मैं: पिताजी...एक बात करनी है आप दोनों से|
माँ: हाँ ..हाँ बोल?
मैं: माँ संगीता को डर है की चन्दर फिर वापस आएगा.....और आयुष को अपने साथ ले जायेगा|
माँ: ऐसा कुछ नहीं होगा बेटी!!! तू ऐसा मत सोच?
संगीता: माँ .... वो जर्रूर आएगा|
मैं: माँ...पिताजी ...इनके डर का निवारण करना जर्रुरी है| मैं इन्हें समझा चूका हूँ की वो ऐसा कुछ नहीं करेगा और सतीश जी ने अजय को भी सब डरा-समझा दिया है| पर इन्हें संतोष नहीं मिला| हमें बस सावधानी बरतनी है....... स्कूल से लाने और छोड़ने की जिम्मेदारी अब हम लोग ही उठाएंगे| स्कूल में भी मैं जा के बात कर लूँगा की हमारे आलावा school authorities हमारे अलावा किसी और को बच्चों को साथ नहीं जाने देंगे|
पिताजी: बिलकुल सही है| सावधानी बरतने में कोई बुराई नहीं|
संगीता: पर पिताजी आप ही बताइये की क्या बच्चों को बंदिशों में बाँधने से उनके बचपन पे असर नहीं पड़ेगा?
माँ: बिलकुल सही कहा बेटी| इस तरह तो वो डर में जीने लगेंगे|
बात वही की वहीँ आ गई थी| मुझे समझ नहीं आ रहा था की उनका डर खत्म कैसे करूँ? मैं झुंझला उठा;
मैं: You want me to kill him? Just say the word. I promise I'll do it!
संगीता: आप ये क्या कह रहे हो?
चूँकि मैंने अंग्रेजी में बोला था तो माँ-पिताजी के पल्ले नहीं पड़ा|
पिताजी: क्या कह रहा है ये बहु?
संगीता: ये....ये......(उन्हें कहने में भी डर लग रहा था|)
मैं: मैंने कहा की मैं उसका खून कर दूँगा?
पिताजी: क्या? तेरा दिमाग खराब हो गया है? (पिताजी ने गुस्से में कहा) जानते है आस-पड़ोस वाले क्या कहते हैं? कहते हैं की भाई साहब आपके लड़के को क्या हो गया है? जिसने आज तक किसी को गाली नहीं दी वो कल अपने ही चचेरे भाई को इतनी बुरी तरह पीट रहा था? क्या जवाब दूँ मैं उन्हें?
अब तो मेरे मन में भी गुस्सा उबलने लगा था और वो बाहर भी आ गया, मैंने टेबल पे जोर से हाथ पटका और गुस्से में बोला;
मैं: तो क्या करूँ मैं? कल ही जान ले लेता उसकी पर इनका ख्याल दिल में आ गया और उसे छोड़ दिया|
अब इनके दिल में डर बैठ गया है तो आप ही बताओ मैं क्या करूँ? जब किसी के घर में कोई जानवर घूस आता है तब इंसान अपने परिवार को पहले बचाता है ना की ये सोचता है की वो एक जीव हत्या कर रहा है|
पिताजी: बेटा मैं समझ सकता हूँ तेरा गुस्सा पर ये कोई उपाय तो नहीं? ठन्डे दिमाग से काम ले!
माँ: बेटा शांत हो जा....देख बहु कितना सहम गई है|
मैं चुप हो गया और सर पकड़ के बैठ गया| कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या करूँ? मैं उठा और बाहर निकल गया क्योंकि मैं जानता था की मैं चाहे जो भी कहूँ उन पर कोई असर नहीं होने वाला और वैसे भी वहां माँ और पिताजी थे और नके सामने मैं उन्हें कुछ नहीं कह सकता था| इसलिए मैं पनवाड़ी के पास आया और उससे एक cigarette ली पहले सोचा वहीँ पी लूँ पर फिर कुछ सोच के रूक गया| मैंने आज तक cigarette नहीं पि थी और जानता था की पहला कश लेते ही मुझे खांसी आ जाएगी और आस-पास खड़े लोग हंसने लगते की जब झिलती नहीं है तो पीता क्यों है? तो मैं वापस घर आ गया और सीधा छत पे पहुँच गया और cigarette सुलगाई और इससे पहले की मैं पहला कश खींचता संगीता आ गई और मेरे मुंह से cigarette खींच ली और दूर फेंक दी!मैं उनके आगोश में समां चुकी थी और तभी मुझे उनके दिल की धड़कनें सुनाई देने लगी| उनके मन में मेरे लिए ...मेरी शीट के लिए....हमारे होने वाले बच्चे के लिए....नेहा के लिए...आयुष के लिए ....जो डर पनपने लगा था उसे मैं महसूस करने लगी थी| मैं जानती थी की उन्हें मेरी कितनी फ़िक्र है पर मैं ये मानती थी की वो ये सब सेह लेंगे और मुझे और पूरे परिवार को होंसला देंगे पर अभी जब मैंने उनकी धड़कनें सुनी तो मुझे एहसास हुआ की अंदर से ये मेरे और बच्चों के लिए कितना बेचैन हैं? और मैं ही इनकी बेचैनी का कारण हूँ| मेरी अंतर आत्मा ने मुझे झिंझोड़ा की जो इंसान तुझ से इतना प्यार करता है, तेरी एक ख़ुशी के लिए सब से लड़ पड़ता है...तू ही उसकी कमजोरी बन रही है? भले ही वो बाहर से ना जताएं की वो अंदर से कमजोर पड़ने लगे हैं पर तुझे तो समझना चाहिए ना? आखिर तू उनके शरीर का आधा अंग है! मुझे खुद पे काबू रखना था और जल्द से जल्द सम्भलना था| मेरे मन में एक जंग छिड़ गई..... एक तरफ मन का वो हिस्सा था जो इन्हें बहुत प्यार करता था और दूसरी तरफ वो हिस्सा जो डरा हुआ था| डरा हुआ हिस्सा अब भी हावी होने लगा था और लगने लगा था की कहीं मैं हार ना जॉन...पर कहते हैं ना ऊपर वाला हमेशा हमारे साथ होता है| अचानक से इन्होने मेरे सर को चूमा ...शायद ये जानते थे की मेरे मन में जंग छिड़ी है ....और इनकी एक Kiss ने साड़ी लड़ाई का रुख पलट दिया था| जो आत्मविश्वास मैं खो चुकी थी वो वापस आने लगा था .....इनका प्यार जीत गया था और डर हार गया था| पर जाते-जाते भी डर अपने साथ पुरानी संगीता को साथ ले गया था| यहाँ तो बस वो संगीता रह गई थी जो बस इस परिवार का ख्याल रखना चाहती थी! वो इनसे प्यार तो करती थी पर जाहिर नहीं करती!
जब हम दोनों उठे तो दोपहत के ढाई बज रहे थे और दो मिनट बाद दरवाजे की घंटी बजी| मैं उठने लगा तो संगीता ने रोक दिया और खुद दरवाजा खोलने गई| मैं भी उसके पीछे-पीछे चल दिया| दरवाजा खोलके उसने सबसे पहले माँ और पिताजी के पाँव छुए और फिर उनसे माफ़ी मांगने लगी;
संगीता: माँ....पिताजी...मुझे माफ़ कर दीजिये| कल मैने आप सब के साथ बदसलूकी की| आपकी बातों का जवाब नहीं दिया....बिना नमक का खाना खिलाया|
माँ: बेटी ये तू क्या कह रही है? हम समझ सकते हैं की तू किस दौर से गुजर रही है| खाने में नमक जैसी छोटी सी बात पे तुझे लगा हम तुझसे नराज हैं| माँ-बाप कभी अपने बच्चों से इन छोटी बातों पे नाराज होते हैं? तू भी तो माँ है, क्या तू कभी नेहा और आयुष से नाराज हो सकती है?
संगीता ने ना में सर हिलाया|
पिताजी: फिर? बेटी इन छोटी बातों को दिल से ना लगाया कर| जो कुछ हुआ उसे भूल जा और तू लाड साहब वहाँ खड़ा-खड़ा क्या कर रहा है| चल खाना परोस?
मैं: जी
मैं हँसता हुआ प्लेट और डोंगे निकलने वजा रहा था की संगीता अचानक से आ गई और बोली;
संगीता: आप बैठो ...मैं निकाल देती हूँ|
normally इतना प्यार से बोलती थी की मुझे अच्छा लगता था पर आज उसकी आवाज में कुछ बदलाव था...मेरा मतलब उसकी टोन अलग थी| ऐसा लगा जैसे वो चाहती नहीं की मैं "डोंगे निकालने की तकलीफ करूँ!" I mean मैं कोई म्हणत वाला काम तो नहीं कर रहा था की वो मेरे साथ कुछ ऐसा सलूक करे| पर फिर भी मैंने बात को दर-गुजर किया और डाइनिंग टेबल पे बैठ गया| खाना संगीता ने ही सब को परोसा और फिर वो भी बैठ गई| खाना खाने के दौरान सब चुप थे, जबकि हम लोग कुछ न कुछ बात किया करते थे| फिर अचानक से पिताजी ने ही topic उठाया|
पिताजी: बीटा तुम दोनों कहीं घूमने चले जाओ? बहु का और बच्चों का मन बदल जायेगा|
मैं: जी ठीक है|
संगीता: पर पिताजी... अभी-अभी तो हम आये हैं? फिर चले जाएं? काम भी तो देखना है इनको|
माँ: बेटी तू काम की चिंता मत कर, वो तो होता रहेगा| अभी जर्रुरी ये है की तुम दोनों खुश रहो|
संगीता: पर माँ मैं बिना आप लोगों के कहीं नहीं जाऊँगी|
मैं: रहने दो माँ हम यहीं घूम आएंगे|
मैंने बात संभाल ली पर मैं समझ गया था की संगीता का इशारा किस तरफ था| उसे डर था की कहीं हमारी गैर-हाजरी में चन्दर दुबारा आ गया और उसने फिर से लड़ाई-झगड़ा किया तो? मैं चुप रहा ...खाना खाने के बाद;
मैं: नेहा...आयुष .. बेटा आप दोनों कमरे में जाओ और अपना holiday homework पूरा करो|
नेहा: जी पापा...चल आयुष तेरा Maths का homework रहता है ना|
दोनों अंदर चले गए और फिर मैंने अपनी बात यानी संगीता का डर माँ-पिताजी के सामने रखा|
ये आप क्या कर रहे हो?"
