8 years ago#31
अब तक आपने पढ़ा:
मुझे कुछ ऐसा सोचना था की मैं संगीता को इस डर के जंगल में से निकाल लूँ| इसका हल जो मुझे नजर आया वो ये था......................................................................
7 जनवरी को मैं मुंबई निकल आया ये बहाना करा के की मुझे कॉन्ट्रैक्ट देने के लिए बुलाया गया है| संगीता ने आपको बताया होगा की मैं मुंबई गया हूँ ...तो ये तब की बात है! असल में मेरा एक दोस्त मुंबई में एक MNC में JOB करता था और वहाँ उसकी अच्छी जान पहचान थी| मैंने उससे कहा की वो मुझे India से बाहर जॉब दिलवा दे ताकि मैं संगीता और बच्चे बाहर चले जाएं| जानता हूँ अपने माता-पिता से दूर होने में दर्द बहुत होता पर कम से कम कुछ साल बाद जब आयुष कुछ बड़ा हो जाता तो मैं India वापस आ जाता| मेरे पास एक और रास्ता था की मैं पिताजी से कहूँ की वो अपना सारा business बंद कर दें और हम बाहर settle हो जाएं| पर माँ और पिताजी इसके लिए कभी राजी नहीं होते| उनके लिए नए देश में जाके adjust करना मुश्किल था| इसलिए मैंने ये Job वाला आईडिया choose किया| मेरे दोस्त ने मुझे यकीन दिलाया की वो मुझे Dubai में पोस्टिंग दिल देगा| पर कुछ कागजी करवाई के लिए उसे मेरा और संगीता का पासपोर्ट चाहिए और साथ ही साथ बच्चों का भी| मेरा पासपोर्ट तो तैयार था पर ना तो संगीता का पासपोर्ट था और न ही बच्चों का! तो मैंने उससे passport बनाने के लिए समय माँगा और उसने मुझे समय दे भी दिया| मैं दिल्ली वापस आ गया| अब समय था बात खोलने का...........................................
मैं अपना लैपटॉप ले के हॉल में बैठा था और online Passport aaplication का page खोल रखा था| मैंने माँ और पिताजी को और साथ-साथ संगीता को भी बिठाया| बच्चे स्कूल गए हुए थे और मैं उनके स्कूल जाके Principal, Class Teacher, Watchman सब से बात कह के आया था की मेरे या मेरी wife के आलावा वो किसी के साथ भी बच्चों को ना जाने दें| अगर मेरी जगह मेरे पिताजी या माँ आते हैं तो पहले मुझे call करें और अगर मैं हाँ कहूँ तब ही बच्चे को उनके साथ जाने दें| मैंने सारी बात घरवालों को बता दी....पंचायत से ले के दुबई जाने तक की सारी बात! सबने बात बड़े इत्मीनान से सुनी और मैं अबसे पहले पिताजी के मन की बात जानना चाहता था तो मेरी नजर उनपे थी;
पिताजी: बेटा...तू ने मुझे बताया क्यों नहीं की गाँव में पंचायत रखी गई है? मुझे जाना चाहिए था!
मैं: पिताजी मेरी वजह से आपको पहले ही बहुत तकलीफें उठानी पड़ रही हैं और वैसे भी कारन तो मैं था ना तो मुझे ही जाना चाहिए था|
पिताजी: तू सच में बड़ा हो गया है...अपनी जिम्मेदारियाँ उठाने लगा है| खेर बेटा बहु को खुश रखना जर्रुरी है, उसके दिल से डर खत्म करना बहुत जर्रुरी है और मैं या तेरी माँ तुझे नहीं रोकते बल्कि अच्छा है की तू settle हो जाये|
माँ: हाँ बेटा! तुझे इस परिवार को सम्भलना होगा! ख़ास कर बहु को और बच्चों को!
मैं: जी!
संगीता: मैं कुछ बोलूँ?
माँ: हाँ-हाँ बहु बोल!
संगीता: आपने (मैं) ये सब सोच भी कैसे लिया की मैं माँ-पिताजी से अलग रहने को तैयार हो जाऊँगी? और शहर नहीं जिला नहीं बल्कि अलग देश में जा के!
मैं: क्योंकि मैं आपको इस तरह डरा हुआ नहीं देख सकता| 24 घंटे आपको एक ही डर सता रहा है की आयुष चला जायेगा? इन कुछ दिनों में मैंने आपको जितना तड़पते हुए देखा है उसे मैं बयान नहीं कर सकता| इस डर ने आके मुँह से हंसी तक छीन ली, घर से सारी खुशियाँ छीन ली| अरे आपके मुँह से चंद प्यार के मीठे बोल सुनने को तरस गया था मैं! जिस संगीता से मैं प्यार करता था वो तो कहीं चली गई और जो बच गई वो मेरे लिए अपने प्यार को बाहर आने ही नहीं देती| ठण्ड में कंपकंपाते हुए देखते हो पर आगे बढ़ के मुझे गले नहीं लगा सकते और पिछले कुछ दिनों में मुझे बस प्यार की कुछ बूंदें ही नसीब हुई हैं! अब आप ही बताओ आपके डर को भागने के लिए ये उल-जुलूल हरकतें ना करूँ तो क्या करूँ!
संगीता रोने लगी और उन्हें रोता हुआ देख मेरा दिल भी पसीज गया और मेरी आँखें भी छल-छाला उठीं पर फिर उन्होंने खुद को संभाला और बोली;
संगीता: आप....आप सही कह रहे हो....मैं घबराई हुई हूँ पर ......मैं इतनी स्वार्थी नहीं की सिर्फ अपने डर की वजह से आपको और बच्चों को माँ-पिताजी से दूर कर दूँ| पिछले कुछ दिनों में मैंने आपको बहुत दुःख पहुँचाया है| आपको बहुत तड़पाया है........ पर I PROMISE मैं अब बिलकुल नहीं डरूँगी और ख़ास कर अब जब आपने पंचायत में सारी बात साफ़ कर दी है| Please मुझे और बच्चों को माँ-पिताजी से दूर मत करो!
वो अब भी रो रही थीं और माँ उन्हें अपने सीनेसे लगा के चुप करने लगीं|
माँ: बहु तुझे नहीं जाना तो मत जा कोई जबरदस्ती नहीं कर रहा तेरे साथ! ये तो बस तुझे इस तरह नहीं देख सकता इसलिए ये इतना सब कुछ कर रहा है| तुझे एक काँटा भी चुभ जाता है तो ये तड़प उठता है तो तुझे इस तरह डरा हुआ कैसे देख सकता है| ये सब मानु सिर्फ तेरे और तेरे होने वाले बच्चे के लिए कर रहा है|
मैं: Okay ! हम कहीं नहीं जा रहे|
बस इतना कह के मैं अपने कमरे में लौट आया और टेबल पे लैपटॉप रखा और कुर्सी का सहारा ले के खड़ा हो गया| दो मिनट तक सोचता रहा और फिर संगीता कमरे में आ गई और बोली;
संगीता: मैं जानती हूँ आप मुझसे कितना प्यार करते हो पर आपने ये सोच भी कैसे लिया की मैं अपने परिवार से अलग रहके खुश रहूँगी? मैं ये कतई नहीं चाहती की मेरे करा आप माँ-पिताजी से दूर हों और बच्चे अपने दादा-दादी के प्यार से वंचित हों!
आज उनकी बातों में थोड़ी से बेरुखी नजर आई और मैं भी खुद को रोक न सका और उनपर ही बरस पड़ा;
मैं: जानना चाहती हो न की क्यों मैं तुम्हें सब से दूर ले जाना चाहता था? तो सुनो .... मैं बहुत खुदगर्ज़ इंसान हूँ! इतना खुदगर्ज़ की मुझे सिर्फ और सिर्फ तुम्हे ख़ुशी चाहिए और कुछ नहीं| इसके लिए मुझे जो करना पड़ेगा मैं करूँगा, अब मैं और तुम्हें इस क़दर घुटता हुआ नहीं देख सकता! तुम्हें समझा-समझा की थक गया की कम से कम हमारे आनेवाले बच्चे के लिए ही इस बात को भूलना शुरू करो पर नहीं..तुम कोशिश ही नहीं करना चाहती! तुम्हें हर पल डर रहता है की वो फिर से आएगा...! तो अगर हम इस देश में ही नहीं रहेंगे तो वो कैसे हमारे बच्चों को हम से छीन सकता है? मैंने ऐसे ही इतनी बड़ी बात नहीं सोच ली थी... माँ-पिताजी से इस बात पे चर्चा की और तब ये फैसला लिया| मैं तो चाहता था की वो भी हमारे साथ चलें..मैं यहाँ सब कुछ बेच दूँगा ..घर..गाडी..बिज़नेस..फ्लैट..सब कुछ और हम बाहर ही settle हो जाएंगी पर अब उनमें वो शक्ति नहीं की वो गैर मुल्क में जेक उसके तौर-तरीके अपना सकें| इसके लिए उन्होंने इतना बड़ा त्याग किया.... ताकि हमारे आने वाली संतान को अच्छा भविष्य मिले| संगीता: मुझे थोड़ा समय लगेगा....
मैं: और कितना समय? कम से कम मेरे लिए ना सही तो बच्चों के लिए ही मुस्कुराओ..झूठ-मुठ का ही सही! अगर आपके पास मुस्कुराने की वजह नहीं है तो मैं आपको ऐसी 4 वजह दे सकता हूँ;
1. पहली वजह पिताजी: जिन्होंने तुम्हारा कन्यादान किया! क्या वो नहीं चाहेंगे की उनकी बेटी सामान बहु खुश रहे?
2. दूसरी वजह माँ: तुम बहु हो उनकी और पेट से हो...तुम्हारा इस कदर लटका हुआ मुंह देख के क्या गुजरती होगी उन पर?
3. आयुष: उस बच्चे ने इस उम्र में वो सब देखा जो उसे नहीं देखना चाहिए था| पिछले कई दिनों से मैं उसका और नेहा का मन बहलाने में लगा हूँ पर अपनी माँ के चेहरे पे उदासी देख के कौन सा बच्चा खुश होता है?
4. नेहा: हमारे घर की जान..जिसने इस कठिन समय में आयुष को किस तरह संभाला है उसे कहने को मेरे पास लव्ज कम पड़ते हैं|
अब इससे ज्यादा और तुम्हें क्या चाहिए?
संगीता ने कुछ जवाब नहीं दिया और चुप-चाप वहाँ से चली गई|
8 years ago#32
आज जिंदगी में पहली बार उनहोने मेरे साथ ऐसा किया और मेरे अंदर गुस्सा फूटने लगा| गुस्सा तो इस कदर आया की जाके उनसे कठोरता पूर्वक जवाब माँगू पर कदम आगे ही नहीं बढे! पर गुस्सा कहीं तो निकलना था..तो मैं जल्दी से नहाया और साइट पे काम देखने के बहाने से बिना कुछ खाय-पीये निकल गया| माँ-पिताजी ने बहुत रोक पर मैं नहीं माना और बहाना मार के निकल भागा, अब उस घर में उनका मायूस चेहरा नहीं देखा जा रहा था! काम में मन नहीं लग रहा था..बार-बार नजरें मोबाइल को देख रही थी की शायद उनका फोन आ जाए| पर कोई फोन नहीं आया आखिर कर मैंने फोन पे गाना लगा दिया; "भरी दुनिया में आखिर दिल को समझाने कहाँ जाएं..मोहब्बत हो गई जिनको वो दीवाने कहाँ जाएँ!" गाना सुनते-सुनते कुछ महसूस हुआ.. फिर मैंने सोचा की क्यों न संगीता से अपना दर्द लिखने को कहूँ| इससे वो दर्द जो उनके अंदर है वो शब्दों के रूप इन बाहर आएगा और उन्हें हल्का महसूस होगा| रात को घर पहुँचा तो सब खाना खा चुके थे...आयुष अपने दादा-दादी के पास सो चूका था| माँ की जोर जबरदस्ती के कारन संगीता ने खाना खा लिया था और नेहा...वो अब भी जाग रही थी और पढ़ रही थी और उसी ने दरवाजा खोला|
मैं: बेटा आप सोये नहीं?
नेहा: पापा कल टेस्ट है तो मैं पढ़ रही थी|
मैं: आपने खाना खाया?
नेहा: जी
मैं: और मम्मी ने?
नेहा: दादी ने जबरदस्ती खिलाया ही..ही..ही...ही...
