपना बैग हटा." मैंने अपना बैग गोदी में लिया हुआ था. मैंने हटा कर साइड में रख दिया, सोच की शायद अब चुदाई होगी. लेकिन अन्नु चुप चाप आकर मेरी गोदी मैं बैठ गयी. मेरी तरफ उसकी पीठ थी. 

"मुझे कदल कर" 

"वो क्या होता है ?" 

"अबे हाथ दोनों ओर से लाकर मेरे को बाहों में भर ले लोडू." 

"बहनचोद तेरा रोमांस भी खतरनाक है" 

मैंने उसे बाहों में भर लिया. शाम ढल रही थी. उसकी चोटी की खुशबू मेरे नाक में जा रही थी. मैंने अपना नाक उसके चोटी में डुबा दी. अन्नु ने अपने हाथ से मेरा सर सहलाया. हम दोनों चुप चाप बैठे थे. एक पंछियों का झुण्ड टीले के ऊपर से उड़ते हुए अपने घोंसले में जा रहा था. शायद ये मुट्ठ झड़ने का नतीजा था लेकिन जिस लड़की को मैं कुछ ही मिनटों पहले साइको सोच रहा था उसके ऊपर इस समय बेंतहा प्यार आ रहा था. चुदाई वाला प्यार नहीं. ऐसा बाहों में लेकर बैठने वाला प्यार. 

"अन्नु.." 

"हाँ..?" 

"तू बहुत अलग लड़की है".

"तो?" 

"तू मुझे अच्छी लगने लगी है " 

"अछि तो लगूंगी ही साले. दो दिन में दो बार मुट्ठ जो झडवा दिया तेरा. तुझ जैसे ठरकी और क्या चाहिए" 

मैंने अपना गाल उसके बालों पर रगडा. " वो बात नहीं है." 

"फिर क्या बात है?" 

"तू एक दम ऑनेस्ट है मेरे साथ. जो मन में आता है बोलती है. ये बहुत अछि चीज़ है"

"ठीक है ठीक है. बकचोदी मत कर अब. मोमेंट स्पोइल मत कर" 

"अंग्रेजी मत चुदा." मैंने उसे चिढाया.

अन्नु शायद मुस्कुरायी. हम बैठे रहे.

8 years ago#6
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हम लोग काफी देर ऊपर बैठे रहे थे. सूरज ढलने के भी कुछ देर बाद हम लोगों ने नीचे जाने का मन बनाया. अपने जगह से उठकर किले से बाहर निकलने तक कम से कम 7 जोड़े दिखाई दे गए. कोई बंदी को गोदी में बिठा आकर जमके किस कर रहा था. एक हाथ चूची मसल रहे थे तो दूसरा हाथ पेंट के अन्दर था. लड़की ने कास के हग किया हुआ था और मजे ले रही थी. कहीं पे बंदी लड़के का लंड चूस रही थी. एक जोड़ा तो चुदाई ही कर रहा था. लड़की लड़के की गोदी पे उचल रही थी. किले के अन्दर थोडा अँधेरा था तो ज्यादा कुछ साफ़ दिख नहीं रहा था लेकिन चुदती लड्क्यों की सिसकियाँ, छोड़ते लड़कों की आहें , माहौल को एक दम मस्ट चुदाई के लिए अनुकूल बनाए हुए थे. 


हम लोग चल तो रहे थे बाहर के लिए लेकिन ये सब देखकर मेरा फिर खड़ा हो गया. मेरे से रहा नहीं गया और मैंने अन्नु की गांड दबोच दी उसके लेग्गिंग के ऊपर से ही. वो थोडा सा चौक गयी लेकिन तब तक मैं उसको दीवार से सटा चुका था. मैं लम्बी लम्बी सांसें ले रहा था. मैंने अन्नु को किस करना चाहा पर उसने मुंह फेर लिया. 

"तू चाहती क्या है अन्नु ? हैं ?? मेरा मुट्ठ गिरवा सकती है, लंड दबा सकती है, ऊँगली कर सकती है लेकिन मुझसे सेक्स नहीं कर सकती ? क्यों ??" 

अन्नु चुप थी. जो लड़की लड़के की गोदी में उचल रही थी उसकी स्पीड बद्त जा रही थी. दोनों झड़ने वाले थे. मेरी भी चुदास बदती जा रही थी. 
मैंने गांड छोड़कर उसकी चूत दबानी चाही तभी अन्नु ने मेरा हाथ पकड़ लिया "मैं तुझसे चुदवा तो लूँ, लेकिन जैसी चुदाई मैं चाहती हूँ वैसे तू कर नहीं पाएगा." 

