इधर संगीता ने फिर से सवाल पूछा;
संगीता: मुझे ये बताओ आपने मुझे उठाया क्यों नहीं?
मैं: यार आप सब थके हुए थे...सोचा क्या उठाऊँ...|
संगीता: ठीक है....तो आगे से मैं बीमार पड़ी तो मैं भी आपको नहीं बताउंगी|
मैं: Sorry यार! मैं सीरियसली तुम्हें तंग नहीं करना चाहता था...मैंने इसे Lightly लिया....SORRY !
संगीता: ठीक है ...इस बार माफ़ किया!
इतने में फ़ोन की घंटी बज उठी| ये दिषु का फ़ोन था और उसने हाल-चाल पूछने को फ़ोन किया था| मेरे फोन उठाने से पहले ही संगीता ने फ़ोन मुझ से ले लिया और फ़ोन को लाउड स्पीकर पे डाल के खुद बात करने लगी;
संगीता: हेल्लो नमस्ते भैया!
दिषु: नमस्ते भाभी जी, मानु है?
संगीता: हैं पर उनकी तबियत खराब है|
दिषु: वहां जाके भी बीमार पड़ गया?
संगीता: हाँ कल बच्चों के साथ झरने के पानी में खेल रहे थे| अब बुखार चढ़ा हुआ है!
दिषु: ओह्ह...ऐसा करो उसे RUM पिला दो! टनटना जायेगा!!!!
मैं: अबे...तेरा दिमाग खराब है?
दिषु: सही कह रहा हूँ यार...!!!
मैं: साले....मैं दवाई खा के ही खुश हूँ|
दिषु: भाई मैं तो सलाह दे रहा था, आगे तेरी मर्जी| अच्छा ये बता कब आ रहा है?
मैं: 2 जनवरी को|
दिषु: तो New Year वहीँ मनाएगा?
मैं: हाँ भाई!
दिषु: चल सही है...enjoy बच्चों को मेरा प्यार देना| Bye !
मैं: Bye !
फ़ोन रखने के बाद, संगीता की आँखें चमकने लगी थीं;
मैं: उस बारे में सोचना भी मत?
वो उठी और बिना कुछ कहे माँ के कमरे में भाग गई| जब वापस आई तो साथ में माँ भी थी| पिताजी बच्चों को लेके घूमने निकल गए थे|
माँ: बहु ने बताया मुझे..... अगर उससे तू जल्दी ठीक होता है तो पी ले? कौन सा पूरी बोतल पीनी है? दो ढक्कन ही तो पीने हैं?
मैं: आप भी किस पागल की बातों में आ रहे हो? अगर RUM पीने से बिमारी खतम होती तो कंपनी वाले अमीर हो जाते| दवाई ले रहा हूँ, ठीक हो जाऊँगा|
माँ: पर तेरी वजह से बहु-बच्चे घूमने नहीं जा सकते उसका क्या?
मैं: मैं अब पहले से बेहतर महसूस कर रहा हूँ| शाम से ही हम घूमना RESUME करते हैं|
संगीता: नहीं...जबतक आप पूरी तरह ठीक नहीं होते आप यहाँ से हिलओगे भी नहीं!
मैं: Ohhh Come on यार!
संगीता: ना!!!
माँ: बिलकुल सही कह रही है बहु|
मैं: माँ मैंने पिताजी से promise किया था की मैं शराब को हाथ नहीं लगाउँगा|
माँ: बेटा दवाई की तरह पीना है....शराबियों की तरह नहीं?
मैं: Sorry माँ...मैं दवाइयों से ठीक हो जाऊँगा|
माँ: अच्छा अगर तेरे पिताजी कहेंगे तब तो पीयेगा ना?
मैं: ना
माँ: ठीक है! पर ये जानके अच्छा लगा की तो अपने वादे पे अटल है|
माँ कमरे में चली गईं और संगीता मुझे देखने लगीं;
संगीता: एक बात पूछूँ?
मैं: हम्म्म्म....
संगीता: आपका Drink करने का मन करता है?
मैं: हमने तुम्हारे हुस्न का रास चख लिया है ...
अब शराब में क्या रखा है?
हमें बहकाने के लिए तेरी एक मुस्कान ही काफी है!
जानता हूँ काफ़िया नहीं मिला...पर जो दिल में आया कह दिया!!!
संगीता: वाह!!!वाह!!!वाह!!!
मैं: ये कैसा जादू किया तेरे इश्क़ ने ....
एक काफ़िर को शायर बना दिया!!!
संगीता: वाह!!वाह!!!वाह!!! अच्छा बहुत होगी शायरी अब आप आराम करो, मैं आपके पास बैठती हूँ|
मैं: नहीं...आपको भी exposure हो जायेगा?
संगीता: नहीं मैं तो यहीं बैठूंगी!
मैं: यार मना करो? आप लोगों को एक्सपोज़र ना हो इसलिए तो मैं रात को सोफे पे सोया था| (इस बार मैंने कठोरता दिखाते हुए कहा)
वो उठीं और माँ के पास चली गईं| वैसे पिछले कुछ दिन से मेरी बहुत शिकायत की जा रही थी!!! फिर से माँ उनके साथकमरे में आ गईं,
माँ: क्यों रे? बहुत तंग कर रहा है बहु को?
मैं: मैंने क्या किया?
माँ: बहु तेरा सर दबाना चाहती है और तू उसे मना कर रहा है? अब अगर उसके सर दबाने से तुझे नींद आ जाएगी तो क्या बुराई है इसमें?
मैं: माँ वो....ये प्रेग्नेंट हैं और इन्हें एक्सपोज़र हो गया तो? ये भी बीमार पड़ जाएँगी और फिर ऐसी हालत में जब ये माँ बनने वाली हैं इनका बीमार पड़ना होने वाले बच्चे के लिए सही नहीं|
माँ: ऐसा कुछ नहीं होगा? मामूली सी सर्दी-खांसी तो लगी रहती है| वैसे भी अपनों में बीमारी ऐसे ही नहीं फ़ैल जाती|
अब माँ से तर्क कौन करे? कौन उन्हें समझाए की ये सर्दी खांसी communicable disease होते हैं| मैंने हाथ जोड़े और माफ़ी माँगी| I believe की अगर आप जीत नहीं सकते तो माफ़ी मांग लो भाई! खेर माँ फिर से चली गईं और उन्होंने दरवजा लॉक किया और मेरे पास आके कम्बल में बैठ गईं|
मैं: हम्म्म...तो आपने माँ से शिकायत की?
संगीता: करनी पड़ी....आप मेरी बात तो मानते नहीं?
मैं: यार I'm very particular about you .... !!!
संगीता: तो इसका मतलब आप मुझे खुद से दूर कर देंगे?
मैं: यार ये कोई इतनी बड़ी बिमारी नहीं की मैं महीनों तक बिस्तर पे पड़ा रहूँ|
संगीता: लगता है आप ऐसे नहीं मानोगे? मैं माँ को बुलाती हूँ....
वो उठ के जाने लगीं तो मैंने उनका हाथ पकड़ के उन्हें रोक लिया|
मैं: Sorry ...Sorry ..... Sorry ..... Sorry .......
संगीता वपस मेरे पास बैठ गईं और सर दबाने लगीं| मेरे दिमाग में अब भी एक्सपोज़र वला ख्याल घूम रहा था तो मन जानबूझ के दूसरी तरफ करवट ले के लेट गया ताकि मेरी साँसों के जरिये कहीं वो बीमार न पड़ जाएं|
पर वो मेरे दिल की हर बात जानती थी;
संगीता: हम्म्म....clever .....
वो भी मेरे से सट के लेट गईं और मेरी कमर पे हाथ रखा ...फिर धीरे-धीरे हाथ मेरी छाती तक जा पहुंचा और वो मुझसे कस के लिपट गईं|
संगीता: जानू....आपको याद है..... एक बार मैं बीमार पड़ी थी...तब आपने साड़ी रात जाग के मेरा ख्याल रखा था?
मैं: हम्म्म.....
संगीता: रात में मुझे फिर से बुखार चढ़ा था और आपने कैसे अपने शरीर से मुझे गर्मी दी थी?
मैं: हम्म्म्म ....
संगीता: वो मेरे लिए ऐसा लम्हा था जिसे मैं हमेशा याद किया करती थी| सोचती रहती थी की मैं कब बीमार पडूँ और आप मेरी देखभाल करने के लिए भाग के मेरे पास आ जाओ!
मैं: तो इस बार कहीं फिर से बीमार पड़ने का इरादा तो नहीं?
संगीता: क्या मुझे बीमार पड़ने की जर्रूरत है? अब तो हम हमेशा संग रहते हैं| आप तो पहले से ही मेरा इतना ख्याल रखते हो.... और इन दिनों तो कुछ ज्यादा ही!
मैं: भई रखना ही पड़ेगा.... आप माँ जो बनने वाले हो|
संगीता: हाँ..I'm very excited about this. इस बार आप मेरे साथ होगे ना?
मैं: मैं तो हमेशा आपके संग हूँ|
संगीता: नहीं...मेरा मतलब है जब डिलीवरी होगी तब?
मैं: देखो अगर doctors ने aloow किया तो जर्रूर हूँगा|
संगीता: नहीं...Promise Me ...आप मेरे साथ रहोगे?
मैं: अच्छा बाबा PROMISE!
संगीता: Thank You! तो अब तो मेरी तरफ घूम जाओ?
मैं: यार....
संगीता: जानू प्लीज!!!!!!
मैं: ठीक है ....
मैंने उनकी तरफ करवट ले ली| हम दोनों एक दूसरे को देखते रहे...और देखते-देखते कब शाम हुई पता ही नहीं चला| मेरी वजह से उन्होंने Lunch तक skip कर दिया| मैं घडी देखि तो पांच बज रहे थे;
मैं: Hey ...आपने खाना खाया?
संगीता: नहीं
मैं: क्यों?
संगीता: आपने भी तो नहीं खाया?
मैं: यार.... मुझे भूख नहीं है| रुको I'll order something.
संगीता: अभी कुछ नहीं मिलेगा| आप ऐसा करो चाय ही बोल दो और हम माँ के कमरे में चलते हैं| चाय पीते-पीते, गप्पें मारते-मारते पिताजी और बच्चे भी आ गए| रात को खाना खा के सोने का समय था तो पिताजी ने सख्त हिदायत दी की आज बाहर घूमने नहीं जाना है| तो हम तीनों अपने कमरे में वापस आ गए| अब नेहा को कैसे समझों की वो मुझसे दूर रहे ....... मेरी इस मजबूरी का आनंद सबसे ज्यादा कोई अगर ले रहा था तो वो थीं संगीता जी! वो तो जैसे सांस रोके देख रही थीं की मैं नेहा से क्या तर्क करूँगा?
मैं: नेहा ...
नेहा: हाँ जी पापा?
मैं: बेटा आओ बैठो मेरे पास..कार्टून बाद में देखना|
नेहा आके मेरे पास कम्बल में बैठ गई|
मैं: okay बेटा....तो ....... aaaaaaaaa
मुझे शब्द नहीं मिल रहे थे की शुरूरत कैसे करूँ? मैंने संगीता की तरफ देखा तो वो हँसने के लिए तैयार कड़ी थीं...की मैं कुछ बोलूँ और नेहा तपाक से जवाब दे और वो खिलखिला के हँस सके|
मैं: बेटा...आप जानते ही हो की मुझे जुखाम और खांसी है....और ये communcable disease है...अगर आप मेरे साथ सोओगे तो आपको भी हो जायेगा! फिर आप स्कूल कैसे जाओगे ...पढ़ाई कैसे करोगे....और फिर आयुष आपके साथ खेलता है तो उसे भी बिमारी लग जाएगी.....फिर धीरे-धीरे सब बीमार हो जायेंगे| तो क्या आप यही चाहते हो?
नेहा: नहीं...पर मम्मी? वो तो आपके साथ.....