मैंने उसके सर पे हाथ फेरा और उसे गोद में उठा के कमरे में आ गया| संगीता बेड पर बैठी आयुष की स्कूल ड्रेस में बटन टाँक रही थी| मुझे देख वो खड़ी हुई और बिना कुछ कहे किचन में चली गई| उनका व्यवहार अब भी बड़ा रुखा था और मुझसे ये बर्दाश्त करना बहुत मुश्किल था! मैं उन्हें कुछ कहना नहीं चाहता था इसलिए किसी तरह अपना गुस्सा पी गया और खाना खाने टेबल पे बैठ गया|
आम तौर पे जब मैं देर से आता था तो संगीता मेरे पास बैठ के खाना परोसती थी और जब तक मैं खा नहीं लेता था वो वहीँ बैठ के मुझसे बातें किया करती थी पर पिछले कछ दिनों से आईएस नहीं हो रहा था और मेरे मन में चन्दर के लिए गुस्सा बढ़ता जा रहा था! जब संगीता मुझे खाना परोस के जाने लगी तो मैंने उसे बस एक मिनट रुकने को कहा;
मैं: सुनो...
वो बिना कुछ कहे रूक गई;
मैं: I need to talk to you.
वो अब भी कुछ नहीं बोली बस चुप-चाप बैठ गई|
मैं: I need you to write how you felt that day.
वो हैरानी से मेरी तरफ देखने लगी!
मैं: I’m sure इससे आपका दर्द कम होगा ...
उन्होंने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया और उठ के चली गई| मुझे पता था की वो नहीं लिखने वाली और खाना खाने को दिल नहीं कर रहा था इलिये मैंने खाना ढक के फ्रिज में रख दिया और हाथ धो के कमरे में आ गया और देखा तो वो सो चुकी थी| नेहा कमरे में टेबल लैप जल के पढ़ रही थी|
मैं: बेटा रात के बारह बज रहे हैं ...ये कोई बोर्ड का exam नहीं की आप इतना लेट पढ़ो| चलो सो जाओ...
नेहा: जी पापा
नेहा ने बुक बंद की और दोनों बाप-बेटी लेट गए|
मैं: बेटा आप मेरा वेट कर रहे थे ना?
नेहा ने हाँ में सर हिलाया! मैं जानता था की वो मेरे बिना नहीं सोयेगी... रात भर नेहा के सर पे हाथ फेरते हुए निकली..एक सेकंड के लिए भी आँखें बंद नहीं हुई थी.... सुबह पाँच बजे मैं उठा और नेहा को सोता हुआ छोड़ के नहाने चला गया| बाहर आया तब तक संगीता उठ चुकी थी और अब भी उसके चेहरे पर वही गम के बादल छाय हुए थे|मुझे लगने लगा की मेरे कुछ कहने से बात और न बिगड़ जाए इसलिए मैं भी चुप रहा| सोचा की शायद कुछ समय बाद वो नार्मल हो जाए| अब किसी इंसान के पीछे आप लाठी ले के पड़ जाओ की तू हँस..तू हँस तो कुछ समय बाद वो भी बिदक जाता है! इसलिए मैं भी चुप रहने वाला खेल उनके साथ-साथ खेलने लगा|
8 years ago#33
बच्चों के स्कूल जाने के बाद सभी लोग डाइनिंग टेबल पे बैठे छाय पी रहे थे| कोई भी कुछ बोल नहीं रहा था | माँ और पिताजी हम दोनों के चेहरे अच्छे से पढ़ रहे थे और इसीलिए वो परेशान थे|माँ ने बात शुरू की;
माँ: तू रात को कब आया?
मैं: जी..करीब साढ़े ग्यारह बजे|
पिताजी: यार तू इतनी रात तक बाहर ना रहा कर, सब परेशान हो जाते हैं|
मैं: पिताजी काम ज्यादा है आजकल...deadline से अहले निपट जाए तो अच्छा है|
मेरी नजर अखबार में घुसी थी तो पिताजी ने मुझसे अखबार छीन लिया;
पिताजी: अब इसमें क्या तू नौकरी का इश्तेहार पढ़ रहा है?
दरअसल मैं उस समय jobs वाला page खोल के बैठा था और जैसे ही पिताजी न नौकरी की बात बोली तो संगीता को लगा की मैं फिर से इंडिया से बाहर की कोई job ढूंढ रहा हूँ|
मैं: नहीं पिताजी.....ये देखिये अखबार मैं टेंडर निकला है उसी की details पढ़ रहा था|
ये सुन के संगीता के दिल को राहत मिली|
पिताजी: क्या जर्रूरत है बेकार का पंगा लेने की?
मैं: Profitable Opportunity है|
माँ बीच में बोल पड़ी;
माँ: अब बस भी करो ये बिज़नेस की बातें| बहु तू ऐसा कर आज नाश्ते में पोहा बना इसे (मझे) बहुत पसंद है|
संगीता: जी माँ|
सच कहूँ तो जिस तरह का घर में माहोल था मेरा मन नहीं कर रहा था की मैं ठहरूँ| इसलिए मैं उठा और तैयार हो के बाहर आगया| पोहा लघभग बन ही चूका था और माँ ने जिद्द की कि मैं नाश्ता कर के जाऊं पर मेरा मन वहाँ रुकने को नहीं कर रहा था इसलिए मैंने अपने दूसरे नंबर से अपने पहले नंबर पे फ़ोन मिलाया ओ झूठ ही बात करते हुए घर से निकल गया| नजानेक्यों मुझे लगने लगा था की संगीता को मेरे वहाँ होने से कुछ अजीब लगता है..दुःख होता है...क्योंकि उन्होंने मुझसे आत करना बंद सा कर रखा था| करीब एक घंटे बाद पिताजी साइट पे पहुंचे और मुझे एक तरफ ले जाके मुझे समझाने लगे;
पिताजी: ये सब क्या चल रहा है? बहु ना हंसती है..न कुछ बोलती है| तुम दोनों में तो बात भी नहीं होती? तूने ऐसा क्या कह दिया बहु को?
मैं: जी कुछ नहीं|
पिताजी: तो? तू तो उसे बहुत प्यार करता था ना?
मैं: वो तो अब भी करता हूँ!
पिताजी: फिर? वो मायूस क्यों है? तू जानता है ना वो पेट से है?
मैं: जी... इसीलिए उसे बहुत समझाया...पर शायद वो समझना नहीं चाहती| अब भी उन बातों को दिल से लगा के बैठी है|
पिताजी: तू उससे आराम से बात कर...चाहे तो कुछ दिन के लिए तुम दोनों कहीं बाहर चले जाओ..बच्चों को हम संभाल लेंगे|
मैं: वो नहीं मानेगी|
पिताजी: वो सब मैं नहीं जानता अगर तू उसे कहीं बाहर नहीं ले के गया तो मैं और तेरी माँ तुझसे बात नहीं करेंगे!
मैं: पिताजी... आप लोग उसे भी तो समझाओ| वो एक कदम बढ़ाएगी तो मैं दस बढ़ाऊँगा| कम से कम मुझसे ढंग से बात तो करे?
पिताजी: हम्म्म...हम उसे भी समझा रहे हैं ...पर तू अपनी अकड़ उसे मत दिखाइओ वरना.....
मैं: हम्म...
कमाल है यार.... माँ-बाप मेरे और मुझे ही "हूल" दी जा रही थी! Seriously यार... पर खेर शायद मैं ही गलत था!
पिताजी तो मुझे "हल" दे के चले गए और उनके जाने के करीब दो घंटे बाद मुझे एक मेल आया| ये मेल संगीता का था मैंने अटैचमेंट डाउनलोड किया तो पाया की उन्होंने अपने दर्द को शब्दों में बयान किया था...उन्होंने मेरी बात मानी !!! Like Seriously!!! मैं shocked था... एक पल के लिए तो मैं डर गया था की इन्होने कहीं मुझे "Divorce" का "Notice" तो नहीं भेज दिया! But Thank God वो तलाक का नोटिस नहीं था! मैंने उनके लिखे हर एक शब्द को पढ़ना शुरू किया...एक घंटा लगा और मैंने उसे सारा पढ़ डाला और उसे पढ़ने के बाद मेरा हाल बुरा था| मैंने उसे थोड़ा बहुत edit किया और फिर लैपटॉप बंद कर के मैं संतोष भैया को सब समझा के मैं साइट से निकल आया| गाडी भागा के मैं घर पहुँचा और रास्ते भर ये सोचता आया की आज मैं उन्हें इस दुःख और दर्द से बाहर निकाल के रहूँगा! दोपहर को मैं दनदनाता हुआ मैं घर पहुँचा ....पर इससे पहले मैं कुछ कह पाता मेरी नजर संगीता पे पड़ी और उसका उदास और मायूस चेहरा देख के सारी हिम्मत जवाब दे गई| सामने से आयुष बभागता हुआ आया और आके मेरे पाँव में लिपट गया र मैं उसे गोद में उठा के कमरे के अंदर आ गया| मैं उससे बात कर ही रहा था की संगीता गिलास में पानी ले के आ गई| मने पानी का गिलास उठाया और थोड़ी बहुत हिम्मत जुटा के बोला;
मैं: (एक गहरी सांस ली) मैंने पढ़ा... आप.... क्यों इतना दर्द समेटे हुए हो? क्या आपके दिल में मेरे लिए जरा सी भी जगह नहीं?
संगीता के होंट काँप रहे थे और मुझे लगा की वो कुछ कहना चाहती है पर खुद को रोक रही है... उसे डर था की अगर वो कुछ कहेगी तो शायद टूट जाये| इसलिए मैंने उन्हें और जोर नहीं दिया और बाहर बैठक में आके बैठ गया| पिछले कुछ दिनों से मैंने अन्न के नाम पे सिर्फ चाय पी-पी के गुजारा कर रहा था| मेरे पिताजी को High Blood Pressure और माँ को Low Blood Pressure की प्रॉब्लम है और ये अनुवांशिक बिमारी मुझे भी मिली| मुझे High Blood Pressure की प्रॉब्लम रहती थी और इसका पता मुझे तब चला जब मैं संगीता से पहली बार दूर हुआ था! बचपन से मुझे दवाइयाँ खाने की आदत नहीं थी| सर्दी खांसी में तो मैंने कभी दवाई खाई ही नहीं...माँ कहती थी की तूने सात साल माँ का दूध पिया है, इसीलिए तेरा शरीर में बिमारियों के प्रति इतनी प्रतिरोधकता है| पर B.P. जैसी बिमारी बिना दवाइयों के कहाँ ठीक होती है| हमारी फैमिली डॉक्टर, सरिता जी ने मुझे सुबह शाम सेर करने और भी काफी हिदायतें दे राखी थी और ऊपर से डरा रखा था की अगर दवाइयाँ नहीं लोगे तो ये बीमारी out of control हो जाएगी और तुम मर भी सकते हो! सिर्फ अपनी माँ के लिए जिन्दा रहने की ख्वाइश थी जिसके कारन मैंने उनकी बात मानी...फिर धीरे-धीरे संगीता मेरी जिंदगी में पुनः वापस आ गई और मेरे पास जिन्दा रहने के कई कारन हो गए|शुरू-शुरू में तो मैं दवाइयाँ समय से ले लिया करता था..पर फिर धीरे-धीरे मैंने दवाई खाना छोड़ दिया और व्यायाम शुरू कर दिया| माँ-पिताजी ने बहुत डाँटा की तू समय पे दवाई लिया कर पर मैंने उन्हें साफ़ कह दिया की जब मुझे Stress होगा, tension होगी मैं दवाई ले लूंगा अन्यथा मुझे दवाई की जर्रूरत नहीं| तो ऐसा ही चलता रहता था| exams के समय मैं दवाई समय पे लेता था पर exams ना हों तो मुझे दवाई लेने की जर्रूरत नहीं पड़ती थी| (सुनने में मनमानी लगती ही पर क्या करें..थोड़ी बहुत मनमानी तो सब करते हैं|)
अब चूँकि पिछले काफी दिनों से गुस्से में खाना बंद था इसलिए मैंने दवाइयाँ भी लेना बंद कर रखा था|
मैं सोफे पे बैठा था और आँखें बंद किये हुए उन शब्दों में छुपे दर्द को महसूस कर रहा था| अनदर ही अंदर ये चुभन मेरी जान ले रही थी और उस दिन का हर एक दृश्य मेरे सामने आने लगा| खून उबलने लगा... इस कदर गुस्सा बढ़ गया की मैं बड़े जोश से उठ खड़ा हुआ पर अगले ही पल मुझे एक जोरदार चक्कर आया और मैं जमीन पे गिर गया और उसके आगे मुझे होश नहीं की क्या हुआ|
8 years ago#34
मैं सोफे पे बैठा था और आँखें बंद किये हुए उन शब्दों में छुपे दर्द को महसूस कर रहा था| अनदर ही अंदर ये चुभन मेरी जान ले रही थी और उस दिन का हर एक दृश्य मेरे सामने आने लगा| खून उबलने लगा... इस कदर गुस्सा बढ़ गया की मैं बड़े जोश से उठ खड़ा हुआ पर अगले ही पल मुझे एक जोरदार चक्कर आया और मैं जमीन पे गिर गया और उसके आगे मुझे होश नहीं की क्या हुआ|
जैसे ही ये गिरे मैं भागती हुई आई और इन्हें उठाया और माँ को पुकारा; "माँ..माँ..जल्दी आइए!!!" माँ उस समय अंदर के कमरे में थी| पिताजी बाहर किसी काम से गए थे| माँ ने जब इन्हें जमीन पे गिरा हुआ पाया तो वो भी घबरा गईं और मुझसे पूछने लगीं; "बहु...मानु को क्या हुआ बहु?" मैं खुद नहीं जानती थी की इन्हें क्या हुआ है? मैं बहुत ज्यादा घबरा रही थी और इनका गाल थप-थापा रही थी और माँ इनके हाथ घिसने लगी थी| इतने में नेहा भी आ गई; "नेहा जल्दी डॉक्टर सरिता को फ़ोन मिला और जल्दी यहाँ बुला, बोल पापा बेहोश हो गए हैं|" नेहा ने तुरंत फ़ोन मिलाया पर उसके चेहरे को देख के आगा की बात कुछ और है और ये देख मेरे दिल की धड़कनें बेकाबू हो गईं!
