"नेहा....बेटी इधर तो आ|" अम्मा ने नेहा को आवाज लगाईं| नेहा सामने आ कर खड़ी हो गई| अम्मा ने अपना हाथ झोले में डाला और गुलाबी कागज में बंधा हुआ कुछ निकला और उसे खोलने लगी| जब उन्होंने उसे खोला तो उसमें चाँदी की पायल निकली| बहुत खूबसूरत थी....
उन्होंने वो पायल नेहा को दी और उसका माथा चूम कर बोलीं; "ये मेरी बेटी के लिए.... वैसे ये थी तो तेरी माँ के लिए पर उससे ज्यादा तेरे पाँव पर जचेगी! और मुझे माफ़ कर दे बेटी उस दिन मैं ने सच में तुझ पर ध्यान नहीं दिया| तेरे पापा की तबियत के बारे में सुन कर मैं बहुत परेशान थी... सॉरी (sorry)!"
नेहा ये सुनते ही अम्मा से लिपट गई और बोली; "सॉरी नहीं sorry ... और अम्मा माँ ने मुझे समझा दिया था... its okay!" पता नहीं अम्मा को क्या समझ आया पर उन्होंने फिर से लड़खड़ाते हुए कहा; "टहंक ऊ" ये सं कर हम सब की हँसी छूट गई और नेहा ने उन्हें फिर से बताया की; "अम्मा thank you होता है!" ये सुन का र अम्मा के मुंह पर बी मुस्कान आ गई| खेर सब क जाने का समय नजदीक आ रहा था| पिताजी (ससुर जी) ने Innova taxi मँगवाई थी और वे खुद सबको छोड़ने T3 जा रहे थे| मेरे लाख मन करने पर भी ये उठ के बहार बैठक में आ गए और सभी के पाँव छुए और उन्हें विदा किया| सबने जाते हुए इन्हें बहुत-बहुत आशीर्वाद दिए| सबके जाने के बाद घर में बस मैं, माँ, नेहा और ये ही रह गए थे| जैसे ही ये अपने कमरे में आये इन्हें sinus का अटैक शुरू हो गया!
अब आगे.....
दरअसल इन्हें कभी-कभी ठंडी हवा से, ज्यादा मसालेदार खाना खाने से, कुछ ठंडी चीज खाने या पीने से, नींद पूरी न होने पर, थकावट से, धुल-मिटटी से और कभी कभी किसी अजीब सी महक से allergy है और तब इनकी छींकें शुरू हो जाती हैं| छीकें इस तरह आती हैं की इनका पूरा बदन झिंझोड़ कर रख देती हैं| पूरा शरीर पसीने से भीग जाता है और नाक से पानी आने लगता है| नाक से सांस लेना मुश्किल हो जाता है| ऐसा लगता है मानो नाक अंदर से छिल गई हो! पर ये कभी-कभी होता है... मुझे इसका पता था इसलिए मैंने इन्हें अंदर कमरे में रहने को कहा था| अब चूँकि बाहर का कमरा ठंडा था और इन्हें सब को see off करना था तो इन्होने बाहर आने की जिद्द की| अब जब इनका ये अटैक शुरू हुआ तो मैंने फ़ौरन पानी गर्म करने को रख दिया और इन्हें steam दी पर कोई रहत नहीं मिली| मैंने इन्हें किसी तरह लिटा दिया और सोचा की सब को फ़ोन कर दूँ... माँ ने तो कहा भी की पिताजी (ससुर जी) को फोन कर दे पर इन्होने मन कर दिया| छींक-छींक कर इनका बुरा हाल था, रुमाल पर रुमाल भीगते जा रहे थे, इनका बदन ठंडा होने लगा था जो की चिंता का विषय था| गर्दन से पेट तक पूरा जिस्म ठंडा पड़ने लगा था, जब की आमतौर पर इनका जिस्म गर्म रहता है| इन्होने नर्स राजी को बुलाने को कहा तो मैंने उन्हें जल्दी से फोन मिलाया और सारी बात बताई| उन्होंने कहा की मैं आ रही हूँ.. तब तक मैं माँ और नेहा इन्हीं के पास बैठे थे| नेहा की आँखों में आँसूं थे उससे इनकी ये पीड़ा देखि नहीं जा रही थी| हाल तो कुछ मेरा भी ऐसा ही था पर खुद को मजबूत कर के बैठी थी| आखिर छींकते-छेंकते इन्होने tissue paper के दो box खत्म कर दिए| करीब आधे घंटे के अंदर नर्स राजी आ गईं और उनके साथ nebullizer था| उन्होंने जल्दी से मशीन को बिजली के पॉइंट से plug किया और कुछ दवाई दाल कर इन्हें mask पहना दिया और मशीन के चलने पर भाप जैसा कुछ निकलने लगा और इन्होने उस भाप को सुंघा और तब धीरे-धीरे इनकी हालत में सुधार आया| bedpost का सहारा ले कर इन्होने सब inhale किया और फिर जब आराम मिल गया तो हम ने इन्हें वापस लिटा दिया और रजाई उढ़ा दी| इनकी हालत में सुधार देख हमारी जान में जान आई| नेहा भी अब normal लग रही थी... मैंने उसे चाय बनाने को कहा| माँ उठ के fresh होने के लिए कमरे में गई| अब कमरे में बस हम दोनों रह गए थे| दोनों ख़ामोशी से बैठे हुए थे... जब चाय बन गई तब माँ ने हम दोनों को बाहर बुलाया और हम सारे drawing room में बैठ कर चाय पी रहे थे|
नेहा ने T.V. चालु किया और CID के पुराने एपिसोड देखने लगे| मुझे जो बात अजीब लगी वो ये थी की राजी भी उतना ही interest ले रही थी जितना मैं और माँ ले रहे थे| शायद राजी मेरे घर के बारे में बहुत कुछ जानती थी! तभी नेहा अचानक से उठी और कमरे की तरफ भागी और बाहर आके बोली; "आंटी पापा उठ गए!" माँ ने मुझे इशारे से कहा की मैं भी साथ जाऊँ| माँ के पाँव में सूजन रहती है तो वो ज्यादा चलती फिरती नहीं| जब मैं और राजी कमरे में घुसे तो ये bedpost का सहारा ले कर बैठे हुए थे| इन्हें इस तरह बैठा हुआ देख, राजी बोली; "आप कैसे हो मिठ्ठू?" इन्होने मुस्कुरा कर जवाब दिया; "मैं.......(तीन सेकंड का cinematic pause ले कर) ठीक हूँ!" ये सुन कर दोनों खिल-खिला कर हँसने लगे| मुझे इनका ये बर्ताव बहुत अजीब लगा...क्योंकि ये cinematic pause तो इन्होने कभी मेरे साथ बात करते हुए भी नहीं लिया था! पर मैं चुपो रही क्योंकि मैं उस वक़्त कोई scene खड़ा नहीं करना चाहती थी और वैसे भी मेरे लिए जर्रुरी ये था की इनकी तबियत ठीक हो गई है| शायद मैं कुछ ज्यादा ही सोच रही थी...... शायद!!!
मैं नेहा को इन दोनों के पास छोड़ कर अदरक वाली चाय बनाने चली गई| पता नहीं मैंने नेहा को वहां क्यों छोड़ा? ऐसा तो नहीं था की मुझे इन पर शक था...पता नहीं क्यों...... मेरे चाय ले कर आते-आते माँ भी अंदर आ गईं थीं और फिर वहां बातों का माहोल शुरू हो चूका था| तभी ये बोले; "यार भूख लग रही है| ऐसा करो omlet बनाओ!" मैं थोड़ा हैरान थी क्योंकि अभी तक इन्हें खाने के लिए मसालेदार खाना नहीं दिया जा रहा था| मुझे तो कुछ समझ नहीं आया पर लगा की राजी जर्रूर मन कर देगी पर उसने तो आगे बढ़ कर कहा; "मैं बनाती हूँ!" हैरानी से मेरी भँवें तन गईं पर तभी नेहा बोली; "पर घर में eggs तो हैं ही नहीं?"
ये सुन कर इनका मुँह बन गया और मुझे ख़ुशी महसूस हुई क्योंकि मैं कतई नहीं चाहती थी की एक गैर हिन्दू लड़की मेरी रसोई में घुसे! पर नेहा से अपने पापा की ये सूरत नहीं देखि गई उसने बोला; "मैंdon't worry पापा ... मैं ले आती हूँ|" इन्होने उसे मना भी किया; "बेटा बाहर बहुत ठण्ड है|" पर नेहा जिद्द करने लगी आखिर इन पर जो गई है! हारकर इन्होने उसे जाने की इजाजत दी पर मोटी वाली जैकेट पहन के जाने के लिए बोला| अब ये सब सुन और देख मेरा मुँह उतर गया पर किसी तरह अपने भावों को छुपा कर मैं नार्मल रही|
राजी को रसोई के बारे में सब पता था ... और ये देख मैं हैरान थी! मुझे लगा था की वो मुझसे पूछेगी की तेल कहाँ है, प्याज कहाँ है पर नहीं ...उसने एक शब्द भी नहीं पूछा जैसे की उसे सब कुछ पता था| खेर मेरे ना चाहते हुए भी राजी ने ने अपने, नेहा और इनके लिए ऑमलेट बनाया| मैंने और माँ ने नहीं खाया...माँ तो वैसे भी नहीं खाती थीं पर मैं...मैं सिर्फ और सिर्फ इनके हाथ का बना हुआ ऑमलेट खाती थी| उस जलन को मैंने किस तरह छुपाया मैं ही जानती हूँ..... !
चलो यही सोच लिया की कम से कम इनकी तबियत तो ठीक है| पिताजी के आने पर उन्हें ये सब पता चला तो वो भी नाराज हुए की आखिर क्यों इन्होने कमरे से बाहर निकलने की जहमत उठाई और सब के लिए तकलीफें बढ़ाई| ये सब पिताजी के शब्द थे ... ना की मेरे| तीन घंटे बाद मेरे पिताजी का फोन आया और जब मैंने उन्हें ये सब बताया तो वो भी घबरा गए और लगा की जैसे अगली फ्लाइट पकड़ के घर आ जायेंगे पर इन्होने बात संभाली और अपनी तबियत ठीक होने की खबर दे कर उन्हें संतुष्ट किया| दोपहर को बिना खाना खाए इन्होने राजी को जाने नहीं दिया| जाते-जाते वो कह गई; "take care मिठ्ठू!" और ये भी मुस्कुरा कर बोले; "i will"खेर मैंने ये भी बर्दाश्त कर लिया| रात सोने का समय आया तो नेहा और आयुष हम दोनों के बीच में आ कर सो गए| अगले दिन ये काफी देर से उठे, इनका पूरा बदन दर्द कर रहा था (ये उन छींकों का असर था|) ... रात में पिताजी ने सख्त हिदायत दी थी की इन्हें कमरे से निकलने की मनाही है! नाश्ता करने के बाद जनाब बिस्तर पर बैठे फिल्म देख रहे थे| मुझे पता था की ये बहुत बोर हो रहे हैं तो मैंने इन्हें YouSexStories पर लोगिन करने को कहा| सोचा इसी बहाने ये आप लोगों से कुछ बात कर लेंगे ... आगे कुछ लिखेंगे| पर हुआ कुछ अलग ही.... जैसे ही इन्होने थ्रेड पर अपने दुबारा दिखने की खबर दी, राजेश भाई का कमेंट आया| उनका कहने का मतलब था की इन्हें पहले आराम करना चाहिए उसके बाद ऑनलाइन आना चाहिए पर इन्होने उसका कुछ और ही मतलब निकला और फैसला कर लिया की ' मैं अब कभी नहीं लिखूँगा|" देखा जाए तो इनकी भी कोई गलती नहीं... दरअसल एक ही कमरे में बंद रहने से इंसान थोड़ा बहुत चीड़चिड़ा हो ही जाता है|
मैंने इन्हें समझने की बहुत कोशिश की पर ये हमेशा कहते; "यार प्लीज मुझसे इस बारे में बात मत करो|" इनका वो अकेलापन ...वो तड़प मैं अच्छे से महसूस कर रही थी| मैंने सोच लिया की मैं किसी भी तरह से इन्हें फिर से लिखने के लिए मना लूँगी| एक वही तो जरिया था जिसके जरिये ये अपने मन की बात सब से share कर पा रहे थे| लिखना बंद करने के बाद तो इन्होने अपने आप को बच्चों के साथ बिजी कर लिया.... कभी आयुष के साथ games खेलने लगते तो कभी नेहा से बातें करने लगते| दोनों की बातें सुन कर ऐसा लगता की पिछले 12-15 साल की सारी बातें इन्हें सुननी है...वो हर एक दिन जो नेहा ने इनके बिना काटा वो सब इन्हें सुन्ना था| इन्हीं बातों में नेहा ने अपने डर को जाहिर किया!
उसकी बातें सुन कर जो मुझे समझ आया वो ये था;.......
जब नेहा पैदा हुई तो मुझे वो ख़ुशी नहीं हुई जो आयुष के पैदा होने पर हुई थी| कारन ये की आयुष मेरे और 'इनके' प्यार की निशानी था और नेहा...वो तो मेरे साथ हुए धोके की निशानी! उस का जो भी लालन-पालन मैंने किया वो सिर्फ एक कर्तव्य समझ के किया, माँ होने का एहसास तो मुझे कभी हुआ ही नहीं! इसी कारन मैंने नेहा पर कही ध्यान नहीं दिया... उस समय मैं बस अपने जीवन को ही कोसती रहती थी| दिन में वो मिटटी में खेल रही है या धुप में मैंने कभी ध्यान नहीं दिया और रात में .... रात में उसे खुद से अलग दूसरी चारपाई पर सुलाती थी| रात में उसे डरावने सपने आते ... जैसे की हर बच्चे को आते हैं| सपने में किसी ऊँची जगह से गिरते हुए देखना, कभी सीधी से गिर जाना, कभी भूत-प्रेत देखना...ये ही सपने नेहा को परेशान किया करते| ऐसे में जब वो डर कर मुझे नींद से उठाने की कोशिश करती तो मैं उस पर चिल्ला कर उसे चुप करा दिया करती| वो मेरी डाँट से इतना डरती थी की उसने अब मुझे नींद से उठाना बंद कर दिया और चुप-चाप सहम के रह जाया करती| घर में उसे वैसे भी कोई प्यार दुलार करता नहीं था| जो कुछ प्यार उसे मिला वो अपने नानानानी से मिला... कुछ अनिल से मिला जब कभी वो वहाँ होता| मुझसे तो वो उम्मीद ही नहीं करती थी...... फिर जब मैं इनसे मिली.... दूसरी बार मिली.... ...... इन दोनों दफा नेहा को इनसे कुछ प्यार मिला... या फिर वो भी मेरी तरह इनकी तरफ आकर्षित होने लगी थी| जब मैं 'इनसे' तीसरी बार मिली तो इन्होने नेहा के लिए अपना प्यार बस स्टैंड जाते समय जाहिर किया .... और जब ये गाँव आये तब तो इन्होने अपना प्यार नेहा पर लूटना शुरू कर दिया| वो एक महीना नेहा को इनसे जो प्यार मिला वो ..... उसकी अभी तक की जिंदगी का सारा रास था| जितने दिन ये गाँव रुके नेहा का रात में डर के उठ जाना कम हो गया| आमतौर पर उसका डर हफ्ते में 4-5 से बार होता था, और इनकी मौजूदगी में ये 1-2 बार ही हुआ होगा|
जब भी नेहा इनके साथ इनकी छाती से लिपट कर सोती तो उसे सुरक्षित होने का एहसास होता| “i feel safe.” ये उसका कहना था... अब इसे मैं उसका बचपना समझूँ या फिर अपने पापा के लिए प्यार? या फिर नेहा को भी उनके सीने से वही तपिश मिलती है जो मुझे मिलती है जब मैं इनके गले लगती हूँ| "मैं आपको खोना नहीं चाहती|" ये भी उसी के शब्द थे..... सच में मैं उसके लिए कभी अच्छी माँ साबित नहीं हो पाई और इस बात का गिला मुझे सारी उम्र रहेगा|
“I love you my baby! और अब मेरे बच्चे को किसी भी चीज से डरने की बात नहीं|” ये कह कर 'इन्होने' नेहा को अपने गले लगा लिया| पर नेहा के जीवन से अभी भी पूरी तरह पर्दा नहीं उठा है|अगले कुछ दिन इसी तरह बीते.... लघ-भाग रोज राजी का फ़ोन आता और 'ये' उससे घंटों बात करते रहते| मैं ये सोच कर चुप रही की कम से कम इनका टाइम पास हो जाता है| पर मुझे इनका उससे बात करना फूटी आँख नहीं भाता था! खाना-खाने के लिए इन्हें कहना पड़ता थकी; "पहले खाना खा लो फिर बात करना|" और तब ये मुस्कुराते हुए राजी से कहते; "वार्डन आ गई है! खाना खा के फोन करता हूँ|" पर मैं इन्हें खाना खाने के बाद जबरदस्ती सुला देती और जब ये नहीं मानते तो बच्चों को इन के पास भेज देती और नेहा और आयुष इन्हें सुला ही देते| दिन पर दिन इनकी सेहत अच्छी होने लगी थी.... इसलिए पिताजी ने जो इन पर कमरे से बाहर निकलने का बैन लगाया था वो भी उठा लिया और अब ये ड्राइंग रूम में बैठ जाया करते और टी.वी. भी देखा करते| पर जो बदलाव मैंने इनमें देखा वो ये था की इनका मन कुछ न कुछ लिखने को करता पर ये अपना मन दूसरे कामों में लगाने की कोशिश करते| कभी पिताजी से estimate पर discussion करते तो कभी बच्चों का होमवर्क ले कर बैठ जाते| हाँ होमवर्क करते समय 'ये' उनका mathematics का होमवर्क कभी नहीं करते, उससे इन्हें डर लगता था! (ही..ही...ही...)
