8 years ago#1
फोटोग्राफर - एक खून और
दरवाजा खुद माला जायसवाल ने खोला। उसके होंठो पर एक मित्रतापूर्ण मुस्कराहट थी।`` हैल्लो।``- वह मीठे स्वर में बोली -``प्लीज कम इन।``
सुनील के चेहरे पर हैरानी के भाव उभर आए। उसे उम्मीद थी कि कोई नौकर दरवाजा खोलेगा। नौकर उसका नाम पता पूछकर किसी सेक्रेटरी को बुला लायेगा। सेक्रेटरी उससे छत्तीस तरह के सवाल पूछेगा और फिर रूखे स्वर में फतवा सुना देगा की मैडम उससे नहीं मिल सकती। किसी अखबार के रिपोर्टर को इंटरव्यू देने जैसे फालतू काम के लिए उनके पास वक्त नहीं।
लेकिन यहाँ तो शुरूवात ही चोंका देने वाली थी। माला जायसवाल ने न केवल स्वयँ दरवाजा खोला था बल्कि वह एक गोल्डन जुबली मुस्कराहट के साथ उसका स्वागत कर रही थी और उसे अपनी राजमहल जैसी आलिशान कोठी के भीतर आने के लिए आमंत्रित कर रही थी।
माला जायसवाल गरीब कभी नहीं थी लेकिन हाल ही मैं जायसवाल इण्डस्ट्रीज के मालिक और उसके चाचा सेठ हुकुम चन्द जायसवाल की मौत के बाद उसे और छोटी बहन सरिता को लगभग तीन करोड़ रुपये की जायदाद विरासत में मिली थी। उस विरासत की वजह से आज की तारीख में माला जायसवाल भारत के इने गुने रईसों में से एक थीं। सुनील उसी विरासत की सिलसिले मे माला जायसवाल का इंटरव्यू लेने वहाँ आया था।
``बैठो`` - अपने रेलवे प्लेटफार्म जैसे विशाल ड्राइंगरूम के एक राज सिहासन जैसे सोफे की और संकेत करती हुई माला जायसवाल बोली।
``थैंक्यू।``- सुनील बोला और बैठ गया ।
माला जायसवाल एक बगल के सोफे पर बैठ गयी। उसकी तीखी निगाहे सुनील के सर से लेकर पैर तक मुआयना करने लगीं ।
``मैडम...``- सुनील पहलू बदलते हुऐ बोला।
``क्या नाम है तुम्हारा?``- माला जायसवाल ने उसकी बात काटते हुए बोली।
``सुनील कुमार चक्रवाती।`` - सुनील शिष्ट स्वर से बोला।
``किस नाम से पुकारा जाना पसंद करते हो? सुनील। सुनील साहब। चक्रवाती साहब। मिस्टर चक्रवाती। मिस्टर एस के चक्रवाती ....। या कुछ और?``
``आपको मुझे किस नाम से पुकारने में सहूलियत दिखाई देती है।``
``मेरे ख्याल से सुनील ही ठीक रहेगा``
``मैं भी इसी नाम से पुकारा जाना पसंद करता हूं। मेरे सारे कद्रदान मुझे इसी नाम से पुकारते है।``
``कद्रदान?``
``जी हा। ऊपर वाले को इनायत है। कम नहीं है।``
``लड़कियां। ``
`` लड़कियां भी।``
``हो सकता है। अच्छे खासे खूबसूरत आदमी हों।``
सुनील शरमाया।
``उम्र क्या है तुम्हारी?``
`` तीस।``
`` कुंवारे हो?``
`` जी है।``
`` शादी की ही नहीं?``
`` जी हां । तभी तो कुंवारा हूँ।``
``सोचा शायद तलाक - वलाक हुआ हो।``
`` ऐसा कुछ नहीं हुआ।``
`` शादी का इरादा तो है न? ``
`` कभी सोचा नहीं इस बारे में ।``
`` वैसे ठीक-ठाक तो हो न?``
`` जी! `` सुनील तनिक चोंका - `` क्या मतलब?``
`` मेरा मतलब कोई ऐसा नुक्स तो नहीं है तुममे जिसकी वजह से कोई `शादी से पहले या शादी के बाद हमसे मिलिए। इंग्लैंड अमेरिका तक मशहूर शाही हाकिम साहब की सेवाएं से लाभ उठाइये` जैसी हालात पैदा हो जाए।``
सुनील हक्का बक्का सा उसका मुंह देखने लगा। वह तो इंटरव्यू लेने आया था और यहाँ उसका इंटरव्यू होने लगा था।
`` कुर्बान `` - सुनील होंठो में बुदबुदाया ।
`` क्या कहा?``