"माँ...डॉक्टर सरिता ने कहा की वो इस वक़्त क्लिनिक में नहीं हैं| उन्होंने कहा की हम पापा को हॉस्पिटल ले जाएं|"
मेरे कुछ कहने से पहले ही माँ बोल पड़ीं; " बेटा जल्दी से अपने दादा जी को फ़ोन मिला वो एम्बुलेंस ले के आ जायेंगे|"
नेहा ने ठीक वैसा ही किया और करीब पंद्रह मिनट में एम्बुलेंस आ गई, पिताजी नॉएडा में थे इसलिए अगर हम उनके आने का इन्तेजार करते तो काफी देर हो जाती, इसलिए उन्होंने फ़ोन कर के बताया की हम हॉस्पिटल पहुंचें और साथ ही साथ उन्होंने कुछ पड़ोसियों को भी फ़ोन मिलाया ताकि वो हमारी मदद करें| ..(दरअसल ये एक प्राइवेट एम्बुलेंस थी) सब ने मिलके इन्हें (मेरे पति) स्ट्रेचर पे लिटाया और चूँकि हमारा घर गली में पड़ता है तो हमें एम्बुलेंस तक इन्हें ले जाना पड़ा| मैं, माँ, आयुष और नेहा एम्बुलेंस में बैठ गए| सारे रास्ते मैं रोये जा रही थी और माँ मुझे ढांढस बंधा रही थी यह कह की; "बेटी कुछ नहीं होगा मानु को| तू चिंता मत कर ...सब ठीक हो जायेगा|" अगले बीस मिनट में हम हॉस्पिटल पहुँच गए| डॉक्टर सरिता ने हॉस्पिटल में अपने जानने वाले को पहले ही फ़ोन कर दिया और वो हमें गेट पर ही मिल गईं|सरिता जी ने इनकी केस हिस्ट्री डॉक्टर रूचि को पहले ही बता दी थी इसलिए तुरंत इन्हें admit कर के उपचार शुरू हो गया| करीब-करीब बीस मिनट बाद डॉक्टर सरिता भी आ गईं और वो सीधा प्राइवेट वार्ड में चली गईं जहाँ हम बैठे थे| अगले आधे घंटे में पिताजी भी आ गए और फिर सरिता जी ने माँ- और पिताजी को अपने साथ केबिन में बुलाया और मुझे वहीँ बैठे रहने को कहा| मैं स्टूल ले के इनके पास बैठ गई इस उम्मीद में की ये अब आँखें खोलेंगे ...अब आँखें खोलेंगे! दस मिनट बाद माँ अंदर आईं और मुझसे पूछने लगी; "बेटा...मानु ने दवाई खाई थी?" मेरे पास इस बात का कोई जवाब नहीं था, इसलिए मैं अवाक सी उन्हें देख रही थी और फिर मेरे मुँह से निकला; "पता नहीं माँ..." मेरा जवाब सुन के माँ को ये एहसास तो हो गया होगा की हमारे बीच में कुछ सही नहीं चल रहा था...पर उन्हें ये नहीं पता होगा की ये सब मेरी गलती थी! माँ पलट की जाने लगी तो अचानक से नेहा बोल पड़ी; दादीजी... पापा ने दवाई नहीं ली| मैंने कल रात को उन्हें याद दिलाया था पर उन्होंने कहा की मैं ठीक हूँ|" माँ ने उसके सर पे हाथ फेरा और वापस सरिता जी के केबिन में चली गईं| हैरानी की बात थी की नेहा को मुझसे ज्यादा उनकी फ़िक्र थी...शायद इलिये की ये उसे ज्यादा प्यार करते थे...मुझसे भी ज्यादा!
कुछ देर बाद माँ, पिताजी और सरिता जी कमरे में आये पर अभी तक मुझे इनकी तबियत के बारे में कुछ नहीं बताया गया| सब मुझसे छुपा रहे थे ... आखिर मैंने ही डॉक्टर सरिता से पूछा; "सरिता जी आखिर इन्हें हुआ क्या है?" पर उनके कुछ कहने से पहले ही पिताजी बोल पड़े; "बेटा मानु को थोड़ी देर में होश आ जायेगा, तू चिंता मत कर|" वो मेरे पिता सामान थे इसलिए मैं कुछ नहीं बोली और ये सोच के खुद को संतुष्ट कर लिया की ये पूरी तरह ठीक हो जाएं ...बस यही काफी है मेरे लिए|
चूँकि हमें एक प्राइवेट रूम allot किया गया था तो पिताजी को बाकी formalities पूरी करने के लिए जाना पड़ा| पंद्रह मिनट बाद पिताजी वापस आये और बोले; "बेटा ...मेरा डेबिट कार्ड का बैलेंस खत्म हो गया है और पैसे अब भी कम पड़ रहे हैं| तेरे पास तेरा डेबिट कार्ड है?" जल्दी-जल्दी में मैं अपना पर्स नहीं लाइ थी; "पिताजी वो मेरे पर्स में है.." पिताजी कुछ सोचने लगे और फिर बोले; "ऐसा करते हैं की हम सब वापस चलते हैं और पैसे ले के मैं वापस आ जाऊँगा| तुम दोनों शाम को आ जाना?" पर मेरा मन वहां से हिलने को नहीं कर रहा था इसलिए मैंने कहा; "पिताजी मैं यहीं रूकती हूँ आप बच्चों को और माँ को ले जाइए|" पिताजी कुछ सोचने लगे और आखिर में उन्होंने बच्चों ओ साथ चलने को कहा पर बहोन ने भी जाने से मन कर दिए और हार कर पिताजी को और माँ को जाना पड़ा| माँ भी जाना नहीं चाहती थी पर चूँकि ज्यादा देर बैठने से उनके पाँव में सूजन बढ़ने लगती है तो मेरे कहने पे माँ चली गईं| उन दिनों घर में पैसों को लेके कुछ परेशानी चल रही थी| पिताजी ने हॉस्पिटल में पैसे जमा करा दिए थे पर उन्हें आगे के बारे में भी सोचना था| पैसे जमा कर के पिताजी वापस आये और मुझे बोले; "बेटा...मैंने पैसे जमा करा दिए हैं| तुम्हें तो पता ही है की हमारी पेमेंट अभी फंसीहुई है| मैं अभी कुछ लोगों से मिल के आता हूँ शायद कोई पेमेंट कर दे! तो तुम और बच्चे यहीं रहो..और अगर डॉक्टर कुछ कहे तो मुझे फोन कर देना| मैं शाम तक तुम्हारी माँ के साथ आ जाऊँगा और तब तक मानु को भी होश आ जायेगा|" मैंने हाँ में सर हिलाया और पिताजी बच्चों को कह गए की अपने मम्मी-पापा का ध्यान रखना|
8 years ago#35
पिताजी के जाने के बाद हम तीनों बेसब्री से इन्तेजार करने लगे की अब इन्हें (मेरे पति को) होश आएगा..अब होश आएगा.. और इन्तेजार इन्तेजार करते-करते रात के नौ बज गए थे| घर के किसी भी सदस्य ने कुछ नहीं खाया था| मुझे अपनी चिंता नहीं थी..चिंता थी तो बच्चों की इसलिए मैंने नेहा को आवाज दे के अपने पास बुलाया; "नेहा..बेटा इधर आओ...आप और आयुष जा के कैंटीन से कुछ खा लो| आप दोनों ने दोपहर से कुछ नहीं खाया है|"
"माँ...आपने भी तो कुछ नहीं खाया..और पापा कहते थे की आपको सबसे ज्यादा जर्रूरत है| तो आप भी चलो हमारे साथ" नेहा बोली|
"बेटा ...मेरा मन नहीं है...आप दोनों खा लोगे तो मेरा पेट भी भर जायेगा|"
"फिर मैं भी नहीं खाऊँगा..." आयुष ने नाराज होते हुए कहा|
ये सुन के तो मुझे गुस्सा आ गया और मैंने आयुष को गुस्से से देखा तो वो सहम गया और जाके नेहा के पीछे छुप गया| नेहा ने मुझसे पैसे लिए जो पिताजी जाते समय मुझे दे गए थे और फिर आयुष का हाथ पकड़ा और बाहर जाने लगी ...मझे एहसास हुआ की नेहा अपने पापा पे गई है| वो खुद कुछ नहीं खायेगी पर आयुष को जर्रूर खिला देगी| इसलिए मैंने उसे आवाज दे के रोक; "नेहा....रुक..मैं भी चलती हूँ तुम दोनों का भरोसा नहीं...कुछ खाओगे नहीं और झूठ बोल दोगे|" मैं उन्हें कैंटीन ले आई और दो सैंडविच और फ्रूटी ले के उन्हें दी| दोनों एक दूसरे की शकल देखने लगे पर कुछ खा नहीं रहे थे; "एक दूसरे की शकल क्या देख रहे हो? जल्दी खाओ...पापा अकेले हैं वहाँ|" आयुष ने तो डर के मारे खाना शुरू किया पर नेहा अब भी वैसे ही खड़ी थी| वो कुनमुनाते हुए बोली; "मैं नहीं खाऊँगी..मुझे भूख नहीं|" और उसने प्लेट मेरी तरफ खिसका दी....मैं जानती थी की वो मेरी वजह से नहीं खा रही...अगर मैं खाती तो वो जर्रूर खा लेती पर मेरा तो दिमाग ख़राब था... मैं उसपे जोर से चिल्ला पड़ी; "नेहा...बहुत हो गया..चुप-चाप ये सैंडविच खा ले|" मेरे गुस्सा करने से उस बेचारी की आँखें भर आईं और आयुष..वो तो दर के मारे रोने लगा| आजक दोनों मेरे गुस्से से बहुत डरते हैं और अगर मैं गुस्सा कर दूँ तो दोनों बहुत घबरा जाते हैं| वो तो ये हैं जो उन्हें संभाल लेते हैं....
खेर मेरे गुस्से के कारन दोनों ने दर के मारे खा लिया...अपर नेहा मुझसे उखड चुकी थी और प्राइवेट वार्ड पहुँचने तक उसने मुझसे कोई बात नहीं की| जब हम कमरे में कहुंचे तो वहाँ डॉक्टरों का जमावड़ा लगा हुआ था! ये देख के तो मेरा दिल दहल गया.... इतने में माँ-पिताजी भी आगये| “ये ....ये सब की हो रहा है?” पिताजी ने मुझसे सवाल पूछा...पर मेरे पास उसका जवाब नहीं था| डर के मारे मेरा बुरा हाल था....मन में गंदे-गंदे ख़याल आ रहे थे| दिमाग कहने लगा था की हमारा साथ छूट गया....पर दिल इसकी गवाही नहीं दे रहा था| तभी डॉक्टर सरिता आईं और माँ-पिताजी को एक तरफ बुला के कुछ कहने लगीं...पर इस बार उत्सुकता वश मैं भी वहाँ जा के उनकी बात सुन्ना चाहती थी पर मुझे अपने पास देख के सब चुपो हो गए| माँ-पिताजी के चेहरे पे गम के बादल साफ़ झलक रहे थे| मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैं बोल पड़ी; "सरिता जी..प्लीज...प्लीज बताइये की मेरे पति को क्या हुआ है? आखिर ऐसी कौन सी बात है जो आप सब मुझसे छुपा रहे हैं?" डॉक्टर सरिता पिताजी की तरफ देखने लगीं और जब उन्होंने हाँ में सर हिला के अपनी अनुमति दी तब जा के उन्होंने सारी बात बताई जिसे सुन के मेरे जोश उड़ गए|
उन्होंने बताया; “हमसे यहाँ बहुत बड़ी गलती हो गई! जब आप मानु को यहाँ लाये थे उस समय मैं यहाँ नहीं थी डॉक्टर रूचि ने मानु को एडमिट किया और बेसिक ट्रीटमेंट शुरू कर दिया| शुरू के डायग्नोसिस में हमें यही पता चला की मानु का blood pressure shoot up हुआ था.... हम में से किसी ने उसकी Head Injury पर ध्यान नहीं दिया! अभी कुछ देर पहले sister Blood Pressure check करने गई तब उसे swelling नजर आई| अभी हम मानु को MRI करने के लिए ले जा रहे हैं|We’re hoping for the best! I’m really sorry!”
