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गुमराह पिता की हमराह बेटी की जवानी

इस कहानी के किरदार व स्थानों के नाम उनकी वास्तविक पहचान छिपाने के लिए कुछ हद तक बदले गए हैं (लेकिन पूरी तरह से नहीं), जैसे कहीं पर किरदार का वास्तविक नाम न प्रयोग में लेकर उसका घरेलू (घर का नाम) इस्तेमाल किया गया है तो कहीं पर नाम को छोटा कर के लिखा गया है. इसी प्रकार स्थानों के नाम भी बदले गए हैं. जयसिंह (संक्षिप्त नाम) राजस्थान के एक धनवान व्यापारी हैं और यह कहानी उनके जीवन के वाक्यात बयां करती है.

***

जयसिंह राजस्थान के बाड़मेर शहर के एक धनवान व्यापारी थे. उनका शेयर ट्रेडिंग का बिज़नस था. जयसिंह दिखने में ठीक-ठाक और थोड़े पक्के रंग के थे लेकिन एक अच्छे धनी परिवार से होने की वजह से उनका विवाह मधु से हो गया था जो कि गोरी-चिट्टी और बेहद खूबसूरत थी. जयसिंह का विवाह हुए २३ साल बीत चुके थे और वे तीन बच्चों के पिता बन चुके थे, जिनमें सबसे बड़ी थी मनिका जो २२ साल की थी और अपने कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर चुकी थी, उस से छोटा हितेश था जो अभी ९वीं कक्षा में था और सबसे छोटी थी कनिका जो ५वीं में पढ़ती थी. जयसिंह की तीनों संतान रंग-रूप में अपनी माँ पर गईं थी. जिनमें से मनिका को तो कभी-कभी लोग उसकी माँ की छोटी बहन समझ लिया करते थे.

मनिका ने अपना ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद एम.बी.ए. करने का मन बना लिया था और उसके लिए एक एंट्रेंस एग्जाम दिया था जिसमे वह अच्छे अंकों से पास हो गई थी. उसे दिल्ली के एक कॉलेज से एडमिशन के लिए कॉल लैटर मिला था जिसमें उसे इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था. जयसिंह ने भी उसे वहाँ जाने के लिए हाँ कह दिया था. मनिका पहली बार घर से इतनी दूर रहने जा रही थी सो वह काफी उत्साहित थी. मनिका ने दिल्ली जाने की तैयारियाँ शुरू कर दीं. वह कुछ नए कपड़े, जूते और मेक-अप का सामान खरीद लाई थी. जब उसकी माँ ने उसे ज्यादा खर्चा न करने की हिदायत दी तो जयसिंह ने चुपके से उसे अपना ए.टी.एम. कार्ड थमा दिया था. वैसे भी पहली संतान होने के कारण वह जयसिंह की लाड़ली थी. वे हमेशा उसकी हर ख्वाहिश पूरी करते रहे थे.

***

आखिर वह दिन भी आ गया जब उन्हें दिल्ली जाना था, जयसिंह मनिका के साथ जा रहे थे. उन दोनों का ट्रेन में रिजर्वेशन था.

'मणि?' मधु ने मनिका को उसके घर के नाम से पुकारते हुए आवाज़ लगाई.

'जी मम्मी?' मनिका ने चिल्ला कर सवाल किया. उसका कमरा फर्स्ट फ्लोर पर था.

'तुम तैयार हुई कि नहीं? ट्रेन का टाइम हो गया है, जल्दी से नीचे आ कर नाश्ता कर लो.' उसकी माँ ने कहा.

'हाँ-हाँ आ रही हूँ मम्मा.'

कुछ देर बाद मनिका नीचे हॉल में आई तो देखा कि उसके पिता और भाई-बहन पहले से डाइनिंग टेबल पर ब्रेकफास्ट कर रहे थे.

'गुड मोर्निंग पापा. मम्मी कहाँ है?' मनिका ने अभिवादन कर सवाल किया.

'वो कपड़े बदल कर अ...आ रही है.' जयसिंह ने मनिका की ओर देख कर जवाब दिया था. लेकिन मनिका के पहने कपड़ों को देख वे हकला गए थे.

बचपन से ही जयसिंह सिंह के कोई रोक-टोक न रखने की वजह से मनिका नए-नए फैशन के कपड़े ले आया करती थी और जयसिंह भी उसकी बचकानी जिद के आगे हार मान जाया करते थे. लेकिन बड़ी होते-होते उसकी माँ मधु ने उसे टोकना शुरू कर दिया था. आज उसने अपनी नई लाई पोशाकों में से एक चुन कर पहनी थी. उसने लेग्गिंग्स के साथ टी-शर्ट पहन रखी थी. लेग्गिंग्स एक प्रकार की पजामी होती है जो बदन से बिलकुल चिपकी रहती है सो लड़कियां उन्हें लम्बे कुर्तों या टॉप्स के साथ पहना करती हैं, लेकिन मनिका ने उनके ऊपर एक छोटी सी टी-शर्ट पहन रखी थी जो मुश्किल से उसकी नाभी तक आ रही थी. लेग्गिंग्स में ढंके मनिका के जवान बदन के उभार पूरी तरह से नज़र आ रहे थे. उसकी टी-शर्ट भी स्लीवेलेस और गहरे गले की थी. जयसिंह अपनी बेटी को इस रूप में देख झेंप गए और नज़रें झुका ली.

'पापा कैसी लगी मेरी नई ड्रेस?' मनिका उनके बगल वाली कुर्सी पर बैठते हुए बोली.

'अ...अ...अच्छी है, बहुत अच्छी है.' जयसिंह ने सकपका कर कहा.

मनिका बैठ कर नाश्ता करने लगी उतने में उसकी माँ भी आ गई लेकिन उसके कुर्सी पर बैठे होने के कारण मधु को उसके पहने कपड़ों का पता न चला.

'जल्दी से खाना खत्म कर लो, जाना भी है, मैं जरा रसोई संभाल लूँ तब तक...' कह मधु रसोई में चली गई. 'हर वक्त ज्ञान देती रहती है तुम्हारी माँ.' जयसिंह ने दबी आवाज़ में कहा.

तीनो बच्चे खिलखिला दिए.

नाश्ता कर चुकने के बाद मनिका उठ कर वाशबेसिन में हाथ धोने चल दी, जयसिंह भी उठ चुके थे और पीछे-पीछे ही थे. आगे चल रही मनिका की ठुमकती चाल पर न चाहते हुए भी उनकी नज़र चली गई. मनिका ने ऊँचे हील वाली सैंडिल पहन रखी थी जिस से उसकी टांगें और ज्यादा तन गईं थी और उसके नितम्ब उभर आए थे. यह देख जयसिंह का चेहरा गरम हो गया था. उधर मनिका वॉशबेसिन के पास पहुँच थोडा आगे झुकी और हाथ धोने लगी, जयसिंह की धोखेबाज़ नज़रें एक बार फिर ऊपर उठ गईं थी. मनिका के हाथ धोने के साथ-साथ उसकी गोरी कमर और नितम्ब हौले-हौले डोल रहे थे. यह देख जयसिंह को उत्तेजना का एहसास होने लगा था पर अगले ही पल वे ग्लानी और शर्म से भर उठे.

'छि...यह मैं क्या करने लगा. हे भगवान् मुझे माफ़ करना.' पछतावे से भरे जयसिंह ने प्रार्थना की.

मनिका हाथ धो कर हट चुकी थी, उसने एक तरफ हो कर जयसिंह को मुस्का कर देखा और बाहर चल दी. जयसिंह भारी मन से हाथ धोने लगे.

जब तक मधु रसोई का काम निपटा कर बाहर आई तब तक उसके पति और बच्चे कार में बैठ चुके थे. जयसिंह आगे ड्राईवर के बगल में बैठे थे और मनिका और उसके भाई-बहन पीछे, मधु भी पीछे वाली सीट पर बैठ गई और कनिका को अपनी गोद में ले लिया. उसे अभी भी अपनी बड़ी बेटी के पहनावे का कोई अंदाजा न था. कुछ ही देर बाद वे स्टेशन पहुँच गए. वे सब कार पार्किंग में पहुँच गाड़ी से बाहर निकलने लगे. जैसे ही मनिका अपनी साइड से उतर कर मधु के सामने आई मधु का पारा सातवें आसमान पर जा पहुँचा.

'ये क्या वाहियात ड्रेस पहन रखी है मणि?' मधु ने दबी जुबान में आगबबूला होते हुए कहा.

'क्या हुआ मम्मी?' मनिका ने अनजाने में पूछा, उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी माँ गुस्सा क्यूँ हो रही थी. गलती मनिका की भी नहीं थी, उसे इस बात का एहसास नहीं था कि टी.वी.-फिल्मों में पहने जाने वाले कपड़े आम-तौर पर पहने जाने लायक नहीं होते. उसने तो दिल्ली जाने के लिए नए फैशन के चक्कर में वो ड्रेस पहन ली थी.

'कपड़े पहनने की तमीज नहीं है तुमको? घर की इज्ज़त का कोई ख्याल है तुम्हें?' उसकी माँ का अपने गुस्से पर काबू न रहा और वह थोड़ी ऊँची आवाज़ में बोल गईं थी 'ये क्या नाचनेवालियों जैसे कपड़े ले कर आई हो तुम इतने पैसे खर्च कर के...!'

मनिका अपनी माँ की रोक-टोक पर अक्सर चुप रह कर उनकी बात सुन लेती थी, लेकिन आज दिल्ली जाने के उत्साह और ऐन जाने के वक्त पर उसकी माँ की डांट से उसे भी गुस्सा आ गया.

'क्या मम्मी हर वक्त आप मुझे डांटते रहते हो. कभी आराम से भी बात कर लिया करो.' मनिका ने तमतमाते हुए जवाब दिया, 'क्या हुआ इस ड्रेस में ऐसा, फैशन का आपको कुछ पता है नहीं...और पापा ने कहा की बहुत अच्छी ड्रेस है...’ जयसिंह उन दोनों की ऊँची आवाजें सुन उनकी तरफ ही आ रहे थे सो मनिका ने उनकी बात भी साथ में जोड़ दी थी.

'हाँ एक तुम तो हो ही नालायक ऊपर से तुम्हारे पापा की शह से और बिगड़ती जा रही हो...' उसकी माँ दहक कर बोली.

'क्या बात हुई? क्यूँ झगड़ रही हो माँ बेटी?' तभी जयसिंह पास आते हुए बोले.

'संभालो अपनी लाड़ली को, रंग-ढंग बिगड़ते ही जा रहे हैं मैडम के.' मधु ने अब अपने पति पर बरसते हुए कहा.

जयसिंह ने बीच-बचाव की कोशिश की, 'अरे क्यूँ बेचारी को डांटती रहती हो तुम? ऐसा क्या पहाड़ टूट पड़ा है...’ वे जानते थे कि मधु मनिका के पहने कपड़ों को लेकर उससे बहस कर रही थी पर उन्होंने आदतवश मनिका का ही पक्ष लेते हुए कहा.

'हाँ और सिर चढ़ा लो इसको आप...' मधु का गुस्सा और बढ़ गया था.

लेकिन जयसिंह उन मर्दों में से नहीं थे जो हर काम अपनी बीवी के कहे करते हैं और मधु के इस तरह उनकी बात काटने पर वे चिढ़ गए, 'ज्यादा बोलने की जरूरत नहीं है, जो मैं कह रहा हूँ वो करो.' जयसिंह ने मधु हो आँख दिखाते हुए कहा.

मधु अपने पति के स्वभाव से परिचित थी. उनका गुस्सा देखते ही वह खिसिया कर चुप हो गई. जयसिंह ने घडी नें टाइम देखा और बोले, 'ट्रेन चलने को है और यहाँ तुम हमेशा की तरह फ़ालतू की बहस कर रही हो. चलो अब.'

वे सब स्टेशन के अन्दर चल दिए. जयसिंह ने देखा कि उनका ड्राईवर, जो सामान उठाए पीछे-पीछे आ रहा था, उसकी नज़र मनिका की मटकती कमर पर टिकी थी और उसकी आँखों से वासना टपक रही थी. 'साला हरामी, जिस थाली में खाता है उसी में छेद...' उन्होंने मन ही मन ड्राईवर को कोसते हुए सोचा लेकिन 'छेद' शब्द मन में आते ही उनका दीमाग भी भटक गया और वे एक बार फिर अपनी सोच पर शर्मिंदा हो उठे. वे थोड़ा सा आगे बढ़ मनिका के पीछे चलने लगे ताकि ड्राईवर की नज़रें उनकी बेटी पर न पड़ सके.

उनकी ट्रेन प्लेटफार्म पर लग चुकी थी. जयसिंह ने ड्राईवर को अपनी बर्थ का नंबर बता कर सारा सामान वहाँ रखने भेज दिया और खुद अपने परिवार के साथ रेल के डिब्बे के बाहर खड़े हो बतियाने लगे. मधु और मनिका अभी भी एक दूसरे से तल्खी से पेश आ रही थी. हितेश और कनिका प्लेटफार्म पर इधर-उधर दौड़ लगा रहे थे. तभी ट्रेन की सीटी बज गई, उनका ड्राईवर सामान रख बाहर आ गया था. जयसिंह ने उसे कार के पास जाने को कहा और फिर हितेश और कनिका को बुला कर उन्हें ठीक से रहने की हिदायत देते हुए ट्रेन में चढ़ गए. मनिका ने भी अपने छोटे भाई-बहन को प्यार से गले लगाया और अपनी माँ को जल्दी से अलविदा बोल कर ट्रेन में चढ़ने लगी. जयसिंह ट्रेन के दरवाजे पर ही खड़े थे, उन्होंने मनिका का हाथ थाम कर उसे अन्दर चढ़ा लिया. जब मनिका उनका हाथ थाम कर अन्दर चढ़ रही थी तो एक पल के लिए वह थोड़ा सा आगे झुक गई थी और जयसिंह की नज़रें उसके गहरे गले वाली टी-शर्ट पर चली गई थी, मनिका के झुकने से उन्हें उसके वक्ष के उभार नज़र आ गए थे. २२ साल की मनिका के दूध से सफ़ेद उरोज देख जयसिंह फिर से विचलित हो उठे. उन्होंने जल्दी से नज़र उठा कर बाहर खड़ी मधु की ओर देखा. लेकिन मधु दोनों बच्चों को लेकर जा चुकी थी.

एक हलके से झटके के साथ ट्रेन चल पड़ी और जयसिंह भी अपने-आप को संभाल कर अपनी बर्थ की ओर चल दिए.

***

जयसिंह और मनिका का रिजर्वेशन फर्स्ट-क्लास ए.सी. केबिन में था. जब उन्होंने अपने केबिन का दरवाज़ा खोला तो पाया कि मनिका बर्थ पर बैठी है और खिड़की से बाहर देख रही है. खिड़की से सूरज की तेज़ रौशनी पूरे केबिन में फैली हुई थी, वे मनिका की सामने वाली बर्थ पर बैठ गए. मनिका उनकी ओर देख कर मुस्काई,

'फाइनली हम जा रहे हैं पापा, आई एम सो एक्साइटेड!' उसने चहक के कहा.

'हाहा...हाँ भई.' जयसिंह भी हँस के बोले.

'क्या पापा मम्मी हमेशा मुझे टोकती रहती है...' मनिका ने अपनी माँ से हुई लड़ाई का जिक्र किया.

'अरे छोड़ो न उसे, उसका तो हमेशा से यही काम है. कोई काम सुख-शान्ति से नहीं होता उससे.' जयसिंह ने मनिका को बहलाने के लिए कहा.

'हाहाहा पापा, सच में जब देखो मम्मी चिक-चिक करती ही रहती है, ये करो-ये मत करो और पता नहीं क्या क्या?' मनिका ने भी अपने पिता का साथ पा कर अपनी माँ की बुराई कर दी.

'हाँ भई मुझे तो आज २३ साल हो गए सुनते हुए.' जयसिंह ने बनावटी दुःख प्रकट करते हुए कहा और खिलखिला उठे.
'हाय पापा आप बेचारे...कैसे सहा है आपने इतने साल.' मनिका भी खिलखिलाते हुए बोली और दोनों बाप-बेटी हँस पड़े. 'पर सीरियसली पापा आप ही इतने वफादार हो कोई और होता तो छोड़ के भाग जाता...' मनिका ने हँसते हुए आगे कहा.

'हाहा...भाग तो मैं भी जाता पर फिर मेरी मणि का ख्याल कौन रखता?' जयसिंह ने नहले पर देहला मारते हुए कहा.
'ओह पापा यू आर सो स्वीट!' मनिका उनकी बात से खिल उठी थी. वह खड़ी हुई और उनके बगल में आ कर बैठ गई. जयसिंह ने अपना हाथ मनिका के पीछे ले जा कर उसके कंधे पर रखा और उसे अपने से थोड़ा सटा लिया, मनिका ने भी अपना एक हाथ उनकी कमर में डाल रखा था.

वे दोनों कुछ देर ऐसे ही बैठे रहे. ये पहली बार था जब जवान होने के बाद मनिका ने अपने पिता से इस तरह स्नेह जताया था, आम-तौर पर जयसिंह उसके सिर पर हाथ फेर स्नेह की अभिव्यक्ति कर दिया कर देते थे. सो अचानक बिना सोचे-समझे इस तरह करीब आ जाने पर मनिका कुछ पलों बाद थोड़ी असहज हो गई थी और उससे कुछ कहते नहीं बन रहा था. दूसरी तरफ जयसिंह भी मनिका के इस अनायास ही उठाए कदम से थोड़ा विचलित हो गए थे, मनिका के परफ्यूम की भीनी-भीनी खुशबू ने उन्हें और अधिक असहज कर दिया था. इस तरह दोनों ही बिना कुछ बोले बैठे रहे.
'पता है पापा, मेरे सारी फ्रेंड्स आपसे जलती हैं?' इससे पहले कि उनके बीच की खामोशी और गहरी होती मनिका ने चहक कर माहौल बदलते हुए कहा.

'हाहाहा...अरे क्यूँ भई?' जयसिंह भी थोड़े आश्चर्य और थोड़ी राहत की सांस लेते हुए बोले.

'अब आप मेरा इतना ख्याल रखते हो न तो इसलिए...मेरी फ्रेंड्स कहती है कि उनके पापा लोग उन्हें आपकी तरह चीज़ें नहीं दिलाते यू क्नो...वे कहती हैं कि...' इतना कह मनिका सकपका के चुप हो गई.

'क्या?' जयसिंह ने उत्सुकतावश पूछा.

'कुछ नहीं पापा ऐसे ही फ्रेंड्स लोग मजाक करते रहते हैं.' मनिका ने टालने की कोशिश की.

'अरे बताओ ना?' जयसिंह ने अपना हाथ मनिका की पीठ पर ले जाते हुए कहा.

'वो सब कहते हैं कि तेरे पापा...कि तेरे पापा तो तेरे बॉयफ्रेंड जैसे हैं. पागल हैं मेरी फ्रेंड्स भी.' मनिका ने कुछ लजाते हुए बताया.

'हाहाहा...क्या सच में?' जयसिंह ने ठहाका लगाया. साथ ही वे मनिका की पीठ सहला रहे थे.

'नहीं ना पापा वो सब मजाक में कहते हैं...और मेरा कोई बॉयफ्रेंड नहीं है ओके...' मनिका ने थोड़ा सीरियस होते हुए कहा क्यूंकि उसे लगा की उसके पिता बॉयफ्रेंड की बात सुन कर कहीं नाराज न हो जाएँ.

'हाँ भई मान लिया.' जयसिंह ने मनिका की पीठ पर थपकी दे कर कहा, उन्होंने जाने-अनजाने में अपना दूसरा हाथ मनिका की जांघ पर रख लिया था.

मनिका की जांघें लेग्गिंग्स में से उभर कर बेहद सुडौल और कसी हुई नज़र आ रही थी. जयसिंह की नज़र उन पर कुछ पल से टिकी हुईं थी और उनके अवचेतन मन ने यंत्रवत उनका हाथ उठा कर मनिका की जांघ पर रख दिया था. अपने हाथ से मनिका की जांघ महसूस करते ही वे और अधिक भटक गए, मनिका की जांघ एकदम कसी हुई और माँसल थी. उन्होंने हलके से अपना हाथ उस पर फिराया, उन्हें लगा की बातों में लगी मनिका को इस का एहसास शायद न हो लेकिन उधर मनिका भी उनके हाथ की पोजीशन से अनजान नहीं थी. जयसिंह के उसकी जांघ पर हाथ रखते ही मनिका की नजर उस पर जा टिकी थी, लेकिन उसने अपनी बात जारी रखी और अपने पिता के इस तरह उसे छूने को नज़रन्दाज कर दिया, उसे लगा कि वे बस उससे स्नेह जताने के लिए ऐसा कर रहे हैं.

'चलो पापा अब आप आराम से बैठ जाओ. मैं अपनी बर्थ पे जाती हूँ.' कह मनिका उठने को हुई. जयसिंह ने भी अपने हाथ उसकी पीठ और जांघ से हटा लिए थे. उनका मन कुछ अशांत था.

'क्या मैंने जानबूझकर मणि...मनिका के बदन पर हाथ लगाया? पता नहीं कैसे मेरा हाथ मानो अपने आप ही वहाँ चला गया हो. ये मैं क्या सोचने लगा हूँ...अपनी बेटी के लिए. नहीं-नहीं अब से ऐसा फिर कभी नहीं होगा. हे ईश्वर मुझे क्षमा करना.' जयसिंह ने मन ही मन सोचा और आँखें मूँद प्रार्थना कर वचन लिया. वे अब थोड़ी राहत महसूस कर रहे थे, उन्होंने आँखें खोली और उसी के साथ ही जयसिंह पर मानो बिजली गिर गई.

जयसिंह ने जैसे ही आँखें खोली तो सामने का नज़ारा देख उनका सिर चकरा गया था, मनिका की पीठ उनकी तरफ थी और वह खड़ी-खड़ी ही कमर से झुकी हुई थी. उसके दोनों नितम्ब लेग्गिंग्स के कपड़े में से पूरी तरह उभर कर नज़र आ रहे थे वह उसकी पतली गोरी कमर केबिन में फैली सूरज की रौशनी में चमक रही थी. जयसिंह का चेहरा अपनी बेटी के अधो-भाग के बिलकुल सामने था. जयसिंह ने अपने लिए प्रण के वास्ते से अपनी नज़रें घुमानी चाही पर उनका दीमाग अब उनके काबू से बाहर जा चुका था. अगले ही पल उनकी आँखें फिर से मनिका के मोटे कसे हुए नितम्बों पर जा टिकीं. उन्होंने गौर किया कि मनिका असल में सामने वाली बर्थ के नीचे रखे बैग में कुछ टटोल रही थी. उनसे रहा न गया.

'क्या ढूँढ रही हो मनिका?' उन्होंने पूछा.

'कुछ नहीं पापा मेरे ईयरफोंस नहीं मिल रहे, डाले तो इसी बैग में थे.' मनिका ने झुके-झुके ही पीछे मुड़ कर कहा.

मनिका को इस पोज़ में देख जयसिंह और बेकाबू हो गए थे. मनिका वापस अपने ईयरफोंस ढूँढने में लग गई थी. जयसिंह ने ध्यान दिया की मनिका के इस तरह झुके होने की वजह से उसकी लेग्गिंग्स का महीन कपड़ा खिंच कर थोड़ा पारदर्शी हो गया था और केबिन में इतनी रौशनी थी कि उन्हें उसकी सफ़ेद लेग्गिंग्स में से गुलाबी कलर का अंडरवियर नज़र आ रहा था. उन पर एक बार फिर जैसे बिजली गिर पड़ी. उन्होंने अपनी नज़रें अपनी बेटी मनिका के नितम्बों पर पूरी शिद्दत से गड़ा लीं, वे सोच रहे थे कि पहली बार में उन्हें उसकी अंडरवियर क्यूँ नहीं दिखाई दी थी, और उन्हें एहसास हुआ की मनिका जो अंडरवियर पहने थी वह कोई सीधी-सिम्पल अंडरवियर नहीं थी बल्कि एक थोंग था, जो कि एक प्रकार का मादक (सेक्सी) अंडरवियर होता है जिससे पीछे का अधिकतर भाग ढंका नहीं जाता. जयसिंह पर गाज पर गाज गिरती चली जा रही थी. ट्रेन के हिचकोलों से हिलते मनिका के नितम्बों ने उनके लिए वचन की धज्जियाँ उड़ा दीं थी.

आज तक जयसिंह ने किसी को इस तरह की सेक्सी अंडरवियर पहने नहीं देखा था, अपनी बीवी मधु को भी नहीं. उनके मन में अनेक ख्याल एक साथ जन्म ले रहे थे, 'ये मनिका कब इतनी जवान हो गई? पता ही नहीं चला, आज तक इसकी माँ ने भी कभी ऐसी पैंटी पहन कर नहीं दिखाई जैसी ये पहने घूम रही है...ओह्ह मेरे से पैसे ले जा कर ऐसी कच्छियाँ लाती है ये...’जयसिंह जैसे सुध-बुध खो बैठे थे, 'ओह्ह क्या...क्या कसी हुई गांड है साली की...ये मैं क्या सोच रहा हूँ? सच ही तो है...साली कुतिया कैसे अधनंगी घूम रही है देखो जरा. साली चिनाल के बोबे भी बहुत बड़े हो रहे हैं...म्म्म्म्म्म्म...हे प्रभु...’जयसिंह के दीमाग में बिजलियाँ कौंध रहीं थी.

***

जयसिंह के कई दोस्त ऐसे थे जिनके शादी के बाद भी अफेयर्स रहे थे लेकिन उन्होंने कभी मधु के साथ दगा नहीं की थी, उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनकी कामिच्छा भी मंद पड़ने लगी थी और अब वे कभी-कभार ही मधु के साथ संभोग किया करते थे. लेकिन आज अचानक जैसे उनके अन्दर सोया हुआ मर्द फिर से जाग उठा था उन्होंने पाया की उनकी पेंट में उनका लिंग तन के खड़ा हो गया था. अब तक मनिका को उसके ईयरफोंस मिल चुके थे और वह सामने की बर्थ पर बैठी गाने सुन रही थी, उसने मुस्का कर अपने पिता की ओर देखा, उसे नहीं पता था कि सामने बैठे उसके पापा किस कदर उस के जिस्म के दीवाने हुए जा रहे थे.

जयसिंह ने पाया कि उनका लिंग खड़ा होकर उन्हें तकलीफ दे रहा था क्यूंकि उनके बैठे होने की वजह से लिंग को जगह नहीं मिल पा रही थी, उन्हें ऐसा लग रहा था मानो एक दिल उनके सीने में धड़क रहा था और एक उनके लिंग में, 'साला लौड़ा भी फटने को हो रहा है और ये साली कुतिया मुस्कुरा रही है सामने बैठ कर...ओह क्या मोटे होंठ है साली के, गुलाबी-गुलाबी...मुहं में भर दूँ लंड इसके...आह्ह्ह...’जयसिंह भूल चुके थे कि मनिका उनकी बेटी है. पर सच से भी मुहं नहीं फेरा जा सकता था, थोड़ी देर बाद जब उनका दीमाग कुछ शांत हुआ तो वे फिर सोच में पड़ गए, 'मनिका...मेरी बेटी है...साली कुतिया छोटी-छोटी कच्छियाँ पहनती है...उफ़ पर वो मेरी बेटी...साली का जिस्म ओह्ह...उसकी फ्रेंड्स मुझे उसका बॉयफ्रेंड कहती हैं...ओह मेरी ऐसी किस्मत कहाँ...काश ये मुझसे पट जाए...कयामत आ जाएगी...पर वो मेरी प्यारी बिटिया...रांड है.'

जयसिंह इसी उधेड़बुन में लगे थे जब मनिका ने अपनी सैंडिल खोली और पैर बर्थ पर करके लेट गई, एक बार फिर उनके कुछ शांत होते बदन में करंट दौड़ गया. मनिका उनकी तरफ करवट ले कर लेटी हुई थी और उसकी डीप-नेक टी-शर्ट में से उसका वक्ष उभर कर बाहर निकल आया था, इससे पहले की जयसिंह का दीमाग इस नए झटके से उबर पाता उनकी नज़र मनिका की टांगों के बीच बन रही 'V' आकृति पर जा ठहरी. वे तड़प उठे, 'ओह्ह्ह मनिकाआआ...’और उसी क्षण जयसिंह ने फैसला कर लिया कि ये आग मनिका के जिस्म से ही बुझेगी, जो भी हो उन्हें किसी तरह अपनी बेटी के साथ हमबिस्तर होने का रास्ता खोजना होगा वरना शायद उन्हें ज़िन्दगी भर चैन नहीं मिलेगा.
जयसिंह भी अब अपनी बर्थ पर लेट गए और मनिका पर से नज़रें हटा लीं. वे जानते थे कि अगर वे उसकी तरफ देखते रहे तो उनका दीमाग सोचने-समझने के काबिल नहीं रहेगा और इस वक्त उन्हें दिल से ज्यादा दीमाग की जरूरत थी, 'मैं और मनिका इस ट्रिप पर अकेले जा रहे हैं, इस को पटाने के लिए इससे ज्यादा सुनहरा मौका शायद ही फिर मिले, सो मुझे दीमाग से काम लेना होगा. अगर प्लान में थोड़ी भी गड़बड़ हुई तो मामला बहुत बिगड़ सकता है इसलिए बहुत सोच समझ कर कदम उठाने होंगे ताकि अगर बात न बनती दिखे तो पीछे हटा जा सके.' जयसिंह अब मनिका के स्वाभाव और स्कूल कॉलेज के ज़माने के अपने अनुभव का मेल करने की कोशिश करने लगे, 'हम्म लड़कियों के बारे में मैं क्या जानता हूँ..? हमेशा से ही लड़कियां पैसे वाले लौंडों के चक्करों में जल्दी आती हैं, सो पहली समस्या का हल तो मेरे पास है और दूसरा लड़कियों को पसंद है अपनी तारीफ करवाना, वो भी कोई दिक्कत नहीं है और लड़कियाँ स्वाभाव से सीक्रेटिव भी होतीं है, उन्हें चुपके-चुपके शरारत करना बहुत भाता है, सो साली की इस कमजोरी पर भी ध्यान देना होगा. फिर आती है भरोसे की बात;एक बार अगर लड़की को आपने भरोसे में ले लिया तो उस से कुछ भी करवाया जा सकता है, मनिका मुझ पर भरोसा तो करती है लेकिन अपने पैरेंट के रूप में सो वहाँ दिक्कत आने वाली है और लास्ट स्टेप है मनिका की जवानी, उसमें भी आग लगानी होगी. वैसे इन मामलों में लडकियाँ मर्दों से कम तो नहीं होती बस वे जाहिर नहीं होने देती, लेकिन यहाँ सबसे बड़ी दिक्कत आने वाली है. मनिका के तन में इतनी हवस जगानी होगी कि वह सामाज के नियम तोड़ कर मेरी बात मान लेने पर मजबूर हो जाए. यह आखिरी काम सबसे मुश्किल होगा, लेकिन अब मैं पीछे नहीं हट सकता, या तो आर है या पार है.' जयसिंह ने इसी तरह सोचते हुए दो घंटे बिता दिए, मनिका को लगा कि वे सो रहे हैं.

उनका प्लान बन चुका था, पहले वे अपने पैसे और तारीफों से मनिका को दोस्ती के ऐसे जाल में फँसाने वाले थे ताकि वह उनको अपने पिता के रूप में देखना कुछ हद तक छोड़ दे. फिर वे धीरे-धीरे अपना चँगुल कसने वाले थे और मनिका के साथ बिलकुल किसी अच्छे दोस्त की तरह पेश आ कर उसका भरोसा पूरी तरह जीतने की कोशिश करने वाले थे ताकि उन दोनों के बीच कुछ ऐसे अन्तरंग वाकये हों जो मनिका को उनके और करीब ले आए. उसके इतना फंस जाने के बाद जयसिंह हौले-हौले उसकी कमसिन जवानी की आग को हवा देने का काम करने वाले थे. जयसिंह का मन अब शांत था, वे हमेशा से ही अपने बिज़नस के क्षेत्र में एक मंजे हुए खिलाड़ी माने जाते थे क्यूंकि एक बार जो वे ठान लेते थे उसे पा कर ही दम लेते थे और उसी एकाग्रता के साथ वे अपनी बेटी को अपनी रखैल बनाने के अपने प्लान पर अमल लाने वाले थे.

***

शाम होते-होते वे लोग दिल्ली पहुँच गए, स्टेशन से बाहर आ कर उन्होंने एक कैब ली और जब ड्राईवर ने पूछा कि वे कहाँ जाना चाहते हैं तो जयसिंह बोले,

'मेरियट गुडगाँव.' और कनखियों से मनिका की तरफ देखा. मनिका के चेहरे पर ख़ुशी साफ़ झलक रही थी.

'वाओ पापा हम मेरियट में रुकेंगे?' मनिका ने खुश हो कर पूछा.

'और नहीं तो क्या? अब तुम साथ आई हो तो किसी अच्छी जगह ही रुकेंगे ना.' जयसिंह उसे हवा देते हुए बोले.

'ओह गॉड पापा आई एम सो हैप्पी.'

'हाहा...थेट्स व्हाट आई वांट फॉर यू मनिका.' जयसिंह ने कहा. मनिका यह सुन और खुश हो गई लेकिन उसने मन ही मन नोटिस किया कि जयसिंह सुबह से उसे उसके निकनेम मणि की बजाय 'मनिका' कह कर पुकार रहे थे जो उसे थोड़ा अटपटा लगा.

कुछ देर के सफ़र के बाद वे हॉटेल पहुँच गए. मेरियट दिल्ली-गुडगाँव बेहद आलिशान हॉटेल है, अन्दर पहुँचने पर मनिका वहाँ के डेकोर को देख बहुत खुश हुई. जयसिंह ने उसे सामान के पास छोड़ा और चेक-इन काउंटर पर पहुंचे. वहाँ बैठे फ्रंट-ऑफिस क्लर्क ने उनका अभिवादन किया,

'वेलकम टू द मेरियट सर. डू यू हैव अ रिजर्वेशन?'
'एक्चुअली नो. आई ऍम लुकिंग फॉर अ स्टे.'

'ओह वैरी वेल सर, आर यू अलोन?'

'नो आई एम हेयर विद माय वाइफ.' जयसिंह ने मुस्कुरा कर कहा.

'वेल सर हाओ लॉन्ग विल यू बी स्टेइंग विद अस?'

'आई डोंट क्नो एक्चुअली सो कैन यू पुट अस डाउन फॉर अ वीक फॉर नाओ?' जयसिंह ने जरा सोच कर कहा.

'वैरी वेल सर. हेयर आर योर की-कार्ड्स सर थैंक यू फॉर चूजिंग द मेरियट. हैव अ प्लीजेंट स्टे.'

जयसिंह रूम बुक करा कर मनिका के पास लौटे. तभी हेल्पर भी आ गया और उनका रूम नंबर पूछ कर उनका लगेज रखने चल दिया. वे भी एलीवेटर से अपने रूम की तरफ चल पड़े.

जब वे अपने रूम में पहुंचे तो पाया की हेल्पर ने उनका सामान वहाँ पहुँचा दिया था और खड़ा उनका वेट कर रहा था. जयसिंह समझ गए कि वह टिप चाहता है. उन्होंने जेब से दो सौ रूपए निकाल उसे थमा दिए और वह ख़ुशी-ख़ुशी वहाँ से चल दिया. मनिका ने जब रूम देखा तो उसकी बांछें खिल उठी, कमरा इतना बड़ा व शानदार था और उसमे ऐशो-आराम की सभी चीजें मौजूद थीं कि वो खुश होकर इधर-उधर जा-जा कर वहाँ रखी चीज़ें उलट-पलट कर देखने लगी.

'पापा क्या रूम है ये...वाओ.' उसने जयसिंह से अपनी ख़ुशी का इज़हार किया.

'हाँ-हाँ. अच्छा है.' जयसिंह ने कुछ ख़ास महत्व न देते हुए कहा.

'बस अच्छा है? पापा! इतना सुपर रूम है ये...’ मनिका ने इंसिस्ट किया.

'हाँ भई बहुत अच्छा है, बस?' जयसिंह ने उसी टोन में कहा, 'तुमने पहली बार देखा है इसीलिए ऐसा लग रहा है तुम्हें.'
'मतलब..? मतलब आप पहले भी आए हो यहाँ पर पापा?' मनिका ने आश्चर्य से पूछा.

'और नहीं तो क्या, बिज़नस मीटिंग्स के सिलसिले में आता तो रहता हूँ मैं दिल्ली, जैसे तुम्हें नहीं पता...' जयसिंह बोले.

'हाँ आई क्नो दैट पापा पर मुझे नहीं पता था कि आप यहाँ रुकते हो.' मनिका बोली, 'पहले पता होता तो मैं भी आपके साथ आ जाती.' जयसिंह उसकी बात पर मन ही मन मुस्कुराए.

'हाहा...अच्छा जी. चलो कोई बात नहीं अब तो तुम यहीं हॉस्टल में रहा करोगी, सो जब मैं दिल्ली आया करूँगा तो तुम यहाँ आ जाया करना मेरे पास हॉटेल में.' जयसिंह का आशय अभी मनिका कैसे समझ सकती थी, सो वह खुश हो गई और बोली,

'वाओ हाँ पापा ये तो मैंने सोचा ही नहीं था. आई विश की मेरा एडमिशन हो जाए यहाँ...और आपकी बिज़नस मीटिंग्स जल्दी-जल्दी हुआ करें.'

'हाहाहा...अरे हो जाएगा, तुम इतनी इंटेलीजेंट हो, डोंट वरी.' जयसिंह मनिका की तारीफ करते हुए बोले, 'चलो अब बताओ की डिनर रूम में मंगवाएं या नीचे रेस्टोरेंट में करना है?'
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मनिका के कहने पर वे दोनों हॉटेल के रेस्टोरेंट में खाना खाने गए थे. जयसिंह ने मनिका से ही ऑर्डर करने को कहा और जब मनिका ने मेन्यु में लिखे महंगे रेट्स का जिक्र किया तो उन्होंने उसे पैसों की चिंता न करने को कहा. मनिका उनकी बात सुन खिल उठी और बोली,

'पापा सच मेरी फ्रेंड्स सही कहती हैं. आप सबसे अच्छे पापा हो.'

'हाह...अरे हम डिनर ही तो कर रहे हैं. तुम्हारी फ्रेंड्स के घरवाले क्या उन्हें खाना नहीं खिलाते क्या?' जयसिंह ने मजाकिया लहजे में कहा.

'ओहो पापा...कम से कम फाइव स्टार रेस्टोरेंट्स में तो नहीं खिलाते हैं. आप को तो बस मेरी बात काटनी होती है.' मनिका ने मुहँ बनाते हुए कहा.

'तो मैं कौनसा तुम्हें यहाँ रोज़-रोज़ लाया करता हूँ.' जयसिंह मनिका से ठिठोली करने के अंदाज़ में बोले.

'हा...पापा कितने खराब हो आप.' मनिका ने झूठी नाराजगी दिखाई, 'देख लेना जब मेरा यहाँ एडमिशन हो जाएगा ना और आप डेल्ही आया करोगे तो मैं यहीं पे खाना खाया करूँगी.' मनिका ने आँखें मटकाते हुए हक़ जताया.

'हाहाहा...अरे भई ठीक है अब आज के लिए तो कुछ ऑर्डर कर दो.' जयसिंह हँसते हुए बोले.

जब मनिका ने ऑर्डर कर दिया, वे दोनों वैसे ही बैठे बतियाने लगे. जयसिंह मनिका के साथ हँसी-मजाक कर रहे थे और बात-बात में उसकी टांग खींच रहे थे, मनिका भी हँसते हुए उनका साथ दे रही थी और मन ही मन अपने पिता के इस मजाकिया और खुशनुमा अंदाज़ को देख-देख हैरान भी थी. कुछ देर बाद उनका डिनर आ गया, मनिका ने रीअलाइज़ किया की उसे बहुत जोरों की भूख लगी थी, उन्होंने से सुबह के ब्रेकफास्ट के बाद ट्रेन में थोड़े से स्नैक्स ही खाए थे. दोनों बाप-बेटी खाना खाने में तल्लीन हो गए. मनिका जो पहली बार इतनी महंगी जगह खाना खाने आई थी, को खाना बहुत अच्छा लगा और वह मन में प्रार्थना कर रही थी कि उसका एडमिशन दिल्ली में ही हो जाए.
जब वे खाना खा चुके तो जयसिंह ने आइसक्रीम ऑर्डर कर दी और जब वेटर बिल ले कर आया तो उन्होंने उसे पाँच सौ रुपए की टिप दे डाली, मनिका उनके अंदाज़ से पूरी तरह से इम्प्रेस हो गई थी. वे दोनों अब उठ कर अपने कमरे में लौट आए.

'पापा द फ़ूड हेयर इस ऑसम.' मनिका ने कमरे में आ कर बेड पर गिरते हुए कहा, 'मेरा तो टम्मी (पेट) फुल हो गया है.'

'हम्म...' जयसिंह अपने सूटकेस से पायजामा-कुरता निकाल रहे थे, 'तुम थक गई हो तो सो जाओ, मैं जरा नहा कर आता हूँ.' उन्होंने कहा.

'ओह नहीं पापा...आई मीन थक तो गई हूँ बट मैं भी शावर लेके नाईट-ड्रेस पहनूँगी, यू गो फर्स्ट एनीवे.'

जयसिंह अपने कपड़े ले कर बाथरूम में घुस गए. अंदर पहुँच उन्होंने अपने कपड़े उतारे और अपने कसमसाते लंड को आज़ाद कर राहत की साँस ली, उन्होंने शावर ऑन किया और ठन्डे पानी की फुहार से नहाते हुए मनिका के जवान जिस्म की कल्पना करते हुए अपना लंड सहलाने लगे. 'ओह मनिका...साली कमीनी कुतिया...क्या पटाखा जवानी है साली की, बजाने का मज़ा ही आ जाए जिसको...आह्ह...' जयसिंह सोच-सोच कर उत्तेजित हो रहे थे. उनका लंड उनके हाथ में हिलोरे ले रहा था, उन्हें महसूस हुआ की वे झड़ने वाले हैं, ऐसा होते ही उन्होंने एकदम से अपने लंड को सहलाना बंद कर दिया और शांत होने की कोशिश करने लगे. उनके मन में एक विचार कौंधा था कि अगर अभी वे स्खलित हो जाते हैं तो मनिका को लेकर उनके तन-मन में लगी आग, कुछ पल के लिए ही सही, बुझ जाएगी (जैसा कि आम-तौर पर सेक्स करने और हस्तमैथुन के बाद मर्द महसूस करते हैं) और वे यह नहीं चाहते थे. उन्होंने तय किया की वे अपने प्लान के सफल होने से पहले अपने तन की आग को शांत नहीं करेंगे, 'और अगर प्लान फेल हो गया, तब तो जिंदगी भर हाथ में लेके हिलाना ही पड़ेगा.' फिर उन्होंने नाटकीय अंदाज़ में मन ही मन सोचा और नहाने लगे.
बाहर बेड पर लेटी मनिका अपने पापा के नहा कर आने का वेट कर रही थी. वह बहुत खुश थी, 'ओह गॉड कितना एक्साईटिंग दिन था आज का, पहली बार मेट्रो-सिटी में आई हूँ आज मैं...एंड होपफुली अब यहीं रहूँगी, कितना कुछ है यहाँ घूमने-फिरने को और शौपिंग करने को...वैसे मम्मी ने ठीक ही कहा था सुबह, ऐसे ही पैसे बर्बाद कर डाले मैंने वहाँ शौपिंग करके इस से अच्छा होता कि यहाँ से कर लेती...हम्म कोई बात नहीं पापा से थोड़े और पैसे माँग लूंगी वैसे भी वे कह रहे थे कि मैं पैसों की फ़िक्र न करूँ...हीहाहा...’मनिका मन ही मन सोच खिलखिलाई, 'और पापा कितने अमेजिंग हैं...कितने फनी और स्वीट...और बुरे भी कैसे मेरी लेग-पुलिंग कर रहे थे आज...ओह नहीं-नहीं वे बुरे नहीं है...और गॉड हम मेरियट में रुके हैं...वेट टिल आई टेल माय फ्रेंड्स अबाउट इट...सब जल मरेंगी...हाहाहा...' तभी बाथरूम का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई, मनिका उठ बैठी, जयसिंह नहा कर बाहर निकल आए थे.