मैं: (नेहा की बात काटते हुए) बिलकुल नहीं...मैं सोफे पे सोऊँगा और आप दोनों Bed पे|
संगीता एक दम से बोली;
संगीता: अरे ....मुझे क्यों फंसा रहे हो?
मैं आदि से जोर से हँसा...
मैं: क्यों बड़ी हँसी आ रही थी ना आपको?
नेहा कुनमुनाते हुए बोली;
नेहा: पर पापा मैं....
मैं: बेटा आपको सुला के ही मैं सोऊँगा...और फिर मैं इसी कमरे में ही तो हूँ? आपको डर नहीं लगेगा|
नेहा: पापा आप surgical mask पहन लो?
मैं: (हँसते हुए) पर बेटा वो मेरे पास नहीं है?
नेहा: Idea ...
नेहा बिस्तर से उठी और cupboard में कुछ ढूंढने लगी| मैंने हैरान होते हुए संगीता की तरफ देखा की शायद उन्हें कुछ पता हो पर वो भी अनजान थी;
संगीता: ये नहीं मानने वाली| बिना आपको साथ लिए ये सोने वाली नहीं है| आपकी गैर मौजूदगी की बात और है पर आओके सामने होते हुए, मजाल है ये बिना आपके सो जाए?
मैं मुस्कुरा दिया....तभी नेहा अपने हाथ में कुछ छुपाये हुए आ गई| फिर अचानक से बोली;
नेहा: पापा आँखें बंद करो?
मैंने आँखें बंद की, अगले पल मुझे एहसास हुआ की मेरे मुंह पे कपडा बंधा जा रहा है| जब आँख खोली तो पाया, नेहा ने मेरी नाक और मुँह पे रुमाल बांधा था| ये देख के संगीता खिल-खिला के हँस पड़ी|
नेहा: लो पापा...अब हम में से कोई बीमार नहीं पड़ेगा|
मैं उसका तर्क देख के मुस्कुरा रहा था....
संगीता: Fantastic idea बेटा! अब बोलो क्या कहना है?
मैं: I GIVE UP!!!
बच्चों से हारने में एक अलग ही आनंद होता है| खेर हम तीनों एक साथ सो गए, नेहा बीच में थी और मेरा और स्नगीता का हाथ उसकी छाती पे था| कहानी सुनते-सुनते दोनों सो गयेपर मेरा मन अब भी बेचैन था ...तो मैं चुप-चाप उठा और सोफे पे जाके लेट गया| comfortable तो नहीं था...पर ADJUST तो करना ही था| करीब रात के दो बजे किसी ने कम्बल हटाया...मुझे लगा की संगीता होगीं पर जब मैंने आँख खोल के देखा तो नेहा थी....
नेहा: पापा ...आप यहाँ क्यों सो रहे हो?
मैं: बेटा.... आप उठ गए? उम्म्म्म....
नेहा आके मेरे ऊपर ही सोने लगी;
मैं: बेटा आप बीमार हो जाओगे?
मैंने बड़े प्यार से फिर से अपनी बात दुहराई ...पर नेहा ने अनसुना कर दिया और मेरी छाती पे सर रख के सो गई| मैं जानता था की जगह कम्फ़र्टेबल नहीं है और वो आराम से सो नहीं पायेगी तो मैं बड़े संभाल से उठा और वापस पलंग पे लेट गया, मेरे लेटते ही संगीता बोली;
संगीता: आ गए ना वापस?
मैं: हम्म्म...तो ये अब दोनों माँ-बेटी की मिली-भगत थी?
संगीता: अब मेरी बात तो आप मानते नहीं? एक नेहा है जिसकी हर बात मानते हो!
मैं: अच्छा? मैं कौन सी बात नहीं मानी? हमेशा तो आप माँ को या पिताजी को या बच्चों को आगे कर देते हो!
संगीता: awwwww ....जानती हूँ की आप सब को मन नहीं करोगे इसलिए!
मैं: अगर एक बार आप भी प्यार से कोशिश करो तो आपकी भी हर बात मानूँगा!
संगीता: अच्छा? चलो test करते हैं! Kiss Me!
मैं: ऐसे नहीं...प्यार से कहो!
संगीता: जानू प्लीज Kiss me !
वो मेरे नजदीक आइन और मैंने उन्हें Kiss किया!
संगीता: हम्म्म.... ठीक है ...तो आज से मैं इसी तरह आपसे हर काम लिया करुँगी!
इस तरह प्यार से KISS करते हुए वो रात गुजरी| अगला दिन 31 दिसंबर था, और पार्टी करने का फुल मूड था| तबियत अब पहले से बेहतर थी....owing to some extra love and care from her. चूँकि हम बाहर थे और खाना-पीना बाहर ही था तो 31st Night कुछ ख़ास नहीं लग रही थी, पर जब तक मानु मौजूद है भला ये दिन ऐसे कैसे गुजर जाता? सुबह के नाश्ते के बाद मैं होटल से निकला और मार्किट में कुछ पता किया| सारा काम सेट कर के मैं एक पैकेट में कुछ सामान लेके वापस लौटा| अब दोपहर के खाने के समय पिताजी ने बात शुरू की;
पिताजी: तो तुम दोनों का क्या प्रोग्राम है आज?
मैं: हम दोनों का नहीं हम सब का है...प्लानिंग तो कर चूका हूँ ... अब बस प्लान को अंजाम देना बाकी है| और आज रात कोई नहीं सोने वाला!
माँ: क्यों आज रात हमसे भजन करने का इरादा है?
मैं: नहीं माँ.... आज रात तो पार्टी है|
माँ: बेटा तुम दोनों जाओ नाचो पार्टी-शार्टी करो...हमें कहाँ खींचते हो इन सब में| हम तो खाना खा के सो जायेंगे|
संगीता: नहीं माँ ...बिना आप लोगों के हम नया साल कैसे मनाएंगे?
मैं: वैसे भी यहाँ नजदीक में Pubs नहीं हैं|
खेर खाने के बाद मैं संगीता और बच्चे walk के लिए निकले|
संगीता: बताओ न क्या surprise प्लान किया है?
मैं: अगर बता दिया तो surprise कैसा?
संगीता: Please !!!
मैं: ना
संगीता: इसीलिए मैं बच्चों को आगे करती हूँ|
मैं: इस बार तो मैं बच्चों को भी नहीं बताने वाला| बस इतना कह सकता हूँ की ये कोई बहुत बड़ी सेलिब्रेशन नहीं है| यहाँ के बारे में मैं इतना नहीं जानता तो छोटा-मोटा जो भी प्लान कर सका...कर लिया|
संगीता: आप जो भी लें करते हो वो मजेदार होता है| खेर अब हम निकले हैं तो क्यों ना माँ-पिताजी के लिए कुछ GIFTS ले लिए जाएँ?
मैं: Good Idea ...पर अभी जाके मत दे देना...रात 12 बज के बाद देंगे|
संगीता: Great.
हमने मिलके सब के लिए कुछ न कुछ खरीदारी की...सिर्फ अपने लिए कुछ नहीं लिया| जब हम होटल पहुंचे तो देखा की माँ-पिताजी वाला कमरा लॉक्ड है! हमने जल्दी-जल्दी सामान अंदर रखा और इससे पहले की मैं पिताजी को फोन मिलाता मुझे ही एक कॉल आ गई| उस कॉल ने मेरा मूड खराब कर दिया! मेरी New Year की सारी planning धरी की धरी रह गई| दरअसल मैंने Camping जाने का प्लान किया था पर वो already booked थे| हालाँकि मैंने एक जुगाड़ ढूंढा था पर उस ने फ़ोन कर के अपने हाथ खड़े कर दिए| मैं सोचा था की हम रात को कैंपिंग करेंगे और वहीँ New Year celebrate करेंगे...पर हर बार मेरा प्लान सफल हो ये जरुरी तो नहीं| खेर पिताजी को फोन किया तो उन्होंने हमें एक restaurant में खाना खाने को बुलाया| पर अभी तो सिर्फ सात बजे थे! खेर हम चारों निकल पड़े| रेस्टुरेंट के बाहर पिताजी मिले...फिर हम ऐसे ही टहलते हुए कुछ देर निकले..... संतोष का फोन आया तो उसने बताया की काम काफी slow चल रहा है| उससे मैंने बात की तो उसे कुछ selective काम करवाने को बोला ताकि हमारे आने तक कुछ तो काम कम हो! बेकार में Labor Hours Waste करने से तो अच्छा था की selective काम करवाएं जाएँ|| मैंने उसे बाथरूम की fitting और falseceiling के काम के अलावा बाकी के चुट-पुट काम उन्हें पकड़ा दिए| मूड की तो "लग" ही चुकी थी! आठ बजने तक हम आस-पास ही घूमते रहे| आठ बजे तो पिताजी ने पूछा;
पिताजी: तो क्या प्रोग्राम है?
मैं: प्रोग्राम क्या....सब .....फुस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स !
माँ: क्यों? क्या हुआ?
मैं: सोचा था की सारे camping पे जायेंगे ...पर सब जगह आलरेडी booked हैं! तो अब तो खाना खाओ और सो जाओ!
संगीता: कोई बात नहीं...अगली बार सही! इस बार पहले से ही book कर लेंगे!
मैं: वो तो अगली बार ना? इस बार का क्या?
पिताजी: चलो आज मैं तुम सबको सरप्राइज देता हूँ! आज मैं तुम्हें विशुद्ध South Indian खाना खिलता हूँ!
आजतक मैंने Authentic खाना तो नहीं खाया था...और मैंने क्या किसी ने नहीं खाया था| हमने कुल चार थालियाँ आर्डर की थी और हम एक Family Table पे बैठे थे| एक थाली इतनी बड़ी थी की उसे एक आदमी एक बार में ही ला सकता था| हिंदी भाषा में बोलें तो "परात" (जिसमें आंटा गूंदा जाता है) से भी बड़ी थाली! हम देख के दंग रह गए की भला ये चार थालियाँ खतम कैसे होंगी? करीब-करीब दस तरह की dishes थीं... जिनके नाम तक हमें नहीं मालूम थे| मैंने खाना serve करने वाले से पूछा तो उसने फटाफट नाम बताये; Medu Vada, Rice, Sambar, Potato fry, Kosumari, Rasam, Kootu, Pappad fried, Curd, Mango Pickle, Akkaravadisal (Sweet Dish).
नेहा: दादा जी ...ये इतनी बड़ी थाली?
आयुष: ये तो मुझसे भी बड़ी है? मैं कैसे खाऊँगा?
आयुष की बात सुन सब हँसने लगे!!!
नेहा: बुद्धू ये हम दोनों share करेंगे|
जब सब की थालियाँ आ गई तो हमने एक साथ खाना शुरू किया| सबसे दिलचस्प बात ये थी की आज नेहा आयुष को अपने हाथ से खिला रही थी! अब चूँकि मैं नेहा की बायीं तरफ बैठा था तो मैं भी उसे बीच-बीच में अपने हाथों से खिला दिया करता था| I gotta say DAD saved the day!!! सब ने खाना बहुत एन्जॉय किया पर अभी सेलिब्रेशन क्तम् नहीं हुई थी| कुछ था जो मैं लेके आया था! हम सब साढ़े नौ बजे तक होटल पहुंचे और फिर पिताजी वाले कमरे में सारे बैठ गए और टी.वी. देखने लगे| मैं जानता था की बच्चे सोना चाहेंगे पर मैं उन्हें जगाये हुए था...कभी हम कोई game खेलने लगते तो कभी "चिड़िया उडी"! नेहा को तो चिड़िया उडी गेम बहुत पसंद था| इधर घडी टिक-टॉक करते हुए बारह बजाने वाली थी| जैसे ही बारह बज के एक मिनट हुआ हम सारे (माँ-पिताजी को छोड़के) छिलाये, HAPPY NEW YEAR !!! हम चारों ने बारी बारी माँ-पिताजी का आशीर्वाद लिया और नेहा और आयुष ने पहले अपने दादा-दादी का और फिर हम दोनों का आशीर्वाद लिया| अब बारी थी PRESENTS की;
मैं: माँ...पिताजी...आप लोग आँखें बंद करो?