उनकी बात सुन के मुझे बहुत गुस्सा आया .... मन तो किया की इन सब पर केस कर दूँ पर.....मेरे लिए जर्रुरी ये था की ये पूरी तरह ठीक हो जाएं! इस लिए चुप रही…. सरिता जी के जाने के बाद मैंने माँ से पूछा; "माँ ...आप सब ये मुझसे क्यों छुपा रहे थे?" तो माँ ने मेरे सर पे हाथ फिराते हुए कहा; "बेटी...तू माँ बनने वाली है और मानु ने हमें कसम दी थी की हमलोग तुझसे ऐसी कोई भी बात ना करें जिससे तेरे दिल को चोट पहुंचे... इसलिए हम तुझसे ये बात छुपा रहे थे|" माँ की बात सुन के मेरी आँखें भर आईं और मैं माँ के गले लग क रो पड़ी| माँ ने मुझे बहुत पुचकारा और चुप कराया| माँ-पिताजी मुझे हिम्मत बंधाने लगे और हम लोग इन्तेजार करने लगे की MRI रिपोर्ट आये| एक घंटे बाद डॉक्टर सरिता हमारे पास आईं और हमें रिपोर्ट दी; "अंकल जी...रिपोर्ट अच्छी नहीं है| आप ये बताइये की क्या मानु ने खाना-पीना बंद कर रखा था?"
"नहीं तो बेटा...काम की वजह से वो बहुत बिजी था इसलिए वो रात को घर लेट आता था| फिर बहु उसे खाना परोसती थी ....इन में हो सकता है की खाना खाने का उसे टाइम ना मिलता हो पर रात को तो अवश्य खाता था..है ना बहु?" पिताजी ने मुझसे सवाल पूछा ...जिसका जवाब देने के लिए मेरे हलक़ से शब्द नहीं निकल रहे थे|"
"बहु...मानु रात को खाना खाता था ना?" माँ ने भी वही सवाल पूछा और सब की नजरें मेरे जवाब पर टिकी थीं| आखों से आँसूं बह निकले और रोते-रोते मैंने सच बोला; " जब से उन्होंने दुबई जाने के आत कही थी तब से मैं उनसे नाराज थी..बात नहीं कर रही थी...इसलिए गुस्से में आके उन्होंने खाना पीना छोड़ दिया था| कल रात भी जब वो आये तो मैं उन्हें खाना परोस के चली गई पर उन्होंने खाना नहीं खाया और वैसा का वैसा ही फ्रिज में रख दिया| सुबह जब मैंने रोटी का टिफ़िन देखा तो पता चला की इन्होने कुछ नहीं खाया है.... इ सब मेरी गलती है पिताजी....माँ ...मुझे माफ़ कर दीजिये....!" माँ मेरे सर पे हाथ फिरते हुए मुझे चुप कराने लगीं|
"अंकल जी.... आप तो जानते ही हैं की मानु का मेटाबोलिज्म कितना weak है! मैंने आपको शुरू में ही advice किया था की आप मानु को fasting वगैरह ना करने दें! अब हुआ ये है की मानु के खाना-पीना छोड़ने की वजह से और कुछ tensions के कारन उसका Blood Pressure बढ़ गया और उसे आज चक्कर आया, जब वो गिरा तो उसका सर फर्श से टकराया जिससे उसे ब्रेन इंजरी हुई, जिसे हम Anoxic Brain Injury कहते हैं| हमारी गलती से Brain में Swelling बढ़ गई...." बस इतना कहने के बाद वो रूक गईं...और एक लम्बी सांस लेते हुए बोली; "He’s in COMA!” ये सुन के मेरी आँखें खुली की खुली रह गईं...साँस जैसे थमने को हो गई.... और माँ-पिताजी मेरी तरफ देखने लगे..क्योंकि उन्हें समझ नहीं आया था की सरिता जी ने क्या कहा| उनकी मनोदशा देख सरिता जी ने हिंदी में अपनी बात दोहराई; "मानु कोमा में है!"
8 years ago#36
ये खबर ऐसी थी जिसे सुन के हम सब सदमें में थे!!! पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया था..और हम में से कोई नहीं जानता था की पीछे खड़ी नेहा ने सारी बात सुन ली थी और उसकी सिसकियों को सुन हम सब का ध्यान पीछे गया| वो भागी-भागी आई और माँ से लिपट के फुट-फुट के रोने लगी और रोते-रोते पूछने लगी; "दादी जी...पापा कब ठीक होंगे?" पर माँ के पास कोई जवाब नहीं था... बस सरिता जी ने उसे ढांढस बंधने के लिए कहा; "बेटा..आपके पापा जल्दी ठीक हो जायेंगे.... पर इस समय आपको Brave Girl बनना है| पता है आपके पापा ने मुझे आपके आरे में क्या बताया था? उन्होंने कहा था की मेरी बेटी सबसे बहादुर है...कैसी भी situation हो वो सब को संभाल लेती है| I'm Proud of my daughter! और आप ही इस तरह हार मान जाओगे तो कैसे चलेगा? आपको पता है न मम्मी प्रेग्नेंट हैं..तो ऐसे में उन का ध्यान कौन रखेगा? आपके दादा-दादी का ख्याल कौन रखेगा? आयुष तो अभी बहुत छोटा है तो सिर्फ एक आप हो जिससे मुझे उम्मीद है|"
ये बातें सुन के उसने खुद अपने आसूँ पोछे और फिर अपने दादा जी के पास आई और उनके आँसूं पोछे और बोली; " Don't worry दादा जी...पापा जल्दी ठीक हो जायेंगे...!" ये मेरी बेटी की हिम्मत थी जिस पे मुझे बहुत नाज़ है| माँ ने नेहा को किसी बहाने से कमरे से बाहर भेजा और सरिता जी से सवाल पूछा; "बेटी...मानु को कब तक होश आएगा?"
"आंटी जी...हम कुछ नहीं कह सकते...Brain को Heal होने में थोड़ा समय लगता है.. और हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं... सही दवाइयाँ..आप लोगों की Care ... प्यार और भगवान की कृपा से मानु कभी भी कोमा से बाहर आ सकता है| बस उम्मीद मत छोड़िये|"
अब बस एक उम्मीद ही थी जिसके सहारे ये नाव चलनी थी... खेर हम सब बाहर आ गए| पिताजी ने मेरी तरफ देखा और मेरा मन हल्का करने के लिए कहा; "बेटी..जो हो गया सो हो गया... मैं ये नहीं कहूँगा की सारी गलती तुम्हारी है| कुछ गलती उस पागल की भी है| बचपन से वो ऐसा ही है...जरा सी बात उसके दिल को लग जाती है और फिर वो खाना नहीं खाता| वो तो उसस्की माँ थी जो उसे समझा-बुझा के खाना खिला दिया करती थी| तब वो हर बात अपनी माँ से कहा करता था ...पर अब वो बड़ा हो चूका है हमसे बातें छुपाने लगा है... एक सिर्फ तुम हो जिससे वो बातें साँझा करता है| अब अगर तुम भी उससे बात नहीं करोगी तो वो इसी तरह अंदर ही अंदर कुढ़ता रहेगा| मैं समझ सकता हूँ की तुम्हें दुबई जाने की बात सुन के गुस्सा आया पर ये भी तो सोचो की वो ये सब सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी ख़ुशी के लिए कर रहा था| वो तुम्हारी ख़ुशी में अपनी ख़ुशी समझता है और कुछ नहीं... उस ने हमसे एक दिन कहा था की पिताजी संगीता ने अपने जीवन में बहुत दुःख देखे हैं और अब मैं उसे और दुखी नहीं देखना चाहता फिर चाहे उसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े!
बेटा...अब भी समय नहीं गया है... मुझे भगवान पे पूरा विश्वास है वो हमारे साथ कोई अन्याय नहीं करेगा| बस तुम्हें थोड़ा सब्र रखना होगा...धीरज रखना होगा..तुम्हारा प्यार उसे वापस ला सकता है| एक बार वो पूरी तरह ठीक हो जाए तो बस उसे खुश रखना...फिर हम लोग चैन से अपनी आखरी साँस ले सकेंगे|"
मैंने उनके पाँव छू के आशीर्वाद लिया और माँ ने और पिताजी ने अपने हाथ मेरे सर पे रख के "सदा सुहागन" रहने का आशीर्वाद भी दिया| पिताजी बोले; "बेटी तुम, बच्चे और मानु की माँ...आप सब घर जाओ, कुछ खाना खाओ, मैं यहीं रुकता हूँ| कल सुबह बच्चों को स्कूल छोड़ के यहाँ आ जाना|"
"पर मानु के पिताजी आप भी तो कुछ खा लो...|"
"तुम मेरी चिंता मत करो मानु की माँ ...मैं यहाँ से कुछ खा लूँगा| पहले बच्चों को खिलाओ उन बेचारों ने भी कुछ नहीं खाया है|"
"पिताजी...मैंने दोनों को डाँट-डपट के खिला दिया था...उसी दौरान तो ये सब कुछ हुआ|"
"बेटी...अपने गुस्से पे थोड़ा काबू रख अभी तो मानु भी ठीक नहीं है...ये बच्चे उसी पे गए हैं और तुझ से नाराज होके तुझी से बात-चीत करना बंद कर देंगे! समझी?"
"जी पिताजी...वो नेहा जिद्द करने लगी तो...मैंने थोड़ा डाँट दिया| आगे से ध्यान रखूँगी|" नेहा और आयुष पास ही खड़े थे तो मैंने कान पकड़ के उन्हें सॉरी बोला....आयुष ने तो मुस्कुरा के मुझे माफ़ी दे दी पर नेहा के मुख पे अब भी कोई ख़ुशी नहीं आई थी| वो बोली; "दादा जी... मैं भी आपके साथ रुकूँगी|" पर पिताजी ने उसे समझते हुए कहा; "बेटे..आपको कल स्कूल जाना है और मैं यहाँ हूँ ना? आप सब अब घर जाओ|" कम से कम उस समय तो उसने पिताजी की बात मान ली थी|
8 years ago#37
खेर हम सब बाहर आ गए| पिताजी ने मेरी तरफ देखा और मेरा मन हल्का करने के लिए कहा; "बेटी..जो हो गया सो हो गया... मैं ये नहीं कहूँगा की सारी गलती तुम्हारी है| कुछ गलती उस पागल की भी है| बचपन से वो ऐसा ही है...जरा सी बात उसके दिल को लग जाती है और फिर वो खाना नहीं खाता| वो तो उसस्की माँ थी जो उसे समझा-बुझा के खाना खिला दिया करती थी| तब वो हर बात अपनी माँ से कहा करता था ...पर अब वो बड़ा हो चूका है हमसे बातें छुपाने लगा है... एक सिर्फ तुम हो जिससे वो बातें साँझा करता है| अब अगर तुम भी उससे बात नहीं करोगी तो वो इसी तरह अंदर ही अंदर कुढ़ता रहेगा| मैं समझ सकता हूँ की तुम्हें दुबई जाने की बात सुन के गुस्सा आया पर ये भी तो सोचो की वो ये सब सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी ख़ुशी के लिए कर रहा था| वो तुम्हारी ख़ुशी में अपनी ख़ुशी समझता है और कुछ नहीं... उस ने हमसे एक दिन कहा था की पिताजी संगीता ने अपने जीवन में बहुत दुःख देखे हैं और अब मैं उसे और दुखी नहीं देखना चाहता फिर चाहे उसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े!