'चलो मनिका तुम भी नहा आओ जल्दी से फिर बिस्तर में घुसते हैं.' जयसिंह बेड के पास आते हुए बोले, 'थक गए आज तो सफ़र करके, आई एम सो स्लीपी.'

'येस पापा.' मनिका उठते हुए बोली. लेकिन जयसिंह की कही 'बिस्तर में घुसने' वाली बात मनिका के अंतर्मन में कहीं बहुत हल्की सी एक आहट कर गई थी पर मनिका का ध्यान इस ओर नहीं गया.

मनिका ने जल्दी से अपने कपड़े लिए और बाथरूम में घुस गई. बाथरूम में घुस मनिका ने अपने कपड़े उतारे व शावर ऑन कर नहाने लगी. नहाते-नहाते उसने अपने अंतवस्त्र भी खोल दिए व धो कर एक तरफ रख दिए थे. उनके रूम की तरह वहाँ का बाथरूम भी बहुत शानदार था, उसमें तरह-तरह के शैम्पू और साबुनें रखीं थी और शावर में पानी आने के लिए भी कई सेटिंग्स थी, मनिका मजे से नहाती रही और फिर एक बार सोचने लगी कि दिल्ली आ कर उसे कितना मजा आ रहा था.

कुछ देर बाद जब मनिका नहा चुकी थी, उसने पास की रैक पर रखे तौलिए की तरफ हाथ बढाया और अपना तरोताजा हुआ जिस्म पोंछने लगी. तौलिया बेहद नरम था और मनिका का बदन वैसे ही नहाने के बाद थोड़ा सेंसिटिव हो गया था सो तौलिये के नर्म रोंओं के स्पर्श से उसके बदन के रोंगटे खड़े हो गए व उसकी जवान छाती के गुलाबी निप्पल तन कर खड़े हो गए. मनिका को वो एहसास बहुत भा रहा था और वह कुछ देर तक वैसे ही उस नर्म तौलिए से अपने बदन को सहलाती खड़ी रही. फिर उसने तौलिया एक ओर रखा और अपने धोए हुए अन्तवस्त्रों की तरफ हाथ बढ़ाया और उस एक पल में उसका सारा मजा फुर्र हो गया. 'ओह गॉड...' उसके मुहँ से खौफ भरी आह निकली.



***

जयसिंह ने रूम में एक ओर रखे काउच पर बैठ टी.वी. ऑन कर लिया था. परन्तु उनका ध्यान कहीं और ही लगा था. एक बार फिर उनके मन में उनकी अंतर्आत्मा की आवाज़ गूंजने लगी थी, 'ये शायद मैं ठीक नहीं कर रहा...मनिका मेरी बेटी है, मेरा दीमाग ख़राब हो गया है जो मैं उस के बारे में ऐसे गंदे विचार मन में ला रहा हूँ...पर क्या करूँ जब वह सामने आती है तो दिलो-दीमाग काबू से बाहर हो जाते हैं...साली की गांड...ओह मैं फिर वही सोचने लगा हूँ...कुछ समझ नहीं आ रहा, इतने सालों से मनिका घर में मेरी आँखों के सामने ही तो बड़ी हुई है पर अचानक एक दिन में ही मेरी बुद्धि कैसे भ्रष्ट हो गई समझ नहीं आता...पर घर में साली मेरे सामने छोटी-छोटी कच्छियाँ पहन कर भी तो नहीं आई...ओह्ह फिर वही अनर्थ सोच...’जयसिंह बुरी तरह से विचलित हो उठे. तभी बाथरूम का दरवाज़ा खुला, जयसिंह की नज़र उनकी इजाजत के बिना ही उस ओर उठ गईं. इस बार आह निकलने की बारी जयसिंह की थी.

मनिका ने जैसे ही अपने अंतवस्त्र उठाए थे उसे एहसास हुआ कि उसके पास नहाने के बाद पहनने को ब्रा और पैंटी नहीं थी क्यूंकि वह रात में अंतवस्त्र नहीं पहना करती थी और घर पर तो वह अपने रूम में सोया करती थी, इसी के चलते वह सिर्फ अपनी नाईट-ड्रेस निकाल लाई थी. नाईट-ड्रेस का ख्याल आते ही मनिका पर एक और गाज गिरी थी और उसके मुहँ से वह आह निकल गई थी. मनिका नाईट-ड्रेस भी वही निकाल लाई थी जो वह अपने कमरे में पहना करती थी, शॉर्ट्स और टी-शर्ट. ऊपर से उसकी शॉर्ट्स भी कुछ ज्यादा ही छोटी थी (उसने वह एक हॉलीवुड फिल्म में हीरोइन को पहने देख खरीदी थी) और वे उसके नितम्बों को बमुश्किल ढंकती थी और तो और उसकी टी-शर्ट भी टी-शर्ट कम और गंजी ज्यादा थी जिसका कपड़ा भी बिलकुल झीना था. मनिका का दिल जोरों का धड़क रहा था. उसे एक पल के लिए कुछ समझ नहीं आया कि वह कैसे ऐसे कपड़ो में अपने पापा के सामने जाएगी.

कुछ पल इसी तरह जड़वत खड़ी रहने के बाद मनिका ने एक राहत भरी साँस ली, उसे ख्याल आया कि वह अपने पहले वाले कपड़े ही वापस पहन कर बाहर जा सकती है, हालाँकि उसके पास अंदर से पहनने के लिए अंतवस्त्र तो फिर भी नहीं थे. उसका दिल फिर भी कुछ शांत हुआ और वह अपनी लेग्गिंग्स और टी-शर्ट लेने के लिए मुड़ी, एक बार फिर उसका दिल धक् से रह गया. मनिका ने शावर से नहाते वक़्त कपड़े पास में ही टांग दिए थे और नहाते हुए मस्ती में उसने इतनी उछल-कूद मचाई थी कि उसकी लेग्गिंग्स और टी-शर्ट पूरी तरह से भीग चुकी थी. मनिका रुआंसी हो उठी. अब उसके पास कोई चारा नहीं बचा था सिवाय वह छोटी सी नाईट-ड्रेस पहन बाहर जाने के.

मनिका ने धड़कते दिल से अपनी शॉर्ट्स और टी-शर्ट पहनी और बाथरूम में लगे शीशे में देखा. उसकी साँसें और तेज़ चलने लगीं, उसे एहसास हुआ कि उसकी शॉर्ट्स छोटी नहीं बहुत छोटी थीं, उसके दोनों गोल-मटोल नितम्ब शॉर्ट्स के नीचे से बाहर निकले हुए थे, उसने शॉर्ट्स को खींच कर कुछ नीचे कर उन्हें ढंकने का प्रयास किया परन्तु वो कपड़ा ही थोड़ा स्ट्रेचेब्ल था और कुछ ही पल में फिर से खिंच कर ऊपर हो जस का तस हो गया. ऊपर पहनी गन्जी का भी वही हाल था. एक तो वह सिर्फ उसकी नाभी तक आती थी और दूसरा उसके झीने कपड़े में से उसका वक्ष उभर कर साफ़ दिखाई पड़ रहा था जिस पर उसके दोनों निप्पल बटन से प्रतीत हो रहे थे. मनिका का सिर घूम गया, वह अपने आप को ध्यान न रखने के लिए कोस रही थी. विडंबना की बात यह थी की उसकी माँ मधु ने भी उसे सुबह इसी बात के लिए टोका था.

किसी तरह मनिका ने बाहर निकलने की हिम्मत जुटाई और मन ही मन प्रार्थना की के उसके पिता सो चुके हों. लेकिन अभी वह बाहर निकलने को तैयार हुई ही थी कि उसके सामने एक और मुसीबत आ खड़ी हुई. उसने वहाँ धो कर रखे अपने अंतवस्त्र अभी तक नहीं उठाए थे, उनका ख्याल आते ही वह फिर उपह्पोह में फंस गई. अपनी थोंग-पैंटी और उसी से मेल खाती महीन सी ब्रा को सुखाने के लिए बाथरूम के आलावा उसके पास कोई जगह नहीं थी और बाथरूम वह अपने पिता के साथ शेयर कर रही थी, 'अगर पापा यह देख लेंगे तो पता नहीं क्या सोचेंगे...हाय...मैं भी कैसी गधी हूँ...पहले ये सब क्यूँ नहीं सोचा मैंने?' मगर अब क्या हो सकता था मनिका ने अपनी ब्रा-पैंटी वहाँ लगे एक तार पर डाली और उन्हें एक तौलिए से ढँक दिया.


***

जैसे ही जयसिंह ने अपनी नज़रें उठा कर बाथरूम से बाहर आई मनिका की तरफ देखा उनका कलेजा जैसे मुहँ में आ गया. काउच बाथरूम के गेट के बिलकुल सामने रखा हुआ था, बाहर निकलती मनिका उन्हें सामने बैठा देख ठिठक कर खड़ी हो गई और अपने हाथ अपनी छाती के सामने फोल्ड कर लिए, वह शर्म से मरी जा रही थी, उसने अपने-आप में सिमटते हुए अपना एक पैर दूसरे पैर पर रख लिया था और नज़रें नीची किए खड़ी रही.

जयसिंह के लिए यह सब मानो स्लो-मोशन में चल रहा था. मनिका को इस तरह अधनंगी देख उनकी अंतर्आत्मा की आवाज़ उड़नछू हो चुकी थी, उन्हें अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था. मनिका के पहने नाम मात्र के कपड़ों में से झलकते उसके जिस्म ने जयसिंह के दीमाग के फ्यूज उड़ा कर रख दिए थे. अब मनिका ने सकुचा कर अपने सूटकेस की तरफ कदम बढ़ाए, जयसिंह की तन्द्रा भी टूट चुकी थी. असल में यह सब एक पल में ही घट चुका था, जयसिंह को अब मनिका का अधो-भाग नज़र आ रहा था, उसकी शॉर्ट्स में से बाहर झांकते नितम्बों को देख उनके लंड की नसें फटने को हो आईं थी, 'ये मनिका तो साली मेनका निकली..’उन्होंने मन में सोचा. मगर इस सब के बावजूद भी उनका अपनी सोच पर पूरा काबू था, मनिका के हाव-भाव देखते ही वे समझ गए थे कि चाहे जो भी कारण हो मनिका ने ये कपड़े जान-बूझकर तो नहीं पहने थे, 'जिसका मतलब है कि वह अब कपड़े बदलने की कोशिश करेगी...ओह शिट ये मौका मैं हाथ से नहीं जाने दे सकता...’ जयसिंह ये सोचते ही उठ खड़े हुए और बाथरूम में घुसते हुए मनिका से बोले,

'मनिका!'

'जी पापा..?' मनिका उनके संबोधन से उचक गई थी और उसने सहमी सी आवाज़ में पूछा.

'तुम जरा टी.वी ऑफ करके बेड में बैठो. मैं टॉयलेट जा कर आता हूँ.' जयसिंह ने कहा.

'जी...' मनिका ने छोटा सा जवाब दिया.

बाथरूम में जयसिंह का दीमाग तेजी से दौड़ रहा था, 'आखिर क्यूँ मनिका ने ऐसे कपड़े पहन लिए थे?' उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था पर उनका एक काम बन गया था, 'थैंक गॉड मैंने मनिका को देख चेहरे पर कोई भाव नहीं आने दिए वरना खेल शुरू होने से पहले ही बिगड़ जाता.' उन्होंने अपने फड़फड़ाते लंड को मसल कर शांत करते हुए सोचा. जयसिंह जानते थे कि लड़की उसे देखने वाले की नज़र से ही उसकी नीयत भांपने में माहिर होती है और उन्होंने बड़ी ही चालाकी से मनिका को यह एहसास नहीं होने दिया था. जयसिंह ने जाने-अनजाने में ही बेहद दिमागी चाल चल डाली थी, उन्होंने मनिका को एक पल देखने के बाद ही ऐसा व्यक्त किया था जैसे सब नार्मल हो, अगर उन्होंने अपने चेहरे पर अपनी असली फीलिंग्स जाहिर कर दी होती तो मनिका जो अभी सिर्फ उनके सामने असहज थी, उनसे सतर्क हो जाती.

उधर बाहर कमरे में मनिका घबराई सी खड़ी थी. उसने सोचा था कि वह जल्दी से दूसरे कपड़े लेकर चेंज कर लेगी लेकिन जयसिंह को इस तरह बिलकुल अपने सामने पा उसकी घिग्गी बंध गई थी और अब उसके पिता बाथरूम में घुस गए थे. मनिका ने जयसिंह के कहे अनुसार टी.वी ऑफ कर दिया था और जा कर बेड के पास खड़ी हो गई थी, सामने उसका सूटकेस खुला हुआ था वह समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या करे? एक बार तो उसने सोचा के, 'जब तक पापा बाथरूम में है मैं ड्रेस बदल लेती हूँ.' पर अगले ही पल उसे एहसास हुआ की, 'अगर पापा बीच में बाहर निकल आए तो मैं नंगी पकड़ी जाऊँगी.' मनिका सिहर उठी.

जब उसके कुछ देर वेट करने के बावजूद जयसिंह बाथरूम से नहीं निकले तो मनिका, जो अपने अधनंगेपन के एहसास से बहुत विचलित हो रही थी, ने तय किया कि अभी वह बेड में घुस कम्बल ओढ़ कर अपना बदन ढांप लेगी, 'और सुबह पापा के उठने से पहले ही उठ कर जल्दी से कपड़े बदल लूंगी.' उसने अपना सूटकेस बंद कर एक तरफ रखा और बिस्तर में घुस गई, 'पर ये क्या?...ये ब्लैंकेट तो डबल-बेड का है...’मनिका बिस्तर में सिर्फ एक ही कम्बल पा चकरा गई. उसे क्या पता था की जयसिंह ने रूम एक कपल के लिए बुक कराया था.

'पापा!' कुछ देर बाद जब जयसिंह बाथरूम से फाइनली बाहर आए तो मनिका ने कहा, उसके स्वर में कुछ चिंता थी.
'क्या हुआ मनिका? सोई नहीं तुम?' जयसिंह ने बनावटी हैरानी और कंसर्न व्यक्त कर पूछा. मनिका अपने-आप को पूरी तरह कम्बल से ढंके हुए थी.

'पापा यहाँ सिर्फ एक ही ब्लैंकेट है!' मनिका ने थोड़ा पैनिक हुई आवाज़ में कहा.

'हाँ तो डबल बेड का होगा न?' जयसिंह ने बिलकुल आश्चर्य नहीं जताया था.

''जी.' मनिका हौले से बोली.

'हाँ तो फिर क्या दिक्कत है?' जयसिंह ने इस बार बनावटी आश्चर्य दिखा पूछा.

'जी...क...कुछ नहीं मुझे लगा...कि कम से कम दो ब्लैंकेटस मिलते होंगे सो...' मनिका से आगे कुछ कहते नहीं बना था. 'क्या मुझे पापा के साथ ब्लैंकेट शेयर करना पड़ेगा...ओह गॉड.' उसने मन में सोचा और झेंप गई.

'हाहाहा पहली बार जब मैं यहाँ आया था तब मुझे भी लगा था कि ये एक कम्बल देना भूल गए हैं पर फिर पता चला इन रूम्स में यही डबल-बेड वाला एक ब्लैंकेट होता है.' जयसिंह ने हँस कर मनिका का दिल कुछ हल्का करने और उसे सहज करने के इरादे से बताया. 'हद होती है मतलब दस हज़ार रूपए एक दिन का रेंट और उसमे इंसान को सिर्फ एक कम्बल मिलता है...' उन्होंने मुस्कुरा कर आगे कहा.

'हैं!?' मनिका चौंकी, 'पापा इस रूम का रेंट टेन थाउजेंड रुपीस है? मनिका एक पल के लिए अपनी लाज-शर्म और चिंता भूल गई थी.

'अरे भई भूल गई? फाइव स्टार है ये...’जयसिंह फिर से मुस्काए.

'ओह गॉड पापा, फिर भी इतना कॉस्टली?' मनिका बोली.

'मनिका मैंने कहा न तुम खर्चे की चिंता मत करो, जस्ट एन्जॉय.' जयसिंह बिस्तर पर आते हुए बोले.

उन्हें बिस्तर पर आते देख एक पल के लिए मनिका ने कम्बल अपनी ओर खींच लिया था, वे समझ गए की वह अभी भी शरमा रही थी, और करती भी क्या? सो उन्होंने एक बार फिर हँस कर उसका डर कम करने के उद्देश्य से कहा,

'थैंक गॉड आज तुम हो मेरे साथ नहीं पिछली बार तो मीटिंग से यहाँ आते वक्त मेरे बिज़नस पार्टनर का एक रिश्तेदार साथ में टंग आया था. इमैजिन उसके साथ एक कम्बल में सोना पड़ा था, ऊपर से उसने शराब पी रखी थी. सारी रात सो नहीं पाया था मैं.'

इस बार मनिका भी हँस पड़ी, 'ओह शिट पापा...हाहाहा.'

जयसिंह अब मनिका के साथ कम्बल में घुस चुके थे. मनिका भी थोड़ा सहज होने लगी थी क्यूंकि अब उसका बदन ढंका हुआ था और जयसिंह ने भी उसे उसकी अधनंगी स्थिति का एहसास अभी तक नहीं दिलाया था. जयसिंह ने हाथ बढ़ा कर बेड-साइड से रूम की लाइट ऑफ कर दी और पास की टेबल पर रखा नाईट-लैंप जला दिया.

'चलो मनिका थक गईं होगी तुम भी...' जयसिंह मनिका की तरफ पलट कर बोले, 'गुड नाईट.'

'गुड नाईट पापा.' मनिका ने नाईट-लैंप की धीमी रौशनी में मुस्कुरा कर कहा, 'स्वीट ड्रीम्स टू.'

जयसिंह ने अब मनिका की तरफ करवट ली और हाथ बढ़ा कर एक पल के लिए उसके गाल पर रख सहलाते हुए बोले,
'अच्छे से सोना. टुमॉरो इज़ योर बिग डे.'

मनिका एक पल के लिए थोड़ा चौंक गई थी पर जयसिंह की बात सुन वह भी मुस्कुरा दी, वे तो बस उसके इंटरव्यू के लिए उसका हौंसला बढ़ा रहे थे. मनिका ने आँखें बंद कर लीं, अगले सुबह के लिए उसके मन में उत्साह भी था और उसे इंटरव्यू के लिए थोड़ी चिंता भी हो रही थी, यही सोचते-सोचते उसकी आँख लग गई.

उन्हें सोए हुए करीब आधा घंटा हुआ था. जयसिंह ने धीरे से आँखें खोली, मनिका जयसिंह से दूसरी तरफ करवट लिए सो रही थी और उसकी पीठ उनकी तरफ थी. वे उठ बैठे, परन्तु मनिका पहली की भाँती ही सोती रही, उन्होंने हौले से मनिका के तन से कम्बल खींचा, मनिका ने फिर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, अब उन्होंने धीरे-धीरे कम्बल नीचे करते हुए मनिका को पूरी तरह उघाड़ दिया.

नाईट-लैंप की धीमी रौशनी में भी मनिका की पूरी तरह नंगी दूध सी सफ़ेद जांघें चमक रहीं थी, वह अपने पाँव थोड़ा मोड़ कर लेटी हुई थी जिससे उसकी शॉर्ट्स और थोड़ी ऊपर हो कर उसके नितम्बों के बीच की दरार में फँस गई थी. जयसिंह को तो जैसे अलीबाबा का खजाना मिल गया था. वे कुछ देर वैसे ही उसे निहारते रहे पर फिर उनसे रहा न गया. उन्होंने हाथ बढाया और मनिका की शॉर्ट्स हो खींच कर मनिका के गोल-मटोल कूल्हे लघभग पूरे ही बाहर निकल दिए और उसके एक कूल्हे पर हौले से चपत लगा दी. मनिका अभी भी बेखबर सोती रही, जयसिंह भी इस से ज्यादा हिमाकत न कर सके और अपनी बेटी की मोटी नंगी गांड को निहारते-निहारते कब उनकी आँख लग गई उन्हें पता भी न चला.


***

किसी के बोलने की आवाजें सुन मनिका की आँख खुली, सुबह हो चुकी थी, वह अभी भी उनींदी सी लेटी थी कि उसे कहीं दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई. अचानक मनिका को अपने दिल्ली के एक हॉटेल में अपने पिता के साथ होने की बात का एहसास हुआ, अगले ही पल उसे पिछली रात को पहने अपने कपड़े भी याद आ गए और साथ ही उन्हें सुबह जल्दी उठ कर बदलने का फैसला भी. मनिका की नींद एक पल में ही उड़ चुकी थी, उसने हाथ झटक कर रात को ओढ़े अपने कम्बल को टटोलने की कोशिश की, लेकिन कम्बल वहाँ नहीं था. अपने नंगेपन के एहसास ने मनिका को झकझोर के रख दिया, उसके बदन को जैसे लकवा मार गया था. धीरे-धीरे उसे अपने पहने कपड़ों की अस्त-व्यस्त स्थिति का अंदाजा होता चला जा रहा था, उसकी टी-शर्ट लघभग पूरी तरह से ऊपर हो रखी थी, गनीमत थी कि उसकी छाती अभी भी ढंकी हुई थी और उसके शॉर्ट्स उसके बम्स (नितम्ब) के बीच इकठ्ठे हो गए थे और उसके बम्स और थाईज़ (जांघें) पूरी तरह नंगे थे; उसे बेड पर बैठे उसके पिता जयसिंह की मौजूदगी का भी भान हुआ.

मनिका के हाथ झटकने के साथ ही जयसिंह अलर्ट हो गए थे. उसका मुहँ दूसरी तरफ था सो वे बेफिक्र उसका नंगा बदन ताड़ रहे थे, उन्होंने देखा की अचानक मनिका की नंगी टांगों और गांड पर दाने से उभर आए थे. उनका लंड जो पहले ही खड़ा था यह देखने के बाद बेकाबू हो गया, 'आह तो उठ ही गई रंडी.' उनका मन खिल उठा. असल में मनिका के जिस्म के रोंगटे खड़े हो गए थे और वे समझ गए की मनिका को अपने नंगेपन का एहसास हो चुका है. जयसिंह कब से उसके उठने का इंतज़ार कर रहे थे ताकि उसकी बदहवास प्रतिक्रिया देख सकें. उन्होंने देखा कि मनिका ने हौले से अपना हाथ अपनी नंगी गांड पर सरकाया था और वह अपनी शॉर्ट्स को नीचे कर अपने नंगे नितम्बों को ढंकने की कोशिश कर रही थी, इतना तो उनके लिए काफी था,

'उठ गई मनिका?' वे बोल पड़े.

मनिका को जैसे बिजली का झटका लगा था, वह एकदम से उठ बैठी और शर्म भरी नज़रों से एक पल अपने पिता की तरफ देखा.

जयसिंह बेड पर बैठे थे, उनके एक हाथ में चाय का कप था और दूसरे से उन्होंने उस दिन का अखबार खोल रखा था. उनकी नज़रें मिली, जयसिंह के चेहरे पर मुस्कुराहट थी. मनिका एक पल से ज्यादा उनसे नज़रें मिलाए न रख सकी.

'नींद खुल गई या अभी और सोना है?' जयसिंह ने प्यार भरे लहजे में मनिका से फिर पूछा.

'नहीं पापा...' मनिका ने धीमे से कहा.

'अच्छे से नींद आ तो गई थी न? कभी-कभी नई जगह पर नींद नहीं आया करती.' जयसिंह उसी लहजे में बात करते रहे जैसे उन्हें मनिका की बहुत फ़िक्र थी.

'नहीं पापा आ गई थी.' मनिका सकुचाते हुए बोली और एक नज़र उनकी ओर देखा. उसने पाया की उनका ध्यान तो अखबार में लगा था. 'आप अभी किस से बात कर रहे थे?' मनिका ने थोड़ी हिम्मत कर पूछा.

'अरे तुम उठी हुई थीं तब?' जयसिंह ने अनजान बनते हुए कहा, 'रूम-सर्विस से चाय ऑर्डर की थी वही लेकर आया था लड़का. तुम कुछ बोली ही नहीं तो मुझे लगा नींद में हो नहीं तो तुम्हारे लिए भी कुछ जूस-वूस ऑर्डर कर देते साथ के साथ, जस्ट अभी-अभी ही तो गया है वो.' उन्होंने आगे बताया.

मनिका का चेहरा शर्म से लाल टमाटर सा हो चुका था, 'ओह गॉड, ओह गॉड, ओह गॉड...रूम-सर्विस वाले ने भी मुझे इस तरह नंगी पड़े देख लिया...हे भगवान् उसने क्या सोचा होगा..? पर पापा ने रूम बुक कराते हुए बताया तो होगा कि हम बाप-बेटी हैं...लेकिन ये बात रूम-सर्विस वाले को क्या पता होगी...ओह शिट...और मेरा कम्बल भी...’ मनिका ने देखा कि कम्बल उसके पैरों के पास पड़ा था, 'नींद में मैंने कम्बल भी हटा दिया...शिट.' उसने एक बार फिर जयसिंह को नजरें चुरा कर देखा, उनका ध्यान अभी भी अखबार में ही लगा था. मनिका के विचलित मन में एक पल के लिए विचार आया, 'क्या पापा ने मेरा कम्बल...? ओह गॉड नहीं ये मैं क्या सोच रही हूँ पापा ऐसा थोड़े ही करेंगे. मैंने ऐसी गन्दी बात सोच भी कैसे ली...छि.' लेकिन उस विचार के पूरा होने से पहले ही मनिका ने अपने आप को धिक्कार शर्मिंदगी से सिर झुका लिया था.

अब मनिका अपनी इस एम्बैरेसिंग सिचुएशन से निकलने की राह ढूंढने लगी, 'जब तक पापा का ध्यान न्यूज़पेपर में लगा है. मैं जल्दी से उठ कर बाथरूम में घुस सकती हूँ...पर अगर पापा ने मेरी तरफ देख लिया तो..? ये मुयी शॉर्ट्स भी पूरी तरह से ऊपर हो गईं है.' मनिका कुछ देर इसी उधेड़बुन में बैठी रही पर उसे और कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. सो आखिर उसने धीरे से जयसिंह को संबोधित किया,

'पापा?'

'हूँ?' जयसिंह ने भी डिसइंट्रेस्टेड सी प्रतिक्रिया दी और मनिका की आँखों में आँखें डाल उसके आगे बोलने का इंतज़ार करने लगे.

'वो मैं...मैं कह रही थी कि मैं एक बार बाथ ले लेती हूँ फिर कुछ ऑर्डर कर देंगे.' मनिका अटकते हुए बोली.

'ओके. जैसी आपकी इच्छा.' जयसिंह ने शरारती मुस्कुराहट के साथ कहा.

'हेहे पापा.' मनिका भी थोड़ा झेंप के हँस दी. जयसिंह फिर से अखबार पढ़ने में तल्लीन हो गए थे.

मनिका धीरे से बिस्तर से उतर कर अपने सामान की ओर बढ़ी. उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था, 'क्या पापा ने पीछे से मेरी तरफ देखा होगा?' यह सोच उसके बदन में जैसे बुखार सा आ गया और वह थोड़ा लड़खड़ा उठी. उसने अपना सूटकेस खोला और एक जीन्स और टॉप-निकाल लिया, उसने एक जोड़ी ब्रा-पैंटी भी निकाल कर उनके बीच यह सोच रख ली कि 'क्या पता रात वाले अंडरगारमेंट्स सूखे होंगे कि नहीं?' जब वह अपनी सभी चीज़ें ले चुकी थी तो उसने कनखियों से एक बार जयसिंह की तरफ नज़र दौडाई, वे अभी भी अखबार ही पढ़ रहे थे. मनिका तेज़ क़दमों से चलती हुई बाथरूम में जा घुसी.
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मनिका के बाथरूम में घुसने तक जयसिंह अपनी पूरी इच्छाशक्ति से अखबार में नज़र गड़ाए बैठे रहे थे. उसके जाते ही उन्होंने अखबार एक ओर फेंका और अपने कसमसाते लंड को, जो की आजकल हर वक्त खड़ा ही रहता था, दबा कर एक बार फिर काबू में लाने की कोशिश करने लगे, 'हे भगवान् जाने कब शांति मिलेगी मेरे इस बेचारे औजार को...’जयसिंह ने तड़प कर आह भरी. 'आज उस रांड का इंटरव्यू भी है और अभी साली नहाने गई है पता नहीं आज क्या रूप धर के बाहर निकलेगी...ओह इंटरव्यू से याद आया साली कुतिया के कॉलेज फ़ोन कर अपॉइंटमेंट भी तो लेनी है.' सो जयसिंह ने पास पड़े अपने मोबाइल से मनिका के कॉलेज का नंबर डायल किया.

'हैल्लो?' जयसिंह ने फोन उठाने की आवाज़ सुन कहा 'एमिटी यूनिवर्सिटी?'

'येस सर, गुड मॉर्निंग.' सामने से आवाज़ आई.

'येस, सो आई वास् कॉलिंग टू मेक एन अपॉइंटमेंट फॉर माय डॉटर फॉर एडमिशन इन द एम्.बी.ए. कोर्स.' जयसिंह ने कहा.

'ओके सर, मे आई क्नॉ हर नेम प्लीज़?'

'येस...अह...मनिका सिंह.'

'थैंक्यू सर. सो व्हेन वुड यॉर डॉटर बी एबल टू कम फॉर द इंटरव्यू?'

जयसिंह कुछ समझे नहीं, इंटरव्यू तो आज ही था न?, 'व्हॉट डू यू मीन?' उन्होंने पूछा.

'वेल सर, इंटरव्यूज नेक्स्ट 15 डेज तक चलेंगें सो योर डॉटर कैन गेट एन अपॉइंटमेंट फॉर एनी ऑफ़ द डेज, जैसा उनको कॉन्वेनिएन्ट लगे.'

'ओह.' जयसिंह का मन यह सुन नाच उठा था. उन्होंने मन ही मन अपनी किस्मत को धन्यवाद दिया और बोले, 'तो आप ऐसा करो हमें लास्ट डे की ही अपॉइंटमेंट दे दो. मेरी डॉटर कह रही है कि उसे अभी थोड़ा और प्रिपरेशन करना है...हेहे.'

'स्युर सर कोई प्रॉब्लम नहीं है.'

उधर बाथरूम में मनिका के मन में अलग ही उथल-पुथल मची हुई थी, 'ये कैसा अनर्थ हो गया. सोचा था सवेरे जल्दी उठ जाऊँगी पर आँख ही नहीं खुली, ऊपर से पापा और उठे हुए थे...वे तो वैसे भी रोज जल्दी ही उठ जाते हैं...शिट मैं ये जानते हुए भी पता नहीं कैसे भूल गई?..उन्होंने मुझे सोते हुए देखा तो होगा ही, हाय राम...’यह सोचते हुए मनिका की कंपकंपी छूट गई. मनिका ने आज शावर ऑन नहीं किया था और बाथटब में बैठ कर नहा रही थी, 'और तो और वह रूम-सर्विस वाला वेटर भी मुझे इस तरह आधी से ज्यादा नंगी देख गया...हाय...और पापा मेरे पास बैठे थे...क्या सोचा होगा उसने हमारे बारे में..?’मनिका इस से आगे नहीं सोच पाई और अपनी आँखें भींच ली. उसे बहुत बुरा फील हो रहा था. अब वह धीरे-धीरे अपने बदन पर साबुन लगा नहाने लगी. परंतु कुछ क्षणों में ही उसके विचारों की धार एक बार फिर से बहने लगी, 'पर पापा ने मुझे इस तरह देख कर भी रिएक्ट नहीं किया...वो तो बिलकुल नॉर्मली बिहेव कर रहे हैं...पर बेचारे कहें भी तो क्या, मैं उनकी बेटी हूँ, मुझे ऐसे देख कर शायद उन्हें भी शर्म आ रही हो...हाँ तभी तो वे मेरी तरफ न देख अखबार में नज़र गड़ाए बैठे थे...और जब मैंने उनसे बात करी थी तो उन्होंने सिर्फ मेरे चेहरे पर ही अपनी आँखें फोकस कर रखीं थी...हाय...ही इज़ सो नाइस.' मनिका ने मन ही मन जयसिंह की सराहना करते हुए सोचा. 'ये तो पापा हैं जो मुझे कुछ नहीं कहते...अगर मम्मी को पता चल जाए इस बात का तो...तूफ़ान खड़ा कर दें वो तो...थैंक गॉड इट्स ओनली मी एंड पापा...अब से मैं जब तक पापा के साथ हूँ अपने रहने-पहनने का पूरा ख्याल रखूँगी.' मनिका ने सोचा और उठ खड़ी हुई, वह नहा चुकी थी.

जब मनिका नहा कर निकली तो जयसिंह को अभी भी बेड पर ही बैठे पाया, इस बार मनिका पूरे कपड़ों में थी और उसने बाथरूम में से अपने अंतःवस्त्र भी ले लिए थे. उसे देख जयसिंह मुस्कुराए और बेड से उठते हुए बोले,

'नहा ली मनिका?'

'जी पापा.' मनिका ने हौले से मुस्का कर कहा. पूरे कपड़े पहने होने की वजह से उसका आत्मविश्वास लौटने लगा था.

'तो फिर अब मुझे यह बताओ कि तुम्हारे इंटरव्यू के कॉल लैटर में क्या लिखा हुआ था?' जयसिंह ने पूछा.

मनिका उनके सवाल से थोड़ा कंफ्यूज हो गई,

'क्यूँ पापा? उसमें तो बस यही लिखा था कि इंटरव्यूज फॉर एम.बी.ए. कोर्स बिगिन्स फ्रॉम...’ मनिका बोल ही रही थी कि जयसिंह ने उसकी बात बीच में ही काट दी,

'मतलब उसमें लिखा था -बिगिन्स फ्रॉम- ना की -ऑन- दिस डेट? क्यूंकि अभी मैंने तुम्हारे कॉलेज से अपॉइंटमेंट के लिए बात करी थी और उन्होंने कहा है कि इंटरव्यू पन्द्रह दिन चलेंगे और गेस व्हाट? आपका इंटरव्यू लास्ट डे को है.' जयसिंह ने मनिका से नज़र मिलाई.

'ओह शिट.' मनिका ने साँस भरी.

'हाँ वही.' जयसिंह मुस्कुरा कर बोले.

'पापा! आपको मजाक सूझ रहा है, अब मतलब हमें फिफ्टीन डेज के बाद फिर से आना पड़ेगा.' मनिका सीरियस होते हुए बोली 'हमने फ़ालतू इतना खर्चा भी कर दिया है...रुकिए मैं कॉलेज फ़ोन करके पूछती हूँ कि क्या वो मेरा इंटरव्यू पहले अरेंज कर सकते हैं.'

'मैं वो भी पूछ चुका हूँ और उन्होंने कहा है कि इट्स नॉट पॉसिबल.' जयसिंह ने कहा.

'ओह.' मनिका का मूड पूरा ऑफ़ हो गया था 'तो अब हमें वापस ही जाना पड़ेगा मतलब.'

'हाँ वो भी कर सकते हैं.' जयसिंह ने उसे स्माइल दी 'या फिर...' और इतना कह कर बात अधूरी छोड़ दी.

'हैं? क्या बोल रहे हो पापा आप..? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा.' जयसिंह की गोल-गोल बातों से मनिका की कंफ्यूजन बढ़ गई थी.

'अरे भई या फिर हम यहीं तुम्हारा इंटरव्यू हो जाने तक वेट कर सकते हैं.' जयसिंह ने कहा.



***

मनिका जयसिंह का सुझाव सुन एक बार तो आश्चर्यचकित रह गई थी उसे विश्वास नहीं हुआ की उसके पापा उसे अगले पंद्रह दिन के लिए वहीँ, मेरियट में, रुके रहने को कह रहे थे, जहाँ के रूम का रेंट सुन कर ही पिछली रात उसके होश उड़ गए थे. जब उसने अपनी दुविधा जयसिंह को बताई तो एक बार फिर जयसिंह बोले,

'अरे भई कितनी बार समझाना पड़ेगा कि पैसे की चिंता न किया करो तुम. हाथ का मैल है पैसा...' जयसिंह डायलाग मार हँस दिए थे.

'ओहो पापा...फिर भी...' मनिका ने असमंजस से कहा.

लेकिन अंत में जीत जयसिंह की ही हुई, आखिर मन में तो मनिका भी रुकना चाहती ही थी और जब जयसिंह ने उस से कहा कि इतने दिन वे दिल्ली में घूम-फिर लेंगे तो मनिका की रही-सही आनाकानी भी जाती रही थी.

'लेकिन पापा! घर पे तो हम दो दिन का ही बोल कर आए हैं ना?' मनिका ने फिर थोड़ा आशंकित हो कर पूछा 'और आपका ऑफिस भी तो है?'

'ओह हाँ! मैं तो भूल ही गया था. तुम अपनी मम्मी से ना कह देना कहीं कि हम यहाँ घूमने के लिए रुक रहे हैं...मरवा दोगी मुझे, वैसे ही वो मुझ पर तुम्हें बिगाड़ने का इलज़ाम लगाती रहती है.' जयसिंह ने मनिका को एक शरारत भरी स्माइल दी.

'ओह पापा हाँ ये तो मैंने सोचा ही नहीं था.' मनिका ने माथे पर हाथ रख कहा. फिर उसने भी शरारती लहजे में जयसिंह को छेड़ते हुए कहा, 'इसका मतलब डरते हो मम्मी से आप, है ना? हाहाहा...'

'हाहा.' जयसिंह भी हँस दिए 'लेकिन ये मत भूलो की यह सब मैं तुम्हारे लिए कर रहा हूँ.' वे बोले.

'ओह पापा आप कितने अच्छे हो.' मनिका ने मुस्कुरा कर अपनी भावनाएं व्यक्त कीं 'पर आपका ऑफिस?'

'अरे ऑफिस का मालिक तो मैं ही हूँ. फ़ोन कर दूंगा माथुर को, वो संभाल लेगा सब.'

'पापा?' मनिका उनके करीब आते हुए बोली.

'अब क्या?' जयसिंह ने बनते हुए पूछा.

'पापा आई लव यू सो मच. यू आर द बेस्ट.' मनिका ने स्नेह भरी नज़रों से उन्हें देख कर कहा.

जयसिंह पिछली रात की तरह ही एक बार फिर मनिका के गाल पर हाथ रख सहलाने लगे और उसे अपने थोड़ा और करीब ले आए. मनिका उन्हें देख कर मंद-मंद मुस्का रही थी, जयसिंह ने आँखों में चमक ला कर कहा,

'वो तो मैं हूँ ही...हाहाहा.' और ठहाका लगा हँस दिए.

'पापा! यू आर सो नॉटी...’मनिका भी खिलखिला कर हँस दी थी. जयसिंह ने अब उसे अपने बाजू में लेकर अपने से सटा लिया और बोले,

'तो फिर हम कहाँ घूमने चलें बताओ?'

जयसिंह के पास अब पंद्रह दिन की मोहलत थी. अभी तक तो उनकी किस्मत ने उनका काफी साथ दिया था, जाने-अनजाने मनिका ने कुछ ऐसी गलतियाँ कर दीं थी जिनका जयसिंह ने पूरा फायदा उठाया था. मनिका के पिछली रात हुए वार्डरॉब मॉलफंक्शन को देख उन्होंने जो संयम से काम लिया था उससे उन्होंने उसे यह जाता दिया था कि वे एक जेंटलमैन हैं जो उसका हरदम ख्याल रखता है, वे न सिर्फ उसका भरोसा जीतने में कामयाब रहे थे बल्कि उसे यह भी जाता दिया था कि वे बहुत खुले विचारों के भी हैं. मनिका को अपनी माँ से उनके दिल्ली रुकने की असली वजह न बताने को कह उन्होंने अपने प्लान की एक और सोची-समझी साजिश को अंजाम दे दिया था, लेकिन वे ये भी जानते थे कि अभी तक जो हुआ उसमें उनकी चालाकी से ज्यादा मनिका की नासमझी का ज्यादा हाथ था और जयसिंह उन लोगों में से नहीं थे जो थोड़ी सी सफलता पाते ही हवा में उड़ने लगते हैं और इसी वजह से जल्द ही ज़मीन पर भी आ गिरते हैं. उनकी अग्निपरीक्षा की तो बस अभी शुरूआत हुई थी.


***

जयसिंह ने हॉटेल के रिसेप्शन पर फ़ोन करके एक कैब बुक करवा ली और मनिका से बोले कि,

'मैं भी नहा के रेडी हो जाता हूँ तब तक तुम रूम-सर्विस से कुछ ब्रेकफास्ट ऑर्डर कर दो.' 'जी पापा.' मनिका ख़ुशी-ख़ुशी बोली.

मनिका ने फ़ोन के पास रखा मेन्यु उठाया और ब्रेकफास्ट के लिए लिखे आइटम्स देखने लगी. कुछ देर देखने के बाद उसने अपने लिए एक चोको-चिप्स शेक और जयसिंह से पूछ कर उनके लिए फिर से चाय व साथ में ग्रिल्ड-सैंडविच का ऑर्डर किया, जयसिंह तब तक नहाने चले गए थे. मनिका टी.वी ऑन कर बैठ गई और रूम-सर्विस के आने का इंतज़ार करने लगी.

मनिका ने टी.वी चला तो लिया था लेकिन उसका ध्यान उसमें नहीं था और वह बस बैठी हुई चैनल बदल रही थी, 'ओह कितना एक्साइटिंग है ये सब, हम यहाँ फिफ्टीन डेज और रुकने वाले हैं, फिफ्टीन डेज! और पापा ने घर पर क्या बहाना बनाया था...कि मेरा इंटरव्यू थ्री राउंड्स में होगा सो उसमें टाइम लग जाएगा...कैसे झूठे हैं ना पापा भी...और मम्मी बेफकूफ मान भी गई, हाहाहा...लेकिन बेचारे पापा भी क्या करें मम्मी की बड़-बड़ से बचने के लिए झूठ बोल देते हैं बस. उन्होंने कहा कि वे मुझे यहाँ घुमाने के लिए रुक रहें है...ओह पापा...’सोचते-सोचते मनिका के चेहरे पर मुस्कान तैर गई. तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई, उनका ब्रेकफास्ट आ गया था.

मनिका ने उठ कर दरवाज़ा खोला, सामने रूम-सर्विस वाला वेटर एक फ़ूड-ट्राली लिए खड़ा था,

'योर ऑर्डर मैम.' उसने अदब से मुस्कुरा कर कहा.

मनिका एक तरफ हट गई और वह ट्राली को धकेलता हुआ अन्दर आ गया. मनिका ने उसके पीछे से आते हुए कहा,

'लीव इट हेयर ओनली, वी विल मैनेज.'

'येस मैम.' लड़के ने इधर-उधर नज़र घुमा कर कहा. वह मनिका को देख मुस्कुरा रहा था, मनिका ने भी उसे एक हल्की सी स्माइल दे दी. लेकिन वह फिर भी वहीँ खड़ा रहा.

मनिका को समझ आ गया कि वो टिप लेने के लिए खड़ा है. उसे बेड-साइड पर रखा जयसिंह का पर्स नज़र आया, वो गई और पर्स से पाँच सौ रूपए निकाल कर वेटर की तरफ बढ़ा दिए. लेकिन वेटर ने नोट न लेते हुए कहा,

'ओह नो मैम थैंक-यू वैरी मच. आई ऑलरेडी एंजोएड माय टिप दिस मॉर्निंग, इट वास् अ प्लेज़र.' और एक कुटिल मुस्कान बिखेर दी.