उन्होंने आँखें बंद कीं और मैं अपने कमरे में आया और गिफ्ट्स ले के फटाफट वापस आ गया| एक गिफ्ट मैंने संगीता को दिया जो माँ के लिए था और पिताजी वाला गिफ्ट मेरे हाथ में था|
मैं: अब आप लोग आँखें खोलिए|
सबसे पहले मैंने अपना गिफ्ट पिताजी को दिया| उन्होंने आशीर्वाद दिया पर गिफ्ट नहीं खोला| फिर संगीता ने माँ को गिफ्ट दिया और माँ ने भी उन्हें आशीर्वाद दिया पर गिफ्ट नहीं खोला! अब हम दोनों हैरान एक दूसरे की शकल देख रहे थे की आखिर उन्होंने गिफ्ट क्यों नहीं खोला, तभी अचानक पिताजी बोले;
पिताजी: अब तुम चारों आँखें बंद करो|
हमने बिना कुछ कहे आँखें मूँद लीन और फिर अगले पल उन्होंने आँखें खोलने को कहा| हम सब हैरान थे की वो हम चारों के लिए कुछ न कुछ गिफ्ट लाये थे|
मैं: पिताजी पहले आप गिफ्ट खोलो फिर हम लोग खोलते हैं|
पिताजी: ठीक है!
पिताजी ने अपना गिफ्ट खोला तो उसमें एक BUSINESS SUIT था! मैं हमेशा से उन्हें के business suit में देखना चाहता था| अब बारी थी माँ की, संगीता ने उन्हें कांजीवरम साडी गिफ्ट की थी! माँ ने उन्हें आशीर्वाद दिया और पिताजी ने मुझे गले लगा लिया| अब बारी थी हमारे गिफ्ट खोलने की! मेरे लिए गिफ्ट तो पिताजी की तरफ से था, मैं जल्दी-जल्दी गिफ्ट खोला तो वो एक Timex की chronograph वाली घडी थी! मेरी फेवरट !!!
मैं: पिताजी...ये तो मेरी फेवरट घडी है!
पिताजी: बेटा आखिर बाप हूँ तेरा! मुझे याद है, कुछ दिन पहले तू अपनी माँ से कह रहा था की तुझे ये घडी चाहिए!
मैंने उस घडी के बारे में पता किया था तो वो दस हजार की थी! अब उस वक़्त मैं काम में इतना उक्झा था की सोचा बाद में खरीदेंगे| पर मैंने ये बात सिर्फ माँ से कही थी.... खेर संगीता का गिफ्ट माँ की तरफ से था और उसमें उन्होंने संगीता को "बाजू बंद" दिए थे!
संगीता: WOW !!! माँ ...ये बहुत खूबसूरत हैं?
माँ: बेटा ये मेरी माँ के हैं!
संगीता: Thank You माँ!
माँ ने उन्हें अपने गले लाग्या और फिर से आशीर्वाद दिया| बच्चों के लिए माँ ने और पिताजी ने कपडे और ख़ास कर नेहा के लिए पिताजी ने एक कलरिंग सेट दिया था| बच्चों ने उनके पाँव छुए और आशीर्वाद लिया|
माँ: बच्चों ...अभी एक गिफ्ट बाकि है...
नेहा: क्या दादी जी?
माँ: बेटा आप दोनों के नाम एक-एक FD ताकि जब आप बड़े हो जाओ तो आप अच्छे से पढ़ सको|
ये सब देख के संगीता की आँखों में आँसूं आ गए थे,
मैं: Hey? क्या हुआ? इस ख़ुशी के मौके पे आँसूं?
माँ: बेटा क्या हुआ?
संगीता: माँ.....कभी सोचा नहीं था की मुझे इतनी खुशियाँ मिलेंगी?
पिताजी: बेटा इन ख़ुशियों पे तुम्हारा हक़ है| देर से ही सही पर तुम्हें ये खुशियाँ मिलनी थी|
अब मुझे माहोल को अपने सरप्राइज से थोड़ा बदलना था वरना सारे emotional हो जाते|
मैं: Okay Everybody ... अब एक आखरी surprise मेरी तरफ से! पर सके लिए आप सब को छत पे चलना होगा!
पिताजी: छत पे?
माँ: इतनी ठण्ड में?
मैं: प्लीज माँ!
मैं सब को साथ लेके छत पे आ गया और वो surprise जो polythene में बंद था उसे भी आठ लेके छत पे आ गया| सब छत पे जह्दे हो गए और हो रही आतिशबाजी का भी आनंद लेने लगे| उन्हें लगा की यही surprise है| पर जब मैंने Sky Lantern निकाल के जलाई और सब के हाथों में थमाई सिवाय आयुष और नेहा के क्योंकि वो बच्चे थे|
मैं: आप सब एक Wish करो और फिर इस लैंटर्न को छोड़ना! और हाँ wish किसी को बतानी नहीं है!
सब ने वैसे ही किया.... सबसे पहले पिताजी ने Sky lantern छोड़ी....उसके बाद माँ ने....फिर मैंने......फिर संगीता ने ...अब बारी ठ बच्चों की तो मैंने एक लैंटर्न जलाई और नेहा को wish करने को कहा...मैंने और उसने मिलके लैंटर्न पकड़ी हुई थी....जब उसने wish कर ली तो मैंने उसके हाथों से lantern छुड़वाई| अगली बारी Aayush की थी...उसने भी उसी तरह wish किया और फिर हम दोनों ने मिलके lantern छोड़ी| हम छत पे खड़े अपनी lanterns को ऊँचा उड़ते हुए देखते रहे| आयुष और नेहा तो ख़ुशी से कूद रहे थे और कह रहे थे की मेरी वाली ऊँची है...मेरी वाली ऊँची है!!! कुछ देर बाद हम सब नीचे आ गए और अपने अपने कमरों में सोने चले गए| पर आयुष आज मेरे साथ सोने की जिद्द कर रहा था| तो हम चारों किसी तरह एक bed पे एडजस्ट कर के सो गए| पर बिना कहानी सुने नहीं सोये "तीनों"!तो इस तरह हमने NEW YEAR celebrate किया| अगले दिन हम देरी से उठे और नए साल में सुबह-सुबह माँ-पिताजी का आशीर्वाद फिर से लिया और सामान पैक करने लगे| फ्लाइट तो 1 तरीक की थी पर वो कैंसिल हो गई तो हम ने दो तरीक की फ्लाइट ली, ये संगीता और बच्चों की पहली हवाई यात्रा थी! सभी बहुत excited थे! यहाँ तक की माँ वो भी आज पहली बार हवाई जहाज इतनी नजदीक से देख रहीं थीं| check in करने के बाद हम लोग जहाज में घुस, seats economy class की थीं| तो हम सब अपनी-अपनी जगह बैठ गए| seats आगे-पीछे ही थीं| माँ-पिताजी आगे और हम दोनों मियाँ-बीवी और बच्चे पीछे! जैसा की होता है की Take off से पहले सीट्स बेल्ट बांधनी होती हैं तो मैं पहले ही उठ के माँ-पिताजी को बेल्ट बंधने का procedure समझने लगा| फिर आके अपनी जगह बैठ गया और जब seats belts बंधने के लिए बोला गया तो मैंने संगीता और बच्चों की सीट बेल्ट बांध दी| अब take off के समय संगीता बहुत दर गई और मुझसे लिपट गई| पर जब हम हवा में थे तब वो नार्मल हो गईं, आज बहुत खुश लग रही थीं वो|
A BITTER ARRIVAL
घर पहुँचने तक रास्ते भर बच्चे हवाई जहाज की बातें करते रहे| घर-पहुँचने पे हमें पता चला की हमारे एक जानकार के यहाँ चौथा है| इसलिए माँ-पिताजी ने सामान रखा और वहां अफ़सोस प्रकट करने चले गए| मुझे उन्होंने आराम करने को कहा क्योंकि मुझे रात में लेबर से overtime कराना था| बच्चे तो खेलने में व्यस्त हो गए और मैं इस मौके का फायदा उठाने से बाज नहीं आया| संगीता किचन में कड़ी चाय बना रही थी तो मैं उनके पीछे जा के खड़ा हो गए और उन्हें पीछे से जकड लिया|
संगीता: उम्म्म्म.... जानू.....आपका मन नहीं भरा .... उम्म्म्म...हटो ....चाय तो बनाने दो|
मैं: जान.... छोडो चाय-वाय! आज तो मौका मिला है!
संगीता: बच्चे?
मैं: वो खेल रहे हैं.....
संगीता: उम्म्म्म....नहीं....आप को आराम करना चाहिए....रात में आप को जागना है!
मैं: यार यही सोच के तो नींद नहीं आ रही| अपनी जान से दूर कैसे रहूँगा?
संगीता: ऐसा करते हैं हम दोनों फोन पे बात करते रहेंगे|
मैं: अच्छा? डॉक्टर ने आपको अच्छी नींद लेने को कहा है|
संगीता: जैसे की मुझे आपके बिना नींद आती है|
मैं: जान बस एक दिन की बात है| अच्छा ये बताओ की कैसा लगा आपको ये family vacation?