बेटा...अब भी समय नहीं गया है... मुझे भगवान पे पूरा विश्वास है वो हमारे साथ कोई अन्याय नहीं करेगा| बस तुम्हें थोड़ा सब्र रखना होगा...धीरज रखना होगा..तुम्हारा प्यार उसे वापस ला सकता है| एक बार वो पूरी तरह ठीक हो जाए तो बस उसे खुश रखना...फिर हम लोग चैन से अपनी आखरी साँस ले सकेंगे|"
मैंने उनके पाँव छू के आशीर्वाद लिया और माँ ने और पिताजी ने अपने हाथ मेरे सर पे रख के "सदा सुहागन" रहने का आशीर्वाद भी दिया| पिताजी बोले; "बेटी तुम, बच्चे और मानु की माँ...आप सब घर जाओ, कुछ खाना खाओ, मैं यहीं रुकता हूँ| कल सुबह बच्चों को स्कूल छोड़ के यहाँ आ जाना|"
"पर मानु के पिताजी आप भी तो कुछ खा लो...|"
"तुम मेरी चिंता मत करो मानु की माँ ...मैं यहाँ से कुछ खा लूँगा| पहले बच्चों को खिलाओ उन बेचारों ने भी कुछ नहीं खाया है|"
"पिताजी...मैंने दोनों को डाँट-डपट के खिला दिया था...उसी दौरान तो ये सब कुछ हुआ|"
"बेटी...अपने गुस्से पे थोड़ा काबू रख अभी तो मानु भी ठीक नहीं है...ये बच्चे उसी पे गए हैं और तुझ से नाराज होके तुझी से बात-चीत करना बंद कर देंगे! समझी?"
"जी पिताजी...वो नेहा जिद्द करने लगी तो...मैंने थोड़ा डाँट दिया| आगे से ध्यान रखूँगी|" नेहा और आयुष पास ही खड़े थे तो मैंने कान पकड़ के उन्हें सॉरी बोला....आयुष ने तो मुस्कुरा के मुझे माफ़ी दे दी पर नेहा के मुख पे अब भी कोई ख़ुशी नहीं आई थी| वो बोली; "दादा जी... मैं भी आपके साथ रुकूँगी|" पर पिताजी ने उसे समझते हुए कहा; "बेटे..आपको कल स्कूल जाना है और मैं यहाँ हूँ ना? आप सब अब घर जाओ|" कम से कम उस समय तो उसने पिताजी की बात मान ली थी|
अब आगे ....
चलते समय माँ ने पिताजी को एक कप चाय और एक सैंडविच मंगवा दिया था और रास्ते में माँ ने अपने, मेरे और बच्चों के लिए भी सैंडविच ले लिया| हम घर तो आ गए...माँ ने और बच्चों ने सैंडविच खाया और ना चाहते हुए भी मैंने किसी तरह उस सैंडविच को अपने गले से भी उतार लिया... पर दिल बहुत बेचैन था| घडी में बारह बजने को आये थे तो माँ ने सब को सो जाने को कहा| हम सब हमारे वाले बेडरूम में सोने को चल दिये| नेहा का गुस्सा अब भी साफ़ झलक रहा था... वो मुझसे सारे रात नहीं बोली थी| उसने माँ की तरफ करवट की और सो गई| इधर आयुष ने मेरी तरफ करवट की और कुछ देर बाद वो भी सो गया| पर मेरी आँखों से नींद अब भी कोसों दूर थी| रह-रह के उनकी वो बात "मैंने पढ़ा... आप.... क्यों इतना दर्द समेटे हुए हो? क्या आपके दिल में मेरे लिए जरा सी भी जगह नहीं?" मुझे याद आ रही थी और मैं मन ही मन खुद को कोस रही थी| मेरी अपनी बेटी मुझसे नफरत करने लगी थी...यी सब बातें मुझे बेचैन कर रही थी और सारी रात घडी की टिक-टिक सुनते हुए कट गई| सुबह हुई घडी में पाँच बजे और मैं जल्दी से नहा धो के तैयार हो गई और किचन में घुस गई| सात बजते-बजते मैंने खाना बना लिया था और फिर मैं बच्चों को उठाने गई| देखा तो नेहा तैयार हो छुकी थी पर आयुष और माँ अब भी सो रहे थे| मैं आयुष को उठाने लगी तो नेहा ने आगे बढ़ के उसे गॉड में उठाने लगी और उसे ले के तैयार करने लगी| माँ की बी अकनख खुल गईं और ओ भी नहाने चली गईं| आधे घंटे में सब तैयार हो के आ गए| मैंने माँ और बच्चों को नाश्ता कराया और फिर उन्हें स्कूल छोड़ने जाए लगी तो माँ ने रोक दिया; "बेटी तू नाश्ता कर ले तब तक मैं बच्चों को स्टैंड छोड़ आती हूँ|" भूख तो लगी नहीं थी जो मैं कुछ खाती इसलिए मैं कुर्सी पर बैठ के माँ के आने का इन्तेजार करने लगी|
बेसब्री से मेरा बुरा हाल था.... मन उन्हें देखना चाहता था| थोड़ी देर बाद माँ भी आ गईं और मेरी बसब्री देख के बोली; "बेटी...तू चिंता मत कर...मुझे पूरा यक़ीन है की सब कुछ ठीक हो चूका होगा...मानु को होश आ चूका होगा और वो तेरा इन्तेजार कर रहा होगा| चल जल्दी....|"
मन में एक उमंग से भर उठा और मैं माँ की बातों में विश्वास कर बैठी| एक आस जो मुझे जिन्दा रखने के लिए काफी थी...जिसके सहारे में अपनी जिंदगी काट सकती थी|अपनी बेकरारी की पोटली लिए मैं माँ के साथ हॉस्पिटल आई| इस आस में की जैसे ही मैं कमरे का दरवाजा खोलूँगी ये (मेरे पति) मेरे सामने बैठे होंगे और मुझे अपने गले लगा लेंगे| पर किस्मत को मुझ पे जरा भी रहम नहीं आया ...आएगा भी क्यों..मैंने अपने देवता जैसे पति को इतने दुःख जो दिए थे| मुझे तो माफ़ी मांगने का भी मौका नहीं दिया!
जब कमरे का दरवाजा खुला, तो वैसा कुछ भी नहीं हुआ जिसकी उम्मीद थी| ये (मेरे पति) अब भी उसी हालत में थे जैसा कल मैं इन्हें छोड़ गई थी| मैंने जा के पिताजी के पाँव छुए..और तब उन्होंने बताया की कुछ देर पहले उनकी बात मेरे पिताजी से हुई थी और वे कल सुबह बस से दिल्ली आ रहे हैं| अभी पिताजी ये सब बता ही रहे थे की अनिल का फ़ोन पिताजी के मोबाइल पे आया| अनिल शाम की गाडी से दिल्ली आ रहा था.... वो कल सुबह पहुँचने वाला था| सच कहूँ तो मुझे याद नहीं रहा की मुझे अपने मायके ये खबर दे देनी चाहिए| खेर अब मुझे पिताजी से अपने दिल की बात करनी थी ...इसलिए मैंने बहुत हिम्मत जुटा के उनसे कहा; "पिताजी....मैंने आज तक आपसे कुछ नहीं माँगा...आजतक कुछ माँगने की जर्रूरत ही नहीं पड़ी| पर आज आपसे कुछ माँगना चाहती हूँ और आशा करती हूँ आप मना नहीं करेंगे|"
"बोल बेटी.... मैं कतई मना नहीं करूँगा|" उन्होंने मुझ पे पूरा विश्वास जताते हुए कहा|
"पिताजी... आज से इनकी देख-रेख करने की जिम्मेदारी आप मुझे दे दीजिये| मैं सब कुछ संभाल लूँगी...मुझसे इनसे दूर रहा नहीं जाता...प्लीज पिताजी!" मैंने पिताजी और माँ से हाथ जोड़ के विनती की|
पिताजी ने चिंता जताते हुए कहा; "पर बेटा... तू माँ बनने वाली है...और ऐसे में......बेटी कुछ उञ्च०नॆच हो गई तो हम आमनु को क्या जवाब देंगे?"
"मुझे कुछ नहीं होगा पिताजी...मैं अपना ध्यान रख लूँगी....पर प्लीज पताजी मुझे इनसे अलग मत कीजिये ...मैं हाथ जोड़के आपसे विनती करती हूँ!" ये कहते-कहते मेरी आँखें भर आईं थी| माँ ने मुझे संभाला और पिताजी से बोलीं; "सुनिए...मान जाइए बहु की बात और फिर हम तो हैं ही इक ध्यान रखने के लिए| मैं भी इसे इस तरह तड़पते हुए नहीं देख सकती...अब एक यही तो है ..." इतना कहते हुए माँ रूक गईं..... माँ तो लघभग हिम्मत हार ही चुकी थी... उनकी उम्मीद टूट चुकी थी| पर मैंने माँ को ढांढस बंधाया, "माँ हम ये लड़ाई हारे नहीं हैं...और ना ही हारेंगे| सब कुह ठीक हो जायेगा...थोड़ा सामने लगेगा बस!" ये सुन के माँ की आँखें भर आईं थी|
"पिताजी आप माँ को लेके घर जाइए ...थोड़ा आराम कीजिये...तब तक मैं हूँ यहाँ|" पिताजी जाना नहीं चाहते थे पर वो जानते थे की ज्यादा देर अगर माँ यहाँ रुकी तो वो रो पड़ेंगी| इसलिए पिताजी उन्हें ले कर चले गए और दोपहर को आने का बोल गए| अब कमरे में बस ये (मेरे पति) और मैं ही बचे थे... इतने दिन से मैंने इनसे कोई बात नहीं की थी...और अब जब ये कुछ बोल नहीं सकते थे तो मन बात करने को आतुर हो रहा था| मैं दाहिने तरफ स्टूल ले कर बैठ गई; "मैंने आपको बहुत दुःख दिए है ना? आप मुझे हँसाने की हर नाकाम कोशिश करते रहे और मैं अपने गुस्से और दर्द को छुपाते हुए आपका तिरस्कार करती रही| आपने मुझसे कुछ भी तो नहीं माँगा था ...बस इतना की मैं हँसू..बोलूँ...बात करूँ...आपको प्यार करूँ...घर को सम्भालूँ.... माँ-पिताजी का ख्याल रखूँ...और मुझसे इतना भी नहीं हुआ! आपकी कोई ख़ुशी मैं पूरी नहीं कर सकी... प्लीज ...प्लीज मुझे माफ़ कर दो ...and I promise की मं आज के बाद आपकी हर बात मानूँगी..... कभी उदास नहीं हूँगी...सब को खुश रखूँगी....प्लीज ...प्लीज जानू वापस आ जाओ....प्लीज ....मैं फिर से वो पुरानी वाली संगीता बन जाऊँगी...प्लीज ....प्लीज ..... !!!" पर मेरी इतनी मिन्नतों का रत्ती भर भी असर इन पर नहीं हुआ.... आज मुझे एहसास हो रहा था की कैसा लगता है जब कोई आपसे बात करना चाहता हो और आप उसे दुत्कार दो! हालाँकि इन्होने कभी मुझे दुत्कारा नहीं ...अभी भी इनक शरीर respond नहीं कर रहा था तो मुझे वही आभास हुआ जो इन्हें मैंने कराया था और मुझे इनके दुःख से अवगत होने का मौका मिला|
दोपहर दो बजे पिताजी, माँ और बच्चे आये...माँ मेरे लिए खाना पैक कर के लाईन थी पर मेरी खाने की जा भी इच्छा नहीं थी| फिर भी माँ के जोर देने पर मैंने खाना खाया.... खाना खाने के बाद पिताजी ने मुझे थोड़ी चिंता जनक बात बताई; "बेटी आज नेहा के स्कूल से फ़ोन आया था| उसकी क्लास टीचर ने बताया की नेहा आज सारा दिन रो रही थी| जब तेअच्छेर ने उससे कारन पूछा तो उसने टीचर को सब बताया| नेहा टीचर से जिद्द करने लगी की उसे एक महीने की छुट्टी चाहिए| जब तक उसके पापा की तबियत ठीक नहीं होती...वो स्कूल नहीं आएगी| टीचर ने बहुत समझाया पर इसने जिद्द पकड़ ली की मैं कल से स्कूल नहीं आऊँगी| हार कर टीचर ने मुझे फ़ोन किया| हमने तो इसे खूब समझाया ...अब तू ही समझा इसे कुछ!"