सवाल तो मैंने पूछ लिया ........पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया| बस चुप-चाप टकटकी बांधे मुझे देखने लगे| उनकी नजरें मुझे चुभ रही थीं...... कारन क्या था मैं जानती थी! मैं ही उनके हताश होने का कारन थी! मैं चाह के भी उन्हें वो प्यार नहीं दे पा रही थी .....जिस पे उनका हक़ था! आमतौर पर अगर ऐसा कुछ होता था तो मैं उनके गले लग जाया करती थी और बस इतना करने से ही उन्हें अपनी गलती का एहसास हो जाया करता था और वो बड़े प्यार से बोलते; "Sorry जान...आगे से ऐसा मैं कभी नहीं करूँगा!" पर आज हालात कुछ और थे! मेरे अंदर वो पहले वाली संगीता नहीं थी जो अपना प्यार जाहिर किया करती थी! उस समय मैं ज्यादा देर उनके सामने खड़ी नहीं रह सकी और वापस मूड के नीचे आ गई| मैं कमरे में बच्चों का homework करने में मदद कर थी की तभी ये भी नीचे आ गये| मैं जानती थी की मेरी वजह से ये इतने तड़प उठे की cigarette को छुआ| मैं जानती हूँ की आज तक इन्होने cigarette कभी नहीं पी और ना ही आगे कभी पिएंगे! मुझे लगा था की ये अपनी नाराजगी जाहिर करेंगे पर नहीं......इन्होने ऐसा कुछ भी नहीं किया! बल्कि इन्होने आके मुझसे प्यार से पूछा; "जान पिक्चर चलना है?" पर मैंने ना में सर हिलाया और डाइनिंग टेबल पे आ के बैठ गई और सब्जी काटने लगी रात के लिए|
उनकी ना सुनके मैं सोच में पड़ गया की मेरी संगीता को क्या हुआ? उस संगीता को जिसे मैं प्यार करता हूँ......जो मेरी पत्नी है..... मेरे बच्चों की माँ.....मेरे होने वाले बच्चे की माँ ..... आखिर उसे हुआ क्या है? वो कहाँ चली गई? क्या मेरा प्यार कम पड़ गया है उसके लिए? या शायद अब मेरे प्यार में वो ताकत नहीं जो उसे फिर से हँसा दे! उसका हर गम भुला दे! मेरी हर बात मैंने वाली मेरी पत्नी कहाँ चली गई? मैं क्या करूँ की वो फिर से हँस पड़े? इस घर में जो गम का सन्नाटा फैला है उसे सिर्फ और सिर्फ उसकी हँसी ही दूर कर सकती थी| उनकी किलकारियां सुनने को तरस गया था....मुझे लगा था की शायद पिक्चर जाने के बहाने वो थोड़ा रोमांटिक हो जाएं या फिर मैं थोड़ा रोमांटिक हो जाऊँ...पर यहाँ भी बदनसीबी ने दरवाजा मेरे मुँह पे दे मारा| ठीक है..."ऐ किस्मत कभी तू भी मुझ पे हँस ले.....बहुत दिन हुए मैं रोया नहीं!!!"
अब बारी थी बच्चों की, जिन्हें कल से मैं समय नहीं दे पाया था और मेरा मानना था की उन्हें अभी से सब पता होना चाहिए वरना आगे चल के वो मुझे और संगीता को गलत समझेंगे| नेहा तो सब जानती थी, समझती थी पर आयुष ज्यादा डिटेल नहीं जानता था| और मैं इतना निराश महसूस कर रहा था की मैंने सोचा की आयुष को भी ये सब पता होना चाहिए!
मैं: आयुष....नेहा...बेटा इधर आओ| पापा को आप से कुछ बात करनी है|
मैं बिस्तर में बैठ गया और रजाई ले ली| मेरी पीठ bed post से लगी थी और दोनों बच्चे मेरी अगल-बगल आके बैठ गए| नेहा मेरे दाहिने तरफ थी और आयुष मेरी बायीं तरफ|
मैं: बेटा आप दोनों को कुछ बातें बतानी है| ये बातें आपको पता होनी चाहिए| कल जो कुछ भी हुआ वो सब इन्हीं बातों के कारन हुआ| दरअसल मैं आपकी माँ से बहुत प्यार करता हूँ और वो भी मुझे बहुत प्यार करती हैं| पर आपकी मम्मी की शादी उस इंसान से हुई है जो कल आया था|
नेहा: वो...पुराने पापा?
मैं: हाँ..... पर आपकी मम्मी उसे नहीं बल्कि मुझे प्यार करती थीं| वो बहुत गन्दा इंसान है....आप (नेहा) तो जानते हो? वो शराब पीता है.... आपकी माँ को मारता-पीटता था| जब आप (नेहा) पैदा भी नहीं हुए थे तभी से आपकी मम्मी मुझे प्यार करती थीं पर उन्होंने कभी मुझे नहीं बताया| आपको याद है जब आप पहली बार इस घर में आये थे, उस दिन आपकी मम्मी ने मुझे बताया की वो मुझसे कितना प्यार करती हैं| पर तब मैं एक Teenager था...शादी नहीं कर सकता था! फिर जब मैं गाँव आया तब …… बेटा उन दिनों आपकी मम्मी और मैं बहुत नजदीक आ गए| इतना नजदीक की हम एक दूसरे के बिना रह भी नहीं सकते थे| मैं उन्हें बहुत चाहने लगा था .... तभी आयुष भी उनकी कोख में आया था| आयुष....बेटा आप मेरे ही बेटे हो ...मेरा खून!
नेहा: और मैं?
मैं: बेटा आप .....मेरा खून नहीं हो पर मैं आपसे भी उतना ही प्यार करता हूँ जितना मैं आयुष को करता हूँ और शायद उससे ज्यादा ही| क्या आपको कभी ऐसा लगा की मैं आपसे प्यार नहीं करता?
नेहा: नहीं....पापा मैं जानती हूँ की आप सबसे ज्यादा मुझसे प्यार करते हो!
मैं: बेटा (आयुष) …….उसे (चन्दर) लगता है की आप उसके बेटे हो पर आप तो मेरे बेटे हो! इसलिए वो आपको जबरदस्ती अपने साथ ले जाना चाहता था|
आयुष: मैं नहीं जाऊँगा उसके साथ!
मैं: बिलकुल नहीं जाओगे| आप मेरे बेटे हो ....और पापा हैं ना आपके पास तो कोई आपको मुझसे अलग नहीं कर सकता| और कल आपने देखा की आप की दीदी ने अपने बड़े होने का कैसे फ़र्ज़ निभाया? आप बहुत तंग करते हो ना दीदी को और कल देखो उन्होंने ना केवल आपको बल्कि आपकी मम्मी को भी संभाला! I’m proud of you beta (Neha)!!!
मैंने नेहा को गले लगा लिया|
आयुष: I LOVE YOU दीदी!
नेहा: I LOVE YOU TOO आयुष!
दोनों मेरे सीने से लग गए और मैंने उनको खूब प्यार किया और फिर हम pillow fight करने लगे| दोनों एक team में और मैं अकेला! आयुष तो मेरी छाती पे बैठ के मुझे मारने लगा और नेहा भी बगल में बैठ गई और मुझे तकिये से मारनी लगी| पूरे घर में बच्चों की हँसी गूंजने लगी| मेरा आत्मविश्वास जो टूटने लगा था वो फिर से वापस आ गया और मैं सोच लिया की मैं संगीता को फिरसे हँसा के रहूँगा, पर जर्रूरत थी एक मौके की!
हमारी हँसी सुन के माँ कमरे में आईं और मुझे पिताजी का फोन देते हुए बोलीं;
माँ: बेटा बच्चों को हँसता-खेलता देख के दिल खुश हो गया है| अब बहु को भी हँसा दे?
मैं: मैंने पिक्चर जाने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया| आप उन्हें तैयार करो बाकी मुझ पे छोड़ दो, I Promise वो हँसती हुई वापस आएँगी|
माँ: मैं अभी बात करती हूँ|
माँ चली गईं और बच्चों को मैंने homework करने में लगा दिया| और मैं खुद laptop चालु कर के project reports बनाने लगा|
कमरे से आ रही इनकी और बच्चों की हँसने की आवाज से मैं मन्त्र मुग्ध हो गई थी| आज 24 घंटों बाद मुझे घर में हँसी सुनाई दी थी| मन ही मन मैं सोच रही थी की काश मैं भी वहाँ होती.... पर उस समां मैंने ये सोच के संतोष कर लिया की मैं नहीं तो क्या...मेरे बची...मेरे वो ...तो खुश हैं! मैं डाइनिंग टेबल पे बैठी मटर छील ने के काम में फिर से जुट गई, की तभी माँ आके बैठीं और बोलीं; "बहु...देख बाहर जा थोड़ी हवाबयार लगेगी....मन बदलेगा...तेरा भी और मानु का भी|" अब मैं भला उनकी बात कैसे टाल सकती थी| हालाँकि उनका कहना था की मैं खुश रहूँ पर मैं तो सिर्फ इनकी और बच्चों की ख़ुशी चाहती थी| तो मैं उठी और अंदर कमरे में गई, ये पलंग पे बैठे लैपटॉप पे कुछ काम कर रहे थे| "क्या मैं Laptop use कर सकती हूँ?" इन्होने कुछ कहना चाहा पर मैं Laptop ले के बाहर आ गई| पता नहीं क्यों मैं इनका सामना करने से डर रही थी| मई वापस डाइनिंग टेबल पे बैठ गई और माँ के सामने BOOK MY SHOW साइट खोली और PK मूवी की टिकट्स बुक करने लगी| पर कोई भी recent show खाली नहीं था| मैंने माँ से ही पूछा; "माँ....सारे show booked हैं, सिर्फ रात के show ही खाली हैं?" माँ बोलीं; "तो बेटी रात को चले जाना! इसमें पूछने की बात क्या है? बच्चों की भी तो छुट्टियां चल रही हैं| बस उसे कहना की गाडी संभाल के चलाये!" "जी माँ" मैंने इतना कहा और चार tickets बुक कर दीं और लैपटॉप उठा के इन्हें देने कमरे में आ गई| मैंने booking page change नहीं किया और as it is इन्हें laptop दे के जाने लगी...तभी पीछे से इन्होने पूछा; "खाना बाहर ही खाएं?" मैंने मुड़ के इन्हें देखा पर हिम्मत नहीं हुई की इनसे बात करूँ| पर किसी तरह जवाब दिया; "जी"और मैं वापस आके अपने काम में लग गई और माँ को बता दिया की हम सात बजे निकलेंगे और ग्यारह बजे तक लौट आएंगे| मुझे उनके सामने जाने से डर रही थी क्यों की मुझे पता था की मैं उनके सामने अपना प्यार जो उनके प्रति था उसे व्यक्त नहीं कर सकती थी......और मुझे बहुत बुरा लगता था की वो मुझसे अपने प्यार का इजहार कर रहे हैं और मैं जानते-बुझते हुए चुप रहती हूँ ...कोई प्रतिक्रिया नहीं देती| जो मेरे हिसाब से गलत भी है| और अगर मैं इनके ज्यादा पास रहती तो ये मेरा मन अवश्य पढ़ लेते और टूट जाते!