पर मैंने भी ठान ली थी की इन्हें फिर से लिखने के लिए उकसा कर रहूँगी| इसलिए मैंने राजेश भाई से मदद माँगी| मैंने अपनी आप बीती लिखना शुरू किया और जीता भी लिखती उन्हें मेल कर दिया करती| मेरा प्लान था की मैं इस आप बीती के बारे में इन्हें तब बताउंगी जब मैं पूरा लिख लूंगी| तब उससे पढ़ने के बाद शायद इनका मन बदल जाए और ये फिर से लिखना शुरू कर दें| इसलिए मैं राजेश भाई से हुई सारी बातें इन से छुपाने लगी और इन्हें मुझ पर इतना भरोसा है की इन्हें जरा सा शक भी नहीं हुआ|
एक दिन की बात है ... मैं ड्राइंग रूम में बैठी लैपटॉप पर अपनी आप बीती टाइप कर रही थी| मेरी पीठ कमरे की तरफ थी, क्योंकि डाइनिंग टेबल की मैं कुर्सियों पर सिर्फ 'इनका' और पिताजी (ससुरजी) का हक़ है| मुझे लगा की ये सो रहे होंगे क्योंकि मैंने नेहा और आयुष को 'इनके' पास सोने के लिए भेजा था| पता नहीं चला कब ये मेरे पीछे आ कर खड़े हो गए और पता नहीं इन्होने क्या-क्या पढ़ा होगा| मुझे तो तब पता चल जब इनका हाथ मेरे सर पर आया|मैंने एकदम पलट के देखा और हैरान रह गई. ऐसा लगा जैसे इन्होने मेरी कोई चोरी पकड़ ली हो| मुझे तो लगा शायद ये मुझ पर गुस्सा होंगे, पर ‘इन्होने’ कुछ नहीं कहा और सर पर हाथ फेर कर कमरे में जाने लगे और बोले; "keep it up"| मेरा सरप्राइज फुर्ररर हो गया था.... फ़रवरी का महीना शुरू हो चूका था और अब इनकी तबियत काफी ठीक हो चुकी थी और आयुष का जन्मदिन आ रहा था| पर मैं अब भी बहुत सावधानी बारात रही थी| घर से बाहर कहीं भी नहीं जाने देती थी| जानती थी की मैं इनके साथ जबरदस्ती कर रही हूँ पर क्या करूँ, प्यार भी तो इतना करती हूँ इनसे! इधर इन्होने आयुष के जन्मदिन की planing शुरू कर दी थी| मैंने इन्हें बहुत समझाया की हम इस बार जन्मदिन हर पर ही मनाएंगे पर ये नहीं माने| इन्होने तो आजतक का सबसे best birthday plan बनाया था! जैसे-जैसे दिन नजदीक आने लगा, आयुष ने अपने जन्मदिन का राग अलापना शुरू कर दिया| पर उसे जरा भी भनक नहीं थी की जन्मदिन पर उसे क्या मिलने वाला है| इधर मैंने ‘इनका’ कुछ ज्यादा ही ध्यान रखना शुरू कर दिया| दिन पर दिन इनकी तबियत ठीक होने लगी थी, जिसका श्रेय ये मुझे देते हैं पर मैं इसकी हक़दार नहीं| इनका घर पर रहने को जरा भी मन नहीं था और ये दिन पर दिन बेचैन होने लगा था| मैं चाह कर भी इन्हें घर पर रोक नहीं पा रही थी| मेरा दिल कह रहा था की ये अभी पूरी तरह स्वस्थ नहीं हैं, और मैं नहीं चाहती थी की बिना पूरी तरह ठीक हुए ये घर से बाहर कदम रखें|मैंने इन्हें बहुत समझाने की कोशिश की पर ये नहीं माने| इनका कहना था; "यार मेरी बीमारी की वजह से बहुत खर्च हो गया है| पिताजी ने नए projects उठाना भी बंद कर दिया है| अब मुझे काम सम्भालना पड़ेगा|" बात सही भी थी पर मन बहुत बेचैन था तो मैंने माँ से बात की| उन्होंने पिताजी से और फिर हम तीनों ने इनसे बात की पर ये अपनी जिद्द पर अड़े रहे| आखिर पिताजी ने इन्हें इजाजत दे दी पर एक शर्त के साथ, वो ये की working hours सुबह 11 बजे से शाम 4 बजे तक रहेंगे| अब काफी बहस बाजी के बाद इन्होने हमारे आगे हार मान ही ली| रात में खाना खाने के बाद जब हम लेटे तो हमेशा की तरह नेहा इनकी छाती पर चढ़ कर सो गई और आयुष हम दोनों के बगल में सोया था| दोनों सो चुके थे तभी ये बोले; "मुझसे शादी कर के तुम्हें की मिला? B.P. की प्रॉब्लम......sinus की प्रॉब्लम.... हुँह.... तुमने पहले ही इतना सब...... और अब मेरी वजह से....." बस कुछ कहते कहते ये रूक गए| मुझे ये सुन कर बहुत गुस्सा आया और मैं जोर से बोली; "आप मानोगे नहीं ना? आपने शादी से पहले मुझे सब बता दिया था ना? ये B.P. की प्रॉब्लम तो hereditary है... माँ को है.. पिताजी को है...इसमें आपकी क्या गलती? और आपकी sinus की प्रॉब्लम ... अगर मैं गलत नहीं तो ये (sinus) और B.P. की प्रॉब्लम मुझसे दूर रहने के बाद ही शुरू हुई है तो इसकी कसूरवार तो मैं हूँ! और आप कहते हो की आपसे शादी कर के मुझे क्या मिला? तो आप बताओ की मुझसे शादी कर के आपको क्या मिला? you don't want me to say anything right?" मेर आक्रोश सुन कर ये चुप हो गए और मुझे sorry बोला| इनका sorry सुन्न कर मेरा गुस्सा काफूर हो गया और मैंने इन्हें kiss किया और आयुष के साथ मैं भी इन्हें झप्पी डालकर सो गई|
अगली सुबह मैंने इन्हें एक छोटे बच्चे की तरह अच्छे से नाश्ता कराया और साइट पर जाने दिया| (मन तो नहीं था पर क्या करूँ|) हर एक घंटे बाद इन्हें फोन करती और फोन करते समय यही सोचती की इनकी तबियत कैसी होगी? जान निकल के रख दी थी इन्होने मेरी! एक बजे मैंने जब इन्हें फोन किया तो इन्होने फोन नहीं उठाया| दुबारा मिलाया .... फिर नहीं उठाया| अब मुझे बहुत चिंता होने लगी थी| मैंने तीसरी बार फोन मिलाया तो घंटी मुझे अपने नजदीक बजते हुए सुनाई दी| मेरे पीछे पलटने से पहले ही इन्होने मुझे पीछे से आ कर जकड लिया और कान में खुसफुसाते हुए बोले; "surprise मेरी जान!" ये सुन कर मेरी जान में जान आई पर मैंने थोड़ा नाराज होने का नाटक किया; "फोन क्यों नहीं उठाया? जानते हो मेरी जान निकलगई थी! मैं आपसे बात नहीं करुँगी!"
"यार ऐसा करोगे तो अबकी बार जान मेरी निकल जाएगी?" मैं ये सुनते ही इनसे लिपट गई| पर हमारा ये मिलान बहुत छोटा था| अचानक माँ आ गईं और मिअन छिटक कर इनसे अलग हो गई| (माँ ने हमारा ये प्रेम-मिलाप जर्रूर देखा होगा!) मैं 'इनसे' अलग तो हो गई... पर इनके जिस्म की तपिश ने मुझे जल के राख कर दिया था|मेरे लिए खुद पर काबू कर पाना मुश्किल हो रहा था| अगर उस समय माँ नहीं आई होती तो शायद वो सब..........हो जाता! खाना बनाने का समय हो रहा था.... तो जैसे-तैसे मैंने खुद को काबू करने की कोशिश की और खाना बना कर मैं फटाफट बाथरूम में घुस गई| नल खोला तो उसमें बर्फीला पानी आ रहा था| जब तक बाल्टी भर रही थी मैं खुद को फिर से काबू करने लगी| मैं जानती थी की मेरे जिस्म को इनके प्यार की जर्रूरत है, पर इनकी बिमारी के कारन मैं इन्हें खुद से दूर रख रही थी|मैं अच्छी तरह जानती थी की इन्हें भी मेरे प्यार की उतनी ही जर्रूरत है जितना मुझे थी| पर फिर भी इन्होने मेरे सामने ये बात कभी भी जाहिर नहीं की थी| बाल्टी भरते ही मैंने अपने ऊपर ठंडा पानी डालना शुरू कर दिया .... उस ठन्डे पानी का जैसे मेरे ऊपर कोई असर ही नहीं हो रहा था| जिस्म अंदर से भट्टी की तरह जल रहा था| आधे घंटे तक ठन्डे पानी की बौछारों ने जिस्म की इस आग को शांत किया| जब मैं बाहर आई तो ये लैपटॉप पर कुछ काम कर रहे थे| फिर ये उठ कर बाथरूम में चले गए और जब बाहर आये तो मुझे डाँटते हुए बोले; "ठन्डे पानी से क्यों नहाये?" ये सुनते ही मुझे लगा की मेरी चोरी पकड़ी गई है| मैं जवाब सोचने लगी; "वो....वो जल्दी-जल्दी में geyser चलाना भूल गई!"
"ऐसी भी क्या जल्दी थी? खाना तो बन चूका था, और पिताजी को आने में अभी समय है?" इनके सवाल के आगे मेरे पास कोई जवाब नहीं था| मैं सर झुकाये खड़ी थी| ये चल कर मेरे पास आये और मेरी ठुड्डी पकड़ के मेरे चेहरे को ऊपर उठाके बोले; "मन कर रहा था न?" ये सुन कर मेरे गाल शर्म से लाल हो गए| "यार इस तरह ठन्डे पानी से नहाओगे तो बीमार पड़ जाओगे!" मेरे अंदर तो हिम्मत ही नहीं थी की मैं इनसे नजरें मिलाऊँ इसलिए मैं सर झुकाये खड़ी रही और फिर इनकी छाती से लिपट गई| जिस आग को मैंने इतनी मुश्किल से शांत किया था, उसे मैंने फिर से भड़का दिया था| दिल एक अजीब सी हालत में फंस गया था, मुझे इनका प्यार भी चाहिए था पर डर लग रहा था की कहीं मेरे स्वार्थ के चलते ये फिर से बीमार न पड़ जाएँ क्योंकि इनकी body अब भी recover कर रही थी|
मेरा जिस्म मेरा साथ नहीं दे रहा था| टांगें कापने लगी थीं और लगा था जैसे मैं अभी लड़खड़ा जाऊँगी| 'इन्होने' मेरे दिल को जैसे पढ़ लिया और बहुत धीरे से बोले; "मेरे होते हुए मेरी बीवी ठन्डे पानी से नहीं नहाएगी!" फिर 'इन्होने' जा कर कमरे के दरवाजे की चिटकनी लगा दी| बच्चे स्कूल से लौटने वाले थे और माँ उन्हें लेने स्कूल के लिए निकल चुकी थीं|
दरवाजा बंद कर के 'ये' मेरे पास आये और मुझे गोद में उठा लिया और बिस्तर पर लिटा दिया| रजाई खोल दी और...................... शुरू में मैंने 'इन्हें' रोकना चाहा ये कह कर की; "अभी आप पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो... और ऐसे में आप मेरी वजह से...." मैंने बात अधूरी छोड़ दी| 'इन्होने' मुस्कुराते हुए कहा; "कुछ नहीं होगा मुझे!" असल में मैं खुद इन्हें रोकना नहीं चाहती थी| मैं जानती थी की हमारे पास समय बहुत कम है इसलिए जो भी करना था वो इस थोड़े से समय में करना था| नजाने मुझ पर क्या वहशीपन सवार हुआ की मैंने इनकी नंगी पीठ को कुरेदना शुरू कर दिया| गर्दन पर जगह-जगह काट लिया और इनकी छाती तो मैंने काट-काट कर पूरी लाल कर दी| मुझे सच में उस समय कोई होश नहीं था! इन्होने भी मेरी इस प्रिक्रिया पर कोई ऐतराज नहीं जताया| पर समागम के बाद जब मैंने इन्हें देखा और वो सब निशानों पर मेरी नजर गई तो मुझे खुद पर कोफ़्त होने लगी! ये कैसा जंगलीपना आ गया था मुझ में? मैंने अपने ही प्यारको इस तरह नोच खाया था की...... मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी की मैं उनसे नजर मिलाऊँ| खुद से नफरत होने लगी थी!