मनिका उसका आशय समझते ही शर्म से लाल हो गई, ये वही वेटर था जो सुबह जयसिंह को चाय देने आया था जब वह उनकी बगल में अधनंगी पड़ी हुई थी. वेटर के जाने की आहट होने के कुछ देर बाद तक भी मनिका की नज़र उठाने की हिम्मत नहीं हुई थी. कुछ पल बाद वह जा कर बेड पर बैठ गई. 'कैसा कमीना था वो वेटर...हाय, साला कैसी गन्दी हँसी हँस रहा था, कुत्ता.' मनिका ने उस वेटर की हरकत पर गुस्सा करते हुए सोचा 'ओह गॉड कितना एम्बैरेसिंग है ये...ये आदमी सब गन्दी सोच के ही होते हैं...नहीं-नहीं पर मेरे पापा वैसे नहीं है. कितने कूल हैं वो...उन्होंने एक बार भी नज़र उठा कर नहीं देखा मेरी तरफ और एक ये वेटर था जो...थैंक गॉड मुझे इतने अच्छे पापा मिले हैं.' उसका यह सोचना हुआ कि जयसिंह भी नहा कर निकल आए.

'हेय पापा!' मनिका उन्हें देख प्यार से बोली, वह उन्हीं के बारे में सोच रही थी इसिलिए उन्हें देख उसके मुहँ से उसके मन की बात निकल आई थी.

'हैल्लो मनिका.' जयसिंह ने भी उसी अंदाज़ में कहा 'आ गया खाना?' उनकी नज़र फ़ूड-ट्राली पर पड़ी.

'हाँ पापा.' मनिका उस वेटर की याद को मन से झटककर बोली.

'तुमने कर लिया ब्रेकफास्ट?' उन्होंने पूछा.

'नो पापा आपके बिना कैसे कर सकती हूँ.' मनिका ने मुहँ बनाते हुए कहा.

'जैसे हर काम तुम मेरे साथ ही करती हो...' जयसिंह के मुहँ से अचानक फूट निकला था, अपने बोलने के साथ ही उन्हें अपनी गलती का एहसास हो गया था और वे रुक गए.

'पापा! ऐसे क्यों बोल रहे हो आप?' मनिका ने हैरत से पूछा. जयसिंह अब तक संभल चुके थे और उन्होंने माफ़ी मांगने में ही अपनी भलाई समझी.

'ओह मनिका सॉरी...मेरा मतलब तुम्हें हर्ट करने का नहीं था. मजाक कर रहा था भई.'

'क्या पापा आप भी हर वक़्त मेरी लेग-पुल करते रहते हो.' मनिका ने मुहँ बनाया 'एंड डोंट से सॉरी ओके.' उसने अब मुस्का कर कहा. जयसिंह की किस्मत ने फिर उन्हें एक मुश्किल घड़ी से बचा लिया था.

जयसिंह और मनिका ने साथ में नाश्ता किया और फिर नीचे हॉटेल की लॉबी में आ गए. जयसिंह ने रिसेप्शन पर जा कर अपनी बुक की हुई कैब मंगवाई और फिर मनिका को साथ लेकर हॉटेल की ड्राइव-वे में जा पहुँचे. उनके पहुँचने के साथ ही उनकी कैब भी आ गई, ड्राईवर ने उतर कर उनके लिए पीछे का दरवाज़ा खोला और झुक कर उन्हें सलाम किया. जयसिंह ने मनिका की तरफ मुस्कुरा कर देखा और उसे कार में बैठने का इशारा किया. मनिका की आँखों में ख़ुशी और उत्साह चमक रहा था.

'पापा...ईईई...' मनिका जयसिंह के साथ पीछे की सीट पर बैठी थी, वह उनके पास खिसकते हुए फुसफुसाई 'बी.एम.डब्ल्यू!' जयसिंह ने कैब के लिए बी.एम.डब्ल्यू बुक कराइ थी.

वैसे तो जयसिंह के पास भी बाड़मेर में स्कोडा थी लेकिन मनिका के उत्साह का कोई ठिकाना नहीं था.
'हाहाहा...' जयसिंह हलके से हँस दिए.

'पापा मेरी फ्रेंड्स तो जल-भुन मरेंगी जब मैं उन्हें इस ट्रिप के बारे में बताउंगी.' मनिका खुश होते हुए बोली.
'अभी तो बहुत कुछ बाकी है मनिका...' जयसिंह ने रहस्यमई अंदाज़ में कहा, इस बार वे आश्वस्त थे की मनिका को उनकी बात नहीं खटकेगी.

'हीहीही...’ मनिका उनके कंधे पर सिर रख खिलखिलाई.

जयसिंह ने कैब के ड्राईवर से उन्हें साईट-सीइंग के लिए लेकर चलने को कहा था. ड्राईवर ने उस दिन उन्हें दिल्ली की कुछ मशहूर इमारतों की सैर कराई, बीच में वे लोग लंच के लिए एक पॉश-रेस्टोरेंट में भी गए. मनिका ने अपने मोबाइल से ढेर सारी फोटो क्लिक करीं थीं;जिनमे वह और जयसिंह अलग-अलग जगहों पर पोज़ कर रहे थे. वे लोग रात ढलते-ढलते वापिस मेरियट पहुँचे, जयसिंह ऊपर रूम में जाने से पहले रिसेप्शन पर अगले दो हफ्ते के लिए अपने लिए कैब की बुकिंग करने को बोलकर गए थे.

जब मनिका और जयसिंह पूरे दिन के सैर-सपाटे के बाद थके-हारे अपने रूम में पहुँचे तो उन्होंने रूम में ही डिनर ऑर्डर किया और एक-एक कर नहाने घुस गए. जब जयसिंह नहाने घुसे हुए थे तभी एक बार फिर से रूम-सर्विस आ गई थी, मनिका ने धड़कते दिल से दरवाज़ा खोला था लेकिन इस बार सुबह वाला वेटर ऑर्डर लेकर नहीं आया था. मनिका ने एक राहत की साँस ली थी और उसे टिप देकर चलता कर दिया था.

उस रात जब मनिका नहा कर निकली तो जयसिंह को कुछ भी देखने को नहीं मिला, आज उसने पायजामा-टी-शर्ट पहन रखे थे जिनसे उसका बदन अच्छे से ढंका हुआ था. डिनर कर वे दोनों बिस्तर में घुस गए और कुछ देर दिल्ली में साथ बिताए अपने पहले दिन की बातें करते हुए सो गए.

जयसिंह और मनिका के अगले तीन दिन इसी तरह घूमने-फिरने में निकल गए. इस दौरान जयसिंह ने पूरे धैर्य के साथ मनिका के मन में सेंध लगाना जारी रखा, वे उसे अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से बहलाते-हँसाते रहते थे और उसकी तारीफ करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. एक-दो बार उन्होंने उसे अपनी माँ से उनके इस घूमने-फिरने का जिक्र न करने को भी कह दिया था जिस पर मनिका ने हर बार उन्हें यही कहा था कि क्या उन्हें उस पर भरोसा नहीं है. दूसरा दिन ख़त्म होते-होते जयसिंह को अपनी मेहनत का पहला फल भी मिल गया; जब वे शाम को क्नॉट-प्लेस में घूम रहे थे तो उन्होंने वहाँ आए लड़के-लड़कियों के जोड़ों को एक दूसरे की बाहँ में बाहँ डाल घूमते देखा था; उस रात वे हॉटेल पहुँचे तो लॉबी में थोड़ी भीड़ थी, कोई बिज़नस-डेलीगेशन आया हुआ था, सो मनिका जयसिंह के थोड़ा करीब होकर चल रही थी. जब वे एलीवेटर के पास पहुँचे तो वहाँ पहले से ही कुछ लोग खड़े थे, जयसिंह और मनिका खड़े हो कर अपनी बारी का वेट करने लगे, तभी जयसिंह को अपनी बाहँ पर किसी के हाथ का एहसास हुआ, उन्होंने अपना सिर घुमा कर देखा तो पाया कि मनिका ने अपनी बाहँ उनकी बाहँ में डाल उनका सहारा ले रखा था (जयसिंह ने सहानुभूति दिखाते हुए उस से पूछा था कि क्या वह बहुत ज्यादा थक गई है तो मनिका ने धीरे से न में सिर हिलाया था). अगले दिन जब वे घूमने निकले तो मनिका ने कैब से उतरते ही उनकी बाहँ थाम ली थी. उसके इस छोटे से जेस्चर से जयसिंह के मन में लडडू फूट पड़े थे.
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मनिका और जयसिंह अपने दिल्ली भ्रमण के पाँचवें दिन की शाम अपने हॉटेल लौटे थे. आज वे दिल्ली का पुराना किला देख कर आए थे. पिछले दो दिनों से हॉटेल की लॉबी से होकर उनके रूम तक जाते हुए भी मनिका उनके बाजू में उनकी बाहँ थामे चलती थी. पर आज जयसिंह कुछ ज्यादा ही उत्साहित थे. हुआ यूँ था कि, रोज़ जब वे घूमने निकलते थे तो आस-पास आए दूसरे पर्यटकों या लोगों को अपना मोबाइल दे कर एक-दूसरे के साथ अपना फोटो खिंचवा लेते थे, आज पुराने किले के सुनसान गलियारों में उन्हें ज्यादा लोग नहीं मिले थे और एक जगह जब मनिका ने फोटो लेने के लिए मोबाइल निकाला तो उनके आस-पास कोई भी न था. जयसिंह ने उसका फोटो क्लिक कर दिया था और फिर उसने उनसे भी पोज़ करने को कह उनकी फोटो ले ली थी.

'क्या पापा...यहाँ तो कोई है ही नहीं जो अपना साथ में फोटो ले दे. कितनी ब्यूटीफुल जगह है ये...और डरावनी भी.' मनिका ने जयसिंह के पास बैठते हुए कहा था. जयसिंह एक पुराने खंडहर की दीवार पर बैठे थे.

'अरे तो तुम फ्रंट-कैमरा ऑन कर लो न.' जयसिंह ने सुझाया था.

'हाँ पर पापा उसकी फोटो इतनी साफ़ नहीं आती.' मनिका ने खेद जताया.

'देखो फोटो न होने से तो फोटो होनी बेहतर ही होगी चाहे साफ हो या नहीं. अब यहाँ तो दूर-दूर तक कोई नज़र भी नहीं आ रहा.' जयसिंह मुस्कुरा कर बोले थे, मनिका ने उनके पास बैठ उनकी बाहँ जो थाम ली थी.

'हाँ पापा...आप भी कभी-कभी फुल-ऑन ज्ञानी बाबा बन जाते हो बाय-गॉड.' मनिका ने हँस कर कहा था और अपने मोबाइल का फ्रंट-कैमरा ऑन कर जयसिंह के साथ फोटो लेने लगी.

जब कुछ देर वह कशमकश में लगी रही तो जयसिंह ने मनिका से पूछा था कि अब वह क्या करने की कोशिश कर रही है? तो उसने बताया कि कैमरे के फ्रेम में वे दोनों अच्छे से नहीं आ रहे थे. जयसिंह और मनिका कुछ देर तक अपनी पोजीशन अडजस्ट कर फोटो लेने का प्रयास करते रहे,, पर जब बात नहीं बनी थी तो जयसिंह ने थोड़ी सतर्कता से मनिका को सुझाव दिया,

'ऐसे तो खिंच गई हम से तुम्हारी फोटो...व्हाए डोंट यू कम एंड सिट इन माय लैप.' उनके दिल की धड़कन मनिका की प्रतिक्रिया के बारे में सोच बढ़ गई थी 'इस तरह कैमरा में हम दोनों फिट हो जाएंगे.' मनिका के हाथों-हाथ जवाब नहीं देने पर उन्होंने आगे कहा था.

'ओह ओके पापा.' मनिका ने एक पल रुक कर कहा था. मनिका जयसिंह के साथ से वैसे तो बहुत खुश थी लेकिन दिल्ली आने से पहले कभी उसने उनके साथ इतनी आत्मीयता भरा वक्त नहीं बिताया था सो वह बस एक छोटे से पल के लिए ठिठक गई थी.

जयसिंह मनिका के जवान बदन को अपनी गोद में पा कर उत्तेजना और उत्साह से भर उठे थे, उन्होंने एक हाथ अपनी जांघ पर बैठी मनिका के कंधे पर रख रखा था, उसके कसे हुए बदन को अपने इतने करीब पा उनके लंड ने भी सिर उठाना शुरू कर दिया था. उधर मनिका को उनके कपट का अंदाजा तक नहीं था.

फोटो बुरी नहीं आई थी, आउटडोर एनवायरमेंट होने की वजह से फ्रंट-कैमरे से भी फोटो साफ़ खिंच गई थी. उसके बाद तो जैसे जयसिंह की लॉटरी निकल गई, उन्होंने वहाँ काफी सारी सेल्फी-पिक्स खींची. बाद में जब वे एक थीम-रेस्टोरेंट में लंच करने गए थे तो वहाँ आस-आस लोगों के होने के बावजूद मनिका ने अपने-आप उठकर उनकी गोद में बैठ एक फोटो खींची थी.

सो उस दिन शाम को जयसिंह बहुत अच्छे मूड में हॉटेल लौटे थे, पिछले पाँच दिनों में वे मनिका का काफी भरोसा और आत्मीयता प्राप्त करने में कामयाब रहे थे. ऊपर से उनके द्वारा खुले हाथ किए जा रहे खर्च ने भी मनिका की उनकी कही अटपटी बातों, जो वह शायद अपने अंतर्मन में कहीं महसूस करती थी, को नज़रंदाज़ कर देने की प्रवृति को बढ़ावा दिया था.

उस पहली रात के बाद जयसिंह ने रात में सोती हुई मनिका को छूने की कोशिश अभी तक दोबारा नहीं करी थी. अब पूरे-पूरे कपड़े पहनने के बाद मनिका भी कम्बल लेकर नहीं सोती थी. पर उस रात जब वे सोने गए तो पूरे दिन की उत्तेजना से भरे जयसिंह अपने आप को रोक न सके. जब उन्हें लगा कि मनिका सो चुकी है तो उन्होंने धीरे से करवट ले अपना चेहरा उसकी तरफ किया, मनिका की करवट भी उनकी ओर थी. सोती हुई मनिका को निहारते हुए जयसिंह के लौड़े में तनाव बढ़ना शुरू हो गया था. मनिका का खूबसूरत चेहरा उनकी बेचैनी बढ़ाने लगा, धीमी रौशनी में मनिका के दमकते गोरे-चिट्टे चेहरे पर उसके मोटे-मोटे गुलाबी होंठ रस से भरे प्रतीत हो रहे थे, 'मनिका?', जयसिंह ने धीरे से कहा पर मनिका गहरी नींद में थी. उन्होंने हौले से अपना हाथ ले जा कर उन दोनों के बीच रखे उसके हाथ पर रखा, कुछ पल जब फिर भी मनिका ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो जयसिंह ने उसके हाथ को हल्का-हल्का सहलाना शुरू कर उसकी निंद्रा की गहराई का अंदाज़ा लेने की कोशिश की, मनिका सोती रही.

अब जयसिंह थोड़े आश्वस्त हो गए थे, वे सरक कर मनिका के थोड़ा करीब आ गए और अपना हाथ अपनी सोती हुई बेटी की पतली कमर पर रख लिया. वे अपने हर एक्शन के बाद दो-चार पल रुक जाते थे ताकि मनिका के उठ जाने की स्थिति में जल्दी से पीछे हट सकें. उन्होंने धीरे-धीरे उसकी टी-शर्ट का कपड़ा ऊपर करना शुरू कर दिया. मनिका की यह वाली टी-शर्ट पूरी लम्बाई की थी सो जयसिंह को उसे ऊपर कर उसकी गोरी कमर को उघाड़ने में कुछ मिनट लग गए थे पर अब मनिका की गोरी कमर और पेट एक तरफ से नज़र आने लगे थे, दूसरी तरफ से टी-शर्ट अभी भी मनिका के नीचे दबी हुई थी. लेकिन जयसिंह को उनकी सौगात मिल चुकी थी, 'साली की हर चीज़ क़यामत है.' मनिका ने लो-वेस्ट पायजामा पहना हुआ था. जयसिंह ने देखा कि मनिका ने पायजामा काफी नीचे बाँध रखा था, ठीक टांगों और कमर के जॉइंट पर सो उसके पायजामे का एलास्टिक उसके जॉइंट की बोन पर था. उसके करवट लिए होने से जॉइंट-बोन पर स्ट्रेच हुए एलास्टिक व उसके पेट के निचले हिस्से के बीच कुछ जगह बनी हुई थी और मनिका की टी-शर्ट आगे से हट जाने से उन्हें उसकी भींची हुई टांगों के बीच योनि की 'V' आकृति एक बार फिर नज़र आ रही थी. जयसिंह का बदन गरम होने लगा. कुछ देर रुके रहने के बाद उन्होंने हिम्मत की और गर्दन उठा कर अपना चेहरा मनिका के पेट के पास ले गए. मनिका के जिस्म से भीनी-भीनी गंध आ रही थी. लघभग मदहोश सी हालत में उन्होंने अपनी दो अंगुलियाँ मनिका के पायजामे के एलास्टिक और उसके जिस्म बीच के गैप में डाली और आगे की तरफ खींचा.

जयसिंह ने जिस हाथ से मनिका के पायजामे का एलास्टिक पकड़ रखा था वह उत्तेजनावश कांप रहा था, नाईट-लैंप की धीमी रौशनी में वे अपनी बेटी के पायजामे में झाँक रहे थे. उनका सामना एक बार फिर मनिका की पहनी हुई एक छोटी सी पैंटी से हुआ, 'उह्ह..’उन्होंने दम भरा, उन्हें एहसास नहीं हुआ था कि इतनी देर से वे अपनी साँस थामे हुए थे. 'रांड की कच्छियों ने ही जब ये हाल कर दिया है तो साली की चिकनी चूत तो लगता है जिंदा नहीं छोड़ेगी.' जयसिंह ने मन में सोचा, उन्होंने पहली बार मनिका की योनि का विचार किया था 'ओह..' फिर अचानक उन्होंने एक और तथ्य पर गौर किया, मनिका के बदन की एक बात जो उन्हें उकसाती थी पर जिस पर उनका ध्यान अभी तक नहीं गया था वह थी उसके जिस्म पर बालों का न होना. मनिका के पायजामे के भीतर भी उन्हें उसकी रेशम सी चिकनी स्किन पर बाल दिखाई नहीं दे रहे थे. 'देखो साली को क्या वैक्सिंग कर रखी है हरामन ने...पता नहीं मेरा ध्यान पहले किधर था. पहली रात को इसकी नंगी गांड देख कर ही समझ जाना चाहिए था यह तो मुझे...क्या अदा है यार तेरी मनिका...’वे अपने विचारों में इसी तरह डूबे हुए थे की मनिका थोड़ी सी हिली, जयसिंह ने झट से अपना हाथ उसके पायजामे से हटा लिया और सीधे लेट कर आँखें मींच ली, घबराहट से उनका दिल तेजी से धड़क रहा था.

मनिका ने करवट बदली और दूसरी ओर घूम कर सो गई. जयसिंह चुपचाप लेटे रहे. कुछ वक्त बीत जाने पर जयसिंह एक बार फिर थोड़ा हिम्मत करके मामूली से टेढ़े हुए और हल्की सी आँख खोल मनिका की तरफ देखा. मनिका का मुहँ अब दूसरी तरफ था और पीठ उनकी ओर, 'हे भगवान् कहीं जाग तो नहीं गई ये..’जयसिंह ने आशंकित होकर सोचा. उन्होंने थोड़ा और इंतजार किया पर मनिका की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. जयसिंह ने डरते-डरते अपना हाथ ले जा कर उसकी पीठ से छुआया, वे एक बार फिर उत्तेजित होने लगे थे. जब मनिका ने उनके स्पर्श पर कोई हरकत नहीं की तो वे थोड़ा और बोल्ड हो गए और अपना हाथ मनिका की गोल-मटोल गांड पर ले जा रखा. जयसिंह के आनंद की सीमाएं टूट चुकी थीं. पहली रात तो उन्होंने बस मनिका की गांड को थोड़ा सा छुआ भर था लेकिन आज उन्हें मनिका के पायजामे के कपड़े में से उसकी माँसल गांड की कसावट अपने हाथ पर महसूस हो रही थी. उनकी हिम्मत बढ़ती ही जा रही थी, अब वे धीरे-धीरे उसकी टी-शर्ट को दूसरी तरफ से भी ऊपर खिसकाने लगे और जब मनिका की दूध सी कमर दोनों तरफ से उघड़ कर उनके सामने आ गई तो वे उसकी कमर की नंगी त्वचा पर हाथ रख सहलाने लगे, बीच-बीच में वे अपना हाथ उसकी गांड पर भी ले जाते थे.

जयसिंह की हिमाकतों से बेख़बर मनिका सोती रही. जयसिंह ने अब एक और कारवाई शुरू कर दी थी, वे मनिका के पायजामे का कपड़ा पकड़ उसे हौले-हौले नीचे की तरफ खीँच रहे थे. अब उन्हें मनिका की नीली पैंटी का एलास्टिक नज़र आने लगा था. उन्होंने पैंटी को भी पायजामे के साथ-साथ नीचे करने के लिए मनिका की गांड की दरार की सीध में अपनी अँगुली घुसाई और नीचे खींच दिया. पायजामे और पैंटी दोनों को एक साथ खींचने में जयसिंह को थोड़ी मुश्किल पेश आई, कुछ नीचे होने के बाद बाकी का कपड़ा मनिका के नीचे दबा होने की वजह से उन्हें रुकना पड़ा. पर मनिका की गांड की दरार का ऊपरी हिस्सा अब उन्हें नज़र आने लगा था, जयसिंह के बदन में उत्तेजना भरी लहर दौड़ गई थी, लेकिन फिर इस से ज्यादा आगे बढ़ने की जुर्रत उनसे नहीं हुई, क्यूँकि वे जानते थे कि अगर वे यह खतरनाक खेल जीतना चाहते हैं तो उन्हें सब्र से काम लेना होगा और इस वक्त उनका दीमाग हवस के हवाले था जिससे कि उनका बना-बनाया दाँव बिगड़ सकता था.

उन्होंने मनिका की गांड की दरार पर धीरे से अँगुली फिराई और एक ठंडी आह भर सीधे हो कर सोने की कोशिश करने लगे.



***

अगली सुबह जयसिंह की आँख हमेशा की तरह मनिका से पहले खुल गई थी. उन्होंने अपनी सेफ-साइड रखने के लिए उसका पायजामा थोड़ा ठीक कर दिया हालांकि सुबह-सुबह एक बार फिर उनका लंड मनिका को देख कर खड़ा हो गया था. जब मनिका उठ गई तो एक बार फिर वे रोज़ की तरह तैयार होकर घूमने निकल गए. अगले दो दिन फिर इसी तरह निकल गए व जयसिंह ने भी मनिका को रात को सो जाने के बाद छेड़ने से परहेज किए रखा था. वे अपनी अच्छी किस्मत को इतना भी नहीं अजमाना चाहते थे कि कहीं किस्मत साथ देना ही छोड़ दे.

मनिका और उनके बीच अब काफी नजदीकी बढ़ चुकी थी. चौबीस घंटे एक-दूसरे के साथ रहने और बातें करने से बातों-बातों में मनिका अब उनके साथ फ्रैंक होने लगी थी, वह उनसे अपनी फ्रेंड्स और उनके कारनामों का भी जिक्र कर देती थी, कि फलां का चक्कर उस लड़के से चल रहा है और फलां लड़की को उसके बॉयफ्रेंड ने क्या गिफ्ट दिया था वगैरह-वगैरह. जयसिंह भी उसकी बातों में पूरा इंटरेस्ट लेकर सुनते थे जिस से मनिका और ज्यादा खुल कर उनसे बतियाने लगती थी. जाने-अनजाने ही मनिका जयसिंह के चक्रव्यूह में फंसती चली जा रही थी.

उनके दिल्ली स्टे की आठवीं शाम जब वे अपने हॉटेल रूम में लौटे थे तो जयसिंह आ कर काउच पर बैठ गए थे. मनिका बाथरूम जा कर हाथ-मुहँ धो कर आई थी, जयसिंह ने उससे पूछा,

'तो फिर आज डिनर में क्या मँगवाना है?'

'मेन्यु दिखाओ...देखते हैं.' मनिका मुस्काते हुए उनके पास आते हुए बोली, मेन्यु जयसिंह के हाथ में था.

मनिका ने उनके पास आ कर मेन्यु लेने के लिए हाथ बढाया था. जयसिंह ने उसे मेन्यु न दे कर उसका हाथ थाम लिया और उस से नज़रें मिलाई, फिर हौले से उसका हाथ खींचते हुए आँखों से अपनी जांघ पर बैठने का इशारा किया और अपनी टांगें थोड़ी खोल लीं व साथ ही मुस्कुरा कर बोले,

'चलो फिर देखते हैं...'

'हाहाहा पापा...चलो.' मनिका उनकी गोद में बैठते हुए बोली.

जयसिंह की ख़ुशी का कोई ठिकाना न रहा था. उन्होंने अँधेरे में एक तीर चलाया था जो ठीक निशाने पर जा लगा था और अब २२ साल की मनिका उनकी गोद में बैठी मेन्यु के पन्ने पलट रही थी. जयसिंह उसके बदन के कोमल स्पर्श से मंत्रमुग्ध हो उठे थे, उसके घने बाल उनके चेहरे को छू रहे थे और उसकी गर्दन पर अभी भी, उसके मुहँ धो कर आने के बाद, कुछ पानी की बूंदे चमक रहीं थी. उन्होंने मनिका के हाथों पर अपने हाथ रखते हुए मेन्यु पकड़ लिया था और ख़ुशी-ख़ुशी उसकी सुझाई चीज़ों के लिए हाँ में हाँ मिला रहे थे. कुछ देर बाद उन्होंने मनिका की पसंद का डिनर ऑर्डर किया, जो कि वे रोज ही किया करते थे, और जब तक रूम-सर्विस नहीं आई वे वैसे ही बैठे बातें करते रहे. मनिका ने मेन्यु एक ओर रख दिया था और अपना एक हाथ जयसिंह के गले में डाल उनकी तरफ मुहँ कर बैठ गई थी, वहीँ जयसिंह का एक हाथ उसके पीछे उसकी पीठ पर था जिसे वह थोड़ी-थोड़ी देर में ऊपर से नीचे तक फेर दे रहे थे.

मनिका अपना दूसरा हाथ अपनी जांघ पर रखे बैठी थी और जयसिंह भी, कुछ देर बाद जब रूम-सर्विस वाले ने गेट पर नॉक किया तो मनिका उठी और दरवाज़ा खोल उसे अन्दर बुलाया. वेटर अन्दर आ कर उनका खाना लगा गया.

'मजा आ गया आज तो...साली ने बिलकुल ना-नुकुर नहीं की...' जयसिंह और मनिका डिनर वगैरह कर के बिस्तर में घुस चुके थे और जयसिंह लेट कर ख़ुशी-ख़ुशी अपनी सफलता के ख्वाब देख रहे थे.

मनिका भी जग रही थी 'मेरी लाइफ कितनी हैपनिंग हो गई है डेल्ही आ कर...पूरी लाइफ में मैंने इतनी मस्ती नहीं की होगी जितनी यहाँ एक वीक में कर चुकी हूँ...ओह हाहाहा ये तो कुछ ज्यादा हो गया, पर फिर भी आई एम हैविंग सो मच फन विद पापा...और ये सब पापा की वजह से ही पॉसिबल हो पाया है नहीं तो अभी घर पे बैठी वही बोरिंग लाइफ जी रही होती...गॉड पता ही नहीं चला कब ऐट (आठ) डेज निकल गए...और पापा तो अब मेरे फ्रेंड जैसे हो गए हैं...इवन बेस्ट-फ्रेंड जैसे, कितना ख्याल रख रहे हैं मेरा. आई होप कि पापा वापस घर जाने के बाद भी ऐसे ही कूल बने रहें...कितना कुछ शेयर कर चुके हैं हम एक-दूसरे से...और मम्मी को खबर ही नहीं है कि हम यहाँ कितनी मस्ती कर रहे हैं...हेहे...पर घर पे सच में मुझे केयरफुल रहना पड़ेगा कहीं भूले-भटके कुछ मुहँ से निकल गया तो पापा बेचारे फँस जाएँगे. कनि (कनिका) और तेसु (हितेश) से भी सीक्रेट रखना होगा...एंड फ़ोन से हमारी पिक्स भी निकाल कर रखनी होगी कहीं उन्होंने देख लीं तो और गड़बड़ हो सकती है. यहाँ से जाने से पहले ही लैपटॉप में ट्रान्सफर कर के हाईड कर दूँगी...हम्म.' वह अपने पिता से ठीक उल्टे विचारों में खोई थी.

मनिका हमेशा से ही फिल्मों और टी.वी. सीरियलों में दिखाए जाने वाले मॉडर्न परिवारों को देख कर सोचा करती थी कि काश उसके घर में भी इस तरह थोड़ी आज़ादी हो, हालाँकि जयसिंह ने हमेशा उसे लाड़-प्यार से रखा था लेकिन एक छोटे शहर में पली-बढ़ी मनिका ने अपने चारोँ ओर ऐसे ही लोगों को देखा था जो हर वक्त सामाज के बने-बनाए नियमों पर चलते आए थे और अपने बच्चों पर भी अपनी सोच थोपने से नहीं चूकते थे, जिनमें भी खासतौर पर लड़कियों को तो हर कदम पर टोका जाता था. सो जब जयसिंह ने मनिका को इस नई तरह की ज़िन्दगी का एहसास कराया, जैसा अभी तक उसने सिर्फ सिनेमा में ही देखा था और अपने लिए चाहा था, तो वह अपने-आप ही उनके रचाए मायाजाल में फँसने लगी थी.

दोनों बाप-बेटी अगली सुबह के लिए अलग-अलग सपने सँजोते हुए सो गए.


***

जयसिंह और मनिका जब अगली सुबह आ कर कैब में बैठे तो कैब ड्राईवर ने उनसे कहा कि वह उन्हें दिल्ली की लगभग सभी पॉप्युलर साइट्स दिखा चुका है सो आज वो उन्हें कोई खास सैर नहीं करा सकेगा (ड्राईवर उनसे थोड़ा घुल-मिल चुका था क्यूँकि रोज़ वही उनके लिए कार लेकर आता था और जयसिंह की जेनेरस टिप्स की वजह से वह उनकी इमदाद थोड़ी ज्यादा ही करने लगा था), इस पर मनिका का उत्साह ज़रा फीका पड़ गया,

'अब क्या करें पापा?' मनिका ने कुछ निराश आवाज़ में जयसिंह से पूछा.

'अरे भई पूरी दिल्ली घूम डाली है अब और क्या करना है? घर चलते हैं...’जयसिंह ने मजाक करते हुए कहा.

'नो पापा.' मनिका फटाक से बोली 'अभी तो हमारे पास आधे से ज्यादा वीक पड़ा है. डोंट जोक एंड बी सीरियस ना.'
जयसिंह मनिका के जवाब से बहुत खुश हुए, 'हाहाहा... ठीक है ठीक है. दिल्ली में करने के लिए कामों की कमी थोड़े ही है.'

'तो वही तो मैं पूछ रही हूँ ना सजेस्ट करो कुछ, ड्राईवर भैया ने तो हाथ खड़े कर दिए हैं आज.' मनिका ने फ्रस्ट्रेट हो कर कहा.

उसकी बात सुन ड्राईवर ने कुछ खिसिया कर फिर कहा था कि उसे जितना पता था वो उन्हें घुमा चुका है.

'हाहाहा...अरे मनिका तुमने तो मूड ऑफ कर लिया.' जयसिंह हंस कर बोले 'चलो तुम्हारा मूड ठीक करें, अपन ऐसा करते हैं आज कोई मूवी चलते हैं और फिर तुम उस दिन कह रहीं थी न कि तुम्हे कुछ शॉपिंग करने का मन है?'

मनिका अगले ही पल फिर से चहकने लगी थी. 'ओह पापा यू आर सो वंडरफुल.' वह ख़ुशी से बोली 'आप को ना मेरा मूड ठीक करना बड़े अच्छे से आता है...और आपको याद थी? मेरी शॉपिंग वाली विश...हाऊ स्वीट. मुझे लगा भूल गए होंगे आप और मुझे फिर से याद कराना पड़ेगा.'

'कोई बात मिस की है तुम्हारी आज तक मैंने मनिका?' जयसिंह ने झूठे शिकायती लहजे में कहा.

'ऑ पापा. नहीं भई कभी नहीं की...’मनिका ने होंठों से पाऊट करते हुए कहा.

मनिका की इस अदा ने जयसिंह के मन में लगी आग में घी डालने का काम किया था 'देखो साली कैसा प्यार जता रही है. इन्हीं मोठे होंठों ने तो जान निकाल रखी है मेरी...चिनाल खुश तो हो गई चलो.' उन्होंने मन में सोचा और ड्राईवर से बोले,

'चलो ड्राईवर साहब पी.वी.आर. चलना है आज.'

जब ड्राईवर उन्हें लेकर चल पड़ा था तो कुछ देर बाद मनिका ने जयसिंह से कहा था,

'एक बार तो डरा दिया था आपने मुझे...'

'हैं? अब मैंने क्या किया?' जयसिंह हैरान हो बोले.

'आप बोल रहे थे ना कि घर चलो वापस.' मनिका मुस्काते हुए बोली थी.

'हाहाहा.' जयसिंह ने ठहाका लगाया और बोले 'क्यूँ घर नहीं जाना तुम्हें?'

'नहीं...' मनिका ने आँखें मटका कर कहा था. जयसिंह मुस्का दिए और उसके गले में अपना हाथ डाल उसे अपने साथ लगा कर बैठा लिया.

ड्राईवर उन्हें कनॉट-प्लेस में बने पी.वी.आर. प्लाजा ले गया था. मनिका पहली बार मल्टीप्लेक्स में फ़िल्म देखने आई थी. उसने वहाँ रखा मूवी टाइमिंगस् का कार्ड उठाया.

'पापा!' कार्ड देखते ही मनिका का उत्साह दोगुना हो गया था.

'क्या हुआ इतना एक्साईटमेंट?' जयसिंह ने भौंऐ उठा कर पूछा.

'पापा, "जाने तू या जाने ना" रिलीज़ हो गई! मैं तो भूल ही गई थी यहाँ आ कर कि ये इसी मंथ रिलीज़ होने वाली है. आई सो वांट टू वॉच इट.' मनिका की आँखों में ख़ुशी चमक रही थी.

'अच्छा तो चलो फिर यही देखेंगे हम भी...' जयसिंह ने मुस्कुरा कर कहा. उन्होंने जा कर टिकट्स ले लीं और मनिका के साथ हाथों में हाथ डाले थिएटर के अंदर चल दिए.

मनिका ने पहली बार इतना अच्छा मूवी-हॉल देखा था, उनके बाड़मेर में तो ले देकर एक-दो सिनेमा थे जिनमें सिर्फ बी-ग्रेड फ़िल्में लगा करतीं थी. एक दो बार अपनी मौसी के यहाँ जयपुर जाने पर जरूर उसने थिएटर में फ़िल्में देखीं थी पर इस जगह की तो बात ही कुछ और थी. वहाँ का क्राउड भी मॉडर्न और टॉप-क्लास था. वे अपनी सीट्स पर जा बैठे,

'कितना मजा आ रहा है ना पापा?' उत्साह भरी मनिका ने जयसिंह से जानना चाहा.

'अभी तो फ़िल्म शुरू ही नहीं हुई...खाली लाल पर्दा देख कर ही मजा आ रहा है तुम्हें?' जयसिंह ने आदतवश् मनिका को चिढ़ाया.

'ओह पापा क्या है...मुझे तो बहुत अच्छा लग रहा है यहाँ.' मनिका ख़ुशी-ख़ुशी इधर-उधर नज़रें दौड़ते हुए बोली.

कुछ देर बाद फ़िल्म शुरू हो गई. फ़िल्म चले थोड़ा ही वक़्त हुआ था कि पी.वी.आर. स्टाफ का एक बन्दा उनसे खाने-पीने के लिए स्नैक्स का ऑर्डर लेने आ गया. मनिका पर उनकी सर्विस का इम्प्रैशन और बढ़ गया था. उन्होंने पॉपकॉर्न, कोल्डड्रिंक और नाचोस् ऑर्डर किए. कुछ देर बाद खाने का सामान भी आ गया. मनिका को बहुत मजा आ रहा था और ऊपर से फ़िल्म भी अच्छी थी.

जयसिंह को पॉपकॉर्न और मसाले भरे नाचोस् खा लेने से प्यास लग आई थी, उन्होंने कोल्डड्रिंक भी नही मँगवाई थी. उन्होंने फ़िल्म देखने में डूबी मनिका को हौले से बताया कि वे पानी पीने जा रहें हैं जिस पर मनिका ने उन्हें अपनी कोल्डड्रिंक ऑफर कर दी. जयसिंह एक पल ठिठके और फिर मनिका के हाथ से ग्लास ले ली. मनिका की जूठी स्ट्रॉ (पाइप) पर मुहँ लगा कर उन्होंने कोल्डड्रिंक का सिप लिया. मनिका के होंठों से निकली स्ट्रॉ ने उनके लिए कोल्डड्रिंक की मिठास और बढ़ा दी थी.

इंटरवल हो जाने पर जयसिंह ने मनिका को यह कहकर एक कोल्डड्रिंक और ले दी थी कि उसकी पहली कोल्डड्रिंक तो आधी उन्होंने ही ख़त्म कर दी थी और बाद में जब मनिका ने एक बार फिर उन्हें कोल्डड्रिंक ऑफर की तो उन्होंने ख़ुशी-ख़ुशी हाथ बढ़ा दिया था.

जयसिंह मनिका के साथ कनॉट-प्लेस एक कैफ़े में बैठे थे. मनिका ने फिल्म के दौरान स्नैक्स खा लेने के बाद लंच लेने में असमर्थता जाहिर की थी सो वे आज हल्का-फुल्का खाना खाने आए थे. मनिका को फिल्म बहुत पसंद आई थी और बाहर आने के बाद से वह जयसिंह से उसी के बारे में बातें कर रही थी.

'पापा मूवी कितनी अच्छी थी ना?' मनिका ने उनसे पूछा.

'हाँ बहुत अच्छी थी.' दो कोल्डड्रिंक उसके साथ पीने के बाद जयसिंह को तो फिल्म अच्छी लगनी ही थी.

'कितना अच्छा कॉन्सेप्ट था ना?' मनिका बोल रही थी 'सच अ स्वीट मूवी.'

'हम्म...आई एम ग्लैड के तुम्हें मूवी अच्छी लगी मनिका.' जयसिंह ने हामी भरी.

मनिका वह रोमेंटिक फिल्म देखने से जरा भावुक हो रही थी, जयसिंह की बात सुन कर उसके मन में एक सवाल आया जो एक-दो बार पहले भी उसके मन में उठ चुका था.

'पापा?'

'हम्म?'

'एक बात पूछूँ?' मनिका ने अपनी कॉफ़ी में चम्मच घुमाते हुए कहा.

'हाँ क्या बात है बोलो..?' जयसिंह ने कौतुहल से पूछा.

'आजकल आप मुझे मेरे नाम से ही क्यूँ बुलाते हो?' मनिका ने उनकी तरफ देखा.

'हैं? तो और किसके नाम से बुलाऊं तुम्हें..?’जयसिंह उसका आशय समझ गए थे पर उन्होंने जानबूझकर उसे बहलाने की कोशिश की थी.

'अरे मेरा मतलब है आप मुझे मनिका-मनिका कह कर बुलाते हो, पहले तो मेरे निकनेम मणि से बुलाया करते थे?' मनिका ने हल्की से मुस्कान के साथ सवाल किया था.

जयसिंह को इस तरह के सवाल की उम्मीद नहीं थी. वे एक पल के लिए थोड़ा घबरा गए थे पर उन्होंने उसे यह जाहिर नहीं होने दिया. 'उम्म्म...' उन्होंने जल्दी से अपने दीमाग के घोड़े दौड़ाए. सच बोलने में ही उनकी भलाई थी 'वैल...'
जब जयसिंह ने कुछ पल बाद भी सवाल का जवाब नहीं दिया था तो मनिका का भी कौतुहल जाग गया.

'बताओ ना पापा क्या रीज़न है?' वह अब उनकी आँखों में आँखें डाले हुए थी.

'वैल तुम्हारी बात तो सही है कि आजकल मैं तुम्हें मनिका कहने लगा हूँ...मे-बी इसलिए...' जयसिंह थोड़े रुक-रुक कर बोल रहे थे.

'क्या पापा? इतना क्या मिस्टीरियस रीज़न है?' मनिका अब पूरी तरह से इंटरेस्टेड थी उनका जवाब सुनने में.

'अह्...रीज़न शायद यही है कि यहाँ आने से पहले हम एक-दूसरे से इतना घुले-मिले नहीं थे, आई मीन ऑब्वियस्ली हम घर पर साथ ही रहते हैं लेकिन...आफ्टर कमिंग हेयर हम...' जयसिंह उसे बताने का स्ट्रगल कर रहे थे जब मनिका ने उनकी मुश्किल खुद ही हल कर दी,

'येस पापा आई क्नॉ आप क्या कहना चाह रहे हो. यहाँ आने के बाद से वी हैव बिकम लाइक फ्रेंड्स...है ना?'

'एग्सैक्टली.' डूबते हुए जयसिंह को बस एक तिनके का सहारा काफी था 'सो इसीलिए मैं तुम्हें मनिका बुलाने में थोड़ा ज्यादा कम्फ़र्टेबल फील करता हूँ क्यूँकि तुम्हें मणि कहने पर फिर मुझे भी तुम्हें, एक पैरेंट की तरह, रोकना-टोकना पड़ेगा ऐसा फील होता है.'

जयसिंह ने बहुत ही शानदार तरीके से अपने शब्दों को पिरोया था और साथ ही इस पूरे वार्तालाप के बीच उन्होंने न तो एक बार भी मनिका को सीधे-सीधे अपनी बेटी कहा और ना ही अपने आप को उसका पिता. उन्होंने देखा मनिका भी हाँ में सिर हिला रही थी,

'ओह पापा. यू आर सच अ कूल पर्सन यू क्नॉ...मैं भी कल यही सोच रही थी कि हाओ वेल यू हैव ट्रीटेड मी...आई मीन आपने हमेशा मेरा ख्याल रखा है पर यहाँ आने के बाद यू हैव बिकम अ फादर एंड अ फ्रेंड टू मी...’मनिका ने चेहरे के साथ-साथ हाथों से भी अपने भाव प्रकट करते हुए कहा.

'हाहाहा... नॉट अ फादर मनिका.' जयसिंह ने मनिका को आँख मारी ' नहीं तो चलो घर वापस मणि.' उन्होंने बात मजाक करने के अंदाज़ में कही थी पर उनका इरादा उसे दोबारा ऐसा कहने से रोकने का था.

'ओह नो पापा... यू प्लीज कॉल मी मनिका ओनली.' मनिका ने भी मजाक-मजाक में झूठी चिंता जता कर कहा.
'हाहा...' जयसिंह हँस दिए.

'पापा यू क्नॉ व्हॉट? मेरे माइंड में एक बात आई अभी...’मनिका मुस्कुराई, उसकी आँखों में चमक थी.
'अब क्या?' जयसिंह ने झूठ-मूठ का डर दिखाया.

'ओह पापा स्टॉप एक्टिंग ओके...मैं सोच रही थी की वी हैव बिकम फ्रेंड्स लाइक जय एंड अदिति इन द मूवी वी सॉ...और इट्स सो फनी कि आपका नाम भी जय है...हाहा...' मनिका ने हँसते हुए कहा.

'हाहा...एक तो तुम्हारा मूवी का भूत नहीं उतर रहा कबसे...' जयसिह मन ही मन खुश हो बोले.

'हेहे...आई क्नॉ पापा. मुझे बहुत अच्छी लगी मूवी बताया ना आपको.' उसने दोहराया.

बातें करते हुए उन्होंने अपनी डाइट खत्म कर ली थी. जयसिंह ने उठ कर मनिका की तरफ अपना हाथ बढ़ाया और टोह लेते हुए कहा,

'चलो मणि, अभी तुम्हारी शॉपिंग तो बाकी ही पड़ी है.'