संगीता: सच कहूँ तो आपने बिना मेरे पूछे मेरे सारे अरमान पूरे कर दिए| मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की आप मुझे इतनी साड़ी खुशियाँ दोगे| अच्छा ... अब आप फ्रेश हो जाओ ...मैं तब तक ऑमलेट बनती हूँ|
मैं: सच? मैं अभी फ्रेश हो के आया|
मैं ये देख के खुश था की संगीता बहुत खुश हैं| पर शायद उन्हें अकेला छोड़ के मुझे फ्रेश होने नहीं जाना चाहिए था! अगर मुझे पता होता की मेरे जाने पे ऐसा कुछ घटित होगा तो मैं उन्हें किचन में अकेला छोड़ के कहीं नहीं जाता|
मैं बहुत खुश था क्योंकि आज मेरी पत्नी खुद अपने हाथों से मेरे लिए ऑमलेट बनाने जा रही थी| तो इस ख़ुशी में की आज हम दोनों मिल के ऑमलेट खाएंगे, मैं जल्दी से बाथरूम में घुसा और नहाने लगा|
मैं किचन में प्याज काट रही थी और फ्रिज से अंडे निकलने जा ही रही थी की मुझे दरवाजे पे दस्तक सुनाई दी| दस्तक बहुत तेज थी...मुझे लगा की माँ-पिताजी होंगे....पर जब दस्तक तेज होने लगी तो मैं घबरा गई की कहीं वो किसी मुसीबत में तो नहीं??? इसलिए मैंने जल्दी से दरवाजा खोला......... सामने जो शख्स खड़ा था उसे देख के मुझे कोई ख़ुशी नहीं हुई...न ही गम हुआ! उसके होने न होने से मुझे फरक भी नहीं पड़ता था....पर आज उसके मुँह पे वही गुस्सा...वही क्रोध था....जिससे मैं डरा करती थी! उसके चेहरे को देख मुझे अपने गुजरे समय के दुःख दर्द सब याद आ गए...वो एक-एक तकलीफ जो उस शक्स ने मुझे दी थी....शारीरिक और मानसिक दोनों! कुछ देर पहले जो मेरे चेहरे पे मुस्कान थी वो हवा हो गई.... मुझे समझ नहीं आ रहा था की आगे कहूँ क्या? उसे अंदर बुलाऊँ या दरवाजा बंद कर दूँ .... उस "जानवर" का कोई भरोसा नहीं था...... मुझे लगा जैसे वो मेरा हँसता-खेलता हुआ परिवार बर्बाद कर देगा ...... जो खुशियां मुझे इतनी मुश्किल से हासिल हुईं थीं वो आज मुझसे सब छीनने आया है! पर क्यों? अब क्या चाहिए उसे मुझसे? मैं इसी परेशानी में इन सवालों का जवाब ढूंढने लगी थी की उसने मेरा गाला पकड़ लिया और और जोर से चिल्लाया; "आयुष"!!! उसकी गर्जन सुन के मैं काँप गई ...धड़कनें तेज हो गईं...कलेजा मुँह को आ गया .... जिस डर को इनके (अर्थात मेरे पति) प्यार ने दबा दिया था उसने अपना फन्न फिर से फैला लिया और मुझे डसने लगा! आयुष भागा-भागा आया और वो भी डरा-सहमा सा लग रहा था| मैं बेबस महसूस करने लगी थी और आँखों से नीर बहने लगा था..... उस राक्षस ने आयुष का हाथ पकड़ लिया....पर मेरी गर्दन नहीं छोड़ी| मैं बोलने की कोशिश कर ने लगी....छटपटाई ....पर ऐसा लगा की उस राक्षस ने अपने पंजों से मुझे दबोच रखा है और किसी भी समय मेरी सांस रूक जाएगी! मेरे साथ उस नई जिंदगी का भी अंत हो जायेगा....पर नहीं उस राक्षस के मन में मुझे मारना नहीं था, बल्कि तड़पने की इच्छा थी! वो चिल्ला के मेरी आँखों में आँखें डाले देखने लगा और चिल्लाते हुए बोला; "मैं अपने बेटे को लेने आया हूँ...और इसे लिए बिना नहीं जाने वाला!!! जा....बुलाले जिस मर्जी को बुलाना है.... बुला अपने खसम को ...आज तो मैं उसे भी जिन्दा नहीं छोड़ूंगा?" मैं खामोश हो गई..... इस डर से की अगर मेरे पति को कुछ हो गया तो मैं क्या करुँगी? मैं बस सुबकते हुए उसके आगे हाथ जोड़ने लगी और गिड़गिड़ाने लगी; "प्लीज...प्लीज ....मेरे बच्चे को छोड़ दो! प्लीज....!!!" पर अगर उसके मन में दया का कोई भाव होता तब ना....उसे तो मेरी बेबसी देख के मजा आ रहा था| आयुष रोने लगा था और अब तो नेहा भी बाहर निकल आई थी और उस राक्षस से अपने भाई का हाथ छुड़ाने लगी| वो उसे भी गालियाँ देने लगा...मैं हताश महसूस करने लगी ....बेबसी की ऐसी मार मुझ पे पड़ी की .....की मेरे पास शब्द नहीं हैं की मैं आपको बता सकूँ! पहली बार........पहली बार मुझे अपने औरत होने पे शर्म आई.......की मैं उस राक्षस से अपने बच्चों को नहीं बचा सकती! मैं सिवाय गिड़-गिडाने के और कुछ नहीं कर सकती थी....इस उम्मीद में की शायद उसे मुझ पे तरस आ जाये| पर नहीं....आज तो मेरी किस्मत मुझ पे कुछ ज्यादा ही खफा थी! ये राक्षस कोई और नहीं चन्दर ही था!
मैं बाथरूम में कपडे पहन रहा था जब मुझे किसी आदमी के चीखने की आवाज आई, मैं हैरान हो गया और परेशान भी क्योंकि ये आवाज बस एक ही इंसान की थी जिसे मैं नहीं देखना चाहता था| मैं फटफट बाहर आया और किचन की तरफ बढ़ा| वहाँ जो देखा उसे देखते ही बदन में एक बिजली सी कौंधी और मैं तेजी से चन्दर के ऊपर लपका| मैंने दाहिने हाथ से उसकी गर्दन दबोच ली और उसे दबाने लगा, आँखों में खून उतर आया था और खून उबलने लगा था| जब मेरे हाथ का दबाव उसकी गर्दन पे बढ़ा तो आनन-फानन में उसने संगीता की गर्दन तो छोड़ दी पर आयुष का हाथ नहीं छोड़ा|मैंने अपने दूसरे हाथ से आयुष का हाथ चुदवाया और संगीता को देखा तो वो सांस लेने की कोशिश कर रही थी...उन्हें ऐसे तड़पता देख मेरा गुस्सा बेकाबू हो उठा और मैंने दोनों हाथों से उसकी गर्दन दबानी शुरू कर दी, मैंने नेहा की तरफ देखा और बोला;
मैं: नेहा....आयुष और अपनी मम्मी को लेके अंदर जाओ!
नेहा भी रो रही थी पर उसने बहुत हिम्मत दिखाई और खुद को संभाला और आयुष को और अपनी मम्मी को सहारा दे के कमरे में ले गई| मैं नहीं चाहता था की बच्चे हिंसा देखें..... मैंने चन्दर का गाला छोड़ा, वो तड़पने लग और सांस लेने की कोशिश करने लगा, मैं गरजते हुए बोला और उसका कालर पकड़ के उसे दिवार से दे मारा;
मैं: तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी बीवी-बच्चों को छूने की?
बस इतन कहते ही मैंने उसे घुसे मारना शुरू कर दिया....बिना सोचे-समझे बस उसे मारता रहा..... मैंने स्कूल में Taekwondo सीखा था पर कभी नहीं सोचा था की उसकी जर्रूरत आज पड़ेगी| चन्दर की चींखें निकलने लगी और ये शोर सुन के आस पड़ोस के लोग भी इकठ्ठा हो गए| उन्होंने आके मुझे पकड़ लिया ताकि मैं उस दरिंदे को और न मार सकूँ! पर मेरे अंदर तो शैतान जाग चूका था....मैं उन सब से खुद को छुड़ाने लगा और छुड़ा भी लिया और भाग के फिर से उसे दबोचा और फिर पीटने लगा.....आज पहली बार उसे दर्द देके मुझे सकूँ मिल रहा था! उसे इतना मारा ...इतना मारा की उसका चेहरा खूनम खून हो गया... मैं बस इतना कह रहा था की; " I’m gonna beta you up…until my knuckles bleed….I swear to GOD…I’m gonna kill you…you….” भीड़ इकठ्ठा होने लगी और आस=पड़ोस के लड़कों ने मुझे थाम लिया| वो लोग चन्दर को जानते थे की ये मेरा चचेरा भाई है ...और मेरी और संगीता की शादी हो चुकी है| वो लोग मुझे समझने लगे की मैं खुद को काबू कर लूँ ...पर नहीं .... मैं फिर से एक बार उनकी पकड़ से छूटा और उसका कालर पकड़ के उसे झिंझोड़ा ताकि वो होश में आ जाये
मैं: वो मेरा खून है....तेरा नहीं.....
वो फिर से बेहोश होने लगा तो मैंने उसका कालर पकड़ के उसे झिंझोड़ा और अपनी बात पूरी की;
मैं: और याद हैं वो papers जो तूने sign किये थे? उसमें लिखा था की बच्चों की कस्टडी तू मुझे दे रहा है और अब तेरा उन पे कोई हक़ नहीं है| तो अगर तू दुबारा.... मेरे परिवार के आस-पास भी भटका ना तो मैं तुझे जिन्दा नहीं छोड़ूंगा| सुन लिया?
चन्दर: मुझे.....मुझे....माफ़ ... माफ़ कर दो!.....मुझे....मुझे माफ़ कर दो! मैं....मैं दुबारा....दुबारा कभी नहीं..... कभी नहीं ..... आगे वो बोलने से पहले ही बेसुध हो गया!
मैं: दिनेश (हमारा पडोसी) इसे हॉस्पिटल ले जा...और इसके भाई का नंबर लिख 98XXXXXXX इस्पे कॉल कर दिओ...वो आके इसे ले जायेगा|
दिनेश: जी भैया!
मैंने पलट के देखा तो संगीता खड़ी हुई ये सब देख रही थी और रो रही थी| मुझे लगा की उन्हें चाकर आ रहा है, क्योंकि उनकी आँखें ऊपर उठने लगी थीं. मैं उनके पास भाग के पहुंचा और उन्हें संभाला फिर हम दोनों अंदर आ गए.........
जब इन्होने उस दरिंदे का गला पकड़ा तो मैं डर गई...... की कहीं ये दरिंदा इन्हें कुछ नुक्सान न पहुंचा दे...तो मैं माँ-पिताजी से क्या कहूँगी? की मेरी वजह से उनके बेटे ....इस बारे में सोचने से ही मेरी जान निकल जाती है! मैं तो लघभग मर ही जाती......अगर ये...ये ना आते| अगले ही क्षण उसकी पकड़ ढीली हुई और मैं नीचे जा गिरी...और सांस लेने की कोशिश करने लगी| मैंने खड़े होने की कोशिश की पर शरीर सांस लेने के जद्दो-जहद करने लगा...फिरमेरी नजर आयुष और नेहा पे पड़ी ..... मैंने हाथ बढ़ा के उन्हें अपने पास बुलाना चाहा पर इतने में इन्होने नेहा से कहा की वो मुझे और आयुष को अंदर ले जाए| उस छोटी सी बच्ची में इतना साहस था.... की उसने अपने आँसूं पोछे और मुझे और आयुष को संभालने लगी! मैं, नेहा और आयुष अपने कमरे में आ गए पर मैं बाहर हॉल से आ रही इनकी आवाज सुन रही थी| मैं हिम्मत कर के उठी और इन्हें रोकने के लिए हॉल में आई....पर फिर अचानक इनका वो रौद्र रूप देख के ठिठक के रूक गई! आजसे पहले मैंने इनका वो रौद्र रूप कभी नहीं देखा था....... इनकी आँखें गुस्से से लाल थीं....सुर्ख लाल! वो जज्बात में बह के कुछ गलत न कर बैठें इसलिए मैं उन्हें रोकने के लिए बढ़ी...पर शायद इन्हें खुद एहसास हो गया था ...... क्योंकि उन्होंने उसकी गर्दन छोड़ दी थी और उसपे अपने गुस्से को unleash कर दिया था| मैंने कभी नहीं सोचा था की इनके अंदर बदले की ऐसी आग भड़की हुई है जो की आज इनके अपने चचेरे भाई को जला के राख कर देगी! मुझ में तो इनका सामना करने की हिम्मत ही नहीं थी...पर मुझे इनको रोकना था....मैंने हिम्मत बटोरी और उन्हें रुकने को कहा; "रुकिए.........." पर मेरी आवाज उन तक पहुँचती उससे पहले ही चन्दर की दर्दभरी चीखों ने मेरी आवाज को दबा दिया| मैंने पलट के कमरे के भीतर देखा तो पाया की आयुष डरा-सहमा हुआ है.....और नेहा उसे अपने सी लिपटाये हुए उसका ख्याल रख रही है! इस दृश्य को देख दिल को हिम्मत मिली ......की मैं जाके इन्हें रोकूँ| शोर-गुल सुन आस-पड़ोस वाले इकठ्ठा हो चुके थे........ये हिंसा ....मार-पीट..... चीखें...सब मेरे दिलों-दिमाग पे असर दिखने लगी थी| वो चेेहकेँ ...मैं बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी..... मन तो कह रहा था की मैं इन्हें रोकूँ ही ना....जो दुःख....जो तकलीफ उस शैतान ने मुझे दी है उसका दंड उसे मिलना ही चाहिए..... पर हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी ...की आगे बढूँ और उन्हें रोकूँ...... पर शरीर साथ ही नहीं दे रहा था! मन-मस्तिष्क सब यही चाहते थे की उसे सजा मिलनी ही चाहिए......पर किसी कोने पे इंसानियत बची थी...या फिर दिल ये कह रहा था की ऐसे इंसान को मार देना सही सजा नहीं होगी......... मन कह रहा था की चाहे जो भी हो....इसकी मौत का कारन इन्हें नहीं बनना चाहिए........ बोलने की तो हिम्मत तो थी नहीं बस चुप-चाप खड़ी ये हिंसा होते हुए देख रही थी? पर धीरे-धीरे होश ने साथ छोड़ दिया और मैं बेहोश हो के गिरने लगी.....की तभी इनकी नजर मुझ पे पड़ी और इन्होने भाग के मुझे पकड़ लिया और गिरने नहीं दिया| इन्होने मेरे माथे को चूमा और तब जाके मेरी जान में जान आई.....