`` जी कुछ नहीं । मैं कह रहा था की मैं एकदम फिट हट्टा- कट्टा , रेस के घोड़े की तरह तैयार जवान मर्द हूं। कहिये तो एक आध दर्जन लड़कियों से फिटनेस का सर्टिफिकेट ले आऊं? या इस इमारत की एकाध चौखट हिला कर दिखाऊ।``
`` जरुरत नहीं। और जो पूछा जाए सिर्फ उसका जवाब दो । अगर जवाब देने से ऐतराज है तो तशरीफ़ ले जाओ दरवाजा खुला है।``
`` अब जबकि मैं यहाँ पहुच ही गया हु, मैडम, मैं अपना मतलब हो जाने के बाद ही तशरीफ़ ले जाना पसंद करूँगा।``
`` ठीक है क्या काम कार्ये हो?``
अब सारे सिलसिले में सुनील को भी मजा आने लगा था । शायद माला जायसवाल अपने आप को ज्यादा होशियार समझती थी और अपना मजाक पसंद आदत से उसे असुविधा में डालना चाहती थी । हालांकि पार्टी के उखड़ जाने का खतरा था लेकिन फिर भी सुनील ने उसे थोड़ा बहुत घिसने का फैसला कर लिया ।
8 years ago#2
हालांकि पार्टी के उखड़ जाने का खतरा था लेकिन फिर भी सुनील ने उसे थोड़ा बहुत घिसने का फैसला कर लिया ।
`` तस्वीरें खींचता हूँ, मैडम।``- सुनील शिष्ट स्वर से बोला।
`` अच्छा! फोटोग्राफर हो। किस चीज की तस्वीरे खींचते हो?``
`` ग्रहण की ।``
``क्या!``- वह हैरानी से उसका मुंह देखती हुई बोली।
`` जी हां ! मैं तिपाई पर कैमरा फिट करके इंतजार मैं बैठ जाता हूं। ज्यों ही ग्रहण लगता है मैं उसकी तस्वीर खींच लेता हूं।``
`` आखिरी तस्वीर कब खींची थी?``
`` छः साल पहले । जब सूर्य ग्रहण लगा था।``
`` ओह! आई सी ।``- माला जायसवाल के होंठो पर एक व्यंगपूर्ण मुस्कराहट उभर आई -`` यानि की बेकार हो।``
सुनील ने यूँ सिर झुका लिया जैसे अपनी यूँ पोल खुल जाना उसे अच्छा न लगा हो।
``रहते कहा हो?``
`` बैंक स्ट्रीट मैं ।``
`` बैंक स्ट्रीट में कहा ?``
`` जी... जी वो ........ दरसअल, तंदुरुस्ती के लिए खुली हवा की बहुत जरुरत होती है और आप तो जानती ही है कि बड़े शहरों में ऐसा कमरा तलाश कर पाना जहाँ खुली और ताज़ा हवा आती हो बहुत मुश्किल होता है। इसलिए मैं... मैं...``
`` फूटपाथ पर रहते हो?``
`` आप जितनी खूबसूरत हैं उतनी ही समझदार भी हैं।``- सुनील बोला। मन ही मन वो सोच रहा था कि कैसी अहमक औरत है देखती नहीं की पाँच सौ रुपये का सूट पहने हुऐ हूँ। लेकिन शायद एक करोड़पति औरत को पाँच सौ रूपए का सूट पहनने वाला भिखारी और फूटपाथ का वाशिंदा ही मालूम होता हैं।
`` बातें अच्छी करते हो।``- माला जायसवाल बोली-`` मिस्टर सुनील, छः- सात साल में एक बार ग्रहण की फोटो खींचने में और फूटपाथ पर सोने से जिंदगी कैसे कटेगी। भविष्य में क्या करोगे तुम ?``
`` वही जो आज तक करता आया हूं। यानी की कुछ भी नहीं। मैं सिर्फ आज की फिक्र करता हूं मैडम। कल किसने देखा है।``
``तुम अपने आज के जीवन से संतुष्ट हो?``
`` सन्तुष्ट होने के सिवाय और चारा ही क्या है? ``
`` तुम्हारे जीवन की कोई महत्वकांक्षा नहीं है ?``
`` है क्यों नहीं । मैं भी चाहता हूँ कि मेरे पास आपकी कोठी जैसी ही आलिशान कोठी हो , एक बीस फुट लंबी कार हो। आप जैसी ख़ूबसूरत और जवान बीबी हो , बैंक में बेशूमार दौलत हो, समाज में.....``
`` बस , बस, बस । हो कुछ भी नहीं और चाहते सब कुछ हो । रहते फूटपाथ पर हो लेकिन इरादे चाँद को सीढ़ी लगाने को रखते हो।``