मनिका ने उनका हाथ थाम उठते हुए मुहँ बनाया और इस बार आग्रहपूर्वक कहा था, 'पापा प्लीज कॉल मी मनिका ना...’और उनके साथ कैफ़े से बाहर निकल चली.
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जयसिंह ने कैब ड्राईवर से उन्हें किसी अच्छे शॉपिंग मॉल में ले चलने को कहा था पर ड्राईवर ने उन्हें दिल्ली का साउथ-एक्स मार्केट जाने की सलाह दी और उनके हाँ कहने पर उन्हें वहाँ ले जा छोड़ा था.

मनिका जैसे उस पॉश मार्केट को देख स्वप्न-लोक में पहुँच गई थी. चारों तरफ चका- चौंध भरे डिस्प्ले में तरह-तरह के फैशनेबल कपड़े, मेकअप का सामान और दुनिया जहान की चीज़ें थी वहाँ, 'वाओ पापा...’मनिका ने खुश होते हुए कहा था.

वे लोग अब एक-एक कर शोरूम्स में सामान देखने लगे. कुछ देर बाद घूमते-घूमते वे एक कपड़ों और असेसरीज (बेल्ट, पर्स, घड़ीयां इत्यादि) के मेगा-स्टोर लाईफ-स्टाइल में जा पहुँचे, जहाँ हर ब्रैंड के कपड़े मिलते थे. स्टोर में जब एक सेल्स-बॉय ने उनसे पूछा कि वे क्या लेना पसँद करेंगे तो जयसिंह ने मनिका की तरफ इशारा कर दिया था, कि वह उसके लिए कपड़े देखने आए हैं. उसने उन्हें विमेंस-सेक्शन की तरफ जाने को कहा था जो की स्टोर में पीछे की तरफ था.

जयसिंह ने मनिका से कहा,

'जाओ भई देख लो और पसंद से लेलो जो लेना है...'

'आप नहीं आ रहे हो पापा?' मनिका ने सवालिया निगाहों से उन्हें देखा.

'मैं क्या करूँगा वहाँ, लड़कियों का सामान होगा सब.'

'तो क्या हुआ पापा सजेस्ट तो कर ही सकते हो ना मुझे, आओ ना आई नीड योर हेल्प.' मनिका ने जिद की, जयसिंह कैसे न जाते.

विमेंस-सेक्शन में रखा कलेक्शन देख मनिका की बांछें खिल उठीं थी, वहाँ सब नए और लेटेस्ट डिज़ाइनस के कपड़े थे, जो उनके शहर में हमेशा पुराने हो जाने के बाद ही पहुँचा करते थे. वह उत्साह से कभी इधर तो कभी उधर जा-जा कर कपड़े उलट-पलट कर देख रही थी.

'पापा इतना अच्छा कलेक्शन है यहाँ पर.' मनिका ने जयसिंह से आँखें मटका कर कहा. उसका आशय साफ़ था कि क्या वह शॉपिंग कर सकती है?

'हाँ तो कर लो न पसंद...' जयसिंह ने उसे फिर कहा.

'हाँ पापा...' मनिका बोली और फिर नज़रें नीची कर आगे बोली 'लेकिन यहाँ के रेट्स तो देखो...'

'मनिका...' जयसिंह बोले.

'हाँ पापा?' मनिका ने उनकी तरफ देखा, जयसिंह उसे देखते रहे पर कुछ बोले नहीं. एक-दो सेकंड ही बीते थे कि मनिका उनका इशारा समझ गई और हँसते हुए बोली 'हीही पापा मैं समझ गई...कि पैसों की चिंता नहीं करनी है.'

जयसिंह ने उसका गाल थपथपाया और बोले, 'वैरी गुड.' आधा घंटा बीतते-बीतते मनिका ने तीन जीन्स और चार-पाँच टॉप्स पसंद कर लिए थे और सेल्स-गर्ल से उन्हें एक तरफ रखने को बोल दिया था. जयसिंह साइड में खड़े शॉपिंग करती हुई मनिका को ऑब्सर्व कर रहे थे; मनिका अब वहाँ रैक पर रखीं शॉर्ट्स और स्कर्ट्स को उठा कर देख रही थी, कुछ देर बाद वह धीरे-धीरे आगे बढ़ती हुई पार्टी-वियर ड्रेसेस के पास पहुँची फिर आगे बढ़ते हुए उसने कुछ और टॉप्स उठा कर देखे थे और इस तरह घूमते हुए वह असेसरीज के सेक्शन में से होती हुई घूम कर वापस उनकी तरफ आ गई थी,

'क्या हुआ? देख लिया सब कुछ?' जयसिंह ने पूछा.

'कहाँ पापा. इतना कुछ है यहाँ कि पूरा दिन लग जाए मेरा तो.' मनिका ने मुस्का कर कहा.

'और कुछ पसंद आया तुम्हें?'

'पसंद तो पूरा स्टोर ही आ गया है पापा...पर क्या करूँ...आज के बाद कहीं आप फिर कभी मुझसे पैसों की चिंता ना करने को नहीं बोले तो...' मनिका ने शरारत भरी नज़र से उन्हें देखते हुए कहा.

'हाहाहा...अच्छा तो ये बात है. बड़ी सयानी हो तुम भी.' जयसिंह ने हँस कर कहा.

'वो तो मैं हूँ ही...' मनिका इठलाई.

'लेकिन अभी तो और चीज़ें ले सकती हो अगर तुम्हारा मन है तो. उधर क्या है, कुछ पसंद नहीं आया तुम्हें?' जयसिंह ने जिस तरफ से वो घूम कर आई थी उधर हाथ से इशारा करते हुए पूछा था.

'ओह उधर?' मनिका ने एक रहस्यमई मुस्कान बिखेरते हुए कहा 'वो आप देखोगे तो लेने से मना कर दोगे.'

'क्यूँ? ऐसा क्या है.' जयसिंह अनजान बनते हुए बोले.

'है तो कपड़े ही पापा...कपड़ो के स्टोर में टमाटर थोड़े ही होंगे...' मनिका ने होशियारी दिखाते हुए कहा था 'लेकिन आप को पसंद नहीं आएँगे. वो थोड़े छोटे-टाइप्स हैं...’उसने दोनों हाथों से हवा में छोटा होने का हाव बनाकर कहा.

'अरे ऐसा कुछ नहीं है, तुम को जो पसंद है वो चीज़ ले सकती हो तुम ओके?' जयसिंह ने थोड़ा गंभीर हो उससे कहा.

'हाँ पापा आई क्नॉ दैट.' मनिका ने उन्हें आश्वासन दिया.

'हाँ तो फिर बाय (खरीद लो) जो भी तुम्हें लेना हो, ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलेगा.' जयसिंह ने उसकी पीठ पर थपकी देकर कहा.

'हाहाहा...पापा अब आप इतना इंसिस्ट कर रहे हो तो ले ही लेती हूँ.' मनिका ने शरारत भरी स्माइल फिर से देकर कहा. उसके मन में लडडू फूट रहे थे.

मनिका ने दोबारा शॉर्ट्स और स्कर्ट्स वाले सेक्शन में जा सेल्स-गर्ल से बात की जिसके बाद सेल्स-गर्ल ने उसे काउंटर पर फिर से कपड़े दिखाने शुरू कर दिए. जयसिंह वहीँ लगे एक सोफे पर बैठ कर उसका इंतज़ार करने लगे. काफी देर बाद मनिका वापस आई, जयसिंह ने उसे फिर से हर एक सेक्शन में जाते हुए देखा था 'आज पहली बार क्रेडिट-कार्ड का पूरा सही इस्तेमाल होगा.' जयसिंह ने बैठे हुए सोचा था और मुस्कुरा उठे थे.

'हेय पापा.' मनिका ने उनके पास आते हुए कहा.

'हाँ भई? हो गई शॉपिंग पूरी?' उन्होंने पूछा.

'हाँ पापा डन.' मनिका ख़ुशी-ख़ुशी बोली.

'ले लिया सब कुछ या अभी और कुछ बाकी है?' जयसिंह ने उठते हुए पूछा.

'हेहेहे पापा वो तो आपको बिल देख कर पता चल जाएगा.' मनिका ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा 'वैसे आपको मम्मी के लिए कुछ लेना हो तो ले सकते हो. वहाँ आगे की तरफ ट्रेडिशनल क्लोथ्स का भी सेक्शन है.'

'उसे तो मैं लक्ष्मी क्लॉथ स्टोर से दिला दूंगा.' जयसिंह ने अपने शहर की सूट-साड़ियों की एक दूकान का नाम लेकर कहा.

'ईहहहहहाहा पापा!' उनकी बात सुन कर मनिका की जोर की हँसी छूट गई थी. वह कुछ देर तक वैसे ही खड़ी हुई हंसती रही. इधर-उधर खड़े लोगों का ध्यान भी उसकी तरफ आकर्षित हो गया था. कुछ लोग उन्हें देख कर मुस्कुरा भी रहे थे.

'अरे अब बस करो मनिका...लोग देख रहें हैं कि कहीं पागल तो नहीं है ये लड़की.' मनिका की रह-रह छूटती हँसी को देख कर जयसिंह ने कहा.

'ओह पापा यू आर सो सो फनी...रियली...' मनिका ने आखिर अपनी हँसी पर काबू पाते हुए कहा.

'अरे भई अगर मधु को कपड़े दिलाने होते तो उसे न लेकर आता यहाँ, वैसे भी ज़िन्दगी भर दिलाता आया हूँ उसे तो...आज तुम्हारी बारी है.' जयसिंह ने भी शरारती लहजे में कहा.

'ऊऊओह्हह्हह रियली पापा...' मनिका ने अपनी हसीन अदा से पूछा.

'और नहीं तो क्या..?' जयसिंह उसे निहारते हुए बोले.

'पर पापा आपने तो मुझे कुछ दिलाया ही नहीं...' मनिका ने भोला सा चेहरा बना कर कहा.

'हैं? तो फिर ये सब शॉपिंग जो तुमने की है इसका बिल क्या...’जयसिंह बोलते हुए रुक गए. वे कहने वाले थे कि बिल क्या तुम्हारा बाप भरेगा. लेकिन मनिका समझ गई थी,

'हिहाहा हाँ पापा...वही भरेगा.' उसने उन्हें छेड़ा.

'अब मुझे लग रहा है कि गलत ले आया मैं तुम्हें शॉपिंग कराने.' जयसिंह भी कहाँ पीछे रहने वाले थे.

'हेहे पापा. बट मेरा वो नहीं था मतलब. आई मीन के आप तो सिर्फ पे कर रहे हो इस सब के लिए. आपने अपनी पसंद से तो मुझे कुछ दिलाया ही नहीं...’ मनिका ने उन्हें समझाते हुए कहा.

'ओह तो ऐसा क्या?' जयसिंह के मन में लडडू फूटा.

'हाँ ऐसा.' मनिका ने उनकी नक़ल करते हुए कहा था.

जयसिंह ने कुछ पल सोच कर कहा 'तो क्या दिलाऊं फिर मैं तुम्हें?'

'अगर मैं ही बताउंगी तो फिर सेम ही बात रहेगी ना पापा.' मनिका ने मजे लेते हुए कहा.

'ह्म्म्म...'

'सोचो-सोचो कुछ अच्छा सा.' मनिका उन्हें उकसा कर खुश हो रही थी.

'अच्छे बुरे से तुम्हें क्या मतलब, मेरी पसंद की चीज़ होनी चाहिए ना, न की तुम्हारी पसंद की.' जयसिंह ने मनिका का ही तीर वापस उस पर चलाते हुए कहा और आगे बोले, 'चीज़ तो मैंने सोच ली है बट उसे कहते क्या हैं ये मुझे नहीं पता...और हो सकता है तुम वो पहले ही खरीद चुकी हो.'

'मुझे डिसकराईब करके बताओ...आई विल हेल्प यू आउट.' मनिका ने उत्सुकता से कहा.

'अरे वही पेंट जो तुम घर से पहन कर निकली थी...' जयसिंह बोल ही रहे थे कि मनिका ने ठहाका लगा कर उनकी बात काट दी,

'हाहाहा नॉट पेंट पापा! आपको तो सच में कुछ नहीं पता.' मनिका बोली 'लेग्गिंग्स...दे आर कॉल्ड लेग्गिंग्स और मैंने वो नहीं ली है सो आप मुझे दिला सकते हो.' और फिर से खिलखिलाने लगी.

जब मनिका ने कहा कि उन्हें तो कुछ भी नहीं पता तो जयसिंह के मन में विचार आया था 'पता तो मुझे तेरी कच्छी के रंग का भी है जानेमन.' पर उन्होंने मुस्का कर उसे कहा,

'तो आओ चलो मेरी पसंद की लेग्गिंग्स लेते हैं तुम्हारे लिए...' जयसिंह मनिका को लेकर फिर से सेल्स-गर्ल के पास पहुँचे और उसे लेग्गिंग्स दिखाने को कहा. सेल्स गर्ल ने मनिका की तरफ देख कर पूछा,

'फॉर यू मैम?'

'येस.' मनिका ने हाँ भरी.

'सेम साइज़ मैम? आई एम् सॉरी व्हाट वास इट अगैन? ‘सेल्स-गर्ल ने पूछा. मनिका ने पहले उससे कपड़े लेते वक्त उसे साइज़ बताया था.

मनिका उसका सवाल सुन सकपका गई. जयसिंह पास खड़े सुन रहे थे कि वह क्या जवाब देती है. जब सेल्स-गर्ल उसे सवालिया नज़रों से देखती रही तो मनिका ने धीमे से सकुचा कर कहा,

'थर्टी-फोर...' मनिका ने यह बिलकुल नहीं सोचा था कि उसे अपने फिगर का माप बताना पड़ेगा, उसका उत्साह थोड़ा ठंडा पड़ गया था.

'आह चौंतीस...मुझे लग ही रहा था कुतिया की गांड है तो भरी-भरी...' जयसिंह के मन में मनिका का कहा सुनते ही हिलोरे उठे थे.

'बट मैम आई रेकेमेंड की आप ३० (तीस) या ३२ (बत्तीस) साइज़ में लेग्गिंग्स देख लें.' सेल्स-गर्ल बोली.

'क्यूँ? वो छोटी नहीं रहेंगी?' मनिका से तो कुछ कहते बना नहीं था पर जयसिंह ने सवाल उठा कर मनिका की तरफ देखा था, उसकी नज़रें काउंटर पर गड़ी थी.

'एक्चुअली सर लेग्गिंग्स आर मेड ऑफ़ वैरी स्ट्रेचेबल मटेरियल सो मैम के बिलकुल फिट आएँगी.' सेल्स-गर्ल ने उन्हें समझाया.

'हम्म ओके. आप ३० साइज़ में ही दिखा दीजिए फिर तो...’जयसिंह बोले. मनिका ने एक नज़र उनकी तरफ देखा था फिर वापिस नज़रें झुका खड़ी रही. जयसिंह द्वारा उसके कमर और अधोभाग के नाप के बारे में ऐसे बात करने ने उसे एम्बैरेस कर दिया था और वह अब सोच रही थी कि काश उसने अपना मुहँ बंद रखा होता और चुपचाप जयसिंह को बिल चुकाने जाने दिया होता, 'वैसे भी मैंने इतनी शॉपिंग तो कर ही ली है...’उसने अफ़सोस करते हुए सोचा. उसका उत्साह अब पूरी तरह ठंडा पड़ चुका था.

सेल्स-गर्ल लेग्गिंग्स दिखाने लगी. जयसिंह ने उनमें से सबसे झीने कपड़े वाली एक लेग्गिंग मनिका को दिखा कर पूछा था कि उसे वह कैसी लगी. वहाँ से जल्दी हटने के मारे मनिका ने बिना अच्छे से देखे ही कहा था कि आप दिला दो जो भी आपको पसंद है. जयसिंह ने मंद-मंद मुस्का कर मनिका को देखा और वह लेग्गिंग सेलेक्ट कर ली थी.

मनिका ने आखिर चैन की साँस ली थी और जयसिंह के साथ बिलिंग डेस्क पर जाने के लिए मुड़ी,

'मैम?' पीछे से सेल्स-गर्ल की आवाज आई.

'येस?' मनिका ने वापस मुड़ कर जानना चाहा कि वह क्या कहना चाहती है. जयसिंह भी रुक गए थे.

'वी हैव अ न्यू लॉनजुरे (सेक्सी ब्रा-पैंटी और नाइटी) कलेक्शन दैट जस्ट केम इन वुड यू लाइक टू हैव अ लुक.' सेल्स-गर्ल ने पूछा.

सेल्स-गर्ल्स को तो यही ट्रेनिंग दी जाती है कि जब कपल्स आएं तो उन्हें ज्यादा से ज्यादा लुभा कर रोके रखने की कोशिश किया करें. मनिका को लेग्गिंग्स दिलाते जयसिंह को देख उस बेचारी सेल्स-गर्ल को क्या पता चलता की वे उसके पिता हैं. मनिका की तो काटो तो खून नहीं ऐसी हालत हो चुकी थी.

'व्हॉट..?' उसके मुहँ से निकला था.

'येस मैम, ब्रा एंड पैंटी कलेक्शन इन लेस एंड सिल्क.' सेल्स-गर्ल ने समझा था की वह पूछ रही है की क्लेक्शन में क्या-क्या है?

यह सुनते ही मनिका का मुहँ जयसिंह की तरफ घूमा, यह देखने को कि क्या उन्होंने सब सुन लिया था? ऑब्वियस्ली उन्होंने सुन लिया था, वे उसके बगल में ही तो खड़े थे. मनिका का चेहरा शर्म से लाल हो गया,

'न...नो...’ उसने सेल्स-गर्ल को जरा तल्खी से कहा था.

'ले लो मनिका अगर चाहिए तो...' जयसिंह थे.

मनिका को जैसे चार सौ वॉल्ट का झटका लगा, उसे विश्वास नहीं हो पा रहा था की जयसिंह ने ऐसा कह दिया था 'उसके पिता उसे ब्रा-पैंटी लेने को कह रहे थे.'



***

आखिर जयसिंह की किस्मत जवाब दे ही गई थी. वे लोग अपने हॉटेल रूम में लौट चुके थे और जयसिंह एक तकिया लेकर काउच पर अधलेटे हुए सोए पड़े थे. मनिका बेड पर अकेली कम्बल से अपने-आप को ढंके हुए थी. दोनों सोने का नाटक कर रहे थे पर नींद उनके आस-पास भी नहीं थी.

जयसिंह के मन में निराशा की उथल-पुथल मची हुई थी 'अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली मैंने...'

जयसिंह के मनिका से ब्रा-पैंटी लेने को कहते ही मनिका का बदन शॉक से अकड़ गया था. उसने एक क्षण रुकने के बाद मुड़ कर उनकी तरफ देखा था और जयसिंह उसकी नज़र से ही समझ गए थे कि उनके किए-धरे पर पानी फिर चुका है. उसकी आँखों में शर्म, गुस्से और नफरत का मिला-जुला सैलाब उमड़ रहा था. जयसिंह कुछ न बोल सके थे और मनिका तेज़ क़दमों से चलती हुई वहां से बाहर निकल गई थी.

जब वे बिल चुका कर मनिका के खरीदे सामान के साथ उसे ढूँढ़ते हुए वापस कार पार्किंग में पहुंचे तो पाया कि वह आकर कैब में बैठ चुकी है, उन्होंने ड्राईवर से डिक्की में सामान रखवाया था और चुपचाप कार में ड्राईवर के बगल में आगे की सीट पर बैठ उसे हॉटेल चलने को बोला था. हॉटेल पहुँच कर भी वे दोनों बिना कोई बात किए चलते हुए अपने कमरे तक आए, आज मनिका उनसे अलग होकर चल रही थी. जयसिंह ने कमरे में घुस कर अपने हाथों में उठाए शॉपिंग-बैग्स एक तरफ रखे ही थे कि मनिका का गुस्सा फट पड़ा था,

'बदतमीज़ी की भी कोई हद होती है!' मनिका ने ऊँची आवाज़ में कहा था. जयसिंह ने सीधे हो कर उसकी तरफ अपराधबोध से भरी नज़रों से देखा. 'आप होश में तो हो कि नहीं? क्या बके जा रहे थे वहाँ...आपको जरा भी शर्म नहीं आई मुझसे ऐसी बात कहते हुए पापा?' मनिका अब तैश में आ गई थी.

जयसिंह क्या जवाब देते. एक-एक कर उनके बनाए हवाई-महल उनके आस-पास ध्वस्त हो गिर रहे थे.

'आई एम् यौर डॉटर फॉर गॉड्स सेक! कोई अपनी बेटी से इस तरह...’मनिका आगे की बात कह न सकी थी और आगे बोली 'डोंट यू टॉक टू मी, आई एम् सिक् ऑफ़ यू...' और लगभग भागती हुई बाथरूम में घुस गई थी. उसकी आँखों में शर्म और गुस्से के आँसू थे.

जयसिंह बेड के पास हक्के-बक्के से खड़े थे.

मनिका ने बाथरूम में जा कर कुछ देर तक ठन्डे पानी से अपना मुहँ धोया, आज तक उसे इतनी शर्म और जिल्लत कभी महसूस नहीं हुई थी. उसने जब मुहँ धोने के बाद सामने लगे आईने में देखा था तो उसे अपना रंग उड़ा हुआ चेहरा नज़र आया, 'ओ गॉड. ये क्या हो रहा है मेरे साथ?' उसने धड़कते दिल से सोचा था, उसे एहसास हुआ कि जयसिंह की बदतमीजी के बाद से ही उसके दिल की धड़कने बढ़ी हुईं थी. 'पापा ऐसा कैसे कह सकते हैं कि लॉनजुरे चाहिए तो...अब कैसे उनके साथ कभी नॉर्मल हो सकूँगी मैं...शायद कभी नहीं...अभी तक तो वे भी कुछ बोले नहीं है बस चुप्पी साधे खड़े थे...वैसे भी कुछ बोलना बाकी तो रह नहीं गया है...'

बाहर जयसिंह भी अपनी हार को बर्दाश्त करने की कोशिश कर रहे थे, उनकी अंतरात्मा भी एक बार फिर से सिर उठाने लगी थी, 'यह तो सब खेल चौपट हो गया. मेरी भी मत मारी गई थी जो मैंने संयम से काम नहीं लिया...लेकिन वैसे भी बुरे काम का अंत तो हमेशा बुरा ही होता आया है...अगर कहीं उसने घर पे यह बात जाहिर कर दी तो..?' जयसिंह को भी अब अपने किए को लेकर तरह-तरह की अनिश्चिताओं ने घेर लिया था 'पता नहीं क्या सोच कर मैंने ये कदम उठाए थे...मनिका और मेरे बीच ऐसा कुछ हो सकता है यह सोचना ही मेरी सबसे बड़ी गलती थी...अपने ही घर में आग लगा ली मैंने...साली की जवानी देख कर बहक गया यह भी नहीं सोचा कि कितनी बदनामी हो सकती है...' जयसिंह अपनी पराजय के बाद अब खुद पर ही दोष मढ़ रहे थे आखिर ये सब उन्हीं की हवस से उपजा था.

मनिका जब बाथरूम से बाहर निकली तो पाया कि जयसिंह तकिया लिए हुए काउच पर लेटे थे, उसके आने पर उन्होंने एक नज़र उठा उसे देखा था पर मनिका की हिकारत भरी नज़रों से अपनी नज़र नहीं मिला पाए और फिर से आँखें नीची कर लीं थी.

असल में जयसिंह द्वारा मनिका के लिए लेग्गिंग्स लेने के दौरान ही उसके मन में बेचैनी और असहजता जग चुकीं थी और उनके द्वारा कही अगली बात ने उसको भड़काने का काम कर दिया था. इस तरह जयसिंह ने अपनी इतने दिन की चालाकियों और जुगत लगा जीता हुआ मनिका का भरोसा दो पल में ही खो दिया था. जो मनिका कुछ घंटे पहले तक उनकी तारीफों के पुल बांधती नहीं थकती थी वह अब उनकी शक्ल देख कर भी खुश नहीं थी.

मनिका को भी जयसिंह के ऊपर भरोसा करने पर मिला विश्वासघात बेहद गहरा लगा था. उसने सपनों में भी नहीं सोचा था कि एक पिता अपनी जवान बेटी से इस तरह का निर्लज्ज व्यवहार कर सकता है.

अपने-अपने टूटे हुए सपने लिए वे दोनों ही देर तक जागते रहे थे पर आखिर सुबह होते-होते उनकी आँखें लग हीं गई.
अगली सुबह जयसिंह की जाग थोड़ी देर से खुली थी, रात भर काउच पर सोने की वजह से उनका शरीर को भी अच्छे से आराम नहीं मिल पाया था, उन्होंने बेड की तरफ देखा तो पाया कि मनिका अभी भी लेटी हुई थी. कुछ देर वैसे ही लेटे रहने के बाद जयसिंह धीरे से उठे, मनिका बेड पर जिस ओर करवट ले कर सो रही थी उसी तरफ उनका लगेज भी पड़ा था. जयसिंह दबे पाँव अपने सामान के पास गए और अपनी अटैची से अपने कपड़े निकालने लगे. जब वे अपने कपड़े ले कर वापस जाने लगे थे तो उनकी नज़र मनिका के चेहरे पर चली गई थी, उन्होंने देखा कि उसने जल्दी से अपनी आँखें मीचीं थी.

जयसिंह बिना कुछ बोले चुपचाप बाथरूम में घुस गए थे. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करें या कहें. उनके जाने के बाद मनिका ने उठकर कमरे में रखी पानी की बोतल से पानी पिया था. वह भी, अपने और जयसिंह के बीच बढ़ी दूरियों का सामना कैसे करे, इस उलझन में थी. जयसिंह जल्दी ही नहा कर बाहर निकल आए थे. उन्होंने मनिका को बिस्तर में बैठे पाया, मनिका ने तय किया था कि वह पीछे नहीं हटेगी और इसीलिए अब वह सोई होने का नाटक नहीं कर रही थी.

जयसिंह बाथरूम से निकल कर आए ही थे कि कमरे में रखे फोन की घंटी बजने लगी. जयसिंह और मनिका के बीच एक तनाव भरा माहौल बन गया था, दोनों ही अपनी-अपनी जगह जड़वत् हो गए थे, कुछ देर जब फोन बजता रहा तो आखिर जयसिंह ने जा कर फोन उठाया,

'हैल्लो?' जयसिंह की आवाज़ भर्रा कर निकली थी.

फोन रिसेप्शन से था, उनकी कैब का ड्राईवर नीचे आ चुका था और उनका वेट कर रहा था. जयसिंह ने उनसे कहा कि अब उन्हें कैब की जरुरत नहीं रहेगी सो वे उनकी बुकिंग कैंसिल कर दें और फ़ोन रख दिया था. मनिका को उनकी बातों से समझ आ गया था कि फोन कहाँ से आया है.

जयसिंह ने फोन रख अपने पिछले दिन पहने कपड़े (रात वे बिना चेंज किए ही सो गए थे) समेट कर अपनी अटैची में रखे और फिर बिना एक बार भी मनिका की तरफ देखे कमरे से बाहर चले गए.

उनके चले जाने के बाद मनिका बेड से निकली थी और नहा धो कर अपनी ज़िन्दगी में आए इस तूफ़ान के बारे में सोचते हुए बेड पर पड़े-पड़े ही पूरा दिन बिताया था. बीच में भूख लग आने पर उसने रूम-सर्विस पर कॉल कर खाने के लिए एक दो चीज़ें ऑर्डर कीं थी पर जब वेटर खाना लेकर आया तो उसने थोड़ा सा खाकर छोड़ दिया था और वापस बेड पर जा लेटी थी. जयसिंह का सुबह से कोई अता-पता न था.

रात को होते-होते मनिका को नींद की झपकी आ गई थी जब उसे कमरे का गेट खुलने का आभास हुआ. मनिका ने कमरे की लाइट बुझा रखी थी, अँधेरे में किसी ने राह टटोलते हुए आ कर लाइट जलाई. जयसिंह ही थे.

मनिका ने बेड से सिर उठा कर उनींदी आँखों से उन्हें देखा और अजीब सा मुहँ बनाया, फिर वह उठ कर बैठ गई, जयसिंह एक बार फिर अपना पायजामा कुरता ले कर बाथरूम में घुस रहे थे.

'मुझे यहाँ एडमिशन नहीं लेना है.'

मनिका की आवाज़ सुन जयसिंह ठिठक कर खड़े हो गए थे.

'मुझे घर जाना है.' मनिका आगे बोली.

जयसिंह ने उसकी तरफ देखा, मनिका ने भी दो पल उनसे नज़र मिलाए रखी और घूरती रही. जयसिंह ने नज़र झुका ली,

'दो-चार दिन की बात है...इतने दिन से यहाँ हम आपके एडमिशन के लिए ही रुके हुए है. हमारे वहाँ वैसे भी कोई ढंग के कॉलेज नहीं है.' उन्होंने धीरे-धीरे बोलते हुए कहा 'देख लो अगर रुकना है तो...नहीं फिर मैं कल टिकट्स करवा आऊँगा.' और वे बाथरूम में घुस गए.

मनिका ने पूरे दिन यही सोचते हूए बिताया था कि वह जयसिंह से वापस चल-चलने को कहेगी, उसे उनके भरोसे अब नहीं रहना है पर जयसिंह के सधे हुए जवाब में तर्क था और फिर बाड़मेर वापस जाने पर उसे घर पर ही रहना पड़ता जहाँ उनसे उसका रोज सामना होता, पर यह बात वह जयसिंह से नहीं कहना चाहती थी सो उनके बाथरूम से वापस बाहर निकल आने के बाद भी मनिका ने उनसे कुछ नहीं कहा था और बेड पर लेटी रही. जयसिंह ने भी और कुछ नहीं कहा और लाइट बुझा अपने काउच पर जा लेटे थे.

अगले दिन फिर सवेरे-सवेरे ही जयसिंह कमरे से नादारद हो गए. मनिका ने उन्हें उठ कर कमरे में खटर-पटर करते हुए सुना था और फिर उनके चले जाने और कमरे का दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई थी. उनके जाते ही वह उठ गई थी.
मनिका की फिर वही दिनचर्या रही, उसने आज फिर खाना थोड़ा ही खाया था. उसके मन में रह-रह कर जयसिंह की बात आ जाती थी और उसके विचारों का चक्र फिर से शुरू हो जाता था. आखिर उसने दिल बहलाने के लिए उठकर टी.वी चालू किया और बैठी-बैठी चैनल बदलने लगी. कुछ देर बाद मनिका एक इंग्लिश मूवी चैनल जा कर रुक गई थी; उस पर एक कॉमेडी फिल्म चल रही थी. मनिका का पूरा ध्यान तो उसमें नहीं था पर फिर भी वह वही देखने लगी.
कुछ देर बाद फिल्म में एक सीन आया जिसमें एक परिवार बीच (समुद्र किनारे) पर पिकनिक मनाने जाता है. उस परिवार में माँ-पिता और उनके दो जवान बेटा-बेटी साथ होते हैं. बीच पर पहुँच कर वे अपनी पिकनिक एन्जॉय कर रहे होते हैं कि वहाँ पास ही एक और फैमिली आ जाती है और वे आपस में घुलने-मिलने लगते हैं. पहली फैमिली वाला आदमी एक-एक कर के दूसरी फैमिली से अपने परिवार का इंट्रोडक्शन करवा रहा होता है. जब वह अपनी बेटी का नाम लेता है तो वो वहाँ नहीं होती, सो वह आवाज़ लगा कर उसका नाम पुकारता है, इस पर उसकी बेटी उनकी वैन के पीछे से निकल कर आती है, उसने एक लाल बिकिनी पहनी होती है, उसे देख दूसरी फैमिली में दिखाए लड़के का मुहँ खुला रह जाता है, इस तरह वो सीन आगे बढ़ता रहता और फिल्म चलती रहती है जिसमे कुछ देर बाद दोनों परिवार एक साथ पिकनिक मना रहे होते हैं और कुछ हास्यपद घटनाएं घटती हैं.

मनिका का ध्यान उस सीन को देखने के बाद फिल्म से पूरा ही हट गया था. 'यह फोरेनरस (अंग्रेज) भी कितने पागल होते हैं...बेटी को बाप के सामने बिकिनी पहने दिखा दिया बताओ...' मनिका का दीमाग तो वैसे ही अपने पिता के व्यवहार से ख़राब हो रखा था, अब उसने जब फिल्म में ऐसा सीन देखा तो उसके मन में फिर ख्याल उठने लगे थे. 'कैसे वह लड़की आकर अपने माँ-बाप के सामने खड़ी हो गई थी और उसका बाप हँस-हँस कर उसका इंट्रोडक्शन और करवा रहा था...यहाँ तो मेरे पापा के...ओह यह मैं क्या सोचने लगी...नहीं बाहर ऐसा चलता होगा, गलती तो पापा की ही थी...पर ये अंग्रेज इतने फ्रैंक क्यूँ होते हैं? कोई कल्चर नहीं है क्या इनका, बेटी बाप के सामने अधनंगी खड़ी है बोलो...'(मनिका ने दो दिन से खाना ठीक से नहीं खाया था सो उसका तन और मन वैसे ही थोड़ा कम काम कर रहे थे. अब उसके विचलित मन में ऐसे विचार उठ रहे थे जिन पर वह चाह कर भी लगाम नहीं लगा पा रही थी) 'तुम भी तो कुछ दिन पहले पापा के साथ अधनंगी हो कर पड़ी थी...' मनिका के अंतर्मन ने उसे याद कराया था 'हाय ये मैं क्या...पर मैंने जान-बूझकर थोड़े ही किया था वो...' मनिका ने अपने आप को सफाई पेश करते हुए सोचा. 'और पापा ने मुझे कुछ बोला भी नहीं था क्यूँकी..? ये तो मैंने सोचा ही नहीं आई मीन उस वक़्त मुझे लगा था कि वे भी मुझे ऐसे देख कर एम्बैरेस होंगे बट...परसों उन्होंने कहा था कि वे एक पैरेंट की तरह मुझे रोक-टोक कर मेरा ट्रिप ख़राब नहीं करना चाहते...एंड उस मूवी में भी तो वो फैमिली पिकनिक पर जाती है...और उस लड़की को उसके घरवाले बिकिनी पहनने के लिए कुछ नहीं कहते...क्यूंकि बीच पर सब वही पहनते हैं और एन्जॉय करते हैं...पापा ने भी तो कहा था कि ही वांटेड मी टू एन्जॉय दिस हॉलिडे...’मनिका का दीमाग उसे अलग ही राह पर ले जाता जा रहा था.

वह अब बेड पर थोड़ा पीछे हो बेड-रेस्ट के साथ टेक लगा कर बैठ गई और टी.वी. ऑफ कर दिया, उसका मन और दिल दोनों बेचैन थे, 'हाओ केयरिंग ऑफ़ पापा टू ट्रीट मी लाइक दिस...और मैंने...मैंने क्या किया...उनके मुझे ब्रा-पैंटी लेने को कहने पर...हाँ तो गलती उन्हीं की तो थी...’मनिका कुछ देर गहरी सोच में डूबी रही 'पर क्या सच में? उन्होंने डायरेक्टली तो कुछ भी नहीं कहा था...वो तो उस कमीनी सेल्स-गर्ल ने अपनी सेल बढाने के चक्कर में बक दिया था...पर पापा ने भी तो...नहीं उन्होंने इतना ही तो कहा था कि...चाहिए तो ले लो..ओ गॉड कितना एम्बैरेसिंग था...हम्म...बट उन्हें उस सेक्शन में लेकर भी तो मैं ही गई थी...गलती मेरी भी तो है...’इन खुलासों से मनिका की बेचैनी बढती जा रही थी हालाँकि कुछ बातें उसने गलत एज्यूम (मान) कर लीं थी पर जयसिंह के इरादों पर शक करने का ख्याल अभी भी उसके मन में नहीं आया था. वह तो बस उनकी कही बात से खफा हो गई थी और अब उसे अपनी नाराजगी के पीछे के कारण भी कम होते नज़र आ रहे थे.

'तो क्या गुस्से में मैंने ओवर-रियेक्ट कर दिया है...पापा भी दो दिन से कितने अपसेट लग रहे हैं...पता नहीं कहाँ जाते होंगे? वे मेरे साथ इतने कूल-ली पेश आ रहे थे और मैंने इतनी सी बात का बतंगड़ बना दिया...दो दिन से हमारी बात भी नहीं हुई है...कल थोड़ी सी बात हुई थी जिसमें भी वे मुझे आप कह कर बुला रहे थे...ओह शिट...आई एम सच अ फूल...अब क्या करूँ...’मनिका ने समय देखा, रात के नौ बज रहे थे, पिछली रात जयसिंह ग्यारह बजे करीब लौट कर आए थे.

मनिका उठी और अपना तन और मन कुछ तरोताज़ा करने के लिए नहाने घुस गई. बाथरूम में मन ही मन वह अपने पापा से क्या कह उनके बीच हुई गलतफ़हमी को मिटाए इस उधेड़बुन में लग गई थी. अपने हाथों से अपना नंगा बदन सहलाते हुए उसने शावर चला ठन्डे पानी से नहाना शुरू किया, उसके चेहरे पर अब पहले सी उदासी नहीं थी.
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जब जयसिंह उस रात कमरे में लौटे तो कमरे पाया कि कमरे की लाइट जल रही थी और मनिका सोई नहीं थी लेकिन बिस्तर पर बैठी हुई थी, एक तरफ मेज पर खाना रखा हुआ था. उन्होंने एक बार फिर अपने रात के कपड़े लिए थे और बाथरूम में चले गए, मनिका ने एक बार नज़र उठा कर उनकी तरफ देखा था पर कुछ बोली नहीं थी,

'धत्त...कैसे बात शुरू करूँ पापा से?' मनिका ने उनके बाथरूम में चले जाने पर अफ़सोस से सोचा, उनको देखते ही उसकी आवाज़ जैसे गले में ही अटक गई थी.

जयसिंह ने बाथरूम में जा कर अपने कपड़े उतार एक तरफ टाँगे और शावर में घुस पानी चलाने के लिए हाथ बढ़ाया था; और जड़वत रह गए. शावर के नल पर मनिका की ब्रा-पैंटी लटक रही थी, जयसिंह को मनाने के ख्यालों में डूबी मनिका अपने उतारे हुए अंतवस्त्र धो कर (तौलिए के नीचे छिपाकर) सुखाना भूल गई थी.

जयसिंह को जैसे खड़े-खड़े लकवा मार गया था और उनका चेहरा तमतमा कर गरम हो गया था.

लेकिन जयसिंह ने नज़र फेर ली और पीछे हट कर शावर का पर्दा लगा दिया, शावर में फर्श और पर्दे पर गिरे पानी से वे समझ गए थे की मनिका नहाई थी और शायद अपने अंतवस्त्र वहाँ भूल गई थी. वे मुड़े और नहाने के लिए बाथटब में बैठ कर पानी चला लिया. उन्होंने अपने लंड की तरफ एक नज़र देखा, उनका लंड बिल्कुल शांत था.

जब जयसिंह नहा कर बाहर निकले तो मनिका को अभी भी जगे हुए पाया, वे जा कर काउच पर बैठने लगे,

'पापा?' मनिका ने सधी हुई आवाज़ में कहा.

'जी..?' जयसिंह ने भी उसी लहजे में पूछा और मन में सोचा 'लगता है जो सोचा था वो आज ही करना पड़ेगा.'

'क्या हम बात कर सकते हैं?' मनिका ने बेड से थोड़ा उठते हुए कहा.

'आई एम सो सॉरी मणि...' जयसिंह ने सिर झुकाते हुए कहा.

दो दिन से जयसिंह अपने-आप से संघर्ष कर रहे थे. पहले तो उन्हें अपना प्लान बिगड़ जाने का बहुत अफ़सोस हुआ था लेकिन धीरे-धीरे उनकी अंतरात्मा ने उन्हें लताड़-लताड़ कर अपनी सोच पर शर्मिंदगी का एहसास दिला ही दिया था. आज वे अपने किए का पश्चाताप करने और मनिका से माफ़ी मांगने का सोच कर ही कमरे में आए थे पर मनिका की तरह उनसे भी पहले बात करने की हिम्मत नहीं हुई थी और वे बाथरूम में यह सोच कर घुस गए थे कि शायद उनके बाहर आने तक वह सो चुकी हो और उन्हें हिम्मत जुटाने के लिए कल सुबह तक का वक़्त और मिल जाए (और इसीलिए बाथरूम में पड़े उसके अंतवस्त्रों को देख वे उत्तेजित नहीं हुए थे). लेकिन अब मनिका के संबोधन ने उनके मन का गुबार निकाल दिया था,

मनिका का चेहरा भी लाल हो गया था.

'पता नहीं क्या सोच मैंने आपसे ऐसा कह दिया...आई एम रियली...' जयसिंह बोलते जा रहे थे.

'नो!' मनिका ने अपनी आवाज़ ऊँची कर कहा. जयसिंह ने उसकी इस प्रतिक्रिया पर अपना सिर उठाया और आगे कहने की कोशिश की, उन्हें लगा था की मनिका को उनके माफ़ी मांगने पर यकीन नहीं हुआ था, पर मनिका ने अपनी ऊँची आवाज़ से उनकी बात काट दी,

'पापा डोंट से सॉरी...माफ़ी तो मुझे आपसे माँगनी चाहिए. आप क्यूँ सॉरी बोल रहे हो...आफ्टर ऑल द थिंग्स यू डिड फॉर मी...मैंने आपकी एक बात पर ही इतना ओवर-रियेक्ट कर दिया. सो आई एम सॉरी पापा...प्लीज़ फोर्गिव मी..?’ मनिका ने एक ही साँस में बोलते हुए उनसे मिन्नत की.

जयसिंह के कुछ समझ नहीं आ रहा था. उन्होंने असमंजस भरी नज़रों से मनिका की आँखों में देखा और फिर कहने की कोशिश की,

'आपने ओवर-रियेक्ट नहीं किया था मणि. मैंने बात ही ऐसी कह दी थी के आप हर्ट हो गए. प्लीज़ लिसेन (सुनो) टू मी फॉर अ सेकंड.'

'नहीं पापा...मैं नहीं सुनूंगी...आपने मुझे हर्ट नहीं किया ओके? मैं ही आपको नहीं समझ सकी...आप ने मुझे एक फ्रेंड की तरह बल्कि उस से भी बढ़कर ट्रीट किया और इस ट्रिप पर इतना ख्याल रखा मेरा ताकि आई कैन एन्जॉय माय लाइफ जबकि आप मुझे वापस घर ले जा सकते थे...सबसे झूठ बोला सिर्फ मेरे लिए...और मैंने आपको एक छोटी सी बात के लिए इतना बुरा-बुरा कह दिया...सो आई शुड बी सेयिंग सॉरी...’मनिका जयसिंह की कोई बात सुनने को राज़ी नहीं थी.

'छोटी सी बात नहीं थी वो...' जयसिंह ने फिर कहने का प्रयास किया.

'पापा नो...डोंट से अ वर्ड...सिर्फ कपड़े लेने की ही तो बात थी...' मनिका ने फिर से उनकी बात काट दी. अब जयसिंह चुप हो गए. वे समझ नहीं पा रहे थे कि अचानक मनिका को यह क्या हो गया था और उसके तेवर बदल कैसे गए थे. वह ब्रा-पैंटी को अब सिर्फ कपड़े (ही तो थे) कह रही थी.

'पापा?' मनिका ने इस बार उन्हें दुलार कर कहा.

'मणि..?' जयसिंह ने उसकी बदली आवाज़ सुन सधी हुई सवालिया नज़र से उसे देखा.

'प्लीज़ बिलीव मीं...विश्वास करो मेरा, आई एम रियली सॉरी ना...आपकी कोई गलती नहीं थी.' मनिका उनके करीब आ खड़ी हो गई थी. बैठे हुए जयसिंह ने अपनी नज़र उठा उसकी आँखों में देखा और एक पल बाद धीमे से हाँ में हिला दिया.

'ओके मणि.' जयसिंह ने हौले से कहा.