मैं उन्हें अंदर ले के आया और पीछे-पीछे पड़ोस की कुछ aunty भी आईं, क्योंकि सब जानते थे की वो प्रेग्नेंट हैं| संगीता अब भी रो रही थीं......अंदर आते ही मैंने आयुष और नेहा को देखा| संगीता को मैंने bed के किनारे बिठाया और मैं उनके सामने खड़ा था| उन्होंने अपना सर मेरे पेट पे रख दिया और बाहें मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेट के रोने लगी, बच्चों ने जब ये सब देखा तो वो भी पलंग के ऊपर खड़े हो गए और आके मुझ से लिपट गए| पीछे से आंटी संगीता और बच्चों को दिलासा देने की कोशिश कर रहीं थीं| किसी तरह मैं खुद को संभाले हुए था वरना अगर मैं भी टूट जाता तो उन सब का क्या होता?
मैं: बाबू..... प्लीज चुप हो जाओ? देखो सब ठीक हो गया....प्लीज.....नेहा...आयुष..... बेटा आप तो मेरे बहादुर बच्चे हो ना? आप दोनों चुप हो जाओ....मैंने भगा दिया उसे.....प्लीज .....
मेरा दाहिना हाथ संगीता के सर पे था और मैं उन्हें सहला के चुप करा रहा था और बायाँ हाथ बच्चों के सर पे था| बच्चे तो सुबकते-सुबकते चुप हो गए....पर मैं महसूस कर पा रहा था की वो डरे हुए हैं| पर संगीता का रो-रो के बुरा हाल था....
मैं: नेहा...बेटा एक गिलास पानी लाओ|
नेहा पानी ले के आई और मैंने संगीता को अपने हाथ से पानी पिलाया ताकि वो चुप हो जाएं....पर पानी पीते-पीते भी उनका रोना बंद नहीं हुआ और आखिर उन्हें खाँसी आ गई.... मैंने उनकी पीठ थपथपाई ताकि खाँसी शांत हों पर उन्होंने मुझे अपनी गिरफ्त से आजाद नहीं किया था और अब भी रोये जा रही थीं;
मैं: बाबू...प्लीज Listen to me ....everything's fine now ..... He won't bother us anymore .....प्लीज चुप हो जाओ.....
संगीता ने रोते हुए...टूटी-फूटी भाषा में कहा;
संगीता: नहीं........वो......आय..........
मैं: नहीं बाबू....मैं हूँ ना आपके पास? वो अगर अाया तो मैं उसे जिन्दा नहीं छोड़ूँगा...प्लीज ....
इतने में माँ-पिताजी आ गए और उन्होंने घर के बाहर खड़े लोग देखे होंगे तो वो डरे हुए से अंदर आये और हम दोनों को इस तरह देख घबरा गए|
पिताजी: क्या हुआ बेटा?
माँ दौड़ी-दौड़ी आईं और संगीता के पास बैठीं, संगीता ने अपना सर उनके कंधे पे रखा और माँ उन्हें चुप कराने लगी|
मैं: पिताजी....
मैं उन्हें अपने साथ बाहर ले आया और अनदर कमरे में दो आंटी जो हमारे पड़ोस की थीं वो संगीता और बच्चों को सँभालने के लिए अंदर गईं| मैं: पिताजी.....चन्दर आया था.....
पिताजी की नजर मेरे पोर (knuckles) पर पड़ी, उनमें कहीं-कहीं पे जखम हो गया तो ...इसलिए मुझे आगे विवरण देने की कोई जर्रूरत नहीं पड़ी|
पिताजी: वो यहाँ करने क्या आया था? (पिताजी ने गुस्से में कहा)
मैं: आयुष के लिए........ (मैंने बात अधूरी छोड़ दी)
इतने में एक कांस्टेबल आ गया, कारन साफ़ था!!! पिताजी अंदर गए और एक फाइल उठाई और माँ को बता के हमदोनों Police Station पहुँचे....दरअसल अजय भैया ने ही पुलिस को इत्तिला दी थी! दरअसल वो और चन्दर दोनों ही दिल्ली आये थे...आयुष को लेने| थाने में हम तीनों की मुलाकात हुई..... अजय ने पिताजी को नमस्ते की पर मुझे घूर के देखा! I don't blame him for that! मं अगर उनकी जगह होता तो मैं भी शायद ऐसे ही करता....और अगर वो मेरी जगह होते तो शायद वही करते जो मैंने किया...and I don’t have any regrets.
पुलिस इंस्पेक्टर: आइये बैठिये ....ये आपके भतीजे हैं? (उसने पिताजी से सवाल किया)
पिताजी: जी ...ये मेरे बड़े भाई का लड़का है|
पुलिस इंस्पेक्टर: इसने आपके लड़के मानु के खिलाफ कंप्लेंट दर्ज की है! इसका कहना है की आप ने इनके भाई के बेटे के लड़के को जबरन अपने घर में रखा हुआ है, और आज जब इसका भाई आप से बात करने गया तो आपके लड़के मानु ने उसके साथ मार-पीट कर के हॉस्पिटल पहुंचा दिया|
पिताजी: ये papers देखिये| (पिताजी ने पुलिस इंस्पेक्टर:को divorce papers दिखाए) इसमें साफ़-साफ़ लिखा है की चन्दर इसका भाई अपनी मर्जी से दोनों बच्चों की custody मेरे बेटे मानु को सौंप रहा है| नीचे उसी के दस्तखत हैं .....
पुलिस इंस्पेक्टर: हम्म्म्म....कागज़ तो जायज हैं| पर इसका मतलब ये नहीं की तुम (मैं) किसी के साथ मार-पीट करो! आखिर पुलिस होती किस लिए है?
मैं: उस ..... (मैं गुस्से में गाली देने वाला था, पर किसी तरह खुद को रोक और बात पूरी की) कुत्ते के हाथों में मेरी पत्नी की गर्दन थी.....आप ही बताओ मैं क्या करता? पहले आपको फोन करता या अपनी बीवी को उससे कुत्ते से बचाता?
पुलिस इंस्पेक्टर: Control Yourself!
पिताजी: मानु..... (पिताजी की आवाज गंभीर थी और उन्होंने मुझे मेरी जुबान सँभालने के लिए आगाह किया)
पुलिस इंस्पेक्टर: देखो.... केस तो दर्ज हो चूका है!
पिताजी आगे कुछ नहीं बोले सीधा सतीश जी को फोन मिलाया और वापस आके पुलिस इंस्पेक्टर से बोले;
पिताजी: सुनिए इंस्पेक्टर साहब हमारे वकील साहब आ रह हैं|
पुलिस इंस्पेक्टर: कौन हैं वो?
पिताजी: सतीश जी! वो High Court में वकील हैं| अभी आ रहे हैं ......
अगले पंद्रह मिनट में सतीश जी आ गए और उन्हें देखते ही पुलिस इंस्पेक्टर पहचान गया|
पुलिस इंस्पेक्टर: अरे आप ....आइये-आइये बैठिये!
सतीश जी: यार तुम (पुलिस इंस्पेक्टर) न बहुत तंग करते हो! क्या कर दिया हमारे लड़के ने? रफा-दफा करो!
पुलिस इंस्पेक्टर: ये लो.... (उसने FIR फाड़ दी) बस खुश मालिक! चाय मंगाऊँ?
सतीश जी: नहीं यार चलते हैं...!
पुलिस इंस्पेक्टर: मालिक बस ये मामला सुलझा दो...इन्हें कहो आपस में प्यार से सुलझा लिया करें, तो हमें आपको तंग न करना पड़े|
सतीश जी: चिंता न करो यार...अब आया हूँ तो सब सुलझा दूँगा| चलो ...चलते हैं!
हम Police Station के बाहर आये और बाहर सड़क पे ही बात होने लगी;
सतीश जी: देख भाई ...हाँ क्या नाम है तेरा?
अजय: अजय
सतीश जी: हाँ-हाँ अजय...देख वो तलाक के कागज़ मैंने ही बनाये थे| तू शकल से समझदार लगता है तो तुझे बता दूँ; तेरे भाई ने उन कागजों पे sign किये हैं मतलब अब न तो उसका संगीता से कुछ रिश्ता है और ना ही बच्चों से| ऐसे में जो आज हुआ है ....वो कतई ठीक नहीं है| और ऊपर से तूने पुलिस केस कर दिया.....अब अगर मैं तेरे भाई पे ALIMONY का केस थोक दूँ तो तुम सब के सब सड़क पे आ जाओगे| और ये ही नहीं Domestic violence, Attempt to kill और भी बहुत सी दफाएं हैं जो मैं बड़ी आसानी से ठोक सकता हूँ! मेरा रसूख तो देख ही लिया तूने..... जाके अपने घर में सब को इत्मीनान से समझा दियो|
अजय: जी.....
पिताजी: अगर तुम लोग आराम से बात करते तो इसकी नौबत नहीं आती| खेर ये लो....(पिताजी ने उन्हें कुछ पैसे दिए ताकि वो चन्दर की मलहम-पट्टी कर सकें|)
सतीश जी: देखा....पाँव छू अपने चाचा के.... इतना सब होने के बाद भी ...इनके दिल में तुम सब के लिए प्यार है|
अजय ने पाँव छुए पर पिताजी ने कुछ कहा नहीं और फिर वो निकल गया| सतीश जी पुलिस स्टेशन से सीधा अपने घर निकल गए और मैं और पिताजी घर आ गए| घर आके देखा तो माँ अब भी संगीता के पास वहीँ बैठीं थीं और संगीता का सर अब भी माके कंधे पे था और माँ उनका सर सहला रहीं थीं| जब संगीता ने मुझे देखा तो वो उठीं और आके मेरे गले लग गईं| पिताजी दूकान से कुछ खाने के लिए पैक करवा रहे थे| इससे पहले की उनका रोना फिर शुरू होता मैं बोला;
मैं: बाबू....सब ठीक हो गया है| सतीश जी ने अजय को सब समझा दिया है....everything's alright!
संगीता शांत लगीं पर अब भी मायूस महसूस कर रही थीं| मैं उनके बालों में हाथ फेर रहा था ताकि वो काबू में रहे और फिर से न रोने लगें| जब पिताजी आये तो वो मुझसे अलग हुईं और सर पे पल्ला किया| हम सारे कुछ खाने के लिए बैठ गए|
दोपहर हो चुकी थी और बच्चों ने कुछ भी नहीं खाया था| हम डाइनिंग टेबल पे बैठे थे और छोले-कुलचे माँ ने परोस दिए थे| संगीता बिलकुल खामोश थी, कुछ भी बोल नहीं रही थी| प्लेट में सामने खाना पड़ा था पर ना तो मेरा मन हो रहा था की मैं कुछ खाऊँ और ना ही संगीता का मन था| पर उन्हें कुछ खिलाना जर्रुरी था वरना कमजोरी आ सकती थी!
मैं: हम्म्म....
मैंने उन्हें इशारे से खाने को कहा पर उन्होंने ना में सर हिला दिया| अब मैंने ही आगे बढ़ के उन्हें एक कौर खिलने को अपना हाथ उनके मुँह के आगे ले गया और आँखों से उनसे रिक्वेस्ट की तो उन्होंने अपना मुँह खोला और कौर खा लिया| बच्चे भी सहमे हुए थे;
मैं: नेहा....आयुष...इधर आओ बेटा|
मैंने उन्हें अपने पास बुलाया और अपनी ही प्लेट से उन्हें बारी-बारी कौर खिलाने लगा|
पिताजी ने माँ को कहा की वो आयुष को खिलाएं और इधर पिताजी ने खुद नेहा को अपनी गोद में बिठाया और उसे खिलाने लगे| जब तक खाना खत्म नहीं हुआ कोई भी कुछ बोला नहीं| खाने के बाद पिताजी बोले;
पिताजी: बेटा तूने मुझे बताया क्यों नहीं की घर में इतना सब कुछ हुआ है| तेरे हाथों में खून देख के मुझे लगा तूने उसे इसलिए पीटा होगा की वो तंग करने आया होगा या नशे में होगा पर तूने कारन क्यों नहीं बताया?