मुझे जो मौका चाहिए था वो मुझे मिल चूका था| अब बारी थी इनका दिल जीतने की! Wait a minute दिल जीतने की? पर वो तो मुझसे प्यार करती हैं? तो दिल जीतने की बात कहाँ से आई? Anyways ...... मुझे थोड़ा बुरा लग रहा था की आखिर वो क्यों खुद को express नहीं कर रहीं? मैं उनका पति हूँ कोई गैर नहीं? तो मुझसे छुपाना कैसा? खेर हम तैयार हो के सात बजे निकले| संगीता ने माँ और पिताजी को खाना खिलाया तभी वो निकलीं....she's so concerned about them!!! पिताजी और माँ ने आशीर्वाद दिया तब हम घर से निकले| अब बारी थी खाने की तो मैं इनको लेके सीधा YO CHINA आया| ये एक चीज थी जो उन्होंने और बच्चों ने taste नहीं की थी| Chinese food ...Yummmmmmmm! हम बैठे और मैंने Menu कार्ड उठाया| अब मैंने भी आज तक authentic chinese खाना कभी नहीं खाया था| ऊपर से वहां जो लोग बैठे तो वो chop sticks से खा रहे थे| अब हम में से कोई भी chop stick पकड़ना नहीं जानता था, खाना तो दूर की बात है| मैंने जब संगीता का चेहरा देखा तो वो इस माहोल को देख के थोड़ा परेशान लगीं;
मैं: बाबू don't worry ...मैं ऐसा कुछ order नहीं करूँगा जो आपको chop stick के साथ खाना पड़े| मैं नार्मल खाना आर्डर करूँगा| Okay?
संगीता: हम्म्म....
मैं: नेहा ...आप को spicy खाना पसंद है ना? तो आप के लिए म्म्म्म्म्म...... Schezwan Fried Rice okay?
नेहा: हम्म्म्म.....
आयुष: पापा मैं spicy नहीं खाऊँगा!
संगीता: क्या सब के लिए आग-अलग माँगा रहे हो| एक ही डिश मंगा लो?
मैं: यार बच्चों को भी enjoy कराना चाहिए ना?
संगीता मेरे सामने बैठी थी, आयुष मेरी बगल में और नेहा संगीता के बगल में बैठी थी| मैंने सब के लिए अलग-अलग fried rice की variety आर्डर की और साथ में Gravy Item भी! अब खाना जब आया तो उसमें Fork था ....spoon नहीं था! मैं चाहता तो Spoon माँगा सकता था पर मैंने नहीं मंगाया क्योंकि मैं सब को एक नया experience देना चाहता था| अब सब प्लेट को देख रहे थे की भला fork से चावल कैसे खाएं? मैंने पहल की और उन्हें दिखाते हुए fork से चावल उठाये और सब से संगीता को खिलाया| पर वो जिझक रहीं थीं????
मैं: Hey? खाओ?
मेरे force करने पर उन्होंने मुँह खोला| मैं हैरान था की वो ऐसा क्यों कर रहीं हैं? ये first time तो नहीं है की मैं उन्हें अपने हाथ से खिला रहा हूँ| पर मैंने अपने जज्बातों को control किया और react नहीं किया| फिर अगली बारी नेहा की थी ...जब मैंने उसे खिालय तो उसने फ़ट से मुँह खोला और मैंने उसे खिलाया| Last but not the least आयुष ...वो मेरी बगल में बैठा था और उसने भी बड़े चाव से खाया| हम ऐसे ही बारी-बारी एक दूसरे को खिला रहे थे और बच्चे इस माहोल में बहुत खुश थे| पर संगीता, उनके मुख पे अब भी वो ख़ुशी नहीं थी जो होनी चाहिए थी! Dinner के बाद हम बाहर निकले और Movie के लिए आगये| अंदर जा के हम अपनी-अपनी seats पे बैठ गए| मैं और संगीता साथ बैठे थे और बच्चे मेरी बायीं तरफ बैठे थे| पिक्चर शुरू हुई और मुझे लगा की अब वो मेरा हाथ पकड़ लेंगी....अब वो मेरे कंधे पे अपना सर रखेंगी....पर नहीं| ऐसा कुछ भी नहीं हुआ....मैंने सोचा की चलो मैं ही पहल करूँ, तो मैंने ही उनके कन्धों पे अपना हाथ रखा की वो शायद मेरी ओर झुक जाएं और मुझसे लिपट जाएं पर नहीं| वो normal बैठी हुई थीं और मैं हताश हो के अपना हाथ हटा लिया और चुप-चाप बैठ गया|
उनके साथ इस तरह पिक्चर के लिए बैठे हुए पुरानी यादें ताजा होने लगीं| पुरानी यादों से मेरा मतलब ये नहीं की बहुत साल बाद हम पिक्चर देखने आये थे...पर वो एहसास याद आया जब मैं इनके साथ पिक्चर देखने आया करती थी और हमेशा इनके कन्धों पे सर रख के पिक्चर enjoy किया करती थी| आज जब मैं इनसे दूर बैठ रही हूँ तो मुझे बहुत बुरा लग रहा था| इनका मेरे कंधे पे हाथ रखना इशारा था की मैं इनमें सिमट जाऊँ पर ......दर रही थी की कहीं ये मेरा मन पढ़ लेंगे तो depressed हो जायेंगे| इसलिए मैं इनसे दूर रही! और believe me when I say it was not easy! इनके लिए मेरे मन में प्यार कम नहीं हुआ था पर मैं उसे जतानहीं पा रही थी| बिना किसी गलती के उनको सजा दे रही थी!
हमने पिक्चर देखि.... पता नहीं बच्चों के समझ में आई या नहीं पर वो खुश लग रहे थे| चलो कोई तो खुश था! पिक्चर के बाद हम घर पहुँचे पर पूरे रास्ते वो चुप बैठी रही| मेरे पास extra चाभी थी, जब हम अंदर पहुँचे तो माँ और पिताजी दोनों जाग रहे थे और टी.वी. देख रहे थे|
मैं: आप सोये नहीं?
पिताजी: नहीं बेटा... तेरी माँ को CID देखना था तो मैंने सोचा की आज मैं भी देखूं की ACP प्रदुमन "कुछ तो गड़बड़ है" कैसे बोलता है? पर देखो सीरियल खत्म होने को आया पर अभी तक इसने कुछ भी नहीं किया!
बच्चे हँसने लगे पर हम दोनों के चेहरों पर कोई भाव नहीं था|
मैं: चलिए अब सो जाते हैं|
आयुष: पापा मैं आपके पास सोऊँगा|
मैं: हम्म्म्म...
पिताजी: क्यों भई आज दादा की कहानी सुननी नहीं?
आयुष: कल सुनूंगा...वो भी दो!
पिताजी: पर बेटा जगह कम पड़ेगी?
मैं: कोई बात नहीं पिताजी manage हो जायेगा|
पिताजी: कल carpenter को बुला के तुम्हारा Bed बड़ा करवा देते हैं..हा..हा..हा...हा...
मैं: जी यही ठीक होगा|
हमने बारी-बारी से कपडे बदले और रजाई में घुस गए|आयुष और नेहा बीच में सोये थे| आयुष मेरी तरफ था और नेहा संगीता की तरफ| पर दोनों बच्चों ने करवाय मेरी तरफ ले रखी थी| और मेरी करवट भी उनकी तरफ थी| संगीता ने नजाने क्यों दूसरी तरफ करवट ले रखी थी| बच्चे कहानी सुनते-सुनते सो गए पर मेरी नींद उड़ चुकी थी| सारी रात बस बच्चों की पीठ सहलाता रहा ताकि वो इत्मीनान से सोते रहे|हालाँकि संगीता मेरे हाथ की पहुँच से दूर थी पर मैं मन ही मन कह रहा था की वो चैन से सो जाये| एक गाना याद आता है;
"राम करे ऐसा हो जाये ...
मेरी नींदिया तोहे मिल जाये
मैं जागूँ तू सो जाए....
मैं जागूँ तू सो जाये!!!
शायद मेरी इस दुआ का असर भी हुआ| करीब दो घंटे बाद मैं उठा ये देखने के लिए की संगीता सो रही है या जाग रही है? देख के इत्मीनान हुआ की वो सो रही है| मैं दिवार का सहारा ले के खड़ा-खड़ा उसे निहारता रहा| एक बार को मन किया की उसे चूम लूँ| पर फिर खुद को रोक लिया की कहीं वो जाग ना जाये| सोये हुए उनके मस्तक पे जो सुकून था ....बस यही सुकून में उनके चेहरे पे हमेशा देखना चाहता था|" ऐ खुद मैंने कुछ ज्यादा तो नहीं माँगा था तुझ से?"
तभी आयुष की नींद कच्ची हो गई, वो अपना हाथ फेर के मुझे बिस्तर पे ढूंढने लगा| तो मैं भी जाके वापस लेट गया और उसके सर पे हाथ फेरने लगा| आधे घंटे में वो भी चैन की नींद सो गया और मैं जागता रहा| नींद तो उडी हुई थी ...मन यही सोच रहा था की कैसे उनके मन का डर दूर करूँ? दिल में बस यही बात चुभ रही थी की तू अपनी पत्नी का ख्याल नहीं रख सकता! धिक्कार है तुझ पे! बस इसी सोच ने मुझे खुद को दंड देने के लिए मजबूर कर दिया| मैंने टी-शर्ट और पजामा पहना था और मैं उन्हीं कपड़ों में छत पे आ गया| सर्दी की रात वो भी almost नंगे बदन ...क्या हालत होगी....? ठंडी-ठंडी हवा जब शरीर को छूती तो ऐसा लगता मानो किसी ने गाल पे तमाचा मारा हो| हवा के थपेड़े झेलते हुए मैं हाथ बांधे खड़ा रहा, मुंह से धुआँ लगातार निकल रहा था| खुद को सजा देने का ये तरीका सही था...और मैं deserving था इस सजा को! कोहरा घाना था और अब मेरी कंप-कंपी छूटने लगी थी| बस दस मिनट और मेरी हालत ख़राब होने लगी| तभी मुझे किसी के क़दमों की आहट आई, मैंने पलट के देखा तो कोई नहीं था मैं सीढ़ियों की तरफ बढ़ा, मुझे लगा कोई चोर छत पार कर हमारे घर तो नहीं घुस गया| इसलिए मैं दबे पाँव नीचे आया और सारा घर छान मारा पर कोई नहीं मिला! मुझे लगा की मेरा वहम् होगा| इसलिए मैं वापस कमरे में आ गया और इधर से उधर चक्कर मारने लगा, तभी आयुष भी बिस्तर पे मेरी मौजूदगी टटोलने लगा| तो मैं फिर से उसके पास लेट गया और उसकी पीठ सहलाने लगा ताकि वो उठे ना| पर वो उठा और बोला;
आयुष: पापा ...बाथरूम जाना है!
मैं ने उसे गोद में उठाया और बाथरूम ले गया| फिर जब वो बाथरूम से निकला तो उसे वापस बिस्तर में लिटा दिया और तभी नेहा जाग गई उसे भी बाथरूम जाना था, तो उसे भी गोद में उठा के बाथरूम ले गया| वापस आया तो आयुष भी जाग रहा था! मैंने नेहा को लिटाया और खुद भी लेट गया| पर ये क्या आयुष आके मेरी छाती पे सर रख के लेट गया और नेहा आके मुझसे लिपट गई| दोनों बच्चों ने मुझे "जकड" रखा था की मैं फिर कहीं न चला जाऊँ| जैसे की वो जानते थे की मैं खुद को सजा दे रहा हूँ| मुझे संगीता की भी चूड़ियों की खनक सुनाई दी लगा की वो भी जाग रही है|
मैं: सोये नहीं आप?