मनिका ने उनकी बात सुन उनकी ओर अपना हाथ बढ़ाया और मुस्का दी, जयसिंह ने भी धीमे से मुस्कुरा कर थोड़े संकोच के साथ उसका हाथ थाम लिया जिसपर मनिका आगे बढ़ उनकी गोद में बैठ गई.

'आई मिस्ड टॉकिंग टू यू पापा...एंड आई एम रियली सॉरी.' मनिका ने प्यार से मुहँ बना कर उनसे अपनी माफ़ी का इज़हार एक बार फिर कर दिया 'प्लीज़ फोर्गिव मी?'

'आई मिस्ड टॉकिंग टू यू टू डार्लिंग.' जयसिंह ने कहा, पर मनिका ने उनके संबोधन पर कोई आपत्ति नहीं जताई थी 'प्रॉमिस करो कि फिर मुझसे कभी नाराज़ नहीं होओगी.' उसका बर्ताव देख वे उसे अपने से सटाते हुए आगे बोले.

'आई प्रॉमिस पापा...' मनिका ने मुस्कुरा कर हाँ भर दी थी और उधर जयसिंह का लंड खुश हो एक बार फिर उछल कर खड़ा हो गया.



***

'खाना खाया आपने?' मनिका ने बड़े प्यार से जयसिंह से पूछा था. वह अभी भी उनकी गोद में बैठी थी.

जयसिंह से बातें करते हुए उसे आधे घंटे से ज्यादा हो गया था जिसमें वह एक-दो बार और उन्हें सॉरी बोल चुकी थी. जयसिंह ने जब उसे पूछा कि क्या वह सचमुच उनसे बिल्कुल भी नाराज़ नहीं थी? तो उसने उन्हें बताया था कि किस तरह उसने रिएलाइज़ किया था कि वह गलत थी और उनसे माफ़ी मांगने के लिए ही लाइट ऑन कर बैठी थी. जयसिंह ने अपनी फिर से जगी हुई किस्मत को मन ही मन धन्यवाद दिया था 'अगर कहीं मैंने पहले माफ़ी मांग ली होती तो रांड हाथ से निकल जाती..’ जयसिंह अपने मन की आवाज़ को फिर से अँधेरे में धकेल चुके थे. 

मनिका ने उन्हें वह फ़िल्म के सीन वाली बात नहीं बताई थी जिस से की उसका हृदय-परिवर्तन शुरू हुआ था, बल्कि ऐसे जताया कि उसे अपने-आप ही अपनी गलती का एहसास हो गया था. जयसिंह उसकी पीठ सहलाते हुए उसकी बाते सुन अंदर ही अंदर आनंदित हो रहे थे. तभी मनिका को याद आया था कि उसने जयसिंह के लिए खाना भी ऑर्डर किया था जो वहाँ मेज पर रखा था और उसने उनसे वह सवाल पूछा था.

'नहीं खाया तो नहीं है.' जयसिंह ने कहा.

'मैंने आपके लिए ऑर्डर किया था पापा बट अब तक तो सब ठंडा हो चुका होगा.' मनिका ने खेद प्रकट किया.

'कोई बात नहीं. मुझे भूख नहीं है वैसे भी...’ वे बोले और फिर मन में सोचा 'पर साली तूने मुझे तो गरम कर दिया है...'

'क्यूँ नहीं है?' मनिका ने फिर सवाल किया. अभी-अभी उनकी सुलह हुई होने के कारण वह जयसिंह को थोड़ा ज्यादा ही प्यार दिखा रही थी.

'आप जो वापस आ गईं मेरे पास...' जयसिंह ने भी डायलाग दे मारा.

'हाहाहा...पापा मैं कोई खाने की चीज़ हूँ क्या?' मनिका ने हँसते हुए कहा.

जयसिंह ने कुछ ना कहते हुए उसे रहस्यमई अंदाज़ से मुस्का कर देखा भर था. वह भी मुस्का दी और आगे बोली,

'और ये आपने क्या मुझे आप-आप कहना शुरू कर दिया है, ऐसे मत बोलो मैं आपसे छोटी हूँ न...मुझे ऐसे फील हो रहा है जैसे मैं कोई आंटी हूँ.'

'हाहाहा अच्छा भई अब नहीं कहूँगा.' जयसिंह भी हंस पड़े और पूछा 'क्या तुमने खाया खाना?'

'नहीं पापा मुझे भी भूख नहीं लगी है.' मनिका ने उन्हीं का जवाब देते हुए कहा.

'क्यूँ?' जयसिंह ने भी सवाल कर दिया.

'आपसे बात करने की ख़ुशी से ही पेट भर गया.' उसने शरारत से कहा.

'हम्म तो ये बात है...' जयसिंह ने उसके गाल पर अपना दूसरा हाथ रख उसका चेहरा अपनी तरफ मोड़ कर कहा.

'हाँ पापा आई एक सो हैप्पी.' मनिका ने गहरी साँस भर के कहा था.

मनिका ने स्ट्रॉबेरी-फ्लेवर की लिप-ग्लॉस (एक तरह की लिपस्टिक) लगा रखी थी और उनके चेहरे इतने करीब थे की उन्हें उसके होठों की खुशबू आ रही थी जिसपर उनके लंड ने एक अंगड़ाई ली थी.

'पापा?' मनिका एक बार फिर सवाल करने से पहले बोली.

'ह्म्म्म...' जयसिंह उसके हिलते हुए गुलाबी होंठ देख मंत्रमुग्ध से बोले.

'आपको नींद नहीं आ रही?' उसने पूछा.

'तुम्हें आ रही लगती है...है ना?' जयसिंह मनिका के सवाल का आशय समझ गए थे.

'हाँ...आपको कैसे पता?' मनिका ने मानते हुए कहा.

'बस पता है...तुम्हारी जो बात है...' जयसिंह वापस अपनी फॉर्म में आ चुके थे.

'हाहा...दो दिन से अच्छे से नींद ही नहीं आई पापा...' मनिका बोली.

'क्यूँ?' जयसिंह ने फिर पूछा.

'आपको पता तो है...' मनिका ने उनकी तरफ भोली सी निगाहों से देख कर कहा.

'मुझे कैसे पता होगा?' जयसिंह ने अज्ञानता जाहिर की.

'आपसे लड़ाई कर ली थी इसलिए ना...' मनिका ने नज़र झुका अपना अपराध-बोध जाहिर किया.

जयसिंह ने भी उसे और नहीं सताया और कहा, 'चलो फिर सोते हैं.'

मनिका उनकी गोद से उतरते हुए बोली, 'ओके पापा' और बेड की तरफ चल दी. बेड पर चढ़ कर उसने देखा जयसिंह काउच पर ही सोने लगे हैं. 'पापा! आप क्या कर रहे हो?' मनिका ने बुरा सा मुहँ बनाते हुए कहा.

'अरे भई मणि अभी तुमने ही तो कहा सोने को...’ जयसिंह ने शरारती मुस्कुराहट बिखेर दी.

'पापा...यहाँ आ जाओ चुपचाप और मुझे मणि मत बुलाया करो ना...' मनिका ने उनींदी हो कहा.

'सोने के लिए बुला रही हो या ऑर्डर दे रही हो?' जयसिंह टस से मस न होते हुए बोले 'प्यार से बुलाओगी तो आऊँगा.'

'जाओ मैं नहीं बुलाती.' मनिका ने भी नखरा दिखाया.

जयसिंह ने कोई जवाब नहीं दिया और अपनी आँखें मूँद ली. मनिका कुछ पल उन्हें देखती रही फिर नखरा छोड़ मुस्काते हुए कहा,

'पापा?'

'हाँ मनिका?' जयसिंह ने झट से आँखें खोलते हुए कहा.

'पापा मेरे प्यारे पापा यहाँ बेड पर मेरे पास आ कर सो जाओ ना?' मनिका ने आँखे टिमटिमा कर कहा.

जयसिंह मुस्कुराते हुए उठ खड़े हुए और जा कर मनिका के साथ बिस्तर में घुस गए. जयसिंह ने बत्ती बुझा नाईट-लैंप जला दिया. उन दोनों ने एक दूसरे की तरफ करवट ले रखी थी. मनिका की आँखें अभी खुलीं थी और उसके चेहरे पर भी मुस्कान तैर रही थी, कमरे की उस मद्धम रौशनी में वे दोनों एक-दूसरे को निहारते हुए लेटे थे. जयसिंह ने अपना हाथ थोड़ा आगे किया जिसपर मनिका ने भी अपना हाथ आगे बढ़ा उनका हाथ थाम लिया और वे हौले-हौले उसके हथेली सहलाने लगे. कुछ देर बाद दोनों की आँख लग गई, दोनों अभी भी हाथ पकड़े हुए थे.


***

अगली सुबह जब मनिका उठी तो सब कुछ उसे बहुत अच्छा-अच्छा लग रहा था. आँख खुलने के कुछ पल बाद पास लेटे जयसिंह को देख उसे रात की बातें याद आईं और वह अपने पापा से फिर से दोस्ती हो जाने का ख्याल करते ही ख़ुशी से चहकी,

'पापा! आप अभी तक सो रहे हो? देखो आज मैं आपसे पहले उठ गई...'

'उन्ह्ह हम्म...' उनींदे से जयसिंह ने आँखें खोलीं, दो दिन से काउच पर आराम से न सो पाने की वजह से आज उन्हें काफी गहरी नींद आई थी.

'उठो ना पापा...क्या आलस बिखरा रहे हो...' मनिका ने उन्हें हिला कर कहा.

मनिका जयसिंह को उठा कर ही मानी थी, वे दोनों बाथरूम जा कर आ चुके थे और ब्रेकफ़ास्ट ऑर्डर कर दिया था. जयसिंह एक बार फिर अखबार में स्टॉक-मार्केट की ख़बरें देख रहे थे. मनिका भी उनके पास ही बैठी रुक-रुक कर उनसे बातें करते हुए एक मैगज़ीन के पन्ने पलट रही थी जब रूम-सर्विस आ गई. मनिका ने जा कर गेट खोला,

'गुड मॉर्निंग मैम.' उसके सामने वह पहले दिन वाला ही वेटर खड़ा था.

'म...म...मॉर्निंग' मनिका उसकी कुटिल मुस्कान भूली नहीं थी.

वेटर अंदर आ गया और उनका नाश्ता टेबल पर लगाने लगा. मनिका जयसिंह के पास बैठ गई थी पर अब उसकी नज़र फर्श पर टिकी थी. वेटर ने खाना लगा दिया और एक मंद सी मुस्कुराहट लिए खड़ा रहा, जयसिंह ने उसे टिप देते हुए फारिग कर दिया. उसने अदब से झुक कर जयसिंह से कहा था,

'थैंक्यू सर.' और फिर मनिका से मुख़ातिब हो बोला 'थैंक्यू मैम...' मनिका की नज़र उससे मिली थी, वेटर के चेहरे पर फिर वही मुस्कान थी.

वेटर के चले जाने के बाद मनिका ने जयसिंह से कहा,

'आई डोंट लाइक हिम.'

'क्या? हू?' जयसिंह ने अखबार से नजर उठा कर पूछा.

'अरे यही जो अभी गया है...वो वेटर...' मनिका ने बताया.

'हैं? क्यूँ क्या बात हुई...?’जयसिंह ने अखबार साइड में रखते हुए पूछा.

'ऐसे ही बस...अजीब सा आदमी है वो...' मनिका भी उन्हें क्या बताती.

'हाहाहा...पता नहीं क्या हो जाता है तुम्हें चलते-चलते, अब बताओ मैडम को वेटर भी पसंद का चाहिए.' जयसिंह हँस कर बोले.

'क्या है पापा डोंट मेक फन ऑफ़ मी. चलो ब्रेकफास्ट करते हैं.' मनिका ने मुहँ बनाते हुए कहा था.

जब जयसिंह और मनिका ने नाश्ता कर लिया था तो मनिका ने पूछा था कि आज वे क्या करने वाले हैं? जिस पर जयसिंह ने आज-आज रूम में ही रहकर रेस्ट करने की इच्छा जताई थी. मनिका भी मान गई और बोली कि वह नहाने जा रही है. जयसिंह ने उसे मुस्कुरा कर देखा भर था, उनके मन में ख़ुशी की लहर दौड़ गई थी.

जब मनिका नहा कर वापस निकली तो जयसिंह को काउच पर सुस्ताते पाया. दरअसल वे लेट कर नाटक कर रहे थे ताकि मनिका को नहा कर निकलते हुए देख सकें. मनिका ने बाहर आते ही उनकी और देखा था और उन्हें सोता समझ अपने सूटकेस के पास जा कर कपड़े रखने लगी.

'नहा ली मनिका?' जयसिंह ने थोड़ा सा सिर उठा उसकी तरफ देखते हुए कहा.

'हाँ पापा.' मनिका पीछे मुड़ बोली. जयसिंह ने पाया कि उसकी आवाज़ में पहले जैसी चहक नहीं थी.

कुछ देर बाद मनिका आ कर काउच के पास रखी सोफेनुमा कुर्सी पर बैठ गई. जयसिंह उसके चेहरे के भाव देख समझ गए कि वह कुछ कहना चाह रही है पर चुपचाप लेटे रहे और आँखें बंद कर फिर से सोने का नाटक करने लगे.

'आप नहीं ले रहे बाथ?' मनिका ने उनसे पूछा.

'म्मम्म...अभी थोड़ी देर में जाता हूँ... आज तो रूम पर ही हैं ना हम...' जयसिंह ने झूठा आलस दिखाया.

'पापा?' मनिका अपना तकियाकलाम संबोधन इस्तेमाल कर बोली.

'हम्म्?' जयसिंह ने नाटक जारी रखते हुए थोड़ी सी आँख खोल उसे देखा.

'पापा कल रात को...रात को आप शावर से नहाए थे क्या?' मनिका ने पूछा, उसकी नज़रें जमीन पर टिकीं थी और चेहरे पर लालिमा झलक रही थी.

मनिका ख़ुशी-ख़ुशी नहाने घुसी थी पर जैसे ही उसने शावर का पर्दा हटाया था उसे वह नज़र आया जिसने पिछली रात जयसिंह को साँप सुंघा दिया था, उसकी ब्रा और पैंटी जो नल पर लटक रही थी. मनिका एक बार तो सकपका गई, 'ये यहाँ कैसे पहुँची..?’ फिर उसे याद आया कि कल रात नहाने के बाद उसने उन्हें वहीँ छोड़ दिया था. वह उन्हें उठाने को हुई थी जब उसे याद आया कि जयसिंह ने रात को आकर बाथ लिया था 'ओह शिट...’ और इसलिए उसने बाहर निकल कर जयसिंह से टोह लेते हुए पूछा था कि क्या वे शावर में गए थे.

जब मनिका ने उनसे कहा था कि वह नहाने जा रही है तो जयसिंह को शावर में पड़े उसके अंतवस्त्रो का ख्याल आ गया था और वे मन ही मन प्रसन्न हो उठे थे. रात को अचानक मनिका के माफ़ी मांग लेने से यह बात उनके दीमाग से निकल गई थी. अब उन्होंने बिना कोई भाव चेहरे पर लाए कहा,

'नहीं तो, बाथटब यूज़ किया था मैंने तो...क्यूँ क्या हुआ?'

'ओह...अच्छा. कुछ नहीं पापा ऐसे ही पूछ रही थी.' मनिका ने राहत भरी साँस खींची. 'पापा ने कुछ नहीं देखा थैंक गॉड...’ उसने मन ही मन सोचा.

'ऐसे ही?' जयसिंह ने सवाल पर थोड़ा जोर दे पूछा.

'हाँ पापा.' मनिका ने दोहराया.

'अच्छा भई मत बताओ...' जयसिंह ने खड़े होते हुए कहा और मनिका की तरफ देखा 'मैं नहा कर आता हूँ चलो...'

'ओके पापा.' मनिका ने उनकी आधी बात का ही जवाब दिया.

जयसिंह खड़े हो जिस कुर्सी पर वह बैठी थी उसके पास से गुजरते हुए रुक गए और मनिका के कँधे पर हाथ रखा,

'मनिका?'

'हम्म...हाँ पापा...?' मनिका अब पहले सी चहक कर बोली.

जयसिंह ने अपने चेहरे पर एक शरारत भरी मुस्कान लाते हुए कहा 'कपड़े ही तो हैं...हैं ना?' और आगे बढ़ नहाने चले गए.

जयसिंह नहाने घुस गए, पर वे मनिका के मन में शरमो-हया के ज्वार उठा गए थे. उन्होंने पिछली रात की उसी की कही बात को इस तरह से कह दिया था कि मनिका न चाहकर भी मुस्का उठी थी 'हाआआआ...पापा ने देख लीं मेरी अंडरवियर..! हाय राम...’मनिका ने अपना चेहरा दोनों हाथों से छुपा कर सोचा 'और तो और कैसे बन रहे थे...मैंने तो बाथटब यूज़ किया था...झूठे ना हों तो...' मनिका शरम से कुर्सी में गड़ी जा रही थी 'कल तक तो मैंने इतना बखेड़ा खड़ा किया हुआ था और अब अपनी ही बेवकूफी से बेइज्जती हो गई है...क्या सोचा होगा पापा ने भी...कि कैसी बेशरम हूँ मैं... हाय फूटी किस्मत...'

थोड़ी देर बाद जयसिंह नहा कर निकल आए. मनिका, जो कुर्सी पर ही बैठी थी, ने उठते हुए कहा,

'पापा...आई एम् सो एमबैरेस्ड...'

जयसिंह ने उसकी तरफ झूठे असमंजस से देखा. इस पर मनिका ने आगे सफाई पेश की,

'मैं भूल गई थी...कल जल्दी में...' मनिका अटकते हुए इतना ही कह पाई.

अब जयसिंह ने सीरियस सा अंदाज इख़्तियार कर लिया और उसके पास आ गए 'मनिका तुम इतना क्या सोचने लगी? कल रात तो बड़ा बड़प्पन दिखा रहीं थी; कि कपड़े ही तो हैं, अब ये अचानक क्या हुआ?'

मनिका से कुछ पल कुछ कहते ना बना पर जयसिंह के उसे ताकते रहने पर उसने धीरे से कहा, 'हाँ आई क्नॉ पापा...पर शरम तो आती ही है ना...आपने भी क्या सोचा होगा...कि कैसी बेशरम हूँ मैं...'

'ओह गॉड मनिका ये तुम क्या बोले जा रही हो..? मैं ऐसा क्यूँ सोचूँगा भला?' जयसिंह अब अचरज जता रहे थे 'कल जब तुमने मुझे अपना सॉरी बोलने का रीज़न दिया था तब तक मैं अपने आप को ही गलत मान रहा था...पर जब तुमने कहा कि अंडरवियर भी कपड़े ही तो होते हैं तो मुझे भी तुम्हारी बात की सच्चाई का इल्म हुआ, एवरीवन हैस अंडरवियर इसमें क्या एमबैरेसमेंट?...लेकिन अब तुम खुद ही अपनी बात काट रही हो...इस मतलब से तो फिर मैं ही गलत था...’जयसिंह ने मनिका को भावनाओं और तर्क के जाल में फंसाते हुए आगे कहा था.

'नो पापा ऐसा नहीं है...आप सही कह रहे हो बट आप भी समझो ना...अपने पापा से शरम नहीं आएगी क्या? इसीलिए इट्स सो एमबैरेसिंग फॉर मी...’मनिका ने सकुचाते हुए दलील दी.

'ओके मनिका...आई मीन मणि...इट्स ओके...' जयसिंह ने अपना ब्रह्मास्त्र चलाया.

मनिका की आनाकानी पर ब्रेक लग गया था 'पापा ऐसे तो मत कहो...'

'तो कैसे कहूँ?' जयसिंह ने जरा रूखी आवाज़ में कहा.

'प्लीज मेरी बात समझो ना...प्लीज?' मनिका ने मिन्नत की.

जयसिंह समझ गए थे कि अब उनका सामना अपने प्लान के सबसे आखिरी और जटिल हिस्से से हो रहा था. मनिका भले ही उनके साथ कितनी भी फ्रैंक हो चुकी थी पर अभी भी उसके मन में सामाज के नियम-कायदों का एहसास मजबूत था और अगर उन्होंने जबरदस्ती उसे बदलने की कोशिश की तो उनको कुएँ के पास आकर भी प्यासा लौटना पड़ सकता है. सो उन्होंने अभी के लिए पीछे हटना ही उचित समझा,

'ओके मनिका आई अंडरस्टैंड...पर जो हो गया सो हो गया. मैंने उस बात को बिल्कुल माइंड नहीं किया और बस इतना चाहता हूँ कि तुम भी उस पर इतनी फ़िक्र ना करो...कैन यू डू थैट?'

'ओके पापा...' मनिका ने हौले से कहा.

'देन गिव मी अ स्माइल...ऐसे उदासी नहीं चलेगी...' जयसिंह ने मुस्काते हुए उसे उकसाया.

'हेहे...पापा. मैं कहाँ उदास हूँ...’कह मनिका हँस दी.

'गुड़ गर्ल.' जयसिंह ने उसे स्माइल देते देख कहा था और फिर अपने सूटकेस की तरफ चले गए थे.

'हाय...पापा तो लिटरली कुछ ज्यादा ही फ्रैंक हैं...इतना तो मैंने भी नहीं सोचा था. मैंने तो उन्हें मनाने के लिए कहा था बट उन्होंने तो मेरी बात का कुछ और ही मतलब निकाल लिया...अफ्टेरॉल वो हैं तो मेरे पापा ही, उन्हें नहीं तो मुझे तो लाज आएगी ही...बट पापा तो इतना कूल एक्ट कर रहें हैं और मजाक में ले रहे हैं...और यहाँ मैं शरम से मरी जा रही हूँ...क्यूँकि बात सिर्फ अंडरवियर की नहीं है, आई वियर थोंगस् (छोटी और सेक्सी पैंटी)...इसलिए और ज्यादा एमबैरेस हो रही हूँ...’जयसिंह को स्माइल दे कर भी मनिका अपनी दुविधा में फंसी बैठी थी.

'मनिका जरा रूम-सर्विस पर कॉल करके लॉन्ड्री वाले को बुलाना. मेरे सारे कपड़े धोने वाले हो रहे हैं.' जयसिंह की आवाज़ सुन मनिका का ध्यान टूटा.

जयसिंह और मनिका को दिल्ली आए आज बारह दिन हो चले थे और उनके साथ लाए कपड़े एक-दो बार पहन लेने और दिल्ली के प्रदूषण भरे वातावरण के कारण अब धुलाई योग्य हो गए थे. मनिका को भी अपनी कुछ पोशाकें धुलने देने का ख्याल आया था. सो उसने कुर्सी से उठ, अपने मन की उलझन को एक ओर कर, जयसिंह के कहे अनुसार लॉन्ड्री वाले को बुलाने के लिए कॉल किया.

थोड़ी देर में लॉन्ड्री से एक लड़का आया और उनके कपड़े अगली शाम तक ड्राई-क्लीन कर वापस देने का बोल ले गया. अब जयसिंह और मनिका को बाकी का दिन साथ ही बिताना था और अभी तो उनका ब्रेकफास्ट भी नहीं हुआ था. जयसिंह ने सजेस्ट किया क़ि वे नीचे रेस्टॉरेंट में जा कर नाश्ता करें और मनिका को लेकर नीचे चल दिए.

रेस्टॉरेंट में जा उन्होंने ऑर्डर किया और बैठे बतियाने लगे. जयसिंह ने मनिका को याद दिलाया क़ि उसके इंटरव्यू का दिन करीब आ चुका था और उसे थोड़ी तैयारी कर लेनी चाहिए जिस पर मनिका बुरा मानते हुए बोली थी क़ि वे उसकी इंटेलिजेंस की कोई कद्र ही नहीं करते और उसे सब आता है. दरअसल मनिका के मामा कॉलेज में प्रोफेसर थे और उन्होंने उसे बहुत अच्छे से तैयारी करवाई थी सो मनिका का ओवर-कॉन्फिडेंट होना लाजमी था.

खैर इस तरह बातें करते हुए अब उन्हें एहसास हुआ कि उनका वापस घर जाने का समय भी आने वाला था. मनिका और जयसिंह की पिछली रात ही फिर से बढ़ी आत्मीयता और सुबह कमरे में हुई बातचीत ने मनिका को इमोशनली थोड़ा सेंसिटिव कर दिया था और घर वापस जाने की बात आने पर उसने वहाँ बैठे-बैठे जयसिंह से अपने मन की कुछ बातें शेयर कर दी थी, कि कैसे उसे उनके इतने खुले विचारों पर अचरज होता है और उनका उसे एक बच्चे की तरह नहीं बल्कि एक समझदार एडल्ट की तरह ट्रीट करना कितना अच्छा लगता है. उसने उन्हें यह भी बताया कि कैसे उसने सोचा था कि काश घर वापस जाने के बाद भी उनके बीच का ये बॉन्ड न टूटे लेकिन वह ये भी समझती थी कि घर जा कर उनके बीच कुछ दूरी आ ही जाएगी क्यूँकि वहाँ का माहौल अलग था व वे अपनी-अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या में लगें होंगे.

मन ही मन खुश होते जयसिंह ने सोचा था 'साली कुतिया इतनी भोली भी नहीं है जितना मैंने समझा था. बस इसपर यह दोस्ती का भूत इसी तरह चढ़ा रहे तो आखिरी बाजी भी जीती जा सकती है.' और फिर उसे आश्वाशन दिया था कि वे बिल्कुल नहीं बदलेंगे और उनके बीच का यह दोस्ती का रिश्ता नहीं टूटने देंगे बशर्ते कि वह भी उन पर भरोसा बनाए रखे.
इसपर मनिका ने बहुत खुश हो कर उन्हें आश्वस्त किया था कि वह भी यही चाहती थी. जयसिंह ने उसे एक और दफा अपनी मम्मी के सामने थोड़ा सोच-समझ कर रहने की हिदायत दी थी. उनका वही पुराना तर्क था कि उसकी माँ मधु सोचती है कि उन्होंने अपने लाड़-प्यार से मनिका को बिगाड़ दिया था, जिसपर मनिका ने भी उनसे हाँ में हाँ मिलाई थी. उनके यूँ बातें करते-करते उनका खाना भी आ गया था.

जयसिंह ब्रेकफास्ट के बाद मनिका को लेकर कुछ देर हॉटेल के गार्डन में घूमने निकल गए थे. एक बार फिर मनिका अब उनकी बाहँ थामे चल रही थी. जब वे गार्डन में घूम कर वापस लौट रहे थे तो मनिका की नज़र एक तरफ लगे बोर्ड पर गई. जिसपर हॉटेल के विभिन्न हिस्सों और फैसिलिटीज़ के नाम और डायरेक्शन लिखे हुए थे. उनमें से एक नाम ने उसका ध्यान आकर्षित किया था 'ब्यूटी एंड स्पा'.

एक-दो दिन से नहाते वक़्त मनिका ने पाया था कि उसके बदन पर फिर से वैक्सिंग करने की जरुरत थी, उसके बदन पर हलके रोएँ आने लगे थे. मनिका ने जवानी की देहलीज पर कदम रखने के साथ ही अपने बदन के सौंदर्य का अच्छे से ख्याल रखना शुरू कर दिया था और इस मामले में उसने कभी भी लापरवाही नहीं बरती थी. घर पर तो उसके पास अपना वैक्सिंग किट था लेकिन यहाँ दिल्ली में अपने पिता के साथ सिर्फ दो दिन का कार्यक्रम बना कर आई होने की वजह से वो उसे लेकर नहीं आई थी. फिर जयसिंह के साथ रूम शेयर करते हुए वह वैसे भी उसका इस्तेमाल नहीं कर सकती थी. सो जब उसने वह साईन-बोर्ड देखा तो जयसिंह से बोली,

'पापा आज तो हम हॉटेल में ही हैं ना?'

'हाँ हैं तो...कहीं बाहर घूमने का मन है तुम्हारा?' जयसिंह ने पूछा.

'नहीं पापा...वो मैं इसलिए पूछ रही थी कि वहाँ पीछे -ब्यूटी एंड स्पा- का बोर्ड लगा था और मैं सोच रही थी कि हेयर-कट और फेशियल करा लूँ.' मनिका जयसिंह से वैक्सिंग का तो कैसे कहती सो उसने बाल कटवाने की बात कही थी, वैसे दोनों ही स्थितियों में कटने तो बाल ही थे.

'हाँ तो करा लो न...' जयसिंह ने कहा.

सो मनिका जयसिंह से उनका क्रेडिट-कार्ड ले उस सैलून में चल दी. जयसिंह, जो उसे गेट तक छोड़ने साथ आए थे, वहाँ से मुड़ कर अपने कमरे में चले गए और मनिका के वापस आने का इंतज़ार करने लगे. उधर मनिका ने सैलून के काउंटर पर जा वैक्सिंग, हेयर-कटिंग और ब्यूटी-फेशियल के लिए पूछा था, काउंटर मैनेज कर रही लड़की ने एक ब्यूटिशियन को बुला दिया था जो मनिका को अंदर ले गई थी.
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जयसिंह कमरे में आ बेड पर लेट गए थे. मनिका ने उनसे कहा था कि उसे आने में थोड़ा वक़्त लग जाएगा सो उन्होंने सोचा कि वे थोड़ी देर सुस्ता लेंगे. वैसे भी टी.वी. देखने का उनका मन नहीं था और अब तो बस उनको मनिका को लेकर ख्याली पुलाव पकाने में ही मजा आता था. सो वे बिस्तर पर लेट मनिका की कही बातों और अपने आगे के क़दमों के बारे में सोच रहे थे. यह सब सोचते-सोचते वे उत्तेजित होने लगे और उनका लंड खड़ा हो गया. उन्होंने उसे हौले से दबा कर करवट बदली, सामने बेड के पास नीचे मनिका का सूटकेस पड़ा था. जयसिंह बेड से उठ खड़े हुए. 
वे उठ कर मनिका के सूटकेस के पास पहुँचे और उसे उठा कर बेड पर रख खोल लिया. सूटकेस में नंबर-लॉक सिस्टम था और मनिका ने उसे लॉक नहीं कर रखा था. जयसिंह के दिल की धड़कने बढ़ गईं थी. सूटकेस खोलते ही उन्हें मनिका के कपड़ों में से उसके परफ्यूम और तन से आने वाली भीनी खुशबू का एहसास हुआ था. वे सूटकेस में उसके कपड़े टटोलने लगे, लेकिन जो वे ढूँढ़ रहे थे वो उन्हें नहीं मिला.

वे थोड़े असमंजस में पड़ गए, आखिर उन्हें होना तो यहीं चाहिए था. अब उन्होंने जरा ध्यान से सूटकेस में रखी चीज़ें चेक करना शुरू की, उसमें मनिका के कुछ कपड़े थे जो उन्होंने उसे अभी तक पहने नहीं देखा था, बाकी तो आज उसने उनके साथ ही लॉन्ड्री में दिए ही थे. एक दो डिब्बों में झुमके-रिबन-बालों की क्लिप-बैंड इत्यादि सामान था. एक छोटा मेकअप किट भी उनके हाथ लगा. फिर उन्होंने सूटकेस के ऊपर वाले पार्टीशन में देखना शुरू किया. वहाँ भी मनिका के कुछ कपड़े और एक कपड़े व नायलॉन से बना किट रखा था. जयसिंह ने पाया कि उसने पहली रात जो शॉर्ट्स और गन्जी पहनी थी वे वहाँ रखे हुए थे. पहली रात के मनिका के हुस्न के दीदार की याद आते ही उनका कुछ शांत होता लंड फिर से उछल पड़ा था. अब उन्होंने वह किट बाहर निकाला, उसके साइड में ज़िप लगी हुई थी और वह एक बक्से की तरह खुलता था. जयसिंह ने उसे खोला और उन्हें अपने मन की मुराद मिल गई, उसमें मनिका के अंतवस्त्र थे. उस किट के अंदर लगे एक लेबल से जयसिंह को पता चला कि वह एक लॉनजुरे कैरिंग-केस था. जिसमे ब्रा रखने के लिए अलग से स्तननुमा जगह बनी हुई थी ताकि उनके कप मुड़े ना, और साइड में छोटी-छोटी पॉकेट्स थीं जिनमें मनिका ने बड़े करीने से अपनी पैंटीज़ समेट कर डाल रखीं थी.

'कैसी-कैसी चीज़ें है इस रंडी के पास देखो जरा...ब्रा और कच्छियों के लिए भी अलग से केस...वाह'.

अपनी जवान बेटी के अंतवस्त्र हाथ में लेने का मौक़ा जयसिंह एक बार गँवा चुके थे लेकिन इस बार उन्होंने एक पल भी सोचे बिना मनिका की ब्रा-पैंटीयों को निकाल-निकाल कर देखना शुरू किया. कुल मिलाकर उसमे तीन जोड़ी रंग-बिरंगी ब्रा-पैंटीयाँ थीं (ब्रा: पर्पल, गुलाबी और सफ़ेद, पैंटी: पर्पल, हरी और स्काई-ब्लू). मनिका के ये सभी अंतवस्त्र बेहद छोटे-छोटे थे. जयसिंह मनिका की छोटी सी और कोमल पर्पल पैंटी को अपने हाथ में लेकर देख रहे थे. उसकी तीनों ही पैंटी थोंग स्टाइल की थीं 'और एक गुलाबी वाली जो चिनाल ने पहन रखी होगी' उन्होंने सोचा था. जयसिंह की पैंट में अब तक उनका लंड उनके अंडरवियर में छेद करने पर उतारू हो चुका था. जयसिंह रह नहीं सके और मनिका की पैंटी अपने नाक के पास ले जा कर उसकी गंध ली थी. पैंटी धुली हुई थी लेकिन फिर भी उसमें से एक हल्की मादा गंध आ रही थी 'आह्ह्ह...’ एक जोरदार आह भर जयसिंह ने अपनी पैंट की ज़िप खोल अंडरवियर के अँधेरे से अपने लंड को आज़ाद किया. लंड उछल कर बाहर आ उनके हाथ से टकराया था और 'थप्प..’की आवाज़ आई थी. जयसिंह ने नीचे देखा और अपने काले घनघोर लंड पर अपनी बेटी की छोटी सी पैंटी लपेट बेड पर पीछे की ओर गिर पड़े.

जयसिंह बेसुध से हो गए थे. पैंटी का कोमल कपड़ा उनके खड़े लंड को गुदगुदा कर और उत्तेजित कर रहा था और उनका लंड फ़ुफ़कारें मार-मार हिल रहा था, उनके दोनों अंड-कोषों ने भी अपने अंदर भरी आग को बाहर निकालने की कोशिशें तेज़ कर दीं थी और दर्द से बिलबिला रहे थे. लेकिन आनंद की चरम् सीमा पर पहुँचने से पहले ही जयसिंह को अपनी भीष्म-प्रतिज्ञा याद आ गई थी, कि वे मुठ नहीं मारेंगे, और उन्होंने किसी तरह अपने आप को संभाल लंड पर से हाथ हटा लिया.

कुछ देर हाँफते हुए पड़े रहने के बाद जयसिंह ने मनिका की पैंटी अपने लंड से उतारी और उसके सभी अंतवस्त्रों के साथ वापस पहले जैसे ही जँचा कर रख दीं. अब उनकी नज़र किट में ही रखे एक काले लिफाफे पर गईं. कौतुहलवश उन्होने उसे भी खोला, उसमें लड़कियोँ द्वारा पीरियड्स में लगाए जानेवाले पैड्स थे और दो कॉटन की नॉर्मल अंडरवियर भी रखी थी जिनका इस्तेमाल भी वे समझ गए 'साली की उन छोटी-छोटी पैंटीज़ में तो पैड टिकते नहीं होंगे...हम्म तो पीरियड्स का सामान अभी तक पैक पड़ा है...पर आज बारह दिन हमें यहाँ आए हो चुके हैं मतलब वक्त करीब है.' जयसिंह जानते थे कि पीरियड्स के वक्त लड़कियों के मन की स्थिति थोड़ी बदल जाती हैं और वे इमोशनल जल्दी हों जाने की प्रवृति में आ जातीं है. जयसिंह के खड़े लंड के मुहाने पर गीलापन आने लगा था.

मनिका के पास कमरे में घुसने के लिए दूसरा की-कार्ड था और उन्हें आए हुए थोड़ी देर हो चुकी थी. उसके लौट कर आने का अंदेशा होने पर उन्होंने धीरे-धीरे सारा सामान वापिस रखना शुरू किया. सामान रख जब वे सूटकेस बंद करने लगे थे तो उनकी नज़र एक बार फिर मनिका के मेकअप किट पर पड़ी. किट तो बंद था परन्तु उसके पास ही मनिका का लिप-ग्लॉस, जो वह रोज लगाया करती थी, बाहर ही रखा था. जयसिंह ने उसे उठाया और ढक्कन खोल उसकी खुशबू ले कर देखा, बिल्कुल वही खुशबू थी जो उन्होंने मनिका के होंठों से आते हुए महसूस की थी. जयसिंह ने अपने लंड के मुहाने पर आए पानी को अपने हाथ के अंगूठे पर लगाया और मनिका के लिप-ग्लॉस के ऊपर-ऊपर फैला कर ढक्कन लगा दिया. लिप-ग्लॉस और प्री-क्म दोनों में ही चिकनापन होने की वजह से किसी को भी देखने पर कोई अंतर पता नहीं लग सकता था. उन्होंने जल्दी से सूटकेस बन्द कर जस का तस रखा और फिर से बेड पर पीठ के बल गिर पड़े, अपनी उस हरकत ने उन्हें उत्तेजना से निढ़ाल कर दिया था.

कुछ पल बाद उनका अपने-आप पर कुछ काबू हुआ और उन्होंने उठ कर बाथरूम में जा अपने हाथ धोए, उनका लंड अभी भी बाहर लटक रहा था, जयसिंह ने पंजो के बल खड़े हो अपना लंड आगे कर वॉशबेसिन के नल के नीचे किया और उसे भी ठंडे पानी की धार से शांत करने लग गए. तभी कमरे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ हुई. जयसिंह हड़बड़ा गए, बाथरूम का दरवाज़ा खुला ही था, और जल्दी से अपना लंड अंदर ठूँस ज़िप बंद कर के हाथ धोए.

'पापा? क्या कर रहे हो? ‘मनिका की आवाज़ आई.

'कुछ नहीं बस थोड़ा आलस आ रहा था तो हाथ-मुहँ धो रहा था. आ गईं तुम?' जयसिंह ने कहा.

'हाँ पापा...आ गई हूँ तभी तो आवाज़ आ रही है मेरी...' मनिका ने उनकी खिल्ली उड़ाने के अंदाज़ में कहा.

'हाहाहा... हाँ भई मान लिया...' जयसिंह बाथरूम से बाहर आते हुए बोले थे. मनिका बेड के पास अपना मोबाइल चार्ज लगा रही थी, उनकी आहट सुन वह पलटी और एक बार फिर जयसिंह के होश फाख्ता हो गए.



***

'आप कौन हैं मिस?' जयसिंह ने अचँभे से कहा.

'हीहीहाहाहा...पापा! क्या है आपको...इट्स मी ना...’ मनिका ने कुछ हँसते कुछ लजाते हुए कहा.

जयसिंह वैसे तो अपने ज्यादातर इमोशन मनिका से दिखावे के लिए ही व्यक्त करते थे पर अपने सामने खड़ी खूबसूरत लड़की को देख वे आश्चर्यचकित रह गए थे. मनिका की खूबसूरती के कायल जयसिंह ने देखा कि ब्यूटी-सैलून जाने के बाद तो उसका काया-पलट ही हो गया था. मनिका ने बालों में स्टेप-कट करवाया था जिससे उसके बाल किसी मॉडल से प्रतीत हो रहे थे. उसका चेहरा भी मेकअप से दमक रहा था और गोरे-गोरे गालों पर लालिमा फैली थी. मनिका की आँखों को काले मस्कारा ने और अधिक मनमोहक बना दिया था व उसके होंठों पर एक गाजरी रंग की स्पार्कल-लिपस्टिक लगी थी जिससे वे काम-रस से भरे हुए जान पड़ रहे थे, जब वे उसे तकते रहे और कुछ नहीं बोले तो मनिका ने खीखियाते हुए फिर से कहा,

'पापा! स्टॉप इट ना...’ वह तो बस मस्ती-मस्ती में हल्का सा मेकअप करवा आई थी और जयसिंह का रिएक्शन देख उसे लग रहा था कि वे उसकी टाँग खींच उसे सताने के लिए ऐसा कर रहे थे.

'पहले यह तो बता दो कि आप हैं कौन?' जयसिंह ने भी जरा मुस्कुरा कर मजाक करने के अंदाज़ से कहा.

कुछ देर तक यूँ ही उन दोनों के बीच खींच-तान चलती रही, उसकी खूबसूरती को निहारने के मारे जयसिंह रह-रह कर उसे देख मुस्काए जा रहे थे और उसके उनकी तरफ देखने पर कोई कमेंट कर उसे चिढ़ा रहे थे. आखिर मनिका को भी थोड़ी लाज आने लगी और वह बाथरूम में जा कर अपना मुहँ धो कर मेकअप साफ़ कर आई.

'अरे वो लड़की कहाँ गई जो अभी यहाँ बैठी थी?' जयसिंह ने मनिका को मेकअप उतारने के बाद देखते हुए पूछा.

'पापा आप फिर चालू हो गए...' मनिका हँसते हुए बोली.

'अरे भई इतनी सुन्दर लड़की के साथ बैठा था अभी मैं कि क्या बताऊँ?' जयसिंह ने उसे देखते हुए मुस्का कर कहा, 'पर पता नहीं कहाँ गई उठ कर अभी तुम्हारे आने से पहले...'

'हाहाहा पापा...भाग गई वो मुझे देख...' मनिका हँसते हुए बोली.

'ओह...मेरा तो दिल ही टूट गया फिर...' जयसिंह ने झूठा दुःख प्रकट किया.

'ऊऊऊ...क्यों पापा आपकी गर्लफ्रेंड थी क्या वो?' मनिका मजाक करते हुए बोली, जयसिंह को एक बार फिर मौके पर चौका मारने का चाँस मिल गया था.

'मेरी किस्मत में कहाँ ऐसी गर्लफ्रेंड...' जयसिंह ने मगर के आँसू बहाए.

'हाहाहा पापा...गर्लफ्रेंड चाहिए आपको? मम्मी को बता दूँ? बहुत पिटोगे देखना...’मनिका ने ठहाका लगाते हुए कहा था. उसे भी जयसिंह की टांग खिंचाई का मौका जो मिला था.

पर जयसिंह भी उसके पिता यूँ ही नहीं थे, 'बता दो भई...मेरा क्या है तुम ही फँसोगी.' जयसिंह ने शरारत से कहा.

'हैं? वो कैसे?' मनिका ने अचरज जताया.

'तुम ही तो कह रहीं थी उस दिन कि तुम्हारी सहेलियाँ मुझे तुम्हारा बॉयफ्रेंड कहती हैं.' जयसिंह बोले.

'हाँ...ओ शिट...पापा! कितने खराब हो आप...हमेशा मुझे हरा देते हो...’ मनिका ने मुहँ बनाकर पाँव पटकते हुए नखरा किया.

'हाहाहा...' जयसिंह हँसते हुए बैठे रहे.

'और वो तो मेरी फ्रेंड्स कहतीं है मैं कोई सच्ची में आपकी गर्लफ्रेंड थोड़े ही ना हूँ...' मनिका ने नाराजगी दिखाते हुए उनके पास बैठते हुए कहा.

जयसिंह बस मुस्का दिए और उसकी तरफ हाथ बढ़ा दूसरे से अपनी जांघ थपथपा उसे गोद में आने का इशारा किया.

'जाओ मैं नहीं आती...गंदे हो आप...' मनिका नखरे कर ही थी.

'अरे भई सॉरी अब नहीं हँसता तुम पर...बस...' जयसिंह के चेहरे पर अभी भी शरारत थी.

'आप हँसोगे देख लेना...मुझे पता है ना...' मनिका ने उन्हें अविश्वास से देखते हुए कहा.