"मैंने जब्ब नेहा को देखा तो वो नजरें झुकाये सा सुन रही थी| वो वैसे भी मुझसे बात नहीं कर रही थी...तो ऐसे में जल्दबाजी दिखाना जर्रुरी नहीं था| मैंने बस इतना कहा; "पिताजी ठीक ही तो है... कल से मैं और नेहा दोनों मिल के यहाँ इनका (मेरे पति और नेहा के पापा) का ख्याल रखेंगे|" पिताजी ये सुन के चौंक गए पर अगले ही पल जब उन्हें मेरी बात समझ आई तो वो कुछ नहीं बोले| मुझे नेहा को अपने अनुसार समझाना था..पर ये समय उसके लिए सही नहीं था|
8 years ago#38
दोपहर दो बजे पिताजी, माँ और बच्चे आये...माँ मेरे लिए खाना पैक कर के लाईन थी पर मेरी खाने की जा भी इच्छा नहीं थी| फिर भी माँ के जोर देने पर मैंने खाना खाया.... खाना खाने के बाद पिताजी ने मुझे थोड़ी चिंता जनक बात बताई; "बेटी आज नेहा के स्कूल से फ़ोन आया था| उसकी क्लास टीचर ने बताया की नेहा आज सारा दिन रो रही थी| जब तेअच्छेर ने उससे कारन पूछा तो उसने टीचर को सब बताया| नेहा टीचर से जिद्द करने लगी की उसे एक महीने की छुट्टी चाहिए| जब तक उसके पापा की तबियत ठीक नहीं होती...वो स्कूल नहीं आएगी| टीचर ने बहुत समझाया पर इसने जिद्द पकड़ ली की मैं कल से स्कूल नहीं आऊँगी| हार कर टीचर ने मुझे फ़ोन किया| हमने तो इसे खूब समझाया ...अब तू ही समझा इसे कुछ!"
"मैंने जब नेहा को देखा तो वो नजरें झुकाये सा सुन रही थी| वो वैसे भी मुझसे बात नहीं कर रही थी...तो ऐसे में जल्दबाजी दिखाना जर्रुरी नहीं था| मैंने बस इतना कहा; "पिताजी ठीक ही तो है... कल से मैं और नेहा दोनों मिल के यहाँ इनका (मेरे पति और नेहा के पापा) का ख्याल रखेंगे|" पिताजी ये सुन के चौंक गए पर अगले ही पल जब उन्हें मेरी बात समझ आई तो वो कुछ नहीं बोले| मुझे नेहा को अपने अनुसार समझाना था..पर ये समय उसके लिए सही नहीं था|
अब आगे .....
रात के आठ बजे तो पिताजी ने क बार फिर मुझे समझाना चाहा की मैं माँ के साथ घर चली जाऊं पर मैंने इनसे फिर से रेक़ूस्त की तो उन्होंने मेरी बात मान ली| जब पिताजी ने नेहा को साथ जाने को कहा तो उसने जाने से साफ़ मना कर दिया| मैंने माँ को इशारे से कहा की आज की रात इसे यहीं रहने दो तो माँ ने कहा; "कोई बात नहीं जी ..आज इसे यहीं अपनी माँ के पास रहने दो| पर नेहा बेटी तेरे बिना मुझे नींद नहीं आती ...मैं कैसे सोऊँगी?" माँ ने एक बार कोशिश की कि शायद नेहा मान जाए और उनके साथ घर चले पर नेहा ने तपाक से जवाब दिया; "दादी जी..आयुष है ना| जब पापा ठीक हो जायेंगे तब मैं रोज आपके पास सोऊँगी… Promise" माँ ने और कुछ नहीं कहा और उसके सर पे हाथ रख के आशीर्वाद दिया और आयुष को साथ ले के चली गईं| माँ के जाने के बाद मैंने कमरे का दरवाजा लॉक किया और नेहा के सोने के लिए सोफे को ठीक करने लगी| पर सोफे इतना छोटा था की उसपे सिर्फ एक इंसान ही सो सकता था, तो मैंने सोचा की मैं जमीन पर लेट जाऊँगी पर नेहा बोली; "मैं नीचे सोऊँगी आप ऊपर सो जाओ|" चलो इसी बहाने से वो मुझसे कुछ बोली तो सही| मैं करीब 2 घंटों से नहीं सोई थी और सारा दिन एक ही जगह बैठे रहने से थकावट मुझ पे असर दिखाने लगी थी| लेटने के कुछ देर बाद मेरी आँख लग गई.... रात के बारह बजे होंगे ..कि मुझे लगा कि कोई कुछ बोल रहा है मैं ख़ुशी से उठ बैठी कि इन्हें (मेरे पति को) होश आ गया! पर जब मैंने थोड़ा ध्यान से आवाज सुनी तो पता चला की ये तो नेहा है जो अपने पापा से बात कर रही है| मैं चुप-चाप लेट गई और उसकी बातें सुनने लगी; "पापा आप मुझसे नाराज हो??? आप मम्मी से बात नहीं कर रहे ..ठीक है... पर मैंने क्या किया? आप तो मुझसे सब से ज्यादा प्यार करते हो ना? फिर मुझसे बात क्यों नहीं करते? देखो अभी मम्मी सो रही हैं तो हम आराम से बात कर सकते हैं... I Promise मैं किसी को कुछ नहीं कहूँगी... it'll be our secret!!! ओके आप मेरे कान में बोलो..." नेहा के बचपने को देख मेरी आँखें भर आई..मैं जानती थी की वो अपने पापा को मुझसे ज्यादा प्यार करती है.... पर ये सब सुन मुझे लगा की कहीं उसके दिल को कोई सदमा ना लगे इसलिए मैं उठ बैठी और कमरे की लाइट ओन की| लाइट ओन होते ही नेहा की नजर मुझ पे पड़ी और वो हैरानी से मेरी तरफ देखने लगी|
"नही...बेटी इधर आ.." नेहा सर झुकाये मेरे पास आ कर कड़ी हो गई|
"बेटी.... आप कल से मुझसे बात नहीं कर रहे हो! I'm really sorry कल मैंने आपको डाँटा... seriously sorry.... अब क्या जिंदगी भर आप मुझसे नाराज रहोगे?"
"मैं उस वजह से आप से नाराज नहीं हूँ|" नेहा ने सर झुकाये हुए कहा|
"तो?"
"आपकी वजह से पापा की तबियत ख़राब हुई...सब आपकी वजह से हुआ है... आपने कभी पापा को प्यार किया ही नहीं| वो आपसे इतना प्यार करते हैं... उस दिन वो उससे (चन्दर) से लड़ पड़े..सिर्फ आपके लिए और आपको उनकी कोई कदर ही नहीं| सात साल पहले भी आपे उन्हें खुद से ददोर कर दिया था!"
ये सुन के मेरे पाँव तले जमीन खिसक गई थी| उस समय नेहा बहुत छोटी थी...तो उसे ये बात कैसे पता? मेरी परेशानी देख वो खुद बोली; "उस दिन जब आप और पापा बात कर रहे थे तब मैंने आप दोनों की सारी बात सुन ली थी|" "बेटी....." मैंने उसे समझाना चाहा पर उसने मेरी बात काट दी|
"आपने....आपने पापा को एक दम से isolate कर दिया! उन्होंने आपसे क्या माँगा था जो आप नहीं दे सकते थे? बस आपको खुश रहने को ही तो कह रहे थे.... आपकी वजह से दादा जी दादी जी सब परेशान थे और just आपका डर खत्म करने के लिए अगर पापा दुबई में सेटल होने की बात कह रहे थे तो कौन सी गलत बात कह दी उन्होंने? कम से कम आपका डर तो खत्म हो जाता पर नहीं ...आपको तो पापा को तकलीफ देने में मजा आता है ना?
आपको तो मेरी भी परवाह नही थी! क्या सच में आपको याद नही था की मेरी स्कूल जाने की उम्र हो गई है? जितने भी साल मैं गाँव में पढ़ पाई वो सिर्फ पापा की वजह से! मुझे ठीक से तो याद नहीं पर मेरे बचपन का सबसे सुखद समय वही था जब पापा गाँव आये हुए थे और अगर मैं गलत नही तोि आपका भी सबसे सुखद समय वही था| पूरे परिवार में सिवाय पापा के और कोई नही था जिसे पता हो की मुझे 'चिप्स' बहु पसंद हैं...यहाँ तक की आप को भी नहीं! गाँव में मुझे कोई प्यार नही करता था...सिर्फ पापा थे जो मुझे प्यार करते थे| ये सब जानते हुए भी आपने पापा को खुद से और मुझसे दूर कर दिया? अपनी नहीं तो कम से कम मेरी ख़ुशी का ख्याल किया होता? ओह्ह...याद आया...आपने उस दिन पापा को ये सफाई दी थी की आपकी वजह से उनका career ख़राब हो जाता! वाओ !! और अभी जो उनका ये हाल है उसका जिम्मेदार कौन है?
.................................. एक बात कहूँ You Don't DESERVE HIM! इतना Loving Husband आपके लिए नहीं हो सकता! जिस दिन पापा को होश आया उनकी नजर आप पड़ेगी और कहीं आपको देख उनका गुस्सा फूट पड़ा तो उनकी तबियत और ख़राब हो जाएगी, यही कारन है की मैंने अपनी क्लास टीचर से स्कूल न आने की बात की ताकि जब पापा को होश आये तो सबसे पहले मैं उन्हें दिखाई दूँ..आप नहीं! पापा आपसे नाराज हैं and I know वो आपसे कभी बात नही करेंगे| वो सिर्फ और सिर्फ मुझसे बात करेंगे ....सिर्फ और सिर्फ मुझसे! I Hate you mummy!"" इतना कह के वो लेट गई और मैंने उठ के कमरे की लाइट बंद की और सोफे पे बैठी सिसकने लगी| उसने एक भी बात गलत नही बोली थी... और सच में मैंने कभी ध्यान ही नहीं दिया की मेरी बेटी इतनी बड़ी हो गई की अपने मम्मी-पापा की बातें छुप के सुनने लगी है और समझने भी लगी है| हालाँकि इन्होने (मेरे पति ने) कभी बच्चों से कोई बात नही छुपाई ...पर कुछ पर्सनल बातें हम अकेले में किया करते थे जो सब नेहा सुन चुकी थी|
आज मैं अपनी ही बेटी...अपने ही खून की नजरों में दोषी बन चुकी थी...दोषी! अब मुझे इस पाप का प्रायश्चित करना था....किसी भी हाल में! मैं अपने बच्चों के सर से उनके पापा का साया कभी नही उठने देना चाहती थी...और ऐसा कभी नही होगा, कम से कम मेरे जीते जी तो नही! वो सारी रात मैं ने जागते हुए काटी.... सुबह सात बजे माँ और पिताजी आये, आयुष को सीधा स्कूल छोड़ के.... कमरे में सन्नाटा छाया हुआ था… नेहा अब भी सो रही थी| पिताजी ने मझसे पूछा की क्या मैंने नेहा को समझा दिया तो मैंने कहा; "यहीं पिताजी...कल बात करने का समय नही मिला| थक गई थी इसलिए सो गई...आज बात करुँगी और कल से वो स्कूल भी जाएगी|" मेरी बात से पिताजी को आश्वासन मिला और वो निश्चिन्त हो गए| हम चाय पी रहे थे की नेहा जाग गई..और आँखें मलती हुई अपने पापा के पास गई और उनके गाल पे Kiss किया और फिर बाथरूम चली गई| ये नेहा का रोज का नियम था .... उसे देख-देख के आयुष ने भी ये आदत सीख ली पर वो मुझे और इन्हें (मेरे पति) को kiss करता था| जैसे ही वो बाथरूम से निकली तभी अनिल (मेरा भाई) आ गया| उसने माँ-पिताजी के पाँव छुए और अपने जीजू की तबियत के बारे में पूछने लगा|
"पिताजी...ये सब कैसे हुआ? जीजू तो एकदम भले-चंगे थे?"