संगीता: आप भी तो सोये नहीं?
मैंने कोई जवाब नहीं दिया और उम्मीद करने लगा की वो नजदीक आके हमारे साथ सो जाएँगी पर वो तो आयुष को ही समझने लगीं;
संगीता: आयुष ...बेटा पापा को सोने दो! क्यों तंग करते हो?
आयुष: नहीं मम्मी मैं यहीं सोऊँगा|
मैं: रहने दो ना....आप तो नजदीक आते नहीं और बच्चे को भी नजदीक आने नहीं देते?
मैंने बात घुमा फिरा के कही पर वो समझ गईं की मेरा मतलब क्या है और मैं एक बार फिर उम्मीद करने लगा की वो आके मुझसे लिपट जाएँगी पर ऐसा नहीं हुआ| उन्होंने फिर से दूसरी तरफ करवट की और सो गईं| अब तो मैं हिल भी नहीं सकता था की जाके उन्हें check करूँ की वो सो रही हैं या नहीं? खेर इसी तरह जागते-जागते सुबह हो गई| आज 4 तरीक थी और जो Contract हमने हाथ में लिया था आज वो पूरा हो चूका था| मैं Bed-पोस्ट का सहारा ले के बैठा था और चाय पि रहा था| ठण्ड ज्यादा थी तो पिताजी की हिदायत थी की अपने कमरे में ही रहा जाए क्योंकि बाहर hall में बहुत ठण्ड थी| संगीता कपडे iron कर रही थी|
तभी फोन की घंटी बजी, फ़ोन संतोष का था;
मैं: हाँ संतोष बोल?
संतोष: Good Morning भैया, वो party आज काम देखने आ रही है| मालिक ने पर्सनल गारंटी पे ये काम कराया था तो अगर आप आ जाते तो अच्छा होता और check भी ले लेते?
मैं: Sorry यार नहीं आ पाउँगा| काम तो बढ़िया हो चूका है, तू ही मिल ले और check ले के अकाउंट में डाल दे|
संतोष: जी ठीक है|
मैंने फोन काटा, संगीता ने बिना मेरी तरफ देखे ही कहा;
संगीता: कब तक मेरी वजह से रोज़ी से मुंह मोड़ के बैठे रहोगे?
वो बात बहुत चुभी मुझे.... क्योंकि वो ऐसी बात मुझे प्यार से भी कह सकती थीं और तब मुझे बुरा नहीं लगता पर वो लहजा बहुत गलत था| मैं ये भी सह गया और कुछ नहीं बोला बस फटाफट उठा और कपडे बदल के तैयार हुआ और संतोष से कह दिया की मैं आ रहा हूँ| सुबह के दस बज चुके थे और कोहरा छत रहा था| पिताजी डाइनिंग टेबल पे आचुके थे और नाश्ते की तैयारी हो रही थी;
मैं: पिताजी मैं जा रहा हूँ| वो party से check collect करना है|
पिताजी: अच्छा ये ले मेरा मोबाइल, वो builder का फ़ोन आया था की आज check ले लेना| अब तू जा रहा है तो लेता आईओ|
मैं: ठीक है पर मैं आपके मोबाइल का क्या करूँ?
पिताजी: अरे तुझे तो पता है उस बिल्डर का, उसके पास तेरा नंबर है नहीं! अब वो मुझे फोन करेगा की check ले जाओ और फिर मैं तुझे फोन करूँगा? वैसे भी मेरी तबियत थोड़ी ठीक नहीं है तो मैं तो दवाई खा के सोने जा रहा हूँ|
मैं: ठीक है मैं check ले लूँगा|
पिताजी: पर नाश्ता ओ कर ले?
मैं: late हो जाऊँगा| Gurgaon जाना है!
पिताजी: ठीक है, पर गाडी संभाल के चलाना|
मैं: जी!
मैं साइट पे आ गया और party को काम दिखाया तो वो खुश हुई| दरअसल वो एक बाहर की कंपनी थी और हमारे within time में काम कम्पलीट करने पे खुश हुई और extra 5०००/- भी दिए| मैं संगीता के बारे में इतना सोच रहा था की उनके extra पैसे देने पे react ही नहीं कर पाया|
Mr.John: Manu are you not happy?
मैं: I’m sorry sir….actually I was thinking something! Sorry!
Mr.John: What were you thinking?
मैं: That when’s the next time we’ll get a contract from you? (मैंने किसी तरह बात संभाल ली थी| और अंग्रेज ने भी हंस के बात टाल दी थी|)
उस समय मैं बस यही सोच रहा था की मुझे हार नहीं माननी चाहिए थी और HELL मैं हार नहीं मानने वाला| I'm gonna confront her! HELL YEAH !!! TEAM MANU GO FOR IT !!!!
मेरा दिमाग खराब हो चूका था.....काम ही नहीं कर रहा था| बिना किसी गलती के उनको सजा दिए जा रही थी| खुद से घिन्न आ रही थी..... एक ऐसा इंसान जो मुझे इतना चाहता है.....मैं उसके साथ ऐसा पेश आ रही थी की जैसे वो कोई ......stranger हो..... अरे कोई ऐसे Stranger से भी पेश नहीं आता...एक इंसान जो आपको प्यार करता हो....आपको हँसाने के लिए....आपके दिल को खुश करने के लिए.....और सिर्फ इसलिए नहीं की मैं प्रेग्नेंट हूँ बल्कि इसलिए क्योंकि वो मुझे प्यार करते हैं| सीधे शब्दों में कहें तो "मुझे उनकी कदर ही नहीं थी|" पर वाकई में क्या मैं ऐसी ही हूँ? या हालात ने मुझे ऐसा बना दिया? मैं अपनी सफाई में कुछ नहीं कहूँगी क्योंकि मैं खुद को GUILTY मानती हूँ| आठ साल पीला का मेरा इनसे दूर रहने का फैसला और पिछले 48 घंटों से जो मैं इनके साथ कर रही थी ये....इससब के लिए मैं खुद को कभी माफ़ नहीं कर सकती| मेरे इस बर्ताव के कारन ये बिना नाश्ता खाए घर से चले गए और अभी दो बजने को आ रहे थे पर इनका कोई पता नहीं था.और जहाँ तक मैं जानती हूँ इन्होने मेरी वजह से दोपहाक का lunch भी नहीं खाया होगा| कल रात भी ये छत पे cigarette पीने गए थे और ठण्ड में खड़े रह कर खुद को सजा दे रहे थे| सबकुछ जानते हुए भी मैं पत्थर की तरह कड़ी उन्हें ठण्ड में ठिठुरता देख रही थी...बेबस और लाचार......मेरे कारन इन्हें cigarette की लत पद चुकी थी और ये सब मेरी वजह से ...सिर्फ और सिर्फ मेरी वजह से! मैंने फोन उठाया और इनको मिलाया की कम से कम SORRY बोल दूँ और उन्हें कुछ खाने को बोल दूँ| पर लगातार 5 बार फ़ोन मिलाने पर भी इन्होने फोन नहीं उठाया! मन घबराने लगा की कहीं कुछ गलत तो नहीं होगया?
दोनों पार्टियों से check collect करने के बाद मैं बैंक में check डाल रहा था की तभी पिताजी के फ़ोन पे एक call आई| आवाज भारी थी और जानी-पहचानी थी| ये बड़के दादा थे;
मैं: पांयलागी दादा!
उन्होंने कुछ भी जवाब नहीं दिया और सीधा मुद्दे की बात की|
बड़के दादा: तेरे पिताजी कहाँ हैं?
मैं: जी घर पे हैं ...मैं bank आया था|
बड़के दादा: कल पंचायत बुलाई है मैंने| तुम दोनों को आना है|
बस इतना कहा और फ़ोन काट दिया| मैं समझ गया की पंचायत क्यों और किस लिए बुलाई गई है| मैं शाम को 5 बजे घर पहुंचा पर मैंने पंचायत वाली बात किसी को नहीं बताई| बल्कि एक बहाना मार दिया;
मैं: पिताजी मुझे कल कानपुर जाना है|
पिताजी: कानपुर? किस लिए?
मैं: जी वो एक contract के सिलसिले में| मेरा एक दोस्त है उसने बताया है|
पिताजी: दोस्त? पर बेटा बहु को इस हालत में? ऐसा कर तुम दोनों चले जाओ| बच्चे यहीं रुक जायेंगे|
मैं: नहीं पिताजी....बच्चे नहीं मानेंगे और वैसे भी संगीता नहीं मनेगी| मुझे बस एक दिन का काम है| कल रात तक मैं वापस आ जाऊँगा|
पिताजी: जैसा तुझे ठीक लगे| आर अगर बहु को साथ ले जाता तो उसका मन बहल जाता|
मैं: फिर कभी पिताजी|
ये सब मेरी वजह से हो रहा था....मेरी वजह से वो दूर जा रहे थे| मेरी बात को इन्होने इतना serious ले लिया? मुझे इनसे माफ़ी मांगनी ही होगी पर पहले इन्हें कुछ खिला तो दूँ| मैंने फटाफट परांठे सेंके और कमरे में ले आई| मैंने प्लेट टेबल पे रखी, ये उस समय अपने कपडे change कर रहे थे| मन तो किया की जाके इनके गले लग जाऊं पर नजाने वो क्या चीज थी जो मुझे इनके पास जाने से रोक रही थी| इससे पहले की मैं कुछ बोलती या हिम्मत जूता पाती इन्होने मेरी आँखों में देखा और मुझे लगा की अब ये कुछ न कुछ कहेंगे? मैंने सोच लिया की मैं इन्हें और LOW feel नहीं करवाउंगी और आज कैसे भी माफ़ी जरूर माँग लूँगी|
मैं: बैठो...
संगीता: आप पहले कुछ खा लो...सुबह से कुछ नहीं खाया आपने?
मैं: वो सब बाद में.... पहले आप बैठो मुझे आपसे कुछ बात करनी है|
मैंने जबरदस्ती उन्हें अपने सामने बिठाया और मैं उनके सामने chair लेके बैठ गया|मैं उन्हें ये सब कहना चाहता था;
“Jaan, what’s wrong with you? Why are you acting like you don’t love me? I knw you’re scare and I know you’re concerned about Aayush but if you stop expressing your love to me, I promise….I promise I’m gonna kill that Asshole! I swear to you.I’m gonna kill him! I never asked you for anything but today I’m gonna ask something from you. I don’t know how you’ll do it or whatever it takes for you….but I need my OLD SANGEETA BACK! At any cost……I don’t care about anyone now except for you! And If I didn’t get what I need …you’re gonna loose me….forever!”