'अरे भई अभी तो नहीं हँस रहा ना...' जयसिंह भी कहाँ मानने वाले थे, 'सो अभी तो आ जाओ...' उन्होंने फिर अपनी जांघ पर हाथ रखते हुए उसे अपनी गोद में बुलाया.

'देख लेना पापा अगर आपने मुझे फिर तंग किया तो आपसे कभी बात नहीं करुँगी...' मनिका ने शिकायत भरे लहजे से कहा था पर उठ कर उनकी गोद में आ गई थी.

'लेकिन तुमने तो मुझसे नाराज ना होने का प्रॉमिस किया था न?' जयसिंह ने उसका मुहँ अपनी तरफ करते हुए पूछा.

'वो...वो तो मैंने ऐसे ही आपको उल्लू बनाने के लिए कर दिया था.' मनिका के चेहरे पर भी शरारती मुस्कान लौट आई थी.

'अच्छा ये बात थी...' जयसिंह ने मुस्का कर कहा और अपने दोनों हाथ मनिका के पेट पर ले जा उसे गुदगुदा दिया.

'आह क्या कच्चा बदन है...कुतिया हर वक़्त महकती भी रहती है...आह...' उन्होंने मनिका के जवान जिस्म पर इस तरह हाथ सेंकते हुए सोचा था, मनिका भी हिल-डुल रही थी सो उनका चेहरा उसके बालों में आ गया था.

'ईईईईईई...हाहाहा...पापाआआअ...नहीं नाराज होती...ईई...' मनिका उनकी गोद में उछलती हुई हँस रही थी.

जयसिंह ने उसे एक दो बार और गुदगुदा कर छोड़ दिया था क्यूंकि उसके इस तरह हिलने से उनकी पैंट में भी तूफ़ान उठने लगा था. मनिका अब खिलखिलाती हुई उनके साथ लग बैठी थी, उसकी साँस जरा फूली हुई थी. पहली बार उसका पूरा भार जयसिंह के शरीर पर था. जयसिंह अपने बदन पर इस तरह उसके यौवन भरे जिस्म का एहसास पाकर अपनी उत्तेजना को बड़ी मुस्किल से कंट्रोल कर पा रहे थे.

कुछ देर बाद जयसिंह की मुश्किल मनिका ने हल कर दी जब उसने उनकी गोद से उठते हुए उनसे भूख लगी होने का कहा था. सो आज एक बार फिर से वे नीचे रेस्टोरेंट में खाना खाने को चले गए थे.


***

खाना खाने के बाद मनिका और जयसिंह वापस अपने कमरे में न आ हॉटेल गेस्ट-एक्टिविटीज एरिया में गए. दोपहर का वक्त होने की वजह से वहाँ ज्यादा जने नहीं थे. जयसिंह मनिका को ले पूल टेबल के पास पहुँचे, वहाँ दो कपल मस्ती करते हुए पूल खेल रहे थे. जयसिंह ने जा कर एक क्यू-स्टिक (जिससे पूल-स्नूकर खेलते हैं) उठा ली थी पर दूसरों को खेलते देख थोड़े अचकचाकर खड़े हो गए थे. लेकिन वे लोग काफी फ्रेंडली थे और उन्हें देख उनसे भी ज्वाइन करने को कहा और बताया कि वे तो बस लेडीज को खुश करने के लिए वहाँ मसखरी कर रहे थे और अगर वे चाहें तो सीरियसली गेम लगा लेते हैं. इस पर जयसिंह ने भी हाँ कह दिया.

उन्होंने अपने-आप को इंट्रोड्यूस किया था तो जयसिंह ने भी अपना परिचय दिया 'आई एम जयसिंह एंड दिस इस मनिका..’ और हाथ मिलाया था. उन्होंने यह नहीं बताया था कि मनिका उनकी बेटी है.

वे लोग वेजर (शर्त) लगा कर खेलने लगे. तीनों को उनके साथ आईं लडकियाँ सपोर्ट कर रही थी और वहाँ हँसी और मस्ती का माहौल बन गया था.

सामने वाले लौंडे खेलने में माहिर थे और जल्द ही जयसिंह ने अपने-आप को हारते हुए पाया, लेकिन जयसिंह ने भी हार नहीं मानी थी और शर्त की बाजी बढ़ाते चले जा रहे थे, आखिर एक वक्त आया जब जयसिंह ने ५०००० रूपए का दाँव लगाने का चैलेंज कर डाला. सामने वाले कपल्स के चेहरे पर हैरानी का भाव आ गया था. पर आपस में सलाह कर वे उनकी बात मान गए और खेलने लगे. इस बार गेम की इंटेंसिटी बढ़ी हुई थी और हर स्ट्राइक (चाल) के बाद चिल्लम-चिल्ली मची हुई थी. देखनेवाले कुछ और लोग भी पूल-टेबल के आस-पास आ जमे थे. पर अंत में जयसिंह वह बाजी भी हार गए, माहौल थोड़ा शांत हुआ, जयसिंह ने भी हँस कर अपनी हार स्वीकार कर ली थी.

अब दूसरों ने उन्हें ड्रिंक्स का ऑफर किया जिसे उन्होंने मान लिया. तीनों लड़कियों को वहीँ छोड़ वे लोग बार से ड्रिंक्स लेने चले गए थे, लड़कियों ने अपने लिए मोक्टेल्स (बिना शराब की ड्रिंक्स) मंगवाई थी.

मर्दों के चले जाने के बाद तीनों लडकियाँ बतियाने लगीं, बातों-बातों में सामनेवाली लड़कियों ने मनिका से कहा था,
'ऑब्वियस्ली यू गायस हैव अ लॉट ऑफ़ मनी...'

जब मनिका ने उनसे ऐसा कहने की वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि जिस तरह से वे लोग शर्त का अमाउंट बढ़ाते जा रहे थे उस से उन्हें ऐसा लगा था और जब जयसिंह ने आखिरी बार पचास हजार का दाँव खेला था तो उन्होंने सिर्फ इसीलिए हाँ भरी थी के वे लोग ऑलरेडी सेवेंटी थाउजेंड जीत कर प्लस में चल रहे थे. वे लोग तो वहाँ एक कंपनी स्पॉन्सर्ड वेकेशन आउटिंग पर आए हुए थे. मनिका ने भी उन्हें बताया कि वह भी पहली बार दिल्ली आई थी और एक-दो दिन में उसका इंटरव्यू था व उसके पापा उसके साथ आए थे. इस पर दोनों ही लड़कियाँ चौंक गई थीं,

'यू मीन टू से यू आर हेयर विद योर डैड?' एक ने पूछा.

'येस...वाय?' मनिका ने उनकी उलझन देख जानना चाहा.

'ओह वेल वी थॉट दैट ही वास् योर...आई मीन हमने नहीं सोचा था कि ही इज़ योर फादर...’

'ओह...हाहाहा...सो यू पीपल थॉट ही इस माय बॉयफ्रेंड ऑर समथिंग..?' मनिका ने हँस कर पूछा था. जिस पर उन दोनों ने भी झेंप भरी स्माइल दे हाँ में सिर हिला दिया.

'इट्स ओके...आई गेट दैट अ लॉट...मेरी सब फ्रेंड्स भी ऐसा ही बोलती हैं...बिकॉज़ वी आर वैरी क्लोज़ टू ईच-अदर...’ मनिका ने उन्हें रिलैक्स होने को कहते हुए बताया था.

फिर जयसिंह और वो दोनों बन्दे वापस आ गए थे, उन लोगों ने घुलते-मिलते ड्रिंक्स ख़त्म कीं थी जिसके बाद जयसिंह और मनिका उनसे विदा हो अपने रूम में आ गए थे. आने से पहले जयसिंह ने उनसे उनका रूम नंबर ले लिया था और कमरे में पहुँचते ही रूम-सर्विस से किसी के हाथ एन्वेलोप (लिफाफा) भिजवाने को कहा. जब एक स्टाफ़ का बन्दा एन्वेलोप देने आया तो उन्होंने उसे रुकने को कहा और एन्वेलोप में एक लाख बीस हजार की राशि का चेक डाल कर उसे दिया व उन लोगों के बताए रूम नंबर पे दे आने को भेज दिया. कुछ देर बाद उनके साथ पूल खेल रहे जनों में से एक का उन्हें थैंक्यू कहने को फोन (रिसेप्शन के थ्रू कॉल कनेक्ट करा) भी आया था.

जयसिंह कमरे में आ कर बेड पर लेटे हुए थे और मनिका भी दूसरी तरफ बैठी हुई अपने फोन में कुछ कर रही थी. जयसिंह ने आँखें बंद करी ही थी कि मनिका उनसे बोली,

'पापा...जोश-जोश में वन लैख ट्वेंटी थाउजेंड उड़ा दिए हैं आज आपने...'

'हम्म कोई बात नहीं क्या हो गया तो...पैसे तो आते-जाते रहते हैं.' जयसिंह ने बेफिक्री से कहा.

'इससे अच्छा तो मैं शॉपिंग ही कर लेती...’ मनिका ने ठंडी आह भरी.

'हे भगवान्! कितनी शॉपिंग करनी है इस लड़की को?' जयसिंह ने झूठ-मूठ का अचरज दिखाया.

'आपको क्या पता पापा...शॉपिंग तो हर लड़की का सबसे बड़ा सपना होता है...' मनिका ने इठला कर कहा.

'और उस दिन जो पूरा मॉल खरीद कर लाईं थी उसका क्या?' जयसिंह ने याद दिलाया.

'हाँ तो थोड़ी सी और कर लेती...' मनिका मुस्काई.

'उस दिन जो इतनी ड्रेसेज़ लेकर आईं थी वो तो दिखाईं नहीं अभी तक तुमने..?' जयसिंह ने ताना दिया.

'अरे भई पापा दिखा दूँगी तो...अभी मुझे नींद आ रही है...' मनिका ने अंगड़ाई लेते हुए कहा और वह भी लेट गई.

जयसिंह और मनिका दो घंटे सोने के बाद उठे थे. उन्होंने इवनिंग-टी (चाय) का ऑर्डर किया था और बैठ कर टी.वी. देखने लगे. एक हिन्दी फ़िल्म चल रही थी; रेस. फ़िल्म अभी कुछ महीने पहले ही रिलीज़ हुई थी सो मनिका ने लगा ली थी.

जयसिंह के साथ इतने दिनों से रह रही मनिका उनके स्वभाव में आने वाले परिवर्तनों को भाँपने लगी थी, उसने देखा क़ि जयसिंह वैसे तो फ़िल्म में कम ही इंटरेस्ट ले रहे थे पर जब कोई हीरोइन या आईटम सॉन्ग स्क्रीन पर दिखाते थे तो उनकी नज़र जरा पैनी हो जाती थी. मनिका मन ही मन मुस्का उठी थी, 'देखो कैसे भाती हैं बिपाशा और कैटरीना इन्हें...' 

कुछ देर बाद फ़िल्म खत्म हो गई, उनकी चाय और स्नैक्स भी डिलीवर हो गए थे सो वे बैठे हुए खाना-पीना कर रहे थे और टेलीविज़न से उनका ध्यान थोड़ा हट गया था. तभी टी.वी. पर 'एनैमोर', जो एक लॉनजुरे बनाने वाली कंपनी है, का एडवर्टिसमेंट (विज्ञापन) आया, अब स्क्रीन पर चल रही इमेज पर दोनों का ही ध्यान चला गया था. कुछ मॉडल्स को ब्रा-पैंटीज़ में अठखेलियाँ करते दिखाया गया था, ऐड कुछ ही सेकंड चला था पर दोनों बाप-बेटी के मनों में अलग-अलग विचार उठा गया था. एक तरफ मनिका को सुबह वाली बात याद आ गई और वह शरमा गई थी व दूसरी तरफ जयसिंह का दिल खुश हो गया था, उन्होंने हल्का सा मुस्काते हुए मनिका की ओर देखा था. मनिका थोड़ी तन के सीधी बैठी थी और अपनी नज़रें टेबल पर रखे स्नैक्स पर गड़ाए थी उसे कनखियों से जयसिंह की नज़र और शरारती मुस्कान का आभास हो गया था, एक-दो पल बाद उससे भी रुका नहीं गया और उसके चेहरे पर भी शर्मीली मुस्कान तैर गई, जयसिंह फिर भी उसे देखते रहे,

'पापा स्टॉप इट ना...?' मनिका ने उनकी तरफ बिना देखे कहा.

'अरे मैंने तो कुछ कहा ही नहीं...' जयसिंह ने मुस्काते हुए कहा.

'पापा! याद है ना मैंने कहा था आपसे कभी बात नहीं करुँगी मुझे छेड़ोगे तो...’मनिका ने उनकी तरफ एक नज़र देख अपनी धमकी दोहराई.

'अच्छा भई मैं दूसरी तरफ मुहँ करके बैठ जाता हूँ अगर तुम कहती हो तो...' जयसिंह ने मुहँ दीवार की तरफ घुमाते हुए कहा.

अब तक मनिका की शरम कुछ कम हो गई थी और उसे जयसिंह की नौटंकी पर हँसी आने लगी थी. उधर जयसिंह चुप-चाप मुहँ फेरे बैठे थे. मनिका को समझ नहीं आ रहा था कि वह अब क्या कहे?

'कपड़े ही तो हैं...' जयसिंह की आवाज़ आई.

'हाहाहाहाहाहा... हेहेहे...हीहीहीही... पापाआआ!' मनिका को उनकी बात ने गुदगुदा कर लोटपोट कर दिया था 'यू आर सो नॉटी पापा...!' वह हँसते हुए बोली थी.

जयसिंह भी हँसते हुए उसकी तरफ घूमे और पास सरक आए. मनिका को अभी भी हँसी छिड़ी हुई थी जब जयसिंह ने पहली बार खुद अपने हाथों से पकड़ कर उसे अपनी गोद में खींच लिया. वह हँसते-हँसते अपने आप को छुड़ाने के प्रयास कर रही थी और साथ ही बोल रही थी कि उन्होंने उसे चिढ़ाया है इसलिए वह उनके पास नहीं आएगी लेकिन असल में वहीं बैठी रही. जयसिंह ने उसे थोड़ा कसकर अपने से लगा लिया था. उधर उनके लंड ने भी उत्साह से सिर उठा रखा था.

'वैसे आप भी कम नहीं हो...पता चल गया मुझे ठीक है ना...' मनिका ने उलाहना देते हुए कहा.

'मैंने क्या किया..?' जयसिंह ने अनजान बनते हुए कहा, उन्हें लग रहा था कि वह उनकी कही बात के लिए ही कह रही है.

'जो आँखें फ़ाड़-फाड़ कर देख रहे थे ना अभी मूवी में बिपाशा-कैटरीना को और डांस करती फिरंगनों को...सब देखा मैंने...' मनिका ने उनकी गोद में बैठे-बैठे उन्हें हल्का सा धक्का दे कर कहा.

जयसिंह मनिका के इस खुलासे से सच में निरुत्तर हो गए थे. मनिका को उनके इस तरह झेंप जाने पर बहुत मजा आ रहा था, उसने खनकती हुई आवाज में आगे कहा,

'अब क्या हुआ...बोलो ना पापा? बढ़ा छेड़ रहे थे मुझे..!'

'अब मूवी भी ना देखूं क्या?' जयसिंह ने कहा था पर उनकी आवाज़ से साफ़ पता चल रहा था कि उनकी चोरी पकड़ी गई थी.

'हाहाहाहा... कैसे भोले बन रहे हो देखो तो...बता दो बता दो...नहीं कहूँगी मम्मी से आई प्रॉमिस..' पहली बार लगाम मनिका के हाथ में आई थी (मतलब उसे तो ऐसा ही लग रहा था) सो वह और जोर से हँसते हुए बोली थी.

'हाँ तो...क्या हो गया देख लिया तो...’ जयसिंह ने भी हौले से अपना जुर्म कबूल कर लिया था.

'हाहाहा...' मनिका ने अपनी बात के साबित हो जाने पर ठहाका लगाया, उसे आज कुछ ज्यादा ही हँसी आ रही थी. इसी तरह हँसी-मजाक चलता रहा और रात ढल आई. जयसिंह और मनिका डिनर करने को भी रेस्टॉरेंट में ही गए क्योंकि रूम-सर्विस के विपरीत वहाँ वेटर खाना परोसने के लिए पास में तत्पर रहता है. लेकिन जयसिंह के लंड ने उस रात उन्हें ढंग से खाना भी नहीं खाने दिया.

हुआ ये कि जब जयसिंह और मनिका नीचे रेस्टॉरेंट में जाने के लिए कमरे से निकलने लगे थे तब मनिका ने अपने सूटकेस से लिप-ग्लॉस निकाल कर अपने होंठों पर लगाया था. यह देखना था कि बस जयसिंह का तो काम तमाम हो गया था, बड़ी मुश्किल से एलीवेटर से निकल कर वे रेस्टॉरेंट में कुर्सी तक पहुँचे थे. सामने बैठी मनिका उनसे हँस-मुस्कुरा कर बातें कर रही थी और वे उसके होंठों पर लगे अपने लंड के पानी मिले लिप-ग्लॉस की चमक देख-देख प्रताड़ित हो रहे थे. उन्हें लग रहा था जैसे उनका शरीर दीमाग की बजाय लंड के कंट्रोल में आ गया था और उनके पूरे जिस्म में हवस के मरोड़े उठ रहे थे. वे थोड़ा सा ही खाना खा सके थे और पूरा समय टेबल के नीचे अपने लेफ्ट हाथ से लंड को जकड़े हुए बैठे रहे थे.

उनकी कारस्तानी से अनजान मनिका ने खाना खाने के बाद मंगवाई आइसक्रीम खा कर जब अपने होंठों पर जीभ फिराई तो जयसिंह को हार्ट-अटैक आते-आते बचा था. इस बार वे अपने चेहरे के भावों पर काबू नहीं रख सके थे और मनिका को उनकी बेचैनी का आभास हो गया था.

'क्या बात है पापा?' मनिका के चेहरे पर चिंता झलक आई 'आप ठीक तो हैं?' उसने पूछा.

'ह्म्म्म...कुछ नहीं बस थोड़ा सिर में दर्द है. ‘जयसिंह को समझ नहीं आया कि क्या कहें सो उनके जो मुहँ में आया वही बोल गए थे 'साली क्या बताऊँ तू जो मेरे लंड का रस चाट रही है जीभ फिरा-फिरा कर और पूछ रही है क्या हुआ...उससे सिर में नहीं लंड में दर्द है...' जयसिंह ने आँखें मींचते हुए सोचा था.

डिनर के बाद जब वे अपने कमरे में आए तो मनिका ने जयसिंह को जल्दी सो जाने को कहा और उनका सिर दबाने को भी पूछा था. लेकिन इतने दिन की उत्तेजना ने आज भयंकर रूप धारण कर लिया था और जयसिंह को डर था कि मनिका का स्पर्श कहीं उन्हें अपना आपा खोने पर मजबूर न कर दे, सो उन्होंने उसे मना कर दिया था. वे कंबल ओढ़ लेट गए थे ताकि अंदर अपने उफनते लंड को पकड़ कर काबू में रख सकें, उनके रोम-रोम में मनिका ने आग लगा दी थी और उन्होंने सुलगते हुए सोचा था 'इस हरामजादी मनिका को तो तरसा-तरसा कर इससे भीख मंगवाऊंगा मेरे लंड की एक दिन...'
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मनिका ने देखा कि जयसिंह कपड़े बदले बिना ही सो गए थे. मनिका के पास भी करने को कोई काम न था सो वह भी नहाकर आई और सोने की तैयारी करने लगी. उसके बिस्तर में घुसने से पहले ही रूम का डोर क्नॉक हुआ, लॉन्ड्री वाला उनके कपड़े ले कर आया था. मनिका ने कपड़े रखवा कर उसे कुछ टिप (जयसिंह के पर्स से निकाल) दी थी और वह चला गया. मनिका भी जयसिंह के बगल में लेट गई और सोने की कोशिश करने लगी लेकिन वह दिन में भी एक बार नींद ले चुकी थी इसलिए उसे अभी इतनी जल्दी नींद नहीं आ रही थी पर उसने जयसिंह का ख्याल करके उन्हें कह दिया था कि उसे भी रेस्ट करना था.

वह लेटी-लेटी उस दिन की घटनाओं के बारे में सोचने लगी, कि कैसे दिन की शुरुआत में उसे उसके अंडर-गारमेंट्स शावर में पड़े मिले थे और जयसिंह ने उसका कितना मजाक बनाया था उस बात पर और फिर जब वह सैलून से वापस आई थी तब भी उसके पापा ने कितना स्वीटली रियेक्ट किया था, उसे एहसास हुआ था कि जयसिंह भले ही मजाक कर रहे थे पर उसमें उनकी तारीफ भी छुपी हुई थी और इसीलिए मनिका को लाज आने लगी थी और वह मेकअप उतार आई थी और आज एक बार फिर से लोगों ने उसे जयसिंह की गर्लफ्रेंड समझ लिया था. 'कितना सरप्राइजड थीं वे लड़कियाँ जब मैंने कहा कि वे मेरे पापा हैं...लोग भी न पता नहीं क्या-क्या सोचते रहते हैं.' मनिका ने थोड़ा तुनक कर सोचा था पर फिर उसका ध्यान जयसिंह की फीसिकेलिटी (शारीरिक बनावट) पर चला गया था. वह सोचने लगी कि ४७ साल की उम्र में भी जयसिंह उसके चाचा और ताऊजी की तरह मोटे व बेडौल नहीं थे और उन्होंने अपनी बॉडी को फिट रखा हुआ था 'मे-बी इसी वजह से उन लोगों ने पापा और मुझे कपल इमेजिन कर लिया था...पापा हैस मेंटेंड हिज़ बॉडी सो वैल के कोई सोचता ही नहीं कि वो मेरे पापा हैं.'

मनिका ने जयसिंह की तरफ देखा, कुछ ही पल पहले वे हिले थे और करवट बदल उसकी तरफ मुहँ किया था, उन्हें सोता पा मनिका धीरे से उठ कर अधलेटी हुई व अपने हाथ पीछे से टी-शर्ट में डाल अपनी ब्रा का हुक खोला और वापिस लेट गई.

इतने दिनों से मनिका और जयसिंह रोज बाहर घूम कर आते थे तो थके हुए होते थे और रूम में आ कर उन्हें जल्दी ही नींद आ जाया करती थी (जयसिंह को कभी-कभी नहीं भी आती थी) और उनकी अनबन हो जाने के बाद वे अपने ख्यालों में डूबे ही बैठे या सोए रहा करते थे. लेकिन उनके बीच के गिले-शिकवे मिट चुकने और आज का अपना पूरा दिन हॉटेल में ही रहने के बाद मनिका अच्छे से रेस्टेड थी. सो जब मनिका, जिसे रात को सोते वक़्त ब्रा पहनने की आदत नहीं थी, को कुछ देर तक नींद नहीं आई थी तो उसे अपनी पहनी ब्रा का कसाव खटकने लगा था और इसी वजह से उसने जयसिंह को सोते पा अपनी ब्रा का हुक खोल लिया था.

आग में घी डालना किसे कहते हैं जयसिंह को आज समझ आया था.

खाना खा कर लौटने के बाद जयसिंह मनिका के कहने पर लेट कर रेस्ट करने लगे थे, उन्हें पता था कि अगर वे रोजमर्रा की तरह नहाने घुसे तो शायद अपनी हवस की आँधी को रोक नहीं पाएंगे और मुठ मार बैठेंगे. अपने लिए हुए इस अजीबोगरीब वचन को निभाने के मारे वे बिस्तर पर जा लेटे थे. साथ ही वे इस ताक में भी थे कि क्या पता उनके सो जाने पर मनिका को भी जल्दी नींद आ जाए और वे कुछ छेड़-छाड़ कर अपनी प्यास कुछ शाँत करने में सफल हो सकें और इसी के चलते मनिका के बिस्तर में आ जाने के बाद उन्होंने करवट बदली थी. पर मनिका ने तो उनके मन की आँधी को भूचाल में तब्दील कर दिया था.

जब मनिका ने अपनी ब्रा का हुक खोला था तो उसकी टी-शर्ट पीछे से ऊपर हो गई थी और कमरे की हल्की रौशनी में उसकी नंगी कमर और पीठ का दूधिया रंग जयसिंह ने एक छोटे से पल के लिए अध्-मिंची आँखों से देखा था.

'उह्ह्ह...उम्म्म...' आखिर जयसिंह के मुहँ से दबी हुई आह निकल ही गई थी, शुक्र इस बात का था कि उसके वापस लेट जाने तक वे किसी तरह रुके रहे थे. मनिका ने चौंक कर उनकी तरफ देखा, उनके माथे पर पसीने की बूँदें छलक आईं थी.

'पापा?' मनिका उठ बैठी थी और एक पल के लिए उसका हाथ जल्दी से उसकी पीठ पर चला गया था. 'पापा उठे हुए हैं..?' उसने धड़कते दिल से सोचा. पर जयसिंह पहले की भाँती जड़ पड़े रहे.

'पापा आप जाग रहे हो क्या?' मनिका ने फिर से पूछा लेकिन कोई जवाब नहीं मिला परंतु इस बार जयसिंह ने फिर से एक आह भरी थी जैसे बहुत अनकम्फ़र्टेबल हों. मनिका ने अब बेड-साईड से लाइट ऑन की और उन्हें ध्यान से देखा. उनके चेहरे पर पसीना आ रखा था.

'पापा! आर यू ऑलराइट?' मनिका ने थोड़ा घबराकर उन्हें हिलाया और उठाने लगी. जयसिंह ने भी एक-दो पल बाद हड़बड़ाने का नाटक कर आँखें खोल दीं और गहरी साँसें भरने लगे.

'पापा यू आर सिक!' मनिका ने उनके तपते माथे पर हाथ रखते हुए कहा. वह उनके ऊपर झुकी हुई थी और उसकी खुली ब्रा में झूलते उरोज जयसिंह के चेहरे के सामने थे.

'हम्म्प्...' उनका पारा और बढ़ गया था.

जयसिंह उठ कर बैठ गए थे, आशँकाओ से भरी मनिका बार-बार उनसे पूछ रही थी कि वे कैसा फील कर रहे हैं और जयसिंह कम्बल के अंदर अपने लंड का गला दबाते हुए उसे आश्वस्त करने की कोशिश कर रहे थे कि वे ठीक हैं बस उन्हें माइनर सा माइग्रेन (तेज़ सिरदर्द) का अटैक आया था. उन्होंने कहा कि वे नहा कर आते हैं ताकि थोड़ा रिफ्रेश हो जाएं.

'साला अब तो रेसोल्युशन गया भाड़ में...लगता है मुठ मारना ही पड़ेगा वरना आज तो लंड और आँड दोनों की एक्सपायरी डेट आ जाएगी.' सोच कर जयसिंह ने कम्बल के अंदर अपने लंड का मुहँ ऊपर की तरफ कर उसे अपने अंडरवियर के एलास्टिक में कैद किया ताकि उठ खड़े होने पर उनकी पैंट में कहीं तम्बू न बना हो. जब वे उठे थे तब लंड का मुहाना अंडरवियर से दो इंच बाहर निकल झाँक रहा था पर उनकी शर्ट से ढँका होने के कारण मनिका को दिखाई नहीं पड़ सकता था. वे भारी क़दमों से चलते हुए बाथरूम में घुस गए.

बेड पर बैठी मनिका के चेहरे पर चिंता के भाव थे, उसने हाथ पीछे ले जा कर अपनी ब्रा का हुक फिर से लगाया और जयसिंह के बाहर आने का इंतजार करने लगी.

बाथरूम में जा कर जयसिंह ने बाथटब में ठंडा पानी भरा और उसमें अपना बदन डुबो कर लेट गए. अंदर आते-आते एक बार फिर वे अपनी प्रतिज्ञा के प्रति थोड़ा सीरियस हो गए थे. ठंडे पानी से भरे टब में डूबे वे अपने लंड और टट्टों को रगड़ रहे थे ताकि अपनी गर्मी कुछ शांत कर सकें, 'ये अचानक मुझे क्या हो गया है...बिल्कुल भी काबू नहीं कर पा रहा हूँ अपने-आप को...कुतिया की जवानी ने आखिर मेरे दीमाग का फ्यूज उड़ा ही दिया है लगता है...क्या होंठ है रांड के, मेरे लंड-रस का स्वाद तो आया ही होगा उसे...आह्ह...’जयसिंह का लंड उनके हाथ की कैद से बाहर निकलने को फड़फड़ा उठा था. 'भड़वी ने ब्रा का हुक और खोल लिया ऊपर से...क्या झूल रहे थे साली के बोबे...ओहोहो...मसल-मसल कर लाल कर दूँगा...' इसी तरह के गंदे-गंदे विचारों से अपनी बेटी का बलात्कार करते वे आधे घंटे तक पानी में पड़े रहे थे. पर फिर धीरे-धीरे ठंडे पानी का असर होने लगा था, उनके बदन की गर्मी रिलीज़ होने लगी और बदन सुन्न होने लगा. लंड और आँड भी अब शांत पड़ने लगे थे जिससे जयसिंह के दीमाग ने एक बार फिर काम करना शुरू कर दिया था.

'अगर ये हाल रहा तो फिर तो मनिका की झाँट भी हाथ नहीं लगेगी...मुझे अपने बस में रहना ही होगा! लेकिन साली हर वक्त जिस्म की नुमाईश करती रहेगी तो दीमाग तो ख़राब होगा ही...पर उसकी लिप-ग्लॉस तो मैंने ही ख़राब की थी...हाँ तो मुझे क्या पता था ऐसे सामने बैठ कर होंठ चाटेगी रांड..? जो भी हो आज इतना समझ आ गया है कि लंड के आगे दीमाग की एक नहीं चलती है...हाहाहाहा...’ जयसिंह मन ही मन हँसे थे. अब वे राहत महसूस करने लगे थे.

उनका इरेक्शन भी अब मामूली सा रह गया था. उन्होंने मन ही मन तय कर लिया था कि जल्द ही उन्हें कोई अहम कदम उठाना होगा, मनिका के इंटरव्यू को सिर्फ दो दिन बचे थे और अब वे अपनी मंज़िल से भटकने का खतरा मोल नहीं ले सकते थे, यह विचार आते ही उनके लंड का रहा-सहा विरोध भी खत्म हो गया था. जयसिंह ने कामना की के उनकी किस्मत, जिसने अब तक उनका साथ इतना अच्छे से निभाया था, शायद आगे का रास्ता भी दिखा दे और इस तरह एक नए जोश के साथ वे बाथटब से बाहर निकल आए और तौलिए से बदन पोंछ कर अपना पायजामा-कुरता पहन लिया.
जब वे बाहर निकल कर आए तो मनिका बेड से उतरकर उनके पास आई और उनकी ख़ैरियत जाननी चाही. जयसिंह ने मुस्कुरा कर कहा,

'डोंट वरी मनिका...अब सब ठीक है...' और उसका हाथ पकड़ उसे वापस बिस्तर में ले गए थे.



***

बीती रात के बाद जयसिंह को एक बात का भान अच्छी तरह से हो गया था, वो यह कि मनिका का हुस्न भी उनकी मँजिल पर लगा एक ऐसा गुलाब था जिसमे काँटे ही काँटे थे क्यूँकि उसके हुस्न में उनके लिंग को बेबस करने वाला जादू था और उनके लिंग में उनके दीमाग को बेबस करने की शक्ति. अगर उन्हें फूल तोड़ना है तो काँटों से बचते रहना होगा और उसके लिए एक बार गुलाब से नज़र हटानी जरूरी थी.

सवेरे उठ कर जयसिंह ने आत्मचिंतन किया था और पाया कि उन्हें अभी के लिए अपनी काम-वासना को न जागने देते हुए मनिका के मन में काम-क्रीड़ा के प्रति उत्सुकता के बीज बोने पर ध्यान देना होगा. परन्तु वे नहीं जानते थे कि इस बार जयसिंह का साथ उनकी किस्मत नहीं बल्कि उनकी बीवी और मनिका की माँ मधु देने वाली थी.

दरअसल जब से वे दोनों दिल्ली आए थे मनिका की अपनी माँ से एक बार भी बात नहीं हुई थी. जब भी घर से कॉल आता था जयसिंह के पास ही आता था और वे सब ठीक बता कर फोन रख दिया करते थे. उस दिन उठने के बाद जब जयसिंह और मनिका ने ब्रेकफास्ट कर लिया उसके बाद जयसिंह नहाने चले गए थे.

मनिका बैठी यूँही अखबार के पन्ने पलट रही थी तभी पास पड़े जयसिंह के फोन पर रिंग आने लगी, उसकी माँ का फोन था.

'हैल्लो?' मनिका ने फोन उठाया. उसे अपनी माँ से हुई अपनी आखिरी बातें याद आन पड़ी थी.

'हैल्लो मणि?' उसकी माँ ने पूछा 'कैसे चल रहे हैं इंटरव्यू?' मधु को उन्होंने झूठ जो कह रखा था कि इंटरव्यू तीन स्टेज में होंगे.

'इंटरव्यू..? ओह हाँ अच्छे हुए मम्मी...परसों लास्ट राउंड है.' मनिका एक पल के लिए समझी नहीं थी पर फिर उसे भी याद आया कि उन्होंने घर पर क्या बोल रखा था, उसने माथे पर हाथ रख सोचा, 'बाप रे अभी पोल खोल देती मैं पापा के इतना समझाने के बाद भी...'

'पापा कहाँ है तुम्हारे?' मधु ने पूछा.

'नहाने गए है...' मनिका ने बता दिया.

'इतनी लेट..?' मधु ने एक और सवाल किया.

'ओहो मम्मी...अब यहाँ रूम पर ही रहते हैं तो आराम से उठना-नहाना होता रहता है...' मनिका ने मधु के सवालों से झुँझला कर कहा. उसे बुरा इस बात से भी लगा था कि उसकी माँ ने एक बार भी उससे उसकी खैरियत नहीं पूछी थी.

जब जयसिंह नहा कर बाहर आए थे तब तक उन्हें आभास हो चुका था क़ि कमरे में मनिका किसी से ऊँची आवाज़ में बाते कर रही थी लेकिन शावर के पानी की आवाज़ में उन्हें उसके कहे बोल साफ़ सुनाई नहीं दिए थे और जब तक उन्होंने शावर ऑफ किया था मनिका की आवाज़ आनी बंद हो चुकी थी. बाहर निकल कर मनिका के तेवर देख उन्होंने पूछा,

'क्या हुआ मनिका? किस से बात कर रहीं थी?'

'आपकी बीवी से और किस से...?' मनिका ने गुस्से से तमतमाते हुए कहा.

मनिका के अपनी माँ को थोड़ी तल्खी से जवाब देने के बाद उसकी माँ भी छिड़ गईं थी. मधु ने फिर से वही पुराना राग आलापना शुरू कर दिया था कि कैसे वह हाथ से निकलती ही जा रही है और कितनी बद्तमीज़ भी हो गई है इत्यादि. मनिका के भी दिल्ली आ कर कुछ पर निकल चुके थे वह भी अब वो मनिका नहीं रही थी जो चुपचाप सुन लेती थी...उसने भी अपनी माँ के सामने बोलना शुरू कर दिया कि कैसे वे हमेशां उस पर लगती रहती हैं जबकि उसकी कोई गलती ही नहीं होती, जिस पर मधु ने हमेशा की तरह उसके पापा पर उसे शह देने का आरोप मढ़ा था. जयसिंह की बात आने पर मनिका अब उनका भी पक्ष लेने लगी और आखिर गुस्से में आ फोन ही डिसकनेक्ट कर दिया था, उसने फोन रखने से पहले अपनी माँ से कहा था,

'आपसे तो सौ गुना अच्छे हैं पापा...मेरा इतना ख्याल रखते हैं...बेचारे पता नहीं इतने साल से उन्होंने आपको कैसे झेला है..?' (मधु उसके मुहँ से ऐसी बात सुन स्तब्द्ध रह गई थी)

जयसिंह के बाहर आ जाने के बाद मनिका ने शिकायत पर शिकायत करते हुए उन्हें बताना चालू किया कि कैसे उसको मम्मी ने फिर से डाँट दिया था, 'और बस एक बार जब वो शुरू हो जातीं है तो फिर पूरी दुनियां की कमियाँ मुझ में ही नज़र आने लगती है उनको...मणि ऐसी मणि वैसी...ढंग से बाहर निकलो, ढंग से कपड़े पहनो, ढंग से ये करना ढंग से वो करना...और जब कुछ नहीं बचता तो फिर आप का नाम लेकर ताने...पापा की शह है तुम्हें...पापा बिगाड़ रहे हैं तुम्हें...हद होती है मतलब...!’मनिका का गुस्सा उसकी माँ की कही बातों को याद कर बार-बार फूट रहा था.

'मैं तो मर जाऊं तो ही चैन आएगा उनको...' मनिका रुआँसी हो बोली.

जयसिंह उसके पास गए और उसके कंधे पर हाथ रख उसे ढाँढस बँधाते हुए बोले,

'तुम दोनों का भी हर बार का यही झगड़ा है...फिर भी हर बार तुम अपसेट हो जाती हो, कितनी बार कहा है बोलने दिया करो उसे...'

'हाँ पापा...बट मुझे बुरा नहीं लगता क्या...आप ही बताओ?' मनिका ने उनका सपोर्ट पा कर कहा 'मैंने भी कह दिया आज तो कि आपसे तो पापा अच्छे हैं और वो पता नहीं कैसे झेलते हैं आपको...’ और उन्हें बताया.

'हैं..?' जयसिंह की आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गईं थी 'सचमुच ऐसा बोल दिया तुमने अपनी माँ से..?' उन्होंने पूछा.

'हाँ...' मनिका को भी अब लगा कि वह कुछ ज्यादा ही बोल गई थी.

'हाहाहा...मधु की तो धज्जियाँ उड़ा दीं तुमने...' जयसिंह हँसते हुए बोले.

'और क्या तो पापा मुझे गुस्सा आ गया था तेज़ वाला...’ मनिका ने धीरे से कहा 'पर ज्यादा ही बोल दिया कुछ...' और अपनी गलती स्वीकारी.

'हेहे...अरे तुम चिंता मत करो मैं सँभाल लूँगा उसे...' जयसिंह ने प्यार से मनिका का गाल खींच दिया था. मनिका भी अपनी मुस्कान रोक न सकी.

'ओह पापा काश मम्मी भी आप के जैसी ही कूल और प्यार करने वाली होती...' मनिका ने आह भर कहा.

'अब होतीं तो बात अलग थी मगर अब तो तुम्हें जो है उसी से काम चलाना पड़ेगा...' जयसिंह ने मुस्का कर खुद की तरफ इशारा किया था. 'मम्मी भी मेरी तरह हो सकती थी अगर उसके लंड होता तो...हहा' जयसिंह ने मन में सोचा था और उनकी मुस्कान और बड़ी हो गई थी.

कुछ देर समझाने-बुझाने पर मनिका का मूड कुछ ठीक हो गया था. जयसिंह ने उसके सामने ही अपनी बीवी को फोन लगा कर उससे हर वक़्त टोका-टोकी न करने की अपनी हिदायत दोहरा दी थी. जिस से वह थोड़ी और बहल गई थी. वे बैठ कर उस दिन के लिए कुछ प्लान करते उससे पहले ही जयसिंह के फ़ोन पर फिर से रिंग आने लगी. इस बार जयसिंह ने ही फोन उठाया, उनके ऑफिस से कॉल आया था. इतने दिन ऑफिस से नदारद रहने की वजह से उनके वहाँ अब काम अटकने लगा था. सो जयसिंह फोन पर अपने काम से जुड़ी अपडेटस् लेने में लग गए थे.

जब मनिका ने देखा कि जयसिंह लम्बी बातचीत करेंगे तो वह इधर-उधर पड़ा उनका छोटा-मोटा सामान व्यवस्थित करने लगी. फिर उसने बेड के पास रखा अपना सूटकेस खोला और लॉन्ड्री से वापस आए अपने कपड़े जँचाने लगी.

जयसिंह और मनिका ने अपना लगेज बेड की एक तरफ बनी एक अलमारी के पास नीचे रखा हुआ था. पहले तो वे सिर्फ दो ही दिन रुकने के इरादे से आए थे, सो उन्होंने अपना सामान ज्यादा खोला नहीं था. फिर जब उनका रुकने का पक्का हो गया तो मनिका को लगा था कि शायद उसके पिता अपना सामान उसमें रखें और जयसिंह, जिनके पास ज्यादा सामान नहीं था, ने मनिका उसे यूज़ कर लेगी (और वे उसका सामान छेड़ लेंगे) करके अलमारी खाली छोड़ दी थी. मनिका ने अपना सामान सेट् करने के बाद भी जब पाया कि जयसिंह फोन पर ही लगे हुए थे तो उसने वैसे ही देखने के लिए अलमारी खोल ली थी.



***

अलमारी में कुछ एक्स्ट्रा लिनन (चादर तौलिए इत्यादि) था और एक ओर उसके शॉपिंग बैग्स रखे हुए थे.

जयसिंह से लड़ाई हो जाने के बाद मनिका ने अपना खरीदा हुआ सामान यह कर के नहीं खोला था कि वो सब उन्होंने उसे दिलाया था. फिर जब उनके बीच सुलह हो गई थी तो ख़ुशी के मारे उसके दीमाग से यह बात निकल गई थी जबकि जयसिंह ने बीच में एक बार उसकी शॉपिंग को ले कर उसे कुछ कहा भी था. जयसिंह ने वह बैग्स लाकर उनके लगेज के पास ही रखे थे लेकिन शायद हाउस-कीपिंग (कमरे की साफ़ सफाई करने वाले) में से किसी ने उठाकर उन्हें अलमारी में रख दिया था. मनिका ने सारे बैग्स निकाले और उत्साह से बेड पर बैठ एक-एक कर उनमें से अपनी लाई चीज़ें निकालने लगी. जयसिंह की पीठ उसकी तरफ थी और वे कुर्सी पर बैठे अभी भी फोन पर लगे थे.

अपने नए कपड़े देख-देख मनिका खुश होती बैठी रही, 'ओह वाओ...मेरे वार्डरॉब में कितनी सारी नई ड्रेसेस आ गईं हैं...सबको दिखाने में कितना मजा आएगा...हहा...’अपनी सहेलियों की प्रतिक्रियाएँ सोच वह आनंदित हो रही थी. 'पर...मम्मी देखेंगी जब..? फिर से वही लड़ाई होगी...खर्चा कम...ढंग के कपड़े...और तेरे पापा...ले-देके यही चार बातें हैं उनके पास...’मधु से लड़ाई अभी भी उसके जेहन में ताज़ी थी और उसके विचार घूम-फिर के फिर उन्हीं बातों पर लौट आए थे. 'बट पापा ने कहा कि वे सँभाल लेंगे...हाह... पापा के सामने फ़ुस्स हो जातीं है मम्मी की तोप भी...हीहाहा...अरे कल पापा ने कहा था कि उन्हें तो दिखाया ही नहीं कि क्या कुछ शॉप कर के लाई हूँ..?' मनिका ने अपने सामने फैली पोशाकों पर एक नज़र घुमाते हुए सोचा और मुस्काते हुए एक ड्रेस उठा ली थी.

कुर्सी पर बैठे हुए जयसिंह को बाथरूम का दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ तो आई थी पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया था और अपने असिस्टेंट को ऑफिस में आ रही दिक्कतों को हैंडल करने के इंस्ट्रक्शन देते रहे,

'पापा...’ बाथरूम का दरवाज़ा खुला और आवाज़ आई.

जयसिंह ने कुर्सी पर बैठे हुए ही मुड़ कर पीछे देखा और फोन में बोले, 'हाँ माथुर, जो मैंने कहा है वो कैरी आउट करो और कोई दिक्कत हो तो कल मुझे कॉल कर लेना, अभी थोड़ा बिजी हूँ...’ माथुर ने उधर से कुछ कहा था लेकिन जयसिंह फोन काट चुके थे.

'औकात में रहना है.' उनके दीमाग ने लंड को संदेश भेज चेताया था.