मैं और चिद गया " कैसी चुदाई चाहती है तू माँ की लोड़ी. चूत में कैक्टस डालके चुदवाएगी क्या? लंड ही तो लेगी न, मेरा लंड देख तो लिया तूने पकड़ के, मज़ा नहीं आया तेरे को?? सांड का लंड मंगाऊ तेरे लिए?" 

अन्नु हंसी. वही पागलों वाली हंसी. " चल ठीक है. तू मुझे अभी छोड़ , मैं चाहती हूँ हमारी पहली चुदाई यादगार हो. कल रेशमा चलेंगे वहां देखते हैं तू क्या कर पाटा है ". 

(रेशमा हमारे कॉलेज से थोड़ी दूर बना हुआ एक सस्ता होटल था. वहां पर रात के लिए कमरे बुक होते थे. जब किसी कपल को इत्मीनान से चुदाई करना होता तो वो रेशमा जाते थे. 1 कमरा ऐ.सी और टी.वी के साथ 2000 रूपए में मिलता था पूरी रात के लिए. मस्त ब्लू फिल्म चला के चुदाई होती थी वहाँ. जिनके पास लड़की न हो उसनके लिए लड़की का भी प्रबंध किया जाता था. हमारे कॉलेज के कई लड़के रेगुलर कस्टमर थे रेशमा के) 

लेकिन रेशम वाली बात कल की थी, मुझे चुदाई आज करनी थी, अभी. मैंने फर भी अन्नु को नहीं छोड़ा. मैं उसको देखे ही जा रहा था. अन्नु भी मुझे देख रही थी बिना पला झपकाए. फिर वो बोली " देख तू मुझे अभी भी चोद सकता है, मैं कुछ नहीं बोलूंगी. लेकिन इतना मैं गारन्टी देती हूँ जो मज़ा कल आएगा, जो मज़ा मैं कल तुझे दे सकती हूँ, जो चीज़ें कल मैं तुझसे करवाउंगी, अगर तेरी गांड में दम हुआ तो, वो सब तू मिस कर देगा. अगर तूने अभी मुझे चोदा तो कल से मुझे भूल जाना. इसलिए अगर तू मुझे चोदना चाहता है अभी तो जितना मज़ा ले सकता है ले ले क्युकी फिर कभी नहीं मिलेगी मेरी चूत. या फर आज लंड पकड़ के शांत हो जा और कल का वेट कर." 

मेरी सांसें अभी भी तेज़ चल रही थी. लंड चड्डी और पेंट को फाड़ के निकलना छह रहा था. फिर भी मैंने अन्नु को छोड़ दिया. अन्नु मुस्कुरायी " सही डिसिशन लिया है तूने. अब चल कॉलेज चलते हैं". 

बहनचोद लंड पकी वजह से पेंट में तम्बू बना हुआ था उसी हालत में मई चलने लगा. नीसह आते टाइम बुढाऊ रंडी को चोदते मिला. रंडी बेंच पे टांगें फैला का पोसे दी हुई थी, बुध्ह पीछे से उसकी चूत मार रहा था. अन्नु और मैं उसे देखकर हँसे और आगे बढ़ गए. मैं बेसब्री कल की रात का इंतज़ार करने लगा.
8 years ago#7
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शमा होटल. हमारे कॉलेज के लगभग सभी लड़कों को इसका पता था. जिसको भी कभी इत्मीनान से लड़की चोदनी होती तो वो रेशमा होटल जाता था. ये होटल हाईवे से थोडा सा हट के था. होटल को बनाने वाले ने इसे शायद इसी काम के लिए ही बनवाया था. क्युकी ये होटल बहुत ही सूटेबल लोकेशन पर था. 3 मंजिला बिल्डिंग, हाईवे से लग्भग 100 किलोमीटर हटके था. कमरे का भाड़ा 500 रूपए से शुरू होकर 5000 तक जाता था. इस होटल में सभी तबके के लोग आते थे. ट्रक वाले ग्राउंड फ्लोर के कमरे इस्तेमाल करते थे. छोटे से कमरे में सिफर एक खटिया होती थी. उसी में लड़की को चोद दिया जाता था. ट्रक वालों के लिए रंडियों का भी इंतज़ाम था. होटल को रंडियों की कमाई का एक हिस्सा जाता था. फर्स्ट फ्लोर में थोडा स्टैण्डर्ड हाई था. यहाँ कमरे में बड़ी बिस्तर, ऐ.सी का इंतज़ाम था. यहाँ ज़्यादातर कॉलेज के लड़के या फिर लोकल लड़के लड़की आते थे. सबसे ऊपर वाला फ्लोर बड़े लोगों के लिए था. 20,000 का भाड़ा था और कमरा, ऐ.सी, टी.वी सब मिलता था. यहाँ पर रईस घर के लौंडे लौंडियाँ आते थे. बड़े घर की आंटियां भी आती थी जिनकी चुदाई की ठरक उनके पति मिटा नहीं पाते थे. ज्यादातर तो वो अपने बेटे की उम्र के लड़के साथ में लेकर आते थे पर उनके लिए लड़कों का इंतज़ाम भी होटल की तरफ से किया जाता था. कभीकभार शहर का कमिश्नर भी रंडी लेकर आता था यहाँ. पुलिस को भी एक हिस्सा जाता था इसलिए ये धंधा मस्ट चल रहा था. देखा जाएय तो किसी को कोई दिक्कत होनी भी नहीं चैये थी. आदमी को क्या चाहिए ? चूत . औरत को क्या चाहिए ? लंड. कोई किसी को ज़बरदस्ती तो चोद नहीं रहा था यहाँ. इसलिए रेशमा का बिसनेस बढ़िया चला रहा था. 