मनाएं ये सब उन्हें कहना चाहता था पर रूक गया क्योंकि आज उन्हें मेरे ना खाने से तकलीफ हुई थी? ये कोई नई बात नहीं थी पर पिछले 48 घंटों में ये मेरे लिए एक नई उपलब्धि थी| मन को लगा की जब इन्हें मेरी इतनी फ़िक्र होने लगी है तो जल्द ही मेरी पुरानी संगीता वापस आ जाएगी| बेकार में अगर मैंने ज्यादा PUSH किया तो कहीं बात बिगड़ ना जाये| मैं बिलकुल एक नई शुरुआत करने को तैयार था इसलिए चुप रहा!
मेरे अंदर जो दबी हुई संगीता थी...वो संगीता जो उन्हें प्यार करती थी....आज उसने फिर से साँस ली| मेरे मन में उनके लिए जो चिंता थी वो आज बाहर आई पर मुझे लगा था की ये कुछ कहेंगे ...पर ये तो चुप हो गए? मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैंने ही पूछा; "क्या हुआ? क्या बात करनी है?" तो ये कुछ नहीं बोले ...अब तो मन और कचोटने लगा की मेरी वजह से ये इतना upset हैं! मैंने फिर से हिम्मत की और सबसे पहले परांठे वाली प्लेट उठाई और इन्हें एक कौर खिलाया और इन्होने भी बिना किसी हिचकिचाट के खा लिया और तब मैंने बात आगे बढ़ाई; "मैं भी चलूँ कानपुर?" इन्होने मुस्कुराते हुए कहा; "जान....मैं बस एक दिन के लिए जा रहा हूँ| एक दिन में वहाँ कुछ नहीं देख पाओगी| मैं जल्दी कोई घूमने का प्लान बनाउँगा और फिर हम एक साथ जायेंगे| okay?" बहुत ताकत लगी मुझे "मुस्कुराने में" और मैंने; "हम्म……" कहा|
मैंने बात तो टाल दी पर जानता था की उन्हें बुरा लगा होगा| पर उन्हें साथ भी तो नहीं ले जा सकता था ना? पर एक बात की ख़ुशी थी की वो प्यार जिसे मैं इतना MISS कर रहा था वो बाहर आने लगा था! उनके हाथ से परांठे खाने का मजा अलग था| ऐसा की क्या बताऊँ? खेर मैंने चुपके से Internet पे लखनऊ की टिकट बुक करा दी और मैंने ये बात सबसे राज रखी थी| दोस्तों आप लोगों को याद होगा की संगीता ने आपको बताया होगा की मैं कानपुर गया हूँ, दरसल आप लोगों को भी मैंने नहीं बताया की मैं कहाँ जा रहा हूँ| वरना Xossip के जरिये संगीता को भी पता लग जाता| अगले दिन निकलने से पहले मैं संगीता को हिदायत दे गया था की वो आराम करें पर आप देखो उस पागल को, उसने मेरे निकलते ही वो XOSSIP पे log in हुई और मेरे दूसरे थ्रेड पे कमेंट पढ़ के आग बबूला हो गई| I think you all know how she felt and why she reacted so LOUD !!!
लखनऊ से गाँव पहुँचते-पहुँचते मुझे दोपहर के दो बज गए| मैं जानता था की मेरा वहाँ कोई Grand Welcome नहीं होगा और ऐसा ही हुआ| पंचायत 5 बजे बठिनी थी और मैं दो बजे पहुँच गया था| ना तो मेरे बड़के दादा और ना ही मंझिले दादा के घर में बैठ सकता था| मैं सड़क के किनारे एक पेड़ के नीचे बैठा था| कोई पानी पूछने वाला भी नहीं, बस घरवाले एक-एक कर घर से निकल के मुझे देख रहे थे और खुसर-फुसर कर रहे थे| वरुण (अजय भैया का लड़का) भी मुझे देख रहा था पर नजदीक नहीं आया| मैंने जेब में हाथ डाला और उसके लिए एक चॉकलेट निकाली और उसकी तरफ बधाई पर वो अपनी माँ (रसिका भाभी) को देखने लगा जो मुझे छप्पर के नीचे से देख रही थी| उन्होंने उसकी पीठ पे हाथ रख के मेरी तरफ आने को बोला| वरुण धीरे-धीरे मेरे पास आया और मेरे पाँव छूने लगा| मैंने उसे रोक और प्यार से उसके सर पे हाथ फेरा|
वरुण: चाचू आपको मैं याद हूँ?
मैं: हाँ....और ये भी की आपको चॉकलेट पसंद है| ये लो!
वरुण: थैंक्यू चाचू! चाची कैसी हैं?
मैं: अच्छी हैं...और आपको याद करती हैं|
इतने में बड़के दादा और बड़की अम्मा आ गए और वरुण को डांटने लगे| मैंने उसे इशारा किया की वो चॉकलेट छुपा ले, और उसने वैसा ही किया| वो अंदर घर में भाग गया पर बड़के दादा और बड़की अम्मा कुछ नहीं बोले| मैं उठा और बड़के दादा के पाँव छूने लगा तो वो बिना कुछ बोले हट गए| बड़की अम्मा कड़ी रहीं और वो कुछ बोलना चाहती थीं पर बोल नहं पाईं| मैंने उनके पाँव छुए और उन्होंने अपना हाथ मेरे सर पे रख दिया|
बड़के दादा: तेरे पिताजी कहाँ हैं?
मैं: जी मैं ने उन्हें इस पंचायत के बारे में नहीं बताया|
बड़के दादा: क्यों?
मैं: शिकायत आपको मुझ से है उनसे नहीं| तो मेरा आना जर्रुरी था उनका नहीं| (मैंने तपाक से जवाब दिया)
बड़के दादा: (गरजते हुए) अजय! जाओ जाके पंचों से कहो की अभी आ जाएं| जितनी जल्दी बात हो उतना अच्छा है|
अजय भैया पंचों को बुलाने के लिए निकल गए| शुक्र है की मेरे पास पानी था तो मैंने वो पीने लगा| अगले एक घंटे में पंच आ गए| चार चारपाइयाँ बिछाई गईं, दो पे पंच बैठे एक पे बड़के दादा और चन्दर और दूसरी पे सिर्फ मैं|
पंच: पहले तुम (बड़के दादा) बताओ की तुम्हारा क्या कहना है फिर इस लड़के की बात सुनते हैं|
बड़के दादा: इस लड़के ने मेरे बेटे को बुरी तरह पीटा है| इसका हाथ तोड़ दिया इसने? पूछो क्यों किया इसने? कौन सी दुश्मनी निकाल रहा है ये हम से? क्या बिगाड़ा है हमने इसका?
पंच: बोलो (मैं)?
मैं: मेरी अपने बड़के दादा से कोई दुश्मनी नहीं है...ना ही कभी रही है| मैं तब भी इनका आदर करता था और अब भी इनका आदर करता हूँ| पर ये (चन्दर) ये शक्स 2 जनवरी को मेरे घर में घुस आया और मेरी पत्नी का गाला दबाने लगा और ये ही नहीं मेरे बेटे आयुष को अपने साथ ले जाने की कोशिश करने लगा| मैं उस वक़्त घर पर ही था और जब मैंने चीखने की आवाज सुनी तो मैं बाहर आया और मैंने वही किया जो मुझे ठीक लगा| बड़की अम्मा का ख़याल न होता तो मैं इसे जिन्दा नहीं छोड़ता|
बड़के दादा: ये जूठ बोल रहा है! मेरे दोनों बेटे दिल्ली गए थे पर बात करने के लिए की आयुष को हमारे हवाले कर दिया जाए| बस पर इसने चन्दर की पिटाई कर दी और अजय इस बात का गवाह है!
मैं: अच्छा? अजय भैया यही हुआ था? आप आये थे मेरे घर बात करने?
अजय भैया का सर झुका हुआ था| भले ही हालात कैसे हों पर अजय भैया और मेरे बीच सगे भाइयों जैसा प्यार था| ना तो उन्होंने और ना ही मैंने कभी उनसे जूठ बोला था| मेरे सवालों का उनके पास जवाब नहीं था और यहीं से मैंने अपनी बात आगे बढ़ाई;
मैं: देख लीजिये पंचों.....ये मेरे अजय भैया कभी मुझसे जूठ नहीं बोलते| आप खुद इनसे पूछिये की क्या ये और चन्दर भैया आये थे मेरे घर बात करने के लिए?
पंच: अजय बोलो? क्या मानु जो कह रहा है वो सच है?
अजय भैया: जी! मैं नहीं गया था चन्दर भैया के साथ| इन्होने मुझे हमारे रिश्तेदार के घर रूकने को कहा था और कहा की मैं आयुष को लेने जा रहा हूँ और जब मैं हॉस्पिटल पहुँचा तो इन्होने कहा की मैं जूठ बोल दूँ|
चन्दर का सर झुक गया था|
बड़के दादा: चलो ठीक है अगर इसने जूठ भी बोला तो भी ये लड़का जूठ बोल रहा है| चन्दर ने ऐसा कछ भी नहीं किया?
मैं: मैं जूठ बोल रहा हूँ? ह्म्म्म्म्म.....ठीक है! मेरे पास कोई गवाह नहीं है कहिये इसे की ये भवानी माँ की कसम खाए और कहे की इसने ऐसा कुछ नहीं किया? और याद रहे चन्दर अगर जूठ बोला तो तू भी जानता है की भवानी माँ तुझे नहीं छोड़ेंगी! और इससे पहले की आप लोग मुझे कसम खाने को कहें मैं अभी मंदिर चलके कसम खाने को तैयार हूँ|
बड़के दादा: चल चन्दर|
पर वो नहीं हिला, हिलता भी कैसे मन में चोर जो था!
मैं: देख लो दादा! आपका अपना खून आपसे जूठ बोलता है|
बड़के दादा का सर शर्म से झुक गया और मुझे इस बात का बहुत बुरा लगा| पर वो अपनी एक बात पे अड़े रहे;
बड़के दादा: ठीक है पंचों मैं मानता हूँ की मेरा ही सिक्का खोता है| पर अब ये (मैं) यहाँ आ ही चूका है तो इससे कहिये की ये आयुष को हमें सौंप दे| आखिर वो चन्दर का खून है|
मैं: बिलकुल नहीं! ये देखिये तलाक के कागज़| (मैंने पंचों को कागज़ दिखाए)
पंच: हम्म्म्म इसमें लिखा है की की बच्चे की हिरासत तुम मानु को दे रहे हो और तुम्हारा अब इस बच्चे पे कोई हक़ नहीं है|
बड़के दादा: नहीं ये नहीं हो सकता! ये जूठ है...इसने हमें धोका दिया है! इसने ये बात हमसे छुपाई है?
मैं: मैंने आप से कोई बात नहीं छुपाई| उस दिन जब मैं तलाक के कागज़ लाया था तब मैंने कागज चन्दर को दिए थे उसने पढ़ा नहीं तो इसमें मेरा क्या कसूर और वैसे भी आयुष मेरा खून है ....इसका नहीं!