"hey! क्या हुआ?" इन्होने पूछा|
"मैंने कुछ कहा नहीं बस ना में गर्दन हिला दी और दुबारा नहाने के लिए बाथरूम में घुस गई| जब नल खोला तो उसमें से गर्म पानी आ रहा था, मतलब 'इन्हें' सब पता था! मैं जल्दी से नहा कर बाहर आई और अपने बाल पोंछ रही थी की तभी ये मुस्कुराते हुए मेरे पास आये| इनके जिस्म पर मेरे दिए हुए जख्मों पर मेरी नजर गई तो मैं शर्म से पानी-पानी हो गई| पर 'इनके' चेहरा देख कर तो लग रहा था जैसे कुछ हुआ ही नहीं| 'ये' बिलकुल नार्मल लग रहे थे.... खाना खाते समय मैंने खुद को सहेज कर रखा| पर एक डर था की कहीं 'इनकी' तबियत फिर से ख़राब न हो जाये| इसी डर के चलते मैंने सोचा की आज फिर बच्चों को 'इनके' पास भेज दूँगी, ताकि ये सो जाएं| पर बच्चों के exams नजदीक थे और ऊपर से आयुष का जन्मदिन भी नजदीक आ गया था| उस दिन जो भी 'इनका' प्लान था उसके चलते आयुष पढ़ने वाला तो था नहीं इसलिए मैंने नेहा को आयुष को पढ़ाने का काम दिया और हुड इनके पास कमरे में चली गई| पिताजी तो खाना खा कर site पर चले गए थे और माँ drawing room में बैठी CID देख रही थीं| मैं bedpost का सहारा ले कर बैठ गई और 'इन्होने' मेरी गोद में सर रख लिया| इनकी आँख लग गया और मैं सोच में डूब गई| समझ ही नहीं आ रहा था की मुझे क्या हो गया था? अपनी इस हरकत पर मुझे खुद शर्म आने लगी और मैं ने मन ही मन सोचा की मैं अब दुबारा ऐसा कभी नहीं करुँगी|
शाम को जब ये उठे तब भी इन्होने कुछ नहीं कहा| इन्होने मुझे पहले की ही तरह प्यार करना जारी रखा.... जब भी समय मिलता ये मुझे पीछे से जकड़ लेते और हंसी-ठिठोली करते रहते| मैं भी इसी तरह इनका जवाब देती.... पर दुबारा इन्हें प्यार करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी| जब कभी इनके बदन का स्पर्श मुझे होता तो मुझे अपने द्वारा की हुई वो भयानक करतूत याद आने लगती| मुझे एक डर और सता रहा था.... की यदि हमारे प्रेम-मिलाप के दौरान इनकी तबियत ख़राब हो गई तो?
ऐसे करते-करते आयुष का जन्मदिन आ ही गया| इन्होने adventure park जाने का प्लान बनाया| मुझे चिंता होने लगी थी की इनकी तबियत अभी भी पूरी तरह ठीक नहीं है ऐसे में इनका ये exertion खतरनाक साबित ना हो| मैंने इन्हें बहुत समझाया पर ये अपनी जिद्द पर अड़े रहे| इन्होने सारा प्लान बना रखा था| रात बारह बज ने से पहले इन्होने मुझे, माँ और पिताजी को सारा प्लान बता दिया| इनके प्लान के अनुसार हमने साड़ी तैयारी कर ली थी| जैसे ही बारह बजे ये आयुष के कमरे में घुसे, आयुष और नेह दोनों सो रहे थे| आयुष के सिरहाने जा कर इन्होने उसके माथे को चूमा और उसे प्यार से उठाने लगे| फिर उसे गोद में उठाया और उसके कान में बोले; "Happy Birthday बेटा!" आयुष कुनमुनान लगा और फिर इनसे लिपट गया| मैंने आगे बढ़ कर उसके सर पर हाथ फेरा और कहा; "Happy Birthday बेटा!" पर आयुष अब भी कुनमुना रहा था| इन्होने मेरी तरफ देखा और मुझे इनके चेहरे पर बेबसी साफ़ नजर आ रही थी| ये आयुष को नींद से जगाना नहीं चाहते थे| पर उसके जागे बिना सारी तैयारी ख़राब हो जाती| मैंने इनसे कहा; "कोई बात नहीं...आज उसका जन्मदिन है और अपनी इतनी तैयारी जो की है उसके लिए|" फिर इन्होने आयुष के कान में कुछ खुसफुसाया और वो एक दम से उठ गया और :"Thank You!!!" बोला| वो जल्दी से इनकी गोद से नीचे उतरा और जा कर अपने दादा-दादी के पाँव छूने लगा और उनसे अपने जन्मदिन की बधाई ली| फिर वो मेरे पास आया और मेरे पाँव छू कर आशीर्वाद लिया| आखिर में वो इनके पास गया और इनके पाँव छू कर आशीर्वाद लिया और इन्होने उसे गोद में उठा लिया और बहुत प्यार किया| अब तक नेहा भी जाग चुकी थी और उसने भी आयुष को बधाई दी और हैरानी की बात ये की आयुष ने उसके भी पाँव छुए| सभी ये देख कर हैरान रह गए और हँसने पड़े...क्योंकि आज से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था| आयुष हमेशा नेहा को तंग ही किया करता था| इतने संस्कार मैंने तो नहीं दिए थे! हाँ मैंने आयुष को बड़ों का आदर करना शिखाया था पर आज जो कुछ हुआ वो देख कर बहुत अच्छा लगा| खेर मुझे ज्यादा सोचने की जर्रूरत नहीं थी....जवाब मेरे सामने खड़ा था| अब तो मैं बस ये सोच रही थी की आज क्या surprise मिलने वाला है हम लोगों को? हमेशा की तरह, इन्होने सबकुछ प्लान कर रखा था| "आयुष बेटा अब सो जाओ कल सुबह दस बजे तक तैयार हो जाना|" इन्होने आयुष से कहा| आयुष ने आगे कुछ नहीं पूछा और सब को Thank You बोल कर एकदम से लेट गया| ये देख कर हम सब हंसने लगे... दोनों बच्चों को माथे पर Kiss कर के इन्होने कमरे की लाइट बंद की और हम सब बाहर बैठक में आ गए| बाहर आ कर पिताजी ने इनसे कल के प्रोग्राम के बारे में पूछा तो इन्होने सारा प्लान बता दिया| परन्तु एक बात नहीं बताई .....जो मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी!
अगली सुबह आयुष सब से पहले तैयार हो गया और सारे घर में हड़कंप मचा दिया| सारे घर में कूद रहा था.....आज पहली बार मैंने उसे 'इतना' खुश देखा था! साढ़े दस बजे तक हम सब तैयार हो कर घर से निकले|हमें पूरा डेढ़ घंटा लगा वहां पहुँचने में.... और पूरा रास्ता आयुष शैतानी करता रहा| कभी music high volume में चालता तो कभी इनके फ़ोन पर गेम खेलने लगता| बैठे-बैठे अपनी और हमारी अलग-अलग pictures खींचने लगता| इतनी साड़ी selfie खींचीं की पूछो मत| नेहा भी selfie खींचने में मग्न थी और वो तो Facebook पर पिक्चरें upload करती जा रही थी| मैं बस मन ही मन सोच रही थी की आखिर amusement park होता कैसा है? मैंने तो आजतक टी.वी. पर ad ही देखि थी| उस ad में लड़कियां swim wear पहन के water park में मजे कर रही होतीं थीं| ये ख़याल आते ही मैंने सोच लिया की मैं कभी भी वो छोटे-छोटे कपडे पहनने नहीं वाली!
जब हम park के बाहर पहुंचे तो बाहर से ही जो नजारा दिखा उसे देखते ही मैं और बच्चे हैरान रह गए! 'ये' हमें एक तरफ खड़ा कर के टिकट लेने चले गए| टिकट ले कर जब हम अंदर घुसे तो अंदर का नजारा देख कर हम तीनों के मुंह से निकला; "oh my god!" ये एक jurrasic theme amusement park था| जगह-जगह पर dinosaur के पुतले और तसवीरें थीं| ऐसा लगता था मानों हम jurassic park फिल्म के सेट पर आ गए हो| जानती हूँ दोस्तों आपको सुन कर ये बहुत ज्यादा लगेगा पर मैंने और बच्चों ने अपने जीवन में आजतक ऐसा amusement park नहीं देखा| amusement park के नाम पर हमने सिर्फ एक मेला देखा था वो भी जब कभी गाँव में कोई त्यौहार होता था तब| उस मेले में बस giant wheel झूला होता था या फिर वो छोटे बच्चों के लिए एक घूमने वाला झूला| इससे ज्यादा हमने कभी नहीं देखा था|
आयुष और नेहा बहुत खुश थे...उनकी ख़ुशी उनके चेहरे पर साफ़ दिख रही थी| अगले छः घंटे तक हम पार्क में एक झूले से दूसरे झूले में घूमते रहे| जब कभी भी मुझे डर लगता तो मैं इनसे चिपक जाती और इन्होने उस समय का भरपूर फायदा उठाया! जैसे ही मैं इनसे लिपट जाती ये मेरे कान में कहते; "i love you!" आयुष और नेहा ने बहुत साड़ी फोटो खींचीं और आखिर में जब हम खाना खाने बैठे तभी इनका फ़ोन बज उठा| ज्यादातर तो ये मेरे सामने ही बात कर लिया करते थे पर आज ये फोन ले कर दूसरी तरफ जा कर किसी से बात करने लगे| पाँच मिनट बाद जब ये वापस आये तो मैंने इनसे पूछा; "किसका फोन था?" तो इन्होने मुझे बस आँख मारी और सवाल बदल दिया; "बच्चों कुछ order किया या नहीं?" मुझे कुछ अजीब लगा क्योंकि मैं इनका इशारा समझी नहीं थी|
खाना खाने के बाद आयुष फिर से जिद्द करने लगा और इस बार तो नेहा भी उसी का साथ दे रही थी| हार कर हमें फिर से अंदर जाना पड़ा और सच पूछो तो बहुत मजा आया| इतना मजा की मैं ये फोन वाली बात भी भूल गई| हम water park के सामने थे और बच्चों का और 'इनका' मन भी था अंदर जाने का पर 'इन्होने' जैसे-तैसे बच्चों को समझा दिया| ये जानते थे की मैं अंदर नहीं जाऊँगी.... मैंने इनका हाथ पकड़ लिया और हथेली दबा कर इन्हें thank you कहा| अब शाम होने लगी थी और हमें फिर से डेढ़ घंटा ड्राइव कर के घर जाना था तो मेरे समझाने पर बच्चे मान ही गए| हम निकलने लगे तो इन्होने फिर से किसी को फोन मिलाया और एक तरफ जा कर बात करने लगे| इस बार इन्होने बस दो मिनट बात की और फिर वापस आ कर गाडी में बैठ गए| मेरा मुंह थोड़ा लटक गया था तो मुझे खुश करने के लिए इन्होने मेरा favorite गाना: roar - katty perry चला दिया| गाना सुनते ही मेरी सारी नाराजगी फुर्र्र हो गई! "I got the eye of the tiger, a fighter, dancing through the fire
cause I am a champion and you're gonna hear me roar
louder, louder than a lion
cause I am a champion and you're gonna hear me roar
oh oh oh oh oh oh oh
oh oh oh oh oh oh oh
oh oh oh oh oh oh oh
you're gonna hear me roar" मेरे साथ बच्चे और 'इन्होने' भी गुनगुनाना शुरू कर दिया| ये पूरा गाना जैसे मेरे लिए ही बनाया गया था| lyrics का एक-एक शब्द मेरी जिंदगी के ऊपर based है| वैसे ये पहला अंग्रेजी गाना है जो इन्होने मुझे सुनाया था ये कह कर की; "ये गाना तुम्हारे लिए है!" तब से मैं इस गाने को बहुत दफा सुन चुकी हूँ| जब कभी भी मैं हारा हुआ महसूस करती हूँ ये गाना सुनती हूँ तो मुझे inspiration सी मिल जाती है| THANKS KATTY PERRY जी!
तभी अचानक से dashboard पर रखा इनका फोन विबरते करने लगा| मैंने फ़ौरन इनका फोन उठा लिया और ये किसी और का नहीं बल्कि 'राजी' का ही फोन था| उसका नाम देखते ही जैसे मेरा खून खौल उठा और मैं disconnect करने ही वाली थी की इन्होने इशारे से मुझे कॉल उठाने को कहा| इन्होने bluetooth लगा रखा था तो मेरे कॉल उठाते ही ये पता नहीं क्या बात करने लगे उससे| आवाज बहुत धीमी थी इसलिए मैं कुछ सुन नहीं पाई| मुझे सच में बहुत गुस्सा आ रहा था और मैंने ये सब कैसे control किया था मैं ही जानती हूँ| मैंने इनके फ़ोन में पुरानी call list चेक की तो पता चला पिछले दो कॉल भी 'राजी' के ही थे| पर असली धमाकेदार सरप्राइज तो घर पर मिलने वाला था! जैसे ही हम घर पहुँचे, इन्होने गाडी पार्क की और हम घर पहुँच गए| इन्होने फिर से किसी से फ़ोन पर बात करनी शुरू कर दी... किसी और से क्या 'राजी' से और किससे! इन्होने आयुष को doorbell बजने को कहा और दरवाजा खुलते ही ये पीछे से जोर से चिल्लाये; "SURPRISE आयुष बेटे!!! Happy Bday!!!" अनदर से 'राजी' माँ और पिताजी भी happy bday वाला गाना गाने लगे| देखा देखि मैंने और नेहा ने भी happy bday गाना शुरू कर दिया| आवाज सुन कर आस-पडोसी भी आ गए और सबने मिलकर आयुष का birthday celebrate किया और केक काटा| पार्टी का सारा अरेंजमेंट 'राजी' ने किया था! जहाँ एक तरफ मुझे ख़ुशी थी की आयुष का जन्मदिन इतनी धूम-धाम से मनाया जा रहा है वहाँ इस बात का गुस्सा भी की ये सब 'राजी' मैनेज कर रही है! पर ऐसा नहीं था की 'राजी' सिर्फ 'इनके' लिए ऐसा कर रही हो| वो जब कभी भी घर आती थी तो वो बच्चों से बहुत प्यार जताती थी| हमेशा उनके लिए चॉकलेट ले कर आती थी, बल्कि आती ही ऐसे समय पर थी जब बच्चे घर पर हों| बच्चे भी उससे बहुत घुल-मिल गए थे| हमेशा उसे 'आंटी' कह कर बुलाते थे| यही कारन था की मैं उस दिन चुप रही और मैं भी पार्टी के रंग में रंग गई......