मैं: मैं....अपने होश में नहीं था....
पिताजी: समझ सकता हूँ| तू जा के आराम कर और बहु का ख्याल रख...मैं तेरी माँ को सारी बात बताता हूँ|
मैं: जी
मैं उठ के कमरे में आया तो संगीता अब भी गुम-सुम बैठी थी| मैं ऊके पास जाके बैठ गया और उसके हाथों को अपने हाथों में लिया| वो आके फिर से मुझसे लिपट गई और मूक उनके सर पे हाथ फेरता रहा| इतने में फोन की घंटी बज उठी, मैंने फोन देखा तो संतोष का था; मैं वहीँ बैठे-बैठे बात करने लगा और संगीता फिर से अपना सर दिवार से टिका के बैठ गई|
मैं: हाँ संतोष बोलो?
संतोष: भैया आप आ गए दिल्ली?
मैं: हाँ...आज सुबह|
संतोष: अच्छा...भैया वो कुछ सामान का आर्डर देना था, मालिक कह रह थे की उन्होंने आपको मेल किया है, आप देख के आर्डर दे दो|
मैं: मैं मेल तुम्हें फॉरवर्ड करता हूँ तुम आर्डर दे दो|
संतोष: तो आप शाम को आ रहे हो ना?
मैं; नहीं यार.... सॉरी तुम काम संभाल लो मैं नहीं आ पाउँगा|
संतोष: पर भैया मैं कारपेंटर और electrician को कैसे सम्भालूँ जब plumbing का काम अधूरा पड़ा है?
मैं: सॉरी यार...मैं नहीं आ पाउँगा...जैसे भी है तुम संभाल लो...जो काम रह जाता है उसके लिए मैं मालिक से बात कर लूँगा|
इतने में मैंने संगीता की तरफ देखा तो उन्होंने बिना कुछ बोले इशारे से मुझे जाने को कहा| मेरा उनको इस तरह छोड़ के जाने का बिलकुल भी मन नहीं था पर वो बार-बार बिना बोले मुझसे रिक्वेस्ट कर रहीं थीं....अब आप लोग सोचेंगे की भला कोई इंसान बिना बोले किसी की बात कैसे समझ सकता है तो मैं आप को बता दूँ की हम दोनों एक दूसरे को इस कदर प्यार करते थे की एक दूसरे के भावों को पढ़ कर ही समझ जाते थे की अगला व्यक्ति क्या कहने वाला है| इसे साबित करने के लिए आप फ्लैशबैक में जाके देख सकते हैं|
मैं: संतोष...मैं तुम्हें थोड़ी देर में फोन करता हूँ|
संतोष: भैया आपकी आवाज गंभीर लग रही है| अगर कोई प्रॉब्लम है तो आप मत आइये...मैं जैसे-taise सभाल लूँगा...सारा काम तो नहीं हो पायेगा पर कोशिश करता हूँ|
मैं: थैंक्स यार....
मैंने फोन रखा और संगीता से बात की;
मैं: मैं आपको इस हालत में छोड़के कहीं नहीं जा रहा| ना ही पिताजी मानेंगे!
वो अब भ कुछ नहीं बोलीं बस इशारे से मुझे कहने लॉगिन की आपको मेरी कसम! मैं जानता था की अंदर ही andr वो बहुत डरी हुई हैं और मुझे कैसे भी करके उन्हें बोलने को कहना होगा| पर अभी के लिए मुझे उनकी कसम का मान रखना था! मैं पिताजी से मिलने के लिए उनके कमरे में आया और उन्हें सारी बात बता दी| वो भी मना करने लगे की मुझे संगीता को इस समय छोड़के कहीं नहीं जाना चाहिए| पर जब मैंने उन्हें कसम वाली बात बताई तो वो चुप हो गए और फैसला मुझ पे छोड़ दिया| मुझे मजबूरन जाने के लिए हाँ करनी पड़ी!
मैं अंदर ही अंदर घुट्टी जा रही थी.....बस एक ही डर सता रहा था की वो फिर आएगा और मेरे बच्चे को मुझ से छीन के दूर ले जायेगा| मैं क्या करूँ....क्या करूँ....की इस दरिंदे से अपने बच्चों को बचा सकूँ.....क्या उन्हें अपने सीने से लगा के रखूँ....कहीं बाहर ना जाने दूँ..... जहाँ भी जाऊँ उन्हें अपने साथ रखूँ......... पर अगर मैंने ऐसा किया तो मेरे बच्चों का बचपन बर्बाद हो जायेगा? क्यों?....आखिर क्यों? ये मेरे साथ हो रहा है? मैंने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा बस जो भी हुआ उसे सहती रही....क्या मुझे खुश होने का हक़ नहीं? इन सवालों ने मुझे कुछ भी बोलने लायक नहीं छोड़ा था....ऐसा लगता था की अगर मैं कुछ बोल पड़ी तो जो थोड़ी हिम्मत अंदर बची है वो टूट जाएगी और मैं फिर रो पडूँगी....टूट जाऊँगी..... और फिर मेरे परिवार का क्या होगा? मुझे इस तरह बिलखता हुआ देख मेरे पति का भी सब्र टूट जायेगा...माँ-पिताजी के दिल को भी ठेस पहुँचेगी| भला उनकी इस सब में क्या गलती है? गलती तो मेरी है......ना मैंने इनसे प्यार का इजहार किया होता ....ना ये मेरे लिए कभी गाँव आते ....न हम इन दो महीनों में इतना करीब आते.....ना मैं दुबारा दिल्ली आती....न इनसे मिलती..... न इनके दिल में अपने लिए उस दबे हुए प्यार को जगाती और ना ही हमारी शादी होती| तो आज ये दिन नहीं देखना पड़ता....मेरी एक गलती की वजह से बिचारे बच्चे भी मुसीबत में पड़ गए! पर मैं अब ऐसा क्या करूँ की सब ठीक हो जाये? अकेले बैठी बस यही सोच रही थी .....पर जब अपने पति की तरफ देखती थी तो महसूस कर सकती थी की वो मुझे और बच्चों को लेके कितना चिंतित हैं? पर मुझे दुःख है की मैं उनकी चिंता की कारन बानी...सिर्फ और सिर्फ मैं! हालाँकि जबसे ये दुखद घटना घाटी उसके बाद से ये ही लग रहा था की वो अंदर ही अंडा खुद को दोषी मान रहे हैं ...पर मैं छह कर भी उन्हें कुछ नहीं कह पा रही थी...उन्हें .....कुछ कहने के डर से ही मैं अंदर घुटती जा रही थी| मैं जानती थी की वो बिना कहे मेरी हर एक बात को महसूस कर रहे हैं और कई बार उन्होंने कोशिश की कि मैं कुछ कहूँ...बोलूं....पर मेरा अंतर मन जानता था कि अगर मैं कुछ बोली तो.....
मैं शाम को तैयार हुआ और निकलने वाला था की सोचा एक बार उन से बात तो कर लूँ ...शायद वो कुछ बोल दें की Take Care ..... या Drive Safely .....या कुछ भी! मैं इसी उम्मीद में उनके पास जाके चुप-चाप खड़ा हो गया पर वो बोलीं कुछ नहीं बस आके मेरे सीने से लग गईं| मेरे मन ने उनके मन के विचारों को पढ़ा की वो मुझसे बहुत प्यार करती हैं और शायद मैं जो चाहता हूँ वो अभी नहीं मिलेगा... !!! मैंने उनके सर को चूम और कहा;
मैं: बाबू.....
मैंने एक बार फिर आस की कि शायद मेरे बाबू कहने पे वो हमेशा खुश हो जाया करती थीं, उदास होती थीं तो मुस्कुराने लग जाया करती थीं.....गुस्सा होती थीं तो मुस्कुरा दिया करती थीं.....तो शायद कुछ बोल पढ़ें? पर नहीं...वो खामोश कड़ी रहीं|
मैं: बाबू..... अपना ख्याल रखना और कोई भी बात हो तो मुझे फोन कर लेना| ओके?
उन्होंने बस हाँ में सर हिला दिया| मैं कमरे से निकल आया और बाहर डाइनिंग टेबल पे पिताजी, माँ और बच्चे बैठे थे और चाय/दूध पी रहे थे| मैंने आयुष और नेहा के सर को चूमा और पिताजी के पाँव हाथ लगाने लगा, उन्हें भी मेरे मस्तक पे पड़ी चिंता कि शिकन दिख गई और बोले;
पिताजी: बेटा तू चिंता ना कर तेरी माँ आज रात बहु के पास होगी...औरबच्चे मेरे पास सोयेंगे| क्यों बच्चों?
बच्चों ने मुस्कुरा के हाँ में गर्दन हिलाई| मैंने एक नजर फिर संगीता को देखा कि शायद वो कुछ बोल दें पर नहीं! मैं गाडी लेके साइट पे आ गया और काम संभालने लगा| फोन मैंने हाथ में ले रखा था ...और बार-बार फोन चेक करता था कि शायद कोई मैसेज आ जाए या कोई कॉल आ जाए...या what's app पे ही कोई मैसेज आ जाये पर नहीं...संगीता ने तो अपना फोन बंद कर रखा था| फोन आया भी तो अनिल का.... पिताजी ने ससुर जी को फोन कर के सब बता दिया था और वो भी काफी चिंतित थे| उनके जरिये बात अनिल तक पहुंची और भी काफी हड़बड़ाया हुआ था, और दिल्ली आना चाहता था| मैंने उसे कहा कि अगर उसे कोई प्रॉब्लम नहीं है तो वो आ जाये, शायद उसी को देख के संगीता कुछ बोल पड़े| मैंने उसे कहा कि मैं टिकट बुक कर के भेजता हूँ तो वो बोला कि नहीं मैं खुद आ जाऊँगा.... और ससुरजी भी दो दिन बाद आ रहे हैं| अपनों को देख के उनका मन हल्का होगा....यही सोच के मैंने सब को आने कि हाँ कर दी| अब मैं वापस अपने काम में लग गया....................और उम्मीद करता रहा कि शायद संगीता call करे!
उनके काम पे जाने के बाद मैं आधा महसूस करने लगी..... जबतक वो घर पे थे मैंभले ही उनसे कुछ नहीं बोली पर जानती थी कि वो बिना मेरे कहे मेरी बात समझते हैं पर उनके जाने के बाद मेरी मूक भाषा को समझने वाला कोई नहीं था| माँ अवश्य थीं और वो मुझे आज बहुत लाड कर रहीं थीं..ऐसा नहीं है कि वो मुझे कभी प्यार नहीं करती थीं पर आज वो मेरा बहुत ज्यादा ही ख़याल रख रहीं थीं| बार-बार कुछ न कुछ कोशिश कर के मुझसे बातें करतीं..... कभी सीरियल के बहाने ...कभी किसी recipe के बहाने..... उन्होंने तो बच्चों से भी कहा कि वो मेरे साथ खेलें...हंसी-मजाक करें....पर मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे सब का प्यार मेरे दिल को छूना चाहता है पर नजाने क्यों सब कुछ मेरे जिस्म को बिना छुए ही कहीं निकल जाता है....मैं उनका प्यार महसूस ही नहीं कर पा रही थी! मेरे दिमाग ने मुझे एक cocoon में बंद कर दिया था....जहाँ ना कोई ममता आ सकती थी...न ही किसी का प्यार! खुद को इस कदर अपनी नजरों से गिरा चुकी थी कि............. मुझे उनकी कमी खेलने लगी....लगने लगा कि मुझे उन्हें जाने को नहीं कहना चाहिए था? अगर वो यहाँ होते तो मैं अकेला महसूस नहीं करती......पर ये मैं क्या सोच रही हूँ? मैं स्वार्थी कैसे हो गई? उनका काम जिससे हमारी रोटी चलती है ...वो भी तो जर्रुरी है! मैं अपने प्यार कि बेड़ियां उनके काम पे कैसे डालने कि सोच सकती हूँ? ये मुझे क्या होने लगा था....??????????