बड़के दादा: लड़के...तू जूठ पे जूठ बोलता जा रहा है| ईश्वर से डर!
मैं: मैंने कुछ भी जूठ नहीं कहा चाहे तो आप लोग मेरा और आयुष का DNA टेस्ट करा लो| (मैंने पूरे आत्मविश्वास से कहा था|)
बड़के दादा: हे भगवान! इसका मतलब की तू और.....................छी...छी.....छी....
अब ये सुनके मेरे अंदर आग भड़क उठी और मैं गुस्से से चिलाते हुआ बोला;
मैं: बस! अब और नहीं सुनूँगा मैं... आयुष मेरे बेटा है और इसे कोई नहीं जुठला सकता| गलती आपकी है दादा ...आपने सब कुछ जानते हुए इस (चन्दर) की शादी संगीता से की| आपको पता था की शादी से पहले आपका बेटा क्या गुल खिलता है और शादी के बाद भी इसने क्या गुल खिलाये वो भी आप जानते हो| आपने एक ऐसी लड़की की जिंदगी बर्बाद कर दी जिसने आपका कुछ नहीं बिगाड़ा| कह दीजिये की ये मामा जी के घर बार-बार क्यों जाता है आपको नहीं पता? वहाँ जाके ये क्या-क्या करता है? कह दीजिये? शादी की रात ही संगीता को इसके चरित्र का पता लग चूका था इसलिए उसने इसे खुद को छूने नहीं दिया| अब ऐसे में अगर संगीता को मुझसे प्यार हो गया तो क्या गलत किया हमने? शादी की ना कोई गलत रिश्ते तो नहीं बनाये हमने? पूरे रीती रिवाजों से शादी की है कोई पाप नहीं किया!
चन्दर गुस्से में उठ खड़ा हुआ और चिल्लाते हुए बोला;
चन्दर: ओये? बहुत सुन लिया तेरा? बकवास ना कर ....
मैं तो पहले ही गुस्से में जल रहा था और उसकी हरकत ने आग में घी का काम किया और मन भी गुस्से में उठ खड़ा हुआ और चिल्लाते हुए बोला;
मैं: Oyeeeee! भूल गया उस दिन कैसे ठुकाई की थी तेरी? दुबारा करूँ...यहीं पे सब के सामने? साले तुझे भागा-भगा के मारूंगा और यहाँ तो कोई police station भी नहीं है कोई complaint करेगा? उस दिन तो तुझे जिन्दा छोड़ दिया था पर इस बार नहीं छोड़ूंगा!
मेरी गर्जन सुन के उसकी फ़ट गई और वो चुप बैठ गया| उसका डर उसके चेहरे से झलक रहा था और किसी हद्द तक बड़के दादा भी डर चुके थे!
पंच: शांत हो जाओ तुम दोनों! लड़ाई-झगडे से कभी कोई हल नहीं निकला|
मैं: आप बस इससे कह दीजिये की अगर आज के बाद ये मेरे परिवार के आस-पास भी भटका तो मैं इसे जिन्दा नहीं छोड़ूंगा|
बड़के दादा: (आँखें चुराते हुए कहा) बेटा! मैं तुम्हें वचन देता हूँ आज के बाद ये हम आयुष के लिए कभी भी कोई .........
उन्होंने बात छोड़ दी पर पंचों ने जोर दे के बात पूरी कराई|
बड़के दादा: बेटा आज के बाद हम या हमारे परिवार का कोई भी इंसान तुम या तुम्हारे परिवार के रास्ते में नहीं आयगी| हम आयुष को भूल जायेंगे और कभी उसकी हिरासत के लिए कोई दावा नहीं करेंगे!
पंच: तो ये तय रहा की तुम्हारे बड़के दादा की तरफ से कभी भी कोई दावा नहीं किया जायेगा| भविष्य में ऐसी कोई हरकत दुबारा नहीं होगी और भगवान न चाहे ऐसा कुछ हुआ तो हम तुम्हारा (बड़के दादा का) भी हुक्का-पानी बंद कर देंगे और मानु तुम्हें पूरा हक़ है पुलिस में FIR दर्ज करने का और अगर तुमने नहीं की तो हम कर देंगे!
और ये फैसला सुना के पंच उठ खड़े हुए पर मैं उनसे एक बात करना चाहता था;
मैं: पंचों मैं आप सब से कुछ पूछना चाहता हूँ?
पंच: हाँ पूछो?
मैं: मैंने देखा है की माँ-बाप के किये की सजा बच्चों को मिलती है| पर ये कभी नहीं देखा की बच्चों के किये की गलती माँ-बाप को दी जाती हो! तो मेरे किये की गलती आप मेरे माँ-बाप को क्यों दे रहे हो? मेरे अनुसार मैंने कोई गलती नहीं की ...प्यार किया है और अगर आप लोगों को ये गलती लगती है तो गलती सही पर इसके लिए आप मेरे माता-पिता का हुक्का-पानी क्यों बंद कर रहे हैं? करना है तो मेरा करिये ...मैं आपसे वादा करता हूँ की ना मैं, न मेरी पत्नी और ना मेरे बच्चे...कोई भी इस गाँव में कदम नहीं रखेगा| पर मेरे पिता वो तो इसी गाँव में पैदा हुए हैं...ये उनकी जन्म भूमि है और उन्हें गर्व है की वो इस मिटटी में जन्में और इसी में मिलना चाहेंगे पर आपका एक फैसला उनके लिए कितना दुखदाई है ये आप शायद नहीं समझते| यहाँ उनके पिता सामान भाई हैं, माँ सामान भाभी हैं ...कृपया उन्हें अपने ही परिवार से दूर न रखें! मेरी बस आपसे एक ही गुजारिश है की आप उन्हें यहाँ रहने की इज्जाजत दें, और ये उनकी तरफ से नहीं है बल्कि मेरी तरफ से गुजारिश है| (मैंने उनके आगे अपने हाथ जोड़े)
पंच: देखो मानु ....तुम्हारे बड़के दादा ही उनसे कोई सरोकार नहीं रखना चाहते! चलो हम तुम्हारी बात मान भी ले तो.... वो यहाँ रह सकते हैं पर उन्हें तुम से अपने सारे रिश्ते-नाते तोड़ने होंगे?
मैं: कोई माँ-बाप अपने ही खून से रिश्ता कैसे तोड़ सकते हैं? आपने अभी खुद देखा ना की बड़के दादा अपने बेटे के गलत होने पर भी उसका साथ दे रहे थे और मैं तो बिलकुल सही था तो भला मेरे माँ-पिताजी मेरा पक्ष क्यों नहीं लेंगे? रही बात बड़के दादा के गुस्से की तो किसी भी इंसान का गुस्सा उसकी उम्र से लम्बा नहीं होता|
पंच: हम इसमें कुछ नहीं कर सकते|
और वो चले गए! अब मेरा यहाँ रुकने का point नहीं बचा था तो मैं ने अपना बैग उठाया और जाने लगा| चौराहे पे मुझे अजय भैया और रसिका भाभी मिले और वरुण भी उनके साथ था|
अजय भैया: मानु भैया मुझे माफ़ कर दो!
मैं: भैया ऐसा मत बोलो! मैं जानता हूँ आपने जो भी किया वो अपने मन से नहीं बलिक दबाव में आ के किया और मेरे मन में ना आपके प्रति और ना घर के किसी भी व्यक्ति के प्रति कोई बुरा भाव है, सिवाय उस एक इंसान के और वो है चन्दर! अगर वो मेरे परिवार के आस-पास भी भटका ना तो उसके लिए अच्छा नहीं होगा! उसने मेरे परिवार को बहुत क्षति पहुंचाई है और इस बार तो मैं सह गया पर अब आगे कुछ नहीं सहूँगा!
अजय भैया: मानु भैया आप शांत हो जाओ ...मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूँगा की उन्हें शहर ना आने दूँ| आप चिंता मत करो!
रसिका भाभी: मानु भैया आप मुझसे नाराज हो?
मैं: नहीं तो!
रसिका भाभी: जो भी हुआ उसके लिए मैं बहुत शरमिन्दा हूँ!
मैं: भूल जाओ उस सब को भाभी....मैं भी भूल चूका हूँ| मुझे आप दोनों को एक साथ देख के बहुत ख़ुशी हो रही है| मैं भी यही चाहता था|
रसिका भाभी: भैया दीदी कैसी हैं?
मैं: ठीक हैं....आजकल बहुत चिंतित हैं| उस दिन जो हुआ उससे उनका मन बहुत दुखा है!
रसिका भाभी: आप उनका अच्छे ख्याल रख ही रहे होगे| उनसे कहना की जो हुआ उसे भूलने की कोशिश करें| धीरे-धीरे सब ठीक हो जायेगा!
मैं: मैं भी यही उम्मीद करता हूँ! और अजय भैया मैं अपनी तरफ से तो पूरी कोशिश कर रहा हूँ पर आप भी कोशिश करो की हम सब फिर से एक हो जाएं! रही बात पंचायत की तो? मैं उसे भी देख लूँगा! आप बस कोशिश करो की बड़के दादा का मन बदले!
अजय भइया: मैं भी पूरी कोशिश कर रहा हूँ भैया! पर थोड़ा समय लगेगा! अम्मा आप को बहुत याद करती हैं!
मैं: मैं भी उन्हें बहुत याद करता हूँ! अच्छा एक बात तो मैं आप लोगों को बताना ही भूल गया! संगीता माँ बनने वाली है!
रसिक भाभी: क्या? सच? (उनके मुख पे ख़ुशी झलक आई थी और ठीक वैसी ही ख़ुशी अजय भैया के मुख पे भी थी|)
मैं: हाँ! दो महीने से प्रेग्नेंट हैं वो!
रसिका भाभी: भैया अब तो आपको उनका और भी ज्यादा ख्याल रखना होगा|
मैं: हाँ
अजय भैया: भैया ये तो आपने बहुत ही ख़ुशी की खबर सुनाई...मैं अम्मा से जर्रूर बताऊँगा|
मैं: भैया अगर हो सके तो मेरी एक बार उनसे बात करा देना| छुप के..अकेले में ये कैसे भी...उनकी आवाज सुनने को कान तरस गए हैं!
अजय भैया: जर्रूर भैया अब तो फ़ोन करना बनता है| मैं जर्रूर बात कराऊँगा|
मैं: ओरे छोट साहब आप.....स्कूल जाते हो ना?
वरुण: हम्म्म.... आपकी कहानियाँ बहुत याद आती हैं!
मैं: Awwwwwww ...... मेरा बच्चा! बेटा आप अपने मम्मी पापा के साथ मेरे घर आना मैं आपको रोज कहानी सुनाऊँगा ठीक है?
वरुण: हम्म्म! (और हाँ में सर हिलाया)
अजय भैया: मानु भैया चाचा?
मैं: वो आपसे या किसी से नाराज नहीं हैं! देखो अगर आप कभी भी शहर आये तो हम से मिलना, हमारे पास ही ठहरना और अगर अछा लगे तो हमारे साथ काम भी करना|
अजय भैया: सच भैया?