आज सब बहुत खुश थे..... ऐसा लगा जैसे बरसों बाद खुशियाँ घर आई हों| सबसे बड़ा सरप्राइज तो अनिल ने दिया| या फिर ये कहें की 'इन्होने' ही ये सरप्राइज प्लान किया था| ऑइल को देख कर तो मेरी और आयुष की ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं था| आखिर वो मेरा पहला बेटा जो है! पार्टी में आयुष के स्कूल के सारे दोस्त और उनके परिवार वाले आये थे| नेहा का कोई भी दोस्त नहीं आया था... शायद किसी को invite नहीं किया गया या फिर 'ये' भूल गए होंगे! 'इनके' और पिताजी के बिज़नेस से जुड़े लोग जो आये थे वो गिफ्टों के बड़े-बड़े बॉक्स ले कर आये थे| कुल-मिलकर करीब 50 लोग आये होंगे| हमारा घर खचाखच भर चूका था.... सारे बच्चे तो आयुष और नेहा के कमरे में बैठे थे, पिताजी के जानने वाले लोग उनके कमरे में बैठे थे| सारी औरतें और माँ हमारे कमरे में और आयुष के दोस्तों के पापा और आस-पडोसी सब बैठक में बैठे थे|
रात दस बजे तक पार्टी चलती रही और साढ़े दस बजे करीब सब लोग चले गए| सब के जाने के बाद तो आयुष गिफ्ट्स खोलने लगा| तभी माँ ने 'इन्हें' याद दिलाया; "राजी ...बेटा रात बहुत हो गई है| तू आज यहीं सो जा|"
"नहीं माँ मैं घर चली जाऊँगी|" 'राजी' ने कहा|
"नहीं बेटा.... बहुत देर हो गई है| तुम अपनी बहन को फोन कर दो और चाहे तो बहु से या फिर मानु की माँ से बात करा दो| वो कह देंगी की आज आप यहीं रुक रहे हो|" पिताजी ने जोर दिया तो वो ना नहीं कह पाई और आखिर उसने अपने घर फोन करके सारी बात बता दी| मैं खामोश रही क्योंकि बात सही भी थी.... इतनी रात गए उसे अकेले कैसे जाने दें| हाँ एक रास्ता और था की 'ये' उसे छोड़ आएं पर मैं जानबूझ कर चुप रही..... क्योंकि मैं नहीं चाहती थी की ये उसे घर छोड़ने जाएँ| खेर जो हो गया सो हो गया, कम से कम इस बात की ख़ुशी थी की मेरे बेटे का ये पहला जन्मदिन जो उसके पापा ने मनाया वो बहुत शानदार था!!!
अब रात में सोने का समय हो चूका था| तो सोने का अरेंजमेंट कुछ इस प्रकार किया गया: 'राजी' और नेहा बच्चों के कमरों में सोये थे..... माँ-पिताजी और आयुष एक साथ सोये.... मैं और 'ये' अपने कमरे में और मेरा बेचारा भाई फिर से सोफे पर| बिचारे को हरबार सोफे ही नसीब होता है! अगर 'राजी' नहीं होती तो अनिल आज बच्चों के कमरे में सोया होता| खेर सब अपने कमरों में चले गए ..... पर आज तो ये बहुत ज्यादा रोमांटिक मूड में थे! मैं dressing table के सामने कड़ी हो कर अपनी बालियाँ उतार रही थी की तभी इन्होने पीछे से आकर मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया| इनका हाथ मेरी कमर से होकर मेरी नाभि के सामने lock हो चूका था| इनके होंठ मेरी गर्दन पर स्पर्श कर रहे थे…..
“क्या बात है? आज जनाब बहुत रोमांटि हो रहे हैं?" मैंने मुस्कुराते हुए पूछा|
"भई आज ही तो एरी पत्नी ने मुझे एक लड़के का बाप बनाया था....तो थोड़ा romance तो बनता है! आज तो मैं तुम्हें जी पर के thank you कहना चाहता हूँ|"
इनके होठों ने मेरी गर्दन पर आना जादू चलना शुरू कर दिया था| इनके जिस्म की महक मुझे दीवाना बना रही थी.... हम दोनों ही जैसे झूमने लगे थे....
'उम्म्म...रुको ना.....आप बहुत थक गए होगे...." मैंने किसी तरह इनके मन्त्र से मुक्त होने की कोशिश की|
"ना...कुछ नहीं होगा मुझे...."
मैं जानती थी की इन्हें कुछ नहीं होगा पर मैं तो बस बहाना बना रही थी की किसी तरह ये मुझे छोड़ दें पर ना...आज तो इन पर romance का भूत सवार था.... वैसे चाहती तो मैं भी नहीं थी की ये मुझे छोड़ें ही..ही..ही....!!!
"उम्म्म....नहीं... प्लीज.... अनिल है और वो भी तो...." मैंने 'राजी' का नाम नहीं लिया..... बस उसका नाम याद आते ही मुझे फिर से गुस्सा चढ़ने लगा|
"वो? वो कौन?" इन्होने अनजान बनते हुए पूछा| मन तो किया की पलट के उखड़ते हुए जवाब दे दूँ पर चुप रही| पर इनके इस सवाल ने मेरा गुस्सा भड़का तो दिया ही था|
"प्लीज... छोड़ दो मुझे! मेरा मन नहीं है!" मैंने थोड़ा नाराजगी दिखाते उए कहा|
मेरी इस बात का इन्हें बहुत बुरा लगा| इन्होने तुरंत मुझे छोड़ दिया और कहा; "sorry ....!" इससे ज्यादा ये कुछ नहीं बोले और दरवाजे की तरफ जाने लगे| मैंने इन्हें रोकना चाहा; "सुनिए ना...प्लीज...." पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी और ये बाहर जा चुके थे और दरवाजा बंद हो चूका था| मुझे राजी पर और गुस्सा आने लगा की उसकी वजह से ये सब हुआ| मेरे पति जिन्हें मैंने आजतक कभी भी खुद को प्यार करने से नहीं रोका आज मैंने उन्हें इस कदर जवाब दिया की उनका दिल तोड़ दिया| वो भी आज के दिन!!! मुझे वो रात याद आने लगी जब मैंने इन्हें वादा किया था की मैं आपको कभी भी खुद को प्यार करने से मना नहीं करुँगी!
मैंने जल्दी से कपडे बदले और बाहर आई तो देखा ये अनिल के साथ बैठे गप्पें लगा रहे थे| मुझे दरवाजे पर खड़ा देख इन्होने हँसते हुए मुझसे कहा; "सुनो... तुम आज राजी वाले कमरे में सो जाओ ताकि मैं नेहा और अनिल bedroom में सो जाएं| बेचारा जब भी आता है इसे सोफे पर ही सोना पड़ता है|" मैं हैरान थी की इतनी जल्दी इनका गुस्सा कहाँ काफूर हो गया? फिर मन ने कहा अच्छा है... शायद घर पर मेहमान हैं और ये सबका मूड ख़राब नहीं करना चाहते इसलिए नाराज नहीं हैं| मैंने मन ही मन सोचा की ठीक है अनिल के जाने के बाद मैं इन्हें कैसे ना कैसे कर के मना लूँगी| पर अभी की समस्या ये थी की मुझे राजी वाले कमरे में रात गुजारनी थी| अब जाहिर सी बात है की वो कुछ ना कुछ तो बात अवश्य करेगी और अगर मैंने जवाब ना दिया तो उसे बुरा लगेगा और फिर ये नाराज हो जायेंगे... और अगर अकड़ के जवाब दिया तो भी उसे बुरा लगेगा और ये नाराज हो जायेंगे| तो मैंने सोचा की बात बिगड़ने से अच्छा है की थोड़ा बहुत ड्रामा ही कर लिया जाए| वैसे भी थकावट इतनी है की मुझे जल्दी नींद आ जाएगी ....... इस बीच अगर उसने कोई बात की तो हंस के जवाब दे दूंगी और क्या!"
मैंने नेहा को बैठक में भेजा और मैं खुद उसकी जगह लेट गई| कुछ देर बाद बैठक से आने वाली आवाजें बंद हुईं मतलब की ये, नेहा और अनिल तीनों कमरे में जा चुके थे| राजी की शायद आँख लग चुकी थी इसलिए हमारी कोई बात नहीं हुई और मुझे भी बहुत नींद आ रही थी सो मैं भी सो गई|
अगली सुबह जब मैं उठी तो देखा की 'राजी' मुझसे पहले जाग चुकी थी और उसी ने सब के लिए चाय बनाई थी| माँ-पिताजी dining table पर बैठे चाय पी रहे थे और 'ये' बच्चों को स्कूल के लिए ready कर रही थे| मैंने घडी पर नजर डाली तो सात बज रहे थे! ये देख कर मैं फ़ौरन बाथरूम में घुस गई और जब बाहर आई तो 'राजी' किचन से निकल रही थी और उसके हाथ में चाय थी| अब मुझे मजबूरन उससे बात करनी पड़ी; "अरे आपने क्यों तकलीफ की? ......मुझे जगा दिया होता?"
"no problem ... मिट्ठू ने आपको .....जग....जगाने से..... मना किया ता!" उस ने हँसते हुए जवाब दिया| अब ये सुनते ही मेरी नस-नस में आग लग गई| पर 'इनके' दर से चुप हो गई की कहीं 'इन्हें' बुरा ना लग जाए... already कल रात मैंने इनका mood ख़राब कर दिया था| मैं जल्दी से नाश्ते की तैयारी करने लगी की तभी मदद करनी की इच्छा जताई .... पर मैंने झूठ में मुस्कुरा कर कह दिया; "अरे नहीं...आप बातें करो... मैं कर लूँगी|" इतने में 'ये' भी बाहर आ गए और बैठक में राजी के बगल वाली कुर्सी पर बैठ गए| (वैसे वो उनकी पसंदीदा कुर्सी है|) अनिल और राजी बात कर रहे थे पर as usual उसे हिंदी थोड़ा समझने में दिक्कत हो रही थी| तो मेरे 'ये' translator का काम करने लगे और उसे शब्दों का मतलब example दे कर समझने लगे| तीनों बड़ा हँस-हँस के बातें कर रहे थे और इधर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था| तो मैंने अपना गुस्सा आँटा गूंदने पर निकालना शुरू कर दिया| किसी punching bag की तरह उसे मारने लगी! नाश्ते में मैंने आलो के परांठे बनाये.... बच्चों का टिफ़िन पैक किया और उन्हें स्कूल भेजा| स्कूल जाते-जाते बच्चे 'इनके' पास आये इन्हें kiss किया और फिर दादा-दादी के पैर हाथ लगाये और चले गए| बाकी सब dining table पर बैठ गए और नाश्ता करने लगे| आलू के परांठे सबसे ज्यादा अगर किसी को पसंद आये तो वो थी 'राजी'| वो तो मुझसे उनकी recipe पूछने लगी! .....खेर मैंने उसे recipe बता दी|
नाश्ते के बाद पिताजी इन्हें बोल गए की; "बेटा राजी को तुम दोनों घर छोड़ आना|" और जवाब में इन्होने "जी पिताजी" कहा| पिताजी तो निकल गए पर राजी मना करने लगी.... तब माँ ने उसे समझाया की ऐसे ठीक नहीं होता.... बहु और मानु तुम्हें खुद घर छोड़ आएंगे| मैं जा कर तैयार होने लगी तो देखा की मेरी नई नाइटी गायब है? मैंने उसे एक बार भी नहीं पहना था!!!! मुझे पक्का यक़ीन था की वो नाइटी 'राजी' ने ही पहनी होगी| पर 'इनके' डर की वजह से मैं चुप रही और तैयार होकर बाहर आई| तब देखा की 'राजी' बाथरूम से वही नाइटी ले कर निकल रही है.... वो भी धुली-धुलाई| इससे पहले मैं उससे कुछ कह पाती 'ये' आ गए और बोले; "रात में इनके पास सोने के लिए कुछ कपडे नहीं थे इसलिए मैंने तुम्हारी नई वाली नाइटी दी थी पहनने के लिए|" अब डर के मारे मुझे तो समझ नहीं आया की क्या कहूँ; "अरे पर आपने इसे धोया क्यों? मैं धो देती|" मैंने मुस्कुराते हुए कहा.... जबकि मेरा दुःख सिर्फ मैं ही जानती थी|
"नहीं...मैं पहना न ये...तो आपसे कैसे wash करने को कहते?" उसने फिर से अपनी टूटी-फूटी हिंदी में जवाब दिया| उसे wash की हिंदी नहीं आती थी! ही..ही..ही..ही.... खेर हम उसे छोड़ने कार से निकले और रास्ते भर दोनों बातें करते रहे और मैं साथ में हाँ-हुनकर करती रही| मैंने दोनों को जरा भी भनक नहीं लगने दी की मुझे इन दोनों की इस नजदीक से कितनी तकलीफ है| जब हम राजी के घर पहुंचे तो मुझे लगा की उसे सिर्फ नीचे छोड़ कर हम चले जायेंगे.. पर ये तो ऊपर चलने के लिए आतुर हो गए थे और ये मुझे भी जबरदस्ती ले गए| इन्होने डिक्की में कुछ गिफ्ट्स रखे थे जिन्हें देख कर मैं भी हैरान थी की ये कब आये? आज पहलीबार मैं एक "christian" घर में कदम रखने जा रही थी| थोड़ा अजीब लग रहा था... पर क्या करूँ? 'राजी' के घर में उसकी बड़ी बहन और उसका जीजा और एक छोटी बच्ची ही थे| हैरानी की बात तो ये थी की वो सब 'इन्हें' जानते थे| हमारा बहुत अच्छा स्वागत हुआ... सबसे ज्यादा हैरानी तो मुझे तब हुई जब वो छोटी बच्ची अंदर से आई और भागती हुई इनकी गोद में आ गई| और ये भी उस बच्ची को गोद में ले कर दुलार करने लगे| "मेरा childhood फ्रेंड कैसा है?" ये सुनकर तो मैं हैरान पढ़ गई और मेरी ये हैरानी मेरे चेहरे पर झलकने लगी|
"मिट्ठू कहते...की ये बच्ची है means child और मिट्ठू का friend है... इसलिए childhood friend .... ही..ही...ही...ही..." राजी की ये बात सुनकर तो मुझे भी हँसी आ गई|
"actually जब मैं पहलीबार 'राजी' से मिला तो ये बच्ची भी साथ आई थी| तो उस दिन मुझे एक साथ दो फ्रेंड मिल गए...इसलिए मैं मेरे dear friend को childhood friend कहता हूँ|" ये सुन कर सब हँस पड़े| इतनी देर में 'राजी' की दीदी पानी ले आईं| इन्होने गिलास ले लिया और मुझे भी पानी पीना ही पड़ा| हमारे गाँव में तो हम किसी दूसरी जात के यहाँ पानी नहीं पीते और ये दूसरे धर्म के हैं! यही हिचकिचाहट मुझ में भी भरी हुई थी.... पर ये ऐसा कतई नहीं सोचते थे| इन्होने उसे बच्ची से मेरा introduction कुछ इस तरह कराया; "angel.... she's wife .... and since you're my childhood friend so she's your friend also." ये सुनकर वो हँसने लगी| उस बच्ची की स्माइल बहुत प्यारी थी और उसे मुस्कुराता हुआ देख मैं खुद को उसे गोद लेने से रोक ना पाई और अपनी बाहें खोल कर उसे गोद में लेना चाहा| angel भी बिना नखरा किये मेरी गोद में आ गई और उस पल मुझे एहसास हुआ की छोटे बच्चों को देख कर हम कभी भी ये भेद-भाव नहीं करते की ये किस धर्म का है...जब वो बच्चा बड़ा हो जाता है तभी हमारे अंदर ये भेद-भाव की भावना पैदा होती है| वरना एक छोटे बच्चे की हँसी का तो कोई धर्म नहीं होता! उसे गोद में लेने के बाद मुझे ख़ुशी हुई........ और खुद से घृणा भी| कहाँ तो मैं एक christian family के घर जाने से कतरा रही थी और कहाँ इस छोटी सी बच्ची के गोद में आते ही मैं वो सब भूल गई| सच में मित्रों मेरी तरह के orthodox लोग भी हैं इस दुनिया में!