मनिका ने बाथरूम में जा कर अपने नए लिए कपड़ों को पहना था, वह एक पल के लिए नर्वस हुई तो थी के 'पता नहीं पापा क्या सोचेंगे?' पर फिर उसे अपनी माँ की समझाइशें याद आ गईं और अपनी माँ को चिढ़ाने (जबकि वे वहाँ नहीं थीं) के चक्कर में उसने कपड़े बदल लिए थे. बाथरूम के शीशे में उसने अपने-आप को निहारा था और अपनी चटख लाल स्लीवलेस टी-शर्ट और काली शार्ट स्कर्ट को देख उसके संकोच ने फिर एक बार उसे आगाह किया था, लेकिन उसे जयसिंह की बात याद आ गई थी 'कपड़े ही तो हैं...’ और वह मुस्कुराती हुई बाहर निकल आई थी. उसने यह नहीं सोचा था कि कपड़ों के अंदर जिस्म भी तो होते हैं.

जयसिंह कुछ समझ पाते उससे पहले ही मनिका बाथरूम के दरवाज़े से बाहर निकल आई थी,

'तो पापा? कैसी लग रही हूँ मैं? ये ड्रेस ली थी मैंने...मतलब और भी हैं, पहन के दिखाती हूँ अभी...पहले ये बताओ कैसी है?' मनिका ने चहक कर पूछा.

'अच्छी है...' जयसिंह ऊपर से नीचे तक उसे देखते हुए बोले, मनिका को हल्की सी लाज भी आई पर वह खड़ी रही.

उसकी गोरी-गोरी बाँहें और जांघें देख जयसिंह को पहली रात याद आ गई थी 'ओह्ह मैं तो भूल ही गया था कि कितनी चिकनी है ये कमीनी...’ मनिका का स्कर्ट उसके घुटनों से थोड़ा ऊपर तक का था.

'पापा मेरी पिक्स तो क्लिक कर दो इन ड्रेसेस में प्लीज...फ्रेंड्स को भेजूंगी और जलाऊँगी... हीही...' मनिका ने अपना फोन उनकी तरफ बढ़ाया.

लेकिन जयसिंह ने उसके बोलते ही अपने फोन, जो अभी उनके हाथ में ही था, का कैमरा ऑन कर लिया था. मनिका ने अपना फोन पास रखे टेबल पर रख दिया और पोज़ बनाते हुए बोली,

'अच्छा फिर मुझे सेंड कर देना पिक्स बाद में...'

'हम्म...’ जयसिंह उसका फोटो खींचते हुए बोले. चिड़िया पिंजरे में आ बैठी थी.

अब मनिका बारी-बारी से कपड़े बदल-बदल उनके सामने आने लगी और जयसिंह उसके फोटो लेने लगे, मनिका ने स्कर्ट के बाद उनको अपनी नई जीन्स पहन कर दिखाईं थी और उसके बाद दो जोड़ी डेनिम हॉट-पैंट्स (डेनिम या कपड़े से बनी शॉर्ट्स) पहन कर आई थी, उसकी ज्यादातर नई टी-शर्ट्स स्लीव्लेस हीं थी. जयसिंह का लंड उनके हर एनकाउंटर पर उछाल मार रहा था लेकिन जयसिंह भी मनिका के बाथरूम में चेंज करने को घुसते ही लंड को शांत करने के प्रयास चालु कर देते थे ताकि बात हाथ से निकलने के पहले ही संभाली जा सके.

उसके बाद मनिका एक काली पार्टी-ड्रेस पहन कर बाहर निकली थी, ड्रेस का कपड़ा सिल्की सा था, जयसिंह देखते ही तड़प गए थे. ड्रेस में क्लीवेज थोड़ा सा गहरा था (इतना ज्यादा भी नहीं कि कुछ दिखे) जिससे मनिका की क्लीवेज-लाइन का थोड़ा सा आभास मिल रहा था और ड्रेस की लंबाई भी इस बार पहले वाले स्कर्ट और हॉट-पैंट्स के मुकाबले कम थी. पर सबसे ज्यादा उत्तेजक बात यह थी कि ड्रेस के चिकने कपड़े ने मनिका के बदन से चिपक कर उसके उभारों को तो निखार ही दिया था लेकिन साथ ही उसकी ब्रा-पैंटी की आउटलाइनस् भी साफ़ नज़र आ रहीं थी.

मनिका ने जब पहली कुछ ड्रेसेस पहन कर उन्हें दिखाईं थी तो पहले वह अपने-आप को शीशे में अच्छे से देख-भाल कर फिर बाहर आती थी लेकिन बार-बार कपड़े बदल कर आने के कारण हर बार उसका ध्यान जल्दी से बाहर आने की तरफ बढ़ता गया था और इस बार वह ड्रेस पहनते ही एक नज़र अपने आप को देख बाहर आ गई थी जबकि उसकी ड्रेस का कपड़ा उसके बाहर आते-आते ही उसके बदन से चिपकना शुरू हुआ था (क्योंकि चिकने मैटेरियल से बने कपड़े में बदन से होने वाले घर्षण से ऐसा होता है). फोटो खींचते वक्त जयसिंह का हाथ एकबारगी काँप गया था.

मनिका के पास दिखाने को अब और कोई ड्रेस नहीं बची थी सो वह खड़ी रही व इस बार जयसिंह ने उसके ज्यादा ही फोटो ले लिए थे.

'बस पापा इतनी ही थीं...’ मनिका ने उन्हें बताया.

'बस? इतने से कपड़ों का बिल था वो..?’जयसिंह ने हैरानी जताई.

'हाहाहा...मैंने कहा था ना पापा...क्या हुआ शॉक लग गया आपको?' मनिका ने हँसते हुए उनके थोड़ा करीब आते हुए कहा.

'नहीं-नहीं...पैसे की फ़िक्र थोड़े ही कर रहा हूँ. मुझे लगा और भी ड्रेस होंगी...’जयसिंह ने मुस्का कर कहा और उसे अपनी गोद में आने का इशारा किया. मनिका इतनी कातिल लग रही थी के लाख न चाहने के बाद भी वे अपने लंड की डिमांड को अनसुना नहीं कर सके थे. पर इस बार मनिका ने ही उन्हें बचा लिया,

'और तो पापा दो पर्स लिए थे मैंने और एक वॉच...एंड और क्या था..? हाँ बेल्ट और...सैंडिलस्...’ मनिका सोच-सोच कर गिनाने लगी, पर वह उनकी गोद में नहीं बैठी थी क्योंकि उसे एहसास हो गया था कि उसने अंदर पैंटी पहन रखी थी जबकि इन ड्रेसेस के अंदर नीचे अमूमन बॉय-शॉर्ट्स (शॉर्टसनुमा पैंटी) पहनी जातीं हैं. अगर वह जयसिंह की जांघ पर बैठ जाती तो नीचे से खुली ड्रेस ऊपर उठ जाती जिसमें उसके अंडरवियर के एक्सपोज़ हो जाने का खतरा था. मनिका को यह आभास अजीब सा लगा था पर इस बार उसने अपने चेहरे पर शरम की अभिव्यक्ति नहीं होने दी थी, आखिर बेटी तो वह भी जयसिंह की ही थी.

'अच्छा-अच्छा ठीक है.' जयसिंह ने अपनी शॉपिंग लिस्ट सुनाती मनिका को थमने के लिए कहा और एक बार फिर अपने पास बुलाया, पर मनिका ने पीछे हटते हुए कहा,

'पापा मैं चेंज कर के आती हूँ...फिर मुझे पिक्स दिखाना.'

जयसिंह ने भी फिर से उसे नहीं बुलाया और थोड़ी राहत महसूस की थी. फिर उन्हें याद आया,

'मनिका...!'

'जी पापा?' मनिका बाथरूम के दरवाजे पर पहुँच रुक गई थी.

'वो मेरी दिलाई चीज़ तो तुमने दिखाई ही नहीं पहन कर...’ जयसिंह ने मुस्कुराते हुए कहा.

'कौनसी चीज़...? ओह्ह...हाँ पापा...भूल गई मैं...रुको.' मनिका एक पल बाद समझ गई थी और बेड की तरफ जा कर झुक कर वहाँ रखे कपड़ों में लेग्गिंग्स की जोड़ी खोजने लगी. जयसिंह ने देखा कि उसने अपना एक घुटना मोड़ कर बेड पर रखा हुआ था और उसका दूसरा पैर नीचे फर्श पर था, वह आगे झुकी हुई थी सो उसकी कमर और नितम्ब ऊपर हो गए थे और साथ ही वह ड्रेस भी, जयसिंह का बदन एक बार फिर से गरमा गया था. उन्होंने अपने बचे-खुचे विवेक का इस्तेमाल कर कैमरा वीडियो मोड पर कर लिया था और उस मादक से पोज़ में झुकी अपनी बेटी की गांड का वीडियो बनाने लगे.

कुछ दस सेकंड यह वाकया चला जिसके बाद मनिका ने सीधी होकर मुस्कुराते हुए जयसिंह को अपने हाथ में ली हुई लेग्गिंग्स दिखाई थी और पहन कर आने का बोल बाथरूम में चली गई थी. जयसिंह ने फटाफट वीडियो बंद कर दिया था और उसके जाते ही जल्दी से अपने फोन की गैलरी में जा कर देखा क़ि वो सेव तो हुआ था के नहीं? वीडियो सेव हो गया था लेकिन गैलरी में उसकी थंबनेल (फोटो या वीडियो की झलक देता आइकॉन) देख मनिका को जयसिंह की कारस्तानी का साफ़ पता चल जाना था. जयसिंह ने जल्दी से वीडियो और साथ ही अभी ली हुई तस्वीरों का बैकअप ले उस वीडियो को वहाँ से डिलीट कर दिया था.

मनिका को लेग्गिंग पहन कर बाहर आने में थोड़ा वक्त लग गया था. खड़े-खड़े इतनी पतली पजामी पैरों में पहनने में उसे थोड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी. तब तक जयसिंह ने भी अपनी सेफ साइड रख ली थी. मनिका ने ऊपर से एक टी-शर्ट डाली और इस बार बिना आईना देखे ही बाहर आ गई. जयसिंह, जो अभी उसकी गांड को अपने मन से निकालने की कोशिश करने में लगे ही थे, पर कहर बरप पड़ा था.

एक तो जयसिंह ने पहले ही लेग्गिंग दो साइज़ छोटी ले कर दी थी उस पर उसका कपड़ा बिल्कुल झीना था तिस पर उसका रंग भी लाइट-स्किन कलर जैसा था; और मनिका यह सब बिन देखे ही बाहर निकल आई थी.

जयसिंह के बदन में करंट दौड़ने लगा था, लेग्गिंग्स के रंग की वजह से उसके कुछ भी न पहने हुए होने का आभास होता था व मनिका के अधो-भाग का एक-एक उभार नज़र आ रहा था. जयसिंह को अभी तक तो अपनी बेटी के कपड़ों में से उसकी जाँघों और नितम्बों का ही दीदार अच्छे से होता आया था लेकिन यह लेग्गिंग्स इतनी ज्यादा टाइट कसी हुई थी कि उसकी टांगों के बीच का फासला 'ᴨ' भी नज़र आने लगा था. कपड़ा पूरी तरह से उसकी जाँघों और योनि पर चिपक गया था और मनिका की योनि का उभार साफ़ दिख रहा था.

'कैसी लग रहीं है पापा?' मनिका चहकते हुए बाहर आई थी.

'उह्ह ह...’ जयसिंह ने कुछ शब्द निकालने का प्रयास किया था पर सिर्फ आह ही निकल सकी.

मनिका उनके पास आ पहुंची थी. जयसिंह को इस बार पहले से ही इल्म था की कहाँ-कहाँ ध्यान से देखने पर मनिका के जिस्मानी जादू का लुत्फ़ उठाया जा सकता है. उनकी नज़र सीधी उसके प्राइवेट पार्ट्स (गुप्तांग) पर जा टिकीं थी और उसके करीब आते-आते उन्हें उसकी पहनी हुई पैंटी के रंग और साइज़ का पता चल चुका था. उसने आज अपनी स्काई-ब्लू रंग वाली अंडरवियर पहन रखी थी. मनिका की उभरी हुई योनि देख जयसिंह वैसे ही आपा खो रहे थे जब मनिका उनके ठीक सामने आ कर खड़ी हो गई थी,

'बताओ न पापा?'

'बहुत...बहुत अच्छी ल...लग रही है...’ जयसिंह ने तरस कर कहा. अपने लंड को काबू करने की उनकी सारी कोशिशें बेकार जा चुकीं थी.

मनिका उनकी गोद में आ बैठी, जयसिंह को अपनी बेटी की कच्ची सी योनि अपनी जांघ पर टिकती हुई महसूस हुई थी, उनकी रूह कांप गई थी.

'ओह मनिका यू आर सो ब्यूटीफुल...' उनके मुहँ से निकला.

'इश्श पापा. यू आर मेकिंग मी शाय (शरम)...’मनिका ने मुस्काते हुए जवाब दिया 'इतनी भी सुन्दर नहीं हूँ मैं...मुझे बहलाओ मत...’

'तुम्हें क्या पता?' जयसिंह ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा और उस दिन ट्रेन वाली तरह अपना दूसरा हाथ उसकी जांघ पर रख लिया. मनिका की योनि का आभास उन्हें पागल किए जा रहा था. 'आज तो रेप होगा मुझसे लग रहा है..!' जयसिंह ने मन ही मन अपनी लाचारी व्यक्त की थी.

असल में मनिका को भी जयसिंह की तारीफ़ बहुत भायी थी. एक बात और थी जिसने आज मनिका को अपनी ये फैशन परेड करने के लिए उकसाया था लेकिन जिसका भान अभी उसके चेतन मन को नहीं हुआ था; पिछली रोज जब जयसिंह टी.वी. में दिखाई जा रही लडकियाँ ताड़ रहे थे तो मनिका ने नोटिस कर लिया था व उन्हें छेड़ा था. उस बात ने भी उसके आज के फैसले में कहीं ना कहीं एक भूमिका निभाई थी.

जयसिंह उसकी जांघ सहलाना शुरू कर चुके थे.

'पापा फ़ोन दो ना. पिक्स देखते हैं..’मनिका बोली.

जयसिंह ने उसकी जांघ से हाथ हटा अपने बाजू में रखा फ़ोन उठा कर उसे पकड़ा दिया और फिर से उसकी जाँघों पर हाथ ले गए. मनिका फ़ोन की फोटो-गैलरी खोल जयसिंह की ली हुई तस्वीरें देखने लगी. शुरुआत की कुछ फोटो देख वह बोली,

'पापा! कितनी अच्छी पिक्स क्लिक की है आपने...एंड ये ड्रेसेस कितनी अमेजिंग लग रही है ना?' उसने जयसिंह और अपनी, दोनों की ही तारीफ़ करते हुए पूछा था. जयसिंह ने तो हाँ कहना ही था, उनका खड़ा हुआ लिंग भी उनके अंडरवियर में कसमसा कर हाँ कह रहा था.

फिर आगे मनिका की पार्टी-ड्रेस वाले फोटो आने शुरू हो गए, इस बार वह झेंप गई. जयसिंह ने फोटो भी ज्यादा ले रखे थे सो उन्हें आगे कर-कर देखते हुए उसकी झेंप शरम में तब्दील होती जा रही थी. उसने एक फोटो पर रुकते हुए डिलीट-बटन दबाया था, जयसिंह ने तपाक से पूछा कि वह क्या कर रही है? तो उसने थोड़ा सकुचा कर कहा कि वे फोटोज़ ज्यादा अच्छे नहीं आए थे, उसका मतलब था कि उनमें उसके पहने अंडर-गारमेंट्स का पता चल रहा था.

मनिका ने एक दो फोटो ही डिलीट किए थे कि जयसिंह के फ़ोन पर एक बार फिर से रिंग आने लगी, ऑफिस से माथुर का फ़ोन था.
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'ओहो आज तो कुछ ज्यादा ही कॉल्स आ रहीं है आपको..!' मनिका ने झुंझला कर कहा.

'बजने दो...अभी तो बात की थी...’ जयसिंह ने कहा, उनका चेहरा अब मनिका के बालों के पास था और वे उनकी भीनी-भीनी खुशबू में खोए थे. मनिका ने फ़ोन के अपने आप डिसकनेक्ट हो जाने तक इंतज़ार किया और फिर से उन पिक्स को डिलीट करने लगी जो उसे ज्यादा ही रिवीलिंग लगीं थी. बैक-अप ले चुके जयसिंह बेफिक्र थे. फ़ोन एक बार फिर से बजने लगा.

'हाँ माथुर बोलो?' जयसिंह ने तल्खी से पूछा. उन्होंने मनिका को एक बार फिर से कॉल न उठाने को कहा था लेकिन फ़ोन डिसकनेक्ट होते ही वापस रिंग आने लग गई थी.

उनके सेक्रेटरी ने उन्हें बताया की उनका एक बहुत बड़ा क्लाइंट जो पिछले कुछ दिनों से उनसे बात करने के लिए रोज कॉल कर रहा था, वह भी अभी दिल्ली में था. उसने जब आज फिर से कॉल किया तो उनके सेक्रेटरी ने उसको जयसिंह के दिल्ली गए होने की सूचना दी थी, जिस पर उसने उससे मीटिंग फिक्स करने के लिए कहा था और इसी बाबत उनका सेक्रेटरी उन्हें कॉल पर कॉल कर रहा था.

जयसिंह सोच में पड़ गए. यह क्लाइंट बहुत बड़ी आसामी थी और उनकी कंपनी की बैलेंस-शीट में मौजूद बड़े नामों में से एक था, मीटिंग करनी जरूरी थी; उन्होंने सेक्रेटरी से मीटिंग फिक्स कर उन्हें कॉल करने को कहा. अचानक घटनाक्रम में हुए परिवर्तन ने एक बार फिर उनके हवस के मीटर की सुई को चरम पर पहुँच कर टूटने से बचा लिया था,

'कुछ करना पड़ेगा...जल्द.' जयसिंह ने सोचा और मनिका से बोले,

'जाना पड़ेगा मुझे...एक क्लाइंट यहाँ आया हुआ है.' जयसिंह ने मनिका से कहा.

'बट पापा! वी आर ऑन अ हॉलिडे ना?' मनिका ने बेमन से कहा.

'येस डार्लिंग आई क्नॉ बट ये काफी मालदार क्लाइंट है...इसी जैसों से तो तुम्हारी शॉपिंग पूरी होती है.' जयसिंह ने उसके गाल सहला उसे बहलाया 'चलो गेट उप नाओ, मुझे रेडी भी होना है.' जयसिंह ने आगे कहा था और अभी भी काम-वासना के वशीभूत अपने हाथ से, उनकी जांघ पर बैठी हुई मनिका को उठाने के लिए, उसके नितम्ब पर हल्की सी थपकी दे दी थी.

'आउच...ओके-ओके पापा.' मनिका को उनके इस स्पर्श का अंदेशा नहीं था और वह उचक कर खड़ी हो गई थी, जयसिंह ने बिल्कुल भी ऐसा नहीं दर्शाया कि उन्होंने कोई गलत या अजीब हरकत कर दी हो और उठ कर मीटिंग के लिए तैयार होने चल दिए.

मनिका को अपनी गांड में एक हल्की सी तरंग उठती महसूस हुई थी और वह कुछ पल वैसे ही खड़ी उनको जाते हुए देखती रही थी.



***

जयसिंह रात को लेट वापस आए थे. उन्होंने मनिका को कॉल करके बता दिया था कि आज उन्हें आने में देर हो जाएगी, उनके क्लाइंट ने उन्हें अपने एक-दो जानकार इन्वेस्टर्स से मिलवाया था और निकट भविष्य में जयसिंह को उनसे एक बड़ी डील होती नज़र आ रही थी. मीटिंग से निकल उन्होंने माथुर को फ़ोन कर आज की अपनी मीटिंग का ब्यौरा दिया था और जल्द से जल्द अपने नए क्लाइंट्स के लिए एक पोर्टफोलियो तैयार करने को कहा था.

'अब तो दिल्ली चक्कर लगते रहेंगे...’ वे फ़ोन रखते हुए बोले थे.

जब तक जयसिंह अपने हॉटेल रूम में पहुँचे थे मनिका सो चुकीं थी. जयसिंह ने भी बाथरूम में जा कर चेंज किया और आकर लेट गए, 'हे भगवान् ये डील फाइनल हो जाए तो मजा आ जाए.' उन्होंने प्रार्थना की, उनके दीमाग में आज की उनकी बिज़नस मीटिंग के विचार उठ रहे थे. काफी पैसा आने की सम्भावना ने मनिका पर उनका ध्यान अभी जाने नहीं दिया था, पर फिर उन्होंने करवट बदली और उनके विचार भी बदल गए 'और ये डील हो जाए तो डबल मजा आ जाए...’उन्होंने अपनी बेटी के जिस्म की तरफ हाथ बढ़ाते हुए सोचा.

जयसिंह ने शुक्र मनाया कि उन्होंने हाथ मनिका के गाल पर रख उसे सहलाया था. मनिका अभी पूरी तरह से नींद में नहीं थी और उनका स्पर्श पाते ही उसने आँखें खोल लीं थी.

'आह...पापा? आ गए आप?' उसने अंगडाई लेते हुए पूछा.

'हाँ...सोई नहीं अभी तक?' जयसिंह उसे जागती हुई पा कर थोड़ा घबरा गए थे.

'उहूँ...बस नींद आने ही लगी थी आपका वेट करते-करते...’ मनिका ने नींद भरी आवाज़ से कहा.

'ह्म्म्म...वो मीटिंग जरा देर तक चलती रही सो लेट हो गया.' जयसिंह ने बताया.

उनींदी हुई मनिका से कुछ देर बात करने के बाद जयसिंह ने उसे सो जाने को कह और एक बार फिर से लाइट ऑफ कर दी थी. मनिका अभी सोई नहीं थी और आज वे भी थक चुके थे, सो उन्होंने भी अपने सिर उठाते लंड को हल्का सा दबा कर शांत करने का प्रयास किया था और कुछ ही देर में उनकी आँख लग गई थी.

जयसिंह सपना देख रहे थे; सपने में वे एक बिज़नस मीटिंग में बैठे थे और एक बेहद बड़ी डील साईन करने के लिए निगोशिएट कर रहे थे. उन्हें आभास हो रहा था जैसे उनके साथ उनका सेक्रेटरी और ऑफिस के कर्मचारी कागजात लेकर बैठे हुए हैं और काफी गहमा-गहमी का माहौल है लेकिन जयसिंह किसी का भी चेहरा साफ-साफ़ नहीं देख पा रहे थे. कुछ देर इसी तरह सपना चलता रहा जब आखिर सामने बैठा क्लाइंट डील साईन करने को राजी हो गया और उसने उठते हुए उनसे हाथ मिलाया. जयसिंह ने भी उठ कर हाथ आगे बढाया था लेकिन अब उनके सामने क्लाइंट की जगह मनिका खड़ी थी और मुस्का रही थी, 'आई अग्री (मान जाना) पापा..!’सपने वाली मनिका ने कहा, उसने एक छोटी सी काली ड्रेस पहन रखी थी. जयसिंह ने नीचे देखा और पाया कि वे खुद नंगे खड़े थे और उनका लंड खड़ा हो कर हिलोरे ले रहा था, तभी मनिका ने हाथ बढ़ा कर उसे पकड़ लिया; जयसिंह की आँख खुल गई, उनका हाथ पजामे के अन्दर लंड को थामे हुए था और उनके दिल की धड़कनें बढ़ी हुईं थी.

जयसिंह ने खिड़की की तरफ देखा और पाया कि बाहर अभी भी अँधेरा था, उन्होंने सिरहाने रखे फ़ोन में वक्त देखा. सुबह के ४ बजने वाले थे. उन्होंने मनिका की तरफ देखा, वह पेट के बल लेटी सो रही थी. उनका लंड अभी भी उनके हाथ में था पर मनिका को सोते हुए पा कर भी उन्होंने उसे छूने की कोशिश नहीं की थी. वे लेटे-लेटे सोचने लगे,
'उफ़...अब तो साली के सपने भी आने लगे हैं. बड़ी जालिम है इसकी जवानी...पर कुछ होता दिखाई नहीं देता, इसके सिर पर तो दोस्ती का भूत सवार है और मेरे लंड पर इसकी ठुकाई का. दोनों के बीच मेरी बैंड बजी रहती है. क्या करूँ समझ नहीं आता...आज आखिरी दिन है, कल तो चिनाल का इंटरव्यू होगा.' जयसिंह अपनी लाचारगी पर तरस खाते हुए मनिका की उभरी हुई गांड देख रहे थे. 'हर तरह से इसे बहला चुका हूँ...पर आगे दीमाग में कोई तरकीब आ ही नहीं रही है...' कुछ पल इसी तरह फ्रस्टरेट होते रहने के बाद उनके लंड ने एक जोरदार हिचकोला खाया. यकायक जयसिंह के चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी, 'आह ये मैंने पहले क्यूँ नहीं सोचा...दीमाग नहीं...अब लंड की बारी है...'

जयसिंह ख़ुशी-ख़ुशी सो गए, आर या पार की लड़ाई का वक्त आ चुका था.

सूरज निकल आने के साथ ही जयसिंह और मनिका भी उठ गए थे. उन्होंने अपनी दिनचर्या के काम निपटाए और मनिका के कहने पर नाश्ता कमरे में ही मंगवा लिया. मनिका को भी अगले दिन का अपना इंटरव्यू नज़र आने लगा था और जयसिंह को अपनी बुद्धिमता के लाख उदाहरण देने के बावजूद अब वह भी कुछ नर्वस हो गई थी. उसने अपने पिता से कहा कि आज वह इंटरव्यू के लिए पढ़ कर थोड़ा रिवीजन करने का सोच रही थी सो अगर उन्हें भी अपने बिज़नस का कोई जरूरी काम हो तो वे बेफिक्र कर सकते हैं. जयसिंह ने मुहँ-अँधेरे आँख खुलने पर जो तरकीब सोची थी उसे इस्तेमाल करने की हिम्मत अभी तक नहीं बाँध सके थे. उस वक्त तो नींद में उन्होंने फैसला कर लिया था लेकिन सुबह मनिका के उठ जाने के बाद उनका असमंजस और व्याकुलता बढ़ गए थे. एक मौका आ कर हाथ से निकल भी चुका था. उन्होंने मनिका की बात पर सहमत होते हुए कहा कि वैसे तो आज वे फ्री थे और रूम में ही रहेंगे बट अगर कोई काम आन पड़ता है तो शायद उन्हें जाना पड़ जाए.

नाश्ता करने के बाद मनिका अपनी किताबें ले कर बैठ गई और जयसिंह कुछ देर कमरे में इधर-उधर होने के बाद उस से पूल खेलने जाने का बोल कर नीचे चले गए. कुछ घंटों बाद उन्होंने रूम में कॉल कर के मनिका को नीचे लंच के लिए बुलाया, जब वे खाना खत्म कर चुके तो जयसिंह के आग्रह के बाद भी मनिका उनके साथ पूल एरिया में न जा कर पढ़ने के लिए रूम में लौट गई थी.

जयसिंह शाम हुए रूम में लौट कर आए. वे बहुत खुश नज़र आ रहे थे, उनको इस कदर मुस्काते देख बेड पर किताब लिए बैठी मनिका ने उन्हें छेड़ते हुए पूछा,

'क्या हुआ पापा? बड़ा मुस्कुरा रहे हो आज तो...कोई गर्लफ्रेंड बना आए हो क्या?'

'हाहाहा...नहीं-नहीं कहाँ गर्लफ्रेंड...पर हाँ अपनी एक गर्लफ्रेंड की शॉपिंग का जुगाड़ कर आया हूँ...' जयसिंह ने भी हँस कर उसे आँख मार दी थी, उनका इशारा मनिका की तरफ ही था.

'हाहाहा...ये बात है? मुझे भी बताओ फिर तो...’मनिका ने किताब एक तरफ रखते हुए पूछा.

जयसिंह ने उसे बताया कि आज वे पूल में जीत कर आए हैं और जीत की राशि उनके हारे हुए अमाउंट के दोगुने से भी ज्यादा थी व उसे चेक दिखाया. मनिका भी खुश हो गई थी. मनिका ने बताया कि उसने तो बस पढाई ही करी थी दिन भर और अब उसे नींद आ रही थी. जयसिंह ने डिनर भी रूम में ही मंगवा लेने का सुझाव दिया.

खाना खा लेने के बाद मनिका नहाने चली गई और जयसिंह बेड पर बैठ सोच में डूब गए, 'क्या वे यह कर सकेंगे?' कुछ पल बैठे रहने के बाद वे उठे और जा कर सूटकेस में रखे अपने शेविंग-किट में से एक छोटी सी बोतल निकाल लाए.

उनका दिल जोरों से धड़क रहा था.

मनिका नहाते वक्त अगले दिन की टेंशन में डूबी थी. उसके पापा आज पूल में जीत कर आए थे इस बात से वह खुश भी थी लेकिन इतने दिन दिल्ली की हवा लग जाने के बाद अब उसे यह डर सता रहा था कि अगर उसका सेलेक्शन नहीं हुआ तो उसे वापस बाड़मेर जाना पड़ सकता है 'अगर कल मेरा सेलेक्शन नहीं हुआ तो पापा से बोलूंगी कि यहीं किसी और कॉलेज में एडमिशन लेना है मुझे...वापस तो मैं भी नहीं जाने वाली.' उसने सोचा था और नहा कर बाथरूम से बाहर निकली. जयसिंह रोज की तरह सामने काउच पर ही बैठे थे. टी.वी चल रहा था.

मनिका को जैसे काटो तो खून नहीं, उसका दिल, दीमाग और तन तीनों चक्कर खा गए थे.

जयसिंह ने अपने किट से तेल की शीशी निकाली थी और बेड पर आ बैठे थे. फिर उन्होंने अपनी पेंट और अंडरवियर निकाल दिए व हाथों में तेल लेकर अपने काले लंड पर लगाने लगे, लंड तो पहले से ही खड़ा था, अब तेल की मालिश से चमकने लगा था. उस सुबह नहाते वक़्त जयसिंह ने अपने अंतरंग भाग पर से बाल भी साफ़ कर लिए थे, सो उनके लंड के नीचे उनके अंडकोष भी साफ नज़र आ रहे थे. कुछ देर अपने लंड को इसी तरह तेल पिलाने के बाद जयसिंह ने उठ कर अलमारी में रखे एक्स्ट्रा तौलियों में से एक निकाल कर लपेट लिया और अपनी उतारी हुई पेंट और चड्डी को सूटकेस में रख दिया. तेल की शीशी को भी यथास्थान रखने के बाद वे काउच पर जा जमे और मनिका के बाहर आने का इंतज़ार करने लगे थे.

मनिका जब नहा कर बाहर आई तो अपने पिता को काउच पर बैठ टी.वी देखते पाया. वे ऊपर तो शर्ट ही पहने हुए थे लेकिन नीचे उन्होंने एक टॉवल लपेट रखा था और पैर पर पैर रख कर बैठे थे. टॉवल बीच से ऊपर उठा हुआ था और उनकी टांगों के बीच उनका 'डिक!' नज़र आ रहा था. मनिका की आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा.

मनिका ने अपनी सहेलियों के साथ गुपचुप खिखीयाते हुए एक दो पोर्न फ़िल्में देखीं हुई थी लेकिन असली लंड से उसका सामना पहली बार हुआ था और वह भी उसके पिता का था. जयसिंह के भीषण काले लंड को देख उसका बदन शरम और घबराहट से तपने लगा था.

'बस अभी नहाता हूँ...' जयसिंह ने मनिका की तरफ एक नज़र देख कर कहा. उनका हाल भी मनिका से कोई बेहतर नहीं था, दिल की धड़कने रेलगाड़ी सी दौड़ रहीं थी. लेकिन उन्होंने अपनी पूरी इछाश्क्ति से अपने चेहरे के भाव नॉर्मल बनाए रखे थे. मनिका के चेहरे का उड़ा रंग देख उन्होंने झूठी आशंका व्यक्त की, 'क्या हुआ मनिका?'

'क...क...कुछ...कुछ नहीं...पापा...’ मनिका ने हकलाते हुए कहा और पलट कर बेड की तरफ चल दी.

जयसिंह उसे जाते हुए देखते रहे, उसकी पीठ उनकी तरफ थी और उसने अपना सूटकेस खोल रखा था, जयसिंह ने अपनी नज़रें टी.वी पर गड़ा लीं, उसी वक्त मनिका ने एक बार फिर उन्हें पलट कर देखा. जयसिंह अपनी बेटी के सामने अपने आप को यूँ एक्सपोस (दिखाना) करने के बाद थोड़े और बोल्ड हो गए थे, हालाँकि डर उन्हें भी लग रहा था कि कहीं कुछ उल्टा रिएक्शन ना हो जाए उसकी तरफ से,

'मनिका!?' उन्होंने पुकारा.

'ज...जी पापा?' मनिका ने थोड़ा सा मुहँ पीछे कर के पूछा. उसकी आवाज़ भर्रा रही थी.

'ये मेरा फ़ोन चार्ज में लगा दो जरा...' जयसिंह ने अपना फ़ोन हाथ में ले उसकी तरफ बढ़ाया.

'जी...हाँ अभी...अभी लगाती हूँ...पापा...’ मनिका ने उनकी तरफ देखा और एक बार फिर से सिहर उठी.

थोड़ी हिम्मत कर मनिका पलटी और बिना जयसिंह की टांगों के बीच नज़र ले जाए उनके पास आने लगी, जयसिंह को हाथ में फ़ोन उठाए कुछ पल बीत चुके थे, जैसे ही उन्हें मनिका पास आती दिखी उन्होंने फ़ोन अपने आगे रखे एक छोटे टेबल पर रख दिया था. मनिका की नज़र भी उनके नीचे जाते हाथ के साथ नीची हो गईं, वह जयसिंह से चार फुट की दूरी पर खड़ी थी और उसने झुक कर फ़ोन उठाया, ना चाहते हुए भी उसकी नज़र एक बार फिर से जयसिंह के चमकते लंड और आंडों पर जा टिकी. जयसिंह भी उत्तेजित तो थे ही, मनिका की नज़र कहाँ है इसका आभास उन्हें कनखियों से हो गया था. उन्होंने अपने उत्तेजित हुए लंड की माश्पेशियाँ कसते हुए उसे एक हुलारा दिला दिया, मनिका झट से उछल कर सीधी हुई और लघभग भागती हुई बेड के पास जा कर उनका फ़ोन चार्जर में लगाने की कोशिश करने लगी, उसके हाथ कांप रहे थे.


***

जयसिंह के बाथरूम में जाने की आहट होते ही मनिका औंधे मुहँ बिस्तर पर जा गिरी. उसे बुखार सा हो आया था, 'ओह शिट ओह शिट ओह शिट!' मनिका ने अपने दोनों हाथों से मुहँ ढंकते हुए सोचा, 'आइ सॉ पापाज़...ओह गॉड!' अपने पिता के लंड की कल्पना करते ही मनिका का बदन कांप उठा था. 'पापा को रियलाईज़ भी नहीं हो रहा था कि...टॉवल ऊपर हो गया है...और उनका...हाय...ओह गॉड...हाओ कैन दिस हैपन?' मनिका के दीमाग में भूचाल उठ रहा था. वह सरक कर बिस्तर में अपनी साइड पर हुई और बेड के सिरहाने लगे स्विच से कमरे की लाइट बुझा दी व अपने पैर सिकोड़ कर कम्बल ओढ़ लेट गई. बार-बार उसके सामने जयसिंह के लंड और आंड आ-जा रहे थे और उसका जिस्म शरम और ग्लानी (हालाँकि उसकी कोई गलती नहीं थी) की आग में तप रहा था.

मनिका एक और खौफ यह भी सता रहा था कि वह अब जयसिंह से नज़र कैसे मिला पाएगी? इसी डर से उसने कमरे की लाइट बुझा दी थी और नाईट-लैंप भी नहीं जलाया था और जब एक बार फिर से बाथरूम के दरवाज़े के खुलने की आहट हुई थी तो उसका बेचैन दिल धौंकनी सा धड़कने लगा था.

जयसिंह बाहर निकले तो कमरे में घुप्प अँधेरा पा कर अचकचा गए.

नहाते हुए उनका भी मन अपने किए इस दुस्साहसी कृत्य से विचलित रहा था 'पता नहीं क्या सोच रही होगी...लंड ने तो खून जमा दिया उसका, कैसे उठ कर भागी थी साली...कहीं मैंने ज्यादा बड़ा कदम तो नहीं उठा लिया? अब तो पीछे हटने का भी कोई रास्ता नहीं है...कहीं उसे शक हो गया होगा तो..? की यह मैंने जान-बूझकर किया था...मारे जाएँगे फिर तो...’अब जयसिंह भी अपने दुस्साहस को लेकर असमंजस में फंसते जा रहे थे. लेकिन आखिर में उन्होंने सोचा कि 'अब जब ओखली में सिर दे ही दिया है तो मूसलों का क्या डर...देखा जाएगा जो होगा, जो योजना बनाई थी उसे तो अब पूरा अंजाम देना ही है...’और नहा कर बाहर निकले थे.

'मनिका?' जयसिंह ने कमरे के अँधेरे में आवाज़ दी. बाथरूम की लाइट जल रही थी और अब उनकी आँखें भी अँधेरे के अनुरूप ढलने लगी थी. 'सो गई?'

'ज...जी पापा.' बिस्तर में से दबी सी आवाज़ आई.

'नाईट-लैंप तो ऑन कर देती...कुछ दिखाई ही नहीं पड़ रहा.' जयसिंह ने कहा.

'ओह सॉरी पापा...’ मनिका ने माफ़ी मांगी और हाथ बढ़ा कर नाईट-लैंप का स्विच ऑन कर दिया.

कुछ ही देर में जयसिंह भी बिस्तर में आ पहुँचे, मनिका की करवट उनसे दूसरी तरफ थी. जयसिंह ने कुछ पल रुक कर सोचा और फिर अपने प्लान के मुताबिक ही चलने का फैसला करते हुए मनिका के कंधे पर हाथ रख उसे हौले से खींचा, मनिका ने उनके इस इशारे पर करवट बदल ली और उनकी तरफ मुहँ कर लिया, उसने एक पल के लिए उनसे नज़र मिलाई थी और फिर आँखें मींच लीं थी.

'क्या हुआ मनिका? आज इतना जल्दी सो गई?' जयसिंह ने छेड़ की.

'म्मम्म...वो पापा...आज पढ़ते-पढ़ते थक गई...और सुबह इंटरव्यू के लिए भी जाना है सो...' मनिका पहले से ही जानती थी कि उसके पापा यह सवाल पूछ सकते हैं और इसलिए उसने जवाब सोच कर रखा हुआ था. उसने एक पल जयसिंह की तरफ आँख खोल कर देखा था और उसकी आँखों में अचरज का भाव आ गया था.

'ह्म्म्म...चलो फिर सो जाओ.' जयसिंह ने हौले से उसका गाल थपथपा कर कहा.

'पापा? आपने बरमूडा-शॉर्ट्स कब ली?' मनिका ने पूछा. दरअसल जयसिंह आज पायजामा-कुरता नहीं बल्कि बरमूडा-शॉर्ट्स और टी-शर्ट पहन कर आए थे.

'अरे पहले से ही हैं मेरे पास यह तो...' जयसिंह ने बिल्कुल नॉर्मल एक्ट करते हुए कहा.

'पर पहले तो आपने नहीं पहना...' मनिका ने कहा था पर बात पूरी नहीं की थी.

'हाँ...वो बाथरूम के फर्श पर पानी होता है न तो पायजामा पहनते वक्त नीचे लग कर गीला हो जाता है रोज-रोज सो आज यह पहन लिया. वैसे भी पायजामा-कुरता लॉन्ड्री से धुल कर आया हुआ था तो सीधा सूटकेस में ही रख दिया, आज और कल की ही तो बात है अब...’ जयसिंह ने तर्क देते हुए सफाई पेश की थी. लेकिन उनके मन में तो लडडू फूट रहे थे.

आज मनिका की बेड-साइड वाला नाईट-लैंप जल रहा था सो रौशनी के दायरे में जयसिंह थे. बरमूडा-शॉर्ट्स का कपड़ा ज्यादा मोटा नहीं हुआ करता है और वे अंदर कुछ नहीं पहन कर आए थे सो उनके लंड का उठाव नज़र आ रहा था. उन्होंने देखा कि उनके बोलते-बोलते ही मनिका की नज़र दो-तीन बार उनकी टांगों के बीच चली गईं थी और हर नज़र के साथ वह सहम कर आँख बंद कर लेती थी.

जयसिंह अब सोने का नाटक करने लगे, उन दोनों की करवटें एक-दूसरे की ओर ही थी. मनिका को नींद नहीं आ रही थी व वह थोड़ी-थोड़ी देर में आँखें खोल जयसिंह को देख रही थी. जयसिंह भी आँखें मूंदे पड़े थे, वे भी कुछ-कुछ देर बाद हल्की सी आँख खोल अपनी पलकों के बीच से मनिका की बेचैनी देख कर मन ही मन मस्त हो रहे थे. उधर मनिका चाहकर भी अपना ध्यान अपने पिता के लंड पर से नहीं हटा पा रही थी, ऊपर से उनके पहने बरमूडा-शॉर्ट्स ने उसकी मुसीबत और ज्यादा बढ़ा दी थी.

'शिट पापा को कैसे एक्सपोस होता देख लिया मैंने...अगर उन्हें पता चल जाता तो...? गॉड इट्स सो एम्बैरेसिंग...और ये शॉर्ट्स जो पापा आज पहन आएं हैं..! इज़ दैट हिज़..? हाय ये मैं क्या सोच रही हूँ...' जयसिंह की शॉर्ट्स में बने उठाव को देख कर मनिका के मन में विचार उठने लगा था जब उसने झटपट अपनी सोच पर लगाम कसी और पलट कर करवट बदल ली, लेकिन बैरी मन था के थामे नहीं थम रहा था 'कितना बड़ा था...है...ओह नो नो नो ऐसा मत सोचो...एंड काला...शिट...पर वो ऐसे चमक क्यूँ रहा...इश्श...' मनिका ने शरम से अपने हाथों से अपने-आप को बाँहों में कसते हुए ऐसे विचारों को दूर झटकने की कोशिश की 'ब्लू फिल्म्स में जैसा दिखाते हैं...वैसा...नो...और पापा की बॉल्स (आंड)...गॉड नो...स्टॉप इट डैम इट...' मनिका ने अपने मन की निर्लज्जता पर गुस्सा होते हुए अपने आप को धिक्कारा.

मनिका की नींद उस रात बार-बार टूटती रही, जयसिंह के नंगेपन का ख्याल रह-रह कर उसके मन में कौंध जाता था और अब उसकी अपने इंटरव्यू को लेकर टेंशन भी बढ़ गई थी. उसे ऐसा लग रहा था कि वह सब पढ़ी हुई बातें भूल चुकी है. 'ओह गॉड अब क्या होगा...जब से पापा का...देखा है...गॉड...क्या प्रिपरेशन की थी सब भूल रही हूँ...शिट अब क्या करूँगी मैं कल..?' किसी तरह सुबह होते-होते मनिका की आँख लगी थी जबकि जयसिंह मनिका के उहापोह को ताड़ते हुए कब के मीठी नींद सो चुके थे.

अगली सुबह जब मनिका सो कर उठी तो उसका मन अजीब सा हो रखा था, उसे ऐसा लग रहा था मानो वह कोई बहुत बड़ी दुर्घटना घटने के बाद की पहली सुबह हो. फिर जैसे-जैसे उसकी नींद उड़ने लगी उसे पिछली रात देखा नज़ारा याद आने लगा. रात को तो अचानक इस तरह अपने पिता के गुप्तांग देख लेने ने से वह सन्न रह गई थी और उस वाकये के भुलाने की कोशिश करते-करते सो गई थी लेकिन अब सुबह को उसे वही बात हज़ार गुना ज्यादा झटके के साथ याद आ रही थी. जब तक वे दोनों उठ कर नहा-धो तैयार हुए और कैब बुक कराने के बाद नीचे रेस्टोरेंट में नाश्ते के लिए पहुँचे थे, मनिका अनगिनत बार हँसते-मुस्कुराते अपने पिता की तरफ देख कर शरम और अपराधबोध से भर चुकी थी.