``मैडम जब सपना ही देखना है तो क्यों न एक अच्छा सा खुबसूरत सपना देखा जाए और यह सपना मैं सिर्फ अपने लिए नहीं, अपने जैसे तमाम फूटपाथ पर रहने वालो के लिए देखता हूं।``
``तुम कम्यूनिस्ट हो।``
`` सवाल ही नहीं पैदा होता । मेरे तो सारे खानदान में कोई कम्युनिस्ट नहीं हुआ। में तो हमेशा कांग्रेस को वोट देता हूं।``
`` उससे क्या होता है। इस बार तो कम्युनिस्टों ने भी कांग्रेस को वोट दी है।``
`` लेकिन में हमेशा से ही कांग्रेस को वोट देता चला आ रहा हूं।``
``कांग्रेस का प्रत्याशी तुम्हे वोट के सौ पचास रुपये दे देता होगा।``
`` में बहुत खुद्दार आदमी हूं मैडम !`` - सुनील छाती फुलाकर बोला - `` मैं खुद बिक जाना पसंद कर सकता हु लेकिन वोट बेचना नहीं। मेरी वोट इंदिरा गाँधी की अमानत है। इंदिरा गांधी मेरी अम्मा है। मैं उसका बच्चा हूं .....``
``बस बस , भाषण मत दो। कभी गिरफ्तार हुए हो ?`
हे भगवान ! ये औरत कैसे - कैसे सवाल पूछ रही है? `` बहुत बार।``- सुनील प्रत्यक्षतः बोला - ``लेकिन सजा कभी नहीं हुई।``
`` क्या अपराध किये थे? ``
`` कोई नहीं इसीलिए तो सजा नहीं हुई।``
माला जायसवाल कुछ क्षण चुप रही और फिर बोली - ``तुम अपने बारे में कुछ ओर बताना चाहते हो?``
`` आप मुझसे मेरे बारे में कुछ और पूछना चाहती है।``
माला जायसवाल एकदम चुप हो गयी। उसके चेहरे पर गहन गम्भीरता के भाव आ गए। वह यूँ सुनील का सिर से लेकर पांव तक मुआयना करने लगी जैसे वह कोई कीड़ा हो जिसका वह माइक्रोस्कोपिक से परीक्षण कर रही हो।
`` ईमानदार आदमी मालूम होते हो।``- अंत में वह निर्णायात्मक स्वर में बोली - `` तुम पर भरोसा किया जा सकता है।
सुनील उलझनपूर्ण नेत्रो से उसकी और देखने लगा । अब यह औरत को सा स्टंट मारने वाली थी।
`` कुछ रूपया कमाना चाहते हो? ``
`` नेकी और पूछ - पूछ । कितना? ``
`` पच्चीस हजार ``
सुनील के मुंह से सीटी निकल गयी।
``बदले में क्या करना होगा मुझे? ``
`` काम बहुत आसान है``- गोल्डन जुबली मुस्कराहट का बल्ब फिर उसके चेहरे पर जल उठा।
`` क्या करना होगा मुझे?``
`` तुम्हे मुझसे शादी करनी होगी।``
8 years ago#3
सुनील भौचक्का सा उसका मुंह देखने लगा। पानी सिर से ऊँचा होता जा रहा था। आखिर मजाक की भी कोई हद होती है।
``देखिये मैडम!``- सुनील विनीत स्वर से बोला- ``मैं बहुत गरीब आदमी हूँ।मजाक की भी कोई हद होती है। इतना भयंकर मजाक मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता हू। मेरा हार्ट फैल हो सकता था। उस सूरत में मेरा खून आपके सर होता। ``
``यह मजाक नहीं है।``- वह गंभीर स्वर में बोली- ``और फैसला करने में कोई जल्दबाजी की कोई जरुरत नहीं है। तुम मुझे एक दो घंटे सोचकर जवाब दे सकते हो।``
``आप नशे में तो नहीं है?``
`` बकवास मत करो।``
``मुझे ही क्यों चुना आपने?``
``क्योंकि तुम दिलचस्प आदमी हो और अभी तुमने खुद कहा था की तुम्हारी जिन्दगी की तमन्ना है कि तुम्हारी मेरे जैसी खूबसूरत और जवान बीबी हो। तुम्हारी मन की मुराद पूरी हो रही है।``
``लेकिन... लेकिन...``
``और तुम्हे मेरे साथ जिंदगी भर बंधे रहने की जरुरत भी नहीं है। तुम्हे सिर्फ दो तीन महीने मेरा पति बनकर रहना होगा..``