अब की बार तो मैंने angel को इनसे भी ज्यादा दुलार किया! चाय पीने के बाद हम वहाँ से निकले.... राजी और उसका परिवार हमें नीचे तक छोड़ने आया......... अब मेरा मन प्रसन्न था| पर अगले ही पल याद आया की कहीं ये अपना कल रात का गुस्सा मुझ पर ना निकालें? पर ऐसा नहीं हुआ...गाडी में बैठने के बाद इन्होने कहा; "i'm sorry कल मैंने बिना तुमसे पूछे तुम्हारी नई वाली नाइटी राजी को पहनने के लिए दे दी|" इन्होने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा| इनकी ये बात मुझे बहुत अच्छी लगती है (वैसे तो इनकी बहुत सी बातें अच्छी लगती हैं|) की ये अपनी छोटी से छोटी गलती को स्वीकार लेते हैं और सच्चे दिल से माफ़ी माँगते हैं|
"जानू... तो क्या हुआ? एक नाइटी ही तो थी! पर उस बेचारी ने भी सुबह-सुबह नाइटी धोकर वापस दी ये मुझे अच्छा नहीं लगा| मैं धो लेती... इसमें का बात थी|" आधी बात तो मैंने सिर्फ इनका दिल रखने के लिए कही थी|
"नहीं यार वो जानती है की आप पेट से हो ऐसे में वो भला आपको काम कैसे करने देती? वो भी उसके उतारे हुए कपडे धोना! मेरी बीवी के पास सिर्फ यही काम थोड़े ही है?" इन्होने बहुत हँसते हुए कहा और इनका जवाब सुनकर मुझे अछा लगा| लगा जैसे अभी भी इन्हें मेरी परवाह है... मतलब ऐसा नहीं है की इन्हें कभी मेरी परवाह नहीं होती.... पर उन दिनों में कुछ ऐसा ही सोच रही थी| इन्होने गाडी सरोजनी नगर मार्किट की तरफ मोड़ी...... वहाँ पहुँच के इन्होने मुझसे पूछा; "same नाइटी लगी या उससे भी अच्छी?" मैं ये सुनकर हैरान रह गई .............और खुश भी!! मैंने ख़ुशी से झूम कर कहा; "नई!!!" ये भी हँसते हुए निकले और हमने जा कर मेरे लिए एक नई नाइटी खरीदी| और साथ ही एक नई साडी भी ली.... जो 'इन्होने' पसंद की थी| मैं खुश थी.... की कम से कम इनका गुस्सा ठंडा हो गया| अब बारी थी तो उस काम को पूरा करने की जो कल रात मेरी बेवकूफी की वजह से अधूरा रह गया था|आज तो मन बहुत ज्यादा उतावला हो अहा था.... बस रात होने का इन्तेजार कर रही थी| रात होने तक ये मुझसे अब भी हंस कर बात कर रहे थे ...हाँ बस जैसे पहले ये मुझे अकेला पा कर छू लिया करते थे वो नहीं था.... पर मैंने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया| रात में सबके खाने के बाद मैं kitchen समेटने लगी और ये अपने कमरे में जा कर लेट गए| मैंने बच्चों का कमरा देखा और दरवाजा बंद कर दिया ... माँ अभी भी बैठक में बैठीं टी.वी. देख रहीं थीं| मैं कमरे में आई और जल्दी से दरवाजा बंद किया.... इनको देखा तो ये माथे पर हाथ रख कर शायद सो चुके थे| मैंने जल्दी से कपडे बदले और इनके पास आ कर लेट गई| मैं जानती थी की अभी इनकी आँख नहीं लगी है ...इसलिए मैंने इनके दाहिने हाथ को अपना तकिया बनाया और इनसे लिपट गई| इनहोने कुछ भी react नहीं किया... मैं फिर भी इनसे लिपटने लगी .... पर कोई reaction नहीं... आखिर मैंने इनके गाल को kiss किया तब जा कर इनके उन्ह से; "उम्म्म...." निकला|
अब मैं इनके और नदीक आ गई और इनके होठों को kiss करने की कोशिश की तभी....तभी इन्होने मुझे रोक दिया और मेरी आँखों में देखते हुए ना में गर्दन हिलाई| इनका ऐसा reaction देख मैं समझ गई की इनका गुस्सा शांत नहीं हुआ है?
"मुझे माफ़ कर दो.... मुझसे गलती हो गई| कल.....वो....." मैं इनसे झूठ नहीं बोल सकती थी.... इसलिए चुप हो गई|
"कल क्या? तुम्हें पता है कल मुझे कैसा लगा जब तुम ने मुझे इस तरह झिद्दिक दिया था? इसकी उम्मीद मैंने कभी नहीं की थी! मुझे लगा जैसे मैं तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती कर रहा हूँ! ...... तुम्हारा शोषण कर रहा हूँ......खुद से नफरत करने लगा था| ...................शायद तुम भूल गई की तुमने कभी मुझसे कुछ वादा किया था?" 'इनकी' बातों ने मुझे झिंझोड़ कर रख दिया था|
"पता नहीं मुझे कल क्या होगया था? प्लीज.... मुझे माफ़ कर दो!" मैं रो पड़ी और गिड़गिड़ाने लगी|
"तुम्हें पता है....पर तुम बताना नहीं चाहती| ठीक है.... मैं नहीं पूछूँगा!" 'इन्होने' मेरे आँसूं पोछे और मुझे चुप कराया|मुझे लगा की इन्होने मुझे माफ़ कर दिया पर ये दूसरी तरफ मुँह कर के सोने लगे| मैंने इनसे पूछा; "आपने मुझे माफ़ कर दिया?" जवाब में इन्होने बस; "हम्म्म्म...." का जवाब दिया| पर मेरे अंदर तूफ़ान सा खड़ा हो गया था.... मन कह रहा था की तूने इनका प्यार खो दिया.... और मैं चाह कर भी इनसे ये पूछने को नहीं रोक पाई; "तो क्या आप मुझे कभी हाथ नहीं लगाओगे?"
इन्होने कुछ जवाब नहीं दिया...... पर मैंने मन ही मन सोच लिया की मैं इन्हें मना कर ही रहूंगी और इनके दिल में अपना प्यार वापस जगा के रहूँगी|
रात के करीब बारह बजे दरवाजे पर दस्तक हुई| मैं उस समय बाथरूम से निकल रही थी.... मैंने दरवाजा खोला तो नेहा थी और रो रही थी|"आजा बेटा...फिर से बुरा सपना देखा?" 'इन्होने' इशारे से उसे अपने पास बुलाया| ये थोड़ा पीछे की तरफ सरक गए और नेहा आकर इनके दाहिने तरफ लेट गई| इन्होने उसे अपनी छाती से लगा लिया और से चुप करने लगे| "बस...बस...बास...मेरा बेटा तो बहुत बहादुर है ना? बस.... अच्छा कहानी सुनोगे?" नेहा ने सर हाँ में हिलाया| इन्होने कहानी शुरू की पर नेहा को अपनी छाती से अलग नहीं किया|मैं भी इंनके पीछे आ कर लेट गई और इनकी कमर पर हाथ रख दिया| इन्होने मेरा हाथ पकड़ के आगे की तरफ खींचा और नेहा की पीठ पर रख दिया| इनकी कहानी सुनते-सुनते कब मुझे और नेहा को नींद आ गई पता ही नहीं चला|
सारी रात नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए निकली| एक पल के लिए भी उसे खुद से जुदा नहीं होने दिया| अब उसका यूँ रात में चौंक कर उठ जाना मुझे गंवारा ना था| मैं जानता था की मेरी बेटी को कोई दिमागी बिमारी नहीं है पर मुझे कैसे भी कर के उसे उसके डर से बाहर निकलना था| अपने बचपन में मैंने भी डरावने सपने देखे थे, जिन्हें देख कर मैं जाग जाया करता था| जब में तकरीबन नेहा की उम्र का था तब मैंने पडोसी दोस्त के घर 'आहात' नाम का नाटक देखा था और तब से तो मुझे अकेले रहने में बहुत डर लगने लगा था| उस समय हमारे घर में बाथरूम पहली मंजिल पर था, तो अँधेरे में मैं बाथरूम तक नहीं जाया करता था| जब मैंने ये डरने वाली बात अपने माता-पिता को बताई तो माँ ने तो ये कह दिया की तू इतना बड़ा हो गया है और ऐसी चीजों से डरता है? पिताजी ने तो एक दिन मेरी दडे से सुताई कर दी थी, वो भी इस बात पर की मैं रात में अकेले सोने में डरता था| उस दिन उन्होंने मुझे भगा-भगा के मारा था| मेरे दोस्त लोग मेरा मजाक उड़ाया करते थे की ये देखो भूत-प्रेत से डरता है,, मर्द बन मर्द और अपने डर का सामना कर| हुँह कहना बहुत आसान होता है पर करना उतना ही मुश्किल| पर किस्मत से मेरा ये डर उम्र बढ़ने के साथ निकल गया| मैंने अपना मन पूजा-पाठ में लगाया और भगवान पर भरोसा आने लगा की जब तक वो हैं मेरे साथ कुछ भी गलत नहीं होगा| पर अपनी बेटी नेहा के लिए में बेसब्रा हुआ जा रहा था| मुझे जल्द से जल्द उसकी इस परेशानी का जवाब ढूँढना था| पर कैसे? ये सवाल ही मेरी चिंता का कारण था| मैं ने एक नजर नेहा को देखा, वो अब भी सो रही थी और संगीता भी नींद में थी| मैं उठा और नह धो कर भगवान का नाम लेने लगा, अपनी बेटी के लिए दुआ करने लगा की मेरी बेटी को ये डरावने सपने आने बंद हो जाएँ| जब भी मुझे कुछ सुझाई नहीं देता तो मैं भगवान का नाम लेता हूँ, ये सोच कर की वो मुझे कोई न कोई रास्ता अवश्य ही सुझाएंगे|
शायद रास्ता मिल भी गया| उस वक़्त घडी में पाँच बज रहे थे और मेरी बैचनी बढ़ने लगी थी इसीलिए मैंने डॉक्टर सरिता जी को फ़ोन किया:
मैं: हेलो? डॉक्टर सरिता?
डॉक्टर सरिता: हेलो
मैं: माफ़ कीजिये सरिता जी मैंने आपको इतनी सुबह तंग किया?
डॉक्टर सरिता: अरे कोई बात नहीं मानु| सब ठीक तो है ना?
मैं: जी नहीं| नेहा को हर तीसरे दिन बुरे सपने आते हैं और वो डर के मारे रोने लगती है और आधी-आधी रात को उठ कर मेरे पास आ जाती है| जब-जब मैं उसके साथ सोता हूँ तो वो ठीक रहती है और आराम से सोती है| प्लीज सरिता जी मदद कीजिये!
डॉक्टर सरिता: घबराओ मत सब ठीक हो जायेगा| मैं तुम्हें डॉक्टर अंजलि का नंबर देती हूँ वो बच्चों की मनौवैज्ञानिक हैं| तुम, संगीता और नेहा उनसे जा कर मिलो वो तुम्हारी जर्रूर मदद करेंगी|
मैं: जी ठीक है| आपका बहुत-बहुत शुक्रिया!
डॉक्टर सरिता: मैं तुम्हें अभी नंबर मैसेज करती हूँ|
अगले पाँच मिनट में डॉक्टर सरिता का मैसेज आ गया| मन तो कर रहा था की अभी फ़ोन करूँ पर ये ठीक नहीं होता| इसलिए मैं घडी में दस बजने का इन्तेजार करने लगा| पर ये घडी कम्बखत बहत धीरे चल रही थी| माँ-पिताजी भी उठ चुके थे तो मैंने सोचा की चलो चाय ही बना लूँ|चाय बना कर जब मैं माँ-पिताजी को देने गया तो मेरे हाथ में चाय देख कर माँ-पिताजी परेशान हो गए|
माँ: बहु की तबियत ठीक है ना?
मैं: जी ठीक है|
पिताजी: फिर चाय तू क्यों ले कर आया?
मैं: वो मैं जल्दी उठ गए तो सोचा आज मैं ही चाय बना लूँ|
पिताजी: अच्छा अब जा कर बहु और बच्चों को भी उठा दे|
मैं अपनी और संगीता की चाय ले कर कम्मर में पहुँचा| संगीता बाथरूम से निकल रही थी और मेरे हाथ में चाय का कप देख वो सकपका गई|
संगीता: आप? चाय?
मैं: सारी रात सोया नहीं, लेटे-लेटे ऊब गया था तो उठ कर नहाया फिर पूजा की और फिर भी समय नहीं कटा तो सोचा चाय बना लूँ|
संगीता: नींद क्यों नहीं आई? अब भी नाराज हो मुझसे?
मैं: नहीं यार| मैं नेहा के लिए परेशान हूँ|
संगीता: उसके बुरे सपनों को ले कर? जैसे-जैसे उम्र बढ़ेगी ये बुरे सपने आना बंद हो जायेंगे|
मैं: अब और उसे रोते हुए नहीं देख सकता| तुम चाय पियो मैं बच्चों को उठाता हूँ|
बच्चों को उठा कर स्कूल के लिए तैयार किया और इतनी देर में संगीता ने उनका टिफ़िन भी बना दिया| बच्चों को स्कूल छोड़ कर घर आया तो सोचा की माँ-पिताजी से नेहा के बारे में बात कर लूँ|पिताजी अखबार पढ़ रहे थे और माँ साग चुन रही थी| संगीता भी माँ के साथ साग चुन रही थी|
मैं: माँ ... पिताजी... आप लोगों से कुछ बात करनी है|
पिताजी ने अखबार मोड़ के रख दिया और माँ और संगीता भी रूक गए| सबका ध्यान मेरी तरफ था:
मैं: पिताजी मैंने डॉक्टर सरिता को फ़ोन किया था|
पिताजी: किस लिए?
मैं: कल रात को नेहा फिर से ..... (मैंने अपनी बात पूरी नहीं की और पिताजी भी समझ गए|)
पिताजी: बेटा तू क्यों चिंता करते है| बुरे सपने सब बच्चों को आते हैं और चूँकि वो छोटे होते हैं इसलिए दर जाते हैं| जब वो बड़े हो जाते हैं तो उनका ये दर खत्म हो जाता है| तू चिंता ना कर वरना फिर से बीमार पड़ जायेगा|
संगीता: पिताजी कल रात भर नहीं सोये| (संगीता ने मेरी चुगली की|)
माँ: बेटा एक बात बता तू फिर से बीमार पड़ना चाहता है?
मैं: नहीं माँ ऐसा नहीं है| आप एक बात बताओ, क्या आप लोग कभी मेरी आँखों में आँसूं देख पाते थे? फिर मैं अपनी बेटी को रोता हुआ कैसे देखूं? और चलो एक आध बार की बात होती तो ठीक था पर हर तीसरे दिन उसका इस कदर डर जाना?
संगीता(मेरी बात काटते हुए): ये सब मेरी.......
मैं (संगीता की बात काटते हुए): Shut up संगीता!
मैंने संगीता को झिड़कते हुए कहा| उसका कारन ये था की मैंने अपने माँ-पिताजी को संगीता और अपने बारे में सब कुछ नहीं बताया था| वरना उनके मन में शायद संगीता की वो छबि न बन पाती जो मैं चाहता था| अब आप लोग इसे सही कहें या गलत ये आपके ऊपर है|
मेरा इस कदर संगीता को झिड़कना पिताजी और माँ को पसंद नहीं आया क्योंकि वे मुझे घूर कर देख रहे थे| मेरी झिड़की से संगीता सहम गई और खामोश हो गई थी तथा अपना सर झुका कर बैठी थी| मैंने अपनी बात जारी रखी:
मैं: अगर ये सब प्राकर्तिक भी है तो भी मैं एक बार अपने मन की तसल्ली के लिए डॉक्टर से मिलना चाहता हूँ| डॉक्टर सरिता ने मुझे मुझे एक बाल मनोवैज्ञानिक डॉक्टर अंजलि का नंबर दिया है| मैं उन्हें फोन कर के कल की अपॉइंटमेंट ले लेता हूँ|
पिताजी: जैसा तुझे ठीक लगे, पर तू नेहा को क्या कहेगा?