अगले शाम मैं अनु को लेकर रेशमा पहुंचा. मैं अपने एक दोस्त से बाइक मांग कर अन्नु को बिठा के ले गया था. अन्नु ने स्लीवेलेस कुर्ती (लाल कलर की) और एक सफ़ेद लेग्गिंग पहनी थी. अपने बालों को उसने जूडा बनाया हुआ था. उसके बाल इतने थे कि जूडा एक फुटबॉल के बराबर लग रहा था. जब वो पार्किंग तक आ रही थी मेरे साथ तो मेरे से रहा नहीं गाय और मैंने उसकी गांड दबोच दी. सोच रहा था की वो लंड पकड़ेगी पर वो बस मुस्कुरायी. रेशम तक का रास्ता ज्यादा लम्बा नहीं था. वहां पहुँच कर हम रिसेप्शन तक गए. एक लड़की बैठी हुई. 

उसने मुस्कुराकर हाई बोला. उसने एक वाइट टॉप और ब्लू कलर की मिनी स्कर्ट पहनी हुई थी. बाल छोटे कटा रखे थे उसने. होटों पर लिपस्टिक था और बहुत ही प्रोफेशनल लग रही थी. मैं थोडा झिझक रहा था. पहली बार आया था यहाँ " एक्चुअली हमें एक कमरा चैये " 

लड़की मुस्कुरायी " ऑफ़ कोर्स सर. कौन से फ्लोर पर और कितनी देर के लिए ?" 

मैंने कहा " फ्लोर मतलब ?" 

लड़की ने फिर मेरेको फ्लोर और रेट्स के बारे में बताया. अन्नु चुप कड़ी थी लेकिन उसके हाव भाव से वो बिलकुल भी असहज नहीं लग रही थी. मैंने कहा " ठीक है. फर्स्ट फ्लोर में एक कमरा दे दीजिये. आअज रात पूरा" 

अन्नु ने अब कहा "नहीं नहीं. टॉप फ्लोर का कमरा दे दो. ये लो कार्ड से पेमेंट ले लो" बोलकर उसने कार्ड थमा दिया उसकी हाथ में. मैं थोडा चौंका कि अन्नु को कैसे पता कि यहाँ कार्ड से पेमेंट होती है. और वो क्यूँ 20, 000 रुपया खर्चा कर रही है. पर रिसेप्शनिस्ट के सामने कुछ बोला नहीं 

हम कमरे तक जाने के लिए सेधियों की तरफ बढे. तभी ऊपर से वो कल वाला बुध्ह आते दिखाई दिया. वो नीसह उतर रहा था साथ में एक दूसरी लड़की थी. बुध्हे ने आज नयी रंडी पकड़ी थी. बुध्ह अन्नु को देख कर पहचान गया और थोड़ी देर के रुक गया. अन्नु उसके बगल से ऐसे निकल गयी जैसे उसको जानती ही नहीं , मैं भी उसके पीछे पीछे चलता गया. बुध्ह नीचे उतर गया. 

कमरा शानदार था. बड़ा बिस्तर. बड़ी टी.वी. छोटा सा बरामदा. अटैच्ड बाथरूम भी था. मेरे को थोड़ी देर में पता चलने वला था, कि बाथरूम का बड़ा संगीन रोले होने वाला है आज की रात.
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