माँ ने मुझे बहुत मन किया कि मैं खाना ना बनाउन और आराम करूँ पर मैंने सोचा कि शायद इसी बहाने मैं अपना ध्यान उन बातों से हटा सकूँ तो...मैं खाना बनाने जुट गई| पर एक पल के लिए भी मैं दिन कि घटनाओं को भूल ना पाई और इसी चक्कर में मैंने खाने में नमक ही नहीं डाला! जब सब खाना खाने बैठे तो ना पिताजी ने ना माँ ने खाने में नमक कि कमी कि बात कही और चुप-चाप खाना खाते रहे| बच्चों तक ने खाने में नमक नहीं होने कि बात नहीं की!!! वो भी जानते थे की मम्मी परेशान हैं....जब भी ये घर पे नहीं होते थे तो मैं हमेशा अंत में खाना खाती थी और मुझे खाना माँ ही परोस के देती थी...इतना प्यार करती थी माँ मुझे! आज जब उन्होंने खाना परोस के दिया तो वो नमक की बरनी में से नमक निकाल के डालने लगीं, हालाँकि वो बड़े ध्यान से ये कर रहीं थीं की मेरी नजर उनपे ना पड़े...पर मैंने फिर भी देख लिया| तब मुझे एहसास हुआ की मैंने आज अपने माता-पिता को और बच्चों को बिना नमक का खाना खिला दिया......मुझे खुद पे बहुत ग्लानि होने लगी की हे भगवान ये मुझसे कैसा अनर्थ हो गया? पर माँ ने ऐसा कुछ नहीं जताया...वो समझ सकती थीं की मेरी मनो-स्थिति कैसी है इसलिए आज पहलीबार उन्होंने अपने हाथों से मुझे खाना खिलाया| मैंने भी उन्हें मन नहीं किया क्योंकि मैं उस cocoon से बाहर निकलना चाहती थी| इस तरह मौन रह के मैं अपने ही परिवार को और दुःख नहीं देना चाहती थी| खाना खाने के बाद मैं और माँ अपने कमरे में आ गए और बिस्तर पे लेट गए| तभी माँ के फोन पे उनका फोन आया....वो जब भी साइट पे रुकते थे तो माँ को फोन कर के पूछते थे की सबने खाना खाया की नहीं और सब कुछ ठीक ठाक तो है ना?| मैं बिस्तर में लेट चुकी थी और रजाई ओढ़ चुकी थी....मैं सिर्फ माँ की ही बात सुनाई दे रही थी| माँ उन्हें बता रही थीं की; "बहु ने कहाँ खा लिया है...और मैंने अपने हाथों से उसे खाना खिलाया है....अभी लेटी है...तू कहे तो मैं उठाऊँ?" मैं जानती हूँ...उन्होंने ना ही कहा होगा फिर माँ ने उनसे पूछा की; "बेटा तूने खाना खाया? हम्म्म्म...ठीक है|" मैं ये नहीं समझ पाई की उन्होंने खाना खाया की नहीं...ना ही मेरी इतनी हिम्मत थी की मैं माँ से पूछ सकूँ इसलिए मैं सोने का नाटक करने लगी और फिर से सोच में डूब गई .....की मेरी वजह से मेरे पति ने खाना नहीं खाया...ये भी मरी ही गलती है! पर तभी माँ बोलीं; "बेटी....मैं जानती हूँ तू सोई नहीं है..... देख समझ सकती हूँ की उस दर्दनाक हादसे को भूलना आसान नहीं है...अपर बेटी अगर कोशिश नहीं करेगी तो कैसे चलेगा? मानु तुझे इतना प्यार करता है....बाहर से भले ही वो मजबूत दिखे पर अंदर से वो भी तेरे जितना ही दुखी है| वो अपनी पूरी कोशिश कर रहा है की चीजों को संभाल ले...और मैं के बात कहूँ.....तेरे कारण वो इतना जिम्मेदार हुआ है! तेरे प्यार ने उसे इतना लायक बना दिया...वरना पहले वो अपनी जिम्मेदारियाँ इतनी गंभीरता से नहीं लेता था? हमेशा मैं ही उसका बचाव करती थी.....पर याद है अपने जन्मदिन वाले दिन वो शराब पी के तेरे पास रुका था? और अगले दिन उसने तेरे साने कसम खाई की वो दुबारा ऐसी गलती नहीं करेगा....और होटल में जब हम दोनों ने उसे पीने को कहा वो भी इस लिए की उसकी खांसी-जुखाम ठीक हो जाए तो उसने कैसे मना कर दिया? ये सब तेरे कारन हुआ है..... मैं जानती थी की तेरे आने से पहले वो कभी-कभार शराब पी कर घर आया पर उसने कभी कोई ड्रामा नहीं किया...ना ही मैंने ये बात उसके पिताजी से कही पर मुझे गर्व है तुझ पे की तूने मेरे बेटे को सीधा कर दिया|" माँ ने कोशिश की कि मैं उनकी सीधा कर दूँ कि बात पे हंस दूँ ...पर नहीं ...मैं हँस नहीं पाई! उनकी बातों ने मेरे दिल को छू लिया और वो guilty वाली feeling कुछ हद्द तक काम हुई और पर खत्म नहीं हुई!
माँ मेरे सर पे हाथ फेरती रहीं कि शायद ,उझे नींद आ जाये पर नींद ने तो मुझसे कट्टी कर ली थी! मैं आँखें खोले अपने उसी cocoon में सड़ने लगी| उम्र का तगजा था कि माँ कि आँख लग गई ...और मैं माँ को देखने लगी मन ही मन उनसे माफ़ी मांगने लगी कि मेरे कारण आज वो भी उदास हैं| भले ही वो मेरे सामने अपने भाव आने ना देती हों पर मेरा दिल महसूस तो आर ही रहा था कि मैं अपने परिवार को अन्तः दुखों कि ओर धकेले जा रही हूँ| रात के कूप अँधेरे और सन्नाटे में मैं घडी कि टिक-टिक साग सुन रही थी....हर एक सेकंड...हर एक मिनट....हर एक घंटे को बीतते हुए महसूस कर रही थी| मैं इस कदर निराश हो चुकी थी कि मन कह रहा था कि "ऐ दिल...तो थम जा... कि अब इस धड़कन को सुनाके कोई फायदा नहीं| छोड़ दे ये मोह....शायद तेरी इस कुर्बानी से मेरे पति की चिंताएं कुछ काम हो जाएं?" पर अगले ही पल मैंने खुद को झिंझोड़ा और उठ के बैठ गई, "अपने मचलते मन को काबू करने लगी...की तू ये क्या कह रहा है? भूल गया की इस शरीर के साथ अभी एक और जिंदगी जुडी है? और मेरे पति का क्या होगा? वो मेरे बिना कैसे जिन्दा रहेंगे? मेरे बचचे....नहीं...नहीं....ये मुझे क्या हो रहा है| मैं उठी और जाके अपना मुंह धोया...ये सोच के की इसके साथ मेरे अंदर उठ रहे ये गंदे विचार भी बह जाएँ| मुंह धो के मैं वापस आके लेट गई पर आँखें अब भी खुली थीं और मन उनकी आवाज सुनने को बेताब होने लगा...सोचा की कॉल कर लूँ? फिर सोचा की कॉल करके कहूँगी क्या? अगर कुछ कहा और मैं रो पड़ी तो वो काम छोड़के अभी यहाँ पहुँच जायेंगे ...इसलिए मन मार के लेटी रही...और घडी की टिक-टिक सुनती रही| सुबह मेरी आँखों के सामने ही हुई और माँ जब उठीं तो मुझे जागता हुआ पाया; "बेटी तू सारी रात सोई नहीं?" मैं कुछ नहीं बोली और चुप-चाप उठ के बैठ गई| फिर माँ के पाँव छुए आशीर्वाद लिया और चाय बनाने चली गई| माँ ने बहुत कोशिश की मुझे रोकने की पर मैं नहीं मानी....उनकी आज्ञा की अवेहलना करने लगी| पिताजी डाइनिंग टेबल पे बैठे अखबार पढ़ रहे थे...मैंने उनके पाँव छुए और उन्होंने आशीर्वाद दिया और मुझसे हाल-चाल पूछा पर मैं अब भी कुछ बोलने की स्थिति में नहीं थी और हाथजोड़ के बिना कुछ कहे ही माफ़ी मांग ली| वो कुछ नहीं बोले......माँ को आवाज दी और उनसे मेरे हाल-चाल पूछा तो माँ ने कहा; "बहु अब तक कुछ नहीं बोली है....मुझे उसकी बहुत फ़िक्र है|" पिताजी बोले; "मैं अभी मानु को फोन करता हूँ|" पर इससे पहले की फोन उन्हें खनकता, ये खुद ही आ गए|
सारी रात संगीता के बारे में सोचता रहा और जैसे ही सुबह हुई मैं साइट से निकल पड़ा| सुबह छः बजे ही घर आ धमका| आमतौर पे मैं आठ बजे तक आया करता था पर उनसे मिलने की इतनी बेचैनी थी की मैं आज जल्दी घर अ गया| Doorbell बजे तो दरवाजा माँ ने खोला और दरवाजा खोलते ही बोलीं;
माँ: लो...ये तो आ गया?
पिताजी: बैठ बेटा.....
मैंने देखा तो संगीता किचन में चाय बना रही थी|
पिताजी: बेटा...कल से बहु ने एक शब्द भी नहीं बोला है.... तेरी माँ ने बताया की वो रात भर सोई नहीं है..... तू उससे बात कर..कैसे भी...उससे कुछ बुलवा... अगर वो इसी तरह सहमी रहेगी तो कहीं उसके दिल में डर न बैठ जाये|
मैं: पिताजी....मैं उनसे बात करूँगा| नहीं तो डॉक्टर सुनीता के पास जायेंगे|
माँ: बेटा अभी बच्चे उठेंगे तो मैं और तेरे पिताजी उन्हें लेके मंदिर जायेंगे....तब बहु से इत्मीनान से बात कर|
मैं: जी|
जब तक माँ-पिताजी और बच्चे मंदिर के लिए नहीं निकल गए मैंने संगीता से कुछ नहीं कहा और चुप-चाप टेबल पे बैठा रहा| जबकि असल में में पूरा शरीर थका हुआ, जैसे ही सब बाहर गए और दरवाजा लॉक हुआ मैंने संगीता से कहा;
मैं: Can we talk please!
मैंने बड़े प्यार से बोला और ये पहली बार था की मैं उन्हें सिर्फ बात करने के लिए "please" कह रहा हूँ| मैं कमरे में आ गया और मेरे पीछे-पीछे संगीता भी आ गई पर वो अब भी गुम-सुम थी, मैंने उन्हें पलंग पे बिठाया और मैं उनके सामने घुटनों पे आ गया और उनका हाथ पकड़ के बोला;
मैं: For the past 24 hours I’ve been dying every minute to hear your voice! I gave you 24 Hrs so you may recollect yourself…but now I can’t take it anymore. I can feel what’s going inside your head but if you don’t spill it out now, then I’m sorry but I might giveup! I can’t live without you, please say something? नहीं तो इस बार मैं टूट जाऊँगा|
पर मुझे लगा की वो खुद को कुछ भी कहने से रोक रही हैं| अब तो मैं हार मान चूका था!