मैं: यही की आगे चल कर उसे क्या करना है इसके लिए एक जानकार से परामर्श लेने जा रहे हैं| उसे ये सब बोल कर मैं मानसिक रोगी नहीं बनाना चाहता| उसके सामने हम ऐसे ही पेश आएंगे जैसे ये कोई आम बात है|
पिताजी: ठीक है|
इतना कह कर पिताजी उठ कर चले गए|
नाश्ते के बाद पिताजी तो साइट पर निकल गए| पर मैं घर पर रूक कर डॉक्टर अंजलि को फ़ोन करने लगा| एक बार मिलाया, पर नंबर व्यस्त था| पंद्रह मिनट बाद मिलाया फ़ोन फिर से व्यस्त था| अब धीरे-धीरे मन व्याकुल होने लगा और इस बार भगवान का नाम ले कर फिर मिलाया| इस बार.... फ़ोन लग गया| फ़ोन उनकी सेक्रेटरी ने उठाया, मैं गुस्से में इस कदर जल रहा था की मैं उसी पर बरस पड़ा| मैंने उसे इतना डाँटा... इतना डाँटा की वो बेचारी मुझसे माफियाँ माँगने लगी| वो लड़की अपने बॉयफ्रेंड से लैंडलाइन पर बात करने में व्यस्त थी| उसने मुझे परसों की अप्पोइंमेंट दी पर जब मैंने उसे धमकाया तो उसने मुझे कल की अपॉइंटमेंट दे दी| चूँकि कुछ देर पहले मैं उस लड़की डाँट रहा था तो जाहिर था की मेरी ऊँची आवाज मेरी बेगम संगीता के कानों तक पहुँची थी| उन्होंने जब मेरी नाराजगी का कारण पूछा तो मैंने उन्हें सब बात बताई| मेरी बात सुन कर वो भी मेरी बात से सहमत थीं|
मैं: मुझे माफ़ कर दो, मैंने उस समय तुम्हें इस कदर झिड़क दिया| दरअसल मैं नहीं चाहता की तुम उन पुरानी बातों को माँ-पिताजी के सामने दोहराओ| मैंने कुछ सोच-समझ कर उन्हें ये बातें नहीं बताई| और जो कुछ भी हुआ उसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं थी| तुम्हारी जगह मैं होता तो मैं भी वही करता|
संगीता: नहीं.... आप नेहा के साथ ऐसा कभी नहीं करते| नेहा के साथ क्या आप किसी भी बच्चे की परवरिश के साथ ऐसी लापरवाही कभी नहीं करते| आप बच्चों से बहुत प्यार करते हो! मैंने जो किया वो बहुत गलत था.... बहुत-बहुत गलत|
मैं: पर अब तो ऐसा नहीं है| अब तो हम सब साथ हैं|
संगीता: शायद... सच पूछो तो अब मेरे अंदर आपके सिवा किसी और के लिए प्यार नहीं बचा| बच्चों के लिए भी नहीं! जानती हूँ की आप उनकी परवरिश बहुत अच्छे से कर सकते हो और करोगे भी|
आगे मैं कुछ बोल पाता उससे पहले ही फ़ोन की घंटी बज उठी| कुछ जर्रुरी काम की वजह से मुझे फटफट निकलना पड़ा| निकलने से पहले मैंने संगीता को एक प्यारी सी झप्पी दी और फिर मैं निकल गया| गाडी चलते हुए मेरे दिमाग में बस संगीता की बातें गूँज रही थीं| मैं जानता था की वो मुझसे कितना प्यार करती है और मुझे पाने के लिए कुछ भी कर सकती है| पर मैं चाहता था की वो बच्चों को भी उतना ही प्यार दे| कहीं मेरे कारन मेरे बच्चे अपनी माँ के प्यार से वंचित न रह जाएँ| मुझे ये बात संगीता को समझनी थी पर सही समय आने पर|
अपॉइंटमेंट वाले दिन मैं, नेहा और संगीता डॉक्टर अंजलि के चैम्बर पहुँच गए| नेहा को बाहर छोड़ कर हम दोनों अंदर डॉक्टर के केबिन में बैठ गए| हमने डॉक्टर साहिबा को सारी बात बता दी|हमारी सारी बात इत्मीनान से सुनने के बाद उन्होंने हमें बाहर बैठने को कहा और नेहा को अंदर बुलाया|नेहा से करीबन 20 मिनट तक बात करने के बाद उन्होंने हमें अंदर बुलाया और नेहा को फिर से बाहर बैठने को कहा| मैंने अपना मोबाइल नेहा को दे दिया ताकि वो उसमें कुह गेम आदि खेले और बोर न हो जाए|
cabin के अंदर जो हुआ वो मैं आज पहली बार experience कर रही थी| मुझे लगता था की माँ-बाप बच्चों की सिर्फ अच्छी परवरिश की जिम्मेदारी उठाते हैं| पर आज मुझे पता चला की एक अच्छी परवरिश ही नहीं बल्कि उन्हें एक अच्छा इंसान बनाने की भी जिमेदारी माँ-बाप के सर होती है|
डॉक्टर साहिबा जी को शक था की हमारी शादी से नेहा खुश नहीं है..... या फिर शादी के बाद हम बक्छों पर जरा भी ध्यान नहीं देते| पर 'इन्होने' उनका ये शक मिटा दिया| डॉक्टर साहिबा ने इनसे नेहा के बारे में बहुत से सवाल पूछे जिन्हें मैं आपके सामने उसी तरह पेश कर रही हूँ जैसे 'ये' लिखते हैं| (आशा करती हूँ आपको ये पसंद आएगा|)
अंजलि : मैंने नेहा से बात की.... और मुझे ये पता चला की वो आपसे बहुत प्यार करती है| आखिर लड़कियाँ होती हैं अपने पिता की सबसे लाड़ली|
मैं: पर आयुष भी 'इनसे' उतना ही प्यार करता है| बल्कि इनका जाड तो हर बच्चे के सर चढ़ कर बोलता है|
मैंने कुछ ज्यादा ही confidence में आ कर ये कह दिया....... ये सुन कर डॉक्टर अंजलि मेरी तरफ हैरानी से देखने लगीं तब मुझे एहसास हुआ की मैंने ये क्या कह दिया! पर तभी 'इन्होने' जैसे-कैसे बात संभाली|
"वो..... actually बच्चों के साथ मेरी अच्छी understanding है|"
अंजलि: ok .... तो आप दोनों सबसे ज्यादा किसे प्यार करते हैं?
मैं: दोनों बच्चों को .... (मेरा जवाब शायद satisfactory नहीं था...... इसलिए इन्होने फिर बात संभाली|)
"हमने आज तक बच्चों को ये महसूस नहीं होने दिया की हम उनके साथ किसी तरह का पक्षपात करते हैं| अगर नेहा रात को मेरे पास सोती है तो दिन में मैं और आयुष साथ-साथ computer पर game खेलते हैं| मैं दोनों को बराबर प्यार करता हूँ.... किसी को कम किसी को ज्यादा नहीं|
अंजलि: और आप संगीता?
मैं: जी ....मैं भी| (मैं झूठ नहीं बोल सकती थी ......पर अपने पति को भी झूठा नहीं बनाना चाहती थी| इसलिए मैंने बिना किसी confidence के जवाब दिया|)
उन्हें ये पता चल ही गया होगा की मैं 'इनसे' बहुत प्यार करती हूँ..... पर उन्होंने इस बात को उस समय ज्यादा कुरेदा नहीं|
अंजलि जी ने 'इनसे' नेहा से जुड़े कुछ सवाल पूछे... हैरानी की बात ये थी की उनका ध्यान केवल 'इन्हीं' पर था| ऐसा लग रहा था जैसे वहां कोई interview चल रहा हो!
अंजलि: नेहा का favorite subject क्या है?
"mathematics"
अंजलि: नेहा की favorite teacher?
"माथुर mam ... और वो history पढ़ाती हैं!"
अंजलि: favorite food?
"राजमा चावल.... और chips !!!"
अंजलि: best friend?
"........" इनके पास कोई जवाब नहीं था......और मेरे पास तो ऊपर के किसी सवाल का जवाब नहीं था! सच में हमारा कभी इस बात पर ध्यान ही नहीं गया की नेहा का कोई दोस्त नहीं है| घर में वो हमेशा चिहुँकती रहती थी ...... मुझे तो हमेशा लगता था की वो बहुत खुश है|
अंजलि: नेहा भी इसी तरह चुप थी| क्या आपने कभी नहीं सोचा की ...........
"जी नहीं..... तो क्या उसकी इस हालत का कारन दोस्त न होना है?" ('इन्होने' अंजलि की बात काटते हुए कहा|)
अंजलि: नहीं ये कारन तो नहीं है पर मैं जानना चाहती थी की आप अपनी बच्ची के बारे में कितना जानते हैं| please बुरा मत मानिये पर वो आपका अपना खून नहीं है ....... और आमतौर पर fathers उन्हें उतना प्यार नहीं देते!
मैं: ये आप क्या कह रहीं हैं? ऐसा कटाई नहीं है.... आपने नेहा से बात की ना? क्या आपको लगता है की 'ये' उसे प्यार नहीं करते? नेहा के बारे में मुझसे ज्यादा 'ये' जानते हैं और फिर भी आप ऐसा कह रहीं हैं!
अंजलि: आप माँ हैं.... और आप ही अपने बच्ची पर ध्यान नहीं देतीं? आपके रूखे बर्ताव के कारन वो इतना डर चुकी है की सपनों को सच मान लेती है| वो तो उसे अपने पापा के प्यार का सहारा है तो वो खुद को संभाल लेती है .... वरना कुछ गलत भी हो सकता था|
अंजलि की बातें सच थीं .... और बहुत कड़वी भी| पर मैं helpless थी.... चाहे कुछ भी करूँ मेरा ध्यान ‘इन’ पर से हटता ही नहीं था| मैंने अपने प्यार को इन्हें समर्पित कर दिया था..... ! "तो डॉक्टर अब हमें क्या करना चाहिए?"
अंजलि: i m sorry पर इसका इलाज दवाइयों से possible नहीं है| ये तो आपको खुद ही सम्भालना पड़ेगा ... ख़ास तौर पर आप! आप उसके पापा हैं और सबसे ज्यादा प्यार भी वो आपसे करती है|
इन्होने कुछ जवाब नहीं दिया ........ बस हाँ में सर हिलाया और हम उठ कर बाहर आ गए| मैं जानती थी की इन्हें ये सब सुनकर कितनी तकलीफ हुई है..... और सच पूछो तो मैं ये सोच रही थी की हम यहाँ आये ही क्यों? क्या ये सब सुनने के लिए? ये कैसी counsellings थी? गलती मेरी थी और सुन्ना 'इन्हें' पड़ा|बाहर waiting hall में आने पर पता नहीं कैसे इन्होने अपने expression बदल लिए और हँसते हुए नेहा का हाथ पकड़ के बाहर आ गए| मैं जानती थी की ये नेहा से लाख छुपाएं पर मुझसे अपने जज़्बात नहीं छुपा सकते| गाडी में बैठे-बैठे मैं बेचैन होने लगी और मुझे एक तरह से गुस्सा आने लगा की ऐसा क्यों है? क्यों नेहा ने कोई दोस्त नहीं बनाया? इसलिए जब मैंने नेहा से पूछा; "नेहा.... क्या ये सच है की तुम्हारा......." मेरे आगे कुछ कहने से पहले ही इन्होने मेरी बात काट दी; "lets not discuss it here ..... " और इधर नेहा मेरा अधूरा सवाल सुन कर कुछ सोचे लगी तो इन्होने बात घुमा दी; "यार मुझे भूख लग रही है... anybody wants pizza?" ये सुनकर नेहा का ध्यान भटक गया और उसने खुश होते हुए अपना हाथ ऊपर उठा दिया| अपने गम को छुपाना कोई इनसे सीखे.... गाडी पार्क करे के बाद नेहा आगे-आगे रेस्टुरेंट की तरफ भाग रही थी जिससे 'इन्हें' मुझे समझने का समय मिल गया| "please अभी इस बात को एह से discuss मत करो| हम इस पर पहले खुद बात कर लें!" ये मुझे समझाना कम और डाँटना ज्यादा लगा|
"आप ये बताओ की क्यों पैसे फूंकें इतने? सिर्फ यही सुनने के लिए की ये 'आपको' खुद सम्भालना पड़ेगा! अभी भी तो 'आप' ही संभाल रहे हो?" मैंने थोड़ा चिड कर कहा|जवाब में 'इन्होने' कहा; "वहाँ जाने से ये तो पता चला की मेरी बेटी का कोई दोस्त नहीं है! and correct me if i m wrong .... ये बात हमें घर में रहते हुए आजतक पता नहीं चली!" 'इनकी' ये बात सच थी...
इन्होने cheese capsicum and onion वाला पिज़्ज़ा आर्डर किया| पिज़्ज़ा खाते-खाते इन्होने नेहा का ध्यान भटकाने के लिए random topic छेड़ दिया|पिज़्ज़ा खाने के बाद हम वहाँ से निकले और रास्ते भर 'इन्होने' नेहा का ध्यान जरा सी भी देर के लिए उन बातों पर जाने न यहीं दिया| घर पहुँच कर नेहा ने अपनी पढ़ाई शुरू कर दी..... और मैं, माँ और 'ये' बैठक में चाय पीने लगे| माँ ने इनसे डॉक्टर से जो बात हुई उसके बारे में पूछा और 'इन्होने' censored बात माँ को बता दी| (मेरी गलतियों का 'इन्होने' जिक्र नहीं किया|) बातें सुनने के बाद माँ ने भी कहा की क्या जर्रूरत थी पैसे फूंकने की..... पर ये चुप रहे| आखिर माँ उठ कर अपने कमरे में आराम करने चली गेन और ये किसी गहरी चिंता में मग्न हो गए| मैं ने 'इनका' ध्यान भटकने की सोची .... मैं उठी और 'इनके' बगल में आ कर बैठ गई.... अपनी दाहिनी बाह इनके कंधे पर धीरे से रखी की कहीं इनका ध्यान भांग ना हो जाए.... और फिर धीरे से अपने होंठ इनके गाल के पास ले आई और kiss करने लगी|
इससे पहले की मेरे होंठ इनके दाढ़ी वाले गालों से मिल पाते ये एक दम से उठ खड़े हुए|मुझे बहुत बुरा लगा .... बहुत ज्यादा! इन्होने कुछ नहीं कहा और बाहर चले गए...... मैं अपने कमरे में आई और सोचने लगी की आखिर 'इन्होने' ऐसा behave क्यों किया? क्या अंजलि ने जो कहा उसके कारन? या फिर ये उस दिन की बात के लिए 'ये' अब भी मुझसे नाराज थे? फिर मुझे लगा की 'इन्हें' उस दिन कैसा लगा होगा जब मैंने इनके साथ इसी तरह behave किया था? हाँ .... हो न हो... ये मुझे feel करवा रहे थे की 'इन्हें' उस दिन कैसे लगा था! मैंने सोचा इनके आने पर मैं इनसे माफ़ी माँग लूँगी.... मैं उठी और lunch की तैयारी में लग गई| खाने के समय तक पिताजी और 'ये' दोनों लौट आये थे| 'ये' सीधा हमारे कमरे में fresh होने चले गए... और मैं भी इनके पीछे-पीछे कमरे में पहुँच गई| उस समय 'ये' bathroom में थे... मैं सोचने लगी की बात शुरू कैसे करूँ?