पिताजी के जवाब देने से पहले ही नेहा बोल पड़ी; "मम्मी की वजह से...." सब की नजरें नेहा पर थीं और उसकी ऊँगली का इशारा मेरी तरफ था|
8 years ago#39
आज मैं अपनी ही बेटी...अपने ही खून की नजरों में दोषी बन चुकी थी...दोषी! अब मुझे इस पाप का प्रायश्चित करना था....किसी भी हाल में! मैं अपने बच्चों के सर से उनके पापा का साया कभी नही उठने देना चाहती थी...और ऐसा कभी नही होगा, कम से कम मेरे जीते जी तो नही! वो सारी रात मैं ने जागते हुए काटी.... सुबह सात बजे माँ और पिताजी आये, आयुष को सीधा स्कूल छोड़ के.... कमरे में सन्नाटा छाया हुआ था… नेहा अब भी सो रही थी| पिताजी ने मझसे पूछा की क्या मैंने नेहा को समझा दिया तो मैंने कहा; "यहीं पिताजी...कल बात करने का समय नही मिला| थक गई थी इसलिए सो गई...आज बात करुँगी और कल से वो स्कूल भी जाएगी|" मेरी बात से पिताजी को आश्वासन मिला और वो निश्चिन्त हो गए| हम चाय पी रहे थे की नेहा जाग गई..और आँखें मलती हुई अपने पापा के पास गई और उनके गाल पे Kiss किया और फिर बाथरूम चली गई| ये नेहा का रोज का नियम था .... उसे देख-देख के आयुष ने भी ये आदत सीख ली पर वो मुझे और इन्हें (मेरे पति) को kiss करता था| जैसे ही वो बाथरूम से निकली तभी अनिल (मेरा भाई) आ गया| उसने माँ-पिताजी के पाँव छुए और अपने जीजू की तबियत के बारे में पूछने लगा|
"पिताजी...ये सब कैसे हुआ? जीजू तो एकदम भले-चंगे थे?"
पिताजी के जवाब देने से पहले ही नेहा बोल पड़ी; "मम्मी की वजह से...." सब की नजरें नेहा पर थीं और उसकी ऊँगली का इशारा मेरी तरफ था|
अब आगे.....
नेहा के कुछ बोलने से पहले पिताजी ने उसे झिड़क दिया; "नेहा...आप बहुत बद्तमीज हो गए हो! ऐसे बात करते हैं अपने से बड़ों से?" नेहा का सर झुक गया और उसे अपना सर झुकाये हुए ही माफ़ी मांगी; "sorry दादा जी!" मैं उसके पास गई और उसे अपने सीने से लगा लिया और पुचकारने लगी ... पर वो कुछ नहीं बोली और ना ही रोइ...जैसे उसके आँखों का पानी सूख गया हो! इधर अनिल के मन में उठ रहे सवाल फिर से बाहर उमड़ आये; "पर पिताजी...जीजू को आखिर हुआ क्या है? गाँव से पिताजी का फोन आया तो उन्होंने बस इतना कहा की तेरे जीजू हॉस्पिटल में admit हैं...तू जल्दी से दिल्ली पहुँच और मैं सीधा यहाँ पहुँच गया|"
मैं एक बार फिर से अपना इक़बाले जुर्म करने को तैयार थी..."वो मैं.........." पर मेरे कुछ कहने से माँ ने मेरी बात काट दी; "बेटा काम की वजह से टेंशन चल रही थी... और तुझे तो पता ही है की चन्दर की वजह से क्या हुआ था...इसलिए ये सब हुआ|” माँ ने मेरी तरफ देखा और ना में गर्दन हिला के मुझे कुछ भी कहने से रोक दिया और मैं ने उन्हें सहमति देते हुए अपनी गर्दन झुका ली| पिताजी न उसे घर हल के आराम करने को कहा पर अनिल ने मन कर दिया ये कह के; "पिताजी मैं यहाँ आराम करने नही आया| मैं यहाँ जीजू के पास रुकता हूँ, आप सब घर जाइए और आराम कर लीजिये| अगर कोई जर्रूरत पड़ी तो मैं आपको फ़ोन कर लूँगा|"
"नहीं...मैं यहाँ हूँ...तू जा और कपडे बदल के फ्रेश हो जा और फिर आ...." मैंने उसे हुक्म देते हुए कहा| चूँकि मैं उससे बड़ी थी तो वो बिना किसी बहस के मेरी बात मान लेता था| माँ ने जाते-जाते कहा की वो अनिल के हाथों मेरा और नेहा का नाश्ता भेज देंगी| जब सब चले गए तब मैंने सोचा की मुझे नेहा को प्यार से समझाना चाहिए ताकि वो कल से स्कूल join कर ले| नेहा स्टूल ले के अपने पापा के बाईं तरफ बैठी हुई थी और टकटकी बंधे उन्हें देख रही थी| शायद इस उम्मीद में की वो अब पलकें झपकाएं ...अब पलकें झपकाएं! मैंने उसे पीछे से आवाज दी; "नेहा...बेटा मेरे पास आओ|" वो बेमन से उठ के मेरे पास आई और चुप-चाप खड़ी हो गई| मैंने उसे अपने पास बैठने का इशारा किया और वो सर झुकाये सोफे पे बैठ गई|
"बेटा मुझे आपसे कुछ बात करनी है....|" मेरी बात शुरू होने से पहले ही वो बोल पड़ी; "Sorry .....!" उसका सॉरी सुन के मैं सोच में पड़ गई की भला ये मुझे क्यों सॉरी बोल रही है? पर मुझे उससे कारन पूछने की जर्रूरत नही पड़ी वो खुद ही बोलने लगी; "मैंने आपको सॉरी इसलिए नही बोला की कल मैं ने जो कहा वो गलत था या मैं उसके लिए शर्मिंदा हूँ...बल्कि आपको सॉरी इसलिए बोला की मेरा कल आपसे बात करने का लहज़ा ठीक नही था| आप मेरी माँ हो और मुझे इस तरह अकड़ के आपसे बात नही करनी चाहिए थी| इसलिए I'm really very sorry!"
नेहा की बात सुन के मुझे वो दिन याद आगया जब इन्होने (मेरे पति) ने मेरे लिए पहली बार अपने बड़के दादा से लड़ाई की थी| "बेटा आपको एक बात बताऊँ.... जिस दिन मुझे पता चला की मैं माँ बनने वाली हूँ उस दिन घर में सब खुश थे| क्योंकि उन्हें एक लड़के की आस थी और मुझे और आपके पापा को लड़की की वो भी बिलकुल आपके जैसी तब आपके पापा ने अपने बड़के दादा से इस बात पे लड़ाई की कि लड़का हो या लड़की क्या फर्क पड़ता है| उन्होंने ठीक आपकी तरह ही उनसे बात कि...और फिर बाद में नसे माफ़ी माँगी... इसलिए नही की उन्होंने सच बात बोली, बल्कि इसलिए की उनका लहज़ा गलत था|" ये सुन के नेहा के चेहरे पे मुस्कान आ गई|
"बेटा.... मैं आपसे कुछ पूछना चाहती हूँ?" नेहा ने हाँ में सर हिला के अपनी अनुमति दी|
"बेटा... I know आप अपने पापा से बहुत प्यार करते हो और उनके देख-रेख करने के लिए आप अपनी studies तक कुर्बान कर रहे हो पर जरा सोचो, जब आपके पापा पूरी तरह ठीक हो जायेंगे और उन्हें ये पता चलेगा की आपने उनके लिए अपनी स्टडीज sacrifice की है तो सोचो उन्हें कैसा लगेगा? उन्हें कितना hurt होगा? वो खुद को ही आपकी studies के नुकसान के लिए blame करेंगे और फिर से उनकी तबियत ख़राब हो सकती है! वहां घर पर आपके दादा-दादी अकेले हैं..उनकी देखभाल करने के लिए आपका वहाँ होना जर्रुरी है? और फिर आयुष...उसका स्कूल का होमोररक कौन करायेगा? और फिर मैं यहाँ हूँ ना आपके पापा की देखभाल करने के लिए|" ये सब सुन के भी नेहा के दिल को तसल्ली नही मिली थी इसलिए मैंने उसके दिल को तसल्ली देने के लिए उसे आश्वासन इया; "बेटा... मैं जानती हूँ की आपको डर है की पपा मुझे देखेंगे तो उनकी तबियत ख़राब हो जाएगी.... तो I promise मैं उनके होश में आते ही उनके सामने से चली जाऊँगी... और जबतक आप नही कहोगे मैं सामने नही आऊँगी|" इतना सुनने के बाद उसस्के इल को चैन मिला और उसने हाँ में सर हिलाया और उठ के बाथरूम चली गई| मुझे लगा की वो रोने के लिए बातरूम गई होगी पर भगवान का शुक्र है की ऐसा नही हुआ| मेरी बेटी अब बड़ी हो चुकी थी...इतनी बड़ी की अगर मुझे कुह हो जाए तो वो घर को संभाल सकती थी| नजाने क्यों ये ख़याल मेरे मन में आया ...खेर कुछ देर बाद अनिल नाश्ता ले कर आया और मैंने और नेहा ने नाश्ता किया| नाश्ता करने के बाद मैने अनिल से एक मदद माँगी; "अनिल...बीटा तुझसे एक मदद चाहिए! कल पिताजी ने बताया था की एक-दो जगह पेमेंट फांसी हुई है और दो दिन पहले इन्होने बताया था की कुछ contracts की deadline नजदीक है| मैं चाहती थी की अगर तू कुह दिन काम संभाल ले तो?"
"आप चिंता मत करो दीदी|" मुझे अनिल की बात सुन के थोड़ी शान्ति हुई की कम से कम पिताजी का बोझ कुछ कम हो जायेगा| दपहर के समय तक पिताजी और माँ आ गए| उनके आने पर अनिल ने काम की बात छेड़ी तो पिताजी बोले; "बेटा..तू यहाँ आया है....कुछ दिन आराम कर... काम-धंदा मैं देख लूँगा|"
"पिताजी...मैं यहाँ आपका हाथ बँटाने आया हूँ, आराम करने नही आया| अगर जीजू को पता लग गया की मैं यहाँ आराम कर रहा था तो वो तो मेरी क्लास ले लेंगे...ही..ही..ही..ही... वैसे जीजू ने कहा था की कुछ contracts deadline पर हैं| प्लीज पिताजी मुझे बताइये ...|"
पिताजी ने डेडलाइन की बात सुनी और मेरी तरफ देख के मुस्कुराये; "ये बात तुझे इसी शैतान ने बताई होगी? ठीक है तू इतनी जिद्द करता है तो चल मेरे साथ मैं तुझे पार्टियों से मिलवा देता हूँ और साइट भी दिखा देता हूँ| वैसे तुझे गाडी चलाना आता है ना?"
अनिल ने हाँ में सर हिलाया और पिताजी ने उसे चाभी दे दी और दोनों निकल गए| आयुष के स्कूल की छुट्टी होने वाली थी इसलिए मैंने सोचा की माँ को क्यों तकलीफ देनी तो मैं ही तैयार होक आई और नेहा को उनके पास बैठा के स्कूल चली गई और आयुष को लेके वापस हॉस्पिटल आ गई| कैंटीन से सैंडविच ला कर हम चारों ने खाए| शाम को सात बजे में पिताजी और अनिल लौटे; "बहु बेटा... तेरा भाई तो बहुत तेज है! आज तो इसने पाँच हजार का फायदा करा दिया| मुझे नहीं पता था की मानु contracts समय से पहले करने पर extra commission लेता था? वो तो अनिल था जिसने मानु की प्रोजेक्ट रिपोर्ट पढ़ी थी और उसे ये clause पता था! खेर मैंने इसे सारा काम समझा दिया है संतोष से मिलवा दिया है औरकल से ये उसके साथ coordinate करेगा|" अपने भाई की तारीफ सुन के मेरा मस्तक गर्व ऊँचा हो गया|
"चलो भाई..अब सब क्या यहीं डेरा डाले रहोगे? घर जाके खाना-वाना नही बनाना? और आयुष बेटा आपने होमवर्क किया या नहीं? यहाँ तो माँ-बेटी रहने वाले हैं!"