दो तीन महीने पति बन कर रहना होगा। सुनील होंठो में बुदबुदाया- जैसे शादी न कर रही हो अपनी कंपनी में किसी को चपरासी की टेम्पररी नौकरी पर रख रही हो।
`` दो तीन महीने के बाद मैं तुम्हे तलाक दे दूंगी और साथ में मैं तुम्हे पच्चीस हजार रुपये बोनस दूंगी।``
बोनस! ऐसी की तैसी। सुनील उठ कर खड़ा हो गया।
``मैडम``- सुनील शुष्क स्वर से बोला- `` मैं इतना सस्ता बिकने वाला आदमी नही हूँ। आपको जरूर कोई धोका हो गया है मालूम होता है। लगता है आप मुझे कोई और आदमी समझ रही है।``
``कोई और आदमी!``- वह अचकचाकर बोली -``यानि की तुम... यानि की तुम... यहाँ मेरे विज्ञापन के जवाब में नहीं आये हो?``
``विज्ञापन .. कैसा विज्ञापन? ``
``जो आज सवेरे के अख़बार में था।``
`` मैं किसी विज्ञापन के बारे में नहीं जानता, मैडम । मैं तो यहाँ अपने अख़बार के लिए आपका इंटरव्यू लेने आया था। ``
`` अख़बार ! इंटरव्यू! तुम हो क्या चीज ?``
``नाम बता ही चूका हूँ। मैं `ब्लास्ट` का विशेष प्रतिनिधि हूँ और जायसवाल इंडस्ट्री की नई मालकिन की हैसीयत से मैं आपका `ब्लास्ट` के लिए इंटरव्यू लेने आया हूँ।``
और सुनील ने अपना विजिटिंग कार्ड निकल कर उसकी और बढ़ाया!
माला जायसवाल ने कार्ड लिया, उस पर एक सरसरी निगाह डाली और कार्ड को मेज़ पर उछाल दिया।
`` तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया?``- वह नाराजगी भरे स्वर से बोली।
``आपने मूझे मौका ही कहा दिया, मैडम!``-सुनील ने असहाय भाव से हाथ फैलाता हुआ बोला-`` मुझ पर निगाह पड़ते ही आपने मशीनगन की तरह मुझ पर सवाल बरसाने शुरू कर दिए और..``
``लेकिन तुमने झूठ क्यों बोला? तुमने यह क्यों कहा कि तुम बेकार हो और फूटपाथ पर सोते हो वगैरह..``
`` हंसी मजाक के इस सिलसिले की शुरुवात आपने की थी। मैंने जरा इसे आगे बढ़ा दिया।``
`` अजीब मसखरे आदमी हो।``
`` शुक्रिया``
`` मैंने ये बात तुम्हारी तारीफ में नहीं कही थी।``
``मुझे तो तारीफ ही लगी यह।``
`` अजीब.....``
`` मसखरा आदमी हु में। आपने अभी बताया मुझे। ``
``अब क्या चाहते हो?``
``इंटरव्यू , मैडम।`` - सुनील विनीत स्वर में बोला।
``अभी मुझे वक्त नहीं। फिर आना।``
``फिर कब``
`` आधी रात को``
``जी ?``
``क्यों? आधी रात को नहीं आ सकते हो क्या?``
``आ तो सकता हूं लेकिन... आधी रात को...``
``मुझे तो तभी फुर्सत है।``
`` अगर मैं कल आ जाऊ तो?``
`` आल राईट! कल आधी रात को आ जाना।``
`` यानी की आना मुझे आधी रात को ही पड़ेगा?``
`` कोई जरुरी नहीं! मत आना।``
`` आना तो पडेगा ही मैडम। सिर के बल चल के आना पड़ेगा। आखिर तो नौकरी करनी ही है। नौकरी में नखरा कैसा। और वैसे भी मुझे सिर के बल चलकर लोंगो के पास पहुचने का बहुत अभ्यास हो गया है ।``
`` वैरी गुड।``
``कहाँ आना होगा ! मैडम।।``
`` यहीं आ जाना। मेरे क्लब से लौटने तक आधी रात हो चुकी होती है। मैं यही मिलूंगी।``
``आल राईट। मैं हाजिर हो जाऊंगा। एंड थैंक्यू वेरी मच।``
उसी क्षण कोने में एक तिपाई पर रखे टेलीफ़ोन की घंटी बज उठी।
`` एक्सक्यूज़ में।`` वह टेलीफ़ोन की और बढ़ गयी।
सुनील ड्राइंगरूम से बाहर निकल आया और इमारत के प्रवेश द्वार की और बढ़ा। उसने द्वार की और हाथ बढ़ाया ही था कि द्वार बाहर की और से खुला और एक आदमी सीधा उसकी छाती से आ टकराया।