जैसे ही ये bathroom से बाहर आये और तौलिये से अपना मुँह पोंछने लगे मैंने बात शुरू की; "आप ये दाढ़ी क्यों बढ़ा रहे हैं? आप clean shave कितने अच्छे लगते थे..... आपको पता है कितने time से मैंने आपके गालों को kiss नहीं किया| जब भी मैं आपको kiss आने आती हूँ तो ये दाढ़ी बीच में आ जाती है| मेरा भी मन करता है की मैं आपके गाल पर वो 'love bites' बनाऊँ... और फिर आपको भी तो पसंद हैं वो....!!! " (मैंने इन्हें आँख मारते हुए कहा|)
"जानू मैं इसलिए दाढ़ी रखता हूँ ताकि mature लगूँ ... clean shave में मैं बच्चा लगता हूँ! अब तो जल्दी ही तीन बच्चों का बाप बनने वाला हूँ कम से कम अब तो mature लगने दो!"
"तो क्या तीन बच्चों का बाप clean shave नहीं रह सकता?" मैंने सवाल किया|
"यार समझा करो... मुझे तुम्हारे compatible लगना है|"
"असल में तो मुझे आपके compatible लगना चाहिए.... “
"वो तुमसे होगा नहीं!" इन्होने मुझे टोंट मारा|
इसका टोंट का कारन ये है की मैंने अस बहु बनने का ही इरादा कर रखा था| जबकि इनका कहना था की बहु बनने के साथ थोड़ा fashionable भी दिखो| इसलिए शुरू-शुरू में ये मेरे लिए अलग-अलग तरह की साड़ियाँ लाते थे...वो करधनी जो हमने हमारे family holiday cum honeymoon पर ली थी वो भी ऐसी की ऐसी रखी है| इतनी सुन्दर-सुन्दर साड़ियाँ ...wow .... पहनों तो लगे जैसे की कोई 'महारानी'! और एक मैं पागल हूँ जो उन्हें पैक कर के रखती हूँ| designer झुमके ... nail polish ..... पायल..... काजल ... lipstick .... सब ला कर दिया इन्होने... और तो और इनकी पसंद की मैं कायल हूँ| सच में ...... मैं इनकी पसंद की कुछ कदर ही नहीं करती| और ये हैं की इन्होने मुझे टोकना भी बंद कर दिया... हाँ वैसे भी इतनी बार प्यार से बोला ... समझाया मुझे...पर मैं ने कभी इनकी बात नहीं मानी| आप लोग भी सोचेंगे की कैसी पत्नी है? अपनी पति की ख़ुशी के लिए इतना भी नहीं करती....... और ये हाल तो तब है जब पिताजी (ससुर जी) या माँ (सासु जी) को मेरे सजने सँवारने पर कोई ऐतराज नहीं है| पर इनकी ई एक खासियत है.... ये अभी तक यहीं बदले... जरा भी नहीं... मैं जैसी थी इन्होने मुझे वैसा ही accept किया... वही गाँव की गंवार जैसी बीवी... और इन्हें अब भी मुझ पर फक्र है! कभी मुझे बदलने के लिए यहीं कहा.... अभी तक जो भी मैं खुद को बदल सकी वो इसलिए ताकि हमारे बच्चों को हमारे कारन कोई embarrassment न झेलनी पड़े| खेर उस दिन मुझे एक बात समझ आई.... वो ये की दुनिया की नजर में मेरी उम्र और 'इनकी' उम्र में अंतर साफ़ झलकता था| उस अंतर को छुपाने के लिए 'इन्होने' दाढ़ी उगाने का सहारा लिया| 'ये' मुझसे इतना प्यार करते हैं की इन्होने ये बात मुझसे छुपाई........कारन ये की 'ये' मुझे दुखी नहीं करना चाहते थे..... इतना प्यार करते हैं ये मुझसे!
उस दिन शाम को पिताजी को 'इन्होने' नेहा की सारी रिपोर्ट दी और अब हमें क्या करना है उसके बारे में भी बताया| इनकी बात सुन कर मैं थोड़ा हैरान रह गई.... पता नहीं ये क्या-क्या सोचते रहते हैं| 'इन्होने' अपने प्लान पर काम करना शुरू कर दिया..........
रात को खाना खाने के बाद मैंने आयुष को सुला दिया .... इधर ‘इन्होने’ नेहा से कह दिया की; "बेटा... मुझे आपसे दो मिनट बात करनी है| आप फ्री हो कर आ जाना|" नेहा तुरंत ही अपना बैग पैक कर के हमारे कमरे में आ गई और हम दोनों के बीच में बैठ गई| 'इन्होने' पहले उसका माथा चूमा ... उसे अपने सीने से लगाया और फिर बात शुरू की;
"नेहा... बेटा क्या सच में आपका कोई best friend नहीं है?"
"नहीं पापा... मुझे किसी best friend की जर्रूरत नहीं, आप जो हो मेरे पास!"
"पर बेटा एक friend तो हर एक को चाहिए होता है|" मैंने कहा|
"पर किस लिए मम्मी?"
"बेटा... आप उससे अपने दिल की हर बात कर सकते हो|" इन्होने मेरी बात को आगे बढ़ाया|
"वो तो मैं करती हूँ.... आप से|"
"आप उससे हंसी मजाक करते हो.... उसके साथ घूमने जाते हो.... उससे homework में मदद लेते हो... खाते-पीते हो... enjoy करते हो|" इन्होने नेहा को और विवरण दिया|
"पापा.... मैं आपके साथ हँसी-मजाक करती हूँ... आपके साथ घूमने जाती हूँ... आप अलग-अलग तरह का खाना खिलते हो.... इतना enjoy आर्वाटे हो....और रही बात homework में मदद लेने की तो उसकी मुझे कोई जर्रूरत ही नहीं| मैं पहले से ही पढ़ाई में बहुत sharp हूँ... और ये बात मुझे दादाजी कहते हैं| फिर ऐसे में मुझे एक friend की क्या जर्रूरत? आप हो ना उसकी कमी पूरी करने के लिए?" "पर मैं हमेशा तो नहीं रहूँगा ना?" 'इन्होने' काफी गंभीर होते हुए कहा| ये सुन कर नेहा की आँखें भर आईं…….उसने रोते-रोते कहा; "आप ऐसा क्यों बोल रहे हो पापा?"
"बेटा... मैं सच कह रहा हूँ| एक न एक दिन तो सब को......." मैंने 'इनके' कुछ कहने से पहले 'इनके' होंठों पर हाथ रख 'इन्हें' आगे कुछ बोलने से रोक दिया| "आप प्लीज ऐसा मत बोलो|" मैंने इन्हें मना किया क्योंकि नेहा बहुत दुखी हो गई थी| इन्होने नेहा के आँसुं पोछे और उसे अपने सीने से लगा लिया| कमरे में सन्नाटा छा गया..... दस मिनट तक हम सब चुप रहे|
"नेहा.... बस बेटा अब रोना नहीं..... अब बताओ क्या बात है? क्यों आपके friends नहीं हैं?" इन्होने नेहा को पुचकारते हुए पूछा| पर नेहा ने जवाब में अपना सर झुका लिया... नजरें नीचे कर जैसे इस सवाल से बचना चाह रही थी|
"बोलो बेटा..." मैंने भी थोड़ा जोर दिया|
"आप दोनों भी यही सवाल पूछ रहे हो? उधर वो आंटी जी भी यही अवाल पूछ रही थीं| मेरे दोस्त ना होने का बुरे सपने देखने से क्या लेना-देना है?" नेहा की बात सुन कर मैं चौंक गई और 'इनकी' तरफ हैरानी से देखने लगी| पर इनके चेहरे पर मुझे जरा भी हैरानी नहीं दिखी.... जैसे की ये सब जानते हों| फिर 'इन्होने' मेरी तरफ देखा और बुद-बढ़ाते हुए कहा; "जैसी माँ ... वैसी बेटी!" .... मतलब मेरी ही तरह नेहा भी छुप-छुप कर बातें सुना करती थी| एक बात साफ़ हो गई थी.... की कुछ तो था जो नेहा हम से छुपा रही थी|"नेहा..." इन्होने नेहा का हाथ पकड़ा और अपने सर पर रख दिया और उसे अपनी कसम दे डाली; "आपको मेरी कसम... बोलो क्या बात है?"
नेहा की आँखें फिर छलक आईं और उसने रोते-रोते सब बोला; "मेरी क्लास में एक लड़का है.... वो और उसके दोस्त मुझे बहुत चिढ़ाते हैं!"
"क्यों? मेरी बेटी ना तो मोती है... ना पतली है.... ना उसे चस्मा लगा है.... तो फिर वो तुम्हें क्यों चिढ़ाते हैं?" मैंने कारन पूछा| नेहा फिर से चुप हो गई.....
"नेहा ... अपने पापा से बातें छुपाओगे|" इनका कहना था की नेहा फिर से इनके सीने से लग गई और फफक-फफ़क के रोने लगी.....
"वो मुझे आप दोनों के......... शादी.....करने से......" नेहा ने बहुत मुश्किल से ये सब बोला| इन्होने नेहा को अपने सीने से लगाए रखा और उसकी पीठ सहलाने लगे|
बात हमें समझ आ गई थी..... हमारी शादी ....... इस समाज के लिए चर्चा का बहुत बड़ा topic है.... लोगों को हमारा प्यार नजर नहीं आता..... बल्कि हमें और हमारे परिवार को वो उंच-नीच के बंधनों से बाँध कर रखना चाहते हैं! मैं इनसे प्यार करती हूँ... 'ये' मुझसे प्यार करते हैं... तो दुनिया को प्रॉब्लम क्या है? क्यों हमें हैं से नहीं जीने देती? बाकायदा शादी की है 'इन्होने' मुझसे फिर भी दुनिया को बस हमारी उम्र के अंतर में ज्यादा रूचि है! क्यों हमारे इस प्यार की सजा हमारे बच्चों को दी जाती है?
पर अभी नेहा की बात पूरी नहीं हुई थी........ 'इन्होने' थोड़ा प्यार से जोर दे कर उससे पूछा; "बेटा... उस लड़के का नाम क्या है जो आपको तंग करता है?" नेहा ने सुबकते हुए अपनी बात पूरी की; "अक्षय....यादव..... वो हमारी..... ही ..... गली में....... रहता है...... हमेशा मुझे tease करता है....... कहता है.... तेरे पापा ने ...... अपने से ........... बड़ी............ लड़की से.......... " बस आगे बोलते-बोलते नेहा फिर से रो पड़ी| इन्होने उसे चुप कराना चाह.... "बस मेरी बच्ची..... बस....."
"वो..... किसी को ...... मेरा .....दोस्त नहीं ........ बनने देता| जब भी. कोई मुझसे........ बात करता... है तो ये......उसे भी चिढ़ाने लगता है........ इसलिए कोई...... मुझसे बात ..नहीं करता|" नेहा ने रोते-रोते कहा .... और फिर उसे खाँसी आ गई| मैंने जल्दी से उठ कर उसे पानी ला कर दिया और इन्होने उसे अपनी गोद में बिठाया हुए पानी पिलाया और उसकी पीठ को सहला कर उसे शांत किया| "बस बेटा.... अब मेरी बच्ची को कोई तंग नहीं करेगा|" नेहा की बातें मेरे दिलों-दिमाग में घर कर गईं.... मुझे खुद से नफरत होने लगी| मेरे एक गलत फैसले ने मेरी बच्ची को इतना दुःख दिया.... सच में मैं बहुत स्वार्थी हूँ...... अपने बच्चों के भविष्य के बारे में जरा भी नहीं सोचा| अपने प्यार को पाने के लिए मैंने बच्चों का भविष्य दाँव पर लगा दिया! कैसी माँ हूँ मैं? यही सोच-सोच कर मैं अंदर ही अंदर कुढ़ने लगी थी..... मुझे पता ही नहीं चला कब इन्होने नेहा को गोद में ले कर सुला दिया और उसे आयुष वाले कमरे में लिटा कर आ गए| "संगीता....संगीता.....hey ......" इनकी आवाज सुनकर मैं अपने ख्यालों से वापस आई|"क्या हुआ? क्या सोच यही हो?" 'इन्होने सवाल पूछा... और जो मेरे दिमाग में चल रहा था मैंने वो सब बोल दिया|"
"हमारी एक गलती ने बच्चों की ये हालत कर दी|" मेरे इस पूरे वाक्य में 'इन्हें' "गलती" शब्द बहुत बुरा लगा ... और ये मुझपर बरस पड़े|
"गलती..... मेरे प्यार को तुम गलती का नाम देती हो? आयुष मेरी गलती है? या फिर ये बच्चा जो तुम्हारी कोख में है वो एक गलती है? how could you say this? i don't give a danm what this society thinks of me and you .... what really matters is YOU! और तुम्हें ये प्यार गलती लगता है तो सच में मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई|" इसके आगे इन्होने कुछ नहीं कहा और ये कम्बल ओढ़ कर दूसरी तरफ मुँह कर के लेट गए| मुझे एहसास हुआ की मैंने इनका दिल दुखाया है..... हमारे 'पाक़' प्यार को मैंने 'गलती' कह कर इनके प्यार को गाली दी है| जो इंसान मेरे साथ अपनी पूरी जिंदगी बिताने के लिए अपने परिवार से लड़ पड़ा हो ... उसके प्यार को 'गलती' कहना उसके दिल को चोट पहुँचाना हुआ| मैं 'इनकी' बगल में लेट गई और इन्हें sorry बोलने लगी..... "sorry जानू.... प्लीज मुझे माफ़ कर दो! मेरा ये मतलब नहीं था.... प्लीज.... प्लीज...." पर 'इन्होने' कोई जवाब नहीं दिया और दूसरी तरफ करवट किये हुए लेटे रहे| मैंने जोर लगा कर 'इन्हें' अपनी तरफ घुमाया और फिर 'इनके' दाहिने हाथ को अपना तकिया बनाया और अपना दाहिना हाथ 'इनकी' छाती पर रख सो गई| सच में .... चाहे कितनी भी tension हो... गम हो... तकलीफ हो... इनके हाथों को तकिया बनाके कर लेटते ही सब भूल जाती हूँ|इनका दिल इतना बड़ा है की मेरी हर गलती माफ़ कर देते हैं.... रात तीन बजे फिर से दरवाजे पर दस्तक हुई... मैं जानती थी की नेहा होगी... इसलिए मैं जल्दी से उठी और उसे गोद में उठा कर लाइ ... उसके माथे को चूमा और फिर इनकी बगल में लिटा दिया| फिर मैं बाहर गई और आयुष को भी गोद में उठा लाइ और उसे भी नेहा के बगल में लिटा दिया|
सुबह मैं 'इनके' जागने से पहले उठ गई.... माँ-पिताजी को चाय दी और बच्चों को बारी-बारी तैयार कर दिया| जब 'इनकी' चाय ले कर आई तो देखा 'ये' अब भी सो रहे थे| 'इन्हें' सोता हुआ तो मैंने कई बार देखा था.... पर आज कुछ ज्यादा ही प्यार आ रहा था 'इन' पर! जैसे एक छोटा बच्चा सोते समय cute लगता है... वैसे ही आज 'ये' भी सोते हुए बहुत cute लग रहे थे| मुझसे खुद पर काबू नहीं रहा .... मैंने चाय 'इनके' सिरहाने राखी और इनके पास बैठ गई और 'इन्हें' प्यार निहारने लगी..... आँखें जैसे तृप्त ही नहीं हो रही थीं.... क़ाश सारी जिंदगी 'इनको' निहारती रहूँ! इनके अधरों को देख ... मेरा मन मचलने लगा था..... और जब खुद पर काबू ना रहा तो मैंने झुक कर उन अधरों को चूम लिया| मेरे दोनों हाथ इनके गालों पर थे .... दिल नहीं कर रहा था की इनके अधरों को अपने होठों की गिरफ्त से आजाद करूँ.... शुरू-शुरू में इनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हो रही थी..... क्योंकि ये अभी भी नींद में थे| फिर धीरे-धीरे इनके अधरों ने भी जवाब देना शुरू कर दिया| मेरा दिल नहीं चाहता था की वो परमसुख जो मुझे आज इतने दिनों के बाद मिल रहा है वो ख़त्म हो.... (आयुष के जन्मदिन से ले कर आजतक इन्होने मुझे छुआ नहीं था|) पर किसी न सच ही कहा है... हर अच्छी चीज कभी न कभी ख़त्म हो ही जाती है| वही मेरे साथ उस दिन हुआ.... आयुष एक दम से कमरे में आ गया और उसकी हहलकदमी ने हमारा वो 'चुम्बन' disturb कर दिया| मैं शर्म के मारे बाथरूम में घुस गई... और ये भी उठ बैठे|
मैं बाथरूम में खड़ी दोनों की बातें सुनने लगी....