मुझे लगा की वो खुद को कुछ भी कहने से रोक रही हैं| अब तो मैं हार मान चूका था! मैं उठ के खड़ा हुआ और कमरे से बाहर निकलने को पलटा तभी उन्होंने आके मुझे पीछे से जकड लिया| वो बिलख पड़ीं और रोने लगीं:
मैं जानती थी की अब वो टूट जायेंगे और अगर वो टूट गए तो मेरे इस परिवार का क्या होगा| मैंने खुद को सँभालने की कोशिश की, की मैं ना रोऊँ पर नहीं....दिल को रोने से रोक नहीं पाई और जैसे ही वो मुड़े मैंने उन्हें पीछे से जाके जकड लिया और रोने लगी| मेरे रोने से उनके दिल में जो टीस उठी उसे मैं मेहस्सो कर रही थी...पर उन्होंने खुद को संभाला और मेरी तरफ घूमे और मेरे माथे को चूमा और मुझे कस के गले लगा लिया| कल रात से मैं तड़प रही थी और आज जब उन्होंने मुझे अपने सीने से लगाया तो सारी तड़प जाती रही| उनके सीने में जल रही मेरी आवाज सुनने की आग मैं साफ़ महसूस कर रही थी और मन ही मन खुद को कोस रही थी की क्यों मैंने अपने पति को इतना तड़पाया? अपने माता-पिता की आज्ञा का बिना चाहे अवहेलना करती रही| पर अभी...अभी मुझे कुछ कहना था...ताकि मेरे पति की सहन शक्ति बानी रहे| मेरी अंतर आत्मा से आवाज आई जो मेरे मुँह से बाहर आई; "I LOVE YOU" मैंने अब भी अपना सर उनके सीने में छुपा रखा था और मैं ये नहीं देख पाई के उनके चेहरे पर कैसे भाव थे|
24 घंटे बाद जब मैंने उनकी आवाज सुनी तो मैं आपको बता नहीं सकता की मुझे कैसा महसूस हुआ| ऐसा लगा मानो "गर्मी से जल रही धरती पे पानी के कुछ कतरे गिरे हों! (Sorry Guys, मेरे पास तुलना करने के लिए कोई और संज्ञा नहीं थी|)
मैं: I LOVE YOU TOO! अब बस...रोना नहीं...मैं हूँ ना आपके पास? फिर? अब बताओ की आप इतना डरे हुए क्यों हो? क्यों आपने खुद को मुझसे काट लिया?
उनका रोना थम गया था और अब मैं बस बेसब्री से उनके जवाब का इन्तेजार करने लगा!
अब मुझे लग रहा था की मुझे उनसे सब सच कह देना चाहिए....मैं अब उनसे कुछ भी नहीं छुपाऊँगी और पिछले 24 घंटे में जो भी बातें मुझे खाय जा रही थीं मैं उन्हें सब बता दूँ| कल शाम से मैं जिस cocoon में बंद थी उसपे माँ की बातों से दररर तो पद चुकी थी और कुछ देर पहले इनके प्यार ने उस cocoon को तोड़ डाला था और अब मैं आजाद थी......मुझे इनके सामने अपनी बात रखनी ही थी|
कल...जो भी हुआ है उससे मैं बहुत डर गई हूँ! अपने लिए नहीं बल्कि आपके और बच्चों के लिए...अपने परिवार के लिए..... जब आपने उसकी गर्दन पकड़ी तो लगा की आप उसकी जान ही ले लोगे ..... और बच्चे वो भी बहुत सहम गए थे! पर खतरा अभी तक टला नहीं है!!! वो वापस आएगा....जर्रूर आएगा....आयुष के लिए! वो उसे अपने साथ ले जायेगा...हमसे दूर ...वो उसे हमसे छीन लेगा.... जर्रूर छीन लेगा ....और हम कुछ नहीं कर पाएंगे..... कुछ भी नहीं.....
मैं: Hey ...Hey…get a hold of yourself! वो ऐसा कुछ भी नहीं करेगा...कुछ नहीं होगा आयुष को...मैं उसे अपने से दूर नहीं जाने दूँगा| सुना आपने? आयुष हमारे पास ही रहेगा!
नहीं....वो उसे ले जाएगा.....सब मेरी वजह से हुआ ...मैं ही कारन हूँ इसका...मेरी वजह से वो आपको...माँ-पिताजी को ...सबको नुक्सान पहुँचायेगा! आप सब की मुसीबत का कारन मैं हूँ! ना मैं आपको जिंदगी में दुबारा आती ना ये सब होता .....प्लीज मुझे माफ़ कर दो!
मैं: बाबू...सम्भालो खुद को! क्यों इस तरह खुद को Blame कर रहे हो...आपने कुछ भी नहीं किया...अगर कोई जिम्मेदार है तो वो मैं हूँ....शादी का प्रपोजल मेरा था...और मैं मानता हूँ की मैंने ये स्वार्थ में आके कहा था| मैं जानता था की चन्दर के किये घपले के कारन पिताजी और बड़के दादा का गुस्सा उसपे अवश्य निकलेगा...परिणाम स्वरुप आपको वापस गाँव जाना होगा| और अगर आप गाँव चले जाते तो मैं अकेला रह जाता..... मैंने स्वार्थ में आके आपके सामने शादी का प्रपोजल रखा| अपने माँ-पिताजी को भी मैंने ही मनाया...आपके पिताजी से भी मैंने ही बात की .... फिर divorce papers ले के मैं ही गया था गाँव...उसके sign डरा धमका के मैंने ही लिए थे| कोई कसूरवार है तो वो मैं हूँ...आप नहीं!
पर अगर मैं दुबारा आपकी जिंदगी में ही ना आती तो ये सब होता ही नहीं ना?
मैं: जानते हो अगर आप मेरी जिंदगी में नहीं आते तो मैं बस एक चलती-फिरती लाश बन के रह जाता ..... आपको चाह के भी नहीं भुला पा रहा था...भूलता भी कैसे? मेरी आत्मा का एक टुकड़ा आपके पास जो रह गया था.....अरे आपके प्यार ने तो मुझे उस लड़की का नाम तक भुला दिया जो मुझे आकर्षित करने लगी थी!
मैंने जान बुझ के उस लड़की वाली बात कही ताकि वो मुस्कुराएं और वो थोड़ा मुस्कुराईं भी.... ऐसी मुस्कराहट जैसे की "सूरज की पहली किरण पड़ने पे जैसे कोई काली मुस्कुराती हो"!
मैं: I’m glad की आपने कुछ negative बातें नहीं सोचीं!
I’m sorry …. पर कल रात मैं इतना depressed हो गई थी की मेरे मन में खुदखुशी करने की इच्छा जन्म लेने लगी थी!
ये सुन के तो मेरी जान ही सूख गई|
मैं: What?
I'm sorry ..... पर मैंने ऐसा वैसा कुछ भी करने की नहीं सोची| मैं जानती थी की मेरे बाद आप ...........इसलिए मैंने कुछ भी नहीं किया|
मैं: आप ऐसा सोच भी कैसे सकते हो? आपको पता है कल जब उसकी गर्दन मेरे हाथ में थी तो आपकी और बच्चों की ये हालत देख के मेरे खून खौलने लगा था, मन तो किया उसकी गर्दन तोड़ दूँ ....पर फिर एहसास हुआ की ऐसा करने पे मैं आप लोगों से बहुत दूर चला जाऊँगा| र आप ......शायद मेरे ही प्यार में कमी रह गई होगी की आपको ऐसा सोचने पे मजबूर होना पड़ा|
नहीं...नहीं...ऐसा नहीं है..... मैं जानती हूँ मैं गलत थी...मुझे आप पर पूरा भरोसा है...पर मैं इतना डर चुकी थी की नहीं जानती थी की जो मैं सोच रही हूँ वो सही है या गलत|
मैं: अगर आपको कुछ हो जाता ना तो I Promise I’d have slit his throat!
नहीं...आपको मेरी कसम आप...ऐसा कुछ भी नहीं करोगे! मैं पहले ही बहुत टूट चुकी हूँ अब और नहीं टूट सकती| पिछले चौबीस घंटों में मैंने बहुत से पाप किये हैं जिनकी मुझे क्षमा मांगनी है| आपसे ...माँ से...पिताजी से....और बच्चों से भी!
मैं: I don’t know why but you still feel GUILTY! Why? आप इतना हारा हुआ क्यों महसूस कर रहे हो.....? आपने हमारे आने वाले बच्चे के बारे में जरा भी नहीं सोचा? आपकी ये मायूसी उसपे कितनी भारी पद सकती है? आपको इसका जरा भी अंदाजा है? और आप दूर क्यों जाते हो, नेहा को देखो? आपको पता है की मुझे उसपे कितना फक्र है? उस नन्ही सी जान ने अकेले आयुष को संभाला हुआ है? आप उस से सबक लो! क्या माँ-पिताजी आपसे प्यार नहीं करते? क्यों आपने खुद को इतना बाँध रखा है? क्या हमें कभी समाज की परवाह थी जो आप आज कर रहे हो? हमने सीना चौड़ा कर के प्यार किया है और शादी की है फिर आपको डर किस बात का है? रही आयुष की बात तो आप उसकी चिंता मत करो| मैं माँ-पिताजी से बात करता हूँ...सब ठीक हो जायेगा! बस मुझ पे भरोसा रखो!
एक आप ही का तो सहारा है...वरना मैं कब का बह चुकी होती|
मैं: यार फिर वही बात? अगर आप मुझे आज के बाद इस तरह हताश दिखे ना तो मैं .... मैं आपसे बात नहीं करूँगा?
हम्म्म...Sorry! This won't happen again!
मैंने उन्हें फिर से गले लगा लिया...पर मैं जानता था की वो अंदर से अब भी जख्मी हैं...भले ही वो अपने घाव मुझे न दिखाएँ पर मैं अपने प्यार से उन्हें जल्दी भर दूँगा|
उनसे दिल खोल के बात करने से मेरा मन तो हल्का हुआ था... पर अब भी डर सता रहा था| पर अभी तो मुझे सबसे पहले अपने माँ-पिताजी से माफ़ी मांगनी थी| कल मेरी वजह से उन्हें और बच्चों को बिना नमक का खाना खाना पड़ा था और तो और मैंने सारा दिन जो न बोलने का पाप किया था उसका भी तो प्रायश्चित करना था|
मैं: अच्छा अब आप आराम करो....कल रात से आप सोये नहीं हो|
संगीता: पर मुझे अभी खाना बनाना है?
इतने में फोन बज उठा| पिताजी का था;
मैं: जी पिताजी!
पिताजी: बेटा हम दोपहर तक आएंगे और खाना मैं यहीं से लेता हुआ आऊँगा| तुम लोग आराम करो!
मैं: जी बेहतर|
मैंने फोन रखा और संगीता से कहा;
मैं: पिताजी का फोन था वो दोपहर तक आएंगे और खाना लेते हुए आएंगे| तब तक हम दोनों को आराम करने को कहा है|
संगीता: कल मैंने सब को बिना नमक का खाना खिलाया था ना ...इसीलिए!
मैं: Hey .... ऐसा नहीं है| वो बस हम दोनों को थोड़ा समय एक साथ गुजरने के लिए देना चाहते हैं| वो भी जानते हैं की बच्चों के यहाँ रहते हुए तो हम-दोनों....you know what I mean ???
संगीता: हम्म्म....
मैं: तो चलो रजाई में...
मैंने उन्हें लिटाया और मैं भी कपडे चेंज का के उनके पास लेट गया| उन्होंने हमेशा की तरह मेरे हाथ को अपना तकिया बनाया और सर रख के मुझसे लिपट गईं| मैं उनके बालों में हाथ फेर रहा था ताकि वो आराम से सो जाएँ| पर मुझे महसूस हुआ की वो सो नहीं रही हैं और जाग रही हैं|
मैं: (मैंने तुतलाते हुए कहा) बाबू....छो जाओ| और आज के बाद आप कभी उदास नहीं होगे नहीं तो हमारे बच्चे पे इसका बुरा असर पड़ेगा| ठीक है?
संगीता: हम्म्म.... पूरी कोशिश करुँगी|
मैं: तो अब सो जाओ.... कल रात से आप जाग रहे हो|
Well ये कोई नै बात नहीं थी ...मैं उन्हें बस अपने बच्चे का वास्ता देता रहा था और वो बात मान जाया करती थीं| खेर पिताजी और माँ के आने तक हम दोनों सोते रहे|