मैं: मैं झूठ क्यों बोलूँगा! अच्छा मैं अब चलता हूँ फ्लाइट मिस हो जाएगी!
रसिका भाभी: भैया दीदी को मेरा प्यार देना!
अजय भैया: और चाचा-चाची को हमारा प्रणाम!
मैं: जी जर्रूर!
मैं वहाँ से निकला पर समय पे एयरपोर्ट नहीं पहुँच पाया और फ्लाइट छूट गई| इधर उसी समय संगीता का फोन आया;
मैं: Hello !
संगीता:Muuuuuuaaaaaaaahhhhhhhh !
मैं: Oh GOD! इतना बड़ा muah?
संगीता: कितने बजे पहुँच रहे हो?
मैं: Sorry यार एक दिन और लगेगा!
संगीता: क्या? पर आपने कहा था की आप आज रात को आ जाओगे? मैं आपसे बात नहीं करुँगी!
मैं: Awwwwwww .... बाबू कल पक्का आ जाऊँगा!
पर वो नहीं मानी! मैं खुश था की आज उन्होंने इतना खुल के मुझसे बात की पर flight मिस हो चुकी थी| तो मेरे पास अगला ऑप्शन था रेल या बस? तो मैंने रेल का ऑप्शन लिया! तत्काल में टिकट कटाई और सारे रास्ते हिलते-हिलते सुबह lucknow mail से दिल्ली पहुँचा! घर आके मैं नार्मल रहा और किसी को भी पंचायत वाली बात नहीं बताई और किसी को शक भी नहीं हुआ! पर मेरा दिल कह रहा था की संगीता को अब भी चैन नहीं मिला और ना ही कभी मिलेगा| उसे अंदर ही अंदर आयुष को लेके डर है और मुझे कैसे भी ये डर उसके दिल से मिटाना था| मैं court में case फाइल नहीं कर सकता था वरना उनके divorce के चक्कर में फंस जाता| क्योंकि Divorce मिलने में कम से कम डेढ़ साल लगता है और इस दौरान applicant शादी नहीं कर सकते| तो अगर मैंने case file किया होता तो मैं और पचड़े में पड़ जाता| पुलिस में इसलिए नहीं जा सकता था क्योंकि वहाँ भी कभी न कभी divorce की बात निकल ही जाती और मामला उल्टा पड़ जाता| ये तो खुशकिस्मती है की उस इंस्पेक्टर ने papers पढ़ने के बाद ज्यादा detail नहीं माँगी और सतीश जी ने बात संभाल ली| मुझे कुछ ऐसा सोचना था की मैं संगीता को इस डर के जंगल में से निकाल लूँ| इसका हल जो मुझे नजर आया वो ये था......................................................................
7 जनवरी को मैं मुंबई निकल आया ये बहाना करा के की मुझे कॉन्ट्रैक्ट देने के लिए बुलाया गया है| संगीता ने आपको बताया होगा की मैं मुंबई गया हूँ ...तो ये तब की बात है! असल में मेरा एक दोस्त मुंबई में एक MNC में JOB करता था और वहाँ उसकी अच्छी जान पहचान थी| मैंने उससे कहा की वो मुझे India से बाहर जॉब दिलवा दे ताकि मैं संगीता और बच्चे बाहर चले जाएं| जानता हूँ अपने माता-पिता से दूर होने में दर्द बहुत होता पर कम से कम कुछ साल बाद जब आयुष कुछ बड़ा हो जाता तो मैं India वापस आ जाता| मेरे पास एक और रास्ता था की मैं पिताजी से कहूँ की वो अपना सारा business बंद कर दें और हम बाहर settle हो जाएं| पर माँ और पिताजी इसके लिए कभी राजी नहीं होते| उनके लिए नए देश में जाके adjust करना मुश्किल था| इसलिए मैंने ये Job वाला आईडिया choose किया| मेरे दोस्त ने मुझे यकीन दिलाया की वो मुझे Dubai में पोस्टिंग दिल देगा| पर कुछ कागजी करवाई के लिए उसे मेरा और संगीता का पासपोर्ट चाहिए और साथ ही साथ बच्चों का भी| मेरा पासपोर्ट तो तैयार था पर ना तो संगीता का पासपोर्ट था और न ही बच्चों का! तो मैंने उससे passport बनाने के लिए समय माँगा और उसने मुझे समय दे भी दिया| मैं दिल्ली वापस आ गया| अब समय था बात खोलने का...........................................
मैं अपना लैपटॉप ले के हॉल में बैठा था और online Passport aaplication का page खोल रखा था| मैंने माँ और पिताजी को और साथ-साथ संगीता को भी बिठाया| बच्चे स्कूल गए हुए थे और मैं उनके स्कूल जाके Principal, Class Teacher, Watchman सब से बात कह के आया था की मेरे या मेरी wife के आलावा वो किसी के साथ भी बच्चों को ना जाने दें| अगर मेरी जगह मेरे पिताजी या माँ आते हैं तो पहले मुझे call करें और अगर मैं हाँ कहूँ तब ही बच्चे को उनके साथ जाने दें| मैंने सारी बात घरवालों को बता दी....पंचायत से ले के दुबई जाने तक की सारी बात! सबने बात बड़े इत्मीनान से सुनी और मैं अबसे पहले पिताजी के मन की बात जानना चाहता था तो मेरी नजर उनपे थी;
पिताजी: बेटा...तू ने मुझे बताया क्यों नहीं की गाँव में पंचायत रखी गई है? मुझे जाना चाहिए था!
मैं: पिताजी मेरी वजह से आपको पहले ही बहुत तकलीफें उठानी पड़ रही हैं और वैसे भी कारन तो मैं था ना तो मुझे ही जाना चाहिए था|
पिताजी: तू सच में बड़ा हो गया है...अपनी जिम्मेदारियाँ उठाने लगा है| खेर बेटा बहु को खुश रखना जर्रुरी है, उसके दिल से डर खत्म करना बहुत जर्रुरी है और मैं या तेरी माँ तुझे नहीं रोकते बल्कि अच्छा है की तू settle हो जाये|
माँ: हाँ बेटा! तुझे इस परिवार को सम्भलना होगा! ख़ास कर बहु को और बच्चों को!
मैं: जी!
संगीता: मैं कुछ बोलूँ?
माँ: हाँ-हाँ बहु बोल!
संगीता: आपने (मैं) ये सब सोच भी कैसे लिया की मैं माँ-पिताजी से अलग रहने को तैयार हो जाऊँगी? और शहर नहीं जिला नहीं बल्कि अलग देश में जा के!
मैं: क्योंकि मैं आपको इस तरह डरा हुआ नहीं देख सकता| 24 घंटे आपको एक ही डर सता रहा है की आयुष चला जायेगा? इन कुछ दिनों में मैंने आपको जितना तड़पते हुए देखा है उसे मैं बयान नहीं कर सकता| इस डर ने आके मुँह से हंसी तक छीन ली, घर से सारी खुशियाँ छीन ली| अरे आपके मुँह से चंद प्यार के मीठे बोल सुनने को तरस गया था मैं! जिस संगीता से मैं प्यार करता था वो तो कहीं चली गई और जो बच गई वो मेरे लिए अपने प्यार को बाहर आने ही नहीं देती| ठण्ड में कंपकंपाते हुए देखते हो पर आगे बढ़ के मुझे गले नहीं लगा सकते और पिछले कुछ दिनों में मुझे बस प्यार की कुछ बूंदें ही नसीब हुई हैं! अब आप ही बताओ आपके डर को भागने के लिए ये उल-जुलूल हरकतें ना करूँ तो क्या करूँ!
संगीता रोने लगी और उन्हें रोता हुआ देख मेरा दिल भी पसीज गया और मेरी आँखें भी छल-छाला उठीं पर फिर उन्होंने खुद को संभाला और बोली;
संगीता: आप....आप सही कह रहे हो....मैं घबराई हुई हूँ पर ......मैं इतनी स्वार्थी नहीं की सिर्फ अपने डर की वजह से आपको और बच्चों को माँ-पिताजी से दूर कर दूँ| पिछले कुछ दिनों में मैंने आपको बहुत दुःख पहुँचाया है| आपको बहुत तड़पाया है........ पर I PROMISE मैं अब बिलकुल नहीं डरूँगी और ख़ास कर अब जब आपने पंचायत में सारी बात साफ़ कर दी है| Please मुझे और बच्चों को माँ-पिताजी से दूर मत करो!
वो अब भी रो रही थीं और माँ उन्हें अपने सीनेसे लगा के चुप करने लगीं|
माँ: बहु तुझे नहीं जाना तो मत जा कोई जबरदस्ती नहीं कर रहा तेरे साथ! ये तो बस तुझे इस तरह नहीं देख सकता इसलिए ये इतना सब कुछ कर रहा है| तुझे एक काँटा भी चुभ जाता है तो ये तड़प उठता है तो तुझे इस तरह डरा हुआ कैसे देख सकता है| ये सब मानु सिर्फ तेरे और तेरे होने वाले बच्चे के लिए कर रहा है|
मैं: Okay ! हम कहीं नहीं जा रहे|
नमस्ते दोस्तों
आज बहुत समय बाद मैं आप सब से जुड़ रही हूँ| बहुत कुछ है जो मैं आप सब से साँझा करना चाहती हूँ| इन कुछ दिनों में बहुत कुछ हुआ...मेरे पिताजी की मृत्यु से ले के मेरे बड़े भाई साहब के अचानक प्रकट होने तक!