"पापा कल रात को एक जादू हुआ|"
"अच्छा... क्या जादू हुआ?"
"मैं कल अपने कमरे में सोया था... और सुबह उठा तो आपके बेड पर था|" ये सुन कर 'ये' हँस पड़े.... और तभी मैं भी बाहर आ गई| मुझे देख इन्होने कहा; "बेटा ... ये जादू आपकी माँ का है| आज सुबह मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.... मैं तो सपना देख रहा था की मैं. आप और नेहा hide and seek खेल रहे हैं.... आप दोनों छुपे हुए हो और मैं आप दोनों को ढूँढ रहा हूँ….. की नजाने कहाँ से एक परी आ गई... और मुझसे बात कर रही है| फिर अचानक से...." इनकी बात पूरी होने से पहले आयुष बोल उठा; "और मम्मी ने आपको kiss किया| ही...ही...ही...ही..." उसकी बातें सुन कर मेरे गाल शर्म से लाल हो गए| तभी नेहा भी आ गई और आयुष को गुस्सा करने लगी; "शैतान..... बहुत बदमाश हो गया है तू! मम्मी..... सब लड़के एक जैसे होते हैं|" ये कहते हुए नेहा ने मेरा पक्ष लिया..... ये मेरे लिए पहलीबार था! 'ये' मेरी तरफ देख मुस्कुरा रहे थे और मेरे गाल लाल हो रहे थे......!
बच्चे स्कूल चले गए..... और उनके जाते ही मैंने फिर से ‘इनपर’ chance मारा! ‘ये’ कमरे में शर्ट पहन रहे थे ... और टाई बाँध रहे थे| मैंने पीछे से आ कर ‘इन्हें’ जकड लिया.... पर ‘इन्होने’ ने कुछ नहीं कहा|
"कहाँ जाने की तैयारी हो रही है? वो भी इतना बन-ठन कर" मैंने पूछा|
"स्कूल" ‘इन्होने’ बस एक शब्द में जवाब दिया|
"क्यों ?" मैंने हैरान होते हुए पूछा|
"नेहा..." ‘इन्होने’ काफी गंभीर होते हुए कहा|
"मैं भी चलूँगी|" मुझे डर था की गुस्से में आ कर ये कहीं कुछ ऐसा-वैसा ना कर दें|
"ठीक है... जल्दी तैयार हो जाओ| हमें लंच टाइम तक पहुँचना है|" इतना कह कर ‘ये’ अपना ब्लेजर उठा कर बाहर चले गए| मैं भी जल्दी से तैयार हो कर बाहर आ गई... 'इनका' मन पसंद नाश्ता बनाया और साढ़े दस बजे हम निकल पड़े| रास्ते भर 'इन्होने' कुछ नहीं कहा... और मुझसे हिम्मत नहीं हुई की मैं कुछ कहूँ| रास्ते में एक जगह रुक कर इन्होने दो polythene भरकर कुछ सामान लिया| उसमें से मुझे कुछ खाने की खुशबु आ रही थी... पर मैंने कुछ पूछा नहीं| पर ‘इन्हें’ मेरी हालत के बारे में पता चला गया; "don't worry मैं लड़ाई करने नहीं जा रहा|" और फिर मुस्कुराने लगे| ये सुन कर मेरे दिल की हलचल शांत हुई| आखिर हम स्कूल पहुंचे... और क्या timing पर पहुँचे! हम क्लास के बाहर खड़े ही हुए थे की bell बज गई और नेहा की subject teacher निकली| वो 'इन्हें' जानती थी... तो hi - hello हुई और 'इन्होने' मेरा introduction टीचर जी से कराया| "ये नेहा और आयुष की मम्मी हैं| वो actually हम नेहा से मिलने आये थे|"
"ओह.... no problem!" और टीचर जी चली गईं| अभी कोई भी बच्चा क्लास से निकला नहीं था.... सब अपना-अपना lunch box हाथ में लिए खड़े थे और बाहर जाने ही वाले थे| "hey guys!" 'इनकी' आवाज सुन सबका ध्यान इनकी ओर हुआ..... "umm .. i'm neha's father ....." और नेहा 'इनके' पास आकर खड़ी हो गई| "आप मे से अक्षय यादव and party कौन है?" सब चुप हो गए.... और एक साथ सबकी नजर आखरी वाली लाइन के तीसरे desk पर बैठे लड़के की तरफ घूम गई| "ओह्ह!!! there you are .... come here" 'इन्होने' उसे अपने पास बुलाया| वो बेचारा हिचकता हुआ आया और इनके सामने आ कर खड़ा हो गया| "हाँ तो क्या प्रॉब्लम है तुम्हें नेहा से?"
"अंकल ... वो..... मतलब..... कुछ नहीं|" वो हकलाते हुए बोलने लगा| उसकी शकल देख कर पता चल रहा था की वो कितना डरा हुआ है|
"हम्म्म.... कोई जवाब नहीं? अच्छा तो राम यादव जी के लड़के हो ना?" 'इन्होने' पूछा|
"हाँ"
"हम्म्म.... क्यों tease करते हो मेरी बेटी को?"
"सॉरी अंकल"
"क्या कहते हो तुम....वो.... हाँ.... तेरे पापा ने अपने से ज्यादा उम्र वाली लड़की से शादी की... and all ..... बच्चों आपको पता है इस तरह की बातें तो जनानियाँ करती हैं|" ये सुन कर सब उस लड़के पर जोर से हँस पड़े... और सबको हँसता देख वो बेचारा शर्म से जमीन में गड़ने लगा|
"वैसे तुम्हारे पापा को ये सब सुन कर अच्छा नहीं लगेगा की उनका लड़का जनानियों वाली हरकतें करता है!" बच्चे और भी ज्यादा दहाड़ें मार कर हँसने लगे.... और अब तो मेरी भी हँसी छूट गई| पर उस लड़के की तो जैसे बैंड ही बज गई थी.... "sorry अंकल...." इतना कहते-कहते वो रो पड़ा|
"बेटा कैसा लगा जब खुद का मज़ाक बनता है? और sorry मझे नहीं नेहा को बोलो... तुम्हें पता है उसके दिल को कितनी चोट पहुँचती थी जब तुम ऐसी बातें उसे बोलते थे? उसने ये बात हमसे भी छुपाई.... बहुत जोर देने पर हमें पता चला की आखिर बात क्या है|"
"sorry नेहा.... मैं आगे से कभी ऐसा मज़ाक नहीं करूँगा| really sorry ..." उसने रोते-रोते कहा|
"its okay ... i forgive you" नेहा ने मुस्कुराते हुए कहा|
"चलो भई मैं और आपकी आंटी आपके लिए कुछ लाये हैं|" एक पॉलिथीन मेरे पास थी और एक इनके पास.... इनकी पॉलिथीन में समोसे थे और मेरी वाली में cup cakes! हमने मिलकर सभी को दो-दो समोसे और एक-एक cup cake बातें| सारे बच्चे बहुत खुश थे..... और नेहा के चेहरा तो सब से ज्यादा खिला हुआ था|
"तो बच्चों अब तो आपको नेहा से दोस्ती करने में कोई problem नहीं है?" ये सुन कर सब बच्चे हँस पड़े|
हम दोनों भी ख़ुशी-ख़ुशी क्लास से बाहर आ गए| स्कूल की canteen में छोले-कुलचे बहुत famous हैं तो मैंने वो खाने की जिद्द की तो हम canteen पहुँच गए| वहां पत्थर की सीढ़ियां बानी हुई थीं... तो मैं वहाँ बैठ गई और ये मेरे लिए छोले-कुलचे ले आये| तभी वहाँ आयुष आ गया..... और उसके साथ उसकी girlfriend भी थी| बहुत ही sweet थी वो..... जैसे ही उसने मुझे नमस्ते बोला मैंने एकदम से बोला; "ओह! तो ये तेरी girlfriend है?" ये सुनकर आयुष के गाल शर्म से लाल-लाल हो गए (जैसे सुबह मेरे गाल लाल हो गए थे) और वो चिल्लाया... "मम्मी!!!" और आँखों से मुझे गुस्सा दिखने लगा जिसे देख मुझे बहुत हँसी आ गई| फिर वो जा कर अपने पापा के पीछे छुप गया... अब बात इन्हें संभालनी थी क्योंकि शर्म से उस बच्ची के भी गाल लाल होने लगे थे| इन्होने अपनी हँसी सँभालते हुए आयुष से कहा; "बेटा अपनी दोस्त को कुछ खिलाओगे नहीं? ये लो ... एक प्लेट छोले कुलचे ले आओ|" मैं इस बात पर भी चुटकी लेने से नहीं छूटी; "एक प्लेट में दो लोग कैसे खाएंगे?" ये सुन कर इनकी भी हँसी छूटने लगी पर पता नहीं कैसे इन्होने अपनी हँसी पर काबू किया| इधर आयुष की हालत देखने लायक थी!
आयुष के जाने के बाद मैंने उस प्यारी सी बच्ची को अपने पास बुलाया और उसे अपनी बगल में बिठाया| मैं उससे प्यार से बात करने लगी ... उसके घरवालों के बारे में सवाल करने लगी| जैसे की मैं आयुष के रिश्ते की बात कर रही हूँ| (ही...ही...ही...) हम खा ही रहे थे की नेहा हमें ढूढ़ती हुई आ गई और आ कर सीधा इनसे लिपट गई| "hey ... my baby .... क्या हुआ?" इन्होने कुलचा मुझे थमाया और अपने हाथ पांच कर नेहा के आँसूं पोंछने लगे| "क्या हुआ बेटा? किसी ने कुछ कहा क्या?" आखिर नेहा ने अपने रोने पर काबू पाया और कहा; "thank you पापा"
"बेटा.... बस... अब रोना नहीं| मेरा sweet baby है ना? और बेटा अब आपको खुद के लिए stand लेना सीखना होगा| मम्मी-पापा हर जगह नहीं होते... तब आपको खुद के लिए स्टैंड लेना होगा.... fight करना होगा.... so you have to be strong! okay? मेरी बहादुर बेटी है ना?"
नेहा ने हाँ में सर हिलाया और फिर इन्हें गाल पर kiss किया| इन्होने एक कौर नेहा को खिलाया और फिर उसे लाड करने लगे|
घर वापस लौटते समय 'ये' बहुत खुश थे.... और मैं मन ही मन सोच रही थी की आज एक और chance मारूँ 'इन' पर|इसलिए जैसे ही हम घर पहुंचे ... 'ये' change करने washroom में चले गए| मैंने दरवाजा बंद किया और कमर में हाथ रखे 'इनके' बाहर निकलने का इन्तेजार करने लगी| जैसे ही washroom के दरवाजे की कुण्डी खुलने की आवाज आई मैं दरवाजे की तरफ बढ़ी और 'इनके' बाहर निकलते ही 'इनके' सीने से लग गई| हाय! वो गर्माहट जो 'इनके' सीने से निकल रही ही... उसे महसूस कर मैं आँख मूंदें खड़ी हो गई| 'इनके' बोलने पर मेरी तन्द्रा टूटी; "यार... site पर जाना है.... छोडो|" मैंने आलिंगन तोड़ दिया.... पर 'इनका' हाथ थाम लिया; "न जाओ साईंयाँ, छुड़ा के बैइय्याँ... कसम तुम्हारी, मैं रो पडूँगी|" 'इन्होने' उसका जवाब भी गाने के रूप में दिया; "जाने दो, जाने दो मुझे जाना है.... वाद जो किया है वो निभाना है|" मेरा जवाब भी गाने के रूप में था; तू न जा मेरे बादशाह... एक वादे के लिए... एक वादा तोड़ के!" आखिर 'ये' मुस्कुरा दिए और बोले; "बोलो क्या काम है?"
"काम तो कुछ नहीं.... बस आपका साथ चाहिए|" अब मैंने पहल करते हुए 'इन्हें' दिवार के सहारे खड़ा कर दिया और 'इन्हें' दिवार और मेरे बीच दबा दिया|
"आज कुछ ज्यादा ही रोमांटिक नहीं हो रही हो?" 'इन्होने' पूछा|
"जी हमें तो हर वक़्त आपको देखते ही रोमांस छूट जाता है|" मैंने अपना निचला होंठ दबाते हुए कहा|
"वैसे आज का romance का कोटा पूरा हो गया.... अब जाने दो|" 'इन्होने' निकलने की कोशिश की पर मैंने 'इन्हें' दबाये रखा|
"ऐसे कैसे छोड़ दें!" मैंने थोड़ा villain वाले अंदाज में कहा|
"already आज सुबह धोके से तुमने मुझे kiss किया ना?"
"तो? क्या कभी पहले नहीं किया?"
"किया था.... पर तब मुझे तुम्हें छूने की छूट थी... पर अब नहीं है.... इसलिए!" ये कहते हुए 'इन्होने' खुद को मेरे चंगुल से छुड़ा लिया|
"i'm really sorry जी.... अब तो माफ़ कर दो! आगे से फिर कभी ऐसा नहीं करुँगी... प्लीज" पर 'इन्होने' कुछ जवाब नहीं दिया और site पर चले गए| उस पल मैंने खुद को सैकड़ों गालियाँ दी... बहुत कोसा खुद को की मैंने उस दिन इनका दिल तोड़ दिया| वो अधिकार जो मैंने इन्हें अपनी ख़ुशी से दिया था वो इनसे खुद छीन लिया|अब मुझे कैसे ना कैसे 'इन्हें' seduce करना था.... by hook or by crook! तभी 'ये' पिघलेंगे और उन बातों को भूलेंगे..... पर बदकिस्मती से मेरा दिमाग इनकी तरह नहीं चलता ना! दोपहर में जब बच्चे लौटे तो नेहा में आज एक अलग ही आत्मविश्वास दिखा| वो पहले से ज्यादा चहक रही थी.... मेरी गुड़िया आज बहुत खुश थी! उसके सभी दोस्तों ने आज उसके पापा की बहुत तारीफ की थी!