उधर जयसिंह को अब पूरा विश्वास हो चुका था की उनकी हरमजदगी का भान मनिका को नहीं हुआ था और वे आज कुछ ज्यादा ही चहक रहे थे. वे लोग ब्रेक-फ़ास्ट करने के बाद कैब से कॉलेज पहुँचे, वहाँ काफी भीड़-भाड़ थी, जयसिंह ने गेट पर शीशा नीचे कर एम.बी.ए. इंटरव्यूज़ का वेन्यु (जगह) पता किया था और अन्दर पहुँच ड्राईवर को पार्किंग में वेट करने का बोल मनिका के साथ मेन-बिल्डिंग की तरफ चल दिए.

बिल्डिंग में बने कॉलेज के एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक से उन्होंने इंटरव्यू के लिए निर्धारित ऑफिस का पता किया और उनके बताए रास्ते के मुताबिक मैनेजमेंट ब्लॉक में जा पहुँचे, वहाँ बहुत से लड़के-लड़कियाँ अपने अभिभावकों के साथ आए हुए अपना नंबर आने का इंतजार कर रहे थे. जयसिंह और मनिका भी एक तरफ बने वेटिंग एरिया में बैठ गए और मनिका का नाम बुलाए जाने की प्रतीक्षा करने लगे.

'पापा आई एम् सो नर्वस..!' मनिका ने जयसिंह से अपना भय व्यक्त किया.

'अरे व्हाए? तुम्हें तो सब आता है. ऐसा मत सोचो बिल्कुल भी, तुम्हारा सेलेक्शन पक्का होगा, मुझे पूरा यकीन है अपनी...गर्लफ्रेंड पर...’ जयसिंह ने मुस्कुरा कर उसकी हिम्मत बँधाई. वे मनिका को अपनी बेटी कहते-कहते रुक गए थे.

'ओह पापा. हाहाहा...आप भी ना!' मनिका ने भी उनकी बात पर हँसते हुए उलाहना दिया और बोली 'आई क्नॉ की मेरी प्रिपरेशन अच्छी है बट कल से माइंड थोड़ा डाइवर्ट (ध्यान-भंग) हो रखा है...’ यह कहते हुए मनिका के मन में एक बार फिर जयसिंह के लिंग की आकृतियां बनने लगीं और उसकी नजर जयसिंह की पैंट की ज़िप पर चली गईं थी.

'कोई बात नहीं तुम टेंशन मत लो, जो होगा अच्छे के लिए ही होगा.' जयसिंह ने पास बैठी मनिका के कँधे पर हाथ रखते हुए कहा. मनिका भी थोड़ा मुस्का दी पर कुछ नहीं बोली 'पापा को क्या पता की मैंने इनका डिक देख लिया...गॉड फिर से वही गंदे ख्याल...’ उसके मन में उठा और वह भीतर ही भीतर शर्मसार हो गई. अब जयसिंह का हाथ उसके कँधे पर उसे एक तपिश सी देता हुआ महसूस हो रहा था.

कुछ वक्त बाद इंटरव्यू के लिए मनिका का नंबर भी आ गया. जयसिंह ने उसे मुस्का कर गुड-लक कहा और मनिका धड़कते दिल से अपना पहला इंटरव्यू देने के लिए चल दी. जयसिंह वहीं बैठे उसका इंतज़ार करने लगे.

'ह्म्म्म माइंड तो डाइवर्ट हुआ हरामज़ादी का चलो...बस अब माइंड डाइवर्ट ही रहना चाहिए...हाहाहा... क्या गांड है यार...' उन्होंने इंटरव्यू रूम में घुसती हुई मनिका को देखते हुए सोचा था.

मनिका का इंटरव्यू करीब २५ मिनट तक चला. अंदर पहुँच कर उसने देखा कि इंटरव्यू के लिए तीन जनों का पैनल बैठा था. उसके अभिवादन करने के बाद उसे बैठने को कहा गया और फिर एक-एक कर के तीनों इंटरव्यूअर उससे सवाल करने लगे. पहले सवाल पर मनिका एक क्षण के लिए तो सकपका गई थी लेकिन फिर उसके दीमाग ने धीरे-धीरे एक बार फिर सही दिशा में काम करना चालू कर दिया और जवाब उसकी जुबान पर आने लगे. हर सवाल के बाद उसका आत्मविश्वास लौटता जा रहा था.

जब मनिका इंटरव्यू देकर बाहर आई तो जयसिंह को जस के तस बैठे हुए पाया, उससे नज़र मिलते ही जयसिंह उठ खड़े हुए और उसकी तरफ आने लगे, उनके चेहरे पर एक सवालिया भाव था.

'कैसा हुआ?' जयसिंह ने करीब आ कर पूछा.

'अच्छा हुआ पापा...मतलब आई थिंक सो...पहले मैं थोड़ा नर्वस थी बट फिर आई गॉट कॉन्फिडेंट...' मनिका हल्की सी मुस्काई थी 'मे-बी मेरा हो जाएगा...ओह पापा मुझे फिर से डर लग रहा है अब..' उसने आगे कहा.

'कितनी देर में आएगा रिजल्ट?' जयसिंह ने पूछा.

'बस १०-१५ मिनट्स में ही, आई गैस अपना नंबर सबसे लास्ट में ही आया है...'

'ह्म्म्म...कोई बात नहीं घबराओ मत...' जयसिंह ने उसे फिर से ढांढस बँधाया.

कुछ देर बाद ही मनिका के कहे मुताबिक रिजल्ट डिक्लेअर हो गया. ऑफिस से एक इंटरव्यूअर बाहर आया था और उसने बाहर लगे सॉफ़्ट-बोर्ड पर एक कागज पिन कर दिया था जिसपर सेलेक्ट हुए लोगों के नाम थे. काँपते कदमों से मनिका अपना रिजल्ट देखने के लिए बढ़ी, बोर्ड के चारों तरफ जमघट लग गया था. कुछ पल बाद मनिका को कागज सही से दिखा, पर नर्वसनेस में एक पल के लिए उसे कुछ नज़र नहीं आया, फिर उसने अपने-आप को सँभालते हुए गौर से देखा तो पाया कि ऊपर से चौथे नंबर पर लिखा था 'मनिका सिंह'.
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मनिका ख़ुशी से झूम उठी.

'पापाआआआ...आई गॉट सेलेक्टेड..!' उसने पीछे मुड़ते हुए जयसिंह को आवाज़ दी और खिलखिलाते हुए उनकी तरफ बढ़ी.

जयसिंह ने भी आगे बढ़ते हुए अपनी बाँहें खोल दीं व मनिका आ कर उनके आगोश में समा गई, उन्होंने मनिका को अपनी छाती पर भींच लिया था. मनिका का वक्ष अब उनकी छाती से लगा हुआ था और उनके हाथ उसकी पीठ और कमर पर कसे हुए थे. मनिका के जवान होने के बाद ये पहली बार थी जब उन्होंने उसे इस तरह गले लगाया था. उनके बदन में जैसै करन्ट दौड़ने लगा और उन्होंने अपनी बाँहें और ज्यादा कस लीं थी.

उधर कुछ एक क्षण के उन्माद के बाद मनिका को भी एक पुरुष के जिस्म की संरचना और ताकत का एहसास होने लगा, जयसिंह की छाती उसके स्तनों का मर्दन कर रही थी, उसका बदन उनकी बाजूओं में इस तरह जकड़ा हुआ था कि वह चाहकर भी उनसे अलग नहीं हो पा रही थी.

'पापा...!' जयसिंह की कसती चली जा रही पकड़ से आजाद होने की कोशिश करते हुए मनिका ने कहा.

'मैंने कहा था ना तुम सेलेक्ट हो जाओगी...' जयसिंह भी मनिका का प्रतिरोध भाँप गए थे और उन्होंने उसे अपनी गिरफ्त से थोड़ा आजाद करते हुए कहा.

'हाँ पापा...ओह गॉड. आई एम् सो हैप्पी!' मनिका ने कहा.

रिजल्ट वाले नोटिस में सेलेक्ट हुए कैंडिडेट्स को एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक में जा कर एडमिशन फॉर्म भरने के निर्देश दिए गए थे, सो जयसिंह और मनिका एक बार फिर से वहाँ गए और कॉलेज का फॉर्म और प्रॉस्पेक्टस ख़रीदा. वहाँ एक और खुशखबरी जयसिंह का इंतज़ार कर रही थी, कॉलेज की फीस अगले तीन दिनों में जमा कराने पर ही पहली कट-ऑफ लिस्ट में सेलेक्ट हुए लोगों का एडमिशन कन्फर्म हो सकता था वरना फिर कॉलेज से दूसरी लिस्ट जारी की जाती और क्रमवार अगले कैंडिडेट्स को मौका दिया जाता. जयसिंह ने बाहर आते ही पहला फोन अपने घर पर किया था और मनिका के सेलेक्ट हो जाने की खबर सुनाई थी और कहा था कि उनकी वापसी में एक-दो दिन और लगने वाले थे, उनकी बीवी मधु ने इस पर कोई खासी उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं दी थी (क्योंकि अभी भी अपनी बेटी के बर्ताव व उससे हुई अनबन की गाँठ उसके मन में थी). उधर एडमिशन हो जाने की ख़ुशी के मारे मनिका भी अपने पिता के लिंग-दर्शन को भूल गई थी और वहाँ एक-दो दिन और बिताने के ख्याल ने उसे और ज्यादा उत्साहित कर दिया था.

जयसिंह ने मनिका से कहा कि वे अगले दिन आ कर उसके एडमिशन की फॉर्मलिटीज़ पूरी कर जाएँगे, मनिका को भला क्या एतराज़ हो सकता था, और वे दोनों वापिस अपने हॉटेल लौट आए.

अपने कमरे में आ कर मनिका ने एडमिशन-फॉर्म निकाला और उसे भरने बैठ गई. दोपहर के खाने का वक़्त भी हो चुका था और जयसिंह भी उसके पास ही बैठे मेन्यू देख रहे थे. आज जयसिंह ने अपनी मर्जी से ही खाना ऑर्डर कर दिया था क्यूँकि मनिका का पूरा ध्यान अपने फॉर्म में लगा हुआ था. जयसिंह के ऑर्डर कर के हटने की कुछ देर बाद मनिका ने भी फॉर्म पूरा भर लिया,

'ऑल डन पापा...' मनिका ने फॉर्म में लिखी सभी डिटेल्स को एक बार फिर चेक करते हुए कहा.

'हम्म चलो एक काम तो पूरा हुआ...अब तो खुश हो तुम?' जयसिंह ने पास बैठी मनिका को अपने पास खीँचते हुए कहा.

'हाँ पापा.' मनिका भी बिना प्रतिरोध के उनसे सटते हुए बोली.

'और बताओ फिर...दिल्ली भी देख ली, शॉपिंग भी हो गई और एडमिशन भी हो गया अब क्या करने का इरादा है?' जयसिंह ने मुस्कुराते हुए सवाल किया.

'हाहाहाहा...बस पापा इतना बहुत है...अब आप जल्दी-जल्दी डेल्ही आते रहना.' मनिका ने हँसते हुए कहा.

'हाँ भई अब मेरी गर्लफ्रेंड यहाँ है तो आना ही पड़ेगा.' जयसिंह ने शरारत से कहा.

'हाहा…क्या बोलते रहते हो पापा.' मनिका बोली.

'वैसे कॉलेज में लड़के काफ़ी हैं...' जयसिंह की बात में कुछ अंदेशा था.

'तो..?' मनिका भी उनके कहने का मतलब समझ गई थी पर उसने अनजान बनते हुए पूछा.

'तो क्या? कल को कोई पसंद आ गया तुम्हें तो ये पुराना बॉयफ्रेंड थोड़े ही याद रहेगा...’ जयसिंह ने झूठी उदासी दिखाते हुए कहा.

'हेहेहे...पापा कुछ भी...' मनिका ने उनकी बात को मजाक में ही लिया था 'और वैसे भी मुझे कोई बॉयफ्रेंड नहीं चाहिए...' उसने कहा.

'हाहाहा...' जयसिंह ने भी दाँत दिखा दिए 'वैसे क्यों नहीं चाहिए तुम्हें बॉयफ्रेंड?' उन्होंने पूछा.

'अरे भई नहीं चाहिए तो नहीं चाहिए...क्या करना है बॉयफ्रेंड-वोयफ़्रेंड का...' मनिका अपने पिता से ऐसी बातें करने में झिझक रही थी.

'वैसे बॉयफ्रेंड तो होना ही चाहिए जो ख्याल रखे तुम्हारा...' जयसिंह भी कहाँ मानने वाले थे.

'अच्छा? तो आप बना लो...हीही.' मनिका ने कहा और अपने ही मजाक पर हँसी.

'तो मुझे तो गर्लफ्रेंड बनानी होगी ना..?' जयसिंह मुस्काए.

'हाँ तो बना लो न जा के...' मनिका भी अब उनके कहे को मजाक समझ बोली.

'हाहाहा...हाँ तो इसीलिए तो तुम्हारा एडमिशन यहाँ करवाया है, कोई सुंदर सी सहेली बना कर मुझसे दोस्ती करवा देना...' जयसिंह ने हँसते हुए उसे आँख मारी.

'हाआआ...! पापा कितने ख़राब निकले आप...बड़े आए, बूढ़े हो गए हो और अरमान तो देखो. मम्मी से बोलूंगी ना तो गर्लफ्रेंड का भूत एक मिनट में उतार जाएगा...हाहाहा.' मनिका ने उन्हें झूठ-मूठ धमकाया.

'इतना भी बूढ़ा नहीं हूँ...तुम्हें क्या पता? बस अपनी मम्मी के नाम से डराती हो मुझे...’ जयसिंह भी पीछे नहीं हटे थे.

'रहने दो आप...हाहाहा...मेरी फ्रेंड आपसे कितनी छोटी होगी पता है..? कुछ तो शरम करो...’ मनिका ने उन्हें उलाहना दिया.

'तो क्या हुआ...होगी तो लड़की ही ना और हम भी तो मर्द हैं...' जयसिंह ने उसे चिढ़ाया.

'हाहाहा...जाओ-जाओ रहन दो आप...' मनिका ने उनका मखौल उड़ाते हुए कहा.

'हंस लो हंस लो तुम भी कोई बात नहीं...लेकिन एक असली मर्द लड़की का जितना ख्याल रख सकता है उतना तुम्हारे ये नए-नवेले बॉयफ्रेंड कभी नहीं रख सकते...' जयसिंह ने मनिका की हंसी का जवाब देते हुए कहा.

'हाहाहा पापा बस भई मान लिया...और मेरे कोई नए-नवेले बॉयफ्रेंड है भी नहीं...हीहीही.' मनिका फिर भी हंसती रही.

थोड़ी देर में उनका लंच आ गया और वे दोनों खाना खाने लगे. आज एक बार फिर वही वेटर खाना दे गया था जिसने मनिका को एक बार अर्ध-नंग आवस्था में देख लिया था. पर आज जयसिंह वहीँ बैठे थे सो उसने कोई उद्दंडता नहीं दिखाई थी. खाना खाने के बाद जयसिंह बेड पर लेट सुस्ताने लगे और मनिका टी.वी. देखने लगी.

मनिका ने टेलीविजन में एम्. टी.वी. चैनल चला रखा था जिसमे बॉलीवुड के लेटेस्ट अपडेट्स आ रहे थे. कुछ देर देखते रहने के बाद मनिका का ध्यान टी.वी पर से हट गया. वह जो प्रोग्राम देख रही थी उसमे बॉलीवुड के स्टार्स की लव-लाइफ इत्यादि के बारे में भी कयास लगाए गए थे और मनिका ने रियलाईज़ किया कि ज्यादातर हीरो अधेड़ उम्र के थे और उनका नाम नई आई हीरोइनों के साथ जोड़ा जा रहा था. यह बात तो उसे पहले से भी पता थी कि अक्सर ४०-४५ पार के हीरो अपने से आधी उम्र की हिरोइन्स को डेट करते हैं लेकिन उसने इस बारे में कभी गहराई से नहीं सोचा था, 'बॉलीवुड में ऐसा ही चलता है' यह एक सामान्य सोच थी. पर अब उसे एहसास हुआ कि इस बात से उसके पिता के उस दावे को भी पुष्टि मिल रही थी के मर्द लड़कियों का ख्याल रखने में माहिर होते हैं, 'क्या सच में..?’ मनिका ने मन ही मन सोचा.

'पापा जो कह रहे थे क्या सच में वैसा ही है? पहले कभी सोचा ही नहीं बट ये हिरोइन्स को हमेशा बूढ़े-बूढ़े हीरो ही क्यों पसंद आते हैं..? पैसा होता है क्यूंकि उनके पास...पर पैसा तो वो भी कमाती ही हैं और नए हीरो भी तो कम पैसेवाले नहीं होते...?’ मनिका सोचती जा रही थी 'और बड़े-बड़े बिजनेसमैन भी तो कैसे रोज नई गर्लफ्रेंड घुमा रहे होते हैं...बात सिर्फ पैसे की तो नहीं हो सकती...ह्म्म्म. हाथ तो पापा का भी कितना खुल्ला है, खर्चा करते रुकते ही नहीं...पर उनकी तो कोई गर्लफ्रेंड नहीं है...' और फिर उसे अपनी सहेलियों की ठिठोली याद आई 'मणि तुम्हारे डैड तो हमारे बॉयफ्रेंडज़ से भी ज्यादा ख्याल रखते हैं तुम्हारा..!'

'ओह पागल लड़कियां हैं मेरी फ्रेंड्स भी.' मनिका सोचते हुए उठी व टी.वी. ऑफ कर और बिस्तर की तरफ चल दी. अब वह भी जा कर बेड के सिरहाने से टेक लगा कर बैठ गई और अपने सोते हुए पिता की तरफ देखा. 'पर पापा के साथ जब भी होती हूँ अक्सर लोग मुझे उनकी गर्लफ्रेंड ही मान बैठते हैं...बाड़मेर में तो फिर भी लोग हमें जानते हैं बट यहाँ तो कोई सोचता ही नहीं की हम बाप-बेटी हैं...कैसे लोग हैं पता नहीं..? पर हम दोनों भी तो एक-दूसरे से कुछ ज्यादा ही फ्रैंक हो गए हैं...तो क्या हुआ..? सो लोग तो उल्टा सोचेंगे ही न! आज भी पापा ने कैसे मुझे हग (गले लगाना) किया था सब के सामने...उह...कितने पावरफुल हैं पापा...मेरी तो जान ही निकाल देते अगर कुछ देर और नहीं छोड़ा होता तो...’ मनिका जयसिंह की बलिष्ठ पकड़ को याद कर मचल उठी और उसके बदन में एक अजीब सी कशिश दौड़ गई थी. अब उसकी नज़र जयसिंह की पैंट के अगले हिस्से पर चली गई 'पापा का डि...ओह शिट फिर से नहीं...’ मनिका ने अपने आप को संभाला, लेकिन वह विचार जो उसके मन में कौंध गया था उससे छुटकारा पाना इतना आसान भी नहीं था.

जब जयसिंह सो कर उठे तब तक शाम ढल आई थी, उन्होंने पाया कि मनिका भी सोई पड़ी थी. उन्होंने उठ कर रूम-सर्विस से चाय मंगवाई, इतने में मनिका भी आँखें मलती हुई उठ बैठी.

'पापा!' मनिका ने अपने हमेशा के अंदाज में जयसिंह को पुकारा.

'हेय मनिका! उठ गईं तुम? कब से सो रही हो..?’ जयसिंह ने उसकी ओर देखते हुए सवाल किया.

'बस पापा आपके सोने के कुछ देर बाद ही बेड पर आ गई थी...' मनिका ने कहा.

'हम्म...'

थोड़ी देर बाद उनकी चाय आ गई. मनिका भी बेड से उतर कर जयसिंह के पास आ गई. जब उन्होंने अपनी चाय ख़तम कर ली तो मनिका ने कहा,

'पापा चलो ना कहीं बाहर चलते हैं, कितने दिन से रूम में रुके हैं हम.'

जयसिंह भी राजी हो गए और वे दोनों कैब ले कर गुडगाँव के ही एक मॉल में घूमने जा पहुंचे. कुछ देर तक यूँही विन्डो-शॉपिंग करते घूमते रहने के बाद जयसिंह ने सुझाया,

'मनिका यहाँ भी मल्टीप्लेक्स-थिएटर है, क्यूँ ना कोई मूवी ही देख लें...?' मनिका झटपट मान गई.

वहां एक तो 'जाने तू या जाने ना' ही लगी थी, जो वे पहले देख आए थे और दूसरी फिल्म थी 'जन्नत'. जयसिंह जा कर उसी के टिकट्स ले कर आए थे. मनिका को इल्म था की उस फिल्म के हीरो को बॉलीवुड में 'सीरियल-किसर' के नाम से जाना जाता था और अब वह थोड़ी विचलित हो गई थी, 'ओह शिट ये तो इमरान की मूवी है...कुछ गलत-सलत ना हो भगवान इसमें...'

जयसिंह और मनिका मूवी हॉल में जा पहुंचे, वहां ज्यादातर क्राउड (भीड़) आदमियों का ही था. कुछ देर में फिल्म शुरू हो गई, फिल्म की कहानी में हीरो को एक बुकी (सट्टोरिया) के किरदार में दिखाया था जिसे एक लड़की से प्यार हो जाता है. इंटरवेल के बाद भी कुछ देर तक फिल्म में कोई आपतिजनक सीन नहीं आया था और मनिका भी अब सहज हो गई थी. उधर आज एक बार फिर जयसिंह मनिका के साथ कोल्ड-ड्रिंक शेयर कर के पी रहे थे. उनका एक हाथ भी कुर्सी के हैण्ड-रेस्ट पर रखे मनिका के हाथ पर था जब अचानक फिल्म में एक किसिंग-सीन आ ही गया. हीरो बहुत ही प्यार से हीरोइन के होंठों को चूम रहा था. अगले ही पल जयसिंह को अपने हाथ के नीचे मनिका के हाथ के अकड़ जाने का एहसास हो गया.

सीन कुछ ही सेकंड चला होगा लेकिन तब तक मनिका ने अपना हाथ हौले से खींच कर जयसिंह के हाथ से हटा लिया था. उधर पूरे थिएटर में ठहाके और गंदे कमेंट्स आने चालू हो गए. 'चूस ले चूस ले...ओओओओ...मसल-मसल...हाहाहा हाहाहा' 'वाह सीरियल किसर...आहाहाहा...' की आवाजें आने लगी, एक आदमी ने तो बेशर्मी की हद ही पार कर दी थी, 'डाल दे साली के..डाल डाल...’मनिका का सिर पास बैठे अपने पिता के सामने ऐसे कमेंट सुन शर्म से झुक गया था और उसका बदन गुस्से से तमतमा रहा था 'कैसे जाहिल लोग हैं यहाँ पर...बेशर्म...हुह.' बाकी की फिल्म कब ख़त्म हुई उसे आभास भी नहीं हुआ, उसका पूरा समय वहां आए मर्दों को कोसने में ही बीत गया था.

फिल्म देखने के बाद जयसिंह और मनिका ने वहीं मॉल के फ़ूड-कोर्ट में खाना खाया था और रात हुए वापस अपने हॉटेल पहुंचे थे. मनिका नहा कर बाहर निकली तो एक बार फिर जयसिंह को सामने काउच पर तौलिया लपेटे बैठे हुए पाया. आज उन्होंने ऊपर कुरता भी नहीं पहना हुआ था.



***

जयसिंह उसे देख कर मुस्कुराए और उठ खड़े हुए. मनिका बाथरूम से बाहर आ चुकी थी और उसने एक तरफ हट कर अपने पिता को बाथरूम में जाने के रास्ता दिया था. जयसिंह ने बाथरूम में घुस दरवाज़ा बंद कर लिया. उधर मनिका भी जा कर बेड पर बैठ गई थी.

बाथरूम से बाहर आने से पहले मनिका ने एकबारगी सोचा था कि अगर आज भी उसके पिता पिछली रात की भाँती सामने नंगे बैठे हुए तो वह क्या करेगी? पर फिर उसने यह सोचकर अपने मन से वह बात निकाल दी थी कि वो सिर्फ एक बार अनजाने में हुई घटना थी. लेकिन बाथरूम से बाहर निकलते ही जयसिंह से रूबरू हो जाने पर मनिका की नज़र सीधा उनकी टांगों के बीच गई थी. आज भी जयसिंह ने टांगें इस तरह खोल रखीं थी के उनके गुप्तांग प्रदर्शित हो रहे हों लेकिन आज जयसिंह ने एक सफ़ेद अंडरवियर पहन रखा था. मनिका की धड़कन बढ़ गई थी. अंडरवियर पहने होने के बावजूद जयसिंह के लंड का उठाव साफ़ नज़र आ रहा था. अंडरवियर में खड़े उनके लिंग ने उसके कपड़े को पूरा खींच कर ऊपर उठा दिया था, मनिका ने झट से अपनी नज़र ऊपर उठा कर अपने पिता की आँखों में देखा था, वे मुस्कुराते हुए उठे थे और बाथरूम में जाने लगे थे. उनके करीब आने पर मनिका की साँस जैसे रुक सी गई थी, बिना शर्ट के जयसिंह के बदन का ऊपरी भाग पूरी तरह से उघड़ा हुआ था, उन्होंने बनियान भी नहीं पहन रखी थी. जयसिंह का चौड़ा सीना और बलिष्ठ बाँहे देख हया से मनिका की नज़र नीचे हो गई थी और उसने एक तरफ हो उन्हें बाथरूम में जाने दिया व आ कर बेड पर बैठी थी,

'ओह्ह...थैंक गॉड आज पापा अंडरवियर पहने हुए थे...बट फिर से मैंने उनके प्राइवेट पार्ट्स को एक्सपोस होते देख लिया...मतलब अंडरवियर में से भी उनका बड़ा सा डिक...हे राम मैं फिर से ऐसा-वैसा सोचने लगी...' ब्लू-फिल्म में देखने से मनिका को यह तो पता था कि मर्द जब उत्तेजित होते हैं तो उनका लिंग सख्त हो जाता है पर उसने कभी बैठे हुए लिंग का दीदार तो किया नहीं था सो उसे उनके बीच के अंतर का पता नहीं था. एक बार फिर उसका बदन तमतमा गया था और वह सोचने लगी थी 'पता नहीं पापा कैसे इतना बड़ा...पैंट में डाल के रखते हैं? नहीं-नहीं...ऐसा मत सोच...अनकम्फर्टेबल फील नहीं होता क्या उन्हें..? हाय...ये मैं क्या-क्या सोच रही हूँ...पापा को पता चला तो क्या सोचेंगे?'

जब जयसिंह नहा कर बाहर आए तो मनिका को टी.वी देखते हुए पाया. मनिका ने ध्यान बंटाने के लिए टेलीविज़न चला रखा था. जयसिंह भी आकर उसके पास बैठ गए. मनिका ने कनखियों से उनकी तरफ देखा था वे आज भी बरमूडा और टी-शर्ट पहने हुए थे.

जयसिंह ने मनिका की बाँह पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींचा, वह उनका इशारा समझ गई थी और उनकी तरफ देखा, जिस पर जयसिंह ने उसे उठ कर गोद में आने का इशारा किया. मनिका थोडा सकुचा गई थी पर फिर भी उठ कर उनकी गोद में आ बैठी. आज वह उनकी जाँघ पर बैठी थी.

'क्या कुछ चल रहा है टी.वी में..?' जयसिंह ने पूछा.

'कुछ नहीं पापा...वैसे ही चैनल चेंज कर रही थी बैठी हुई. आज दिन में सो लिए थे तो नींद भी कम आ रही है.' मनिका ने बताया.

'हम्म...' जयसिंह ने टी.वी की स्क्रीन पर देखते हुए कहा.

कुछ देर वे दोनों वैसे ही बैठे टेलीविज़न देखते रहे, मनिका थोड़ी-थोड़ी देर में चैनल बदल दे रही थी. कुछ पल बाद जब मनिका ने एक बार फिर चैनल चेंज किया तो 'ईटीसी' चल पड़ा और उस पर 'जन्नत' फिल्म का ही ट्रेलर आ रहा था. जयसिंह को बात छेड़ने का मौका मिल चुका था.

आज जयसिंह ने जानबूझकर अंडरवियर पहने रखा था ताकि मनिका को शक न हो जाए कि वे उसे अपना नंगापन इरादतन दिखा रहे थे. लेकिन फिर कुछ सोच कर उन्होंने अपन शर्ट और बनियान निकाल दिए थे, आखिर मनिका को सामान्य हो जाने का मौका देना भी तो खतरे से खाली नहीं था. बाथरूम से निकलते ही मनिका की प्रतिक्रिया को वे एक क्षण में ही ताड़ गए थे और मुस्कुराते हुए नहाने घुस गए थे. लेकिन नहाने के बाद उन्होंने अपना अंडरवियर धो कर सुखा दिया था और अब बरमूडे के अन्दर कुछ नहीं पहने हुए थे. उन्होंने बात शुरू की,

'अरे मनिका! बताया नहीं तुमने कि मूवी कैसी लगी तुम्हें? पिछली बार तो फिल्म की बातों का रट्टा लगा कर हॉल से बाहर निकली थी तुम...'

'हेहे...ठीक थी पापा...' मनिका ने फिल्म के दौरान हुई घटनाओं को याद किया तो और झेंप गई थी.

'हम्म...मतलब जंची नहीं फिल्म आज..?’जयसिंह ने मनिका से नजर मिलाई.

'हेह...नहीं पापा ऐसा नहीं है...बस वैसे ही, मूवी की कास्ट (हीरो-हीरोइन) कुछ खास नहीं थी...और क्राउड भी गंवार था एकदम...सो...आपको कैसी लगी?' मनिका ने धीरे-धीरे अपने मन की बात कही और पूछा.

'मुझे तो बिलकुल पसंद नहीं आई.' जयसिंह ने कहा.

'हैं? क्या सच में..?’मनिका ने आश्चर्य से पूछा.

'और क्या जो चीज़ तुम्हें नहीं पसंद वो मुझे भी नहीं पसंद...' जयसिंह ने डायलॉग मारा.

'हाहाहा पापा...कितने नौटंकी हो आप भी...बताओ ना सच-सच..?' मनिका हंस पड़ी.

'हाह...मुझे तो ठीक लगी...' जयसिंह ने कहा, 'और क्राउड तो अब हमारे देश का जैसा है वैसा है.'

'हुह...फिर भी बदतमीजी की कोई हद होती है. पब्लिक प्लेस का कुछ तो ख्याल होना चाहिए लोगों को...’मनिका ने नाखुशी जाहिर करते हुए कहा.

'हाहाहा...अरे भई तुम क्यूँ खून जला रही हो अपना?' जयसिंह ने मनिका की पीठ थपथपाते हुए कहा.

'और क्या तो पापा...गुस्सा नहीं आएगा क्या आप ही बताओ?' मनिका का आशय थिएटर में हुए अश्लील कमेंट्स से था.

'अरे अब क्या बताऊँ...हाहाहा.' जयसिंह बोले 'माना कि कुछ लोग ज्यादा ही एक्साइटेड हो जाते हैं...'

'एक्साइटेड? बेशर्म हो जाते हैं पापा...और सब के सब आदमी ही थे...आपने देखा किसी लड़की या लेडी को एक्साइटेड होते हुए?' मनिका ने जयसिंह के ढुल-मुल जवाब को काटते हुए कहा.

'हाहाहा भई तुम तो मेरे ही पीछे पड़ गई...मैं कहाँ कह रहा हूँ के लडकियाँ एक्साइटेड हो रहीं थी.' जयसिंह को एक सुनहरा मौका दिखाई देने लगा था और उन्होंने अब मनिका को उकसाना शुरू किया 'अब हो जाते हैं बेचारे मर्द थोड़ा उत्साहित क्या करें...'

'हाँ तो पापा और भी लोग होते है वहाँ जिनको बुरा लगता है...और ये वही मर्द हैं आपके जिनका आप कह रहे थे कि बड़ा ख्याल रखते हैं गर्ल्स का...' मनिका ने मर्द जात को लताड़ते हुए कहा.

'अच्छा भई...ठीक है सॉरी सब मर्दों की तरफ से...अब तो गुस्सा छोड़ दो.' जयसिंह ने मामला सीरियस होते देख मजाक किया.

'हेहे...पापा आप क्यूँ सॉरी बोल रहे हो...आप उनकी तरह नहीं हो.' मनिका ने भी अपने आवेश को नियंत्रित करते हुए मुस्का कर कहा.

इस पर जयसिंह कुछ पल के लिए चुप हो गए. मनिका ने उनकी तरफ से कोई जवाब ना मिलने पर धीरे से कहा,
'पापा?'

'देखो मनिका ये बात तुम्हारे या मेरे सही-गलत होने की नहीं है. हमारे समाज में बहुत सी ऐसी पाबंदियां हैं जिनकी वजह से हम अपनी लाइफ के बहुत से आस्पेक्ट्स (पहलु) अपने हिसाब से ना जी कर सोसाइटी के नियम-कानूनों से बंध कर फॉलो करते हैं और यह भी उसी का एक एक्साम्प्ल (उदहारण) है.' जयसिंह ने कुछ गंभीरता अख्तियार कर समझाने के अंदाज़ में मनिका से कहा. चुप हो जाने की बारी अब मनिका की थी.

'पर पापा...ये आप कैसे कह सकते हो? दोज़ पीपल वर एब्यूजिंग सो बैडली...’मनिका ने कुछ पल जयसिंह की बात पर विचार करने के बाद कहा.

'हम्म...वेल लुक एट इट लाइक दिस...जिस तरह का सीन फिल्म में आ रहा था...' जयसिंह का मतलब फिल्म में आए उस किसिंग सीन से था, मनिका की नज़र झुक गई 'क्या वह हमारे समाज में एक्सेप्टेड है..? मेरा मतलब है कुछ साल पहले तक तो इस तरह की फिल्मों की कल्पना तक नहीं कर सकते थे.'

'इह...हाँ पापा बट इसका मतलब ये थोड़े ही है की आप ऐसा बिहेव करो सबके सामने...' मनिका ने तर्क रखा.

'नहीं इसका यह मतलब नहीं है...पर पता नहीं कितने ही हज़ार सालों से चली आ रही परम्परा के नाम पर जो दबी हुई इच्छाएँ...और मेरा मतलब सिर्फ लड़कों या मर्दों से नहीं है, औरत की इच्छाओं का दमन तो हमसे कहीं ज्यादा हुआ है...लेकिन जो मैं कहना चाह रहा हूँ वह यह है कि जब सोसाइटी के बनाए नियम टूटते हैं तो इंसान अपनी आज़ादी के जोश में कभी-कभी कुछ हदें पार कर ही जाता है.' जयसिंह ने ज्ञान की गगरी उड़ेलते हुए मनिका को निरुत्तर कर दिया था 'अब तुम ही सोचो अगर आज जब लड़कियों को सामाज में बराबर का दर्जा मिल रहा है तो भी क्या उन लड़कियों को बिगडैल और ख़राब नहीं कहा जाता जो अपनी आजादी का पूरा इस्तेमाल करना चाहती हैं...जिनके बॉयफ्रेंड होते हैं या जो शराब-सिगरेट पीती हैं..?'

'हाँ...बट...वो भी तो गलत है ना..? आई मीन अल्कोहोल पीना...’ मनिका ने तर्क से ज्यादा सवाल किया था.

'कौन कहता है?' जयसिंह ने पूछा.

'सभी कहते हैं पापा...सबको पता है इट्स हार्मफुल.' मनिका बोली.

'सभी कौन..? लोग-समाज-सोसाइटी यही सब ना? अब शराब अगर आपके लिए ख़राब है तो यह बात उनको भी तो पता है...अगर उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता तो समाज कौन होता है उनहें रोकनेवाला?' जयसिंह अब टॉप-गियर में आ चुके थे. 'अगर उन्हें अपने पसंद के लड़के के साथ रहना है तो तुम और मैं कौन होते हैं कुछ कहने वाले..? सोचो...सही और गलत की डेफिनिशन भी तो समाज ने ही बना कर हम पर थोपी है.'

'अब मैं क्या बोलूँ पापा..? आप के आइडियाज तो कुछ ज्यादा ही एडवांस्ड हैं.' मनिका ने हल्का सा मुस्का कर कहा. 'बट हमें रहना भी तो इसी सोसाइटी में है ना.' उसने एक और तर्क रखते हुए कहा.

'हाँ रहना है...' जयसिंह बोलने लगे.

'तो फिर हमें रूल्स भी तो फॉलो करने ही पड़ेंगे ना..?' अपना तर्क सिद्ध होते देख मनिका ने उनकी बात काटी.

'हाहाहा...कोई जरूरी तो नहीं है.' जयसिंह ने कहा.

'वो कैसे?' मनिका ने सवालिया निगाहें उनके चेहरे पर टिकाते हुए पूछा.

'वो ऐसे कि रूल्स को तो तोड़ा भी जा सकता है...बशर्ते यह समझदारी से किया जाए.' जयसिंह ने कहा.

'मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा पापा...क्या कहना चाहते हो आप?' मनिका ने उलझन में पड़ते हुए सवाल किया.

'देखो...आज जब हॉल में वे लोग हूटिंग कर रहे थे तो कोई एक आदमी अकेला नहीं कर रहा था बल्कि चारों तरफ से आवाजें आ रही थी. अब सोचो अगर सिर्फ कोई एक अकेला होता तो तुम जैसे समाज के ठेकेदार उसे वहाँ से भगाने में देर नहीं लगाते पर क्यूंकि वे ज्यादा थे तो कोई कुछ नहीं बोला...अगर वे इतने ही ज्यादा गलत थे तो किसी ने आवाज़ क्यूँ नहीं उठाई?' जयसिंह का एक हाथ अब मनिका की कमर पर आ गया था 'मैं बताऊँ क्यूँ..? क्यूंकि असल में उस हॉल में ज्यादातर लोग उसी तरह के सीन देखने आए थे. पर बाकी सबने सभ्यता का नकाब ओढ़ रखा था और उन लोगों पर नाक-भौं सिकोड़ रहे थे जिन्होंने अपनी इच्छाओं को व्यक्त करने की हिम्मत दिखाई थी. सो एकजुट होकर अपनी इच्छा मुताबिक करना पहला तरीका है जिससे समाज के नियमों को तोड़ नहीं तो मोड़ तो सकते ही हैं.'

जयसिंह के तर्क मनिका के आज तक के आत्मसात किए सभी मूल्यों के इतर जा रहे थे लेकिन उनका प्रतिरोध करने के लिए भी उसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था.

'पर पापा वो इतना रुडली बोल रहे थे उसका क्या? किसी को तो उन्हें रोकना चाहिए था...और आपका पता नहीं मैं तो वहां कोई सीन देखने नहीं गई थी.' मनिका ने सफाई देते हुए कहा.

'हाँ जरूर समाज का तो काम ही है रोकना. पहले दिन से ही समाज रोकना ही तो सिखाता है कभी लड़का-लड़की के नाम पर तो कभी घर-परिवार के नाम पर तो कभी धर्म-आचरण के नाम पर...अब तुम बताओ क्या फिर भी तुम रुकी?' जयसिंह का बात की आखिर में किया सवाल मनिका के समझ नहीं आया.

'क्या मतलब पापा...मैंने क्या किया?' उसने हैरानी से पूछा.

'क्या मधु से तुम्हारी लड़ाई नहीं होती? वो तुम्हारी माँ है...क्या उनके सामने बोलना तुम्हें शोभा देता है? और फिर समाज भी यही कहता है कि अपने माता-पिता का आदर करो...नहीं कहता तो बताओ?' जयसिंह ने कहा.

'पर पापा मम्मी हमेशा बिना बात के मुझे डांट देती है तो गुस्सा नहीं आएगा क्या? मेरी कोई गलती भी नहीं होती...और मैं कोई हमेशा उनके सामने नहीं बोलती पर जब वो ओवर-रियेक्ट करने लगती है तो क्या करूँ..? अब आप भी मुझे ही दोष दे रहे हो.' मनिका जयसिंह की बात से आहत होते हुए बोली.

'अरे!' जयसिंह ने अब अपना हाथ मनिका की कमर से पीठ तक फिरा कर उसे बहलाया 'मैं तो हमेशा तुम्हारा साथ देता आया हूँ...'

'तो आप ऐसा क्यूँ कह रहे हो कि मैं मम्मी से बिना बात के लड़ती हूँ?' मनिका ने मुहं बनाते हुए अपना सिर उनके कंधे पर टिकाया.

'मैंने ऐसा कब कहा...मैं जो कह रहा हूँ वो तुम समझ नहीं रही हो. तुम मधु से लड़ाई इसीलिए तो करती हो ना क्यूंकि वो गलत होती है और तुम सही...फिर भी तुम्हे उसके ताने सहने पड़ते हैं क्यूंकि वो तुम्हारी माँ है. लेकिन इस बारे में अगर सोसाइटी में चार जानो के सामने तुम अपना पक्ष रखोगी तो वे तुम्हें ही गलत मानेंगे कि नहीं?' जयसिंह ने इस बार प्यार से उसे समझाया.

'हाँ पापा.' मनिका को भी उनका आशय समझ आ गया था.

'सो अब तुम अपनी माँ से हर बात शेयर नहीं करती क्यूंकि तुम्हें उसके एटीटयुड का पता है और यही तुम्हारी समझदारी है व वह दूसरा तरीका है जिस से समाज में रह कर भी हम अपनी इच्छा मुताबिक जी सकते हैं.'

'मतलब...पापा?' मनिका को उनकी बात कुछ-कुछ समझ आने लगी थी.

'मतलब समाज और लोगों को सिर्फ उतना ही दिखाओ जितना उनकी नज़र में ठीक हो, जैसे तुम अपनी माँ के साथ करती हो...लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि तुम गलत हो और तुम्हारी माँ या समाज के लोग सही हैं. कुछ समझी?'

'हेहे...हाँ पापा कुछ-कुछ...' मनिका अब मुस्का रही थी.

'और ये बात मैंने तुम्हें पहले भी समझाई थी के अगर मैं भी समाज के हिसाब से चलने लगता तो क्या हम यहाँ इतना वक्त बिताते? हम दोनों ही घर से झूठ बोल कर ही तो यहाँ रुके हुए हैं...’जयसिंह ने आगे कहा.

'हाँ पापा आई क्नॉ...आई थिंक आई एम् गेटिंग व्हाट यू आर ट्राइंग टू से...कि सोसाइटी इज नॉट ऑलवेज राईट...और ना ही हम हमेशा सही होते हैं...है ना?' मनिका ने जयसिंह की बात के बीच में ही कहा.

'हाँ...फाइनली.' जयसिंह बोले.

'हीहीही. इतनी भी बेवकूफ नहीं हूँ मैं पापा...’ मनिका हँसी.

'हाहाहा. बस समझाने वाला होना चाहिए.' जयसिंह ने हौले से मनिका को अपनी बाजू में भींच कर कहा.

'तो आप हो ना पापा...' मनिका भी उनसे करीबी जता कर बोली.

'हाहाहा...हाँ मैं तो हूँ ही पर मुझे लगा था तुम अपने आप ही समझ गई होगी दिल्ली आने के बाद.' जयसिंह ने बात ख़त्म नहीं होने दी थी.

'वो कैसे?' मनिका ने फिर से कौतुहलवश पूछा.

'अरे वही हमारी बात...कुछ नहीं चलो छोड़ो अब...' जयसिंह आधी सी बात कह रुक गए.

'बताओ ना पापा!? कौनसी बात..?’मनिका ने हठ किया.

'अरे कुछ नहीं...कब से बक-बक कर रहा हूँ मैं भी...' जयसिंह ने फिर से टाला.

'नहीं पापा बताओ ना...प्लीज.' मनिका ने भी जिद नहीं छोड़ी. सो जयसिंह ने एक पल उसकी नज़र से नज़र मिलाए रखी और फिर हौले से बोले,

'भूल गई जब तुम्हें ब्रा-पैंटी लेने के लिए कहा था?' मनिका के चेहरे पर लाली फ़ैल गई थी.
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