पिताजी की मृत्यु की खबर इन्हें (मेरे पति) को सबसे पहले मिली| माँ ने उन्हें फोन करके हिदायत दी की वे मुझे लेके गाँव ना आएं| उसका कारन भी उन्होंने स्पष्ट बताया की गर्भवती स्त्रियाँ और वो जिनकी नई-नई शादी होती हैं उन्हें ऐसे दुयखद प्रयोजनों से दूर रखा जाता है| इस "वाहियात" कारण को ना तो मैं ओर ना ही ये मानते हैं| हालाँकि मेरे सास-ससुर ने भी इन्हें रोक पर सब के खिलाफ जाते हुए इन्होने मुझे सारी बात बताई| एक पुत्री का पिता के प्रति जो लगाव जो प्यार होता है उसे आंकने नामुमकिन है| जब मुझे ये खबर इन्होने सुनाई तो मेरा रो-रो कर बुरा हाल था| मेरे कुछ कहने से पहले ही इन्होने मुझे कहा की; "सामान तैयार है, tickets बुक हैं हम अभी निकल रहे हैं|" एक पल के लिए मैं हैरान थी की इन्होने ये सब कैसे? हम घर से सीधा हवाईअड्डे पहुँचे और खचा-खच भरे हवाई जहाज से लखनऊ पहुँचे| सासु माँ और ससुर जी की टिकट नहीं हो पाई थी इसलिए वो और बच्चे रात की गाडी से आनेवाले थे| हवाई अड्डे से टैक्सी बुक की जिसने दो घंटे में हमें घर पहुँचाया| मुझे वहां देख माँ हैरान थी और दौड़ी-दौड़ी आई और मुझे अपने गले लगाया| हम बहुत रोये...बहुत ज्यादा... इतने में अनिल आया और वो आके इनके गले लगा और रोने लगा| इन्होने उसे ढांढस बंधाया और हमने अंदर प्रवेश किया और हमें वहाँ देख के एक भी व्यक्ति खुश नहीं हुआ... मेरी अपनी बहनें ..उन्हें तो मुझे देख के जैसे सांप ही सूँघ गया था! किसी ने हमसे बात नहीं की...यहाँ तक की चरण काका जो मेरे पिताजी के अच्छे दोस्त थे, उन्होंने तक हमसे कोई बात नहीं की| अनिल ने आगे बढ़ के पिताजी के मुख के अंतिम दर्शन कराये| पिताजी को देख मुझसे रुका नहीं गया और मैं जैसे तैसे उनके मृत शरीर के पास बैठ गई और बिलख-बिलख के रोने लगी| मुझे बचपन की वो सभी यादें अपनी आँखों के सामने दिखाई देने लगी...मेरा बचपन... वो पिताजी का हँसता हुआ चेहरा.... उनके चेहरे की ख़ुशी जो मेरी शादी पे थी...ये सब.... इन्होने मुझे किसी तरह संभाला| कुछ दिनों से उनकी तबियत नासाज़ थी.... मैं नसे मिलने आना चाहती थी अरन्तु पिताजी ने मुझे अपनी कसम से बाँध अखा था की आने वाले बच्चे को किसी प्रकार का कष्ट ना हो इसलिए तू ज्यादा भाग दौड़ी ना कर| शाम ढले उनकी तबियत ज्यादा खराब हो गई और डॉक्टर को बुलवाया गया| उसने "ड्रिप" चढ़ाया परन्तु आधी रात के समय पिताजी का दिल बेचैन होने लगा...शायद उन्हें आभास हो गया था| उन्होंने माँ से बात की....और अपनी अधूरी इच्छा प्रकट की…माँ उन्हें ढांढस बन्धात् रही...किसी तरह पिताजी सो गए| जो व्यक्ति रोज सुबह चार बजे उठ जाता था वो जब छः बजे तक नहीं उठा तो माँ को चिंता हुई और वो हाल खबर पूछने आईं तो उन्हें पिताजी का शरीर ठंडा मिला| माँ पर उस समय क्या बीती होगी ये मैं सोच भी नहीं सकती| सबसे पहला फोन उन्होंने इन्हें (मेरे पति) को किया और उसके बाद अनिल को|
हमें लगा की शायद कोई और भी आनेवाला है पर वहाँ तो केवल इनका (मेरे पति) का इन्तेजार किया जा रहा था| माँ ने इनका हाथ अपने हाथों मैं लिया और कहा; "बेटा इनकी (पिताजी) की आखरी इच्छा यही थी की उनकी चिता को अग्नि तुम दो|" इन्होने कोई सवाल नहीं किया बस हाँ में सर हिलाया और जब मैंने इनकी आँखों में झाँका तो मुझे इनकी आँखों में बस अश्रु ही दिखे| जब शव को कन्धा देने की बारी आई तो मुझे उस भीड़ में एक जाना-पहचाना चेहरा दिखाई दिया| ये मेरे बड़े भाई साहब थे जिन्हें मैंने कई सालों से नहीं देखा था| उनकी याद ेरे मन में बस उसी दिन की थी जिस दिन उन्होंने घर छोड़ा था| हाँ नींद में कई बार माँ उनका नाम बड़बड़ाया करती थी... बस सिर्फ उनका नाम ही मेरे मन में था और उनके प्रति मेरा स्नेह ख़त्म हो चूका था| जब उन्हें मैंने आज देखा तो एक बार को मन किया की जाके उन्हें अर्थी से दूर खीच लूँ और वापस जाने को कहूँ पर अब मुझ में जरा भी शक्ति नहीं थी| इसलिए उनके जाने के कुछ क्षण बाद ही मैं बेहोश हो गई उसके बाद जब मुझे होश आया तो मेरे सिरहाने मेरे पति बैठे थे और मेरे सर पर हाथ फेर रहे थे| जब मैं उठ के बैठी तो इनके मुंह से निकला; "Sorry"| किस लिए सॉरी बोला ये पूछने की मुझे जर्रूरत नहीं पड़ी क्योंकि इन्होने खुद ही सच बोल दिया| दरअसल काफी साल पहले जब मन किशोरावस्था में थी तब एक दुखद घटना के कारन मेरे बड़े भाईसाहब ने घर-बार छोड़ दिया था| उस दिन के बाद पिताजी ने कभी उनका नाम तक अपनी जुबान पर नहीं आने दिया| मैं भी उन्हें लघभग भूल ही चुकी थी| और आज जब माँ ने कहा के मुखाग्नि ये (मेरे पति) देंगे तो इन्होने उस समय तो कुछ नहीं कहा परन्तु शमशान पहुँच कर इन्होने मुख अग्नि देते समय सबसे पहला हाथ बड़े भाईसाहब और उसके बाद अनिल का हाथ लगवाया और अंत में अपने हाथ से स्वयं मुखाग्नि दी| ये सुनने के बाद मैं कुछ नहीं बोली... मेरे पास शब्द ही नहीं थे की क्या कहूँ? इन्होने जो किया वो सही किया पर मन में एक सवाल था की सब कुछ जानते हुए भी क्या इन्हें बड़े भाई साहब से मेरी तरह घृणा नहीं? मेरे इस सवाल का जवाब इन्होने कुछ इस तर दिया; "उस दिन जो ही हुआ उसमें सारसर गलती बड़े भाई साहब की थी| घर छोड़ने के बाद उनपर क्या बीती ये किसी ने जानने की कोशिश तक नहीं की? आज जब अनिल ने मुझे उनसे मिलवाया तो शमशान जाने के रास्ते भर मैं उनसे ये सब पूछ बैठा| उन्हें अपनी गलती का पछतावा है और आजीवन रहेगा| पिता की मृत्यु के बाद अदा भाई बाप सामान होता है, और उसी का हक़ होता है की वो पिता को मुखाग्नि दे परन्तु जब माँ ने मुझे बताया की उनकी आखरी इच्छा ये थी की मैं उन्हें मुखाग्नि दूँ तो मैं उनकी इच्छा के विरुद्ध नहीं जा सकता था| परन्तु सब के सामने यदि मैं आगे बढ़ के मुखाग्नि देता तो ये गात होता..इसलिए मैंने पंडित जी के हाथों से अग्नि को स्वीकार नहीं किया और बड़े भाईसाहब को बुलाके उनके हाथों में पवित्र अग्नि को थमाया उसके पश्चात अनिल को हाथ लगाने को कहा और अंत में मैंने अनिल से पवित्र अग्नि को ले पिताजी को मुखाग्नि दी| मुझे नहीं पता की मैंने किसी रीति-रिवाज को तोडा है परन्तु जो मेरे मन को ठीक लगा मैंने वो किया| यदि आज पिताजी जिन्दा ओते तो भाईसाहब की सारी बात सुनके उन्हें माफ़ कर देते ..... खेर... मैंने पिताजी की अधूरी इच्छा पूरी की और उनके "तीनों पुत्रों" के हाथों उन्हें अग्नि भी नसीब हुई| अगर मैं गलत हूँ तो ईश्वर मुझे अवश्य दण्डित करेगा, पर कम से कम मेरी अंतर-आत्मा मुझे कभी झिंझोड़ेगी नहीं की मैंने पिताजी के बड़े बेटे के होते हुए उन्हें मुखाग्नि दी|"
आप ने कुछ भी गलत नहीं किया...हाँ अगर मैं आपकी जगह होती तो मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती थी...शायद मेरी बुद्धि इतनी विकसित नहीं हुई| पर आपने जो किया उसपर मुझे गर्व है| पिताजी को इससे अच्छी श्रद्धांजलि नहीं दी जा सकती थी|
हमारी बातें माँ ने सुन ली थी और वो बस आके इनके गले लग गईं और बोलीं; "जानती है बेटी, इन्ही खूबियों के कारन तेरे पिताजी ने मानु को कभी दामाद नहीं बल्कि अपना बेटा ही समझा था| इसने कई बार बिना कहे ही हमारे परिवार की मुश्किलों के समय में हमेशा आगे बढ़ के साथ दिया है| पर मुझे अफ़सोस इस बात जा है की मैं मानु को वो मान-सम्मान नहीं दिल सकती जो उसके लायक है|"
"माँ...मेरे लिए इतना ही काफी है की पिताजी ने मुझे इस काबिल समझा...इतना यार दिया..अनिल मेरे भाई जैसा ही है और आप एरी माँ जैसी..कभी लगा ही नहीं की आप लोग अलग हो| रही मान-सम्मान की बात तो यहाँ के लोगों की सोच ही इतनी घटिया है| हाँ मैं आसे क्षमा चाहता हूँ की मैंने आज जो किया वो........"
"बेटा तूने कुछ गलत नहीं किया.... बिलकुल सही किया| अब तुम दोनों बाहर चलो समधी जी, समधन जी और बच्चे आये हैं|"
जब हम बहार आये तो मेरा मन बच्चों को देख के प्रफुलित हो गया और मैंने उन्हें गले लगाने को बुलाया तो वो दौड़े-दौड़े आये और........ इनके गले लग गए| मैं हैरान देखने लगी और वहां खड़े अनिल, माँ, ससुर जी और सासु जी समेत सब हँसने लगे| चलो भगवन की यही लीला थी की सभी लोग थोड़ा मुस्कुराये तो सही| माँ बोली; "देख ले...तेरे बच्चे तुझसे ज्यादा मानु बेटे को प्यार करते हैं|" मैं बस मुस्कुरा के रह गई, क्योंकि जानती थी की बच्चे सच में मुझसे ज्यादा इनसे प्यार करते हैं और मुझे इस बात का फक्र है! नेहा जो की इनका खून नहीं, उसे ये आयुष से कहीं ज्यादा प्यार करते हैं और वो भी इन्हें इस कदर प्यार करती है की बिना इनके उसे रात को नींद नहीं आती| जब कभी इन्हें काम के कारन रात को बाहर रूकना पड़ता है मुझे नेहा की बात इनसे फोन पे करवानी पड़ती है, तब ये उनसे कहानी सुनेगी और तभी सोयेगी| केवल इनके हॉस्पिटल में रहने के दौरान ही ससुर जी इसे संभाला करते थे| आज चार दिन होने आये थे पर मेरी दोनों बहनें जानकी और शगुन, मुझसे बात नहीं कर रही थी और मैं अपने बड़े भाई साहब से बात नहीं कर रही थी| मेरा मन अब भी उन्हें माफ़ नहीं कर पाया था हाँ बस उनके प्रति मेरी घृणा मेरे इनके कारण खत्म हो चुकी थी|
शेष कल लिखूंगी...