"दादा जी... मैंने आयुष का होमवर्क करा दिया है और मैं भी आपके साथ चलूँगी| मुझे कल स्कूल जाना है|" नेहा की बात सुनके पिताजी मुस्कुराये और उसके सर पे हाथ फिरके बोले; "बेटा अपने से बड़ों से हमेशा तमीज़ से बात करते हैं वरना लोगों को लगेगा का आपके मम्मी-पापा ने आपको अच्छे संस्कार नही दिए|"
"सॉरी दादा जी...आगे से ऐसी गलती कभी नही होगी|"
"बिलकुल अपने पापा की तरह...अपनी गलती हमेशा मान जाता था और दुबारा कभी वो गलती नही दोहराता था| खेर...चलो घर चलते हैं और हाँ बहु अनिल तुम्हारा खाना लेके आजायेगा| अपना ख़याल रखना ...|" इतना कह के सब चले गए और finally मैं और ये (मेरे पति) अकेले रह गए| मैं इनके पास स्टूल ले जा के बैठ गई..इनका हाथ अपने हाथों में लिए कुछ पुराने पलों को याद करने लगी और मेरी आँखें भीग गईं|
8 years ago#40
आयुष के स्कूल की छुट्टी होने वाली थी इसलिए मैंने सोचा की माँ को क्यों तकलीफ देनी तो मैं ही तैयार होक आई और नेहा को उनके पास बैठा के स्कूल चली गई और आयुष को लेके वापस हॉस्पिटल आ गई| कैंटीन से सैंडविच ला कर हम चारों ने खाए| शाम को सात बजे में पिताजी और अनिल लौटे; "बहु बेटा... तेरा भाई तो बहुत तेज है! आज तो इसने पाँच हजार का फायदा करा दिया| मुझे नहीं पता था की मानु contracts समय से पहले करने पर extra commission लेता था? वो तो अनिल था जिसने मानु की प्रोजेक्ट रिपोर्ट पढ़ी थी और उसे ये clause पता था! खेर मैंने इसे सारा काम समझा दिया है संतोष से मिलवा दिया है औरकल से ये उसके साथ coordinate करेगा|" अपने भाई की तारीफ सुन के मेरा मस्तक गर्व ऊँचा हो गया|
"चलो भाई..अब सब क्या यहीं डेरा डाले रहोगे? घर जाके खाना-वाना नही बनाना? और आयुष बेटा आपने होमवर्क किया या नहीं? यहाँ तो माँ-बेटी रहने वाले हैं!"
"दादा जी... मैंने आयुष का होमवर्क करा दिया है और मैं भी आपके साथ चलूँगी| मुझे कल स्कूल जाना है|" नेहा की बात सुनके पिताजी मुस्कुराये और उसके सर पे हाथ फिरके बोले; "बेटा अपने से बड़ों से हमेशा तमीज़ से बात करते हैं वरना लोगों को लगेगा का आपके मम्मी-पापा ने आपको अच्छे संस्कार नही दिए|"
"सॉरी दादा जी...आगे से ऐसी गलती कभी नही होगी|"
"बिलकुल अपने पापा की तरह...अपनी गलती हमेशा मान जाता था और दुबारा कभी वो गलती नही दोहराता था| खेर...चलो घर चलते हैं और हाँ बहु अनिल तुम्हारा खाना लेके आजायेगा| अपना ख़याल रखना ...|" इतना कह के सब चले गए और finally मैं और ये (मेरे पति) अकेले रह गए| मैं इनके पास स्टूल ले जा के बैठ गई..इनका हाथ अपने हाथों में लिए कुछ पुराने पलों को याद करने लगी और मेरी आँखें भीग गईं|
अब आगे............
मुझे एहसास होने लगा जैसे हम दोनों एक बहुत ही शांत से बगीचे में चल रहे हैं| इन्होने मेरा हाथ थामा हुआ है ...शाम का समय है...ठंडी-ठंडी हवा इनके मस्तक छू रही है .... हम दोनों के चेहरों पे मुस्कराहट है... चैन है...सुकून है.... पर तभी अनिल की आवाज कान में पड़ते ही सब उड़न-छू हो गया! दरअसल मेरी आँख लग गई थी! वो मेरे लिए खाना लाया था.... सच कहूँ तो मैं सिर्फ और सिर्फ इनके लिए खा रही थी| मैं ये नहीं चाहती थी की मेरा बेड भी इनकी बगल में लग जाए! अनिल ने बताया की कल सुबह छः बजे माँ-पिताजी आनंद विहार बस अड्डे पहुँच जायेंगे| "दीदी आप घर चले जाओ...मैं यहाँ रूकता हूँ| आप प्रेग्नेंट हो...थोड़ा अपना ख़याल भी रखो! मैं हूँ ना यहाँ...फिर चिंता क्यों करते हो?"
"बेटा.... मेरा यहाँ रहना बहुत जर्रुरी है... ये सब मेरी वजह से हुआ है ना...तो मुझे ही......." आगे कुह बोलने से पहले पिताजी का फ़ोन आ गया और उन्होंने अनिल को किसी पार्टी से मिलने को कहा जो अभी पेमेंट करने वाली थी| रात के दस बजे थे और उस पार्टी को बाहर जाना था| चूँकि वो लोग जानते थे की इनकी (मेरे पति) की तबियत ठीक नहीं है इसलिए वो जल्दी पेमेंट कर रहे थे| अनिल जल्दी-जल्दी निकल गया और एक बार हम दोनों हम उस कमरे में अकेले रह गए| इनका हाथ थामे हुए कब नींद आ गई पता ही नहीं चला| आँख तब खुली जब नर्से इन्हें चेक करने आई...घडी में बारह बजे थे| उस नर्स का नाम "राजी" था| पिछले दो दिन से वही इन्हें चेक करने आ रही थी| केरल की रहने वाली थी... ईसाई थी... और उसी ने इनके सर में स्वेल्लिंग देखि थी.... खेर आज दो दिन बाद उसने मुझसे बात की; "आप इनका wife है ना?"
मैंने हाँ में सर हिलाया| दरअसल उसकी हिंदी बहुत अच्छी नहीं थी|
“He’s a very luky man! मैं देख रहा है की आप दो दिन से यहीं हैं... इनका बहुत care कर रहा हैं|”
मैंने ना में सर हिलाया और मुसकुरते हुए कहा; "नहीं... मैं बहुत lucky हूँ की ये मेरे husband हैं|"
वो मुस्कुराई और बोली; "ओह! ऐसा है! डॉक्टर सरिता ने बोला की आप प्रेग्नेंट हो... इसलिए आपका B.P. भी चेक करने को बोला|” मैंने हाँ में सर हिला के अनुमति दी| मेरा B.P. चेक करते हुए वो फिर बोली; "आपको अपना care करना चाहिए...आपका husband की care के लिए आपके in-laws हैं|"
"हैं तो... पर सबसे ज्यादा मैं इन्हें प्यार करती हूँ| इसलिए मेरा यहाँ रहना बहुत जर्रुरी है| ऐसा नहीं है की मेरे in-laws को मेरी कोई फ़िक्र नहीं, उन्होंने ने तो मुझे आराम करने को बोला था पर मैं बहुत जिद्दी हूँ...इसलिए उन्होंने मुझे यहाँ 24 hrs रहने की परमिशन दी!"
राजी मुस्कुराई और चली गई| ये तक नहीं बोली की मेरा B.P. कैसा है??? उसके जाने के बाद मैंने दवाजा लॉक किया और वापस स्टूल पे बैठ गई और इनका हाथ थामे मुझे नींद आ गई| सुबह पांह बजे नींद खुली...एक बार इन्हें चेक किया ...वाशरूम गई और वापस आ कर दरवाजा अनलॉक किया और फिर से स्टूल पे बैठ गई| अगले 15 मिनट में आँख फिर से लग गई...और जब आँख खुली तो सामने मेरी माँ खड़ी थी| मैं उनकी कमर पे हाथ डाल के उनसे लिपट गई और मेरे आँसूं निकल पड़े| "बेटी ये सब कैसे हुआ?" पिताजी ने मुझसे सवाल पूछा...और मैंने रोते-रोते उन्हें सारी बात बताई|
"सब मेरी गलती है पिताजी, चन्दर वाले हादसे के बाद मैंने खुद को इनसे काट लिया था| मेरी वजह से घर पे इतनी सारी मुसीबतें आईं.... इतना बवाल हुआ...इसलिए मैं अपना दुःख इनसे छुपाने लगी| कुछ बोलने से डर्टी की कहीं इनको चोट न पहुँचा दूँ...इनका दिल न तोड़ दूँ! और दूसरी तरफ ये जी तोड़ कोशिश करते रहे की मैं पहले की तरह हो जाऊँ... हँसूँ.... बोलूं.... और मैं ना चाहते हुए भी इन्हें दुःख देती गई ...तकलीफ देती गई.... मुझे बार-बार ये डर सता रहा था की मैं आयुष को खो दूँगी... और मुझे इस डर से बाहर निकालने के लिए इन्होने दुबई जा के settle होने का plan बना लिया| इस बात से मुझे इतना गुस्सा आया की मैंने इन से बात करनी बंद कर दी.... इनको मेरी इस हरकत से इतना दुःख हुआ की इन्होने खाना-पीना छोड़ दिया...दिन-रात बस साइट पे रहते थे...जरा भी आराम नही किया...दवाइयाँ तक लेनी बंद कर दी...और नतीजन उस दिन इन्हें हक्कर आया और जब ये गिरे तो इनके सर में छोट आई...जिससे ये कोमा में चले गयी....मुझे माफ़ कर दीजिये पिताजी...प्लीज!" मैं रोती रही और पिताजी..माँ ..अनिल सब खड़े सुनते रहे|
पिताजी ने जोर से अपना सर पीट लिया और मुझ पर बरस पड़े; "पागल हो गई है क्या? तू उससे अपन दर्द छुपा रही थी? अपने पति से? ...... तुझे पता है ना वो तुझसे कितना प्यार करता है? तेरे लिए सबसे लड्ड चूका है? मैं पूछता हूँ उसने क्या गलत कर दिया? तेरी ख़ुशी ही तो चाही थी? हे भगवान!!! जिस इंसान से हमारा दर्द ना छुपा तू उससे अपना दर्द छुपा रही थी!" ये सुन के मैं थोड़ा हैरान हुई....और आगे की बात सुनके मेरे होश उड़ गए; "जब मानु बेटा पंचायत क काम से गांव आया था तब वापसी में हम से मिल के गया था| वो तो बस हुमा लोगों का हाल-छाल पूछने आया था और मेरी परेशानी देख उसने मुझसे बहुत जोर देके कारन पूछा तो मैंने उसे सब बता दिया|”
दरअसल अनिल को MBA कराने के लिए पिताजी को अपनी ज़मीन और घर गिरवी रख के बैंक से लोन लेना पड़ा था| बैंक ने घर और ज़मीन की value बहुत कम लगाईं थी इस कारन हमें सिर्फ 3.5 लाख ही लोन मिला बाकी का 1.5 लाख कम पड़ रहा था| हमारी दूसरी ज़मीन से घर का गुजर-बसर हो जाय करता था बस! पिताजी की उम्मीद थी की MBA के बाद अनिल को अच्छी नौकरी मिल जायेगी और वो धीरे-धीरे कर के लोन की किश्त उतारता जायेगा| पर ऐसा ना हो सका..... financially हमारे घर की हालत बहुत कमजोर हो गई थी और बैंक को अपना पिसा डूबता नजर आया तो उसने पिताजी को नोटिस भेज दिया...... सच पूछो तो मैं अपनी इस नई जिंदगी में इस कदर डूब गई की मैं ये बात भूल ही गई थी...और मुझे ये तब याद आया जब आज पिताजी ने ये बात दोहराई!
"जब मानु को ये बात पता चली तो उसने बिना कुछ सोचे मुझे दस लाख का चेक फाड़ के दे दिया..... और बस इतना कहा की संगीता को कुछ मत बताना| " ये सुन के मेरे चेहरे पे हवाइयां उड़ने लगीं...क्योंकि मुझे इन्होने कुछ नहीं बताया था| "हाँ...तूने सही सुना...तेरे पति ने...जबकि तुझे तो शायद याद ही नहीं होगा की तेरा बाप कर्जे तले दबा हुआ है! पर मैंने आजतक तुझसे कुछ शिकायत नही की.... पर आज तूने एक देवता सामान इंसान को इस कदर दुखी किया की आज उसकी ये हालत हो गई! और तुझे अगर इतनी ही तकलीफ थी तो क्यों शादी की? ..क्यों मानु की और अपने सास-ससुर की जिंदगी में जहर घोल दिया?क्या तुझे पता नहीं था की जो कदम तू उठाने के लिए उसे मजबूर कर रही है उसका अंजाम क्या होगा? उसने बिना पूछे बिना कहे हर मोड़ पे हमारे परिवार की मदद की...सिर्फ इसलिए की वो तुझे खुश देखना चाहता था और तू....तू उसका मन रखने के लिए खुश होने का दिखावा तक ना कर सकी? मैं पूछता हूँ उसने कौन सा तुझसे सोना-चांदी माँगा था जो तू दे ना पाई? ………. उसके बहुत एहसान हैं हम पर...जिन्हें मैं कभी नही उतार सकता| दिल को लगता था की कम से कम तुझे पा कर वो खुश है...पर तूने तो उससे वो ख़ुशी भी छीन ली! .मुझे शर्म आती है तुझे अपनी बेटी कहते हुए!" ये सब सुनने के बाद मेरे पाँव तले की जमीन खिसक चुकी थी...और मुझे खुद से घिन्न आने लगी थी....नफरत हो गई थी खुद से.... मन इस कदर कचोटने लगा की अगर मैं मर जाती तो अच्छा था!